No: 45 Dated: Oct, 06 1860

भारतीय दण्ड संहिता (IPC) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है। परन्तु यह संहिता भारतीय सेना पर लागू नहीं होती। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू एवं कश्मीर में भी अब भारतीय दण्ड संहिता (IPC) लागू है। [Act 34 of 2019]

भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश हुकूमत में सन् 1860 में लागू हुई। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे। वर्तमान में, भारतीय दण्ड संहिता में 23 अध्याय और 511 धाराएं हैं।

भारतीय दण्ड संहिता, 1860

[ INDIAN PENAL CODE, 1860 ]

[ 1860 का अधिनियम संख्यांक 45 ]

भाग 1

[ 6 अक्टूबर 1860 ]

 अध्याय 1

प्रस्तावना

उद्देशिका -  भारत के लिए एक साधारण दण्ड संहिता का उपबन्ध करना समीचीन है। अतः यह निम्नलिखित रूप में अधिनियमित किया जाता है।

1. संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार - यह अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता कहलाएगा और इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर होगा। [The words "except the State of Jammu and Kashmir" omitted by Act 34 of 2019, s. 95 and the Fifth Schedule (w.e.f. 31-10- 2019)]

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 Indian Penal Code (IPC) in Hindi (See - PDF)

 भारतीय दंड संहिता हिंदी में

दण्ड विधि (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक 2021

दण्ड विधि(मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक 2019

भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872

Criminal Law (Amendment) Act, 2018

Criminal Procedure Code 1973 [CrPC] With State Amendments [Hindi & English]

भारतीय दंड संहिता से संबंधित नवीनतम निर्णय 

 

Also Read - INDIAN PENAL CODE, 1860 (IPC) in Hindi and English - PDF

 

2. भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड - 

हर व्यक्ति इस संहिता के उपबन्धों के प्रतिकूल हर कार्य या लोप के लिए जिसका वह भारत के भीतर दोषी होगा, इसी संहिता के अधीन दण्डनीय होगा अन्यथा नहीं।

3. भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड–

भारत से परे किए गए अपराध के लिए जो कोई व्यक्ति किसी भारतीय विधि के अनुसार विचारण का पात्र हो, भारत से परे किए गए किसी कार्य के लिए उससे इस संहिता के उपबन्धों के अनुसार ऐसा बरता जाएगा मानो वह कार्य भारत के भीतर किया गया था।

4. राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार -

इस संहिता के उपबन्ध -

(1) भारत से बाहर और परे किसी स्थान में भारत के किसी नागरिक द्वारा;

(2) भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या विमान पर, चाहे वह कहीं भी हो किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी अपराध को भी लागू है।

(3) भारत में स्थित कम्प्यूटर संस्थान को लक्ष्य करके भारत के बाहर और परे किसी स्थान में अपराध कारित करने वाले किसी व्यक्ति के द्वारा दिये गये किसी अपराध को भी लागू होगा।

स्पष्टीकरण- इस धारा में -

(क) "अपराध" शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किया गया ऐसा हर कार्य आता है जो यदि भारत में किया जाता तो, इस संहिता के अधीन दण्डनीय होता है;

(ख) पद "कम्प्यूटर साधन” का वही अर्थ होगा, जो उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की यदि 2 की उपधारा (1) खण्ड (त) में उसे समनुदेशित है।

दृष्टांत

क, जो भारत का नागरिक है उगाण्डा में हत्या करता है वह भारत के किसी स्थान में, जहाँ वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्ध किया जा सकता है.

5. कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना — इस अधिनियम में की कोई बात भारत सरकार की सेवा के आफिसरों, सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन को दण्डित करने वाले किसी अधिनियम के उपबन्धों, या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबन्धों, पर प्रभाव नहीं डालेगी।

अध्याय 2

साधारण स्पष्टीकरण

[General Explanations]

6. संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना -

इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की हर परिभाषा हर दण्ड उपबन्ध और, हर ऐसी परिभाषा या दण्ड उपबन्ध का हर दष्टान्त,"साधारण अपवाद" शीर्षक वाले अध्याय में अन्तर्विष्ट अपवादों के अध्यधीन समझा जायेगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दण्ड उपबन्ध या दृष्टान्त में दुहराया न गया हो।

दृष्टान्त

(क) इस संहिता की वे धाराएँ, जिनमें अपराधों की परिभाषाएँ अन्तर्विष्ट है, यह अभिव्यक्त नहीं करती कि सात वर्ष से कम आयु का शिशु ऐसे अपराध नहीं कर सकता, किन्तु परिभाषाएँ उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जाती हैं जिसमें यह उपबन्धित कोई बात, जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है, अपराध नहीं है।

(ख) क, एक पुलिस आफिसर, वारण्ट के बिना, य को, जिसने हत्या की है, पकड़ लेता है। यहाँ क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं हैं, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए विधि द्वारा आबद्ध था, और इसलिए यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि “कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो"। 

7. एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव - हर पद, जिसका स्पष्टीकरण इस संहिता के किसी भाग में किया गया है, इस संहिता के हर भाग में उस स्पष्टीकरण के अनुरूप ही प्रयोग किया गया है।

8. लिंग - पुल्लिंग वाचक शब्द जहाँ प्रयोग किया गया है, वे हर व्यक्ति के बारे में लागू हैं, चाहे नर हो या नारी।

9. वचन - जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, एक वचन द्योतक शब्दों के अन्तर्गत बहुवचन आता है, और बहुवचन द्योतक शब्दों के अन्तर्गत एकवचन आता है।

10. पुरुष, स्त्री -

"पुरुष" शब्द किसी भी आयु के मानव नर का ध्योत्तक है; "स्त्री" शब्द किसी भी आयु की मानव नारी का द्योत्तक है।

11. "व्यक्ति” -

कोई भी कम्पनी या संगम, या व्यक्ति निकाय चाहे वह निगमित हो या नहीं, " व्यक्ति" शब्द के अन्तर्गत आता है।

12. "लोक" -

लोक का कोई भी वर्ग या कोई भी समुदाय "लोक" शब्द के अन्तर्गत आता है।

13. क्वीन - 

विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा निरसित।

14. "सरकार का सेवक" -

"सरकार का सेवक" शब्द सरकार के प्राधिकार के द्वारा या अधीन, भारत के भीतर उस रूप में बने रहने दिए गए, नियुक्त किए गए, या नियोजित किए गए किसी भी आफिसर या सेवक के ध्योत्तक है।

15. "ब्रिटिश इण्डिया" की परिभाषा -

विधि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा निरसित.

16. "भारत सरकार" -

भारत सरकार (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा निरसित ।

17. सरकार - 

"सरकार" शब्द केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य की सरकार का ध्योत्तक है।

18. "भारत" - 

"भारत" से जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय भारत का राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है।

19. "न्यायाधीश" -

"न्यायाधीश" शब्द न केवल हर ऐसे व्यक्ति का ध्योत्तक है, जो पद रूप से न्यायाधीश अभिहित हो, किन्तु उस हर व्यक्ति का भी ध्योत्तक है, जो किसी विधि-कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, अन्तिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अंतिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अन्तिम हो जाए, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो अथवा

जो उस व्यक्ति-निकाय में से एक हो, जो व्यक्ति-निकाय ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो।

दृष्टान्त

(क) सन् 1859 के अधिनियम 10 के अधीन किसी वाद में अधिकारिता का प्रयोग करने वाला कलेक्टर न्यायाधीश है।

(ख) किसी आरोप के सम्बन्ध में, जिसके लिए उसे जुर्माना या कारावास का दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो या न होती हो, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश है।

(ग) मद्रास संहिता के सन् 1816 के विनियम 7 के अधीन वादों का विचारण करने की और अवधारणा करने की शक्ति रखने वाली पंचायत का सदस्य न्यायाधीश है।

(घ) किसी आरोप के सम्बन्ध में, जिनके लिए उसे केवल अन्य न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द करने की शक्ति प्राप्त है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश नहीं है।

20. "न्यायालय" - 

"न्यायालय" शब्द उस न्यायाधीश का, जिसे अकेले ही को न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, या उस न्यायाधीश निकाय का, जिसे एक निकाय के रूप में न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जबकि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश निकाय न्यायिकतः कार्य कर रहा है, ध्योत्तक है।

दृष्टान्त

मद्रास संहिता के सन् 1816 के विनियम 7 के अधीन कार्य करने वाली पंचायत जिसे वादों का विचारण करने और अवधारण करने की शक्ति प्राप्त है, न्यायालय है।

21. "लोक सेवक" - 

"लोक सेवक" शब्द उस व्यक्ति का ध्योत्तक है जो एतस्मिन् पश्चात् निम्नगत वर्णनों में से किसी में आता है, अर्थात् -

दूसरा -- भारत की सेना नौसेना या वायुसेना का हर आयुक्त आफिसर;

तीसरा - हर न्यायाधीश जिसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ति आता है जो किन्हीं न्याय निर्णायिक कृत्यों का चाहे स्वयं या व्यक्तियों के किसी निकाय के सदस्य के रूप में निर्वहन करने के लिए विधि द्वारा शक्त किया गया हो;

चौथा - न्यायालय का हर आफिसर जिसके अन्तर्गत समापक, रिसीवर या कमिश्नर आता है, जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह विधि या तथ्य के किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे, या कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे, या रखे, या किसी सम्पति का भार सम्भाले या उस सम्पति का व्ययन करे, या किसी न्यायिक आदेशिका का निष्पादन करे, या कोई शपथ ग्रहण कराए या निर्वचन करे, या न्यायालय में व्यवस्था बनाए रखे और हर व्यक्ति, जिसे ऐसे कर्तव्यों में से किन्हीं का पालन करने का प्राधिकार न्यायालय द्वारा विशेष रूप से दिया गया हो;

पांचवा - किसी न्यायालय या लोक-सेवक की सहायता करने वाला हर जूरी सदस्य, असेसर या पंचायत का सदस्य।

छटा - हर मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति, जिसको किसी न्यायालय द्वारा, या किसी अन्य सक्षम लोक प्राधिकारी द्वारा कोई मामला या विषय, विनिश्चय या रिपोर्ट के लिए निर्देशित किया गया हो।

सातवां - हर व्यक्ति जो किसी ऐसे पद को धारण करता हो, जिसके आधार से वह किसी व्यक्ति को परिरोध में करने या रखने के लिए सशक्त हो।

आठवां - सरकार का हर आफिसर जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह अपराधों का निवारण करे, अपराधों की इत्तिला दे, अपराधियों को न्याय के लिए उपस्थित करे, या लोक के स्वास्थ्य, क्षेम या सुविधा की संरक्षा करे।

नवां - हर आफिसर जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह सरकार की ओर से किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, या व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सर्वेक्षण, निर्धारण या संविदा करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे या सरकार के धन सम्बन्धी हितों पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या सरकार के धन सम्बन्धी हितों से सम्बन्धित किसी दस्तावेज को बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे, या सरकार के धन-सम्बन्धी हितों की संरक्षा के लिए किसी विधि के व्यतिक्रम को रोके।

दसवां - हर आफिसर, जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह किसी ग्राम, नगर या जिले के किसी धर्मनिरपेक्ष सामान्य प्रयोजन के लिए किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, या व्यय करे, कोई सर्वोक्षण या निर्धारण करे, या कोई रेट या कर उद्गृहीत करे, या किसी ग्राम, नगर या जिले के लोगों के अधिकारों के अभिनिश्चयन के लिए कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे।

ग्यारहवां - हर व्यक्ति जो कोई ऐसा पद धारण करता हो जिसके आधार से वह निर्वाचक नामावली तैयार करने, प्रकाशित करने, बनाए रखने या पुनरीक्षित करने के लिए या निर्वाचन या निर्वाचन के किसी भाग को संचालित करने के लिए सशक्त हो;

बारहवां - हर व्यक्ति, जो –

          (क) सरकार की सेवा या वेतन में हो, या किसी लोक-कर्तव्य के पालन के लिए सरकार से फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता हो।

         (ख) स्थानीय प्राधिकारी की, अथवा केन्द्र, प्रान्त या राज्य के अधिनियम के द्वारा या अधीन स्थापित निगम की अथवा कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथा परिभाषित सरकारी कम्पनी की, सेवा या वेतन में हो।

दृष्टान्त

नगरपालिका आयुक्त लोक सेवक है।

स्पष्टीकरण 1 - ऊपर के वर्णनों में से किसी में आने वाले व्यक्ति लोक सेवक हैं, चाहे वे सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हों या नहीं।

स्पष्टीकरण 2 - जहाँ कहीं "लोक सेवक" शब्द आए हैं, वे उस हर व्यक्ति के सम्बन्ध में समझे जायेंगे जो लोक सेवक के ओहदे को वास्तव में धारण किए हुए हों, चाहे उस ओहदे को धारण करने के उसके अधिकार में कैसी ही विधिक त्रुटि हो।

स्पष्टीकरण 3 - "निर्वाचन" शब्द ऐसे किसी विधायी, नगरपालिका या अन्य लोक प्राधिकारी के नाते, चाहे वह कैसे ही स्वरूप का हो, सदस्यों के वरणार्थ निर्वाचन का ध्योत्तक है जिसके लिए वरण करने की पद्धति किसी विधि के द्वारा या अधीन निर्वाचन के रूप में निहित की गई हो।

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राज्य संशोधन

राजस्थान - भा० द० संहिता की धारा 21 राजस्थान में यथा प्रयोज्य खण्ड बारहवाँ के पश्चात् निम्नलिखित नवीन खण्ड जोड़े जाएँगे, यथा -

तेरहवाँ - प्रत्येक व्यक्ति जो किसी विधि के अन्तर्गत अनुमोदित अथवा मान्यता प्राप्त किसी परीक्षा को सम्पादित कराने के लिए और उसकी देख-रेख करने के लिए किसी लोक निकाय द्वारा नियुक्त किया गया या लगाया गया है।

स्पष्टीकरण - अभिव्यक्ति लोक निकाय में सम्मिलित हैं -

(क) विश्वविद्यालय शिक्षा परिषद या अन्य निकाय चाहे वह केन्द्र अथवा राज्य के अन्तर्गत स्थापित हुआ ओ अथवा भारतीय संविधान के उपबन्धों द्वारा सरकार द्वारा गठित किया गया हो।

(ख) "एक स्थानीय प्राधिकारी" [राजस्थान अधि० सं० 4 सन् 1993 धारा 2 प्रभावी 11-2-1993]

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22. "जंगम सम्पत्ति" -

"जंगम सम्पत्ति" शब्दों से यह आशयित है कि इनके अन्तर्गत हर भाँति की मूर्त सम्पत्ति आती है, किन्तु भूमि और वे चीजें, जो भूबद्ध हों या भूबद्ध किसी चीज से स्थायी रूप से जकड़ी हुई हों, इनके अन्तर्गत नहीं आती।

23. "सदोष अभिलाभ" -

"सदोष अभिलाभ" विधि विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति का अभिलाभ है, जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति न हो।

"सदोष हानि" - "सदोष हानि" विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि है, जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति हो।

सदोष अभिलाभ प्राप्त करना - सदोष हानि उठाना -  कोई व्यक्ति सदोष अभिलाभ प्राप्त करता है, यह तब कहा जाता है जब कि वह व्यक्ति सदोष रखे रखता है तब भी जब कि वह व्यक्ति सदोष अर्जन करता है। कोई व्यक्ति सदोष हानि उठाता है, यह तब कहा जाता है जबकि उसे किसी सम्पति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जबकि उसे किसी सम्पत्ति से सदोष वंचित किया जाता है।

24. “बेईमानी से" -

जो कोई इस आशय से कोई कार्य करता है कि एक व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करे या अन्य व्यक्ति को सदोष हानि कारित करे, वह उस कार्य को “बेईमानी से" करता है, यह कहा जाता है।

25. “कपटपूर्वक” -

कोई व्यक्ति किसी बात को कपटपूर्वक करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस बात को कपट करने के आशय से करता है, किन्तु अन्यथा नहीं।

26. “विश्वास करने का कारण” -

कोई व्यक्ति किसी बात के “विश्वास करने का कारण” रखता है, यह तब कहा जाता है, जब यह उस बात के विश्वास करने का पर्याप्त हेतुक रखता है, अन्यथा नहीं।

27. “पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में संपत्ति” -

जबकि संपत्ति किसी व्यक्ति के निमित्त उस व्यक्ति की पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में है, तब वह इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत उस व्यक्ति के कब्जे में है।

स्पष्टीकरण -- लिपिक या सेवक के नाते अस्थायी रूप से या किसी विशिष्ट अवसर पर नियोजित व्यक्ति इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत लिपिक या सेवक है।

28. “कूटकरण” -

जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश से प्रवंचना करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह 'कूटकरण' करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण 1- कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो।

स्पष्टीकरण 2- जबकि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सदृश ऐसा है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को प्रवंचना हो सकती हो, तो जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सदृश बनाता है उसका आशय उस सदृश द्वारा प्रवंचना करने का था या वह यह संभाव्य जानता था कि एतद्वारा प्रवंचना की जाएगी।

29. “दस्तावेज” -

“दस्तावेज” शब्द किसी भी विषय का द्योतक है जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिन्हों के साधन द्वारा, या उनमें एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया हो जो उस विषय के साक्ष्य के रूप में उपयोग किए जाने को आशयित हो या उपयोग किया जा सके।

स्पष्टीकरण 1- यह तत्वहीन है कि किस साधन द्वारा या किस पदार्थ पर अक्षर, अंक या चिन्ह बनाए गए हैं या यह कि साक्ष्य किसी न्यायालय के लिए आशयित है या नहीं, या उसमें उपयोग किया जा सकता है या नहीं।

दृष्टांत 

किसी संविदा के निबंधनों को अभिव्यक्त करने वाला लेख, जो उस संविदा के साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सके, दस्तावेज है।

बैंककार पर दिया गया चैक दस्तावेज है।

मुख्तारनामा दस्तावेज है।

मानचित्र या रेखांक, जिसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाने का आशय हो या जो उपयोग में लाया जा सके, दस्तावेज है।

जिस लेख में निर्देश या अनुदेश अन्तर्विष्ठ हो, वह दस्तावेज है।

स्पष्टीकरण 2 - अक्षरों, अंकों या चिन्हों से जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर अभिव्यक्त होता है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अक्षरों, अंकों या चिन्हों से अभिव्यक्त हुआ समझा जाएगा, चाहे वह वस्तुतः अभिव्यक्त न भी किया गया हो।

दृष्टांत

क एक विनिमयपत्र की पीठ पर, जो उसके आदेश के अनुसार देय है, अपना नाम लिख देता है। वाणिज्यिक प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर इस पृष्ठांकन का अर्थ है कि धारक को विनिमयपत्र का भुगतान कर दिया जाए। पृष्ठांकन दस्तावेज है और इसका अर्थ उसी प्रकार से लगाया जाना चाहिए मानो हस्ताक्षर के ऊपर “धारक को भुगतान करो” शब्द या तत्प्रभाव वाले शब्द लिख दिए गए हों।

29 क. इलेक्ट्रानिक अभिलेख -

“इलेक्ट्रानिक अभिलेख” शब्दों का वही अर्थ होगा, जो उन्हें सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) के खण्ड (न) में समनुदेशित किया गया है।

30. “मूल्यवान प्रतिभूति" -

“मूल्यवान प्रतिभूति' शब्द उस दस्तावेज के द्योतक हैं, जो ऐसा दस्तावेज है, या होना तात्पर्यित है, जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित, विस्तृत, अन्तरित, निर्बन्धित, निर्वापित, किया जाए, छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है।

दृष्टांत

क एक विनिमयपत्र की पीठ पर अपना नाम लिख देता है। इस पृष्ठांकन का प्रभाव किसी व्यक्ति को, जो उसका विधिपूर्ण धारक हो जाए, उस विनिमयपत्र पर का अधिकार अन्तरित किया जाना है, इसलिए यह पृष्ठांकन “मूल्यवान प्रतिभूति" है।

31. “विल" -

"विल" शब्द किसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक है।

32. कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप आता है -

जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल आशय प्रस्तुत न हो, इस संहिता के हर भाग में किए गए कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों का विस्तार अवैध लोपों पर भी है।

33. "कार्य”, “लोप" -

“कार्य" शब्द कार्यावली का द्योतक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक कार्य का; "लोप” शब्द लोपावली का द्योतक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक लोप का।

34. सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य -

जबकि कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो।

35. जबकि ऐसा कार्य इस कारण आपराधिक है कि वह आपराधिक ज्ञान या आशय से किया गया है -

जब कभी कोई कार्य, जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किए जाने के कारण ही आपराधिक है, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति, जो ऐसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है, उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी द्वारा किया गया हो।

36. अंशतः कार्य द्वारा और अंशतः लोप द्वारा कारित परिणाम –

जहां कहीं किसी कार्य द्वारा या किसी लोप द्वारा किसी परिणाम का कारित किया जाना या उस परिणाम को कारित करने का प्रयत्न करना अपराध है, वहां यह समझा जाना है कि उस परिणाम का अंशतः कार्य द्वारा और अंशतः लोप द्वारा कारित किया जाना वही अपराध है।

दृष्टांत

क अंशतः य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करके, और अंशतः य को पीटकर साशय य की मृत्युकारित करता है। क ने हत्या की है।

37. किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक को करके सहयोग करना -

जब कि कोई अपराध कई कार्यों द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यों में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है।

दृष्टांत -

(क) क और ख पृथक्-पृथकू रूप से और विभिन्न समयों पर य को विष की छोटी-छोटी मात्राएं देकर उसकी हत्या करने को सहमत होते हैं। क और ख, य की हत्या करने के आशय से सहमति के अनुसार य को विष देते हैं। य इस प्रकार दी गई विष की कई मात्राओं के प्रभाव से मर जाता है। यहां क और ख हत्या करने में साशय सहयोग करते हैं और क्योंकि उनमें से हर एक ऐसे कार्य करता है, जिससे मृत्यु कारित होती है, वे दोनों इस अपराध के दोषी हैं, यद्यपि उनके कार्य पृथक हैं।

(ख) कऔर ख संयुक्त जेलर हैं, और अपनी उस हैसियत में वे एक कैदी य का बारी-बारी से एक समय में घण्टे के लिए संरक्षण-भार रखते हैं। य को दिए जाने के प्रयोजन से जो भोजन क और ख को दिया जाता है, वह भोजन इस साशय से कि य की मृत्युकारित कर दी जाए, हर एक अपनी हाजिरी के काल में य को देने का लोप करके वह परिणाम अवैध रूप से कारित करने में जानते हुए सहयोग करते हैं। य भूख से मर जाता है। क और ख दोनों य की हत्या के दोषी हैं।

 (ग) एक जेलर क, एक कैदी य का संरक्षण भार रखता है। क, य की मृत्यु कारित करने के आशय से, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है, जिसके परिणामस्वरूप य की शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है, किन्तु यह क्षुधापीड़न उसकी मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। क अपने पद से च्युत कर दिया जाता है और ख उसका उत्तरवर्ती होता है। क से दुस्संधि या सहयोग किए बिना ख यह जानते हुए कि ऐसा करने से संभाव्य है कि वह य की मृत्युकारित कर दे, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है। य भूख से मर जाता है। ख हत्या का दोषी है, किन्तु क ने ख से सहयोग नहीं किया, इसलिए क हत्या करने के प्रयत्न का ही दोषी है।

38. आपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे -

जहां कि कई व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को करने में लगे हुए या सम्पृक्त हैं, वहां वे उस कार्य के आधार पर विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे।

दृष्टांत

क गम्भीर प्रकोपन की ऐसी परिस्थितियों के अधीन य पर आक्रमण करता है कि य का उसके द्वारा वध किया जाना केवल ऐसा आपराधिक मानव वध है, जो हत्या की कोटि में नहीं होता है। ख जो य से वैमनस्य रखता है, उसका वध करने के आशय से और प्रकोपन से वशीभूत न होते हुए य का वध करने में क की सहायता करता है। यहां यद्यपि क और ख दोनों य की मृत्युकारित करने में लगे हुए हैं, ख हत्या का दोषी है और क केवल आपराधिक मानव वध का दोषी है।

39. “स्वेच्छया” -

कोई व्यक्ति किसी परिणाम को “स्वेच्छया" कारित करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह उसे उन साधनों द्वारा कारित करता है, जिनके द्वारा उसे कारित करना उसका आशय था या उन साधनों द्वारा कारित करता है जिन साधनों को काम में लाते समय यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कारित होना संभाव्य है।

दृष्टांत

क लूट को सुकर बनाने के प्रयोजन से एक बड़े नगर के एक बसे हुए गृह में रात को आग लगाता है और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्युकारित कर देता है। यहां क का आशय भले ही मृत्यु कारित करने का न रहा हो और वह दुखित भी हो कि उसके कार्य से मृत्युकारित हुई है तो भी यदि वह यह जानता था कि संभाव्य है कि वह मृत्युकारित कर दे तो उसने स्वेच्छया मृत्युकारित की है।

40. “अपराध” -

इस धारा के खण्ड 2 और 3 में वर्णित अध्यायों और धाराओं के सिवाय “अपराध” शब्द इस संहिता द्वारा दण्डनीय की गई किसी बात का द्योतक है। 

अध्याय 4, अध्याय 5क और निम्नलिखित धाराएं, अर्थात् धारा 64, 65, 66, 67, 71, 109, , 110, 112, 114, 115, 116, 117, 118, 119 और 120,187, 194, 195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223, 224, 225, 327, 328, 329, 330, 331, 347, 348, 388, 389 और 445 में “अपराध’ शब्द इस संहिता के अधीन या एतस्मिन् पश्चात् यथापरिभाषित विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय बात का द्योतक है और धारा 141,176, 177, 201, 202, 212, 216 और 441 में "अपराध” शब्द का अर्थ उस दशा में वही है जिसमें कि विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय बात ऐसी विधि के अधीन छह मास या उससे अधिक अवधि के कारावास से, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित, दण्डनीय हो ।

41. “विशेष विधि" -

“विशेष विधि” वह विधि है जो किसी विशिष्ट विषय को लागू हो।

42. “स्थानीय विधि” -

“स्थानीय विधि” वह विधि है जो भारत के किसी विशिष्ट भाग को ही लागू हो।

43. “अवैध”, “करने के लिए वैध रूप से आबद्ध” -

“अवैध" शब्द उस हर बात को लागू है, जो अपराध हो, या जो विधि द्वारा प्रतिषिद्ध हो, या जो सिविल कार्यवाही के लिए आधार उत्पन्न करती हो; और कोई व्यक्ति उस बात को "करने के लिए वैध रूप से आबद्ध” कहा जाता है जिसका लोप करना उसके लिए अवैध है।

44. “क्षति” -

“क्षति” शब्द किसी प्रकार की अपहानि का द्योतक है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या संपत्ति को अवैध रूप से कारित हुई हो।

45. “जीवन” -

जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, “जीवन” शब्द मानव के जीवन का द्योतक है।

46. “मृत्यु” -

जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, “मृत्यु” शब्द मानव की मृत्यु का द्योतक है।

47. “जीवजन्तु” -

“जीवजन्तु” शब्द मानव से भिन्न किसी जीवधारी का द्योतक है।

48. “जलयान” -

“जलयान” शब्द किसी चीज का द्योतक है, जो मानवों के या संपत्ति के जल द्वारा प्रवहण के लिए बनाई गई हो।

49. “वर्ष”, “मास” -

जहां कहीं “वर्ष” शब्द या “मास' शब्द का प्रयोग किया गया है वहां यह समझा जाना है कि वर्ष या मास की गणना ब्रिटिश कलैण्डर के अनुकूल की जानी है।

50. “धारा” -

“धारा' शब्द इस संहिता के किसी अध्याय के उन भागों में से किसी एक का द्योतक है, जो सिरे पर लगे संख्यांकों द्वारा सुभिन्न किए गए हैं। GO toTOP

51. “शपथ” -

“शपथ” के लिए विधि द्वारा प्रतिस्थापित सत्यनिष्ठ प्रतिज्ञान और ऐसी कोई घोषणा, जिसका किसी लोक-सेवक के समक्ष किया जाना या न्यायालय में या अन्यत्र सबूत के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत हो, “शपथ” शब्द के अन्तर्गत आती है।

52. “सद्भावपूर्वक” -

कोई बात “सद्भावपूर्वक” की गई या विश्वास की गई नहीं कही जाती जो सम्यक् सतर्कता और ध्यान के बिना की गई या विश्वास की गई हो।

52 क. “संश्रय’ -

धारा 157 में के सिवाय और धारा 130 में वहां के सिवाय जहां कि संश्रय संश्रित व्यक्ति की पत्नी या पति द्वारा दिया गया हो ‘संश्रय' शब्द के अंतर्गत किसी व्यक्ति को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र, आयुध, गोलाबारूद या प्रवहन के साधन देना, या किन्हीं साधनों से चाहे वे उसी प्रकार के हों या नहीं, जिस प्रकार के इस धारा में परिगणित हैं, किसी व्यक्ति की सहायता पकड़े जाने से बचने के लिए करना, आता है।

अध्याय 3: दण्डों के विषय में

53. “दण्ड” -

अपराधी इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दण्डनीय है, वे ये हैं

पहला - मृत्यु;

दूसरा - आजीवन कारावास;

तीसरा - विलोपित

चौथा - कारावास, जो दो भाँति का है, अर्थात्:-

(1) कठिन, अर्थात् कठोर श्रम के साथ;

(2) सादा;

पाँचवाँ -- सम्पत्ति का समपहरण;

छटा -- जुर्माना।

53 क. - निर्वासन के प्रति निर्देश का अर्थ लगाना -

(1) उपधारा (2) के और उपधारा (3) के उपबंधों के अध्यधीन किसी अन्य तत्समय प्रवृत्ति विधि में, या किसी ऐसी विधि या किसी निरसित अधिनियमिति के आधार पर प्रभावशील किसी लिखत या आदेश में “आजीवन निर्वासन” के प्रति निर्देश का अर्थ यह लगाया जायेगा, कि वह “आजीवन कारावास” के प्रति निर्देश है।

(2) हर मामले में, जिसमें कि किसी अवधि के लिए निर्वासन का दण्डादेश दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) के प्रारंभ से पूर्व दिया गया है, अपराधी से उसी प्रकार बरता जाएगा, मानो वह उस अवधि के लिए कठिन कारावास के लिए दण्डादिष्ट किया गया हो।

(3) किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में किसी अवधि के लिए निर्वासन या किसी लघुतर अवधि के लिए निर्वासन के प्रति (चाहे उसे कोई भी नाम दिया गया हो) कोई निर्देश लुप्त कर दिया गया समझा जाएगा।

(4) किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में निर्वासन के प्रति जो कोई निर्देश हो -

(क) यदि उस पद से आजीवन निर्वासन अभिप्रेत है, तो उसका अर्थ आजीवन कारावास के प्रति निर्देश होना लगाया जाएगा;

(ख) यदि उस पद से किसी लघुत्तर अवधि के लिए निर्वासन अभिप्रेत है, तो यह समझा जाएगा कि वह लुप्त कर दिया गया है।

54. मृत्यु दण्डादेश का लघुकरण -

हर मामले में, जिसमें मृत्यु का दण्डादेश दिया गया हो, उस दण्ड को अपराधी की सम्मति के बिना भी समुचित सरकार इस संहिता द्वारा उपबंधित किसी अन्य दण्ड में लघुकृत कर सकेगी।

55. आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण -

हर मामले में, जिसमें आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया गया हो, अपराधी की सम्मति के बिना भी समुचित सरकार उस दण्ड को ऐसी अवधि के लिए, जो चौदह वर्ष से अधिक न हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास में लघुकृत कर सकेगी।

55 क. “समुचित सरकार” की परिभाषा -

धारा 54 और 55 में “समुचित सरकार” पद से -

(क) उन मामलों में केन्द्रीय सरकार अभिप्रेत है, जिनमें दण्डादेश मृत्यु का दण्डादेश है, या ऐसे विषय से, जिस पर संघ की कार्यपालन शक्ति का विस्तार है, संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है; तथा

(ख) उन मामलों में उस राज्य की सरकार, जिसके अन्दर अपराधी दण्डादिष्ट हुआ है, अभिप्रेत है, जहां कि दण्डादेश (चाहे मृत्यु का हो या नहीं) ऐसे विषय से, जिस पर राज्य की कार्यपालन शक्ति का विस्तार है, संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है।

56. यूरोपियों तथा अमरीकियों को कठोर श्रम कारावास का दण्डादेश दस वर्ष से अधिक किन्तु जो आजीवन कारावास से अधिक न हो, दण्डादेश के संबंध में परन्तुक -

दाण्डिक विधि (मूलवंशीय विभेदों का निराकरण) अधिनियम, 1949 (1949 का 17) द्वारा (6 अप्रैल, 1949 से) निरसित 

57. दण्डावधियों की भिन्ने -

दण्डावधियों की भिन्नों की गणना करने में, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के तुल्य गिना जाएगा।

58. निर्वासन से दण्डादिष्ट अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए जब तक वे निर्वासित न कर दिए जाएं -

दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1 जनवरी, 1956 से) निरसित. 

59. कारावास के बदले निर्वासन -

[ दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1 जनवरी, 1956 से) निरसित ]

60. दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा -

हर मामले में, जिसमें अपराधी दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय है, वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादेश देगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश में यह निर्दिष्ट करे कि ऐसा संपूर्ण कारावास कठिन होगा, या यह कि ऐसा संपूर्ण कारावास सादा होगा, या यह कि ऐसे कारावास का कुछ भाग कठिन होगा और शेष सादा।

61. संपत्ति के समपहरण का दण्डादेश -

भारतीय दण्ड संहिता के समपहरण का दण्डादेश भारतीय दण्ड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 द्वारा निरसित.

62. मृत्यु, निर्वासन या कारावास से दण्डनीय अपराधियों की बाबत संपत्ति का समपहरण -

[भारतीय दण्ड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 द्वारा निरसित ]

63. जुर्माने की रकम -

जहां कि वह राशि अभिव्यक्त नहीं की गई है जितनी तक जुर्माना हो सकता है, वहां अपराधी जिस रकम के जुर्माने का दायी है, वह अमर्यादित है किन्तु अत्यधिक नहीं होगी।

64. जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश -

कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय अपराध के हर मामले में; जिसमें अपराधी कारावास सहित या रहित, जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है, तथा कारावास या जुर्माने अथवा केवल जुर्माने से दण्डनीय अपराध के हर मामले में, जिसमें अपराधी जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है,

वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादिष्ट करेगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश द्वारा निदेश दे कि जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा में, अपराधी अमुक अवधि के लिए कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास के अतिरिक्त होगा, जिसके लिए वह दण्डादिष्ट हुआ है या जिससे वह दण्डादेश के लघुकरण पर दण्डनीय है।

65. जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किए जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास की अवधि -

यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय हो, तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निर्देश दे, कारावास की उस अवधि की एक-चौथाई से अधिक न होगी, जो अपराध के लिए अधिकतम नियत है।

66. जुर्माना न देने पर किस भांति का कारावास दिया जाए -

वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए अधिरोपित करे, ऐसा किसी भांति का हो सकेगा, जिससे अपराधी को उस अपराध के लिए दण्डादिष्ट किया जा सकता था।

67. जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो -

यदि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो तो वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए अधिरोपित करे, सादा होगा और वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निर्देश दे; निम्न मापमान से अधिक नहीं होगी, अर्थात्,-

जबकि जुर्माने का परिमाण पचास रुपए से अधिक न हो तब दो मास से अनधिक कोई अवधि,

तथा जबकि जुर्माने का परिमाण एक सौ रुपए से अधिक न हो तब चार मास से अनधिक कोई अवधि,

तथा किसी अन्य दशा में छह मास से अनधिक कोई अवधि।

68. जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना -

जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए अधिरोपित कारावास तब पर्यवसित हो जाएगा, जब वह जुर्माना या तो चुका दिया जाए या विधि की प्रक्रिया द्वारा उद्गृहीत कर लिया जाए।

69. जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिए जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान -

यदि जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए नियत की गई कारावास की अवधि का अवसान होने से पूर्व जुर्माने का ऐसा अनुपात चुका दिया या उद्गृहीत कर लिया जाए कि देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास की जो अवधि भोगी जा चुकी हो, वह जुर्माने के तब तक न चुकाए गए भाग के आनुपातिक से कम न हो तो कारावास पर्यवसित हो जाएगा।

दृष्टांत -

क एक सौ रुपए के जुर्माने और उसके देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए चार मास के कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है। यहां, यदि कारावास के एक मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के पचहत्तर रुपए चुका दिए जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं तो प्रथम मास का अवसान होते ही क उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि पचहत्तर रुपए प्रथम मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर, जबकि क कारावास में है, चुका दिए या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो क तुरंत उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि कारावास के दो मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के पचास रुपए चुका दिये जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो क दो मास पूरे होते ही उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि पचास रुपये उन दो मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर, जबकि क कारावास में है, चुका दिए जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्त कर दिया जाएगा।

70. जुर्माने का छह वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उद्ग्रहणीय होना -

संपत्ति को दायित्व से मृत्यु उन्मुक्त नहीं करती -

जुर्माना या उसका कोई भाग, जो चुकाया न गया हो, दण्डादेश दिए जाने के पश्चात् छह वर्ष के भीतर किसी भी समय, और यदि अपराधी दण्डादेश के अधीन छह वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय हो तो उस कालावधि के अवसान से पूर्व किसी समय, उद्गृहीत किया जा सकेगा, और अपराधी की मृत्यु किसी भी संपत्ति को, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके ऋणों के लिए वैध रूप से दायी हो, इस दायित्व से उन्मुक्त नहीं करती।

71. कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि -

जहां कि कोई बात, जो अपराध है, ऐसे भागों से, जिनमें का कोई भाग स्वयं अपराध है, मिलकर बनी है, वहां अपराधी अपने ऐसे अपराधों में से एक से अधिक के दण्ड से दण्डित न किया जाएगा, जब तक कि ऐसा अभिव्यक्त रूप से उपबंधित न हो।

जहां कि कोई बात अपराधों को परिभाषित या दंडित करने वाली किसी तत्समय प्रवृत्त विधि की दो या अधिक पृथक् परिभाषाओं में आने वाला अपराध है, अथवा

जहां कि कई कार्य, जिनमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाधिक से अपराध गठित होता है, मिलकर भिन्न अपराध गठित करते हैं;

वहां अपराधी को उससे गुरुत्तर दण्ड से दण्डित न किया जाएगा, जो ऐसे अपराधों में से किसी भी एक के लिए वह न्यायालय,जो उसका विचारण करे,उसे दे सकता हो ।

दृष्टांत -

(क) क, य पर लाठी से पचास प्रहार करता है। यहां, हो सकता है कि क ने संपूर्ण मारपीट द्वारा उन प्रहारों में से हर एक प्रहार द्वारा भी, जिनसे वह संपूर्ण मारपीट गठित है, य को स्वेच्छया उपहति कारित करने का अपराध किया हो। यदि क हर प्रहार के लिए दण्डनीय होता तो वह हर एक प्रहार के लिए एक वर्ष के हिसाब से पचास वर्ष के लिए कारावासित किया जा सकता था। किन्तु वह संपूर्ण मारपीट के लिए केवल एक ही दण्ड से दण्डनीय है। 

(ख) किन्तु यदि उस समय जब क, य को पीट रहा है, म हस्तक्षेप करता है, और क, म पर साशय प्रहार करता है, तो यहां म पर किया गया प्रहार उस कार्य का भाग नहीं है, जिसके द्वारा क, य को स्वेच्छया उपहति कारित करता है, इसलिए क, य को स्वेच्छया कारित की गई उपहति के लिए एक दण्ड से और म पर किए गए प्रहार के लिए दूसरे दण्ड से दंडनीय है।

72. कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिए दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है -

उन सब मामलों में, जिनमें यह निर्णय दिया जाता है। कि कोई व्यक्ति उस निर्णय में विनिर्दिष्ट कई अपराधों में से एक अपराध का दोषी है, किन्तु यह संदेहपूर्ण है कि वह उन अपराधों में से किस अपराध का दोषी है, यदि वही दण्ड सब अपराधों के लिए उपबंधित नहीं है तो वह अपराधी उस अपराध के लिए दंडित किया जाएगा, जिसके लिए कम से कम दण्ड उपबंधित किया गया है।

73. एकांत परिरोध -

जब कभी कोई व्यक्ति ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाता है जिसके लिए न्यायालय को इस संहिता के अधीन उसे कठिन कारावास से दण्डादिष्ट करने की शक्ति है, तो न्यायालय अपने दण्डादेश द्वारा आदेश दे सकेगा कि अपराधी को उस कारावास के, जिसके लिए वह दण्डादिष्ट किया गया है, किसी भाग या भागों के लिए, जो कुल मिलाकर तीन मास से अधिक के न होंगे, निम्न मापमान के अनुसार एकांत परिरोध में रखा जाएगा, अर्थात् -

यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक न हो तो एक मास से अनधिक समय; 

यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक हो और एक वर्ष से अधिक न हो तो दो मास से अनधिक समय;

यदि कारावास की अवधि एक वर्ष से अधिक हो तो तीन मास से अनधिक समय।

74. एकांत परिरोध की अवधि -

एकांत परिरोध के दण्डादेश के निष्पादन में ऐसा परिरोध किसी भी दशा में एक बार में चौदह दिन से अधिक न होगा, साथ ही ऐसे एकांत परिरोध की कालावधियों के बीच में उन कालावधियों से अन्यून अंतराल होगे और जब दिया गया कारावास तीन मास से अधिक हो, तब दिए गए संपूर्ण कारावास के किसी एक मास में एकांत परिरोध सात दिन से अधिक न होगा, साथ ही एकांत परिरोध की कालावधियों के बीच में उन्हीं कालावधियों से अन्यून अंतराल होंगे।

75. पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन कतिपय अपराधों के लिए वर्धित दण्ड -

जो कोई व्यक्ति -

(क) भारत में के किसी न्यायालय द्वारा इस संहिता के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए,दोषसिद्ध ठहराए जाने के पश्चात् उन दोनों अध्यायों में से किसी अध्याय के अधीन उतनी ही अवधि के लिए वैसे ही कारावास से दण्डनीय किसी अपराध का दोषी हो, तो वह हर ऐसे पश्चात्वर्ती अपराध के लिए आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा।

अध्याय 4 : साधारण अपवाद

76. विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आपको विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है।

दृष्टांत -

(क) विधि के समादेशों के अनुवर्तन में अपने वरिष्ठ ऑफिसर के आदेश से एक सैनिक क भीड़ पर गोली चलाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ख) न्यायालय का ऑफिसर, क, म को गिरफ्तार करने के लिए उस न्यायालय द्वारा आदिष्ट किए जाने पर और सम्यक् जांच के पश्चात् यह विश्वास करके कि य, म है, य को गिरफ्तार कर लेता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

77. न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश द्वारा ऐसी किसी शक्ति के प्रयोग में की जाती है, जो या जिसके बारे में उसे सद्भावपूर्वक विश्वास है कि वह उसे विधि द्वारा दी गई है।

78. न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य -

कोई बात, जो न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में की जाए या उसके द्वारा अधिदिष्ट हो, यदि वह उस निर्णय या आदेश के प्रवृत्त रहते की जाए, अपराध नहीं है, चाहे उस न्यायालय को ऐसा निर्णय या आदेश देने की अधिकारिता न रही हो, परन्तु यह तब जब कि वह कार्य करने वाला व्यक्ति सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि उस न्यायालय को वैसी अधिकारिता थी।

79. विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत हो, या तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत है।

दृष्टांत -

क, य को ऐसा करते देखता है, जो क को हत्या प्रतीत होता है क सद्भावपूर्वक काम में लाए गए अपने श्रेष्ठ निर्णय के अनुसार उस शक्ति को प्रयोग में लाते हुए, जो विधि ने हत्याकारियों को उस कार्य में पकड़ने के लिए समस्त व्यक्तियों को दे रखी है, य को उचित प्राधिकारियों के समक्ष ले जाने के लिए य को अभिगृहीत करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया है चाहे तत्पश्चात् असल बात यह निकले कि य आत्म-प्रतिरक्षा में कार्य कर रहा था।

80. विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना -

कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से और किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना विधिपूर्ण प्रकार से विधिपूर्ण साधनों द्वारा और उचित सतर्कता और सावधानी के साथ विधिपूर्ण कार्य करने में हो जाती है।

दृष्टांत -

क कुल्हाड़ी से काम कर रहा है; कुल्हाड़ी का फल उसमें से निकल कर उछल जाता है और निकट खड़ा हुआ व्यक्ति उससे मारा जाता है। यहां यदि क की ओर से उचित सावधानी का कोई अभाव नहीं था तो उसका कार्य माफी योग्य है और अपराध नहीं है।

81. कार्य, जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है -

कोई बात केवल इस कारण अपराध नहीं है कि वह यह जानते हुए की गई है कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, यदि वह अपहानि कारित करने के किसी आपराधिक आशय के बिना और व्यक्ति या संपत्ति को अन्य अपहानि का निवारण या परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक की गई हो।

स्पष्टीकरण - ऐसे मामले में यह तथ्य का प्रश्न है कि जिस अपहानि का निवारण या परिवर्जन किया जाना है। क्या वह ऐसी प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि वह कार्य, जिससे यह जानते हुए कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, करने की जोखिम उठाना न्यायानुमत या माफी योग्य था।

दृष्टांत -

(क) , जो एक वाष्प जलयान का कप्तान है, अचानक और अपने किसी कसूर या उपेक्षा के बिना अपने आपको ऐसी स्थिति में पाता है कि यदि उसने जलयान का मार्ग नहीं बदला तो इससे पूर्व कि वह अपने जलयान को रोक सके वह बीस या तीस यात्रियों से भरी नाव को अनिवार्यतः टकराकर डुबो देगा, और कि अपना मार्ग बदलने से उसे केवल दो यात्रियों वाली नाव को डुबोने की जोखिम उठानी पड़ती है। जिसको वह संभवत: बचाकर निकल जाए। यहाँ यदि क नाव ग को डुबोने के आशय के बिना और ख के यात्रियों के संकट का परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक अपना मार्ग बदल देता है तो यद्यपि वह नाव ग को ऐसे कार्य द्वारा टकराकर डुबो देता है, जिससे ऐसे परिणाम का उत्पन्न होना वह संभाव्य जानता था, तथापि तथ्यतः यह पाया जाता है कि वह संकट जिसे परिवर्जित करने का उसका आशय था, ऐसा था जिससे नाव ग को डुबोने की जोखिम उठाना माफी योग्य है, तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं है।

(ख) एक बड़े अग्निकाण्ड के समय आग को फैलने से रोकने के लिए गृहों को गिरा देता है। वह इस कार्य को मानव जीवन या संपत्ति को बचाने के आशय से सद्भावनापूर्वक करता है। यहां, यदि यह पाया जाता है कि निवारण की जाने वाली अपहानि इस प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि क का कार्य माफी योग्य है तो क उस अपराध का दोषी नहीं है।

82. सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है।

83. सात वर्ष से ऊपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से ऊपर और बारह वर्ष से कम आयु के ऐसे शिशु द्वारा की जाती है जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह उस अवसर पर अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों का निर्णय कर सके।

84. विकृतचित्त व्यक्ति का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय चित्त-विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है।

85. ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है -

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय मत्तता के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है, परन्तु यह तब जबकि वह चीज, जिससे उसकी मत्तता हुई थी, उसको अपने ज्ञान के बिना या इच्छा के विरुद्ध दी गई थी।

86. किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है -

उन दशाओं में, जहां कि कोई किया गया कार्य अपराध नहीं होता जब तक कि वह किसी विशिष्ट ज्ञान या आशय से न किया गया हो, कोई व्यक्ति जो वह कार्य मत्तता की हालत में करता है, इस प्रकार बरते जाने के दायित्व के अधीन होगा, मानो उसे वही ज्ञान था जो उसे होता यदि वह मत्तता में न होता जब तक कि वह चीज, जिससे उसे मत्तता हुई थी, उसे उसके ज्ञान के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध न दी गई हो।

87. सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी सम्भाव्यता का ज्ञान हो -

कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के आशय से न की गई हो और जिसके बारे में कर्ता को यह ज्ञात न हो कि उससे मृत्यु या घोर उपहति कारित होना संभाव्य है, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है जो उस बात से अठारह वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को, जिसने वह अपहानि सहन करने की चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित होना कर्ता द्वारा आशयित हो अथवा जिसके बारे में कर्ता को ज्ञात हो कि वह उपर्युक्त जैसे किसी व्यक्ति को, जिसने उस अपहानि की जोखिम उठाने की सम्मति दे दी है, उस बात द्वारा कारित होनी संभाव्य है

दृष्टांत -

 और य आमोदार्थ आपस में पटेबाजी करने को सहमत होते हैं। इस सहमति में किसी अपहानि को, जो ऐसी पटेबाजी में खेल के नियम के विरुद्ध न होते हुए कारित हो, उठाने की हर एक की सम्मति विवक्षित है, और यदि के यथानियम पटेबाजी करते हुए य को उपहति कारित कर देता है, तो क कोई अपराध नहीं करता है।

88. किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सदभावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है -

कोई बात, जो मृत्यु कारित करने के आशय से न की गई हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण नहीं है, जो उस बात से किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह बात सद्भावपूर्वक की जाए और जिसने उस अपहानि को सहने, या उस अपहानि की जोखिम उठाने के लिए चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात है |

दृष्टांत -

क, एक शल्य चिकित्सक यह जानते हुए कि एक विशेष शल्यकर्म से य को, जो वेदनापूर्ण व्याधि से ग्रस्त है, मृत्यु कारित होने की संभाव्यता है, किन्तु य की मृत्युकारित करने का आशय न रखते हुए और सद्भावनापूर्वक य के फायदे के आशय से, य की सम्मति से, य पर वह शल्यकर्म करता है। क ने कोई अपराध नहीं कया है।

89. संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य -

कोई बात, जो बारह वर्ष से कम आयु के या विकृतचित्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसके संरक्षक के, या विधिपूर्ण भारसाधक किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा, या की अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति से की जाए, किसी ऐसी अपहानि के कारण, अपराध नहीं है जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो, या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की सम्भाव्यता कर्ता को ज्ञात हो :

परन्तुक - परन्तु -

पहला - इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्युकारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;

दूसरा - इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्युकारित होना संभाव्य है;

तीसरा - इस अपवाद का विस्तार स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा जब तक कि वह मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से न की गई हो;

चौथा - इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है।

दृष्टांत -

क सद्भावपूर्वक, अपने शिशु के फायदे के लिए अपने शिशु की सम्मति के बिना, यह संभाव्य जानते हुए कि शल्यकर्म से उस शिशु की मृत्युकारित होगी, न कि इस आशय से कि उस शिशु की मृत्युकारित कर दे, शल्य चिकित्सक द्वारा पथरी निकलवाने के लिए अपने शिशु की शल्यक्रिया करवाता है। क का उद्देश्य शिशु को रोगमुक्त कराना था, इसलिए वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।

90. सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है -

कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है जैसी इस संहिता की किसी धारा से आशयित है, यदि वह सम्मति किसी व्यक्ति ने क्षति, भय के अधीन या तथ्य के भ्रम के अधीन दी हो, और यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो या उसके पास विश्वास करने का कारण हो कि ऐसे भय या भ्रम के परिणामस्वरूप वह सम्मति दी गई थी; अथवा 

उन्मत्त व्यक्ति की सम्मति - यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो जो चित्तविकृति या मत्तता के कारण उस बात की, जिसके लिए वह अपनी सम्मति देता है, प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो; अथवा 

शिशु की सम्मति - जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो जो बारह वर्ष से कम आयु का है।

91. ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है -

धारा 87, 88 और 89 के अपवादों का विस्तार उन कार्यों पर नहीं है जो उस अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है जो उस व्यक्ति को, जो सम्मति देता है या जिसकी ओर से सम्मति दी जाती है, उन कार्यों से कारित हो, या कारित किए जाने का आशय हो, या कारित होने की सम्भाव्यता ज्ञात हो।

दृष्टांत -

गर्भपात कराना (जब तक कि वह उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक कारित न किया गया हो) किसी अपहानि के बिना भी, जो उससे उस स्त्री को कारित हो या कारित करने का आशय हो, स्वतः अपराध है। इसलिए वह “ऐसी अपहानि के कारण" अपराध नहीं है; और ऐसा गर्भपात कराने की उस स्त्री की या उसके संरक्षक की सम्मति उस कार्य को न्यानुमत नहीं बनाती है। 

92. सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य -

कोई बात, जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक यद्यपि उसकी सम्मति के बिना, की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण, जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो जाए, अपराध नहीं है, यदि परिस्थितियां ऐसी हों कि उस व्यक्ति के लिए यह असंभव हो कि वह अपनी सम्मति प्रकट करे या वह व्यक्ति सम्मति देने के लिए असमर्थ हो और उसका कोई संरक्षक या उसका विधिपूर्ण भारसाधक कोई दूसरा व्यक्ति न हो जिससे ऐसे समय पर सम्मति अभिप्राप्त करना संभव हो कि वह बात फायदे के साथ की जा सके ।

परन्तुक - परन्तु -

पहला - इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्युकारित करने या मृत्युकारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;

दूसरा - इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा, जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है;

तीसरा - इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या उपहति के निवारण के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करने या उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;

चौथा - इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है।

दृष्टांत -

(क) य अपने घोड़े से गिर गया और मूर्छित हो गया है। क, एक शल्य चिकित्सक का यह विचार है कि य के कपाल पर शल्य क्रिया आवश्यक है। क, य की मृत्यु करने का आशय न रखते हुए, किन्तु सद्भावपूर्वक य के फायदे के लिए य के स्वयं किसी निर्णय पर पहुंचने की शक्ति प्राप्त करने से पूर्व ही कपाल पर शल्यक्रिया करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ख) य को एक बाघ उठा ले जाता है। यह जानते हुए कि संभाव्य है कि गोली लगने से य मर जाए, किन्तु य का वध करने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक य के फायदे के आशय से क उस बाघ पर गोली चलाता है। क की गोली से य को मृत्युकारक घाव हो जाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ग) क, एक शल्य चिकित्सक, यह देखता है कि एक शिशु की ऐसी दुर्घटना हो गई है जिसका प्राणांतक साबित होना सम्भाव्य है, यदि शल्यकर्म तुरन्त न कर दिया जाए। इतना समय नहीं है कि उस शिशु के संरक्षक से आवेदन किया जा सके। क, सद्भावपूर्वक शिशु के फायदे का आशय रखते हुए शिशु के अन्यथा अनुनय करने पर भी शल्यकर्म करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया। 

(घ) एक शिशु य के साथ क एक जलते हुए गृह में है। गृह के नीचे लोग एक कम्बल तान लेते हैं। क उस शिशु को यह जानते हुए कि सम्भाव्य है कि गिरने से वह शिशु मर जाए किन्तु उस शिशु को मार डालने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक उस शिशु के फायदे के आशय से गृह-छत पर से नीचे गिरा देता है। यहां, यदि गिरने से वह शिशु मर भी जाता है, तो भी क ने कोई अपराध नहीं किया।

स्पष्टीकरण - केवल धन संबंधी फायदा वह फायदा नहीं है, जो धारा 88, 89 और 92 के भीतर आता है।

93. सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना -

सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति को हो जिसे वह दी गई है, यदि वह उस व्यक्ति के फायदे के लिए दी गई हो।

दृष्टांत -

क, एक शल्य चिकित्सक, एक रोगी को सद्भावपूर्वक यह संसूचित करता है कि उसकी राय में वह जीवित नहीं रह सकता। इस आघात के परिणामस्वरूप उस रोगी की मृत्यु हो जाती है। क ने कोई अपराध नहीं किया है, यद्यपि वह जानता था कि उस संसूचना से उस रोगी की मृत्यु कारित होना संभाव्य है।

94. वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है -

हत्या और मृत्यु से दण्डनीय उन अपराधों को जो राज्य के विरुद्ध है, छोड़कर कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए ऐसी धमकियों से विवश किया गया हो जिनसे उस बात को करते समय उसको युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो गई हो कि अन्यथा परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो जाए।

परन्तु यह तब जबकि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति ने अपनी ही इच्छा से या तत्काल मृत्यु से कम अपनी अपहानि की युक्तियुक्त आशंका से अपने को उस स्थिति में न डाला हो, जिसमें कि वह ऐसी मजबूरी के अधीन पड़ गया है।

स्पष्टीकरण 1 - वह व्यक्ति, जो स्वयं अपनी इच्छा से, या पीटे जाने की धमकी के कारण, डाकुओं की टोली में उनके शील को जानते हुए सम्मिलित हो जाता है, इस आधार पर ही इस अपवाद का फायदा उठाने का हकदार नहीं कि वह अपने साथियों द्वारा ऐसी बात करने के लिए विवश किया गया था जो विधिना अपराध है। |

स्पष्टीकरण 2 - डाकुओं की एक टोली द्वारा अभिगृहीत और तत्काल मृत्यु की धमकी द्वारा किसी बात के करने के लिए जो विधिना अपराध है, विवश किया गया व्यक्ति, उदाहरणार्थ, एक लोहार, जो अपने औजार लेकर एक गृह का द्वार तोड़ने को विवश किया जाता है, जिससे डाकू उसमें प्रवेश कर सकें और उसे लूट सकें, इस अपवाद का फायदा उठाने के लिए हकदार है।

95. तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य -

कोई बात इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई अपहानि कारित होती है या कारित की जानी आशयित है या कारित होने की संभाव्यता ज्ञात है, यदि वह इतनी तुच्छ है कि मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्ति उसकी शिकायत न करेगा।

प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में

96. प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें -

कोई बात अपराध नहीं है, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है।

97. शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार -

धारा 99 में अन्तर्विष्ट निबंधनों के अध्यधीन, हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह -

पहला - मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करें;

दूसरा - किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने  वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर संपत्ति की प्रतिरक्षा करे।

98. ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो -

जबकि कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकृति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, वह अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता।

दृष्टांत -

(क) य, पागलपन के असर में, क को जान से मारने का प्रयत्न करता है। य किसी अपराध का दोषी नहीं है। किन्तु क को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह य के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता। 

(ख) क रात्रि में एक ऐसे गृह में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रूप से हकदार है। य, सद्भावपूर्वक क को गृहभेदक समझकर, क पर आक्रमण करता है। यहां य इस भ्रम के अधीन क पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता है, किन्तु क, य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब य उस भ्रम के अधीन कार्य न करता।

99. कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है -

यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक-सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह कार्य विधि अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो। 

यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक-सेवक के निर्देश से किया जाता है, या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है, तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह निदेश विधि अनुसार सर्वथा न्यायनुमत न भी हो।

उन दशाओं में जिनमें संरक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय है, प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है।

इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार - किसी दशा में भी प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार उतनी अपहानि से अधिक अपहानि करने पर नहीं है, जितनी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से करनी आवश्यक है।

स्पष्टीकरण 1- कोई व्यक्ति किसी लोक-सेवक द्वारा ऐसे लोक-सेवक के नाते किए गए या किए जाने के लिए प्रयतित, कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, जबकि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसा लोक-सेवक है।  

स्पष्टीकरण 2 - कोई व्यक्ति किसी लोक-सेवक के निदेश से किए गए, या किए जाने के लिए प्रयतित, किसी कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसे निदेश से कार्य कर रहा है, या जब तक कि वह व्यक्ति उस प्राधिकार का कथन न कर दे, जिसके अधीन वह कार्य कर रहा है, या यदि उसके पास लिखित प्राधिकार है, तो जब तक कि वह ऐसे प्राधिकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे।

100. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक कब होता है -

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बधनों के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु कारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिन् पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :-

पहला - ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा;

दूसरा - ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा;

तीसरा - बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला;

चौथा - प्रकृति विरुद्ध काम-तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला;

पाँचवाँ - व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला;

छठा - इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा।

सातवां - अम्ल फेंकने या देने का कृत्य, या अम्ल फेंकने या देने का प्रयास करना जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि ऐसे कृत्य के परिणामस्वरूप अन्यथा घोर उपहति कारित होगी। GO toTOP

101. कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है -

यदि अपराध पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का नहीं है, तो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छया कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु इस अधिकार का विस्तार धारा 99 में वर्णित निबंधनों के अध्यधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है।

102. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना -

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध किया न गया हो और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है।

103. कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है -

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 99 में वर्णित निर्बधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है एतस्मिन् पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :-

पहला - लूट;

दूसरा - रात्रि गृह भेदन;

तीसरा - अग्नि द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है;

चौथा - चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - धारा 103 में चौथे खण्ड के पश्चात्‌ अग्रलिखित खण्ड जोड़ा जाएगा, यथा :-

'पाँचवाँ - आग या ज्वलनशील पदार्थ द्वारा -

(क) शासन या किसी स्थानीय प्राधिकारी या शासन के स्वामित्व या नियंत्रण में का कोई निगम के प्रयोजनों के लिए उपयोग की गई या उपयोग के लिए आशयित किसी संपत्ति को, या

(ख) भारतीय रेल अधिनियम, 1880 की धारा 3 के खण्ड (4) में यथा परिभाषित कोई रेलवे या रेलवे स्टोर्स (विधिविरुद्ध कब्जा) अधिनियम, 1955 में यथा परिभाषित स्टोर्स को, या

(ग). मोटर यान अधिनियम, 1939 की धारा 2 के खण्ड (33)* में यथा परिभाषित कोई परिवहन वाहन को, रिष्टि पहुंचाना।''

[यू.पी. अधिनियम संख्या 29 सन्‌ 1970 की धारा 2, दिनांक 17-7-1970 से प्रभावशील]

* अब देखें, मोटर यान अधिनियम, 1988 की धारा 2 का खण्ड (47) ।

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104. ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है -

यदि वह अपराध, जिसके किए जाने या जिसके किए जाने के प्रयत्न से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, रिष्टि या आपराधिक अतिचार है, जो पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का न हो, तो उस अधिकार का विस्तार स्वेच्छया मृत्यु कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु उसका विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है।

105. संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना –

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है, जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारंभ होती है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के विरुद्ध अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या संपत्ति प्रत्युद्धत हो जाने तक बना रहता है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति, या सदोष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का, भय बना रहता है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिकआतेचार या रिष्टि के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार रात्रि गृहभेदन के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृहभेदन से आरंभ हुआ गृह अतिचार होता रहता है।

106. घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है -

जिस हमले से मृत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में यदि प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि निर्दोष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह उस अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है।

दृष्टांत -

क, पर एक भीड़ द्वारा आक्रमण किया जाता है, जो उसकी हत्या करने का प्रयत्न करती है। वह उस भीड़ पर गोली चलाए बिना प्राइवेट प्रतिरक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से नहीं कर सकता, और वह भीड़ में मिले हुए छोटे-छोटे शिशुओं को अपहानि करने की जोखिम उठाए बिना गोली नहीं चला सकता। यदि वह इस प्रकार गोली चलाने से उन शिशुओं में से किसी शिशु को अपहानि करे तो क कोई अपराध नहीं करता।

अध्याय: 5 दुष्प्रेरण के विषय में

107. किसी बात का दुष्प्रेरण -

वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो -

पहला - उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है; अथवा 

दूसरा - उस बात को करने के लिए किसी षड़यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षड़यंत्र के अनुसरण में, और उस बात को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोप घटित हो जाए; अथवा 

तीसरा - उस बात के लिए किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है।

स्पष्टीकरण 1- जो कोई व्यक्ति जानबूझकर दुर्व्यपदेशन द्वारा, या तात्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध है, जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छया किसी बात का किया जाना कारित या उपाप्त करता है अथवा कारित या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह उस बात का किया जाना उकसाता है, यह कहा जाता है।

दृष्टांत -

क एक लोक ऑफिसर, न्यायालय के वारण्ट द्वारा य को पकड़ने के लिए प्राधिकृत है। ख उस तथ्य को जानते हुए और यह भी जानते हुए कि ग, य नहीं है, क को जानबूझकर यह व्यपदिष्ट करता है, कि ग, य है और तद्द्वारा साशय के से ग को पकड़वाता है। यहां ख, ग के पकड़े जाने का उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण करता है।  

स्पष्टीकरण 2 - जो कोई या तो किसी कार्य के किए जाने से पूर्व या किए जाने के समय, उस कार्य के किए जाने को सुकर बनाने के लिए कोई बात करता है और एतद्द्वारा उसके किए जाने को सुकर बनाता है वह उस कार्य के करने में सहायता करता है, यह कहा जाता है।

108. दुष्प्रेरक -

वह व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है या ऐसे कार्य के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध होता, यदि वह कार्य अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति द्वारा उसी आशय या ज्ञान से, जो दुष्प्रेरक का है, किया जाता।

स्पष्टीकरण 1 - किसी कार्य के अवैध लोप का दुष्प्रेरण अपराध की कोटि में आ सकेगा, चाहे दुष्प्रेरक उस कार्य को करने के लिए स्वयं आबद्ध न हो।

स्पष्टीकरण 2 - दुष्प्रेरण का अपराध गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित कार्य किया जाए या अपराध गठित करने के लिए अपेक्षित प्रभाव कारित हो।

दृष्टांत -

(क) ग की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है। ख वैसा करने से इंकार कर देता है। क हत्या करने के लिए ख के दुष्प्रेरण का दोषी है |

(ख) घ की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है। ख ऐसी उकसाहट के अनुसरण में घ को विद्ध करता है। घ का घाव अच्छा हो जाता है। क हत्या करने के लिए ख को उकसाने का दोषी है।  

स्पष्टीकरण 3 -- यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित व्यक्ति अपराध करने के लिए विधि अनुसारसमर्थ हो, या उसका वही दूषित आशय या ज्ञान हो, जो दुष्प्रेरक का है, या कोई भी दूषित आशय या ज्ञान हो।

दृष्टांत -

(क) क दूषित आशय से एक शिशु या पागल को वह कार्य करने के लिए दुष्प्रेरित करता है, जो अपराध होगा, यदि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जो कोई अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ है और वही आशय रखता है जो कि क का है। यहां, चाहे वह कार्य किया जाए, या न किया जाए, क अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है। 

(ख) य की हत्या करने के आशय से ख को, जो सात वर्ष से कम आयु का शिशु है, वह कार्य करने के लिए के उकसाता है जिससे य की मृत्यु कारित हो जाती है। ख दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप वह कार्य क की अनुपस्थिति में करता है और उससे य की मृत्यु कारित करता है। यहां यद्यपि ख वह अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ नहीं था तथापि क उसी प्रकार से दण्डनीय है, मानो ख वह अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ हो और उसने हत्या की हो, और इसलिए क मृत्युदण्ड से दण्डनीय है।

(ग) ख को एक निवास गृह में आग लगाने के लिए क उकसाता है। ख अपनी चित्तविकृति के परिणामस्वरूप उस कार्य की प्रकृति या यह कि वह जो कुछ कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है जानने में असमर्थ होने के कारण क के उकसाने के परिणामस्वरूप उस गृह में आग लगा देता है। ख ने कोई अपराध नहीं किया है, किन्तु क एक निवासगृह में आग लगाने के अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उस अपराध के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

(घ) क चोरी कराने के आशय से य के कब्जे में से य की संपत्ति लेने के लिए ख को उकसाता है। ख को यह विश्वास करने के लिए क उत्प्रेरित करता है कि वह संपत्ति क की है। ख उस संपत्ति को इस विश्वास से कि वह क की संपत्ति है, य के कब्जे में से सद्भावपूर्वक ले लेता है। ख इस भ्रम के अधीन कार्य करते हुए, उसे बेईमानी से नहीं लेता, और इसलिए चोरी नहीं करता, किन्तु क चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है, मानो ख ने चोरी की हो।

स्पष्टीकरण 4 - अपराध का दुष्प्रेरण अपराध होने के कारण ऐसे दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण भी अपराध है।

दृष्टांत -

ग को य की हत्या करने को उकसाने के लिए ख को क उकसाता है। ख तद्नुकुल य की हत्या करने के लिए ग को उकसाता है और ख के उकसाने के परिणामस्वरूप ग उस अपराध को करता है। ख अपने अपराध के लिए हत्या के दण्ड से दण्डनीय है, और क ने उस अपराध को करने के लिए ख को उकसाया, इसलिए क भी उसी दण्ड से दण्डनीय है।  

स्पष्टीकरण 5 - षड़यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरक उस अपराध को करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर उस अपराध की योजना बनाए। यह पर्याप्त है कि उस षड़यंत्र में सम्मिलित हो जिसके अनुसरण में वह अपराध किया जाता है।

दृष्टांत -

य को विष देने के लिए क एक योजना ख से मिलकर बनाता है। यह सहमति हो जाती है कि क विष देगा। ख तब यह वर्णित करते हुए ग को यह योजना समझा देता है कि कोई तीसरा व्यक्ति विष देगा, किन्तु क का नाम नहीं लेता। ग विष उपाप्त करने के लिए सहमत हो जाता है, और उसे उपाप्त करके समझाए गए प्रकार से प्रयोग में लाने के लिए ख को परिदत्त करता है। क विष देता है, परिणामस्वरूप य की मृत्यु हो जाती है। यहां यद्यपि क और ग ने मिलकर षड़यंत्र नहीं रचा है, तो भी ग उस षड़यंत्र से सम्मिलित रहा है, जिसके अनुसरण में य की हत्या की गई है। इसलिए ग ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है और हत्या के लिए दण्ड से दण्डनीय है।

108 क, भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण -

वह व्यक्ति इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो भारत से बाहर और उससे परे किसी ऐसे कार्य के किए जाने का भारत में दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध होगा, यदि भारत में किया जाए।

दृष्टांत -

क,भारत में ख को, जो गोवा में विदेशी है, गोवा में हत्या करने के लिए उकसाता है। क हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी है।

109. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए, और जहां कि उसके दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है -

जो कोई किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाता है, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए इस संहिता द्वारा कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं किया गया है, तो वह उस दण्ड से दण्डित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है।

स्पष्टीकरण - कोई कार्य या अपराध दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया गया तब कहा जाता है, जब वह उस उकसाहट के परिणामस्वरूप या उस षड़यंत्र के अनुसरण में या उस सहायता से किया जाता है, जिससे दुष्प्रेरण गठित होता है।

दृष्टांत -

(क) ख को, जो एक लोक-सेवक, है ख के पदीय कृत्यों के प्रयोग में क पर कुछ अनुग्रह दिखाने के लिए इनाम के रूप में क रिश्वत की प्रस्थापना करता है। ख वह रिश्वत प्रतिगृहीत कर लेता है। क ने धारा 161 में परिभाषित अपराध का दुष्प्रेरण किया है।

(ख) ख को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए क उकसाता है। ख उस उकसाहट के परिणामस्वरूप, वह अपराध करता है। क उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है जिससे ख है।

(ग) य को विष देने का षड़यंत्र क और ख रचते हैं। क उस षड़यंत्र के अनुसरण में विष उपाप्त करता है और उसे ख को इसलिए परिदत्त करता है कि वह उसे य को दे। ख उस षड़यंत्र के अनुसरण में वह विष क की अनुपस्थिति में य को देता है और उसके द्वारा य की मृत्युकारित कर देता है। यहां ख, हत्या का दोषी है। क षड़यंत्र द्वारा उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और वह हत्या के लिए दण्ड से दण्डनीय है।

110. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है -

जो कोई किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति ने दुष्प्रेरक के आशय या ज्ञान से भिन्न आशय या ज्ञान से वह कार्य किया हो, तो वह उसी दण्ड से दण्डित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, जो किया जाता यदि वह कार्य दुष्प्रेरक के ही आशय या ज्ञान से, न कि किसी अन्य आशय या ज्ञान से, किया जाता।

111. दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है -

जबकि किसी एक कार्य का दुष्प्रेरण किया जाता है, और कोई भिन्न कार्य किया जाता है, तब दुष्प्रेरक उस किए गए कार्य के लिए उसी प्रकार से और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो :

परन्तुक - परन्तु यह तब जबकि किया गया कार्य दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम था और उस उकसाहट के असर के अधीन या उस सहायता से या उस षड़यंत्र के अनुसरण में किया गया था जिससे वह दुष्प्रेरण गठित होता है।

दृष्टांत -

(क) एक शिशु को य के भोजन में विष डालने के लिए क उकसाता है, और उस प्रयोजन से उसे विष परिदत्त करता है। वह शिशु उस उकसाहट के परिणामस्वरूप भूल से म के भोजन में, जो य के भोजन के पास रखा हुआ है, विष डाल देता है। यहां, यदि वह शिशु क के उकसाने के असर के अधीन उस कार्य को कर रहा था, और किया गया कार्य उन परिस्थितियों में उस दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम है, तो क उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने उस शिशु को म के भोजन में विष डालने के लिए उकसाया हो।

(ख) ख को य का गृह जलाने के लिए क उकसाता है। ख उस गृह को आग लगा देता है और उसी समय वहां संपत्ति की चोरी करता है। क यद्यपि गृह जलाने के दुष्प्रेरण का दोषी है, किन्तु चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं है; क्योंकि वह चोरी एक अलग कार्य थी और उस गृह के जलाने का अधिसंभाव्य परिणाम नहीं थी।  

(ग) ख और ग को बसे हुए गृह में अर्धरात्रि में लूट के प्रयोजन से भेदन करने के लिए क उकसाता है, और उनको उस प्रयोजन के लिए आयुध देता है। ख और ग वह गृह भेदन करते हैं, और य द्वारा जो निवासियों में से एक है, प्रतिरोध किए जाने पर, य की हत्या कर देते हैं। यहां, यदि वह हत्या उस दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम थी, तो क हत्या के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

112. दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है -

यदि वह कार्य, जिसके लिए दुष्प्रेरक अंतिम पूर्वगामी धारा के अनुसार दायित्व के अधीन है, दुष्प्रेरित कार्य के अतिरिक्त किया जाता है और वह कोई सुभिन्न अपराध गठित करता है, तो दुष्प्रेरक उन अपराधों में से हर एक के लिए दण्डनीय है।

दृष्टांत -

ख को एक लोक-सेवक द्वारा किए गए करस्थम् का बलपूर्वक प्रतिरोध करने के लिए क उकसाता है। ख परिणामस्वरूप उस करस्थम का प्रतिरोध करता है। प्रतिरोध करने में ख करस्थम का निष्पादन करने वाले ऑफिसर को स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है। ख ने करस्थम् का प्रतिरोध करने और स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के दो अपराध किए हैं। इसलिए ख दोनों अपराधों के लिए दण्डनीय है, और यदि क यह संभाव्य जानता था कि उस करस्थम का प्रतिरोध करने में ख स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, तो क भी उनमें से हर एक अपराध के लिए दण्डनीय होगा।

113. दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक द्वारा आशयित से भिन्न हो -

जबकि कार्य का दुष्प्रेरण दुष्प्रेरक द्वारा किसी विशिष्ट प्रभाव को कारित करने के आशय से किया जाता है और दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप जिस कार्य के लिए दुष्प्रेरक दायित्व के अधीन है, वह कार्य दुष्प्रेरक के द्वारा आशयित प्रभाव से भिन्न प्रभाव कारित करता है तब दुष्प्रेरक कारित प्रभाव के लिए उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने उस कार्य का दुष्प्रेरण उसी प्रभाव को कारित करने के आशय से किया हो परन्तु यह तब जबकि वह यह जानता था कि दुष्प्रेरित कार्य से यह प्रभाव कारित होना संभाव्य है। 

दृष्टांत -

य को घोर उपहति करने के लिए ख को क उकसाता है। ख उस उकसाहट के परिणामस्वरूप य को घोर उपहति कारित करता है। परिणामतः य की मृत्यु हो जाती है। यहां, यदि क यह जानता था कि दुष्प्रेरित घोर उपहति से मृत्यु कारित होना संभाव्य है, तो क हत्या के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

114. अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति -

जब कभी कोई व्यक्ति, जो अनुपस्थित होने पर दुष्प्रेरक के नाते दण्डनीय होता, उस समय उपस्थित हो जब वह कार्य या अपराध किया जाए, जिसके लिए वह दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दण्डनीय होता, तब यह समझा जाएगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है।

115. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण -

यदि अपराध नहीं किया जाता - जो कोई मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध इस संहिता में नहीं किया गया है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;  

यदि अपहानि करने वाला कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है - और यदि ऐसा कोई कार्य कर दिया जाए, जिसके लिए दुष्प्रेरक उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दायित्व के अधीन हो और जिससे कि व्यक्ति को उपहति कारित हो, तो दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

दृष्टांत -

ख को य की हत्या करने के लिए कउकसाता है। वह अपराध नहीं किया जाता है। यदि य की हत्या ख कर देता. तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास के दण्ड से दण्डनीय होता। इसलिए क कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय है और जुर्माने से भी दण्डनीय है, और यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप य को कोई उपहति हो जाती है, तो, वह कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

116. कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण - यदि अपराध न किया जाए -

जो कोई कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेगा यदि, वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध इस संहिता में नहीं किया गया है; तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि के एक-चौथाई भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक-सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो - और यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक-सेवक हो, जिसका कर्तव्य ऐसे अपराध के किए जाने को निवारित करना हो, तो वह दुष्प्रेरक उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए जो उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि के आधे भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

(क) ख को, जो एक लोक-सेवक है, ख के पदीय कृत्यों के प्रयोग में कअपने प्रति कुछ अनुग्रह दिखाने के लिए इनाम के रूप में रिश्वत की प्रस्थापना करता है। ख उस रिश्वत को प्रतिगृहीत करने से इंकार कर देता है। क इस धारा के अधीन दण्डनीय है।

(ख) मिथ्या साक्ष्य देने के लिए ख को क उकसाता है। यहां, यदि ख मिथ्या साक्ष्य न दे, तो भी क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और वह तदनुसार दण्डनीय है।

(ग) क, एक पुलिस ऑफिसर, जिसका कर्तव्य लूट को निवारित करना है, लूट किए जाने का दुष्प्रेरण करता है। यहां, यद्यपि वह लूट नहीं की जाती, क उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दण्डनीय है।

 (घ) क द्वारा, जो एक पुलिस ऑफिसर है, और जिसका कर्त्तव्य लूट को निवारित करना है, उस अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण ख करता है, यहां यद्यपि वह लूट न की जाए, ख लूट के अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दण्डनीय है। 

117. लोक साधारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण -

जो कोई लोक साधारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्तियों की किसी भी संख्या या वर्ग द्वारा किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क, एक लोक स्थान में एक प्लेकार्ड चिपकाता है, जिसमें एक पंथ को जिसमें दस से अधिक सदस्य हैं, एक विरोधी पंथ के सदस्यों पर, जबकि वे जुलूस निकालने में लगे हुए हों, आक्रमण करने के प्रयोजन से, किसी निश्चित समय और स्थान पर मिलने के लिए उकसाया गया है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

118. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना -

जो कोई मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का किया जाना सुकर बनाने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए;

ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या लोप द्वारा या गूढ़लेखन के प्रयोग या जानकारी छुपाने के किसी अन्य उपाय द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है,

यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए - यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह दोनों  में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा यदि अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और दोनों दशाओं में से हर एक में जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

दृष्टांत -

क यह जानते हुए कि ख स्थान पर डकैती पड़ने वाली है, मजिस्ट्रेट को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि डकैती ग स्थान पर, जो विपरीत दिशा में है, पड़ने वाली है, और इस आशय से कि एतद्द्वारा उस अपराध का किया जाना सुकर बनाए मजिस्ट्रेट को भुलावा देता है। डकैती परिकल्पना के अनुसरण में ख स्थान पर पड़ती है। क इस धारा के अधीन दण्डनीय है।

119. किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक-सेवक द्वारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए उस अपराध का किया जाना, जिसका निवारण करना ऐसे लोक- सेवक के नाते उसका कर्तव्य है, सुकर बनाने के आशय से या संभाव्यतः तद्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए,

ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या लोप द्वारा या गूढ़लेखन के प्रयोग या जानकारी छुपाने के किसी अन्य उपाय द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है,

यदि अपराध कर दिया जाए - यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि से आधी तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से;

यदि अपराध मृत्यु आदि से दण्डनीय है - अथवा यदि वह अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।

यदि अपराध नहीं किया जाए - अथवा यदि वह अपराध नहीं किया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा

दृष्टांत -

क, एक पुलिस ऑफिसर, लूट किए जाने से संबंधित सब परिकल्पनाओं की, जो उसको ज्ञात हो जाए, इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए और यह जानते हुए कि ख लूट करने की परिकल्पना बना रहा है, उस अपराध के किए जाने को सुकर बनाने के आशय से ऐसी इत्तिला देने का लोप करता है। यहां क ने ख की परिकल्पना के अस्तित्व को एक अवैध लोप द्वारा छिपाया है, और वह इस धारा के उपबंध के अनुसार दण्डनीय है।

120. कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना -

जो कोई उस अपराध का किया जाना, जो कारावास से दण्डनीय है, सुकर बनाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा सुकर बनाएगा, यह जानते हुए;

ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता है,

 यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए - यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी और यदि वह अपराध नहीं किया जाए, तो वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि के आठवें भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 5 क: आपराधिक षडयंत्र

120 , आपराधिक षड़यंत्र की परिभाषा -

जबकि दो या अधिक व्यक्ति -

(1) कोई अवैध कार्य, अथवा

(2) कोई ऐसा कार्य, जो अवैध नहीं है, अवैध साधनों द्वारा, करने या करवाने को सहमत होते हैं, तब ऐसी सहमति आपराधिक षड़यंत्र कहलाती है।

परन्तु किसी अपराध को करने की सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षड़यंत्र तब तक न होगी, जब तक कि सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा नहीं कर दिया जाता।

स्पष्टीकरण - यह तत्वहीन है कि अवैध कार्य ऐसी सहमति का चरम उद्देश्य है या उस उद्देश्य का आनुषंगिक मात्र है।

120 ख. आपराधिक षड़यंत्र का दण्ड -

(1) जो कोई मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दण्डनीय अपराध करने के आपराधिक षड़यंत्र में शरीक होगा, यदि ऐसे षड़यंत्र के दण्ड के लिए इस संहिता में कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है, तो वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था।

(2) जो कोई पूर्वोक्त रूप से दण्डनीय अपराध को करने के आपराधिक षड़यंत्र से भिन्न किसी आपराधिक षड़यंत्र में शरीक होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से अधिक की नहीं होगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 6: राज्य के विरुद्ध अपराधो के विषय में 

121. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना -

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

दृष्टांत -

क भारत सरकार के विरुद्ध विप्लव में सम्मिलित होता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

121 क, धारा 121 द्वारा दण्डनीय अपराधों को करने का षड़यंत्र -

जो कोई धारा 121 द्वारा दण्डनीय अपराधों में से कोई अपराध करने के लिए भारत के भीतर या बाहर षड़यंत्र करेगा, या केन्द्रीय सरकार को या किसी राज्यों की सरकार को आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करने का षड़यंत्र करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय  होगा |

स्पष्टीकरण - इस धारा के अधीन षड़यंत्र गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसके अनुसरण में कोई कार्य या अवैध लोप घटित हुआ हो।

122. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना -

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध या तो युद्ध करने, या युद्ध करने की तैयारी करने के आशय से पुरुष, आयुध या गोलाबारूद संग्रह करेगा, या अन्यथा युद्ध करने की तैयारी करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक की नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुमाने से भी दण्डनीय होगा।

123. युद्ध करने की परिकल्पना को सुकर बनाने के आशय से छिपाना -

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की परिकल्पना के अस्तित्वों को किसी कार्य द्वारा, या किसी अवैध लोप द्वारा, इस आशय से कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाए, या यह संभाव्य जानते हुए कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाएगा, छिपाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

124. किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोधित करने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना -

जो कोई भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल को ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल की विधिपूर्ण शक्तियों में से किसी शक्ति का किसी प्रकार प्रयोग करने के लिए या प्रयोग करने से विरत रहने के लिए उत्प्रेरित करने या विवश करने के आशय से,

ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करेगा या उसका सदोष अवरोध करेगा, या सदोष अवरोध करने का प्रयत्न करेगा या उसे आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करेगा या ऐसे आतंकित करने का प्रयत्न करेगा,

वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

124 क. राजद्रोह -

जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, अप्रीति प्रदीप्त करेगा या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।

 स्पष्टीकरण 1 - “अप्रीति" पद के अन्तर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्त भावनाएं आती हैं।  

स्पष्टीकरण 2 - घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं।

स्पष्टीकरण 3 - घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना सरकार की प्रशासनिक या अन्य क्रिया के प्रति अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करती।

125. भारत सरकार से मैत्री संबंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरुद्ध युद्ध करना -

जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति की सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा, या ऐसा युद्ध करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।

126. भारत सरकार के साथ शांति का संबंध रखने वाली शक्ति के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करना -

जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाली किसी शक्ति के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करेगा, या लूटपाट करने की तैयारी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और वह जुर्माने से और ऐसी लूटपाट करने के लिए उपयोग में लाई गई या उपयोग में लाई जाने के लिए आशयित, या ऐसी लूटपाट द्वारा अर्जित संपत्ति के समपहरण से भी दण्डनीय होगा।

127. धारा 125 और 126 में वर्णित युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई संपत्ति प्राप्त करना -

जो कोई किसी संपत्ति को यह जानते हुए प्राप्त करेगा कि वह धारा 125 और 126 में वर्णित अपराधों में से किसी के किए जाने में ली गई है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से और इस प्रकार प्राप्त की गई संपत्ति के समपहरण से भी दण्डनीय होगा।

128. लोक-सेवक का स्वेच्छया राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी को अभिरक्षा में रखते हुए, स्वेच्छया ऐसे कैदी को किसी ऐसे स्थान से जिसमें ऐसा कैदी परिरुद्ध है, निकल भागने देगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

129. उपेक्षा से लोक-सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना -

जो कोई लोकसेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी की अभिरक्षा में रखते हुए उपेक्षा में ऐसे कैदी को किसी ऐसे परिरोध स्थान  से जिस में ऐसा कैदी परिरुद्ध है, निकल भागना सहन करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

130. ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुड़ाना या संश्रय देना -

जो कोई जानते हुए किसी राजकैदी या युद्धकैदी को विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने में मदद या सहायता देगा, या किसी ऐसे कैदी को छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, या किसी ऐसे कैदी को, जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, संश्रय देगा या छिपाएगा या ऐसे कैदी के फिर से पकड़े जाने का प्रतिरोध करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।  

स्पष्टीकरण - कोई राजकैदी या युद्धकैदी, जिसे अपने पैरोल पर भारत में कतिपय सीमाओं के भीतर यथेच्छ विचरण की अनुज्ञा है, विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, यह तब कहा जाता है, जब वह उन सीमाओं से परे चला जाता है, जिनके भीतर उसे यथेच्छ विचरण की अनुज्ञा है।

अध्याय 7:

सेना नोसेना और वायुसेना से सम्बंधित अपराधो के विषय में

131. विद्रोह का दुष्प्रेरण या किसी सैनिक, नौसेनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, या किसी ऐसे ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों को उसकी राजनिष्ठा या उसके कर्त्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा में “ऑफिसर”, “सैनिक”, नौसैनिक और “वायुसैनिक” शब्दों के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति आता है, जो यथास्थिति, आर्मी एक्ट, सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46), नेवल डिसिप्लिन एक्ट, इंडियन नेवी (डिसिप्लिन) एक्ट, 1934 (1934 का 34) एयरफोर्स एक्ट या वायुसेना अधिनियम, 1950 (1950 का 45) के अध्यधीन हो ।

132. विद्रोह का दुष्प्रेरण, यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह किया जाए -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसैना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप विद्रोह हो.जाए, तो वह मृत्यु से, या आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

133. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अपने वरिष्ठ ऑफिसर पर जबकि वह ऑफिसर अपने पद निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों द्वारा किसी वरिष्ठ ऑफिसर पर, जबकि वह ऑफिसर अपने पद निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

134. ऐसे हमले का दुष्प्रेरण, यदि हमला किया जाए -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक, या वायुसैनिकों द्वारा किसी वरिष्ठ ऑफिसर पर, जबकि वह ऑफिसर अपने पद निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण करेगा, यदि ऐसा हमला उस दुष्प्रेरण के परिणास्वरूप किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

135. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अभित्यजन का दुष्प्रेरण -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अभित्यजन किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

136. अभित्याजक को संश्रय देना -

जो कोई सिवाय एतस्मिन् पश्चात् यथा अपवादित के यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसेनिक या वायुसैनिकों ने अभित्यजन किया है, ऐसे ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों को संश्रय देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार उस मामले पर नहीं है, जिसमें पत्नी द्वारा अपने पति को संश्रय दिया जाता है।

137. मास्टर की उपेक्षा से किसी वाणिज्यिक जलयान पर छिपा हुआ अभित्याजक -

किसी ऐसे वाणिज्यिक जलयान का, जिस पर भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अभित्याजक छिपा हुआ हो, मास्टर या भारसाधक व्यक्ति, यद्यपि वह ऐसे छिपने के संबंध में अनभिज्ञ हो, ऐसी शास्ति से दण्डनीय होगा जो पांच सौ रुपए से अधिक नहीं होगी, यदि उसे ऐसे छिपने का ज्ञान हो सकता था, किन्तु केवल इस कारण नहीं हुआ कि ऐसे मास्टर या भारसाधक व्यक्ति के नाते उसके कर्त्तव्य में कुछ उपेक्षा हुई या उस जलयान पर अनुशासन का कुछ अभाव था।

138. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण -

जो कोई ऐसी बात का दुष्प्रेरण करेगा जिसे कि वह भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिकनौसैनिक या वायुसैनिकों द्वारा अनधीनता का कार्य जानता हो, यदि अनधीनता का ऐसा कार्य उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

138 क. पूर्वोक्त धाराओं का भारतीय सामुद्रिक सेवा को लागू होना -

[1887 के अधिनियम सं. 14 की धारा 79 द्वारा अन्त: स्थापित तथा संशोधन अधिनियम, 1934 (1934 का 35) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा निरसित]

139. कुछ अधिनियमों के अध्यधीन व्यक्ति -

कोई व्यक्ति जो आर्मी एक्ट, सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46), नेवल डिसिप्लिन एक्ट, इंडियन नेवी (डिसिप्लिन) एक्ट, 1934 (1934 का 34), एयर फोर्स एक्ट या वायुसेना अधिनियम, 1950 (1950 का 45) के अध्यधीन है, इस अध्याय में परिभाषित अपराधों में से किसी के लिए इस संहिता के अधीन दण्डनीय नहीं है।

140. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक पहनना या टोकन धारण करना -

जो कोई भारत सरकार की सैन्य, नाविक या वायुसेना का सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक न होते हुए, इस आशय से कि यह विश्वास किया जाए कि वह ऐसा सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक है, ऐसी कोई पोषाक पहनेगा या ऐसा टोकन धारण करेगा जो ऐसे सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोषाक या टोकन के सदृश हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 8: लोक प्रशांति के विरुद्ध अपराधो के विषय में

141. विधिविरुद्ध जमाव -

पांच या अधिक व्यक्तियों का जमाव “विधिविरुद्ध जमाव” कहा जाता है, यदि उन व्यक्तियों का, जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उद्देश्य हो -

पहला - केन्द्रीय सरकार को, या किसी राज्य सरकार को, या संसद को या किसी राज्य के विधान मण्डल, को या किसी लोक-सेवक को, जबकि वह ऐसे लोक-सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, आतंकित करना, अथवा

दूसरा - किसी विधि के, या किसी वैध आदेशिका के, निष्पादन का प्रतिरोध करना, अथवा

तीसरा - किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का करना, अथवा 

चौथा - किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी संपत्ति का कब्जा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से, या जल का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका वह कब्जा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमित अधिकार को प्रवर्तित कराना, अथवा

पाँचवा - आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी व्यक्ति को वह करने के लिए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए, जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो, विवश करना।

स्पष्टीकरण - कोई जमाव, जो इकट्ठा होते समय विधिविरुद्ध नहीं था, बाद को विधिविरुद्ध जमाव हो सकेगा।

142. विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होना -

जो कोई उन तथ्यों से परिचित होते हुए, जो किसी जमाव को विधिविरुद्ध जमाव बनाते हैं, उस जमाव में साशय सम्मिलित होता है या उसमें बना रहता है, वह विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य है, यह कहा जाता है।

143. दण्ड -

जो कोई विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

144. घातक आयुधों से सज्जित होकर विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होना -

जो कोई किसी घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से, जिससे आक्रमण आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य है, सज्जित होते हुए किसी विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

145. किसी विधिविरुद्ध जमाव में यह जानते हुए कि उसके बिखर जाने का समादेश दे दिया गया है, सम्मिलित होना या उसमें बने रहना -

जो कोई किसी विधिविरुद्ध जमाव में यह जानते हुए कि ऐसे विधिविरुद्ध जमाव को बिखर जाने का समादेश विधि द्वारा विहित प्रकार से दिया गया है, सम्मिलित होगा, या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

146. बल्वा करना -

जब कभी विधिविरुद्ध जमाव द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसे जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तब ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्वा करने के अपराध का दोषी होगा।

147. बल्वा करने के लिए दण्ड -

जो कोई बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - न्यायालय की अनुमति से, उस व्यक्ति द्वारा शमनीय जिसके विरुद्ध अपराध कारित करते समय बल या हिंसा प्रयुक्त की गई है, परन्तु यह कि अभियुक्त किसी अन्य अशमनीय अपराध का आरोपी नहीं है।

[देखें म.प्र. अधिनियम सं. 17 सन्‌ 1999 की धारा 3 (21-5-1999 से प्रभावशील) ।]

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148. घातक आयुध से सज्जित होकर बल्वा करना -

जो कोई घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य हो, सज्जित होते हुए बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन


मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - न्यायालय की अनुमति से, उस व्यक्ति द्वारा शमनीय जिसके विरुद्ध अपराध कारित करते समय बल या हिंसा प्रयुक्त की गई है, परन्तु यह कि अभियुक्त किसी अन्य अशमनीय अपराध का आरोपी नहीं है।
[देखें म.प्र. अधिनियम सं. 17 सन्‌ 1999 की धारा 3३ (21-5-1999 से प्रभावशील) |]

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149. विधिविरुद्ध जमाव का हर सदस्य, सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में किए गए अपराध का दोषी -

यदि विधिविरुद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में अपराध किया जाता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसका किया जाना उस जमाव के सदस्य उस उद्देश्य को अग्रसर करने में संभाव्य जानते थे, तो हर व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस जमाव का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।

150. विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित करने के लिए व्यक्तियों का भाड़े पर लेना या भाड़े पर लेने के प्रति मौनानुकूलता -

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या उसका सदस्य बनने के लिए भाड़े पर लेगा या वचनबद्ध या नियोजित करेगा या भाड़े पर लिए जाने का वचनबद्ध या नियोजित करने का संप्रवर्तन करेगा या उसके प्रति मौनानुकूल बना रहेगा, वह ऐसे विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य के रूप में, और किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य के नाते ऐसे भाड़े पर लेने, वचनबद्ध या नियोजन के अनुसरण में किए गए किसी भी अपराध के लिए उसी प्रकार दण्डनीय होगा, मानो वह ऐसे विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य रहा था या ऐसा अपराध उसने स्वयं किया था। GO toTOP

151. पांच या अधिक व्यक्तियों के जमाव को बिखर जाने का समादेश दिए जाने के पश्चात् उसमें जानते हुए सम्मिलित होना या बने रहना -

जो कोई पांच या अधिक व्यक्तियों के किसी जमाव में, जिससे लोक शांति में विघ्न कारित होना संभाव्य हो, ऐसे जमाव को बिखर जाने का समादेश विधिपूर्वक दे दिए जाने पर, जानते  हुए सम्मिलित होगा या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।  

स्पष्टीकरण - यदि वह जमाव धारा 141 के अर्थ के अन्तर्गत विधिविरुद्ध जमाव हो, तो अपराधी धारा 145 के अधीन दण्डनीय होगा।

152. लोक-सेवक जब बल्वा इत्यादि को दबा रहा हो, तब उस पर हमला करना या उसे बाधित करना -

जो कोई ऐसे किसी लोक-सेवक पर, जो विधिविरुद्ध जमाव के बिखरने का, या बल्वे या दंगे को दबाने का प्रयास ऐसे लोक-सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन में कर रहा हो, हमला करेगा या उसको हमले की धमकी देगा या उसके काम में बाधा डालेगा या बाधा डालने का प्रयत्न करेगा या ऐसे लोक-सेवक पर आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या करने की धमकी देगा, या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

153. बल्वा कराने के आशय से स्वैरिता से प्रकोपन देना -

यदि बल्वा किया जाए - यदि बल्वा न किया जाए - जो कोई अवैध बात के करने द्वारा किसी व्यक्ति को परिद्वेष से या स्वैरिता से प्रकोपित इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे प्रकोपन के पणिामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाएगा;

यदि ऐसे प्रकोपन, के परिणामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाए तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, और यदि बल्वे का अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

153 क. धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना -

(1) जो कोई -

(क) बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय या भाषाई या प्रादेशिक समूहों, जातियों या समुदायों के बीच असौहार्द अथवा शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर संप्रवर्तित करेगा या संप्रवर्तित करने का प्रयत्न करेगा, अथवा

(ख) कोई ऐसा कार्य करेगा, जो विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है और जो लोक-प्रशांति में विघ्न डालता है, या जिससे उसमें विघ्न पड़ना संभाव्य हो, अथवा

(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आंदोलन, कवायद या अन्य वैसा ही क्रियाकलाप इस आशय से संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे या यह संभाव्य जानते हुए संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे अथवा ऐसे क्रिया-कलाप में इस आशय से भाग लेगा कि किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए, यह संभाव्य जानते हुए भाग लेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे और ऐसे क्रिया-कलाप से ऐसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्यों के बीच, चाहे किसी भी कारण से भय या संत्रास या असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है या उत्पन्न होनी संभाव्य है,

वह कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से,दण्डित किया जाएगा।

(2) पूजा के स्थान आदि में किया गया अपराध - जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

153 - क क. किसी जुलूस में जानबूझकर आयुध ले जाने या किसी सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण का आयुध सहित संचालन या आयोजन करना या उसमें भाग लेने के लिये दण्ड -

जो कोई किसी सार्वजनिक स्थान में, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 144-क के अधीन जारी की गई किसी लोक सूचना या किए गए किसी आदेश के उल्लंघन में किसी जुलूस में जानबूझकर आयुध ले जाता है या सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण या आयुध सहित जानबूझकर संचालन, आयोजन करता है और उसमें भाग लेता है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी और जुमनि से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - “आयुध” से अपराध या बचाव के लिए हथियार के रूप में डिजाइन की गई या अपनाई गई किसी भी प्रकार की कोई वस्तु अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अग्नि शस्त्र, नुकीली धार वाला हथियार, लाठी, डण्डा और छड़ी भी है ।

153 ख. राष्ट्रीय अखण्डता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले लांछन, प्राख्यान -

(1) जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा -

(क) ऐसा कोई लांछन लगाएगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्ति इस कारण से कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा नहीं रख सकते या भारत की प्रभुता और अखंडता की मर्यादा नहीं बनाए रख सकते, अथवा

(ख) यह प्राख्यान करेगा, परामर्श देगा, सलाह देगा, प्रचार करेगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्तियों को इस कारण से कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, भारत के नागरिक के रूप में उनके अधिकार न दिए जाएं या उन्हें उनसे वंचित किया जाए, अथवा

(ग) किसी वर्ग के व्यक्तियों की बाध्यता के संबंध में इस कारण कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, कोई प्राख्यान करेगा, परामर्श देगा, अभिवाक् करेगा या अपील करेगा अथवा प्रकाशित करेगा और ऐसे प्राख्यान, परामर्श, अभिवाक् या अपील से ऐसे सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के बीच असामंजस्य, अथवा शत्रुता या घृणा या वैमनस्य की भावनाएं उत्पन्न होती हैं या उत्पन्न होनी संभाव्य हैं, 

वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, अथवा दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

(2) जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट कोई अपराध किसी उपासना स्थल में या धार्मिक उपासना अथवा धार्मिक कर्म करने में लगे हुए किसी जमाव में करेगा वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

154. उस भूमि का स्वामी या अधिभोगी, जिस पर विधिविरुद्ध जमाव किया गया है -

जब कभी कोई विधिविरुद्ध जमाव या बल्वा हो, तब जिस भूमि पर ऐसा विधिविरुद्ध जमाव हो या ऐसा बल्वा किया जाए, उसका स्वामी या अधिभोगी और ऐसी भूमि में हित रखने वाला या हित रखने का दावा करने वाला व्यक्ति एक हजार रुपए से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबंधक यह जानते हुए कि ऐसा अपराध किया जा रहा है या किया जा चुका है या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे अपराध का किया जाना संभाव्य है उस बात को अपनी शक्ति-भर शीघ्रतम सूचना निकटतम पुलिस थाने के प्रधान ऑफिसर को न दे या न दें और उस दशा में, जिसमें कि उसे या उन्हें यह विश्वास करने का कारण हो कि यह लगभग किया ही जाने वाला है, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का उपयोग उसका निवारण करने के लिए नहीं करता या करते और उसके हो जाने पर अपनी शक्ति भर सब विधिपूर्ण साधनों का उस विधिविरुद्ध जमाव को बिखरने या बल्वे को दबाने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।

155. उस व्यक्ति का दायित्व, जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है -

जब कभी किसी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या उसकी ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय में ऐसा बल्वा हो, स्वामी या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि में या बल्वे को पैदा करने वाले किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पा चुका हो, तब ऐसा व्यक्ति, जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबंधक इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसा बल्वा किया जाना संभाव्य था, या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था, वह जमाव किया जाना संभाव्य था, अपनी शक्तिभर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे जमाव या बल्वे का किया जाना निवारित करने के लिए और उसे दबाने और बिखरने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।

156. उस स्वामी या अधिभोगी के अभिकर्ता का दायित्व, जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है -

जब कभी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या ऐसे व्यक्ति की ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय में ऐसा बल्वा हो, स्वामी हो या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि में या बल्वे के पैदा करने वाली किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पा चुका हो,

तब उस व्यक्ति का अभिकर्ता या प्रबंधक जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि ऐसा अभिकर्ता या प्रबंधक वह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे बल्वे का किया जाना संभाव्य था या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था उसका किया जाना संभाव्य था, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे बल्वे या जमाव का किया जाना निवारित करने के लिए और उसको दबाने और बिखरने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।

157. विधिविरुद्ध जमाव के लिए भाड़े पर लाए गए व्यक्तियों को संश्रय देना -

जो कोई अपने अधिभोग या भारसाधन, या नियंत्रण के अधीन किसी गृह या परिसर में किन्हीं व्यक्तियों को, यह जानते हुए कि वे व्यक्ति विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या सदस्य बनने के लिए भाड़े पर लाए गए, वचनबद्ध या नियोजित किए गए हैं या भाड़े पर लाए जाने, वचनबद्ध या नियोजित किए जाने वाले हैं, संश्रय देगा, आने देगा या सम्मिलित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

158. विधिविरुद्ध जमाव या बल्वे में भाग लेने के लिए भाड़े पर जाना -

जो कोई धारा 141 में विनिर्दिष्ट कार्यों में से किसी को करने के लिए या करने में सहायता देने के लिए वचनबद्ध किया या भाड़े पर लिया जाएगा या भाड़े पर लिए जाने या वचनबद्ध किए जाने के लिए अपनी प्रस्थापना करेगा या प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।  

या सशस्त्र चलना - तथा जो कोई पूर्वोक्त प्रकार से वचनबद्ध होने या भाड़े पर लिए जाने पर, किसी घातक आयुध से या ऐसी किसी चीज से, जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य है, सज्जित होकर चलेगा या सज्जित चलने के लिए वचनबद्ध होगा या अपनी प्रस्थापना करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

159. दंगा -

जबकि दो या अधिक व्यक्ति लोकस्थान में लड़कर लोक शांति में विघ्न डालते हैं, तब यह कहा जाता है कि वे दंगा करते हैं।

160. दंगा करने के लिए दण्ड -

जो कोई दंगा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 9: लोक-सेवकों द्वारा या उनसे संबंधित अपराधों के विषय में

161 से 165क - भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (1988 का 49) की धारा 31 द्वारा निरसित |

166. लोक-सेवक, जो किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के आशय से विधि की अवज्ञा करता है -

जो कोई लोक सेवक होते हुए विधि के किसी ऐसे निदेश की जो उस ढंग के बारे में हो जिस ढंग से लोकसेवक के नाते उसे आचरण करना है जानते हुए अवज्ञा इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसी अवज्ञा से वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत

क, जो एक ऑफिसर है, और न्यायालय द्वारा य के पक्ष में दी गई डिक्री की तुष्टि के लिए निष्पादन में संपत्ति लेने के लिए विधि द्वारा निदेशित है, यह ज्ञान रखते हुए कि यह संभाव्य है कि तद्द्वारा वह य को क्षति कारित करेगा, जानते हुए विधि के उस निदेश की अवज्ञा करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

 

166 क. लोक सेवक, जो विधि के अधीन के निदेश की अवज्ञा करता है -

जो कोई लोक सेवक होते हुए :-

(क) विधि के किसी ऐसे निदेश की, जो उसको किसी अपराध या किसी अन्य मामले में अन्वेषण के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति की किसी स्थान पर उपस्थिति की अपेक्षा किए जाने से प्रतिषिद्ध करता है, जानते हुए अवज्ञा करता है; या

(ख) किसी ऐसी रीति को, जिसमें वह ऐसा अन्वेषण करेगा, विनियमित करने वाली विधि के किसी अन्य निदेश की, किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए, जानते हुए अवज्ञा करता है; या

(ग) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 154 की उपधारा (1) के अधीन, धारा 326क, धारा 326ख, धारा 354, धारा 354ख, धारा 370, धारा 370क, धारा 376, " धारा 376 कख, धारा 376 ख, धारा 376 ग, धारा 376 घ, धारा 376 घक, धारा 376 घख" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित], धारा 376ङ या धारा 509 के अधीन दंडनीय संज्ञेय अपराध के संबंध में उसे दी गई किसी सूचना को लेखबद्ध करने में असफल रहता है,

वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया। जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

166 ख. पीड़ित का उपचार न करने के लिए दंड -

जो कोई ऐसे किसी लोक या प्रायवेट अस्पताल का, चाहे वह केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा हो, भारसाधक होते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 357ग के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

166 B - Punishment for non-treatment of victim

Whoever, being in charge of a hospital, public or private, whether run by the Central Government, the State Government, local bodies or any other person, contravenes the provisions of section 357 C of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), shall be punished with imprisonment for a term which may extend to one year or with fine or with both.

167. लोक-सेवक, जो क्षति कारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज रचता है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख की रचना या अनुवाद का भार वहन करते हुए उस दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख का विनिर्माण, रचना या अनुवाद ऐसे प्रकार से जिसे वह जानता हो या विश्वास करता हो कि अशुद्ध है, इस आशय से या संभाव्य जानते हुए करेगा कि एतद्वारा वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

168. लोक-सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से व्यापार में लगता है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि वह व्यापार में न लगे, व्यापार में लगेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

169. लोक-सेवक जो विधिविरुद्ध रूप से संपत्ति क्रय करता है या उसके लिए बोली लगाता है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि  वह अमुक संपत्ति को न तो क्रय करे और न उसके लिए बोली लगाए, या तो अपने निज के नाम में या किसी दूसरे के नाम में, अथवा दूसरों के साथ संयुक्त रूप से, या अंशों में, उस संपत्ति को क्रय करेगा, या उसके लिए बोली लगाएगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा, और यदि वह संपत्ति क्रय कर ली गई है, तो वह अधिहृत कर ली जाएगी।

170. लोक-सेवक का प्रतिरूपण -

जो कोई किसी विशिष्ट पद को लोक-सेवक के नाते धारण करने का अपदेश यह जानते हुए करेगा कि वह ऐसा पद धारण नहीं करता है या ऐसा पद धारण करने वाले किसी अन्य व्यक्ति का छद्म रूपण करेगा और ऐसे बनावटी रूप में ऐसे पदाभास से कोई कार्य करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

171. कपटपूर्ण आशय से लोक-सेवक के उपयोग की पोशाक पहनना या टोकन को धारण करना -

जो कोई लोक-सेवकों के किसी खास वर्ग का न होते हुए, इस आशय से कि यह विश्वास किया जाए, या इस ज्ञान से कि संभाव्य है कि यह विश्वास किया जाए कि वह लोक-सेवकों के उस वर्ग का है, लोक-सेवकों के उस वर्ग द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक के सदृश पोशाक पहनेगा या टोकन के सदृश कोई टोकन धारण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 9-क: निर्वाचन सम्बन्धी अपराधों के विषय में

171 क. "अभ्यर्थी" “निर्वाचन अधिकार' परिभाषित -

इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए -

(क) “अभ्यर्थी" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्दिष्ट किया गया है;

(ख) “निर्वाचन अधिकार” से किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में खड़े होने या खड़े न होने या अभ्यर्थना से अपना नाम वापस लेने या मत देने या मत देने से विरत रहने का किसी व्यक्ति का अधिकार अभिप्रेत है।

171 ख. रिश्वत -

(1) जो कोई -

(i) किसी व्यक्ति को इस उद्देश्य से परितोषण देता है कि वह उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किसी निर्वाचन अधिकार का प्रयोग करने के लिए उत्प्रेरित करे या किसी व्यक्ति को इसलिए इनाम दे कि उसने ऐसे अधिकार का प्रयोग किया है: अथवा 

(ii) स्वयं अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई परितोषण ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए उत्प्रेरित करने या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करने के लिए इनाम के रूप में प्रतिगृहीत करता है, वह रिश्वत का अपराध करता है:

 परन्तु लोक नीति की घोषणा या लोक कार्यवाही का वचन इस धारा के अधीन अपराध न होगा।

(2) जो व्यक्ति परितोषण देने की प्रस्थापना करता है या देने को सहमत होता है या उपाप्त करने की प्रस्थापना या प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण देता है।

(3) जो व्यक्ति परितोषण अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करने को सहमत होता है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण प्रतिगृहीत करता है और जो व्यक्ति वह बात करने के लिए जिसे करने का उसका आशय नहीं है, हेतु स्वरूप, या जो बात उसने नहीं की है उसे करने के लिए इनाम के रूप में परितोषण प्रतिगृहीत करता है, यह समझा जाएगा कि उसने परितोषण को इनाम के रूप में प्रतिगृहीत किया है।

171 ग. निर्वाचनों में असम्यक् असर डालना -

(1) जो कोई किसी निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में स्वेच्छया हस्तक्षेप करता है या हस्तक्षेप करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में असम्यक् असर डालने का अपराध करता है। 

(2) उपधारा (1) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जो कोई -

(क) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को, या किसी ऐसे व्यक्ति को जिससे अभ्यर्थी या मतदाता हितबद्ध है, किसी प्रकार की क्षति करने की धमकी देता है, अथवा

(ख) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करता है या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करता है कि वह या कोई ऐसा व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, दैवीय अप्रसाद या आध्यात्मिक परिनिन्दा का भाजन हो जाएगा, या बना दिया जाएगा,

यह समझा जाएगा कि वह उपधारा (1) के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अभ्यर्थी या मतदाता के निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में हस्तक्षेप करता है।

(3) लोकनीति की घोषणा या लोक कार्यवाही का वचन या किसी वैध अधिकार का प्रयोग मात्र, जो किसी निर्वाचन अधिकार में हस्तक्षेप करने के आशय के बिना है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत हस्तक्षेप करना नहीं समझा जाएगा।

171 घ. निर्वाचनों में प्रतिरूपण -

जो कोई किसी निर्वाचन में किसी अन्य व्यक्ति के नाम से, चाहे वह जीवित हो या मृत, या किसी कल्पित नाम से, मतपत्र के लिए आवेदन करता या मत देता है, या ऐसे निर्वाचन में एक बार मत दे चुकने के पश्चात् उसी निर्वाचन में अपने नाम के मतपत्र के लिए आवेदन करता है, और जो कोई किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रकार से मतदान को दुष्प्रेरित करता है, उपाप्त करता है या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में प्रतिरूपण का अपराध करता है।

परन्तु यह तब जबकि, इस धारा में का कुछ भी, उस व्यक्ति को लागू नहीं होगा, जिसको तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के तहत, किसी मतदाता के लिए, परोक्षी के रूप में, मतदान करने के लिए प्राधिकृत किया गया है, जहां तक, वह ऐसे मतदाता के लिए एक परोक्षी के रूप में मतदान करता है।

171 ङ, रिश्वत के लिए दण्ड -

जो कोई रिश्वत का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा: परन्तु सत्कार के रूप में रिश्वत केवल जुर्माने से ही दण्डित की जाएगी।

स्पष्टीकरण - “सत्कार” से रिश्वत का वह रूप अभिप्रेत है जो परितोषण,खाद्य, पेय, मनोरंजन या रसद के रूप में है।

171 च. निर्वाचन में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण के लिए दण्ड -

जो कोई किसी निर्वाचन में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

171 छ, निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन -

जो कोई निर्वाचन के परिणाम पर प्रभाव डालने के आशय से किसी अभ्यर्थी के वैयक्तिक शील या आचरण के संबंध में तथ्य का कथन तात्पर्यित होने वाला कोई ऐसा कथन करेगा या प्रकाशित करेगा, जो मिथ्या है, और जिसका मिथ्या होना वह जानता या विश्वास करता है अथवा जिसके सत्य होने का वह विश्वास नहीं करता है, वह जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।

171 ज. निर्वाचन के सिलसिले में अवैध संदाय -

जो कोई किसी अभ्यर्थी के साधारण या विशेष लिखित प्राधिकार के बिना ऐसे अभ्यर्थी का निर्वाचन अग्रसर करने या निर्वाचन करा देने के लिए कोई सार्वजनिक सभा करने में या किसी विज्ञापन, परिपत्र या प्रकाशन पर या किसी भी अन्य ढंग से व्यय करेगा या करना प्राधिकृत करेगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा:

परन्तु यदि कोई व्यक्ति, जिसने प्राधिकार के बिना कोई ऐसे व्यय किए हों, जो कुल मिलाकर दस रुपए से अधिक न हों, उस तारीख से जिस तारीख को ऐसे व्यय किए गए हों, दस दिन के भीतर उस अभ्यर्थी का लिखित अनुमोदन अभिप्राप्त कर ले, तो यह समझा जाएगा कि उसने ऐसे व्यय उस अभ्यर्थी के प्राधिकार से किए हैं।

171 झ. निर्वाचन लेखा रखने में असफलता -

जो कोई किसी तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा या विधि का रखने वाले किसी नियम द्वारा इसके लिए अपेक्षित होते हुए कि वह निर्वाचन में या निर्वाचन के संबंध में किए गए व्ययों लेखा रखे, ऐसा लेखा रखने में असफल रहेगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 10: लोक सेवको के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के विषय में

172. समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना -

जो कोई किसी ऐसे लोक-सेवक द्वारा निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील से बचने के लिए फरार हो जाएगा, जो ऐसे लोकसेवक के नाते ऐसे समन, सूचना या आदेश को निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि समन या सूचना या आदेश किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए, या दस्तावेज अथवा इलेक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

173. समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना -

जो कोई किसी लोक-सेवक द्वारा जो लोक-सेवक उस नाते कोई समन, सूचना या आदेश निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील अपने पर या किसी अन्य व्यक्ति पर होना किसी प्रकार साशय निवारित करेगा,

अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश का किसी स्थान में विधिपूर्वक लगाया जाना साशय निवारित करेगा,

अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश को किसी ऐसे स्थान से, जहां कि वह विधिपूर्वक लगाया हुआ है, साशय हटाएगा,

अथवा किसी ऐसे लोक-सेवक के प्राधिकाराधीन की जाने वाली किसी उद्घोषणा का विधिपूर्वक किया जाना साशय निवारित करेगा, जो ऐसे लोक-सेवक के नाते ऐसी उद्घोषणा का किया जाना निर्दिष्ट करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए या दस्तावेज अथवा इलेक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए हो, तो वह सादा कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

174. लोक-सेवक का आदेश न मानकर गैर हाजिर रहना -

जो कोई किसी लोक-सेवक द्वारा निकाले गए उस समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा के पालन में, जिसे ऐसे लोक-सेवक के नाते निकालने के लिए वह वैध रूप से सक्षम हो, किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए,

उस स्थान या समय पर हाजिर होने का साशय लोप करेगा, या उस स्थान से, जहां हाजिर होने के लिए वह आबद्ध है, उस समय से पूर्व चला जाएगा, जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण होता, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या किसी अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए है, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

दृष्टांत  -

(क) क कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क जिला न्यायाधीश द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस जिला न्यायाधीश के समक्ष साक्षी के रूप में उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए उपसंजात होने में साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

174 क.1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैरहाज़िरी -

जो कोई दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उद्घोषणा की अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट समय पर हाजिर होने में असफल रहता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा और जहाँ उस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी घोषणा की गई है जिसमें उसे उद्घोषित अपराधी के रूप में घोषित किया गया है, वहाँ वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।

175. दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक-सेवक को पेश करने का लोप -

जो कोई किसी लोक-सेवक को, ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को पेश करने या परिदत्त करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उसको इस प्रकार पेश करने या परिदत्त करने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख किसी न्यायालय में पेश या परिदत्त की जानी हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क, जो एक जिला न्यायालय के समक्ष दस्तावेज पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध है, उसको पेश करने का साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

176. सूचना या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक-सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप -

जो कोई किसी लोक-सेवक को, ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी विषय पर कोई सूचना देने या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से और समय पर ऐसी सूचना या इत्तिला देने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से; 

अथवा यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला किसी अपराध के किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से;

अथवा यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) की धारा 565 की उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश द्वारा अपेक्षित है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

177. मिथ्या इत्तिला देना -

जो कोई किसी लोक-सेवक को ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी विषय पर इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रूप में ऐसी इत्तिला देगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि वह इत्तिला, जिसे देने के लिए, वह वैध रूप से आबद्ध हो, कोई अपराध किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

(क) क, एक भूधारक, यह जानते हुए कि उसकी भू-संपदा की सीमाओं के अन्दर एक हत्या की गई है, उस जिले के मजिस्ट्रेट को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि मृत्यु सांप के काटने के परिणामस्वरूप दुर्घटना से हुई है। क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।

(ख) क, जो ग्राम चौकीदार है, यह जानते हुए कि अनजाने लोगों का एक बड़ा गिरोह य के गृह में, जो पड़ोस के गाँव का निवासी एक धनी व्यापारी है, डकैती करने के लिए उसके गांव से होकर गया और बंगाल संहिता, [1821 के विनियम 3] की धारा 7 के खण्ड 5 के अधीन निकटतम थाने के ऑफिसर को  उपरोक्त घटना की इत्तिला शीघ्र और ठीक समय पर देने के लिए आबद्ध होते हुए पुलिस ऑफिसर को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि संदिग्धशील लोगों का एक गिरोह किसी भिन्न दिशा में स्थित एक दूरस्थ स्थान पर डकैती करने के लिए गांव से होकर गया है। यहां क, इस धारा के दूसरे भाग में परिभाषित अपराध का दोषी है।

स्पष्टीकरण - धारा 176 में और इस धारा में, “अपराध” शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता, तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458,459 और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता और “अपराधी' शब्द के अन्तर्गत कोई भी ऐसा व्यक्ति आता है, जो कोई ऐसा कार्य करने का दोषी अभिकथित हो ।

178. शपथ या प्रतिज्ञान से इन्कार करना जबकि लोक-सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए -

जो कोई सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा अपने आप को आबद्ध करने से इंकार करेगा, जबकि उससे अपने को इस प्रकार आबद्ध करने की अपेक्षा ऐसे लोक-सेवक द्वारा की जाए जो यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह व्यक्ति इस प्रकार अपने को आबद्ध करे, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

179. प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक-सेवक का उत्तर देने से इंकार करना -

जो कोई किसी लोक-सेवक से किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, ऐसे लोक-सेवक की वैध शक्तियों के प्रयोग में उस लोक-सेवक द्वारा उस विषय के बारे में उससे पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

180. कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार -

जो कोई अपने द्वारा किए गए किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक-सेवक द्वारा अपेक्षा किए जाने पर, जो उससे यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह उस कथन पर हस्ताक्षर करे, उस कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

181. शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक-सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन -

जो कोई किसी लोक-सेवक या किसी अन्य व्यक्ति से, जो ऐसे शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान देने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हो, किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा वैध रूप से आबद्ध होते हुए ऐसे लोक-सेवक या यथापूर्वोक्त अन्य व्यक्ति से उस विषय के संबंध में कोई ऐसा कथन करेगा, जो मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

182. इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक-सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे -

जो कोई किसी लोक-सेवक को कोई ऐसी इत्तिला, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, इस आशय से देगा कि वह उस लोक-सेवक को प्रेरित करे या यह संभाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको एतद्द्वारा प्रेरित करेगा कि वह लोक-सेवक -

(क) कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे जिसे वह लोक-सेवक, यदि उसे उस संबंध में, जिसके बारे में ऐसी इत्तिला दी गई है, तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता, अथवा

(ख) ऐसे लोक-सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

 दृष्टांत -

(क) क एक मजिस्ट्रेट को यह इत्तिला देता है कि य एक पुलिस ऑफिसर, जो ऐसे मजिस्ट्रेट का अधीनस्थ है, कर्तव्य पालन में उपेक्षा या अवचार का दोषी है, यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह संभाव्य है कि उस इत्तिला से वह मजिस्ट्रेट य को पदच्युत कर देगा क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क एक लोक-सेवक को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि य के पास गुप्त स्थान में विनिषिद्ध नमक है। वह इत्तिला यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह जानते हुए देता है कि यह संभाव्य है कि उस इत्तिला के परिणामस्वरूप य के परिसर की तलाशी ली जाएगी, जिससे य को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है 

(ग) एक पुलिसजन को क यह मिथ्या इत्तिला देता है कि एक विशिष्ट ग्राम के पास उस पर हमला किया गया है और उसे लूट लिया गया है। वह अपने पर हमलावर के रूप में किसी व्यक्ति का नाम नहीं लेता।

किन्तु वह जानता है कि यह संभाव्य है कि इस इत्तिला के परिणामस्वरूप पुलिस उस ग्राम में जाँच करेगी और तलाशियाँ लेगी, जिससे ग्रामवासियों या उनमें से कुछ को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

183. लोक-सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध -

जो कोई किसी लोक-सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा किसी संपत्ति के ले लिए जाने का प्रतिरोध यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि वह ऐसा लोक-सेवक है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

184. लोक-सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना -

जो कोई ऐसी किसी सम्पत्ति के विक्रय में, जो ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी लोकसेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिये प्रस्थापित की गई हो, साशय बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित, किया जाएगा।

185. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना -

जो कोई सम्पत्ति के किसी ऐसे विक्रय में, जो लोक-सेवक के नाते लोकसेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा हो रहा हो, किसी ऐसे व्यक्ति के निमित्त चाहे वह व्यक्ति वह स्वयं हो, या कोई अन्य हो, किसी संपत्ति का क्रय करेगा या किसी संपत्ति के लिए बोली लगाएगा, जिसके बारे में वह जानता हो कि वह व्यक्ति उस विक्रय में उस सम्पत्ति के क्रय करने के बारे में किसी विधिक असमर्थता के अधीन है या ऐसी सम्पत्ति के लिए यह आशय रखकर बोली लगाएगा कि ऐसी बोली लगाने से जिन बाध्यताओं के अधीन वह अपने आप को डालता है उन्हें उसे पूरा नहीं करना है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

186. लोक-सेवक के लोक-कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना -

जो कोई किसी लोक-सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में स्वेच्छया बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 186 के तहत अपराध संज्ञेय है | [देखें अधिसूचना क्रमांक 33205- एफ. क्र. 6-59-74-t-XX1 दिनांक 19-11-1975। म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित।]

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187. लोक-सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो -

जो कोई किसी लोक-सेवक को, उसके लोक कर्तव्य के निष्पादन में सहायता देने या पहुँचाने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसी सहायता देने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;

और यदि ऐसी सहायता की मांग उससे ऐसे लोक-सेवक द्वारा, जो ऐसी मांग करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, न्यायालय द्वारा वैध रूप से निकाली गई किसी आदेशिका के निष्पादन के, या अपराध के किए जाने का निवारण करने के, या बल्वे या दंगे को दबाने के, या ऐसे व्यक्ति को, जिस पर अपराध का आरोप है या जो अपराध का या विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने का दोषी है, पकड़ने के प्रयोजनों से की जाए, तो वह सादा कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

188. लोक-सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा -

जो कोई यह जानते हुए कि वह ऐसे लोक-सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है, कोई कार्य करने से विरत रहने के लिए या अपने कब्जे में की, या अपने प्रबन्धाधीन, किसी सम्पत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निदेश की अवज्ञा करेगा,

यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियोजित किन्हीं व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम,कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से,दण्डित किया जाएगा,

और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य, या क्षेम को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, या बल्वा या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसके अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय अपहानी उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से अपहानी होना संभाव्य है। यह पर्याप्त है कि जिस आदेश की वह अवज्ञा करता है उस आदेश का उसे ज्ञान है, और यह भी ज्ञान है कि उसके अवज्ञा करने से अपहानी उत्पन्न होती या होनी संभाव्य है।

दृष्टांत -

एक आदेश, जिसमें यह निदेश है कि अमुक धार्मिक जुलूस अमुक सड़क से होकर न निकले, ऐसे लोक-सेवक द्वारा प्रख्यापित किया जाता है, जो ऐसे आदेश प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है। क जानते हुए उस आदेश की अवज्ञा करता है, और तद्वारा बल्वे का संकट कारित करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 188 के तहत अपराध अजमानतीय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 33207-एफ. क्र. 6-59-74-बी- XXI दिनांक 19-11-1975, म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित ।]

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189. लोक-सेवक को क्षति करने की धमकी -

जो कोई किसी लोक-सेवक को या ऐसे किसी व्यक्ति को जिससे उस लोक-सेवक के हितबद्ध होने का उसे विश्वास हो, इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि उस लोक-सेवक को उत्प्रेरित किया जाए कि वह ऐसे लोक-सेवक के कृत्यों के प्रयोग से संसक्त कोई कार्य करे, या करने से प्रविरत रहे, या करने में विलम्ब करे, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 189 के तहत अपराध संज्ञेय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 33205-एफ. क्र. 6-59-74-B-XXI दिनांक 19-11-1975. म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3- 1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित] |

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190. लोक-सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी -

जो कोई किसी व्यक्ति को इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा  कि वह उस व्यक्ति को उत्प्रेरित करे कि वह किसी क्षति से संरक्षा के लिए कोई वैध आवेदन किसी ऐसे लोक-सेवक से करने से विरत रहे या प्रतिविरत रहे जो ऐसे लोक-सेवक के नाते ऐसी संरक्षा करने या कराने के लिए वैध रूप से सशक्त हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 190 के तहत अपराध संज्ञेय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 33205-एफ. क्र. 6-59-74-B-XXI दिनांक 19-11-1975। म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित ।]

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अध्याय 11: मिथ्या साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराधो के विषय में 

191. मिथ्या साक्ष्य देना -

जो कोई शपथ द्वारा या विधि के किसी अभिव्यक्त उपबंध द्वारा सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, या किसी विषय पर घोषणा करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसा कोई कथन करेगा, जो मिथ्या है, और या तो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह मिथ्या साक्ष्य देता है, यह कहा जाता है। 

स्पष्टीकरण 1- कोई कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है।

स्पष्टीकरण 2 - अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में मिथ्या कथन इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है और कोई व्यक्ति यह कहने से कि उसे उस बात का विश्वास है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है तथा यह कहने से कि वह उस बात को जानता है जिस बात को वह नहीं जानता, मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी हो सकेगा।

दृष्टांत -

(क) क एक न्यायसंगत दावे के समर्थन में, जो य के विरुद्ध ख के एक हजार रुपए के लिए है, विचारण के समय शपथ पर मिथ्या कथन करता है कि उसने य को ख के दावे का न्यायसंगत होना स्वीकार करते हुए सुना था। क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।

(ख) क सत्य कथन करने के लिए शपथ द्वारा आबद्ध होते हुए कथन करता है कि वह अमुक हस्ताक्षर के संबंध में यह विश्वास करता है कि वह य का हस्तलेख है, जबकि वह उसके य का हस्तलेख होने का विश्वास नहीं करता है। यहां क वह कथन करता है, जिसका मिथ्या होना वह जानता है, और इसलिए मिथ्या साक्ष्य देता है।

(ग) य के हस्तलेख के साधारण स्वरूप को जानते हुए क यह कथन करता है कि अमुक हस्ताक्षर के संबंध में उसका यह विश्वास है कि वह य का हस्तलेख है; क उसके ऐसा होने का विश्वास सद्भावपूर्वक करता है। यहां, क का कथन केवल अपने विश्वास के संबंध में है, और उसके विश्वास के संबंध में सत्य है, और इसलिए यद्यपि वह हस्ताक्षर य का हस्तलेख न भी हो, क ने मिथ्या साक्ष्य नहीं दिया है।

(घ) क शपथ द्वारा सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए यह कथन करता है कि वह यह जानता है कि ये एक विशिष्ट दिन एक विशिष्ट स्थान में था, जबकि वह उस विषय में कुछ भी नहीं जानता। क मिथ्या साक्ष्य देता है, चाहे बतलाए हुए दिन य उस स्थान पर रहा हो या नहीं।

(ङ) क एक दुभाषिया या अनुवादक किसी कथन या दस्तावेज के, जिसका यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद करने के लिए वह शपथ द्वारा आबद्ध है, ऐसे भाषांतरण या अनुवाद को, जो यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद नहीं है और जिसके यथार्थ होने का वह विश्वास नहीं करता, यथार्थ भाषांतरण या अनुवाद के रूप में देता या प्रमाणित करता है। क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।

192. मिथ्या साक्ष्य गढ़ना -

जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्व में लाता है, या किसी पुस्तक या अभिलेख में या इलेक्ट्रानिक अभिलेख में कोई मिथ्या, प्रविष्टि करता है, या मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट करने वाली कोई दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख रचता है कि ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में, या ऐसी किसी कार्यवाही में, जो लोक-सेवक के समक्ष उसके नाते या मध्यस्थ के समक्ष विधि द्वारा की जाती है, साक्ष्य में दर्शित हो और कि इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ति, जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है, ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्विक किसी बात के संबंध में गलत राय बना, वह मिथ्या साक्ष्य गढ़ता है, यह कहा जाता है।

दृष्टांत -

(क) क एक बक्स में, जो य का है, इस आशय से आभूषण रखता है कि वे उस बक्स में पाए जाए और इस परिस्थिति से य चोरी के लिए दोषसिद्धि ठहराया जाए ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।

(ख) क अपनी दुकान की बही में एक मिथ्या प्रविष्टि इस प्रयोजन से करता है कि वह न्यायालय में सम्पोषक साक्ष्य के रूप में काम में लाई जाए क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।

(ग) य को एक आपराधिक षड़यंत्र के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाने के आशय से क एक पत्र य के हस्तलेख की अनुकृति करके लिखता है, जिससे यह तात्पर्यित है कि य ने उसे ऐसे आपराधिक षड़यंत्र के सह अपराधी को संबोधित किया है और उस पत्र को ऐसे स्थान पर रखा देता है जिसके संबंध में वह यह जानता है कि पुलिस ऑफिसर संभाव्यतः उस स्थान की तलाशी लेंगे क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।

193. मिथ्या साक्ष्य के लिए दण्ड -

जो कोई साशय किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में मिथ्या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगाऔर जो कोई किसी अन्य मामले में साशय मिथ्या देगा या गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1 - सेना न्यायालय  के समक्ष विचारणीय न्यायिक कार्यवाही है।

स्पष्टीकरण 2 - न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारंभ होने के पूर्व जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है, वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।

दृष्टांत -

यह अभिनिश्चय करने के प्रयोजन से कि क्या य को विचारण के लिए सुपुर्द किया जाना चाहिए, मजिस्ट्रेट के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है, जिसका वह मिथ्या होना जानता है। यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है। 

स्पष्टीकरण 3 - न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।

दृष्टांत -

संबंधित स्थान पर जाकर भूमि की सीमाओं को अभिनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा प्रतिनियुक्त ऑफिसर के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है जिसका मिथ्या होना वह जानता है। यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।

194. मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना -

जो कोई भारत में तत्समय प्रवृत्त विधि के द्वारा मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध कराने के आशय से या सम्भवतः तद्द्वारा दोषसिद्ध कराएगा, यह जानते हुए मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि निर्दोष व्यक्ति एतद्द्वारा दोषसिद्ध किया जाए और उसे फांसी दी जाए - और यदि किसी निर्दोष व्यक्ति को ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषसिद्ध किया जाए, और उसे फांसी दे दी जाए, तो उस व्यक्ति को, जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देगा, या तो मृत्युदण्ड या एतस्मिन् पूर्व वर्णित दण्ड दिया जाएगा।

195. आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना -

जो कोई इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए कि एतद्द्वारा वह किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए, जो भारत में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा मृत्यु से दण्डनीय न हो किन्तु आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय हो, दोषसिद्ध कराए, मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह वैसे ही दण्डित किया जाएगा जैसे वह व्यक्ति दण्डनीय होता जो उस अपराध के लिए दोषसिद्ध होता।

दृष्टांत -

क न्यायालय के समक्ष इस आशय से मिथ्या साक्ष्य देता है कि एतद्द्वारा य डकैती के लिए दोषसिद्ध किया जाए। डकैती का दण्ड जुर्माना सहित या रहित, आजीवन कारावास या ऐसा कठिन कारावास है, जो दस वर्ष तक की अवधि का हो सकता है। क इसलिए जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय है।

195 क. किसी व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए धमकाना -

जो कोई, किसी दूसरे व्यक्ति को, उसके शरीर, ख्याति या संपत्ति को अथवा ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिसमें वह व्यक्ति हितबद्ध है, यह कारित करने के आशय से कोई क्षति करने की धमकी देता है, कि वह व्यक्ति मिथ्या साक्ष्य दे तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगाऔर

यदि कोई निर्दोष व्यक्ति ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप मृत्यु से या सात वर्ष से अधिक के कारावास से दोषसिद्ध और दंडादिष्ट किया जाता है तो ऐसा व्यक्ति, जो धमकी देता है, उसी दंड से दंडित किया जाएगा और उसी रीति में और उसी सीमा तक दंडादिष्ट किया जाएगा जैसे निर्दोष व्यक्ति दंडित और दंडादिष्ट किया गया है।

196. उस साक्ष्य को काम में लाना जिसका मिथ्या होना ज्ञात है -

जो कोई किसी साक्ष्य को, जिसका मिथ्या होना या गढ़ा होना वह जानता है, सच्चे या असली साक्ष्य के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो या गढ़ा हो।

197. मिथ्या प्रमाण पत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना -

जो कोई ऐसा प्रमाण पत्र, जिसका दिया जाना या हस्ताक्षरित किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित हो, या जो किसी ऐसे तथ्य से संबंधित हो जिसका वैसा प्रमाण-पत्र विधि द्वारा साक्ष्य में ग्राह्य हो, यह जानते हुए या विश्वास करते हुए कि वह किसी तात्विक बात के बारे में मिथ्या है, वैसा प्रमाण-पत्र जारी करेगा या हस्ताक्षरित करेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।

198. प्रमाण पत्र जिसका मिथ्या होना ज्ञात है सच्चे के रूप में काम में लाना -

जो कोई किसी ऐसे प्रमाण पत्र को यह जानते हुए कि वह किसी तात्विक बात के संबंध में मिथ्या है, सच्चे प्रमाण पत्र के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।

199. ऐसी घोषणा में, जो साक्ष्य के रूप में विधि द्वारा ली जा सके, किया गया मिथ्या कथन -

जो कोई अपने द्वारा की गई या हस्ताक्षरित किसी घोषणा में, जिसको किसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में लेने के लिए कोई न्यायालय, या कोई लोक-सेवक या अन्य व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध या प्राधिकृत हो कोई ऐसा कथन करेगा, जो किसी ऐसी बात के संबंध में, जो उस उद्देश्य के लिए तात्विक हो जिसके लिए वह घोषणा की जाए या उपयोग में लाई जाए, मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।

200. ऐसी घोषणा का मिथ्या होना जानते हुए सच्ची के रूप में काम में लाना –

जो कोई किसी ऐसी घोषणा को, यह जानते हुए कि वह किसी तात्विक बात के संबंध में मिथ्या है, भ्रष्टतापूर्वक सच्ची के रूप में उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो। GO toTOP

स्पष्टीकरण - कोई घोषणा, जो केवल किसी अप्ररूपिता के आधार पर अग्राह्य है, धारा 199 और धारा 200 के अर्थ के अन्तर्गत घोषणा है।

201. अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना -

जो कोई यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोप इस आशय से कारित करेगा कि अपराधी को वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से संबंधित कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है।

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध जिसके किए जाने का उसे ज्ञान या विश्वास है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

यदि आजीवन कारावास से दण्डनीय हो - और यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या ऐसे कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि दस वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो - और यदि वह अपराध ऐसे कारावास से उतनी अवधि के लिए दण्डनीय हो, जो दस वर्ष तक की न हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से उतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क यह जानते हुए कि ख ने य की हत्या की है ख को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से मृत शरीर को छिपाने में ख की सहायता करता है। क सात वर्ष के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से, और जुर्माने से भी दण्डनीय है।

202. इत्तिला देने के लिए आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की इत्तिला देने का साशय लोप -

जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के बारे में कोई इत्तिला जिसे देने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, देने का साशय लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

203. किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना -

जो कोई यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए, कि कोई अपराध किया गया है उस अपराध के बारे में कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित या जाएगा। 

स्पष्टीकरण - धारा 201 और 202 में और इस धारा में “अपराध' शब्द के अन्तर्गत भारत के बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई भी ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458,459 तथा 460 में से किसी भी धारा के अधीन दण्डनीय होता । 

204. साक्ष्य के रूप में किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख का पेश किया जाना निवारित करने के लिए उसको नष्ट करना -

जो कोई किसी ऐसे दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेखों को छिपाएगा या नष्ट करेगा जिसे किसी न्यायालय में या ऐसी कार्यवाही में, जो किसी लोक-सेवक के समक्ष उसकी वैसी हैसियत में विधिपूर्वक की गई है, साक्ष्य के रूप में पेश करने के लिए उसे विधिपूर्वक विवश किया जा सके, या पूर्वोक्त न्यायालय या लोक-सेवक के समक्ष साक्ष्य के रूप में पेश किए जाने या उपयोग में लाए जाने से निवारित करने के आशय से, या उस प्रयोजन के लिए उस दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख, को पेश करने को उसे विधिपूर्वक समनित या अपेक्षित किए जाने के पश्चात् ऐसी संपूर्ण दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को, या उसके किसी भाग को मिटाएगा, या ऐसा बनाएगा, जो पढ़ा न जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

205. वाद या अभियोजन में किसी कार्य या कार्यवाही के प्रयोजन से मिथ्या प्रतिरूपण -

जो कोई किसी दूसरे का मिथ्या प्रतिरूपण करेगा और ऐसे धरे हुए रूप में किसी वाद या आपराधिक अभियोजन में कोई स्वीकृति या कथन करेगा, या दावे की संस्वीकृति करेगा, या कोई आदेशिका निकलवाएगा या जमानतदार या प्रतिभू बनेगा, या कोई भी अन्य कार्य करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के करावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

206. संपत्ति को समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए उसे कपटपूर्वक हटाना या छिपाना -

जो कोई किसी संपत्ति को, या उसमें के किसी हित को इस आशय से कपटपूर्वक हटाएगा, छिपाएगा या किसी व्यक्ति को अन्तरित या परिदत्त करेगा, कि तदुद्वारा वह उस संपत्ति या उसमें के किसी हित का ऐसे दण्डादेश के अधीन जो न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा सुनाया जा चुका है या जिसके बारे में वह जानता है कि न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने के चुकाने के लिए लिया जाना या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद  में न्यायालय द्वारा दिया गया हो या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

207. संपत्ति पर उसके समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए कपटपूर्वक दावा -

जो कोई किसी संपत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुए कि ऐसी संपत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहीत करेगा, प्राप्त करेगा, या उस पर दावा करेगा अथवा किसी संपत्ति या उसमें किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में इस आशय से प्रवंचना करेगा कि तद्द्वारा वह उस संपत्ति या उसमें के हित का ऐसे दण्डादेश के अधीन, जो न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा सुनाया जा चुका है या, जिसके बारे में वह जानता है कि न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने के चुकाने के लिये लिया जाना, या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया हो, या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा उसका दिया जाना संभाव्य है, लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

208. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य न हो कपटपूर्वक डिक्री होने देना सहन करना -

जो कोई किसी व्यक्ति के बाद में ऐसी राशि के लिए, जो ऐसे व्यक्ति को शोध्य न हो या शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी ऐसी संपत्ति या संपत्ति में के हित के लिए, जिसका ऐसा व्यक्ति हकदार न हो, अपने विरुद्ध कोई डिक्री या आदेश कपटपूर्वक पारित करवाएगा, या पारित किया जाना सहन करेगा अथवा किसी डिक्री या आदेश को उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या किसी ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, अपने विरुद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या किया जाना सहन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

य के विरुद्ध एक वाद क संस्थित करता है। य यह संभाव्य जानते हुए कि क उसके विरुद्ध डिक्री अभिप्राप्त कर लेगा, ख के वाद में, जिसका उसके विरुद्ध कोई न्यायसंगत दावा नहीं है, अधिक रकम के लिए अपने विरुद्ध निर्णय किया जाना इसलिए कपटपूर्वक सहन करता है कि ख स्वयं अपने लिए या य के फायदे के लिए य की संपत्ति के किसी ऐसे विक्रय के आगमों का अंश ग्रहण करे, जो क की डिक्री के अधीन किया जाए। य ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।

209. बेईमानी से न्यायालय में मिथ्या दावा करना -

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से या किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ कारित करने के आशय से न्यायालय में कोई ऐसा दावा करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

210. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य नहीं है कपटपूर्वक डिक्री अभिप्राप्त करना -

जो कोई किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी राशि के लिए, जो शोध्य न हो, या जो शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी संपत्ति या संपत्ति में के हित के लिए, जिसका वह हकदार न हो, डिक्री या आदेश कपटपूर्वक अभिप्राप्त कर लेगा या किसी डिक्री या आदेश को, उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, किसी व्यक्ति के विरुद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या अपने नाम में कपटपूर्वक ऐसा कोई कार्य किया जाना सहन करेगा या किए जाने की अनुज्ञा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

211. क्षति करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप -

जो कोई किसी व्यक्ति को यह जानते हुए कि उस व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही या आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है क्षति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई दाण्डिक कार्यवाही संस्थित करेगा या करवाएगा या उस व्यक्ति पर मिथ्या आरोप लगाएगा कि उसने अपराध किया है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; तथा यदि ऐसा दाण्डिक कार्यवाही मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय अपराध के मिथ्या आरोप पर संस्थित की जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

छत्तीसगढ़ - धारा 211 में निम्मलिखित परन्तुक अंत:स्थापित किया जाए, अर्थात्‌ :-

परन्तु यह कि, यदि ऐसी दांडिक कार्यवाही धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 3545, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376च, धारा 509, धारा 509क या धारा 509ख से दंडनीय अपराध के मिथ्या आरोप पर संस्थित की जाए, तो दोनों में से किसी भांति के कारावास से जो तीन वर्ष से कम का नहीं होगा परन्तु जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा और जुमनि से भी दंडनीय होगा।''

देखे दण्ड विधि (छ.ग. संशोधन) अधिनियम, 2013 (क्र. 25 सन्‌ 2015), धारा 2 (दिनांक 21-7-2015 से प्रभावशील) । छ.ग. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 21-7-2015 पृष्ठ 777-778(9) पर प्रकाशित ।]

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212. अपराधी को संश्रय देना -

जबकि कोई अपराध किया जा चुका हो, तब जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके बारे में वह जानता हो या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह अपराधी है, वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा या छिपाएगा; 

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; |

यदि अपराध आजीवन कारावास से या कारावास से दण्डनीय हो - और यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक के कारावास से, दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

और यदि वह अपराध एक वर्ष तक, न कि दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उसे अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। इस धारा में “अपराध' के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो निम्नलिखित धारा अर्थात्, 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436,449, 450, 457,458,459 और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता और हर एक ऐसा कार्य इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति उसे भारत में करने का दोषी था।

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है जिसमें अपराधी को संश्रय देना या छिपाना उसके पति या पत्नी द्वारा हो।

दृष्टांत -

क यह जानते हुए कि ख ने डकैती की है, ख को वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए जानते हुए छिपा लेता है। यहां ख आजीवन कारावास से दण्डनीय है, क तीन वर्ष से अनधिक अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय है और जुर्माने से भी दण्डनीय है।

213. अपराधी को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए उपहार आदि लेना -

जो कोई अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई परितोषण या अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए किसी संपत्ति का प्रत्यास्थापन, किसी अपराध के छिपाने के लिए या किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए, या किसी व्यक्ति के विरुद्ध वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न करने के लिए, प्रतिफल प्रतिगृहीत करेगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करेगा या प्रतिगृहीत करने के लिए करार करेगा,

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो - तथा यदि वह अपराध आजीवन कारावास या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो तो वह दोनों में से किसी भांति कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

तथा यदि वह अपराध दस वर्ष से कम तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से इतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई-तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

214. अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरूप उपहार की प्रस्थापना या संपत्ति का प्रत्यावर्तन -

जो कोई किसी व्यक्ति को कोई अपराध उस व्यक्ति द्वारा छिपाए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित किए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न की जाने के लिए प्रतिफलस्वरूप कोई परितोषण देगा या दिलाएगा या देने या दिलाने की प्रस्थापना या करार करेगा, या कोई संपत्ति प्रत्यावर्तित करेगा या कराएगा।

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो - तथा यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

तथा यदि वह अपराध दस वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से इतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अपवाद - धारा 213 और धारा 214 के उपबंधों का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें कि अपराध का शमन विधिपूर्वक किया जा सकता है।

215. चोरी की संपत्ति इत्यादि के वापस लेने में सहायता करने के लिए उपहार लेना -

जो कोई किसी व्यक्ति की किसी ऐसी जंगम संपत्ति के वापस करा लेने में, जिससे इस संहिता के अधीन दण्डनीय किसी अपराध द्वारा वह व्यक्ति वंचित कर दिया गया हो, सहायता करने के बहाने या सहायता करने की बाबत कोई परितोषण लेगा या लेने का करार करेगा या लेने को सहमत होगा, वह, जब तक कि अपनी शक्ति में के सब साधनों को अपराधी को पकड़वाने के लिए और अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के लिए उपयोग में न लाए, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

216. ऐसे अपराधी को संश्रय देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है -

जब किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध या आरोपित व्यक्ति उस अपराध के लिए वैध अभिरक्षा में होते हुए ऐसी अभिरक्षा से निकल भागे; 

अथवा जब कभी कोई लोक-सेवक ऐसे लोक-सेवक की विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को पकड़ने का आदेश दे, तब जो कोई ऐसे निकल भागने को या पकड़े जाने के आदेश को जानते हुए, उस व्यक्ति को पकड़ा जाना निवारित करने के आशय से उसे संश्रय देगा या छिपाएगा, वह निम्नलिखित प्रकार से दण्डित किया जाएगा, अर्थात् -

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध, जिसके लिए वह व्यक्ति अभिरक्षा में था या पकड़े जाने के लिए आदेशित है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा;

तथा यदि वह अपराध ऐसे कारावास से दण्डनीय हो, जो एक वर्ष तक का, न कि दस वर्ष तक का हो सकता है, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

इस धारा में अपराध के अन्तर्गत कोई भी ऐसा कार्य या लोप भी आता है, जिसका कोई व्यक्ति भारत से बाहर दोषी होना अभिकथित हो, जो यदि वह भारत में उसका दोषी होता, तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता और  जिसके लिए वह प्रत्यर्पण से संबंधित किसी विधि के अधीन  या अन्यथा भारत में पकड़े जाने या अभिरक्षा में निरुद्ध किए जाने के दायित्व के अधीन हो, और हर ऐसा कार्य या लोप इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति भारत में उसका दोषी हुआ था।

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना पकड़े जाने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी द्वारा हो।

216 क. लुटेरों या डाकुओं को संश्रय देने के लिए शास्ति -

जो कोई यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई व्यक्ति लूट या डकैती हाल ही में करने वाले हैं या हाल ही में लूट या डकैती कर चुके हैं, उनको या उनमें से किसी को, ऐसी लूट या डकैती का किया जाना सुकर बनाने के, या उनको या उनमें से किसी को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तत्वहीन है कि लूट या डकैती भारत में करनी आशयित है या की जा चुकी है, या भारत से बाहर। 

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार, ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना अपराधी के पति या पत्नी द्वारा हो.

216 ख. धारा 212 और धारा 216क में “संश्रय” की परिभाषा -

भारतीय दण्ड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1942 (1942 का 8) की धारा 3 द्वारा निरसित

217. लोक-सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को दण्ड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए विधि के ऐसे किसी निदेश की, जो उस संबंध में हो कि उससे ऐसे लोक-सेवक के नाते किस ढंग का आचरण करना चाहिए, जानते हुए अवज्ञा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए अथवा उतने दण्ड की अपेक्षा, जिससे वह दण्डनीय है, तद्द्वारा कम दण्ड दिलवाएगा यह संभाव्य जानते हुए अथवा किसी संपत्ति को ऐसे समपहरण या किसी भार से, जिसके लिए वह संपत्ति विधि के द्वारा दायित्व के अधीन है बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

218. किसी व्यक्ति को दण्ड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से लोकसेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते कोई अभिलेख या अन्य लेख तैयार करने का भार रखते हुए, उस अभिलेख या लेख की इस प्रकार से रचना, जिसे वह जानता है कि अशुद्ध है लोक को या किसी व्यक्ति को हानि या क्षति कारित करने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा  कारित करेगा यह जानते हुए अथवा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए अथवा किसी संपत्ति के ऐसे समपहरण या अन्य भार से, जिसके दायित्व के अधीन वह संपत्ति विधि के अनुसार है, बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

219. न्यायिक कार्यवाही में विधि के प्रतिकूल रिपोर्ट आदि का लोक-सेवक द्वारा भ्रष्टतापूर्वक किया जाना -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए, न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में कोई रिपोर्ट, आदेश, अधिमत या विनिश्चय जिसका विधि के प्रतिकूल होना वह जानता हो, भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक देगा, या सुनाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

220. प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी -

जो कोई किसी ऐसे पद पर होते हुए, जिससे व्यक्तियों को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्दगी करने का, या व्यक्तियों को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार हो किसी व्यक्ति को उस प्राधिकार के प्रयोग में यह जानते हुए भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करेगा या परिरोध में रखेगा कि ऐसा करने में वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, वह दोनों में से किसी के भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी. या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

221. पकड़ने के लिए आबद्ध लोक-सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप -

जो कोई ऐसा लोकसेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए लोक-सेवक के नाते वैधरूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का साशय लोप करेगा या ऐसे परिरोध में से ऐसे व्यक्ति का निकल भागना साशय सहन करेगा या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में या निकल भागने के लिए प्रयत्न करने में साशय मदद करेगा, वह निम्नलिखित रूप से दण्डित किया जाएगा, अर्थात् :-

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो पकड़ा जाना चाहिए था वह दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से।

222. दण्डादेश के अधीन या विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए व्यक्ति को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक-सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप -

जो कोई ऐसा लोक-सेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए न्यायालय के दण्डादेश के अधीन या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक-सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का साशय लोप करेगा, या ऐसे परिरोध में से साशय ऐसे व्यक्ति का निकल भागना सहन करेगा या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में या निकल भागने के लिए प्रयत्न करने में साशय मदद करेगा, वह निम्नलिखित रूप से दण्डित किया जाएगा, अर्थात् :-

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह मृत्यु दण्डादेश के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी; अथवा 

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह न्यायालय के दण्डादेश से, या ऐसे दण्डादेश से लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित, दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा  

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह न्यायालय के दण्डादेश से दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो या यदि वह व्यक्ति अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किया गया हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से।

223. लोक-सेवक द्वारा उपेक्षा से परिरोध या अभिरक्षा में से निकल भागना सहन करना -

जो कोई ऐसा लोक-सेवक होते हुए, जो अपराध के लिए आरोपित या दोषसिद्ध या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक-सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो, ऐसे व्यक्ति का परिरोध में से निकल भागना उपेक्षा से सहन करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

224. किसी व्यक्ति द्वारा विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा -

जो कोई किसी ऐसे अपराध के लिए, जिसका उस पर आरोप हो, या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया हो, विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा, या अवैध बाधा डालेगा, या किसी अभिरक्षा से, जिसमें वह किसी ऐसे अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागेगा, या निकल भागने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा में उपबंधित दण्ड उस दण्ड के अतिरिक्त है जिससे वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाना हो, उस अपराध के लिए दण्डनीय था, जिसका उस पर आरोप लगाया गया था या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया था।

225. किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा -

जो कोई किसी अपराध के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा, या किसी दूसरे व्यक्ति को किसी ऐसी अभिरक्षा से, जिसमें वह व्यक्ति किसी अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, साशय छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा;

अथवा यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना, हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, आजीवन कारावास, से या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से, दण्डनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

अथवा यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु दण्ड से दण्डनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो तो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

अथवा यदि वह व्यक्ति जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, किसी न्यायालय के दण्डादेश के अधीन, या वह ऐसे दण्डादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

अथवा यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु दण्डादेश के अधीन हो, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, इतनी अवधि के लिए जो दस वर्ष से अनधिक है, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

225 क, उन दशाओं में जिनके लिए अन्यथा उपबंध नहीं है लोक-सेवक द्वारा पकड़ने का लोप या निकल भागना सहन करना -

जो कोई ऐसा लोक-सेवक होते हुए जो किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए लोक-सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो उस व्यक्ति को किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 221, धारा 222 या धारा 223 अथवा किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में कोई उपबंध नहीं है, पकड़ने का लोप करेगा या परिरोध में से निकल भागना सहन करेगा -

(क) यदि वह ऐसा साशय करेगा, तो वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, तथा

(ख) यदि वह ऐसा उपेक्षापूर्वक करेगा तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

225 ख. अन्यथा अनुपबंधित दशाओं में विधिपूर्वक पकड़ने में प्रतिरोध या बाधा या निकल भागना या छुड़ाना -

जो कोई स्वयं अपने या किसी अन्य व्यक्ति के विधिपूर्वक पकड़े जाने में साशय कोई प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा या किसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागेगा या निकल भागने का प्रयत्न करेगा या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह व्यक्ति विधिपूर्वक निरुद्ध हो, छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 224 या धारा 225 या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में उपबंध नहीं है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

226. निर्वासन से विधिविरुद्ध वापसी -

दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1 जनवरी, 1956) से निरसित ।

227. दण्ड के परिहार की शर्त का अतिक्रमण -

जो कोई दण्ड का सशर्त परिहार प्रतिगृहीत कर लेने पर किसी शर्त का जिस पर ऐसा परिहार दिया गया था, जानते हुए अतिक्रमण करेगा, यदि वह उस दण्ड का, जिसके लिए वह मूलतः दण्डादिष्ट किया गया था, कोई भाग पहले ही न भोग चुका हो, तो वह दण्ड से और यदि वह उस दण्ड का कोई भाग भोग चुका हो, तो वह उस दण्ड के उतने भाग से, जितने को वह पहले ही न भोग चुका हो, दण्डित किया जाएगा।

228. न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए, लोक-सेवक का साशय अपमान या उसके कार्य में विघ्न -

जो कोई किसी लोक-सेवक का उस समय, जबकि ऐसा लोक-सेवक न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में बैठा हुआ हो, साशय कोई अपमान करेगा या उसके कार्य में कोई विघ्न डालेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 228 के तहत अपराध संज्ञेय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 3320 5-एफ. क्र. 6-59-74-B-XXI दिनांक 19-11-1975। म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित]

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228 क, कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण -

(1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की (जिसे धारा में इसके पश्चात् पीड़ित व्यक्ति कहा गया है) पहचान हो सकती है, जिसके विरुद्ध धारा 376, " धारा 376क, धारा 376 कख, धारा 376 ख, धारा 376 ग, धारा 376 घ, धारा 376 घक, धारा 376 घख" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित] या धारा 376ङ के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

(2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर, यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन -

(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है, द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; या

(ख) पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या

(ग) जहां पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहां, पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है:

परन्तु निकट संबंधी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से, चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा। 

स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है।

(3) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में कोई बात, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध की कोटि में नहीं आता है।

229. जूरी सदस्य या असेसर का प्रतिरूपण -

जो कोई किसी मामले में प्रतिरूपण द्वारा या अन्यथा अपने को यह जानते हुए जूरी सदस्य या असेसर के रूप में तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ साशय कराएगा या होने देगा जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ होने का विधि द्वारा हकदार नहीं है या यह जानते हुए कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ विधि के प्रतिकूल हुआ है ऐसे जूरी में या ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छया सेवा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

229 क. जमानत या बंध पत्र पर छोड़े गए व्यक्ति द्वारा न्यायालय में हाजिर होने में असफलता -

जो कोई, किसी अपराध से आरोपित किए जाने पर और जमानत पर या अपने बन्धपत्र पर छोड़ दिए जाने पर जमानत या बन्धपत्र के निबन्धनों के अनुसार न्यायालय में पर्याप्त कारणों के बिना हाजिर होने में (वह साबित करने का भार उस पर होगा) असफल रहेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के अधीन दण्ड -

(क) उस दण्ड के अतिरिक्त है, जिसके लिए अपराधी उस अपराध के लिए जिसके लिए उसे आरोपित किया गया है, दोषसिद्धि पर दायी होगा; और

(ख) न्यायालय की बन्धपत्र के समपहरण का आदेश करने की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला नहीं है।

अध्याय 12

सिक्को और सरकारी स्टाम्पो से सम्बंधित अपराधो के विषय में

230. 'सिक्का' की परिभाषा -

सिक्का, तत्समय धन के रूप में उपयोग में लाई जा रही और इस प्रकार उपयोग में लाए जाने के लिए किसी राज्य या संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न शक्ति के प्राधिकार द्वारा, स्टांपित और प्रचालित धातु है।

भारतीय सिक्का - भारतीय सिक्का धन के रूप में उपयोग में लाए जाने के लिए भारत सरकार के प्राधिकार द्वारा स्टांपित और प्रचालित धातु है; और इस प्रकार स्टांपित और प्रचालित धातु इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए भारतीय सिक्का बनी रहेगी, यद्यपि धन के रूप में उसका उपयोग में लाया जाना बंद हो गया हो।

दृष्टांत -

(क) कौड़ियाँ सिक्के नहीं हैं।

(ख) अस्टांपित तांबे के टुकड़े, यद्यपि धन के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं सिक्के नहीं हैं। 

(ग) पदक सिक्के नहीं हैं, क्योंकि वे धन के रूप में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित नहीं हैं। 

(घ) जिस सिक्के का नाम कंपनी रुपया है, वह भारतीय सिक्का है।

(ङ) “फरुखाबाद रुपया” जो धन के रूप में भारत सरकार के प्राधिकार के अधीन पहले कभी उपयोग में लाया जाता था, भारतीय सिक्का है, यद्यपि वह अब इस प्रकार उपयोग में नहीं लाया जाता है।

231. सिक्के का कूटकरण -

जो कोई सिक्के का कूटकरण करेगा या जानते हुए सिक्के के कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - जो व्यक्ति असली सिक्के को किसी भिन्न सिक्के के जैसा दिखलाई देने वाला इस आशय से बनाता है कि प्रवंचना की जाए या यह संभाव्य जानते हुए बनाता है कि एतद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह यह अपराध करता है।

232. भारतीय सिक्के का कूटकरण -

जो कोई भारतीय सिक्के का कूटकरण करेगा या जानते हुए भारतीय सिक्के के कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

233. सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना -

जो कोई किसी डाई या उपकरण को सिक्के के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन, से या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, बनाएगा या सुधारेगा या बनाने या सुधारने की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, अथवा खरीदेगा, बेचेगा या व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

234. भारतीय सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना -

जो कोई किसी डाई या उपकरण को भारतीय सिक्के के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह भारतीय सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, बनाएगा या सुधारेगा, या बनाने या सुधारने की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा अथवा खरीदेगा, बेचेगा या व्ययनित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

235. सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री उपयोग में लाने के प्रयोजन से उसे कब्जे में रखना -

जो कोई किसी उपकरण या सामग्री को सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह उस प्रयोजन के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

यदि भारतीय सिक्का हो - और यदि कूटकरण किया जाने वाला सिक्का भारतीय सिक्का हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

236. भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का भारत में दुष्प्रेरण -

जो कोई भारत में होते हुए भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का दुष्प्रेरण करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे सिक्के के कूटकरण का दुष्प्रेरण भारत में किया हो।

237. कूटकृत सिक्के का आयात या निर्यात -

जो कोई किसी कूटकृत सिक्के का यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह कूटकृत है, भारत में आयात करेगा या भारत से निर्यात करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

238. भारतीय सिक्के की कूटकृतियों का आयात या निर्यात -

जो कोई किसी कूटकृत सिक्के को, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह भारतीय सिक्के की कूटकृति है, भारत में आयात करेगा या भारत से निर्यात करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा

239. सिक्के का परिदान जिसका कूटकृत होना कब्जे में आने के समय ज्ञात था -

जो कोई अपने पास कोई ऐसा कूटकृत सिक्का होते हुए जिसे वह उस समय, जब वह उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह कूटकृत है, कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, उसे किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

240. उस भारतीय सिक्के का परिदान जिसका कूटकृत होना कब्जे में आने के समय ज्ञात था -

जो कोई अपने पास कोई ऐसा कूटकृत सिक्का होते हुए, जो भारतीय सिक्के की कूटकृति हो और जिसे वह उस समय, जब वह उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह भारतीय सिक्के की कुटकृति है, कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, उसे किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

241. किसी सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान, जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था, कूटकृत होना नहीं जानता था -

जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कोई ऐसा कूटकृत सिक्का, जिसका कूटकृत होना वह जानता हो, किन्तु जिसका वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे में लिया, कूटकृत होना नहीं जानता था, असली सिक्के के रूप में परिदान करेगा या किसी दूसरे व्यक्ति को उसे असली सिक्के के रूप में लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो कूटकृत सिक्के के मूल्य के दस गुने तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क, एक सिक्काकार, अपने सह-अपराधी ख को कूटकृत कंपनी के रुपये चलाने के लिए परिदत्त करता है। ख उन रुपयों को सिक्का चलाने वाले एक दूसरे व्यक्ति ग को बेच देता है, जो उन्हें कूटकृत जानते हुए खरीदता है। ग उन रुपयों को घ को, जो उनको कूटकृत न जानते हुए प्राप्त करता है, माल के बदले दे देता है। घ को रुपए प्राप्त होने के पश्चात् यह पता चलता है कि वे रुपए कूटकृत हैं, और वह उनको इस प्रकार चलाता है, मानो वे असली हों। यहां घ केवल इस धारा के अधीन दण्डनीय है, किन्तु ख और ग, यथास्थिति, धारा 239 या 240 के अधीन दण्डनीय है।

242. कूटकृत सिक्के पर ऐसे व्यक्ति का कब्जा जो उस समय उसका कूटकृत होना जानता था, जब वह उसके कब्जे में आया था -

जो कोई ऐसे कूटकृत सिक्के को, जिसे वह उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह कूटकृत है, कपटपूर्वक या इस आशय से कि कपट किया जाए, कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

243. भारतीय सिक्के पर ऐसे व्यक्ति का कब्जा जो उसका कूटकृत होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया था -

जो कोई ऐसे कूटकृत सिक्के को, जो भारतीय सिक्के की कूटकृति है और जिसे वह उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह भारतीय सिक्के की कूटकृति है, कपटपूर्वक या इस आशय से कि कपट किया जाए, कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

244. टकसाल में नियोजित व्यक्ति द्वारा सिक्के का उस वजन का या मिश्रण से भिन्न कारित किया जाना जो विधि द्वारा नियत है -

जो कोई भारत में विधिपूर्वक स्थापित किसी टकसाल में से नियोजित होते हुए इस आशय से कोई कार्य करेगा, या उस कार्य का लोप करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, कि उस टकसाल से प्रचालित कोई सिक्का विधि द्वारा नियत वजन या मिश्रण से भिन्न वजन या मिश्रण का कारित हो, वह  दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

245. टकसाल से सिक्का बनाने का उपकरण विधिविरुद्ध रूप से लेना -

जो कोई भारत में विधिपूर्वक स्थापित किसी टकसाल में से सिक्का बनाने के किसी औजार या उपकरण को विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना बाहर निकाल लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

246. कपटपूर्वक या बेईमानी से सिक्के का वजन कम करना या मिश्रण परिवर्तित करना -

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से किसी सिक्के पर कोई ऐसी क्रिया करेगा, जिससे उस सिक्के का वजन कम हो जाए, या उसका मिश्रण परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

स्पष्टीकरण - वह व्यक्ति, जो सिक्के के किसी भाग को खुरच कर निकाल देता है, और उस गढ्ढे में कोई अन्य वस्तु भर देता है, उस सिक्के का मिश्रण परिवर्तित करता है।

247. कपटपूर्वक या बेईमानी से भारतीय सिक्के का वजन कम करना या मिश्रण परिवर्तित करना -

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से किसी भारतीय सिक्के पर कोई ऐसी क्रिया करेगा जिससे उस सिक्के का वजन कम हो जाए या उसका मिश्रण परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

248. इस आशय से किसी सिक्के का रूप परिवर्तित करना कि वह भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए -

जो कोई किसी सिक्के पर इस आशय से कि वह सिक्का भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए, कोई ऐसी क्रिया करेगा, जिससे उस सिक्के का रूप परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

249. इस आशय से भारतीय सिक्के का रूप परिवर्तित करना कि वह भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए -

जो कोई किसी भारतीय सिक्के पर इस आशय से कि वह सिक्का भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए, कोई ऐसी क्रिया करेगा जिससे उस सिक्के का रूप परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

250. ऐसे सिक्के का परिदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो कि उसे परिवर्तित किया गया है -

जो कोई किसी ऐसे सिक्के को कब्जे में रखते हुए, जिसके बारे में धारा 246 या 248 में परिभाषित अपराध किया गया हो, और जिसके बारे में उस समय, जब यह सिक्का उसके कब्जे में आया था, वह यह जानता था कि ऐसा अपराध उसके बारे में किया गया है, कपटपूर्वक या इस आशय से कि कपट किया जाए, किसी अन्य व्यक्ति को वह सिक्का परिदत्त करेगा, या किसी अन्य व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। GO toTOP

251. भारतीय सिक्के का परिदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो कि उसे परिवर्तित किया गया है -

जो कोई किसी ऐसे सिक्के को कब्जे में रखते हुए, जिसके बारे में धारा 247 या 249 में परिभाषित अपराध किया गया हो, और जिसके बारे में उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, वह यह जानता था कि ऐसा अपराध उसके बारे में किया गया है, कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, किसी अन्य व्यक्ति को वह सिक्का परिदत्त करेगा या किसी अन्य व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

252. ऐसे व्यक्ति द्वारा सिक्के पर कब्जा जो उसका परिवर्तित होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया -

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, ऐसे सिक्के को कब्जे में रखेगा, जिसके बारे में धारा 246 या 248 में से किसी में परिभाषित अपराध किया गया हो और जो उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, यह जानता था कि उस सिक्के के बारे में ऐसा अपराध किया गया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

253. ऐसे व्यक्ति द्वारा भारतीय सिक्के पर कब्जा जो उसका परिवर्तित होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया -

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, ऐसे सिक्के को कब्जे में रखेगा, जिसके बारे में धारा 247 या 249 में से किसी में परिभाषित अपराध किया गया हो और जो उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, यह जानता था कि उस सिक्के के बारे में ऐसा अपराध किया गया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

254. सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था, परिवर्तित होना नहीं जानता था -

जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कोई सिक्का, जिसके बारे में वह जानता हो कि कोई ऐसी क्रिया, जैसी धारा 246, 247,248, या 249 में वर्णित  है, की जा चुकी है, किन्तु जिसके बारे में वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे में लिया था, यह न जानता था कि उस पर ऐसी क्रिया कर दी गई है, असली के रूप में, या जिस प्रकार का वह है उससे भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में, परिदत्त करेगा या असली के रूप में, या जिस प्रकार का वह है उससे भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में, किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो उस सिक्के की कीमत के दस गुने तक का हो सकेगा जिसके बदले में परिवर्तित सिक्का चलाया गया हो या चलाने का प्रयत्न किया गया हो, दण्डित किया जाएगा।

255. सरकारी स्टाम्प का कूटकरण -

जो कोई सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प का कूटकरण करेगा या जानते हुए उसके कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - वह व्यक्ति इस अपराध को करता है, जो एक अभिधान के किसी असली स्टाम्प को भिन्न अभिधान के असली स्टाम्प के समान दिखाई देने वाला बना कर कूटकरण करता है।

256. सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री कब्जे में रखना -

जो कोई सरकार के द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह ऐसे कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, कोई उपकरण या सामग्री अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

257. सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना -

जो कोई, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह ऐसे कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, कोई उपकरण बनाएगा या बनाने की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा या ऐसे किसी उपकरण को खरीदेगा, या बेचेगा, या व्यनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

258, कूटकृत सरकारी स्टाम्प का विक्रय -

जो कोई किसी स्टाम्प को यह जानते हुए या यह विश्वास करने को कारण रखते हुए बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा कि वह सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प की कूटकृति है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

259. सरकारी कूटकृत स्टाम्प को कब्जे में रखना -

जो कोई असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाने के या व्ययन करने के आशय से, या इसलिए कि वह असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाया जा सके, किसी ऐसे स्टाम्प को अपने कब्जे में रखेगा, जिसे वह जानता है कि वह सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित स्टाम्प की कूटकृति है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

260. किसी सरकारी स्टाम्प को, कूटकृत जानते हुए उसे असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाना -

जो कोई किसी ऐसे स्टाम्प को, जिसे वह जानता है कि वह सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित स्टाम्प की कूटकृति है, असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

261. इस आशय से कि सरकार को हानि कारित हो, उस पदार्थ पर से जिस पर सरकारी स्टाम्प लगा हुआ है, लेख मिटाना या दस्तावेज से वह स्टाम्प हटाना जो उसके लिए उपयोग में लाया गया है -

जो कोई कपट पूर्वक, या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित कि जाए, किसी पदार्थ पर से, जिस पर सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित कोई स्टाम्प लगा हुआ हो, किसी लेख या दस्तावेज को, जिसके लिए ऐसा स्टाम्प उपयोग में लाया गया हो, हटाएगा या मिटाएगा या किसी लेख या दस्तावेज पर से उस लेख या दस्तावेज के लिए उपयोग में लाया गया स्टाम्प इसलिए हटाएगा कि ऐसा स्टाम्प किसी भिन्न लेख या दस्तावेज के लिए उपयोग में लाया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

262. ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग जिसके बारे में ज्ञात है कि उसका पहले उपयोग हो चुका है -

जो कोई कपट पूर्वक या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प को, जिसके बारे में वह जानता है कि वह स्टाम्प उससे पहले उपयोग में लाया जा चुका है, किसी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

263. स्टाम्प के उपयोग किए जा चुकने के द्योतक चिन्ह का छीलकर मिटाना -

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित स्टाम्प पर से उस चिन्ह को छीलकर मिटाएगा या हटाएगा, जो ऐसे स्टाम्प पर यह द्योतन करने के प्रयोजन से कि वह उपयोग में लाया जा चुका है, लगा हुआ या छापित हो या ऐसे किसी स्टाम्प को, जिस पर से ऐसा चिन्ह मिटाया या हटाया गया हो, जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा या बेचेगा या व्ययनित करेगा, या ऐसे किसी स्टाम्प को, जो वह जानता है कि उपयोग में लाया जा चुका है, बेचेगा या व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

263 क, बनावटी स्टांपों का प्रतिषेध -

(1) जो कोई किसी बनावटी स्टाम्प को -

(क) बनाएगा, जानते हुए चलाएगा, उसका व्यौहार करेगा या उसका विक्रय करेगा या उसे डाक संबंधी किसी प्रयोजन के लिए जानते हुए उपयोग में लाएगा, अथवा

(ख) किसी विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना अपने कब्जे में रखेगा, अथवा 

(ग) बनाने की किसी डाई, पट्टी, उपकरण या सामग्रियों को बनाएगा, या किसी विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना अपने कब्जे में रखेगा, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।  

(2) कोई ऐसा स्टाम्प, कोई बनावटी स्टाम्प, बनाने की डाई, पट्टी, उपकरण या सामग्रियां, जो किसी व्यक्ति के कब्जे में हों, अभिगृहीत की जा सकेंगी, और अभिगृहीत की जाए तो समपहृत कर ली जाएंगी।

(3) इस धारा में “बनावटी स्टाम्प” से ऐसा कोई स्टाम्प अभिप्रेत है, जिससे यह मिथ्या रूप से तात्पर्यत हो कि सरकार ने डाक महसूल की दर से द्योतन के प्रयोजन से उसे प्रचालित किया है या जो सरकार द्वारा उस प्रयोजन से प्रचालित किसी स्टाम्प की, कागज पर या अन्यथा, अनुलिपि, अनुकृति या समरूपण हो।

(4) इस धारा में और धारा 255 से लेकर धारा 263 तक में भी, जिनमें ये दोनों धाराएं भी समाविष्ट हैं, सरकार शब्द के अन्तर्गत, जब भी वह डाक महसूल की दर के द्योतन के प्रयोजन से प्रचालित किए गए किसी स्टाम्प के संसर्ग या निर्देशन में उपयोग किया गया है, धारा 17 में किसी बात के होते हुए भी, वह या वे व्यक्ति समझे जाएंगे जो भारत के किसी भाग में और हर मजेस्टी की डोमिनियनों के किसी भाग में, या किसी विदेश में भी, कार्यपालिका सरकार का प्रशासन चलाने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हों।

अध्याय 13: बाटो और मापों से सम्बंधित अपराधों के विषय में

264. तोलने के लिए खोटे उपकरणों का कपटपूर्वक उपयोग -

जो कोई तोलने के लिए ऐसे किसी उपकरण का, जिसका खोटा होना वह जानता है, कपटपूर्वक उपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

265. खोटे बाट या माप का कपटपूर्वक उपयोग -

जो कोई किसी खोटे बाट का या लंबाई या धारिता के किसी खोटे माप का कपटपूर्वक उपयोग करेगा, या किसी बाट का, या लंबाई या धारिता के किसी माप का या उससे भिन्न बाट या माप के रूप में कपटपूर्वक उपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

266. खोटे बाट या माप को कब्जे में रखना -

जो कोई तोलने के ऐसे किसी उपकरण या बाट को, या लंबाई या धारिता के किसी माप को, जिसका खोटा होना वह जानता है, इस आशय से कब्जे में रखेगा कि उसे कपटपूर्वक उपयोग में लाया जाए वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

267. खोटे बाट या माप का बनाना या बेचना -

जो कोई तोलने के ऐसे किसी उपकरण या बाट को या लंबाई या धारिता के ऐसे किसी माप को, जिसका खोटा होना वह जानता है, इसलिए कि उसका खरे की तरह उपयोग किया जाए, या यह संभाव्य जानते हुए कि उसका खरे की तरह उपयोग किया जाए, बनाएगा, बेचेगा या व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 14: लोक स्वास्थ्य, क्षेम, सुविधा, शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में 

268. लोक न्यूसेंस -

वह व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी है, जो कोई ऐसा कार्य करता है, या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है, जिससे लोक को या जनसाधारण को जो आसपास में रहते हों या आसपास की संपत्ति पर अधिभोग रखते हों, कोई सामान्य क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो या जिसमें उन व्यक्तियों का जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े, क्षति, बाधा, संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यंभावी हो।

कोई सामान्य न्यूसेंस इस आधार पर माफी योग्य नहीं है, कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है।

269. उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो -

जो कोई विधि विरुद्ध रूप से या उपेक्षा से ऐसा कार्य करेगा, जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि, जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

270. परिद्वेषपूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो -

जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो, कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों में से, दण्डित किया जाएगा।

271. करन्तीन के नियम की अवज्ञा -

जो कोई किसी जलयान को करंतीन की स्थिति में रखे जाने के, या करंतीन की स्थिति वाले जलयानों का किनारे से या अन्य जलयानों से समागम विनियमित करने के, या ऐसे स्थानों के, जहां कोई संक्रामक रोग फैल रहा हो और अन्य स्थानों के बीच समागम विनियमित करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए और प्रख्यापित किसी नियम को जानते हुए, अवज्ञा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

272. विक्रय के लिए आशयित खाद्य या पेय का अपमिश्रण -

जो कोई किसी खाने या पीने की वस्तु को इस आशय से कि वह ऐसी वस्तु के खाद्य या पेय के रूप में बेचे या यह संभाव्य जानते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में बेची जाएगी, ऐसे अपमिश्रित करेगा कि ऐसी वस्तु खाद्य या पेय के रूप में अपायकर बन जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - धाराओं 272, 273, 274, 275 एवं 276 में शब्दों “वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 6 माह तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जाएगा” के स्थान पर अग्रलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌ :-

“आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के भी दायित्वाधीन होगा:

परन्तु यह कि पर्याप्त कारणों से जिनका उल्लेख निर्णय में किया जाएगा, न्यायालय ऐसे कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा, जो कि आजीवन कारावास से कम हो।”

देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 47 सन्‌ 1975 की धारा 3 (दिनांक 15-9-1975 से प्रभावशील)

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273. अपायकर खाद्य या पेय का विक्रय -

जो कोई किसी ऐसी वस्तु को, जो अपायकर कर दी गई हो, या हो गई हो, या खाने-पीने के लिए अनुपयुक्त दशा में हो, यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में अपायकर है, खाद्य या पेय के रूप में बेचेगा, या बेचने की प्रस्थापना करेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों में से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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274. औषधियों का अपमिश्रण -

जो कोई किसी औषधि या भेषजीय निर्मिति में अपमिश्रण इस आशय से कि या यह संभाव्य जानते हुए कि वह किसी औषधीय प्रयोजन के लिए ऐसे बेची जाएगी या उपयोग की जाएगी, मानो उसमें ऐसा अपमिश्रण न हुआ हो, ऐसे प्रकार से करेगा कि उस औषधि या भेषजीय निर्मिति की प्रभावकारिता कम हो जाएक्रिया बदल जाए या वह अपायकर हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी,

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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275. अपमिश्रित औषधियों का विक्रय -

जो कोई यह जानते हुए कि किसी औषधि या भेषजीय निर्मिति में इस प्रकार से अपमिश्रण किया गया है कि उसकी प्रभावकारिता कम हो गई या उसकी क्रिया बदल गई है, या वह अपायकर बन गई है, उसे बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा, या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा, या किसी औषधालय से औषधीय प्रयोजनों के लिए उसे अनपोमिश्रित के तौर पर देगा या उसका अपमिश्रित होना न जानने वाले व्यक्ति द्वारा औषधीय प्रयोजनों के लिए उसका उपयोग कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों में से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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276. औषधि का भिन्न औषधि या निर्मिति के तौर पर विक्रय -

जो कोई किसी औषधि या भेषजीय निर्मिति को, भिन्न औषधि या भेषजीय निर्मिति की तौर पर जानते हुए बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा या औषधीय प्रयोजनों के लिए औषधालय से देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छः मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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277. लोक जल स्त्रोत या जलाशय का जल कलुषित करना -

जो कोई लोक जल-स्त्रोत या जलाशय के जल को स्वेच्छया इस प्रकार भ्रष्ट या कलुषित करेगा कि वह उस प्रयोजन के लिए, जिसके लिए वह मामूली तौर पर उपयोग में आता हो, कम उपयोगी हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

278. वायुमण्डल को स्वास्थ्य के लिए अपायकर बनाना -

जो कोई किसी स्थान के वायुमंडल को स्वेच्छया इस प्रकार दूषित करेगा कि वह जनसाधारण के स्वास्थ्य के लिए जो पड़ोस में निवास या कारबार करते हों, या लोक मार्ग से आते जाते हों, अपायकर बन जाए, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जायेगा

279. लोक मार्ग पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना -

जो कोई किसी लोक मार्ग पर ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई वाहन चलाएगा या सवार होकर हांकेगा जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या  किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

280. जलयान का उतावलेपन से चलाना -

जो कोई किसी जलयान को ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से चलाएगा जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित हो या होना संभाव्य हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

281. भ्रामक, प्रकाश चिन्ह या बोये का प्रदर्शन -

जो कोई किसी भ्रामक प्रकाश चिन्ह या बोये का प्रदर्शन इस आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए करेगा, कि ऐसा प्रदर्शन किसी नौपरिवाहक को मार्ग भ्रष्ट कर देगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जा सकेगा।

282. अक्षेमकर या अति लदे हुए जलयान में भाड़े के लिए जलमार्ग से किसी व्यक्ति का प्रवहण -

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी जलयान में जल मार्ग से, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक भाड़े पर तब प्रवहण करेगा, या कराएगा जब वह जलयान ऐसी दशा में हो या इतना लदा हुआ हो जिससे उस व्यक्ति का जीवन संकटापन्न हो सकता हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से ,जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

283. लोक मार्ग या नौपरिवहन पथ में संकट या बाधा -

जो कोई किसी कार्य को कर के या अपने कब्जे में की, या अपने भार साधन के अधीन किसी, संपत्ति की व्यवस्था करने का लोप करने द्वारा किसी लोक मार्ग या नौपरिवहन के लोक पथ में किसी व्यक्ति को संकट, बाधा या क्षति कारित करेगा, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

284. विषैले पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी विषैले पदार्थ से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या जिससे किसी व्यक्ति को, उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य होया अपने कब्जे में के किसी विषैले पदार्थ की ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसे विषैले पदार्थ से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए, या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

285. अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई अग्नि या किसी ज्वलनशील पदार्थ से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य हो अथवा अपने कब्जे में की अग्नि या किसी ज्वलनशील पदार्थ की ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसी अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

286. विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी विस्फोटक पदार्थ से, कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य होअथवा अपने कब्जे में के किसी विस्फोटक पदार्थ की ऐसे व्यवस्था करने का जैसी ऐसे पदार्थ से मानव जीवन को अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

287. मशीनरी के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी मशीनरी से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य होअथवा अपने कब्जे में की या अपनी देखरेख के अधीन की किसी मशीनरी की ऐसी व्यवस्था करने का जो, ऐसी मशीनरी से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

288. किसी निर्माण को गिराने या उसकी मरम्मत करने के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी निर्माण को गिराने या उसकी मरम्मत करने में उस निर्माण की ऐसी व्यवस्था करने का, जो उस निर्माण के या उसके किसी भाग के गिरने से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी. या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

289. जीवजन्तु के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई अपने कब्जे में के किसी जीवजन्तु के संबंध में ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसे जीव जंतु से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट या घोर उपहति के किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मांस तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

290. अन्यथा अनुपबंधित मामलों में लोक न्यूसेंस के लिए दण्ड -

जो कोई किसी ऐसे मामले में लोक न्यूसेंस करेगा जो इस संहिता द्वारा अन्यथा दण्डनीय नहीं है, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

291. न्यूसेंस बंद करने के व्यादेश के पश्चात उसका चालू रखना -

जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा, जिसको किसी न्यूसेंस की पुनरावृत्ति न करने या उसे चालू न रखने के लिए व्यादेश प्रचालित करने का प्राधिकार हो, ऐसे व्यादिष्ट किए जाने पर, किसी लोक न्यूसेंस की पुनरावृत्ति करेगा, या उसे चालू रखेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

292. अश्लील पुस्तकों आदि का विक्रय आदि -

(1) उपधारा (2) के प्रयोजनार्थ किसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंग चित्र, रूपण, आकृति या अन्य वस्तु को अश्लील समझा जाएगा यदि वह कामोद्दीपक है या कामुक व्यक्तियों के लिए रूचिकर है, या उसका या (जहां उसमें दो या अधिक सुभिन्न मदें समाविष्ट हैं वहां) उसकी किसी मद का प्रभाव, समग्ररूप से विचार करने पर, ऐसा है जो उन व्यक्तियों को दुराचारी तथा भ्रष्ट बनाए जिनके द्वारा उसमें अन्तर्विष्ट या सन्निविष्ट विषय का पढ़ा जाना, देखा जाना या सुना जाना सभी सुसंगत परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संभाव्य है।

(2) जो कोई -

(क) किसी अश्लील पुस्तक, पुस्तिका, कागज, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण, या आकृति या किसी भी अन्य अश्लील वस्तु को चाहे वह कुछ भी हो, बेचेगा, भाड़े पर देगा, वितरित करेगा, लोक प्रदर्शित करेगा, या उसको किसी भी प्रकार परिचालित करेगा, या उसे विक्रय, भाड़े, वितरण, लोक प्रदर्शन या परिचालन के प्रयोजनों के लिए रचेगा, उत्पादित करेगा, या अपने कब्जे में रखेगा, अथवा

(ख) किसी अश्लील वस्तु का आयात या निर्यात या प्रवहण पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए करेगा या यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि ऐसी वस्तु बेची, भाड़े पर दी, वितरित या लोक प्रदर्शित, या किसी प्रकार से परिचालित की जाएगी, अथवा

(ग) किसी ऐसे कारबार में भाग लेगा या उससे लाभ प्राप्त करेगा, जिस कारबार में वह यह जानता है या यह विश्वास करने का कारण रखता है, कि कोई ऐसी अश्लील वस्तुएं पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए रची जाती, उत्पादित की जाती, क्रय की जाती, रखी जाती, आयात की जाती, निर्यात की जाती, प्रवहण की जाती, लोक प्रदर्शित की जाती या किसी भी प्रकार से परिचालित की जाती है, अथवा

(घ) यह विज्ञापित करेगा या किन्हीं साधनों द्वारा चाहे वे कुछ भी हों यह ज्ञात कराएगा कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य में, जो इस धारा के अधीन अपराध है, लगा हुआ है, या लगने के लिए तैयार है, या यह कि कोई ऐसी अश्लील वस्तु किसी व्यक्ति से या किसी व्यक्ति के द्वारा प्राप्त की जा सकती है, अथवा

(ङ) किसी ऐसे कार्य को जो इस धारा के अधीन अपराध है, करने की प्रस्थापना करेगा या करने का प्रयत्न करेगा,

प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, तथा द्वितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि की दशा में दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा दण्डित किया जाएगा।

अपवाद - इस धारा का विस्तार निम्नलिखित पर न होगा -

(क) कोई ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण या आकृति - 

(i) जिसका प्रकाशन लोकहित में होने के कारण इस आधार पर न्यायोचित साबित हो गया है कि ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण या आकृति विज्ञान, साहित्य, कला या विद्या या सर्वजन संबंधी अन्य उद्देश्यों के हित में है, अथवा

(ii) जो सद्भावपूर्वक धार्मिक प्रयोजनों के लिए रखी या उपयोग में लाई जाती है;

(ख) कोई ऐसा रूपण जो - 

(i) प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (1958 का 24) के अर्थ में प्राचीन संस्मारक पर या उसमें, अथवा

(ii) किसी मंदिर पर या उसमें या मूर्तियों के प्रवहण के उपयोग में लाए जाने वाले या किसी धार्मिक प्रयोजन के लिए रखे या उपयोग में लाए जाने वाले किसी रथ पर, तक्षित, उत्कीर्ण, रंगचित्रित या अन्यथा रूपित हों।

293. तरुण व्यक्ति को अश्लील वस्तुओं का विक्रय आदि -

जो कोई बीस वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को कोई ऐसी अश्लील वस्तु, जो अंतिम पूर्वगामी धारा में निर्दिष्ट है, बेचेगा, भाड़े पर देगा, वितरण करेगा, प्रदर्शित करेगा या परिचालित करेगा या ऐसा करने की प्रस्थापना या प्रयत्न करेगा, प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, तथा द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

294. अश्लील कार्य और गाने --

जो कोई - 

(क) किसी लोक स्थान में कोई अश्लील कार्य करेगा, अथवा

(ख) किसी लोक स्थान में या उसके समीप कोई अश्लील गाने, पवांड़े या शब्द गाएगा, सुनाएगा या उच्चारित करेगा, जिससे दूसरों को क्षोभ होता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - न्यायालय की अनुमति से, उस व्यक्ति द्वारा शमनीय जिसके विरुद्ध अश्लील कृत्य किये गये हैं या अश्लील शब्द प्रयुक्त हुए हैं।

[देखें म.प्र. अधिनियम सं. 17 सन्‌ 1999 की धारा 3 (21-5- 1999 से प्रभावशील) ।]

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294 क. लाटरी कार्यालय रखना -

जो कोई ऐसी लाटरी, जो न तो राज्य लाटरी हो और न तत्संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत लाटरी होनिकालने के प्रयोजन के लिए कोई कार्यालय या स्थान रखे दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;

तथा जो कोई ऐसी लाटरी में किसी टिकट, लाट, संख्यांक या आकृति को निकालने से संबंधित या लागू होने वाली किसी घटना या परिस्थिति पर किसी व्यक्ति के फायदे के लिए किसी राशि को देने की, या किसी माल के परिदान की, या किसी बात को करने की, या किसी बात से प्रविरत रहने की कोई प्रस्थापना प्रकाशित करेगा, वह जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - धारा 294क विलोपित |

[देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 24 सन्‌ 1995 की धारा 11]

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अध्याय 15: धर्म से सम्बंधित अपराधों के विषय में

295. किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना -

जो कोई किसी उपासना के स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसान ग्रस्त या अपवित्र इस आशय से करेगा कि किसी वर्ग के धर्म का तद्द्वारा अपमान किया जाए, या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

295 क, विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों -

जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग  के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान, उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

296. धार्मिक जमाव में विघ्न करना -

जो कोई धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारों में वैध रूप से लगे हुए किसी जमाव में स्वेच्छया विघ्न कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

297. कब्रिस्तानों आदि में अतिचार करना -

जो कोई किसी उपासना स्थान में, या किसी कब्रिस्तान पर या अन्त्येष्टि क्रियाओं के लिए या मृतकों के अवशेषों के लिए निक्षेप स्थान के रूप में पृथक रखे गए किसी स्थान में अतिचार या किसी मानव शव की अवहेलना या अन्त्येष्टि संस्कारों के लिए एकत्रित किन्हीं व्यक्तियों को विघ्न कारितइस आशय से करेगा कि किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाए या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान करे, या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी, या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान होगावह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

298. धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना आदि -

जो कोई किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के विमर्शित आशय से उसकी श्रवणगोचरता में कोई शब्द उच्चारित करेगा या कोई ध्वनि करेगा या उसकी दृष्टिगोचरता में कोई अंगविक्षेप करेगा, या कोई वस्तु रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 16: मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों विषय में

जीवन के लिए संकटकारी अपराधों के विषय में

299. आपराधिक मानव वध -

जो कोई मृत्यु कारित करने के आशय से, या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित हो जाना संभाव्य हो, या यह ज्ञान रखते हुए कि यह संभाव्य है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देता है, वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है।

दृष्टांत -

(क) क एक गड्डे पर लकड़ियां और घास इस आशय से बिछाता है कि तद्द्वारा मृत्यु कारित करे या यह ज्ञान रखते हुए बिछाता है कि संभाव्य है कि तद्द्वारा मृत्यु कारित हो। य यह विश्वास करते हुए कि वह भूमि सुदृढ़ है उस पर चलता है, उसमें गिर पड़ता है और मारा जाता है। क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है।

(ख) क यह जानता है कि य एक झाड़ी के पीछे है। ख यह नहीं जानता। य की मृत्यु करने के आशय से या यह जानते हुए कि उससे य की मृत्यु कारित होना संभाव्य है, ख को उस झाड़ी पर गोली चलाने के लिए क उत्प्रेरित करता है। ख गोली चलाता है और य को मार डालता है। यहां, यह हो सकता है कि ख किसी भी अपराध का दोषी न हो, किन्तु क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है।

(ग) क एक मुर्गे को मार डालने और उसे चुरा लेने के आशय से उस पर गोली चलाकर ख को, जो एक झाड़ी के पीछे है, मार डालता है, किन्तु क यह नहीं जानता था कि ख वहां है। यहां यद्यपि क विधिविरुद्ध कार्य कर रहा थातथापि वह आपराधिक मानव वध का दोषी नहीं है क्योंकि उसका आशय ख को मार डालने का, या कोई ऐसा कार्य करके, जिससे मृत्यु कारित करना वह संभाव्य जानता हो, मृत्यु कारित करने का नहीं था।

स्पष्टीकरण 1 - वह व्यक्ति, जो किसी दूसरे व्यक्ति को, जो किसी विकार, रोग या अंगशैथिल्य से ग्रस्त है, शारीरिक क्षति कारित करता है और तद्द्वारा उस दूसरे व्यक्ति की मृत्यु त्वरित कर देता है, उसकी मृत्यु कारित करता है, यह समझा जाएगा।

स्पष्टीकरण 2 - जहां कि शारीरिक क्षति से मृत्यु कारित की गई हो, वहां जिस व्यक्ति ने, ऐसी शारीरिक क्षति कारित की हो, उसने वह मृत्यु कारित की है, यह समझा जाएगा, यद्यपि उचित उपचार और कौशल पूर्ण चिकित्सा करने से वह मृत्यु रोकी जा सकती थी।

स्पष्टीकरण 3 - मां के गर्भ में स्थित किसी शिशु की मृत्यु कारित करना मानव वध नहीं है। किन्तु किसी जीवित शिशु की मृत्यु कारित करना आपराधिक मानव वध की कोटि में आ सकेगा, यदि उस शिशु का कोई भाग बाहर निकल आया हो, यद्यपि उस शिशु ने श्वास न ली हो या वह पूर्णतः उत्पन्न न हुआ हो।

300. हत्या -

एतस्मिन् पश्चात् अपवादित दशाओं को छोड़कर आपराधिक मानव वध हत्या है, यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, अथवा

दूसरा - यदि वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना संभाव्य है, जिसको वह अपहानि कारित की गई है, अथवा

तीसरा - यदि वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, अथवा

चौथा- यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्नसंकट है कि पूरी अधि संभाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है, और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे।

दृष्टांत -

(क) य को मार डालने के आशय से क उस पर गोली चलाता है, परिणामस्वरूप य मर जाता है। क हत्या करता है।

(ख) क यह जानते हुए कि य ऐसे रोग से ग्रस्त है कि संभाव्य है कि एक प्रहार उसकी मृत्यु कारित कर दे, शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से उस पर आघात करता है। य उस प्रहार के परिणामस्वरूप मर जाता है। क हत्या का दोषी है, यद्यपि वह प्रहार किसी अच्छे स्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु करने के लिए प्रकृति के मामूली अनुक्रम में पर्याप्त न होता किन्तु यदि क, यह न जानते हुए कि य किसी रोग से ग्रस्त है, उस पर ऐसा प्रहार करता है, जिससे कोई अच्छा स्वस्थ व्यक्ति प्रकृति के मामूली अनुक्रम में न मरता, तो यहां, क यद्यपि शारीरिक क्षति कारित करने का उसका आशय हो, हत्या का दोषी नहीं है, यदि उसका आशय मृत्यु कारित करने का या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने का नहीं था, जिससे प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित हो जाए।

(ग) य को तलवार या लाठी से ऐसा घाव क साशय करता है, जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में किसी मनुष्य की मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है। परिणामस्वरूप य की मृत्यु कारित हो जाती है, यहां क हत्या का दोषी है, यद्यपि उसका आशय य की मृत्यु कारित करने का न रहा हो।

(घ) क किसी प्रतिहेतु के बिना व्यक्तियों के एक समूह पर भरी हुई तोप चलाता है और उनमें से एक का वध कर देता है। क हत्या का दोषी है, यद्यपि किसी विशिष्ट व्यक्ति की मृत्यु कारित करने की उसकी पूर्वचिन्तित परिकल्पना न रही हो।

अपवाद 1 -

आपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी उस समय जबकि वह गंभीर और अचानक प्रकोपन से आत्म-संयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्युकारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे ऊपर का अपवाद निम्नलिखित परन्तुकों के अध्यधीन है -

पहला - यह कि वह प्रकोपन किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में ईप्सित न हो या स्वेच्छया प्रकोपित न हो।

दुसरा - यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में, की गई हो।

तीसरा - यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो।

स्पष्टीकरण - प्रकोपन इतना गंभीर और अचानक था या नहीं कि अपराध को हत्या की कोटि में जाने से बचा दे, यह तथ्य का प्रश्न है।

दृष्टांत -

(क) य द्वारा किए गए प्रकोपन के कारण प्रदीप्त आवेश के असर में म का, जो य का शिशु है, क साशय वध करता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन उस शिशु द्वारा नहीं दिया गया था और उस शिशु की मृत्यु उस प्रकोपन से किए गए कार्य को करने में दुर्घटना या दुर्भाग्य से नहीं हुई है।

(ख) क को म गंभीर और अचानक प्रकोपन देता है। क इस प्रकोपन से म पर पिस्तौल चलाता है, जिसमें न तो उसका आशय य का, जो समीप ही है किन्तु दृष्टि से बाहर है, वध करने का है, और न वह यह जानता है कि संभाव्य है कि वह य का वध कर दे। क, य का वध करता है। यहां क ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है।

(ग) य द्वारा जो, एक बेलिफ है, क विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जाता है। उस गिरफ्तारी के कारण क को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था, जो एक लोक सेवक द्वारा उसकी शक्ति के प्रयोग में की गई थी।  

(घ) य के समक्ष, जो एक मजिस्ट्रेट है, साक्षी के रूप में क उपसंजात होता है। य यह कहता है कि वह क के अभिसाक्ष्य के एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करता और यह कि क ने शपथभंग किया है। क को इन शब्दों से अचानक आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है।

(ङ) य की नाक खींचने का प्रयत्न क करता है। य प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में ऐसा करने से रोकने के लिए क को पकड़ लेता है। परिणामस्वरूप क को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की गई थी।

(च) ख पर य आघात करता है। ख को इस प्रकोपन से तीव्र क्रोध आ जाता है। क, जो निकट ही खड़ा हुआ है, ख के क्रोध का लाभ उठाने और उससे य का वध कराने के आशय से उसके हाथ में एक छुरी उस प्रयोजन के लिए दे देता है। ख उस छुरी से य का वध कर देता है। यहां ख ने चाहे केवल आपराधिक मानव वध ही किया हो, किन्तु क हत्या का दोषी है।

अपवाद 2 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी, शरीर या संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को सद्भावपूर्वक प्रयोग में लाते हुए विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण कर दे, और पूर्वचिन्तन बिना और ऐसी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से जितनी अपहानि करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करने के किसी आशय के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दे जिसके विरुद्ध वह प्रतिरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रहा हो क को चाबुक मारने का प्रयत्न य करता है, किन्तु इस प्रकार नहीं कि क को घोर उपहति कारित हो। क एक पिस्तौल निकाल लेता है। य हमले को चालू रखता है। क सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि वह अपने को चाबुक लगाए जाने से किसी अन्य साधन द्वारा नहीं बचा सकता है, गोली से य का वध कर देता है। क ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है।

अपवाद 3 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी ऐसा लोक सेवक होते हुए, या ऐसे लोक सेवक को मदद देते हुए, जो लोक न्याय की अग्रसरता में कार्य कर रहा है, उसे विधि द्वारा दी गई शक्ति से आगे बढ़ जाए, और कोई ऐसा कार्य करके जिसे वह विधिपूर्ण और ऐसे लोक सेवक के नाते उसके कर्त्तव्य के सम्यक निर्वहन के लिए आवश्यक होने का सद्भावपूर्वक विश्वास करता है, और उस व्यक्ति के प्रति, जिसकी कि मृत्युकारित की गई है, वैमनस्य के बिना मृत्यु कारित करे।

अपवाद 4 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह मानव वध अचानक झगड़ा जनित आवेश की तीव्रता में हुई अचानक लड़ाई में पूर्वचिन्तन बिना और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या क्रूरतापूर्ण या अप्रायिक रीति से कार्य किए बिना किया गया हो।

स्पष्टीकरण - ऐसी दशाओं में यह तत्वहीन है कि कौन पक्ष प्रकोपन देता है या पहला हमला करता है।

अपवाद 5 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु कारित की जाए, अठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए, अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करे, या मृत्यु की जोखिम उठाए।

दृष्टांत -

य को, जो अठारह वर्ष से कम आयु का है, उकसाकर क उससे स्वेच्छया आत्महत्या करवाता है। यहां कम उम्र होने के कारण य अपनी मृत्यु के लिए सम्मति देने में असमर्थ था, इसलिए क ने हत्या का दुष्प्रेरण किया है। GO toTOP

301. जिस व्यक्ति की मृत्यु कारित करने का आशय था उससे भिन्न व्यक्ति की मृत्यु करके आपराधिक मानव वध -

यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात करने द्वारा, जिससे उसका आशय मृत्यु कारित करना होया जिससे वह जानता हो कि मृत्यु कारित होना संभाव्य है, किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करके, जिसकी मृत्यु कारित करने का न तो उसका आशय हो और न वह यह संभाव्य जानता हो कि वह उसकी मृत्यु कारित करेगा, आपराधिक मानव वध करे, तो अपराधी द्वारा किया गया आपराधिक मानव वध उस भांति का होगा जिस भांति का वह होता, यदि वह उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करता जिसकी मृत्यु कारित करना उसके द्वारा आशयित था या वह जानता था कि उस द्वारा उसकी मृत्यु कारित होना संभाव्य है।

302. हत्या के लिए दण्ड -

जो कोई हत्या करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

303. आजीवन सिद्धदोष द्वारा हत्या के लिए दण्ड -

जो कोई आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन होते हुए हत्या करेगा, वह मृत्यु से दण्डित किया जाएगा।

304. हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के लिए दण्ड -

जो कोई ऐसा आपराधिक मानव वध करेगा, जो हत्या की कोटि में नहीं आता है, यदि वह कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु होना संभाव्य है, कारित करने के आशय से किया जाए, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

अथवा यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, कारित करने के किसी आशय के बिना किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

304 क. उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना -

जो कोई उतावलेपन के या उपेक्षापूर्ण किसी ऐसे कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करेगा, जो आपराधिक मानव वध की कोटि में नहीं आता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

304 ख. दहेज मृत्यु -

(1) जहां किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति ने या उसके पति के नातेदार ने, दहेज की किसी मांग के लिए, या उसके संबंध में, उसके साथ क्रूरता की थी, या उसे तंग किया था वहां ऐसी मृत्यु को “दहेज मृत्यु” कहा जाएगा, और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जायेगा।

स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए "दहेज का वही अर्थ है जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 (1961 का 28) की धारा 2 में है।

(2) जो कोई दहेज मृत्यु कारित करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।

305. शिशु या उन्मत्त व्यक्ति की आत्महत्या का दुष्प्रेरण -

यदि कोई अठारह वर्ष से कम आयु का व्यक्ति, कोई उन्मत्त व्यक्ति, कोई विपर्यस्त चित्त व्यक्ति, कोई जड़ व्यक्ति, या कोई व्यक्ति, जो मत्तता की अवस्था में है, आत्महत्या कर ले तो जो कोई ऐसी आत्महत्या के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास या कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक की न हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

306. आत्महत्या का दुष्प्रेरण -

यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करे, तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

307. हत्या करने का प्रयत्न -

जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य द्वारा मृत्यु कारित कर देता है तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो आजीवन कारावास से या ऐसे दण्ड से दण्डनीय होगा, जैसा एतस्मिनपूर्व वर्णित है।

आजीवन सिद्धदोष द्वारा प्रयत्न - जबकि इस धारा में वर्णित अपराध करने वाला कोई व्यक्ति आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन हो, तब यदि उपहति कारित हुई हो, तो वह मृत्यु से दण्डित किया जा सकेगा।

दृष्टांत -

(क) य का वध करने के आशय से क उस पर ऐसी परिस्थितियों में गोली चलाता है कि यदि मृत्यु हो जाती, तो क हत्या का दोषी होता क इस धारा के अधीन दण्डनीय है। 

(ख) क कोमल वयस के शिशु की मृत्यु करने के आशय से उसे एक निर्जन स्थान में अरक्षित छोड़ देता है  ने इस धारा द्वारा परिभाषित अपराध किया है, यद्यपि परिणामस्वरूप उस शिशु की मृत्यु नहीं होती।

(ग) य की हत्या का आशय रखते हुए क एक बंदूक खरीदता है और उसको भरता है। क ने अभी तक अपराध नहीं किया है। य पर क बंदूक चलाता है। उसने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और यदि इस प्रकार गोली मारकर वह य को घायल कर देता है, तो वह इस धारा के प्रथम पैरे के पिछले भाग द्वारा उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

(घ) विष द्वारा य की हत्या करने का आशय रखते हुए क विष खरीदता है, और उसे उस भोजन में मिला देता है, जो क के अपने पास रहता है; क ने इस धारा में परिभाषित अपराध अभी तक नहीं किया है। क उस भोजन को य की मेज पर रखता है, या उसको य की मेज पर रखने के लिए य के सेवकों को परिदत्त करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

308. आपराधिक मानव वध करने का प्रयत्न -

जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि उस कार्य से वह मृत्यु कारित कर देता, तो वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति हो जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क गंभीर और अचानक प्रकोपन पर, ऐसी परिस्थितियों में, य पर पिस्तौल चलाता है कि यदि तद्द्वारा वह मृत्यु कारित कर देता तो वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध का दोषी होता। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है

309. आत्महत्या करने का प्रयत्न -

जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा, और उस अपराध के करने के लिए कोई कार्य करेगा वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

310. ठग -

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी समय हत्या द्वारा या हत्या सहित लूट या शिशुओं की चोरी करने के प्रयोजन के लिए अन्य व्यक्ति या अन्य व्यक्तियों से अभ्यासत: सहयुक्त रहता है, वह ठग है।

311. दण्ड -

जो कोई ठग होगा, वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

गर्भपात कारित करनेअजात शिशुओं को क्षति कारित करने,

शिशुओं को अरक्षित छोड़ने और जन्म छिपाने के विषय में

312. गर्भपात कारित करना -

जो कोई गर्भवती स्त्री का स्वेच्छया गर्भपात कारित करेगा, यदि ऐसा गर्भपात उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक, कारित न किया जाए तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा, और यदि वह स्त्री स्पन्दन-गर्भा हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - जो स्त्री स्वयं अपना गर्भपात कारित करती है, वह इस धारा के अन्तर्गत आती है। 

313. स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करना -

जो कोई उस स्त्री की सम्मति के बिना, चाहे वह स्त्री स्पन्दन-गर्भा हो या नहीं, पूर्ववर्ती अंतिम धारा में परिभाषित अपराध करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

314. गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु -

जो कोई गर्भवती स्त्री का गर्भपात कारित करने के आशय से कोई ऐसा कार्य करेगा, जिससे ऐसी स्त्री की मृत्यु कारित हो जाए, वह दोनों में  से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

यदि वह कार्य स्त्री की सम्मति के बिना किया जाए - और यदि वह कार्य उस स्त्री की सम्मति के बिना किया जाए, तो वह आजीवन कारावास से या ऊपर बताए हुए दण्ड से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - इस अपराध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी जानता हो कि उस कार्य से मृत्यु कारित करना संभाव्य है।

315. शिशु का जीवित पैदा होना रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया कार्य -

जो कोई किसी शिशु के जन्म से पूर्व कोई कार्य इस आशय से करेगा कि उस शिशु का जीवित पैदा होना तद्द्वारा रोका जाए या जन्म के पश्चात् तद्द्वारा उसकी मृत्यु कारित हो जाए, और ऐसे कार्य से उस शिशु का जीवित पैदा होना रोकेगा, या उसके जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित कर देगा, यदि वह कार्य माता के जीवन को बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक नहीं किया गया हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

316. ऐसे कार्य द्वारा जो आपराधिक मानव वध की कोटि में आता है, किसी सजीव अजात शिशु की मृत्यु कारित करना -

जो कोई ऐसा कोई कार्य ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह तद्द्वारा मृत्यु कारित कर देता, तो वह आपराधिक मानव वध का दोषी होता और ऐसे कार्य द्वारा किसी सजीव अजात शिशु की मृत्यु कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

दृष्टांत -

क यह संभाव्य जानते हुए कि वह गर्भवती स्त्री की मृत्यु कारित कर दे, ऐसा कार्य करता है, जिससे यदि उससे उस स्त्री की मृत्यु कारित हो जाती, तो वह आपराधिक मानव वध की कोटि में आता। उस स्त्री को क्षति होती है, किन्तु उसकी मृत्यु नहीं होती, किन्तु तद्द्वारा उस अजात सजीव शिशु की मृत्यु हो जाती है, जो उसके गर्भ में है। क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।

317. शिशु के पिता या माता या उसकी देखरेख रखने वाले व्यक्ति द्वारा बारह वर्ष से कम आयु के शिशु का अरक्षित डाल दिया जाना और परित्याग -

जो कोई बारह वर्ष से कम आयु के शिशु का पिता या माता होते हुए, या ऐसे शिशु की देखरेख का भार रखते हुए, ऐसे शिशु का पूर्णत: परित्याग करने के आशय से उस शिशु को किसी स्थान में अरक्षित डाल देगा या छोड़ देगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - यदि शिशु अरक्षित डाल दिए जाने के परिणामस्वरूप मर जाए, तो, यथास्थिति, हत्या या आपराधिक मानव वध के लिए अपराधी का विचारण निवारित करना इस धारा से आशयित नहीं है।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 317 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय '' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण ) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित |]

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318. मृत शरीर के गुप्त व्ययन द्वारा जन्म छिपाना -

जो कोई किसी शिशु के मृत शरीर को गुप्त रूप से गाड़कर या अन्यथा उसका व्ययन करके चाहे ऐसे शिशु की मृत्यु उसके जन्म से पूर्व या पश्चात् या जन्म के दौरान में हुई हो, ऐसे शिशु के जन्म को साशय छिपाएगा या छिपाने का प्रयास करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से,जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 318 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय '' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2608 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित |]

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उपहति के विषय में

319. उपहति -

जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा, रोग या अंग शैथिल्य कारित करता है, वह उपहति करता है, यह कहा जाता है।

320. घोर उपहति -

उपहति की केवल नीचे लिखी किस्में “घोर” कहलाती हैं -

पहली - पुंसत्वहरण।

दूसरा - दोनों में से किसी भी नेत्र की दृष्टि का स्थायी विच्छेद।

तीसरा - दोनों में से किसी भी कान की श्रवण शक्ति का स्थायी विच्छेद।

चौथा - किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेद।

पाँचवाँ - किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का नाश या स्थायी हास।

छठा - सिर या चेहरे का स्थायी विद्रूपीकरण।

सातवाँ - अस्थि या दाँत का भंग या विसंधान।

आठवाँ - कोई उपहति जो जीवन को संकटापन्न करती है या जिसके कारण उपहत व्यक्ति बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा में रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने के लिए असमर्थ रहता है।

321. स्वेच्छया उपहति कारित करना -

जो कोई किसी कार्य को इस आशय से करता है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे या इस ज्ञान के साथ करता है कि यह संभाव्य है कि वह तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे और तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करता है, वह स्वेच्छया उपहति करता है, यह कहा जाता है।

322. स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना -

जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करता है, यदि वह उपहति, जिसे कारित करने का उसका आशय है या जिसे वह जानता है कि उसके द्वारा उसका किया जाना संभाव्य है घोर उपहति है और यदि वह उपहति, जो वह कारित करता है, घोर उपहति हो, तो वह “स्वेच्छया घोर उपहति करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण - कोई व्यक्ति स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह नहीं कहा जाता है सिवाय जबकि वह घोर उपहति कारित करता है और घोर उपहति कारित करने का उसका आशय हो या घोर उपहति कारित होना वह संभाव्य  जानता हो। किन्तु यदि वह यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए कि वह किसी एक किस्म की घोर उपहति कारित कर दे वास्तव में दूसरी ही किस्म की घोर उपहति कारित करता है तो वह स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह कहा जाता है। 

दृष्टांत -

क, यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए कि वह य के चेहरे को स्थायी रूप से विद्रूपित कर दे, य के चेहरे पर प्रहार करता है जिससे य का चेहरा स्थायी रूप से विद्रूपित तो नहीं होता, किन्तु जिससे य को बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा कारित होती है। क ने स्वेच्छया घोर उपहति कारित की है।

323. स्वेच्छया उपहति कारित करने के लिए दण्ड -

उस दशा के सिवाय, जिसके लिए धारा 334 में उपबंध है, जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

324. खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करना -

उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 334 में उपबंध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर उपयोग में लाया जाए, तो उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है या अग्नि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या किसी संक्षारक पदार्थ द्वारा या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुँचना मानव शरीर के लिए हानिकारक है, या किसी जीवजन्तु द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

325. स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिए दण्ड -

उस दशा के सिवाय, जिसके लिए धारा 335 में उपबन्ध है, जो कोई स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा , वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

326. खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना -

उस दशा के सिवाय, जिसके लिए धारा 335 में उपबंध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा, जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर उपयोग में लाया जाए तो उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है, या अग्नि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या संक्षारक पदार्थ द्वारा, या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा, या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुंचना मानव शरीर के लिए हानिकारक है, या किसी जीवजन्तु द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 326 के अधीन अपराध “'सत्र न्यायालय '' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 117-158 पर प्रकाशित । ]

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326 क. अम्ल, आदि का प्रयोग करके स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना -

जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग या किन्हीं भागों को उस व्यक्ति पर अम्ल फेंककर या उसे अम्ल देकर या किन्हीं अन्य साधनों का, ऐसा कारित करने के आशय या ज्ञान से कि यह संभाव्य है कि वह ऐसी क्षति या उपहति कारित करे, प्रयोग करके स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करता है या अंगविकार करता है या जलाता है या विकलांग बनाता है या विद्रूपित करता है या नि:शक्त बनाता है या घोर उपहति कारित करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा :

परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित के उपचार के चिकित्सीय खर्चे को पूरा करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा:

परन्तु यह और कि इस धारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़ित को संदत्त किया जाएगा।

326 ख. स्वेच्छया अम्ल फेंकना या फेंकने का प्रयत्न करना -

जो कोई, किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करने या उसका अंगविकार करने या जलाने या विकलांग बनाने या विद्रूपित करने या नि:शक्त बनाने या घोर उपहति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति पर अम्ल फेंकता है या फेंकने का प्रयत्न करता है या किसी व्यक्ति को अम्ल देता है या अम्ल देने का प्रयत्न करता है या किसी अन्य साधन का उपयोग करने का प्रयत्न करता है, वह दोनों में से  किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1.- धारा 326क और इस धारा के प्रयोजनों के लिए “अम्ल' में कोई ऐसा पदार्थ सम्मिलित है , जो ऐसे अम्लीय या संक्षारक स्वरूप या ज्वलन प्रकृति का है, जो ऐसी शारीरिक क्षति करने योग्य है, जिससे क्षतचिह्न बन जाते हैं या विद्रूपता या अस्थायी या स्थायी नि:शक्तता हो जाती है।

स्पष्टीकरण 2.- धारा 326क और इस धारा के प्रयोजनों के लिए स्थायी या आंशिक नुकसान या अंगविकार का अपरिवर्तनीय होना आवश्यक नहीं होगा।

327. सम्पत्ति उद्दापित करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करना -

जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्दापित की जाए, या उपहत व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को कोई ऐसी बात, जो अवैध हो, या जिससे किसी अपराध का किया जाना सुकर होता है, करने के लिए मजबूर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

328. अपराध करने के आशय से विष इत्यादि द्वारा उपहति कारित करना -

जो कोई इस आशय से कि किसी व्यक्ति को उपहति कारित की जाए या अपराध करने के, या किए जाने को सुकर बनाने के आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा उपहति कारित करेगा, कोई विष या जड़िमाकारी, नशा करने वाली या अस्वास्थ्यकर औषधि या अन्य चीज उस व्यक्ति को देगा या उसके द्वारा लिया जाना कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

329. संपत्ति उद्दापित करने के लिए या अवैध कार्य कराने को मजबूर करने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना -

जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्दापित की जाए, या उपहत व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को कोई बात, जो ऐसी वैध हो या जिससे किसी अपराध का किया जाना सुकर होता हो, करने के लिए मजबूर किया जाए, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

330. संस्वीकृति उद्दापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करना -

जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध अथवा अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए, अथवा उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध व्यक्ति को मजबूर किया जाए कि वह कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्तित करे, या करवाए, या किसी दावे या माँग की पुष्टि, या ऐसी जानकारी दे, जिससे किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

दृष्टांत -

(क) क, एक पुलिस ऑफिसर, य को यह संस्वीकृति करने को कि उसने अपराध किया है उत्प्रेरित करने के लिए यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(ख) क, एक पुलिस ऑफिसर, यह बतलाने को कि अमुक चुराई हुई संपत्ति कहाँ रखी है उत्प्रेरित करने के लिए ख को यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(ग) क, एक राजस्व ऑफिसर, राजस्व की वह बकाया, जो य द्वारा शोध्य है, देने को य को विवश करने के लिए उसे यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है। 

(घ) क, एक जमींदार, भाटक देने को विवश करने के लिए अपनी एक रैयत को यातना देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

331. संस्वीकृति उद्दापित करने के लिए या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना -

जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध अथवा अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए, अथवा उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध व्यक्ति को मजबूर किया जाए कि वह कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्तित करे या करवाए, या किसी दावे या मांग की पुष्टि करे, या ऐसी जानकारी दे, जिससे किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

332. लोक सेवक को अपने कर्तव्य से भयोपरत करने के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करना -

जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हो अथवा इस आशय से कि उस व्यक्ति को या किसी अन्य लोक सेवक को, वैसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित या भयोपरत करे अथवा वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या किए जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

333. लोक सेवक को अपने कर्तव्यों से भयोपरत करने के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना -

जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जो लोक सेवक हो, उस समय जब वह वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हो अथवा इस आशय से कि उस व्यक्ति को, या किसी अन्य लोक सेवक को, लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित करे या भयोपरत करे, अथवा वैसे लोक सेवक के नाते उस व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या किए जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

334. प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति कारित करना -

जो कोई गंभीर और अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ति से भिन्न, जिसने प्रकोपन दिया था, किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी उपहति कारित किया जाना संभाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

335. प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना -

जो कोई गंभीर और अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ति से भिन्न, जिसने प्रकोपन दिया था, किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी उपहति कारित किया जाना संभाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चार वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।  

स्पष्टीकरण - अंतिम दो धाराएं उन्हीं परन्तुकों के अध्यधीन हैं, जिनके अध्यधीन धारा 300 का अपवाद 1 है।

336, कार्य जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो -

जो कोई इतने उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करेगा कि उससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न होता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो ढाई सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

337. ऐसे कार्य द्वारा उपहति कारित करना, जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए -

जो कोई ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करने द्वारा, जिससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए, किसी व्यक्ति को उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

338. ऐसे कार्य द्वारा घोर उपहति कारित करना जिससे दूसरों का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए -

जो कोई ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कार्य करने द्वारा, जिससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए, किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

सदोष अवरोध और सदोष परिरोध के विषय में

339. सदोष अवरोध -

जो कोई किसी व्यक्ति को स्वेच्छया ऐसे बाधा डालता है कि उस व्यक्ति को उस दिशा में, जिसमें उस व्यक्ति को जाने का अधिकार है, जाने से निवारित कर दे, वह उस व्यक्ति का सदोष अवरोध करता है, यह कहा जाता है।  

अपवाद - भूमि के या जल के किसी प्राइवेट मार्ग में बाधा डालना जिसके संबंध में किसी व्यक्ति को सद्भावपूर्वक विश्वास है कि वहां बाधा डालने का उसे विधिपूर्ण अधिकार है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध नहीं है।

दृष्टांत -

क एक मार्ग में, जिससे होकर जाने का य का अधिकार है, सद्भावपूर्वक यह विश्वास न रखते हुए कि उसको मार्ग रोकने का अधिकार प्राप्त है, बाधा डालता है। य जाने से तद्द्वारा रोक दिया जाता है। क, य का सदोष अवरोध करता है।

340. सदोष परिरोध -

जो कोई किसी व्यक्ति का इस प्रकार सदोष अवरोध करता है, कि उस व्यक्ति को निश्चित परिसीमा से परे जाने से निवारित कर दे, वह उस व्यक्ति का सदोष परिरोध करता है, यह कहा जाता है।

दृष्टांत -

(क) य को दीवार से घिरे हुए स्थान में प्रवेश कराकर क उसमें ताला लगा देता है। इस प्रकार य दीवार की परिसीमा से परे किसी भी दिशा में नहीं जा सकता। क ने य का सदोष परिरोध किया है।

(ख) क एक भवन के बाहर जाने के द्वारों पर बन्दूकधारी मनुष्यों को बैठा देता है और य से कह देता है कि यदि य भवन के बाहर जाने का प्रयत्न करेगा, तो वे य को गोली मार देंगे। क ने य का सदोष परिरोध किया है।

341. सदोष अवरोध के लिए दण्ड -

जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

342. सदोष परिरोध के लिए दण्ड -

जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

343. तीन या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध -

जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध तीन या अधिक दिनों के लिए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

344. दस या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध -

जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध दस या अधिक दिनों के लिए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

345. ऐसे व्यक्ति का सदोष परिरोध जिसके छोड़ने के लिए रिट निकल चुका है -

जो कोई यह जानते हुए किसी व्यक्ति को सदोष परिरोध में रखेगा कि उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए रिट सम्यक् रूप से निकल चुका है वह किसी अवधि के उस कारावास के अतिरिक्त, जिससे कि वह इस अध्याय की किसी अन्य धारा के अधीन दण्डनीय हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।

346. गुप्त स्थान में सदोष परिरोध -

जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रकार करेगा जिससे यह आशय प्रतीत होता हो कि ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति से हितबद्ध किसी व्यक्ति को या किसी लोक सेवक को ऐसे व्यक्ति के परिरोध की जानकारी न होने पाए या एतस्मिन् पूर्व वर्णित किसी ऐसे व्यक्ति या लोक सेवक को, ऐसे परिरोध के स्थान की जानकारी न होने पाए या उसका पता वह न चला पाए, वह उस दण्ड के अतिरिक्त जिसके लिए वह ऐसे सदोष परिरोध के लिए दण्डनीय हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।

347. संपत्ति उद्दापित करने के लिए या अवैध कार्य करने के लिए मजबूर करने के लिए सदोष परिरोध -

जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा, कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्दापित की जाए, अथवा उस परिरुद्ध व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को कोई ऐसी अवैध बात करने के लिए, या कोई ऐसी जानकारी देने के लिए जिससे अपराध का किया जाना सुकर हो जाए, मजबूर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

348. संस्वीकृति उद्दापित करने के लिए या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन करने के लिए सदोष परिरोध -

जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा, कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध या अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए, या वह परिरुद्ध व्यक्ति या उससे हितबद्ध कोई व्यक्ति मजबूर किया जाए कि वह किसी संपत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति को प्रत्यावर्तित करे या करवाए या किसी दावे या मांग की तुष्टि करे या कोई ऐसी जानकारी दे जिससे किसी संपत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

आपराधिक बल और हमले के विषय में

349. बल -

कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर बल प्रयोग करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस अन्य व्यक्ति में गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है या यदि वह किसी पदार्थ में ऐसी गति, गति परिवर्तन या गतिहीनता कारित कर देता है, जिससे उस पदार्थ का स्पर्श उस अन्य व्यक्ति के शरीर के किसी भाग से या किसी ऐसी चीज से, जिसे वह अन्य व्यक्ति पहने हुए है या ले जा रहा है, या किसी ऐसी चीज से, जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे संस्पर्श से उस अन्य व्यक्ति की संवेदन शक्ति पर प्रभाव पड़ता है, हो जाता है :

परन्तु यह तब जबकि गतिमान, गति-परिवर्तन या गतिहीन करने वाला व्यक्ति उस पर गति, गति-परिवर्तन या गतिहीनता को एतस्मिन् पश्चात् वर्णित तीन तरीकों में से किसी एक द्वारा कारित करता है, अर्थात् :

पहला -- अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा।

दूसरा -- किसी पदार्थ के इस प्रकार व्ययन द्वारा कि उसके अपने या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई अन्य कार्य के किए जाने के बिना ही गति या गति परिवर्तन या गतिहीनता घटित होती है।

तीसरा - किसी जीव जन्तु को गतिमान होने, गति-परिवर्तन करने या गतिहीन होने के लिए उत्प्रेरण द्वारा।

 350. आपराधिक बल -

जो कोई किसी व्यक्ति पर उस व्यक्ति की सम्मति के बिना बल का प्रयोग किसी अपराध को करने के लिए या उस व्यक्ति को, जिस पर बल का प्रयोग किया जाता है, क्षति, भय या क्षोभ, ऐसे बल के प्रयोग से कारित करने के आशय से, या ऐसे बल के प्रयोग से संभाव्यतः कारित करेगा यह जानते हुए साशय करता है, वह उस अन्य व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है, यह कहा जाता है।

दृष्टांत -

(क) य नदी के किनारे रस्सी से बंधी हुई नाव पर बैठा है। क रस्सियों को उबंधित करता है और उस प्रकार नाव को धार में साशय बहा देता है। वहां क, य को साशय गतिमान करता है, और वह ऐसा उन पदार्थों को ऐसी रीति से व्ययनित करके करता है कि किसी व्यक्ति की ओर से कोई अन्य कार्य किए बिना ही गति उत्पन्न हो जाती है। अतएव, क ने य पर बल का प्रयोग साशय किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य कोई अपराध करने के लिए, या यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए किया है कि ऐसे बल के प्रयोग से वह य को क्षति, भय या क्षोभ कारित करे, तो क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(ख) य एक रथ में सवार होकर चल रहा है। क, य के घोड़ों को चाबुक मारता है, और उसके द्वारा उनकी चाल को तेज कर देता है। यहां क ने जीवजन्तुओं को उनकी अपनी गति परिवर्तित करने के लिए उत्प्रेरित करके य का गति परिवर्तन कर दिया है। अतएव, क ने य पर बल का प्रयोग किया है, और यदि क ने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे तो क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(ग) य एक पालकी में सवार होकर चल रहा है। य को लूटने का आशय रखते हुए क पालकी का डंडा पकड़ लेता है, और पालकी को रोक देता है। यहां, क ने य को गतिहीन किया है, और यह उसने अपनी शारीरिक शक्ति द्वारा किया है। अतएव क ने य पर बल का प्रयोग किया है, और क ने य की सम्मति के बिना यह कार्य अपराध करने के लिए साशय किया है, इसलिए क ने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(घ)  क सड़क पर साशय य को धक्का देता है। यहां क ने अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा अपने शरीर को इस प्रकार गति दी है कि वह य के संस्पर्श में आए अतएव उसने साशय य पर बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(ङ) क यह आशय रखते हुए या यह बात संभाव्य जानते हुए एक पत्थर फेंकता है कि वह पत्थर इस प्रकार य, या य के वस्त्र के या य द्वारा ले जाई जाने वाली किसी वस्तु के संस्पर्श में आएगा या कि वह पानी में गिरेगा और उछलकर पानी य के कपड़ों पर या य द्वारा ले जाई जाने वाली किसी वस्तु पर जा पड़ेगा। यहां, यदि पत्थर के फेंके जाने से यह परिणाम उत्पन्न हो जाए कि कोई पदार्थ य, या य के वस्त्रों के संस्पर्श में आ जाए तो क ने य पर बल का प्रयोग किया है; और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य उसके द्वारा य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करने का आशय रखते हुए किया है, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(च) क किसी स्त्री का घूंघट साशय हटा देता है। यहां क ने उस पर साशय बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने उस स्त्री की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए किया है कि उससे उसको क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न हो, तो उसने उस पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(छ) य स्नान कर रहा है। क स्नान करने के टब में ऐसा जल डाल देता है जिसे वह जानता है कि वह उबल रहा है। यहां, क उबलते हुए जल में ऐसी गति को अपनी शारीरिक शक्ति द्वारा साशय उत्पन्न करता है कि उस जल का संस्पर्श य से होता है या अन्य जल से होता है, जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे संस्पर्श से य की संवेदन शक्ति प्रभावित होती है; इसलिए क ने य पर साशय बल का प्रयोग किया है, और यदि उसने य की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे य को क्षति, भय या क्षोभ उत्पन्न करे, तो क ने आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

(ज) क, य की सम्मति के बिना, एक कुत्ते को य पर झपटने के लिए भड़काता है। यहाँ यदि क का आशय य को क्षति, भय या क्षोभ कारित करने का है, तो उसने य पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है। GO toTOP

351. हमला -

जो कोई, कोई अंगविक्षेप या कोई तैयारी इस आशय से करता है, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि ऐसे अंगविक्षेप या ऐसी तैयारी करने से किसी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका हो जाएगी कि जो वैसा अंगविक्षेप या तैयारी करता है, वह उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने ही वाला है, वह हमला करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण - केवल शब्द हमले की कोटि में नहीं आते, किन्तु जो शब्द कोई व्यक्ति प्रयोग करता है, वे उसके अंगविक्षेप या तैयारियों को ऐसा अर्थ दे सकते हैं जिससे वे अंगविक्षेप या तैयारियां हमले की कोटि में आ जाएं। 

दृष्टांत -

(क) य पर अपना मुक्का क इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए हिलाता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि क, य को मारने वाला ही है। क ने हमला किया है।

(ख) क एक हिंसक कुत्ते की मुखबंधनी इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए खोलना आरंभ करता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि वह य पर कुत्ते से आक्रमण कराने वाला है। क ने य पर हमला किया है। 

(ग) य से यह कहते हुए कि “मैं तुम्हें पीटूंगा” क एक छड़ी उठा लेता है। यहां यद्यपि क द्वारा प्रयोग में लाए गए शब्द किसी अवस्था में हमले की कोटि में नहीं आते और यद्यपि केवल अंग-विक्षेप बनाना जिसके साथ अन्य परिस्थितियों का अभाव है, हमले की कोटि में न भी आए तथापि शब्दों द्वारा स्पष्टीकृत वह अंगविक्षेप हमले की कोटि में आ सकता है।

352. गंभीर प्रकोपन होने से अन्यथा हमला करने या आपराधिक बल का प्रयोग करने के लिए दण्ड -

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा गंभीर और अचानक प्रकोपन दिए जाने पर करने से अन्यथा करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा

स्पष्टीकरण - इस धारा के अधीन किसी अपराध के दण्ड में कमी गंभीर और अचानक प्रकोपन के कारण न होगी, यदि वह प्रकोपन अपराध करने के लिए प्रतिहेतु के रूप में अपराधी द्वारा ईप्सित या स्वेच्छया प्रकोपित किया गया हो, अथवा 

यदि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा दिया गया हो जो विधि के पालन में, या किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्ति के विधिपूर्ण प्रयोग में, की गई हो, अथवा

यदि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा दिया गया हो जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो।

प्रकोपन अपराध को कम करने के लिए पर्याप्त गंभीर और अचानक था या नहीं, यह तथ्य का प्रश्न है ।

353. लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से भयोपरत करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग - 

जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति पर ,जो लोक सेवक हो, उस समय जब वैसे लोक सेवक के नाते वह उसके अपने कर्तव्य का निष्पादन कर रहा हो, या इस आशय से कि उस व्यक्ति को वैसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन से निवारित करे या भयोपरत करे या ऐसे लोक सेवक के नाते उसके अपने कर्तव्य के विधिपूर्ण निर्वहन में की गई या की जाने के लिए प्रयतित किसी बात के परिणामस्वरूप हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

354. स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग -

जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से यह संभाव्य जानते हुए कि तद्द्वारा वह उसकी लज्जा भंग करेगा, उस स्त्री पर हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

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राज्य संशोधन 

छत्तीसगढ़ - धारा 354 में निम्नलिखित परन्तुक अंतःस्थापित किया जाए, अर्थात्‌ :-

“परन्तु यह कि जहां इस धारा के अंतर्गत अपराध किसी रिश्तेदार, अभिभावक या शिक्षक या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा कारित किया जाता है जिसका पीड़ित व्यक्ति से विश्वास आश्रित या प्राधिकारवान संबंध हों, तो वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास जिसकी अवधि दो वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु सात वर्ष तक की हो सकेगी एवं जुमनि से भी दंडित किया जाएगा।

[देखें दण्ड विधि (छ.ग. संशोधन) अधिनियम, 2013 (क्र. 25 सन्‌ 2015), धारा 3 (दिनांक 21-7-2015 से प्रभावशील) । छ.ग. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 21-7-2015 पृष्ठ 777-778 (9) पर प्रकाशित ।]

मध्यप्रदेश - धारा 354 के पश्चात्‌ निम्नलिखित नई धारा अंत:स्थापित की जाए, अर्थात्‌ :-

354-.  किसी स्त्री के कपड़े उतारने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग -
जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से या यह संभाव्य जानते हुए कि ऐसे हमले द्वारा वह किसी सार्वजनिक स्थान पर उसके कपड़े उतारकर या उसे नग्न होने के लिए विवश करके, उसकी लज्जा भंग करेगा या करवाएगा , उस स्त्री पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग करेगा या स्त्री पर हमला करने के लिए दुष्प्रेरण या षड्यंत्र करेगा या ऐसा आपराधिक बल प्रयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से,जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुमनि का भी दायी होगा।

[देखें म.प्र. अधिनियम सं. 14 सन्‌ 2004 की धारा 3 (2-12-2004 से प्रभावशील) | म्र.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 2-12-2004 पेज 1037-1038 पर प्रकाशित |]

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354 क. लैंगिक उत्पीड़न और लैंगिक उत्पीड़न के लिये दण्ड -

(1) ऐसा कोई निम्नलिखित कार्य, अर्थात्: -

(i) शारीरिक संपर्क और अग्रक्रियाएं करने, जिनमें अवांछनीय और लैंगिक संबंध बनाने संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव अंतर्वलित हों; या 

(ii) लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करने; या

(i) किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध बलात् अश्लील साहित्य दिखाने; या

(iv) लैंगिक आभासी टिप्पणियां करने, वाला पुरुष लैंगिक उत्पीडन के अपराध का दोषी होगा।

(2) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खण्ड (i) या खण्ड (ii) या खण्ड (iii) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

(3) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खण्ड (iv) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

354 ख. विवस्त्र करने के आशय से स्त्री पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग -

ऐसा कोई पुरुष, जो किसी स्त्री को विवस्त्र करने या निर्वस्त्र होने के लिए बाध्य करने के आशय से उस पर हमला करेगा या उसके प्रति आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या ऐसे कृत्य का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

354 ग. दृश्यरतिकता -

ऐसा कोई पुरुष, जो कोई ऐसी किसी स्त्री को, जो उन परिस्थितियों के अधीन, जिनमें वह यह प्रत्याशा करती है कि उसे अपराध करने वाला या अपराध करने वाले के कहने पर कोई अन्य व्यक्ति देख नहीं रहा होगा, किसी प्राइवेट कृत्य में लगी किसी स्त्री को एकटक देखेगा या उसका चित्र खींचेगा अथवा उस चित्र को प्रसारित करेगा, प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडित किया जाएगा और द्वितीय अथवा पश्चात्वर्ती किसी दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1- इस धारा के प्रयोजनों के लिये, “प्राइवेट कृत्य" के अंतर्गत ऐसे किसी स्थान में देखने का कार्य किया जाता है, जिसके संबंध में, परिस्थितियों के अधीन, युक्तियुक्त रूप से यह प्रत्याशा की जाती है कि वहां एकांतता होगी और जहां कि पीड़िता के जननांगों, नितंबों या वक्षस्थलों को अभिदर्शित किया जाता है या केवल अधोवस्त्र से ढंका जाता है अथवा जहां पीड़िता किसी शौचघर का प्रयोग कर रही है; या जहां पीड़िता ऐसा कोई लैंगिक कृत्य कर रही है जो ऐसे प्रकार का नहीं है जो साधारणतया सार्वजनिक तौर पर किया जाता है।

स्पष्टीकरण 2- जहां पीड़िता चित्रों या किसी अभिनय के चित्र को खींचने के लिए सम्मति देती है किन्तु अन्य व्यक्तियों को उन्हें प्रसारित करने की सम्मति नहीं देती है और जहां उस चित्र या कृत्य का प्रसारण किया जाता है वहां ऐसे प्रसारण को इस धारा की अधीन अपराध माना जाएगा।

354 घ. पीछा करना -

(1) ऐसा कोई पुरुष, जो -

(i) किसी स्त्री का उससे व्यक्तिगत अन्योन्य क्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, उस स्त्री द्वारा स्पष्ट रूप से अनिच्छा उपदर्शित किए जाने के बावजूद, बारंबार पीछा करता है और संपर्क करता है या संपर्क करने का प्रयत्न करता है; अथवा

(ii) जो कोई किसी स्त्री द्वारा इंटरनेट, ई-मेल या किसी अन्य प्ररूप की इलैक्ट्रानिक संसूचना का प्रयोग किए जाने को मानीटर करता है,

वह पीछा करने का अपराध करता है।

परन्तु ऐसा आचरण पीछा करने की कोटि में नहीं आएगा, यदि वह पुरुष, जो ऐसा करता है, यह साबित कर देता है कि 

(i) ऐसा कार्य अपराध के निवारण या पता लगाने के प्रयोजन के लिए किया गया था और पीछा करने के अभियुक्त पुरुष को राज्य द्वारा उस अपराध के निवारण और पता लगाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया था; या

(ii) ऐसा किसी विधि के अधीन या किसी विधि के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा अधिरोपित किसी शर्त या अपेक्षा का पालन करने के लिए किया गया था; या

(iii) विशिष्ट परिस्थितियों में ऐसा आचरण कार्य युक्तियुक्त और न्यायोचित था।

(2) जो कोई पीछा करने का अपराध करता है, वह प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा; और द्वितीय तथा पश्चात्वर्ती किसी दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

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राज्य संशोधन

छत्तीसगढ़ - धारा 354 घ के पश्चात्‌ निम्नलिखित अंतः स्थापित किया जाए, अर्थात्‌ :-

354 ङ. धारा 354, 354, 354, 3547, 354घ के अंतर्गत अपराध कारित होने से रोकने में विफल रहने वाले व्यक्ति का दायित्व - जो कोई, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 354ग या धारा 354घ का अपराध कारित होते समय उपस्थित रहता है और ऐसे अपराध को कारित होने से रोकने की स्थिति में होते हुए भी ऐसे अपराध को कारित होने से रोकने में विफल रहता है या यदि वह अपराध को कारित होने से रोकने की स्थिति में नहीं है तो अपराधी को वैध दण्ड से बचाने के आशय से ऐसे किसी अपराध के कारित होने की सूचना किसी भी तरीके से निकटस्थ मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को देने में विफल रहता है तो वह ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण के लिए दायी होते हुए दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुमनि से या दोनों से दण्डित किया जाएगा ।”

[देखे दण्ड विधि (छ.ग. संशोधन) अधिनियम, 2013 (क्र. 25 सन्‌ 2015), धारा 4 (दिनांक 21-7-26015 से प्रभावशील) । छ.ग. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 21-7-2015 पृष्ठ 777-778(9) पर प्रकाशित ।]

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355. गंभीर प्रकोपन होने से अन्यथा किसी व्यक्ति का अनादर करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग -

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा गंभीर और अचानक प्रकोपन दिए जाने पर करने से अन्यथा, इस आशय से करेगा कि तद्द्वारा उसका अनादर किया जाए, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

356. किसी व्यक्ति द्वारा ले जाई जाने वालीसम्पत्ति की चोरी के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग -

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग किसी ऐसी सम्पत्ति की चोरी करने के प्रयत्न में करेगा, जिसे वह व्यक्ति उस समय पहने हुए हो, या लिए आ रहा हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

357. किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्नों में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग -

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति का सदोष परिरोध करने का प्रयत्न करने में करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

358. गंभीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग -

जो कोई किसी व्यक्ति पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग उस व्यक्ति द्वारा दिए गए गंभीर और अचानक प्रकोपन पर करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - अंतिम धारा उसी स्पष्टीकरण के अध्यधीन है जिसके अध्यधीन धारा 352 है।

359. व्यपहरण -

व्यपहरण दो किस्म का होता है; भारत में से व्यपहरण और विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण।

360. भारत में से व्यपहरण -

जो कोई किसी व्यक्ति का, उस व्यक्ति की, या उस व्यक्ति की ओर से सम्मति देने के लिए वैध रूप से प्राधिकृत किसी व्यक्ति की सम्मति के बिना, भारत की सीमाओं से परे प्रवहण कर देता है, वह भारत में से उस व्यक्ति का व्यपहरण करता है, यह कहा जाता है।

361. विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण -

जो कोई किसी अप्राप्तवय को, यदि वह नर हो, तो सोलह वर्ष से कम आयु वाले को, या यदि वह नारी हो तो, अठारह वर्ष से कम आयु वाली को या किसी विकृतचित्त व्यक्ति को ऐसे अप्राप्तवय या विकृतचित्त व्यक्ति के विधिपूर्ण संरक्षकता में से ऐसे संरक्षक की सम्मति के बिना ले जाता है या बहका ले जाता है, वह ऐसे अप्राप्तवय या ऐसे व्यक्ति का विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण - इस धारा में “विधिपूर्ण संरक्षक” शब्दों के अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति आता है जिस पर ऐसे अप्राप्तवय या अन्य व्यक्ति की देखरेख या अभिरक्षा का भार विधिपूर्वक न्यस्त किया गया है।

अपवाद - इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति के कार्य पर नहीं है, जिसे सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि वह किसी अधर्मज शिशु का पिता है, या जिसे सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि वह ऐसे शिशु की विधिपूर्ण अभिरक्षा का हकदार है, जब तक कि ऐसा कार्य दुराचारिक या विधिविरुद्ध प्रयोजन के लिए न किया जाए।

362. अपहरण -

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है, या किन्हीं प्रवंचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है, वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है, यह कहा जाता है।

363. व्यपहरण के लिए दण्ड -

जो कोई भारत में से या विधिपूर्ण संरक्षकता में से किसी व्यक्ति का व्यपहरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 363 के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

उत्तरप्रदेश - धारा 363 के अधीन अपराध अजमानतीय है।

[देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 1 सन्‌ 1984, धारा 12 (दिनांक 1-5-1984 से प्रभावशील)]

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363 क. भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए अप्राप्तवय का व्यपहरण या विकलांगीकरण -

(1) जो कोई किसी अप्राप्तवय का इसलिए व्यपहरण करेगा या अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक स्वयं न होते हुए अप्राप्तवय की अभिरक्षा इसलिए अभिप्राप्त करेगा कि ऐसा अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

(2) जो कोई किसी अप्राप्तवय को विकलांग इसलिए करेगा कि ऐसा अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए, वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

(3) जहां कि कोई व्यक्ति जो अप्राप्तवय का विधिपूर्ण संरक्षक नहीं है, उस अप्राप्तवय को भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त करेगा वहां जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जायेगी कि उसने इस उद्देश्य से उस अप्राप्तवय का व्यपहरण किया था या अन्यथा उसकी अभिरक्षा अभिप्राप्त की थी कि वह अप्राप्तवय भीख मांगने के प्रयोजनों के लिए नियोजित या प्रयुक्त किया जाए।

(4) इस धारा में, - (क) “भीख मांगने” से अभिप्रेत है -

    (i) लोक स्थान में भिक्षा की याचना या प्राप्ति चाहे गाने, नाचने, भाग्य बताने, करतब दिखाने या चीजें बेचने के बहाने अथवा अन्यथा करना, 

   (ii) भिक्षा की याचना या प्राप्ति करने के प्रयोजन से किसी प्राइवेट परिसर में प्रवेश करना,

  (iii) भिक्षा अभिप्राप्त या उद्दापित करने के उद्देश्य से अपना या किसी अन्य व्यक्ति का या जीवजन्तु का कोई व्रण, घाव, क्षति, विरूपता या रोग अभिदर्शित या प्रदर्शित करना,

   (iv) भिक्षा की याचना या प्राप्ति के प्रयोजन से अप्राप्तवय का प्रदर्शित के रूप में प्रयोग करना,

(ख) अप्राप्तवय से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो -

   (i) यदि नर है, तो सोलह वर्ष से कम आयु का है; तथा

  (ii) यदि नारी है, तो अठारह वर्ष से कम आयु की है।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 363 क के अधीन अपराध “'सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है। 

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 1457-158 पर प्रकाशित ।]

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364. हत्या करने के लिए व्यपहरण या अपहरण -

जो कोई इसलिए किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा कि ऐसे व्यक्ति की हत्या की जाए या उसको ऐसे व्ययनित किया जाए कि वह अपनी हत्या होने के खतरे में पड़ जाए, वह आजीवन कारावास से या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

दृष्टांत -

(क) क इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए कि किसी देव मूर्ति पर य की बलि चढ़ाई जाए भारत में से य का व्यपहरण करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) ख को उसके गृह से क इसलिए बलपूर्वक या बहकाकर ले जाता है कि ख की हत्या की जाए। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

364 क. मुक्ति-धन आदि के लिए व्यपहरण -

जो कोई किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा या ऐसे व्यपहरण या अपहरण के पश्चात् ऐसे व्यक्ति को निरोध में रखेगा और ऐसे व्यक्ति को मृत्यु कारित करने या उपहति करने के लिए धमकी देगा या अपने इस आचरण से ऐसी युक्तियुक्त आशंका पैदा करेगा कि ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है या उपहति की जा सकती है या कोई कार्य करने या कोई कार्य करने से प्रविरत रहने के लिए या मुक्ति धन देने के लिए सरकार या किसी विदेशी राज्य या अन्तर राष्ट्रीय अन्तर सरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति को विवश करने के लिए ऐसे व्यक्ति को उपहति करेगा या मृत्यु कारित करेगा, वह मृत्यु से या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

365. किसी व्यक्ति का गुप्त रीति से और सदोष परिरोध करने के आशय से व्यपहरण या अपहरण -

जो कोई इस आशय से किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करेगा कि उसका गुप्त रीति से और सदोष परिरोध किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 365 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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366. विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री को व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना -

जो कोई किसी स्त्री का व्यपहरण या अपहरण उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से  विवाह करने के लिए उस स्त्री को विवश करने के आशय से या वह विवश की जाएगी, यह संभाव्य जानते हुए अथवा अयुक्त संभोग करने के लिए उस स्त्री को विवश या विलुब्ध करने के लिए या वह स्त्री अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और जो कोई किसी स्त्री को किसी अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या वह विवश या विलुब्ध की जाएगी, यह संभाव्य जानते हुए इस संहिता में यथा परिभाषित आपराधिक अभित्रास द्वारा अथवा प्राधिकार के दुरुपयोग या विवश करने के अन्य साधन द्वारा उस स्त्री को किसी स्थान से जाने को उत्प्रेरित करेगा, वह भी पूर्वोक्त प्रकार से दण्डित किया जाएगा।

366 क. अप्राप्तवय लड़की का उपापन -

जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु की अप्राप्तवय लड़की को अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा विवश या विलुब्ध किया जाएगा यह संभाव्य जानते हुए ऐसी लड़की को किसी स्थान से जाने को या कोई कार्य करने को किसी भी साधन द्वारा उत्प्रेरित करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

366 ख. विदेश से लड़की का आयात करना -

जो कोई इक्कीस वर्ष से कम आयु की किसी लड़की को भारत के बाहर के किसी देश से या जम्मू-कश्मीर राज्य से आयात, उसे किसी अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या एतद्द्वारा वह विवश या विलुब्ध की जाएगी यह संभाव्य जानते हुए करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

367. व्यक्ति को घोर उपहति, दासत्व, आदि का विषय बनाने के उद्देश्य से व्यपहरण या अपहरण -

जो कोई किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण इसलिए करेगा कि उसे घोर उपहति या दासत्व का या किसी व्यक्ति की प्रकृति विरुद्ध काम-वासना का विषय बनाया जाए या बनाए जाने के खतरे में वह जैसे पड़ सकता है वैसे उसे व्ययनित किया जाए, या सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे व्यक्ति को उपर्युक्त बातों का विषय बनाया जाएगा या उपर्युक्त रूप से व्ययनित किया जाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

368. व्यपहृत या अपहृत व्यक्ति को सदोष छिपाना या परिरोध में रखना -

जो कोई यह जानते हुए कि कोई व्यक्ति व्यपहृत या अपहृत किया गया है, ऐसे व्यक्ति को सदोष छिपाएगा या परिरोध में रखेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा मानो उसने उसी आशय या ज्ञान या प्रयोजन से ऐसे व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण किया हो जिससे उसने ऐसे व्यक्ति को छिपाया या परिरोध में निरुद्ध रखा है।

369. दस वर्ष से कम आयु के शिशु के शरीर पर से चोरी करने के आशय से उसका व्यपहरण या अपहरण -

जो कोई दस वर्ष से कम आयु के किसी शिशु का इस आशय से व्यपहरण या अपहरण करेगा कि ऐसे शिशु के शरीर पर से कोई जंगम सम्पत्ति बेईमानी से ले ले, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

370. व्यक्ति का दुर्व्यापार -

(1) जो कोई, शोषण के प्रयोजन के लिये, -

पहला - धमकियों का प्रयोग करके; या

दूसरा - बल या किसी भी अन्य प्रकार के प्रपीड़न का प्रयोग करके; या

तीसरा - अपहरण द्वारा; या

चौथा - कपट का प्रयोग करके या प्रवंचना द्वारा; या

पांचवां - शक्ति का दुरुपयोग करके; या

छठवां - उत्प्रेरणा द्वारा, जिसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति की, जो भर्ती किए गए, परिवहनत, संश्रित, स्थानांतरित या गृहीत व्यक्ति पर नियंत्रण रखता है, सम्मति प्राप्त करने के लिए भुगतान या फायदे देना या प्राप्त करना भी आता है,

किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों को भर्ती करता है, परिवहनत करता है, संश्रय देता है, स्थानांतरित करता है, या गृहीत करता है, वह दुर्व्यापार का अपराध करता है।

स्पष्टीकरण 1- “शोषण" पद के अंतर्गत शारीरिक शोषण का कोई कृत्य या किसी प्रकार का लैंगिक शोषण, दासता या दासता, अधिसेविता के समान व्यवहार या अंगों का बलात् अपसारण भी है।

स्पष्टीकरण 2 - दुर्व्यापार के अपराध के अवधारण में पीड़ित की सम्मति महत्वहीन है।

(2) जो कोई दुर्व्यापार का अपराध करेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

(3) जहां अपराध में एक से अधिक व्यक्तियों का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। 

(4) जहां अपराध में किसी अवयस्क का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

(5) जहां अपराध में एक से अधिक अवयस्कों का दुर्व्यापार अंतर्वलित है, वहां वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

(6) यदि किसी व्यक्ति को अवयस्क का एक से अधिक अवसरों पर दुर्व्यापार किए जाने के अपराध के लिए सिद्ध दोष ठहराया जाता है तो ऐसा व्यक्ति आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

(7) जहां कोई लोक सेवक या कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति के दुर्व्यापार में अंतर्वलित है, वहां ऐसा लोक सेवक या पुलिस अधिकारी आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

370 क. ऐसे व्यक्ति का, जिसका दुर्व्यापार किया गया है, शोषण -

(1) जो कोई यह जानते हुए या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी अवयस्क का दुर्व्यापार किया गया है, ऐसे अवयस्क को किसी भी रीति में लैंगिक शोषण के लिए रखेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। 

(2) जो कोई यह जानते हुए या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि किसी व्यक्ति का दुर्व्यापार किया गया है, ऐसे व्यक्ति को किसी भी रीति में लैंगिक शोषण के लिए रखेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

371. दासों का अभ्यासिक व्यौहार करना -

जो कोई अभ्यासतः दासों को आयात करेगा, निर्यात करेगा, अपसारित करेगा, खरीदेगा, बेचेगा या उनका दुर्व्यापार या व्यौहार करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक न होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

372. वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय को बेचना -

जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय से कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए या किसी विधिविरुद्ध और दुराचारिक प्रयोजन के लिए काम में लाया या उपयोग किया जाए या यह संभाव्य जानते हुए की ऐसा व्यक्ति, किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जायेगा या उपयोग किया जाएगा, बेचेगा, भाड़े पर देगा या अन्यथा व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1 - जबकि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी किसी वेश्या को या किसी अन्य व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबन्ध करता हो, बेची जाए, भाड़े पर दी जाए या अन्यथा व्ययनित की जाए, तब इस प्रकार ऐसी नारी को व्ययनित करने वाले व्यक्ति के बारे में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उसने उसको इस आशय से व्ययनित किया है कि वह वेश्यावृत्ति के लिए उपयोग में लाई जाएगी।

स्पष्टीकरण 2 - “अयुक्त संभोग” से इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे व्यक्तियों में मैथुन अभिप्रेत है जो विवाह से संयुक्त नहीं हैं, या ऐसे किसी संयोग या बंधन से संयुक्त नहीं हैं जो यद्यपि विवाह की कोटि में तो नहीं आता तथापि उस समुदाय की, जिसके वे हैं या यदि वे भिन्न समुदायों के हैं तो ऐसे दोनों समुदायों की, स्वीय विधि या रूढ़ि द्वारा उनके बीच में विवाह-सदृश सम्बन्ध अभिज्ञात किया जाता हो।

373. वेश्यावृत्ति, आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय का खरीदना -

जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय से कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए या किसी विधिविरुद्ध दुराचारिक प्रयोजन के लिए काम में लाया या उपयोग किया जाए, या यह संभाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा या उपयोग किया जाएगा, खरीदेगा, भाड़े पर लेगा, या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्राप्त करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1 - अठारह वर्ष से कम आयु की नारी को खरीदने वाली, भाड़े पर लेने वाली या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्राप्त करने वाली किसी वेश्या के या वेश्यागृह चलाने या उसका प्रबंध करने वाले किसी व्यक्ति के बारे में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसी नारी का कब्जा उसने इस आशय से अभिप्राप्त किया है कि वह वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाई जाएगी।  

स्पष्टीकरण 2 - “अयुक्त संभोग” का वही अर्थ है, जो धारा 372 में है।

374. विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम -

जो कोई किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध श्रम करने के लिए विधिविरुद्ध तौर पर विवश करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

यौन अपराध

375. बलात्संग -

पुरुष “बलात्संग” करता है, यदि वह - 

(क) किसी स्त्री की योनि, उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी सीमा तक प्रवेश करता है। या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या

(ख) किसी स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग, जो लिंग न हो, किसी भी सीमा तक अनुप्रविष्ट करता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या

(ग) किसी स्त्री के शरीर के किसी भाग का इस प्रकार हस्त साधन करता है जिससे कि उस स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग या शरीर के किसी भाग में प्रवेशन कारित किया जा सके या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है; या

(घ) किसी स्त्री की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उससे ऐसा अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है, 

तो उसके बारे में यह कहा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है, जहां ऐसा निम्नलिखित सात भांति की परिस्थितियों में से किसी के अधीन किया जाता है : -

पहला - उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ।

दुसरा - उस स्त्री की सम्मति के बिना।

तीसरा - उस स्त्री की सम्मति से, जब उसकी सम्मति उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति के भय में डालकर अभिप्राप्त की गई है।

चौथा - उस स्त्री की सम्मति से, जब कि वह पुरुष यह जानता है कि वह उसका पति नहीं है और उसने सम्मति इस कारण दी है कि वह यह विश्वास करती है कि वह ऐसा अन्य पुरुष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है।

पांचवां - उस स्त्री की सम्मति से, जब ऐसी सम्मति देने के समय, वह विकृतचित्तता या मत्तता के कारण या उस पुरुष द्वारा व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य के माध्यम से कोई संज्ञाशून्यकारी या अस्वास्थ्यकर पदार्थ दिए जाने के कारण, उस बात की, जिसके बारे में वह सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है।

छठवां - उस स्त्री की सम्मति से या उसके बिना, जब वह अठारह वर्ष से कम आयु की है।

सातवां - जब वह स्त्री सम्मति संसूचित करने में असमर्थ है।

स्पष्टीकरण 1 - इस धारा के प्रयोजनों के लिए, “योनि'' के अंतर्गत वृहत् भगौष्ठ भी है।

स्पष्टीकरण 2 - सम्मति से कोई स्पष्ट स्वैच्छिक सहमति अभिप्रेत है, जब स्त्री शब्दों, संकेतों या किसी प्रकार की मौखिक या अमौखिक संसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट लैंगिक कृत्य में शामिल होने की इच्छा व्यक्त करती है : 

परन्तु ऐसी स्त्री के बारे में, जो प्रवेशन के कृत्य का भौतिक रूप से विरोध नहीं करती है, मात्र इस तथ्य के कारण यह नहीं समझा जाएगा कि उसने विनिर्दिष्ट लैंगिक क्रियाकलाप के प्रति सहमति प्रदान की है।

अपवाद 1 - किसी चिकित्सीय प्रक्रिया या अंत: प्रवेशन से बलात्संग गठित नहीं होगा।

अपवाद 2 - किसी पुरुष का अपनी स्वयं की पत्नी के साथ मैथुन या लैंगिक कृत्य, यदि पत्नी पंद्रह वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्संग नहीं है।

376. बलात्संग के लिए दण्ड -

(1) जो कोई, उपधारा (2) में उपबंधित मामलों के सिवाय, बलात्संग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कठोर कारावास से, "जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा"। [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित] 

(2) जो कोई - 

(क) पुलिस अधिकारी होते हुए -

(i) उस पुलिस थाने की, जिसमें ऐसा पुलिस अधिकारी नियुक्त है, सीमाओं के भीतर; या

(ii) किसी भी थाने के परिसर में; या 

(ii) ऐसे पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में या ऐसे पुलिस अधिकारी के अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में, किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या

(ख) लोक सेवक होते हुए, ऐसे लोक सेवक की अभिरक्षा में या ऐसे लोक सेवक के अधीनस्थ किसी लोक सेवक की अभिरक्षा में की किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या  

(ग) केन्द्रीय या किसी राज्य सरकार द्वारा किसी क्षेत्र में अभिनियोजित सशस्त्र बलों का कोई सदस्य होते हुए, उस क्षेत्र में बलात्संग करेगा; या

(घ) तत् समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान के या स्त्रियों या बालकों की किसी संस्था के प्रबंधतंत्र या कर्मचारिवृन्द में होते हुए, ऐसी जेल, प्रतिप्रेषण गृह, स्थान या संस्था के किसी निवासी से बलात्संग करेगा; या

(ङ) किसी अस्पताल के प्रबंधतंत्र या कर्मचारिवृन्द में होते हुए, उस अस्पताल में किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या  

(च) स्त्री का नातेदार, संरक्षक या अध्यापक अथवा उसके प्रति न्यास या प्राधिकारी की हैसियत में का कोई व्यक्ति होते हुए, उस स्त्री से बलात्संग करेगा; या

(छ) सांप्रदायिक या पंथीय हिंसा के दौरान बलात्संग करेगा; या

(ज) किसी स्त्री से यह जानते हुए कि वह गर्भवती है बलात्संग करेगा; या

(झ)  "विलोपित" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा]

() उस स्त्री से, जो सम्मति देने में असमर्थ है, बलात्संग करेगा; या

(ट) किसी स्त्री पर नियंत्रण या प्रभाव रखने की स्थिति में होते हुए, उस स्त्री से बलात्संग करेगा; या

(ठ) मानसिक या शारीरिक नि:शक्तता से ग्रसित किसी स्त्री से बलात्संग करेगा; या 

(ड) बलात्संग करते समय किसी स्त्री को गंभीर शारीरिक अपहानि कारित करेगा या विकलांग बनाएगा या विद्रूपित करेगा या उसके जीवन को संकटापन्न करेगा; या

(ढ) उस स्त्री से बारबार बलात्संग करेगा,

वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। 

"(3) जो कोई सोलह वर्ष की कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा :
परंतु ऐसा जुर्माना पीड़ित की चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्‍क्तियुकत होगा :
परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित को किया जाएगा ।" 
[क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित] 

स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए,

(क) “सशस्त्र बल" से नौसैनिक, सैनिक और वायु सैनिक अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन गठित सशस्त्र बलों का, जिसमें ऐसे अर्धसैनिक बल और कोई सहायक बल भी हैं, जो केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन हैं, कोई सदस्य भी है;

(ख) अस्पताल" से अस्पताल का अहाता अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत किसी ऐसी संस्था का अहाता भी है, जो स्वास्थ्य लाभ कर रहे व्यक्तियों को या चिकित्सीय देखरेख या पुनर्वास की अपेक्षा रखने वाले व्यक्तियों के प्रवेश और उपचार करने के लिए है;

(ग) “पुलिस अधिकारी" का वही अर्थ होगा जो पुलिस अधिनियम, 1861 (1861 का 5) के अधीन पुलिस पद में उसका है;

(घ) “स्त्रियों या बालकों की संस्था" से स्त्रियों और बालकों को ग्रहण करने और उनकी देखभाल करने के लिए स्थापित और अनुरक्षित कोई संस्था अभिप्रेत है चाहे उसका नाम अनाथालय हो या उपेक्षित स्त्रियों या बालकों के लिए गृह हो या विधवाओं के लिए गृह या किसी अन्य नाम से ज्ञात कोई संस्था हो ।

376 क. पीड़िता की मृत्यु या लगातार विकृतशील दशा कारित करने के लिए दंड -

जो कोई, धारा 376 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन दण्डनीय कोई अपराध करता है और ऐसे अपराध के दौरान ऐसी कोई क्षति पहुंचाता है जिससे स्त्री की मृत्यु कारित हो जाती है या जिसके कारण उस स्त्री की दशा लगातार विकृतशील हो जाती है, वह ऐसी अवधि के कठोर कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा।

376 कख. बारह वर्ष से कम आयु की स्त्री से बलात्संग के लिए दंड

"जो कोई बारह वर्ष से कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन, कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी और जुर्माने से, अथवा मृत्यु से दंडित किया जाएगा;

परंतु ऐसा जुर्माना पीड़ित की चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्‍क्तियुकत होगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित को किया जायेगा" | [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा अन्तः स्थापित] 

376 ख. पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथुन -

जो कोई, अपनी पत्नी के साथ, जो पृथक्करण की डिक्री के अधीन या अन्यथा, पृथक रह रही है, उसकी सम्मति के बिना मैथुन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा में, “मैथुन' से धारा 375 के खंड (क) से खंड (घ) में वर्णित कोई कृत्य अभिप्रेत है।

376 ग. प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन -

जो कोई, -

(क) प्राधिकार की किसी स्थिति या वैश्वासिक संबंध रखते हुए; या

(ख) कोई लोक सेवक होते हुए; या

(ग) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी जेल, प्रतिप्रेषण-गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान का या स्त्रियों या बालकों की किसी संस्था का अधीक्षक या प्रबंधक होते हुए; या

(घ) अस्पताल के प्रबंधतंत्र या किसी अस्पताल का कर्मचारिवृन्द होते हुए,

ऐसी किसी स्त्री को, जो उसकी अभिरक्षा में है या उसके भारसाधन के अधीन है या परिसर में उपस्थित है, अपने साथ मैथुन करने हेतु, जो बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता है, उत्प्रेरित या विलुब्ध करने के लिए ऐसी स्थिति या वैश्वासिक संबंध का दुरुपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जो पांच वर्ष से कम का नहीं होगा किन्तु जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1 - इस धारा में, “मैथुन' से धारा 375 के खण्ड (क) से खण्ड (घ) में वर्णित कोई कृत्य अभिप्रेत होगा।

स्पष्टीकरण 2 - इस धारा के प्रयोजनों के लिए, धारा 375 का स्पष्टीकरण 1 भी लागू होगा।

स्पष्टीकरण 3 - किसी जेल, प्रतिप्रेषण-गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान या स्त्रियों या बालकों की किसी संस्था के संबंध में, “अधीक्षक' के अन्तर्गत कोई ऐसा व्यक्ति है, जो जेल, प्रतिप्रेषण-गृह, स्थान या संस्था में ऐसा कोई पद धारण करता है जिसके आधार पर वह उसके निवासियों पर किसी प्राधिकार या नियंत्रण का प्रयोग कर सकता है।

स्पष्टीकरण 4 - “अस्पताल’ और ‘स्त्रियों या बालकों की संस्था' पदों का क्रमशः वही अर्थ होगा जो धारा 376 को उपधारा (2) के स्पष्टीकरण में उनका है।

376 घ. सामूहिक बलात्संग -

जहां किसी स्त्री से, एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा, एक समूह गठित करके या सामान्य आशय को अग्रसर करने में कार्य करते हुए बलात्संग किया जाता है, वहां उन व्यक्तियों में से प्रत्येक के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग का अपराध किया है और वह ऐसी अवधि के कठोर कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा:

परंतु ऐसा जुर्माना पीड़िता के चिकित्सकीय खर्चे को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा:

परंतु यह और कि इस धारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़िता को संदत्त किया जाएगा।

376 घक. सोलह वर्ष से कम आयु की स्त्री से सामूहिक बलात्संग के लिए दंड

"जहां व्यक्तियों के समूह में से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में सोलह वर्ष से कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग किया जाता है, वहां ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है और वह आजीवन कारावास से, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा और जुर्माने से दंडित किया जाएगा ; 

परंतु ऐसा जुर्माना पीड़ित की चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित को किया जाएगा ।" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा अन्तः स्थापित] 

376 घख. बारह वर्ष से कम आयु की स्त्री से सामूहिक बलात्संग के लिए दंड

"जहां व्यक्तियों के समूह में से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में बारह वर्ष से कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग किया जाता है, वहां ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है और वह आजीवन कारावास से, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा और जुर्माने से अथवा मृत्यु से दंडित किया जाएगा :

परंतु ऐसा जुर्माना पीड़ित की चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित को किया जाएगा ।" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा अन्तः स्थापित] 

376 , पुनरावृत्तिकर्ता अपराधियों के लिए दंड -

जो कोई, धारा 376 या धारा 376 क या "धारा 376 कख या धारा 376 घ या धारा 376 घक या धारा 376 घख" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित]  के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिये पूर्व में दंडित किया गया है और तत्पश्चात उक्त धाराओं में से किसी के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है, आजीवन कारावास से, जिससे उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास अभिप्रेत होगा, या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

छत्तीसगढ़ - धारा 376ङ के पश्चात्‌ निम्नलिखित अंतःस्थापित किया जाए, अर्थात्‌ :-

“376 च. कार्यस्थल के भारसाधक व्यक्ति एवं अन्य का अपराध की सूचना देने का दायित्व - जो कोई, किसी कार्यस्थल का भारसाधक व्यक्ति होते हुए या ऐसे स्थल में उपस्थित कोई अन्य व्यक्ति, जिसे यह ज्ञान हो कि धारा 376 या धारा 376घ के अधीन कोई अपराध ऐसे स्थल पर कारित हो रहा है तथा ऐसे किसी अपराध को कारित होने से रोकने की स्थिति में होते हुए ऐसे किसी अपराध को कारित होने से रोकने में अथवा अपराधी को वैध दण्ड से बचाने के आशय से ऐसे किसी अपराध के कारित होने की सूचना किसी भी तरीके से किसी भी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को देने में विफल रहता है, वह ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण के लिए दायी होते हुए दोनों में से किसी भी भांति के कारावास जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी एवं जुर्माने के लिए दायी होगा और ऐसे व्यक्ति का, ऐसी सूचना देने पर, कोई दायित्व उपगत नहीं होगा।

स्पष्टीकरण - कार्यस्थल में सम्मिलित है, स्त्री जिसके प्रति ऐसा अपराध कारित हुआ है, को कार्यस्थल से उसके निवास एवं निवास से कार्यस्थल तक आवागमन के लिए कार्यस्थल के भारसाधक व्यक्ति के स्वामित्व का, किराये पर या अन्यथा संलग्न परिवहन का कोई साधन"।

[देखे दण्ड विधि (छ.ग. संशोधन) अधिनियम, 2013 (क्र. 25 सन्‌ 2015), धारा 5 (दिनांक 21-7-2015 से प्रभावशील) | छ.ग., राजपत्र (असाधारण) दिनांक 21-7-2015 पृष्ठ 777-778 (9) पर प्रकाशित ।]

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377. प्रकृति विरुद्ध अपराध -

जो कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीवजन्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रियभोग करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा में वर्णित अपराध के लिए आवश्यक इन्द्रियभोग गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 377 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित |]

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अध्याय 17 : सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में चोरी के विषय में

378. चोरी -

जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे में से, उस व्यक्ति की सम्मति के बिना कोई जंगम संपत्ति बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हुए, वह संपत्ति ऐसे लेने के लिए हटाता है, वह चोरी करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण 1 - जब तक कोई वस्तु भूबद्ध रहती है, जंगम संपत्ति न होने से चोरी का विषय नहीं होती; किन्तु ज्यों ही वह भूमि से पृथक की जाती है, वह चोरी का विषय होने योग्य हो जाती है।

स्पष्टीकरण 2 - हटाना, जो उसी कार्य द्वारा किया गया है जिससे पृथक्करण किया गया है, चोरी हो सकेगा।

स्पष्टीकरण 3 - कोई व्यक्ति किसी चीज का हटाना कारित करता है, यह कहा जाता है जब वह उस बाधा को हटाता है जो उस चीज को हटाने से रोके हुए हो या जब वह उस चीज को किसी दूसरी चीज से पृथक करता है तथा जब वह वास्तव में उसे हटाता है।

स्पष्टीकरण 4 - वह व्यक्ति जो किसी साधन द्वारा किसी जीवजन्तु का हटाना कारित करता है, उस जीवजन्तु को हटाता है, यह कहा जाता है; और यह कहा जाता है कि वह ऐसी हर एक चीज को हटाता है जो इस प्रकार उत्पन्न की गई गति के परिणामस्वरूप उस जीवजन्तु द्वारा हटाई जाती है।

स्पष्टीकरण 5 - परिभाषा में वर्णित सम्मति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है, और वह या तो कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा, या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो उस प्रयोजन के लिए अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिकार रखता है, दी जा सकती है।

दृष्टांत -

(क) य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से एक वृक्ष बेईमानी से लेने के आशय से य की भूमि पर लगे हुए उस वृक्ष को क काट डालता है। यहां, ज्योंही क ने इस प्रकार लेने के लिए उस वृक्ष को पृथक किया, उसने चोरी की

(ख) क अपनी जेब में कुत्तों के लिए ललचाने वाली वस्तु रखता है, और इस प्रकार य के कुत्तों को अपने पीछे चलने के लिए उत्प्रेरित करता है। यहां, यदि क का आशय य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से उस कुत्ते को बेईमानी से लेना हो, तो ज्यों ही य के कुत्ते ने क के पीछे चलना आरंभ किया, क ने चोरी की

(ग) मूल्यवान वस्तुओं की पेटी ले जाते हुए एक बैल क को मिलता है। वह उस बैल को इसलिए एक खास दिशा में हांकता है कि वे मूल्यवान वस्तुएं बेईमानी से ले सके ज्यों ही उस बैल ने गतिमान होना प्रारंभ किया, क ने मूल्यवान वस्तुएं चोरी की।

(घ) क, जो य का सेवक है और जिसे य ने अपनी प्लेट की देखरेख न्यस्त कर दी है, य की सम्मति के बिना प्लेट को लेकर बेईमानी से भाग गया। क ने चोरी की।

(ङ) य यात्रा को जाते समय अपनी प्लेट लौटकर आने तक, क को, जो एक भाण्डागारिक है, न्यस्त कर देता है क उस प्लेट को एक सुनार के पास ले जाता है और वह प्लेट बेच देता है। यहां वह प्लेट य के कब्जे में नहीं थी, इसलिए वह य के कब्जे में से नहीं ली जा सकती थी और क ने चोरी नहीं की है, चाहे उसने आपराधिक न्यासभंग किया हो।

(च) जिस गृह पर य का अधिभोग है उसके मेज पर य की अंगूठी क को मिलती है। यहां, वह अंगूठी य के कब्जे में है, और यदि क उसको बेईमानी से हटाता है, तो वह चोरी करता है।

(छ) क, को राजमार्ग पर पड़ी हुई अंगूठी मिलती है, जो किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं है। क ने उसके ले लेने से चोरी नहीं की है, भले ही उसने संपत्ति का आपराधिक दुर्विनियोग किया हो।  

(ज) य के घर में मेज पर पड़ी हुई य की अंगूठी क देखता है। तलाशी और पता लगने के भय से उस अंगूठी का तुरन्त दुर्विनियोग करने का साहस न करते हुए क उस अंगूठी को ऐसे स्थान पर, जहां से उसका य को कभी भी मिलना अति अनधिसम्भाव्य है, इस आशय से छिपा देता है कि छिपाने के स्थान से उस समय ले ले और बेच दे जबकि उसका खोया जाना याद न रहे यहां क ने, उस अंगूठी को प्रथम बार हटाते समय चोरी की है।

(झ) य को, जो एक जौहरी है, क अपनी घड़ी समय ठीक करने के लिए परिदत्त करता है। य उसको अपनी दुकान पर ले जाता है। क, जिस पर उस जौहरी का कोई ऐसा ऋण नहीं है, जिसके लिए कि वह जौहरी उस घड़ी को प्रतिभूति के रूप में विधिपूर्वक रोक सके, खुले तौर पर उस दुकान में घुसता है, य के हाथ से अपनी घड़ी बलपूर्वक ले लेता है, और उसको ले जाता है। यहां क ने भले ही आपराधिक अतिचार और हमला किया हो, उसने चोरी नहीं की है, क्योंकि जो कुछ भी उसने किया बेईमानी से नहीं किया।

() यदि उस घड़ी की मरम्मत के संबंध में य को क से धन शोध्य है, और यदि य उस घड़ी को उस ऋण की प्रतिभूति के रूप में विधिपूर्वक रखे रखता है और उस घड़ी को य के कब्जे में से इस आशय से ले लेता है कि य को उसके ऋण की प्रतिभूति रूप उस सम्पत्ति से वंचित कर दे तो उसने चोरी की है क्योंकि वह उसे बेईमानी से लेता है।

(ट) और यदि क अपनी घड़ी य के पास पणयम करने के बाद घड़ी के बदले लिए गए ऋण को चुकाए बिना उसे य के कब्जे में से य की सम्मत्ति के बिना ले लेता है, तो उसने चोरी की है, यद्यपि वह घड़ी उसकी अपनी ही संपत्ति है, क्योंकि वह उसे बेईमानी से लेता है।

(ठ) क एक वस्तु को उस समय तक रख लेने के आशय से जब तक कि उसके प्रत्यावर्तन के लिए पुरस्कार के रूप में उसे य से धन अभिप्राप्त न हो जाए, य की सम्मति के बिना य के कब्जे में से लेता है। यहां क बेईमानी से लेता है, इसलिए क ने चोरी की।

(ड) क, जो य का मित्र है, य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है और य की अभिव्यक्त सम्मति के बिना एक पुस्तक केवल पढ़ने के लिए और वापस करने के आशय से ले जाता है। यहां, यह अधि संभाव्य है कि क ने यह विचार किया हो कि पुस्तक उपयोग में लाने के लिए उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है। यदि क का यह विचार था, तो क ने चोरी नहीं की है।

(ढ) य की पत्नी से क खैरात मांगता है। वह क को धन, भोजन और कपड़े देती है, जिनको क जानता है कि वे उसके पति य के हैं। यहां, यह अधि संभाव्य है कि क का यह विचार हो कि य की पत्नी को भिक्षा देने का प्राधिकार है। यदि क का यह विचार था, तो क ने चोरी नहीं की है।

(ण) क, य की पत्नी का जार है। वह क को एक मूल्यवान सम्पत्ति देती है, जिसके संबंध में क यह जानता है। कि वह उसके पति य की है, और वह ऐसी संपत्ति है, जिसको देने का प्राधिकार उसे य से प्राप्त नहीं है। यदि क उस संपत्ति को बेईमानी से लेता है, तो वह चोरी करता है।

(त) य की सम्पत्ति की अपनी स्वयं की सम्पत्ति होने का सद्भावपूर्वक विश्वास करते हुए ख के कब्जे में से उस संपत्ति को क ले लेता है। यहां, क बेईमानी से नहीं लेता, इसलिए वह चोरी नहीं करता।

379. चोरी के लिए दण्ड -

जो कोई चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

380. निवास-गृह, आदि में चोरी -

जो कोई ऐसे किसी निर्माण, तम्बू या जलयान में चोरी करेगा, जो निर्माण, तम्बू या जलयान मानव निवास के रूप में, या संपत्ति की अभिरक्षा के लिए, उपयोग में आता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

381. लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पत्ति की चोरी -

जो कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक की हैसियत में नियोजित होते हुए, अपने मालिक या नियोक्ता के कब्जे की किसी संपत्ति की चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

382. चोरी करने के लिए मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी -

जो कोई चोरी करने के लिए, या चोरी करने के पश्चात् निकल भागने के लिए, या चोरी द्वारा ली गई संपत्ति को रखने के लिए, किसी व्यक्ति की मृत्यु, या उसे उपहति या उसका अवरोध कारित करने की, या मृत्यु का, उपहति का या अवरोध का भय कारित करने की तैयारी करके चोरी करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

दृष्टांत -

(क) य के कब्जे में की संपत्ति पर क चोरी करता है और वह चोरी करते समय अपने पास अपने वस्त्रों के भीतर एक भरी हुई पिस्तौल रखता है, जिसे उसने य द्वारा प्रतिरोध किए जाने की दशा में य को उपहति करने के लिए अपने पास रखा था। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क, य की जेब काटता है, और ऐसा करने के लिए अपने कई साथियों को अपने पास इसलिए नियुक्त करता है, कि यदि य यह समझ जाए कि क्या हो रहा है और प्रतिरोध करे या क को पकड़ने का प्रयत्न करे, तो वे य का अवरोध करें | क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

383. उद्दापन -

जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई क्षति करने के भय में साशय डालता है, और एतद्द्वारा इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को, कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति या हस्ताक्षरित या मुद्रांकित कोई चीज, जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, किसी व्यक्ति को परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है, वह “उद्दापन” करता है।

दृष्टांत -

(क) क यह धमकी देता है कि यदि य ने उसको धन नहीं दिया, तो वह य के बारे में मानहानिकारक अपमान लेख प्रकाशित करेगा। अपने को धन देने के लिए वह इस प्रकार य को उत्प्रेरित करता है। क ने उद्दापन किया है।

(ख) क, य को यह धमकी देता है कि यदि वह क को कुछ धन देने के संबंध में अपने आपको आबद्ध करने वाला एक वचनपत्र हस्ताक्षरित करके क को परिदत्त नहीं कर देता, तो वह य के शिशु को सदोष परिरोध में रखेगा य वचनपत्र हस्ताक्षरित करके परिदत्त कर देता है। क ने उद्दापन किया है।

(ग) क यह धमकी देता है कि यदि य, ख को कुछ उपज परिदत्त कराने के लिए शास्तियुक्त बन्धपत्र हस्ताक्षरित नहीं करेगा और ख को न देगा, तो वह य के खेत को जोत डालने के लिए लठैत भेज देगा और एतद्द्वारा य को वह बंधपत्र हस्ताक्षरित करने के लिए और परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है। क ने उद्दापन किया है।

(घ) क, य को घोर उपहति करने के भय में डालकर बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर कर दे या अपनी मुद्रा लगा दे और उसे क को परिदत्त कर दे य उस कागज पर हस्ताक्षर करके उसे क को परिदत्त कर देता है। यहां, इस प्रकार हस्ताक्षरित कागज मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सकता है, इसलिए क ने उद्दापन किया है।

384. उद्दापन के लिए दण्ड -

जो कोई उद्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसके अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

385. उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को क्षति के भय में डालना -

जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को किसी क्षति के पहुंचाने के भय में डालेगा या भय में डालने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

386. किसी व्यक्ति को मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालकर उद्दापन -

जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालकर उद्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

387. उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालना -

जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति के स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालेगा या भय में डालने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

388. मृत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दण्डनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उद्दापन -

जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने के भय में डालकर कि उसने कोई ऐसा अपराध किया है, या करने का प्रयत्न किया है, जो मृत्यु से या आजीवन कारावास से या ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय है, अथवा यह कि उसने किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा अपराध करने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न किया है, उद्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध ऐसा हो जो इस संहिता की धारा 377 के अधीन दण्डनीय है, तो वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जा सकेगा।

389. उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को अपराध का अभियोग लगाने के भय में डालना -

जो कोई उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को, स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने का भय दिखलाएगा या यह भय दिखलाने का प्रयत्न करेगा कि उसने ऐसा अपराध किया है या करने का प्रयत्न किया है, जो मृत्यु से या आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध ऐसा हो जो इस संहिता की धारा 377 के अधीन दण्डनीय है, तो वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जा सकेगा।

लूट ओर डकैती के विषय में

390. लूट -

सब प्रकार की लूट में या तो चोरी या उद्दापन होता है।

चोरी कब लूट है - चोरी “लूट" है, यदि उस चोरी को करने के लिए, या उस चोरी के करने में या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने में, अपराधी उस उद्देश्य से स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति या उसको सदोष अवरोध या तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित करता है या कारित करने का प्रयत्न करता है।

उद्दापन कब लूट है - उद्दापन “लूट" है, यदि अपराधी वह उद्दापन करते समय भय में डाले गए व्यक्ति की उपस्थिति में है, और उस व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की तत्काल मृत्यु या तत्काल उपहति या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालकर वह उद्दापन करता है और इस प्रकार भय में डालकर इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को उद्दापन की जाने वाली चीज उसी समय और वहां ही परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है।

स्पष्टीकरण - अपराधी का उपस्थित होना कहा जाता है, यदि वह उस अन्य व्यक्ति को तत्काल मृत्यु के, तत्काल उपहति के, या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालने के लिए पर्याप्त रूप से निकट हो।

दृष्टांत -

(क) क, य को दबोच लेता है, और य के कपड़े में से य का धन और आभूषण य की सम्मति के बिना कपट पूर्वक निकाल लेता है, यहां क ने चोरी की है, और वह चोरी करने के लिए स्वेच्छया य का सदोष अवरोध कारित करता है। इसलिए क ने लूट की है।

(ख) क, य को राजमार्ग पर मिलता है, एक पिस्तौल दिखलाता है और य की थैली मांगता है। परिणामस्वरूप य अपनी थैली दे देता है। यहां, क ने य को तत्काल उपहति का भय दिखलाकर थैली उद्दापित की है और उद्दापन करते समय वह उसकी उपस्थिति में है। अतः क ने लूट की है।

(ग़) क राजमार्ग पर य और य के शिशु से मिलता है। क उस शिशु को पकड़ लेता है और यह धमकी देता है कि यदि य उसको अपनी थैली नहीं परिदत्त कर देता, तो वह उस शिशु को कगार से नीचे फेंक देगा परिणामस्वरूप य अपनी थैली परिदत्त कर देता है। यहां, क ने य को यह भय कारित करके कि वह शिशु को, जो वहां उपस्थित है, तत्काल उपहति करेगा, य से उसकी थैली उद्दापित की है। इसलिए क ने य को लूटा है।

(घ) क, य से यह कहकर, सम्पत्ति अभिप्राप्त करता है कि तुम्हारा शिशु मेरी टोली के हाथों में है, यदि तुम हमारे पास दस हजार रुपये नहीं भेज दोगे, तो वह मार डाला जाएगा। यह उद्दापन है, और इसी रूप में दण्डनीय हैं; किन्तु यह लूट नहीं है जब तक कि य को उसके शिशु की तत्काल मृत्यु के भय में न डाला जाए।

391. डकैती -

जब कि पांच या अधिक व्यक्ति संयुक्त होकर लूट करते हैं या करने का प्रयत्न करते हैं या जहां कि वे व्यक्ति, जो संयुक्त होकर लूट करते हैं, या करने का प्रयत्न करते हैं, और वे व्यक्ति जो उपस्थित हैं और ऐसे लूट के किए जाने या ऐसे प्रयत्न में मदद करते हैं, कुल मिलाकर पांच या अधिक हैं, तब हर व्यक्ति जो इस प्रकार लूट करता है, या उसका प्रयत्न करता है या उसमें मदद करता है, कहा जाता है कि वह “डकैती” करता है।

392. लूट के लिए दण्ड -

जो कोई लूट करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि लूट राजमार्ग पर सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच की जाए तो कारावास चौदह वर्ष तक का हो सकेगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 392 के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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393. लूट करने का प्रयत्न -

जो कोई लूट करने का प्रयत्न करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 393 के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय'' द्वारा विचारणीय है।

[देखे म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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394. लुट करने में स्वेच्छया उपहति कारित करना -

यदि कोई व्यक्ति लूट करने में या लूट का प्रयत्न करने में स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, तो ऐसा व्यक्ति और जो कोई अन्य व्यक्ति ऐसी लूट करने में, या लूट का प्रयत्न करने में संयुक्त तौर पर संपृक्त होगा वह आजीवन कारावास से या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 394 के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय'' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 117-158 पर प्रकाशित ।]

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395. डकैती के लिए दण्ड -

जो कोई डकैती करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

396. हत्या सहित डकैती -

यदि ऐसे पांच या अधिक व्यक्तियों में से, जो संयुक्त होकर डकैती कर रहे हों, कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा, तो उन व्यक्तियों में से हर व्यक्ति मृत्यु से, या आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

397. मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती -

यदि लूट या डकैती करते समय अपराधी किसी घातक आयुध का उपयोग करेगा, या किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा, या किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या उसे घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, तो वह कारावास, जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा, सात वर्ष से कम का नहीं होगा।

398. घातक आयुध से सज्जित होकर लूट या डकैती करने का प्रयत्न -

यदि लूट या डकैती करने का प्रयत्न करते समय, अपराधी किसी घातक आयुध से सज्जित होगा, तो वह कारावास, जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा, सात वर्ष से कम का नहीं होगा

399. डकैती करने के लिए तैयारी करना -

जो कोई डकैती करने के लिए कोई तैयारी करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

400. डाकुओं की टोली का होने के लिए दण्ड -

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी भी समय ऐसे व्यक्तियों की टोली का होगा, जो अभ्यासतः डकैती करने के प्रयोजन से सहयुक्त हों, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। GO toTOP

401. चोरों की टोली का होने के लिए दण्ड -

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी भी समय ऐसे व्यक्तियों की किसी घूमती-फिरती या अन्य टोली का होगा जो, अभ्यासतः चोरी या लूट करने के प्रयोजन से सहयुक्त हों और वह टोली ठगों या डाकुओं की टोली न हो, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

402. डकैती करने के प्रयोजन से एकत्रित होना -

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी भी समय डकैती करने के प्रयोजन से एकत्रित पांच या अधिक व्यक्तियों में से एक होगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

संपत्ति के आपराधिक दुर्विनियोग के विषय में

403. संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग -

जो कोई बेईमानी से किसी जंगम संपत्ति का दुर्विनियोग करेगा या उसको अपने उपयोग के लिए संपरिवर्तित कर लेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

(क) क, य की संपत्ति को उस समय जबकि क उस संपत्ति को लेता है, यह विश्वास रखते हुए कि वह संपत्ति उसी की है, य के कब्जे में से सद्भावपूर्वक लेता है। क, चोरी का दोषी नहीं है। किन्तु यदि क अपनी भूल मालूम होने के पश्चात् उस संपत्ति का बेईमानी से अपने लिए विनियोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(ख) क, जो य का मित्र है, य की अनुपस्थिति में य के पुस्तकालय में जाता है और य की अभिव्यक्त सम्मति के बिना एक पुस्तक ले जाता है। यहां, यदि क का यह विचार था कि पढ़ने के प्रयोजन के लिए पुस्तक लेने की उसको य की विवक्षित सम्मति प्राप्त है, तो क ने चोरी नहीं की है। किन्तु यदि क बाद में उस पुस्तक को अपने फायदे के लिए बेच देता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(ग) क और ख एक घोड़े के संयुक्त स्वामी हैं। क उस घोड़े को उपयोग में लाने के आशय से ख के कब्जे में से उसे ले जाता है। यहां, क को उस घोडे को उपयोग में लाने का अधिकार है, इसलिए वह उसका बेईमानी से दुर्विनियोग नहीं है। किन्तु यदि क उस घोड़े को बेच देता है, और संपूर्ण आगम का अपने लिए विनियोग कर लेता है, तो वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

स्पष्टीकरण 1 - केवल कुछ समय के लिए बेईमानी से दुर्विनियोग करना इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत दुर्विनियोग है। 

दृष्टांत -

क को य का एक सरकारी वचन पत्र मिलता है, जिस पर निरंक पृष्ठांकन है। क, यह जानते हुए कि वह वचनपत्र य का है; उसे ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में बैंकार के पास इस आशय से गिरवी रख देता है कि वह भविष्य में उसे य को प्रत्यावर्तित कर देगा। क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।

स्पष्टीकरण 2 - जिस व्यक्ति को ऐसी संपत्ति पड़ी मिल जाती है, जो किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे में नहीं है। और वह उसके स्वामी के लिए उसको संरक्षित रखने या उसके स्वामी को उसे प्रत्यावर्तित करने के प्रयोजन से ऐसी संपत्ति को लेता है, वह न तो बेईमानी से उसे लेता है और न बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है, और किसी अपराध का दोषी नहीं है, किन्तु वह ऊपर परिभाषित अपराध का दोषी है, यदि वह उसके स्वामी को जानते हुए या खोज निकालने के साधन रखते हुए अथवा उसके स्वामी को खोज निकालने और सूचना देने के युक्तियुक्त साधन उपयोग में लाने और उसके स्वामी को उसकी मांग करने को समर्थ करने के लिए उस संपत्ति को युक्तियुक्त समय तक रखे रखने के पूर्व उसको अपने लिए विनियोजित कर लेता है।

ऐसी दशा में युक्तियुक्त साधन क्या है, या युक्तियुक्त समय क्या है, यह तथ्य का प्रश्न है।

यह आवश्यक नहीं है कि पाने वाला यह जानता हो कि संपत्ति का स्वामी कौन है या यह कि कोई विशिष्ट व्यक्ति उसका स्वामी है। यह पर्याप्त है कि उसको विनियोजित करते समय उसे यह विश्वास नहीं है कि वह उसकी अपनी संपत्ति है, या सद्भावपूर्वक यह विश्वास है कि उसका असली स्वामी नहीं मिल सकता।

दृष्टांत -

(क) क को राजमार्ग पर एक रुपया पड़ा मिलता है। यह न जानते हुए कि वह रुपया किसका है क उस रुपए को उठा लेता है। यहां क ने इस धारा में परिभाषित अपराध नहीं किया है।

(ख) क को सड़क पर एक चिट्ठी पड़ी मिलती है, जिसमें एक बैंक नोट है। उस चिट्ठी में दिए हुए निर्देश और विषयवस्तु से उसे ज्ञात हो जाता है कि वह नोट किसका है। वह उस नोट का विनियोग कर लेता है। वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(ग) वाहक-देय एक चेक क को पड़ा मिलता है। वह उस व्यक्ति के संबंध में जिसका चेक खोया है, कोई अनुमान नहीं लगा सकता, किन्तु उस चेक पर उस व्यक्ति का नाम लिखा है, जिसने वह चेक लिखा है। क यह जानता है कि वह व्यक्ति क को उस व्यक्ति का पता बता सकता है जिसके पक्ष में वह चेक लिखा गया था, क उसके स्वामी को खोजने का प्रयत्न किए बिना उस चेक का विनियोग कर लेता है। वह इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है। |

(घ) क देखता है कि य की थैली, जिसमें धन है, य से गिर गई है। क वह थैली य को प्रत्यावर्तित करने के आशय से उठा लेता है। किन्तु तत्पश्चात उसे अपने उपयोग के लिए विनियोजित कर लेता है। क ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।

(ङ) क को एक थैली, जिसमें धन है, पड़ी मिलती है। वह नहीं जानता है कि वह किसकी है। उसके पश्चात् उसे यह पता चल जाता है कि वह य की है, और वह उसे अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(च) क को एक मूल्यवान अंगूठी पड़ी मिलती है। वह नहीं जानता है कि वह किसकी है। क उसके स्वामी को खोज निकालने का प्रयत्न किए बिना उसे तुरन्त बेच देता है। क इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

404. ऐसी सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग जो मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके कब्जे में थी -

जो कोई किसी सम्पत्ति को, यह जानते हुए कि ऐसी संपत्ति किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उस मृत व्यक्ति के कब्जे में थी, और तब से किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं रही है, जो ऐसे कब्जे का वैध रूप से हकदार है, बेईमानी से दुर्विनियोजित करेगा या अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि वह अपराधी, ऐसे व्यक्ति की मृत्यु के समय लिपिक या सेवक के रूप में उसके द्वारा नियोजित था, तो कारावास सात वर्ष तक का हो सकेगा।

दृष्टांत -

य के कब्जे में फर्नीचर और धन था। वह मर जाता है। उसका सेवक क, उस धन के किसी ऐसे व्यक्ति के कब्जे में आने से पूर्व, जो ऐसे कब्जे का हकदार है, बेईमानी से उसका दुर्विनियोग करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

आपरायिक न्यासभंग के विषय में

405. आपराधिक न्यासभंग -

जो कोई संपत्ति या संपत्ति पर कोई अख्तियार किसी प्रकार अपने को न्यस्त किए जाने पर उस संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है या जिस प्रकार ऐसा न्यास निर्वहन किया जाना है, उसको विहित करने वाली विधि के किसी निदेश का, या ऐसे न्यास के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैध संविदा का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस संपत्ति का उपयोग या व्ययन करता है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसा करना सहन करता है, वह “आपराधिक न्यासभंग" करता है |

स्पष्टीकरण 1 - जो व्यक्ति किसी स्थापन का नियोजक होते हुए, चाहे वह स्थापन कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 (1952 का 19) की धारा 17 के अधीन छूट प्राप्त है या नहीं, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा स्थापित भविष्य निधि या कुटुंब पेंशन-निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी-अभिदाय की कटौती कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से करता है उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसके द्वारा इस प्रकार कटौती किए गए अभिदाय की रकम उसे न्यस्त कर दी गई है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय का संदाय करने में, उक्त विधि का अतिक्रमण करके व्यतिक्रम करेगा तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है।

स्पष्टीकरण 2 - जो व्यक्ति, नियोजक होते हुए, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (1948 का 34) के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा धारित और शासित कर्मचारी राज्य बीमा निगम निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से कर्मचारी-अभिदाय की कटौती करता है, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसे अभिदाय की वह रकम न्यस्त कर दी गई है, जिसकी उसने इस प्रकार कटौती की है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय के संदाय करने में, उक्त अधिनियम का अतिक्रमण करके, व्यतिक्रम करता है, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है।

दृष्टांत -

(क) क एक मृत व्यक्ति की विल का निष्पादक होते हुए उस विधि की, जो चीजबस्त को विल के अनुसार विभाजित करने के लिए उसको निदेश देती है, बेईमानी से अवज्ञा करता है, और उस चीजबस्त को अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है। क ने आपराधिक न्यासभंग किया है।  

(ख) क भांडागारिक है। य यात्रा को जाते हुए अपना फर्नीचर क के पास उस संविदा के अधीन न्यस्त कर जाता है कि वह भांडागार के कमरे के लिए ठहराई गई राशि के दे दिए जाने पर लौटा दिया जाएगा। क उस माल को बेईमानी से बेच देता है। क ने आपराधिक न्यासभंग किया है।

(ग) क, जो कलकत्ता में निवास करता है, य का, जो दिल्ली में निवास करता है, अभिकर्ता है क और य के बीच यह अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा है कि य द्वारा क को प्रेषित सब राशियां क द्वारा य के निर्देश के अनुसार विनिहित की जाएंगी। य, क को इन निदेशों के साथ एक लाख रुपये भेजता है कि उसको कंपनी पत्रों में विनिहित किया जाए क उन निदेशों की बेईमानी से अवज्ञा करता है और उस धन को अपने कारोबार के उपयोग में ले आता है। क ने आपराधिक न्यासभंग किया है।

(घ) किन्तु यदि पिछले दृष्टांत में क बेईमानी से नहीं प्रत्युत सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि बैंक ऑफ बंगाल में अंश धारण करना य के लिए अधिक फायदाप्रद होगा, य के निदेशों की अवज्ञा करता है, और कंपनी पत्र खरीदने के बजाय य के लिए बैंक ऑफ बंगाल के अंश खरीदता है, तो यद्यपि य को हानि हो जाए, और उस हानि के कारण, वह क के विरुद्ध सिविल कार्यवाही करने का हकदार हो, तथापि यतः क ने, बेईमानी से कार्य नहीं किया है, उसने आपराधिक न्यासभंग नहीं किया है। 

(ङ) एक राजस्व ऑफिसर, क के पास लोक धन न्यस्त किया गया है और वह उस सब धन को, जो उसके पास न्यस्त किया गया है, एक निश्चित खजाने में जमा कर देने के लिए या तो विधि द्वारा निर्देशित है या सरकार के साथ अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा द्वारा आबद्ध है। क उस धन को बेईमानी से विनियोजित कर लेता है। क ने आपराधिक न्यासभंग किया है।

(च) भूमि से या जल से ले जाने के लिए य ने क के पास, जो एक वाहक है, संपत्ति न्यस्त की है, क उस संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है। क ने आपराधिक न्यासभंग किया है।

406. आपराधिक न्यासभंग के लिए दण्ड -

जो कोई आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

407. वाहक, आदि द्वारा आपराधिक न्यासभंग -

जो कोई वाहक, घाटवाल या भाण्डागारिक के रूप में अपने पास संपत्ति न्यस्त किए जाने पर ऐसी संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

408. लिपिक या सेवक द्वारा आपराधिक न्यासभंग -

जो कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक के रूप में नियोजित होते हुए, और इस नाते किसी प्रकार संपत्ति, या संपत्ति पर कोई भी अख्तियार अपने में न्यस्त होते हुए, उस संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

409. लोक-सेवक द्वारा या बैंकार, व्यापारी या अभिकर्ता द्वारा आपराधिक न्यासभंग -

जो कोई लोक-सेवक के नाते अथवा बैंकार, व्यापारी, फैक्टर, दलाल, अटर्नी या अभिकर्ता के रूप में अपने कारबार के अनुक्रम में किसी प्रकार संपत्ति, या संपत्ति पर कोई भी अख्तयार अपने को न्यस्त होते हुए उस संपत्ति के विषय में आपराधिक न्यासभंग करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 409 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय'' द्वारा विचारणीय है ।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4 | म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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चुराई हुईं संपत्ति प्राप्त करने के विषय में

410. चुराई हुई संपत्ति -

वह संपत्ति, जिसका कब्जा चोरी द्वारा या उद्दापन द्वारा या लूट द्वारा अन्तरित किया गया है, और वह संपत्ति, जिसका आपराधिक दुर्विनियोग किया गया है, या जिसके बारे में आपराधिक न्यासभंग किया गया है, “चुराई हुई संपत्ति' कहलाती है, चाहे वह अन्तरण या वह दुर्विनियोग या न्यासभंग भारत के भीतर किया गया हो या बाहर किन्तु यदि ऐसी संपत्ति तत्पश्चात ऐसे व्यक्ति के कब्जे में पहुंच जाती है, जो उसके कब्जे के लिए वैध रूप से हकदार है, तो वह चुराई हुई संपत्ति नहीं रह जाती ।

411. चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना -

जो कोई किसी चुराई हुई संपत्ति को, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह चुराई हुई संपत्ति है, बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा ।

412. ऐसी संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना जो डकैती करने में चुराई गई है -

जो कोई ऐसी चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखे रखेगा, जिसके कब्जे के विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डकैती द्वारा अन्तरित की गई है, अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके संबंध में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डाकुओं की टोली का है या रहा है, ऐसी संपत्ति, जिसके विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

413. चुराई हुई संपत्ति का अभ्यासत: व्यापार करना -

जो कोई ऐसी संपत्ति, जिसके संबंध में, वह यह जानता है, या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, अभ्यासतः प्राप्त करेगा, या अभ्यासतः उसमें व्यवहार करेगा, वह,आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।

414. चुराई हुई संपत्ति छिपाने में सहायता करना -

जो कोई संपत्ति को छिपाने में, या व्ययनित करने में, या इधर-उधर करने में स्वेच्छया सहायता करेगा, जिसके विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

छल के विषय में

415. छल -

जो कोई किसी व्यक्ति से प्रवंचना कर उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार प्रवंचित किया गया है, कपटपूर्वक या बेईमानी से उत्प्रेरित करता है कि वह कोई संपत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे, या यह सम्मति दे दे कि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति को रख रखे या साशय उस व्यक्ति को, जिसे इस प्रकार प्रवंचित किया गया है, उत्प्रेरित करता है कि वह ऐसा कोई कार्य करे, या करने का लोप करे जिसे वह यदि उसे इस प्रकार प्रवंचित न किया गया होता तो, न करता, या करने का लोप न करता, और जिस कार्य या लोप से उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, ख्याति संबंधी या सांपत्तिक नुकसान या अपहानि कारित होती है, या कारित होनी संभाव्य है, वह “छल” करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण - तथ्यों का बेईमानी से छिपाना इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत प्रवंचना है। 

दृष्टांत -

(क) क सिविल सेवा में होने का मिथ्या अपदेश करके साशय य से प्रवंचना करता है, और इस प्रकार बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह उसे उधार पर माल ले लेने दे, जिसका मूल्य चुकाने का उसका इरादा नहीं है। क छल करता है।

(ख) क एक वस्तु पर कूटकृत चिन्ह बनाकर य से साशय प्रवंचना करके उसे यह विश्वास कराता है कि वह वस्तु किसी प्रसिद्ध विनिर्माता द्वारा बनाई गई है, और इस प्रकार उस वस्तु, का क्रय करने और उसका मूल्य चुकाने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है। क छल करता है।

(ग) क, य को किसी वस्तु का नकली सेंपल दिखलाकर य से साशय प्रवंचना करके, उसे यह विश्वास कराता है कि वह वस्तु उस सेंपल के अनुरूप है, और तद्द्वारा उस वस्तु को खरीदने और उसका मूल्य चुकाने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है। क छल करता है।

(घ) क किसी वस्तु का मूल्य देने में ऐसी कोठी पर हुंडी करके, जहां क का कोई धन जमा नहीं है, और जिसके द्वारा क को हुंडी का अनादर किए जाने की प्रत्याशा है, आशय से य की प्रवंचना करता है, और एतद्द्वारा बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह वस्तु परिदत्त कर दे जिसका मूल्य चुकाने का उसका आशय नहीं है। क छल करता है।

(ङ) क ऐसे नगों को जिनको वह जानता है कि वे हीरे नहीं हैं, हीरों के रूप में गिरवी रख कर य से साशय प्रवंचना करता है, और एतद्द्वारा धन उधार देने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है। क छल करता है।

(च) क साशय प्रवंचना करके य को यह विश्वास कराता है कि क को जो धन य उधार देगा उसे वह चुका देगा, और तद्द्वारा बेईमानी से य को उत्प्रेरित करता है कि वह उसे धन उधार दे दे, जबकि क का आशय उस धन को चुकाने का नहीं है। क छल करता है।

(छ) क, य से साशय प्रवंचना करके यह विश्वास दिलाता है कि क का इरादा य को नील के पौधों का एक निश्चित परिमाण परिदत्त करने का है, जिसको परिदत्त करने का उसका आशय नहीं है, और तद्द्वारा ऐसे परिदान के विश्वास पर अग्रिम धन देने के लिए य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है। क छल करता है। यदि क धन अभिप्राप्त करते समय नील परिदत्त करने का आशय रखता हो, और उसके पश्चात् अपनी संविदा भंग कर दे और वह उसे परिदत्त न करे, तो वह छल नहीं करता है, किन्तु संविदा भंग करने के लिए केवल सिविल कार्यवाही के दायित्व के अधीन है।

(ज) क साशय प्रवंचना करके य को यह विश्वास दिलाता है कि क ने य के साथ की गई संविदा के अपने भाग का पालन कर दिया है, जबकि उसका पालन उसने नहीं किया है, और तद्द्वारा य को बेईमानी से उत्प्रेरित करता है कि वह धन दे | क छल करता है।

(झ) क, ख को एक संपदा बेचता और हस्तांतरित करता है। क यह जानते हुए कि ऐसे विक्रय के परिणामस्वरूप उस संपत्ति पर उसका कोई अधिकार नहीं है, ख को किये गए पूर्व विक्रय और हस्तांतरण के तथ्य को प्रकट न करते हुए उसे य के हाथ बेच देता है या बंधक रख देता है, और य से विक्रय या बंधक धन प्राप्त कर लेता है। क छल करता है।

416. प्रतिरूपण द्वारा छल -

कोई व्यक्ति “प्रतिरूपण" द्वारा छल करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह यह अपदेश करके कि वह कोई अन्य व्यक्ति है, या एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के रूप में जानते हुए प्रतिस्थापित करके, या यह व्यपदिष्ट करके कि वह या कोई अन्य व्यक्ति, कोई ऐसा व्यक्ति है, जो वस्तुतः उससे या अन्य व्यक्ति से भिन्न है, छल करता है।

स्पष्टीकरण - यह अपराध हो जाता है चाहे वह व्यक्ति जिसका प्रतिरूपण किया गया है, वास्तविक व्यक्ति हो या काल्पनिक।

दृष्टांत -

(क) क, उसी नाम का अमुक धनवान बैंकर है इस अपदेश द्वारा छल करता है। क प्रतिरूपण द्वारा छल करता है।

(ख) ख, जिसकी मृत्यु हो चुकी है, होने का अपदेश करने द्वारा क छल करता है। क प्रतिरूपण द्वारा छल करता है।

417. छल के लिए दण्ड -

जो कोई छल करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

418. इस ज्ञान के साथ छल करना कि उस व्यक्ति को सदोष हानि हो सकती है जिसका हित संरक्षित रखने के लिए अपराधी आबद्ध है -

जो कोई इस ज्ञान के साथ छल करेगा कि यह संभाव्य है कि वह तद्द्वारा उस व्यक्ति को सदोष हानि पहुंचाए, जिसका हित उस संव्यवहार में जिससे वह छल संबंधित है, संरक्षित रखने के लिए वह या तो विधि द्वारा, या वैध संविदा द्वारा आबद्ध था, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

419. प्रतिरूपण द्वारा छल के लिए दण्ड -

जो कोई प्रतिरूपण द्वारा छल करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

420. छल करना और संपत्ति परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करना -

जो कोई छल करेगा, और तद्द्वारा उस व्यक्ति को, जिसे प्रवंचित किया गया है, बेईमानी से उत्प्रेरित करेगा कि वह कोई संपत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे, या किसी भी मूल्यवान प्रतिभूति को या किसी चीज को, जो हस्ताक्षरित या मुद्रांकित है, और जो मूल्यवान प्रतिभूति में संपरिवर्तित किए जाने योग्य है, पूर्णतः या अंशतः रच दे, परिवर्तित कर दे, या नष्ट कर दे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

कपटपूर्ण विलेखों और संपत्ति व्ययनों के विषय में

421. लेनदारों में वितरण निवारित करने के लिए सम्पत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाना -

जो कोई किसी सम्पत्ति का अपने लेनदारों या किसी अन्य व्यक्ति के लेनदारों के बीच विधि के अनुसार वितरित किया जाना तद्द्वारा निवारित करने के आशय से, या तद्द्वारा संभाव्यतः निवारित करेगा यह जानते हुए उस संपत्ति को बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारित करेगा या छिपाएगा या किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या पर्याप्त प्रतिफल के बिना किसी व्यक्ति को अन्तरित करेगा या कराएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

422. ऋण को लेनदारों के लिए उपलब्ध होने से बेईमानी से या कपटपूर्वक निवारित करना -

जो कोई किसी ऋण का या मांग का, जो स्वयं उसको या किसी अन्य व्यक्ति को शोध्य हो, अपने या ऐसे अन्य व्यक्ति के ऋणों को चुकाने के लिए विधि के अनुसार उपलब्ध होना कपटपूर्वक या बेईमानी से निवारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

423. अन्तरण के ऐसे विलेख का, जिसमें प्रतिफल के संबंध में मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, बेईमानी से या कपटपूर्वक निष्पादन -

जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्वक किसी ऐसे विलेख को हस्ताक्षरित करेगा, निष्पादित करेगा, या उसका पक्षकार बनेगा, जिससे किसी संपत्ति का, या उसमें के किसी हित का, अन्तरित किया जाना, या किसी भार के अधीन किया जाना, तात्पर्यित है, और जिसमें ऐसे अन्तरण या भार के प्रतिफल से संबंधित या उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों से संबंधित, जिसके या जिनके उपयोग या फायदे के लिए उसका प्रवर्तित होना वास्तव में आशयित है, कोई मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

424. संपत्ति का बेईमानी से या कपटपूर्वक अपसारण या छिपाया जाना -

जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्वक अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की किसी संपत्ति को छिपाएगा या अपसारित करेगा, या उसके छिपाए जाने में या अपसारित किए जाने में बेईमानी से या कपटपूर्वक सहायता करेगा, या बेईमानी से किसी ऐसी मांग या दावे को, जिसका वह हकदार है, छोड़ देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

रिष्टि के विषय में

425. रिष्टि -

जो कोई इस आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए कि, वह लोक को या किसी व्यक्ति को सदोष हानि या नुकसान कारित करे, किसी संपत्ति का नाश या किसी संपत्ति में या उसकी स्थिति में ऐसी तब्दीली कारित करता है, जिससे उसका मूल्य या उपयोगिता नष्ट या कम हो जाती है या उस पर क्षतिकारक प्रभाव पड़ता है, वह "रिष्टि" करता है।

स्पष्टीकरण 1 - रिष्टि के अपराध के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी क्षतिग्रस्त या नष्ट संपत्ति के स्वामी को हानि, या नुकसान कारित करने का आशय रखे। यह पर्याप्त है कि उसका यह आशय है या यह वह संभाव्य जानता है कि वह किसी संपत्ति को क्षति करके किसी व्यक्ति को, चाहे वह संपत्ति उस व्यक्ति की हो या नहीं सदोष हानि या नुकसान कारित करे।

स्पष्टीकरण 2 - ऐसी संपत्ति पर प्रभाव डालने वाले कार्य द्वारा, जो उस कार्य को करने वाले व्यक्ति की हो, या संयुक्त रूप से उस व्यक्ति की और अन्य व्यक्तियों की हो, रिष्टि की जा सकेगी।

दृष्टांत -

(क) य की सदोष हानि कारित करने के आशय से य की मूल्यवान प्रतिभूतियों को क स्वेच्छया जला देता है। क ने रिष्टि की है।

(ख) य की सदोष हानि करने के आशय से, उसके बर्फ-घर में क पानी छोड़ देता है, और इस प्रकार बर्फ को गला देता है। क ने रिष्टि की है।

(ग) क इस आशय से य की अंगूठी नदी में स्वेच्छया फेंक देता है कि य को तद्द्वारा सदोष हानि कारित करे। क ने रिष्टि की है।

(घ) क यह जानते हुए कि उसकी चीजबस्त उस ऋण की तुष्टि के लिए, जो य को उस द्वारा शोध्य है, निष्पादन में ली जाने वाली है, उस चीजबस्त को इस आशय से नष्ट कर देता है कि ऐसा करके ऋण की तुष्टि अभिप्राप्त करने में य को निवारित कर दे और इस प्रकार य को नुकसान कारित करे। क ने रिष्टि की है।

(ङ) क एक पोत का बीमा कराने के पश्चात् उसे इस आशय से कि बीमा करने वालों को नुकसान कारित करे, उसको स्वेच्छया संत्यक्त करा देता है। क ने रिष्टि की है।

(च) य को, जिसने बाटमरी पर धन उधार दिया है, नुकसान कारित करने के आशय से क उस पोत को संत्यक्त करा देता है। क ने रिष्टि की है।

(छ) य के साथ एक घोड़े में संयुक्त संपत्ति रखते हुए य को सदोष हानि कारित करने के आशय से क उस घोड़े को गोली मार देता है। क ने रिष्टि की है।

(ज) क इस आशय से और यह संभाव्य जानते हुए कि वह य की फसल को नुकसान कारित करे य के खेत में ढोरों का प्रवेश कारित कर देता है। क ने रिष्टि की है।

426. रिष्टि के लिए दण्ड -

जो कोई रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

427. रिष्टि जिससे पचास रुपए का नुकसान होता है -

जो कोई रिष्टि करेगा और तद्द्वारा पचास रुपए या उससे अधिक रिष्टि की हानि या नुकसान कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

428. दस रुपए के मूल्य के जीवजन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि -

जो कोई दस रुपए या उससे अधिक के मूल्य के किसी जीवजन्तु या जीवजन्तुओं को वध करने, विष देने, विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

429. किसी मूल्य के ढोर, आदि की या पचास रुपए के मूल्य के किसी जीवजन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने द्वारा रिष्टि -

जो कोई किसी हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भैंस, सांड, गाय या बैल को, चाहे उसका कुछ भी मूल्य हो, या पचास रुपए या उससे अधिक मूल्य के किसी भी अन्य जीवजन्तु को वध करने, विष देने, विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

430. सिंचन संकर्म को क्षति करने या जल को दोषपूर्वक मोड़ने द्वारा रिष्टि -

जो कोई किसी ऐसे कार्य के करने द्वारा रिष्टि करेगा, जिससे कृषिक प्रयोजनों के लिए, या मानव प्राणियों के या उन जीवजन्तुओं के, जो संपत्ति हैं, खाने या पीने के, या सफाई के या किसी विनिर्माण को चलाने के जलप्रदाय में कमी कारित होती हो, या कमी कारित होना वह संभाव्य जानता हो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

431. लोक सड़क, पुल, नदी या जलसरणी को क्षति पहुंचाकर रिष्टि -

जो कोई किसी ऐसे कार्य के करने द्वारा रिष्टि करेगा, जिससे किसी लोक सड़क, पुल, नाव्य नदी या प्राकृतिक या कृत्रिम नाव्य जलसरणी को यात्रा या संपत्ति प्रवहन के लिए अगम्य या कम निरापद बना दिया जाए या बना दिया जाना वह संभाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

432. लोक जल निकास में नुकसानप्रद जलप्लावन या बाधा कारित करने द्वारा रिष्टि -

जो कोई किसी ऐसे कार्य के करने द्वारा रिष्टि करेगा, जिससे किसी लोक जलनिकास में क्षतिप्रद या नुकसानप्रद जलप्लावन या बाधा कारित हो जाए, या होना वह संभाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

433. किसी दीपगृह या समुद्री चिन्ह को नष्ट करके, हटाकर या कम उपयोगी बनाकर रिष्टि -

जो कोई किसी दीपगृह को, या समुद्री चिन्ह के रूप में उपयोग में आने वाले अन्य प्रकाश के, या किसी समुद्री चिन्ह या बोया या अन्य चीज के, जो नौ-चालकों के लिये मार्ग प्रदर्शन करने के लिए रखी गई हो, नष्ट करने या, हटाने द्वारा अथवा कोई ऐसा कार्य करने द्वारा, जिससे कोई ऐसा दीपगृह, समुद्री चिन्ह, बोया या पूर्वोक्त जैसी अन्य चीज नौ-चालकों के लिए मार्ग-प्रदर्शक के रूप में कम उपयोगी बन जाए, रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

434. लोक प्राधिकारी द्वारा लगाए गए भूमि चिन्ह को नष्ट करने या हटाने आदि द्वारा रिष्टि -

जो कोई लोक-सेवक के प्राधिकार द्वारा लगाए गए किसी भूमि चिन्ह के नष्ट करने या हटाने द्वारा अथवा कोई ऐसा कार्य करने द्वारा, जिससे ऐसा भूमि चिन्ह, ऐसे भूमि चिन्ह के रूप में कम उपयोगी बन जाए, रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

435. सौ रुपए का या (कृषि उपज की दशा में) दस रुपए का नुकसान कारित करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि -

जो कोई किसी संपत्ति को, एक सौ रुपए या उससे अधिक का या (जहां कि संपत्ति कृषि उपज हो, वहां) दस रुपए या उससे अधिक का नुकसान कारित करने के आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा ऐसा नुकसान कारित करेगा, अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 435 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय”' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4। म. प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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436. गृह आदि को नष्ट करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि -

जो कोई किसी ऐसे निर्माण का, जो मामूली तौर पर उपासना स्थान के रूप में या मानव निवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में आता हो, नाश कारित करने के आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा उसका नाश कारित करेगा, अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

437. तल्लायुक्त या बीस टन बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बनाने के आशय से रिष्टि -

जो कोई किसी तल्लायुक्त जलयान या बीस टन या उससे अधिक बोझ वाले जलयान को नष्ट करने या सापद बना देने के आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा उसे नष्ट करेगा, या सापद बना देगा उस जलयान की रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

438. धारा 437 में वर्णित अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा की गई रिष्टि के लिए दण्ड -

जो कोई अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा ऐसी रिष्टि करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, जैसी अन्तिम पूर्ववर्ती धारा में वर्णित है, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

439. चोरी, आदि करने के आशय से जलयान को साशय भूमि या किनारे पर चढ़ा देने के लिए दण्ड -

जो कोई किसी जलयान को यह आशय रखते हुए कि वह उसमें अन्तर्विष्ट किसी संपत्ति की चोरी करे या बेईमानी से ऐसी किसी संपत्ति का दुर्विनियोग करे, या इस आशय से कि ऐसी चोरी या संपत्ति का दुर्विनियोग किया जाए, साशय भूमि पर चढ़ा देगा या किनारे से लगा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

440. मृत्यु या उपहति कारित करने की तैयारी के पश्चात् की गई रिष्टि -

जो कोई किसी व्यक्ति को मृत्यु या उसे उपहति या उसका सदोष अवरोध कारित करने की, अथवा मृत्यु का, या उपहति का, या सदोष अवरोध का भय कारित करने की तैयारी करके रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

आपराधिक अतिचार के विषय में

441. आपराधिक अतिचार -

जो कोई किसी ऐसी संपत्ति में या ऐसी संपत्ति पर, जो किसी दूसरे के कब्जे में है, इस आशय से प्रवेश करता है, कि वह कोई अपराध करे या किसी व्यक्ति को, जिसके कब्जे में ऐसी संपत्ति है, अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे, अथवा ऐसी संपत्ति में या ऐसी संपत्ति पर, विधिपूर्वक प्रवेश करके वहां विधिविरुद्ध रूप में इस आशय में बना रहता है कि तद्द्वारा वह किसी ऐसे व्यक्ति को अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे या इस आशय से बना रहता है, वह कोई अपराध करे, वह "आपराधिक अतिचार" करता है, यह कहा जाता है।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश -- धारा 441 के स्थान पर अग्र लिखित को प्रतिस्थापित करें, अर्थात् :-

441. आपराधिक अतिचार - जो कोई संपत्ति में या ऐसी संपत्ति पर जो किसी दूसरे के कब्जे में है, इस आशय से प्रवेश करता है कि वह कोई अपराध करे, जिसके कब्जे में ऐसी संपत्ति है, उसे अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे अथवा ऐसी संपत्ति में या ऐसी संपत्ति पर विधिपूर्वक प्रवेश करके वह विधिविरुद्ध रूप से इस आशय में बना रहता है कि एतद्द्वारा वह किसी ऐसे व्यक्ति को अभित्रस्त, अपमानित या क्षुब्ध करे या इस आशय से बना रहता है कि कोई अपराध करे, अथवा आपराधिक कानून (यू.पी. संशोधन) अधिनियम 1981 के पूर्व या प्रभाव में आने के बाद ऐसी संपत्ति में या ऐसी संपत्ति पर अनधिकृत कब्जा प्राप्त करने या ऐसी संपत्ति का अनधिकृत उपयोग करने के आशय से संपत्ति में या संपत्ति पर प्रवेश कर चुका है। दूसरे व्यक्ति द्वारा लिखित में सूचना पत्र द्वारा जो सम्यक् रूप से उस पर तामील हो चुका है, कहे जाने पर सूचना पत्र में दी गई तिथि तक ऐसी संपत्ति से हटने या उसका कब्जा या उपयोग करना छोड़ने में असफल रहता है, तब वह आपराधिक अतिचार करता है, यह कहा जाता है।

[देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 31 सन् 1961, धारा 2, (दिनांक 13-11-1961 से प्रभावशील)]

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442. गृह-अतिचार -

जो कोई किसी निर्माण, तम्बू या जलयान में, जो मानव निवास के रूप में उपयोग में आता है, या किसी निर्माण में, जो उपासना-स्थान के रूप में, या किसी संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में आता है, प्रवेश करके या उसमें बना रहकर, आपराधिक अतिचार करता है, वह “गृह-अतिचार" करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण - आपराधिक अतिचार करने वाले व्यक्ति के शरीर के किसी भाग का प्रवेश गृह-अतिचार गठित करने के लिए पर्याप्त प्रवेश है।

443. प्रच्छन्न गृह-अतिचार -

जो कोई यह पूर्वावधानी बरतने के पश्चात् गृह अतिचार करता है कि ऐसे गृह-अतिचार को किसी ऐसे व्यक्ति से छिपाया जाए जिसे उस निर्माण, तम्बू या जलयान में से, जो अतिचार का विषय है, अतिचारी को अपवर्जित करने या बाहर कर देने का अधिकार है, वह “प्रच्छन्न गृह-अतिचार" करता है, यह कहा जाता है।

444. रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार -

जो कोई सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व प्रच्छन्न गृह अतिचार करता है, वह “रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार" करता है, यह कहा जाता है।

445. गृह-भेदन -

जो व्यक्ति गृह-अतिचार करता है, वह “गृह-भेदन" करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस गृह में या उसके किसी भाग में एतस्मिन् पश्चात् वर्णित छह तरीकों में से किसी तरीके से प्रवेश करता है। अथवा यदि वह उस गृह में या उसके किसी भाग में अपराध करने के प्रयोजन से होते हुए, या वहां अपराध कर चुकने पर, उस गृह से या उसके किसी भाग से ऐसे छह तरीकों में से किसी तरीके से बाहर निकलता है, अर्थात् :-

पहला - यदि वह ऐसे रास्ते में प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जो स्वयं उसने या उस गृह-अतिचार के किसी दुष्प्रेरक ने वह गृह-अतिचार करने के लिए बनाया है;

दूसरा - यदि वह किसी ऐसे रास्ते से, जो उससे या उस अपराध के दुष्प्रेरक से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा मानव प्रवेश के लिए आशयित नहीं है, या किसी ऐसे रास्ते से, जिस तक कि वह किसी दीवार या निर्माण पर सीढ़ी द्वारा या अन्यथा चढ़कर पहुंचा है, प्रवेश करता या बाहर निकलता है;

तीसरा - यदि वह किसी ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जिसको उसने या उस गृह अतिचार के किसी दुष्प्रेरक ने वह गृह-अतिचार करने के लिए किसी ऐसे साधन द्वारा खोला है, जिसके द्वारा उस रास्ते को खोला जाना उस गृह के अधिभोगी द्वारा आशयित नहीं था;

चौथा - यदि उस गृह-अतिचार को करने के लिए, या गृह-अतिचार के पश्चात् उस गृह से निकल जाने के लिए वह किसी ताले को खोलकर प्रवेश करता या बाहर निकलता है:

पाँचवाँ - यदि वह आपराधिक बल के प्रयोग या हमले या किसी व्यक्ति पर हमला करने की धमकी द्वारा अपना प्रवेश करता है या प्रस्थान करता है;

छठा - यदि वह किसी ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकलता है जिसके बारे में वह जानता है कि वह ऐसे प्रवेश या प्रस्थान को रोकने के लिए बंद किया हुआ है और अपने द्वारा या उस गृह अतिचार के दुष्प्रेरक द्वारा खोला गया है।

स्पष्टीकरण - कोई उपगृह या निर्माण जो किसी गृह के साथ-साथ अधिभोग में है, और जिसके और ऐसे गृह के बीच आने-जाने का अव्यवहित भीतरी रास्ता है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत उस गृह का भाग है। 

दृष्टांत -

(क) य के गृह की दीवार में छेद करके और उस छेद में से अपना हाथ डालकर क गृह-अतिचार करता है। यह गृह-भेदन है।

(ख) क तल्लों के बीच की बारी में से रेंगकर एक पोत में प्रवेश करने द्वारा गृह अतिचार करता है। यह गृह भेदन है।

(ग) य के गृह में एक खिड़की से प्रवेश करने द्वारा क गृह-अतिचार करता है। यह गृह-भेदन है।

(घ) एक बंद द्वार को खोलकर य के गृह में उस द्वार से प्रवेश करने द्वारा क गृह-अतिचार करता है। यह गृहभेदन है।

(ङ) य के गृह में द्वार के छेद में से तार डालकर सिटकनी को ऊपर उठाकर उस द्वार में प्रवेश करने द्वारा क गृह अतिचार करता है। यह गृह-भेदन है।

(च) क को य के गृह के द्वार की चाबी मिल जाती है, जो य से खो गई थी, और वह उस चाबी से द्वार खोलकर य के गृह में प्रवेश करने द्वारा गृह-अतिचार करता है। यह गृह-भेदन है।

(छ) य अपनी ड्योढ़ी में खड़ा है। य को धक्के से गिराकर के उस गृह में बलात् प्रवेश करने द्वारा गृह अतिचार करता है। यह गृह-भेदन है।

(ज) य, जो म का दरबान है, म की ड्योढ़ी में खड़ा है। य को मारने की धमकी देकर क उसको विरोध करने से भयोपरत करके उस गृह में प्रवेश करने द्वारा गृह-अतिचार करता है। यह गृह-भेदन है।

446. रात्रौ गृह-भेदन -

जो कोई सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय के पूर्व-गृह भेदन करता है वह “रात्रौ गृह भेदन" करता है, यह कहा जाता है।

447. आपराधिक अतिचार के लिये दण्ड -

जो कोई आपराधिक अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

448. गृह-अतिचार के लिए दण्ड -

जो कोई गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

449. मृत्यु से दण्डनीय अपराध को करने के लिए गृह-अतिचार -

जो कोई मृत्यु से दण्डनीय अपराध करने के लिए गृह-अतिचार करेगा वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

450. आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध को करने के लिए गृह-अतिचार -

जो कोई आजीवन कारावास से दण्डनीय कोई अपराध करने के लिए गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। GO toTOP

451. कारावास से दण्डनीय अपराध को करने के लिए गृह-अतिचार -

जो कोई कारावास से दण्डनीय कोई अपराध करने के लिए गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध, जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी।

452. उपहति, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् गृह-अतिचार -

जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की, या किसी व्यक्ति पर हमला करने की, या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की अथवा किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के भय में डालने की तैयारी करके गृह-अतिचार करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

453. प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन के लिए दण्ड -

जो कोई प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृहभेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

454. कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन -

जो कोई कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध, जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।

455. उपहति, हमले या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृहभेदन -

जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की या किसी व्यक्ति पर हमला करने की या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की अथवा किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध करने के भय में डालने की तैयारी करके, प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

456. रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन के लिए दण्ड -

जो कोई रात्रौ प्रच्छन्न गृहअतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

457. कारावास से दण्डनीय अपराध करने के लिए रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृहभेदन -

जो कोई कारावास से दण्डनीय कोई अपराध करने के लिए रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह अपराध जिसका किया जाना आशयित हो, चोरी हो, तो कारावास की अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी.

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - धारा 457 को उसकी उपधारा (1) के रूप में पुन:संख्यांकित किया जाए और इस प्रकार पुन:संख्यांकित उपधारा (1) के पश्चात्‌ निम्नलिखित उपधारा जोड़ी जाए, अर्थात्‌ :- 

(2) जो कोई किसी इमारत में जो पूजा स्थल के रूप में उपयोग की जाती है। ऐसी इमारत से कोई मूर्ति या प्रतिमा चुराने का अपराध करने के लिए रात्रौ गृह प्रच्छन्न अतिचार या रात्रौ गृह- भेदन करता है, वह उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी कठोर कारावास से, जो 3 वर्ष से कम नहीं होगा, किन्तु जिसकी अवधि 14 वर्ष तक की हो सकेगी और जुमनि से, जो पांच हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दण्डित किया जाएगा |

परन्तु यह कि पर्याप्त और विशेष कारणों से जिनका उल्लेख निर्णय में किया जाएगा। न्यायालय 3 वर्ष से कम कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा।

[देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 24 सन्‌ 1995, धारा 11]

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458. उपहति, हमला या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन -

जो कोई किसी व्यक्ति को उपहति कारित करने की या किसी व्यक्ति पर हमला करने की या किसी व्यक्ति का सदोष अवरोध करने की अथवा किसी व्यक्ति को उपहति के, या हमले के, या सदोष अवरोध के, भय में डालने की तैयारी करके रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

459. प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करते समय घोर उपहति कारित हो -

जो कोई प्रच्छन्न गृह-अतिचार या गृह-भेदन करते समय किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा या किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

460. रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृहभेदन में संयुक्ततः सम्पृक्त समस्त व्यक्ति दण्डनीय हैं, जबकि उसमें से एक द्वारा मृत्यु या घोर उपहति कारित की हो -

यदि रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करते समय ऐसे अपराध का दोषी कोई व्यक्ति स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु या घोर उपहति कारित करेगा या मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, तो ऐसे रात्रौ प्रच्छन्न गृह-अतिचार या रात्रौ गृह-भेदन करने में संयुक्ततः संपृक्त हर व्यक्ति, आजीवन कारावास से, या दोनों में किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

461. ऐसे पात्र को, जिसमें संपत्ति है, बेईमानी से तोड़कर खोलना -

जो कोई ऐसे बंद पात्र को, जिसमें संपत्ति हो या जिसमें संपत्ति होने का उसे विश्वास हो, बेईमानी से या रिष्टि करने के आशय से तोड़कर खोलेगा या उद्बंधित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

462. उसी अपराध के लिए दण्ड, जबकि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसे अभिरक्षा न्यस्त की गई है -

जो कोई ऐसा बंद पात्र, जिसमें संपत्ति हो, या जिसमें संपत्ति होने का उसे विश्वास हो, अपने पास न्यस्त किए जाने पर उसको खोलने का प्राधिकार न रखते हुए, बेईमानी से या रिष्टि करने के आशय से, उस पात्र को, तोड़कर खोलेगा या उद्बंधित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो । सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 18 : दस्तावेजों और संपत्ति चिन्हों संबंधी अपराधों के विषय में

463. कूटरचना -

जो कोई किसी मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलेक्ट्रानिक अभिलेख अथवा दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख के किसी भाग को इस आशय से रचता है कि लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान या क्षति कारित की जाए, या किसी दावे या हक का समर्थन किया जाए, या यह कारित किया जाए कि कोई व्यक्ति संपत्ति अलग करे या कोई अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा करे या इस आशय से रचता है कि कपट करे, या कपट किया जा सके, वह कूटरचना करता है। 

464. मिथ्या दस्तावेज रचना -

उस व्यक्ति के बारे में यह कहा जाता है कि वह व्यक्ति मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलेक्ट्रानिक अभिलेख रचता है -

पहला - जो बेईमानी से या कपटपूर्वक इस आशय से -

(क) किसी दस्तावेज को या दस्तावेज के भाग को रचित, हस्ताक्षरित, मुद्रांकित या निष्पादित करता है;

(ख) किसी इलेक्ट्रानिक अभिलेख को या इलेक्ट्रानिक अभिलेख के भाग को रचित या सम्प्रेषित करता है;

(ग) किसी इलेक्ट्रानिक अभिलेख पर कोई इलेक्ट्रानिक चिह्नक करता है; 

(घ) किसी दस्तावेज का निष्पादन या इलेक्ट्रानिक चिह्नक की प्रमाणिकता द्योतन करने वाला कोई चिन्ह लगाता है, कि यह विश्वास किया जाए कि ऐसी दस्तावेज या दस्तावेज के भाग, इलेक्ट्रानिक अभिलेख या इलेक्ट्रॉनिक चिह्नक की रचना, हस्ताक्षरण, मुद्रांकन, निष्पादन, सम्प्रेषण या संयोजन ऐसे व्यक्ति द्वारा या ऐसे व्यक्ति के प्राधिकार द्वारा किया गया था, जिसके द्वारा या जिसके प्राधिकार द्वारा उसकी रचना, हस्ताक्षरण, मुद्रांकन या निष्पादन, सम्प्रेषण या संयोजन न होने की बात वह जानता है; अथवा

दूसरा - जो किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख के किसी तात्विक भाग में परिवर्तन, उसके द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, चाहे ऐसा व्यक्ति ऐसे परिवर्तन के समय जीवित हो या नहीं, उस दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख के रचित, निष्पादित या इलेक्ट्रानिक चिह्नक से संयोजित किये जाने के पश्चात् उसे रद्द करने द्वारा या अन्यथा, विधिपूर्वक प्राधिकार के बिना बेईमानी से या कपटपूर्वक करता है; अथवा  

तीसरा - जो किसी व्यक्ति द्वारा, यह जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख की विषय वस्तु को परिवर्तन के रूप को, चित्तविकृति या मत्तता की हालत में होने के कारण जान नहीं सकता या उस प्रवंचना के कारण, जो उससे की गई है, जानता नहीं है, उस दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को बेईमानी से, या कपटपूर्वक हस्ताक्षरित, मुद्रांकित, निष्पादित या परिवर्तित किया जाना या इलेक्ट्रानिक अभिलेख पर अपने इलेक्ट्रानिक चिह्नक किया जाना कारित करता है;

दृष्टांत -

(क) क के पास य द्वारा ख पर लिखा हुआ 10,000 रुपए का एक प्रत्ययपत्र है। ख से कपट करने के लिए के 10,000 रुपए में एक शून्य बढ़ा देता है और उस राशि को 1,00,000 रु. इस आशय से बना देता है कि ख यह विश्वास कर ले कि य ने वह पत्र ऐसा ही लिखा था क ने कूटरचना की है।

(ख) क, इस आशय से कि वह य की सम्पदा ख को बेच दे और उसके द्वारा ख से क्रय धन अभिप्राप्त कर ले य के प्राधिकार के बिना य की मुद्रा एक ऐसी दस्तावेज पर लगाता है, जो कि य की ओर से क की सम्पदा का हस्तांतरण-पत्र होना तात्पर्यित है। क ने कूटरचना की है।

(ग) एक बैंकार पर लिखे हुए और वाहक को देय चैक को क उठा लेता है। चैक ख द्वारा हस्ताक्षरित है, किन्तु उस चैक में कोई राशि अंकित नहीं है। क दस हजार रुपए की राशि अंकित करके चैक को कपटपूर्वक भर लेता है। क कूटरचना करता है।

(घ) क अपने अभिकर्ता ख के पास एक बैंकार पर लिखा हुआ, क द्वारा हस्ताक्षरित चैक, देय धनराशि अंकित किए बिना छोड़ देता है। ख को क इस बात के लिए प्राधिकृत कर देता है कि वह कुछ संदाय करने के लिए चैक में ऐसी धनराशि, जो दस हजार रुपए से अधिक न हो, अंकित करके चैक भर ले। ख कपटपूर्वक चैक में बीस हजार रुपए अंकित करके उसे भर लेता है। ख कूटरचना करता है।

(ङ) क, ख के प्राधिकार के बिना ख के नाम में अपने ऊपर एक विनिमयपत्र इस आशय से लिखता है कि वह एक बैंकार से नकदी विनिमयपत्र की भांति बट्टा देकर उसे भुना ले, और उस विनिमयपत्र को उसकी परिपक्वता पर ले ले। यहां क इस आशय से उस विनिमयपत्र को लिखता है कि प्रवंचना करके बैंकार को यह अनुमान करा दे कि उसे ख की प्रतिभूति प्राप्त है, और इसलिए वह उस विनिमयपत्र को बट्टा लेकर भुना दे। क कूटरचना का दोषी है।

(च) य की विल में ये शब्द अन्तर्विष्ट हैं कि “मैं निदेश देता हूं कि मेरी समस्त शेष संपत्ति क, ख और ग में बराबर बांट दी जाए। क बेईमानी से ख का नाम इस आशय से खुरच डालता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि समस्त संपत्ति उसके स्वयं के लिए और ग के लिए ही छोड़ी गई थी। क ने कूट रचना की है।

(छ) क एक सरकारी वचनपत्र को, पृष्ठांकित करता है और उस पर शब्द “य को उसके आदेशानुसार दे दो” लिखकर और पृष्ठांकन पर हस्ताक्षर करके उसे य को या उसके आदेशानुसार देय कर देता है। ख बेईमानी से “य को या उसके आदेशानुसार दे दो” इन शब्दों को छीलकर मिटा डालता है, और इस प्रकार उस विशेष पृष्ठांकन को एक निरंक पृष्ठांकन में परिवर्तित कर देता है। ख कूटरचना करता है।

(ज) क एक सम्पदा य को बेच देता है और उसका हस्तांतर पत्र लिख देता है। उसके पश्चात् क, य को कपट करके संपदा से वंचित करने के लिए उसी सम्पदा का एक हस्तांतर पत्र, जिस पर य के हस्तांतर-पत्र की तारीख से छह मास पूर्व की तारीख पड़ी हुई है, ख के नाम इस आशय से निष्पादित कर देता है कि यह कि उसने अपनी संपदा य को हस्तांतरित करने से पूर्व ख को हस्तांतरित कर दी। थी। क ने कूटरचना की है।

(झ) य अपनी विल क से लिखवाता है। क साशय एक ऐसे वसीयतदार का नाम लिख देता है जो कि उस वसीयतदार से भिन्न है, जिसका नाम य ने कहा है, और य को यह व्यपदिष्ट करके कि उसने विल उसके अनुदेशों के अनुसार ही तैयार की है, य को विल पर हस्ताक्षर करने के लिए उत्प्रेरित करता है। क ने कूटरचना की है।

(ञ) क एक पत्र लिखता है और ख के प्राधिकार के बिना, इस आशय से कि उस पत्र के द्वारा य से और अन्य व्यक्तियों से भिक्षा अभिप्राप्त करे, ख के नाम से हस्ताक्षर यह प्रमाणित करते हुए कर देता है कि क अच्छे शील का व्यक्ति है और अनवेक्षित दुर्भाग्य के कारण दीन अवस्था में है। यहां क ने य को संपत्ति अलग करने के लिए उत्प्रेरित करने की मिथ्या दस्तावेज रची है, इसलिए क ने कूटरचना की है।

(ट) ख के प्राधिकार के बिना क इस आशय से कि उसके द्वारा य के अधीन नौकरी अभिप्राप्त करे, क के शील को प्रमाणित करते हुए एक पत्र लिखता है, और उसे ख के नाम से हस्ताक्षरित करता है। क ने कूट रचना की है क्योंकि उसका आशय कूटरचित प्रमाण-पत्र द्वारा य को प्रवंचित करने का और ऐसा करके य को सेवा की अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा में प्रविष्ट होने के लिए उत्प्रेरित करने का था।

स्पष्टीकरण 1 - किसी व्यक्ति का स्वयं अपने नाम का हस्ताक्षर करना कूटरचना की कोटि में आ सकेगा।

दृष्टांत -

(क) क एक विनिमयपत्र पर अपने हस्ताक्षर इस आशय से करता है कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह विनिमयपत्र उसी नाम के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा गया था। क ने कूटरचना की है।

(ख) क एक कागज के टुकड़े पर शब्द “प्रतिगृहीत किया” लिखता है और उस पर य के नाम के हस्ताक्षर इसलिए करता है कि ख बाद में इस कागज पर एक विनियमपत्र, जो ख ने य के ऊपर किया है, लिखे और उस विनिमयपत्र का इस प्रकार परक्रामण करे, मानो वह य के द्वारा प्रतिगृहीत कर लिया गया था। क कूटरचना का दोषी है, तथा यदि ख इस तथ्य को जानते हुए क के आशय के अनुसरण में, उस कागज पर विनिमयपत्र लिख देता है, तो ख भी कूटरचना का दोषी है। 

(ग) क अपने नाम के किसी अन्य व्यक्ति के आदेशानुसार देय विनिमयपत्र पड़ा पाता है। क उसे उठा लेता है और यह विश्वास कराने के आशय से स्वयं अपने नाम पृष्ठांकित करता है कि इस विनिमयपत्र पर पृष्ठांकन उसी व्यक्ति द्वारा लिखा गया था जिसके आदेशानुसार वह देय है। यहां क ने कूटरचना की है।

(घ) क, ख के विरुद्ध एक डिक्री के निष्पादन में बेची गई संपदा को खरीदता है। ख संपदा के अभिगृहीत किए जाने के पश्चात् य के साथ दुस्संधि करके क को कपट वंचित करने और यह विश्वास कराने के आशय से कि वह पट्टा अभिग्रहण से पूर्व निष्पादित किया गया था, नाममात्र के नाटक पर और एक लंबी कालावधि के लिए य के नाम उस संपदा का पट्टा कर देता है और पट्टे पर अभिग्रहण से छह मास पूर्व की तारीख डाल देता है। ख यद्यपि पट्टे का निष्पादन स्वयं अपने नाम से करता है, तथापि उस पर पूर्व की तारीख डालकर वह कूटरचना करता है।

(ङ) क एक व्यापारी अपने दिवाले का पूर्वानुमान करके अपनी चीजवस्तु ख के पास क के फायदे के लिए और अपने लेनदारों को कपट से वंचित करने के आशय से रख देता है और प्राप्त मूल्य के बदले में, ख को एक धनराशि देने के लिए अपने को आबद्ध करते हुए, एक वचनपत्र उस संव्यवहार की सच्चाई की रंगत देने के लिए लिख देता है, और इस आशय से कि यह विश्वास कर लिया जाए कि यह वचनपत्र उसने उस समय से पूर्व ही लिखा था जब उसका दिवाला निकलने वाला था, उस पर पहले की तारीख डाल देता है। क ने परिभाषा के प्रथम शीर्षक के अधीन कूटरचना की है।

स्पष्टीकरण 2 - कोई मिथ्या दस्तावेज किसी कल्पित व्यक्ति के नाम से इस आशय से रचना कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह दस्तावेज एक वास्तविक व्यक्ति द्वारा रची गई थी, या किसी मृत व्यक्ति के नाम से इस आशय से रचना कि यह विश्वास कर लिया जाए कि वह दस्तावेज उस व्यक्ति द्वारा उसके जीवनकाल में रची गई थी, कूटरचना की कोटि में आ सकेगा। 

दृष्टांत -

क एक कल्पित व्यक्ति के नाम कोई विनिमयपत्र लिखता है, और उसका परक्रामण करने के आशय से उस विनिमयपत्र को ऐसे कल्पित व्यक्ति के नाम से कपटपूर्वक प्रतिगृहीत कर लेता है। क कूटरचना करता है।

स्पष्टीकरण 3 - इस धारा के प्रयोजनों के लिए इलेक्ट्रानिक चिह्नक करना अभिव्यक्ति का वही अर्थ होगा जो उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की धारा 2 की उपधारा (1) के खण्ड (घ) में समनुदेशित है।

465. कूटरचना के लिए दण्ड -

जो कोई कूटरचना करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

466. न्यायालय के अभिलेख की या लोक रजिस्टर आदि की कूटरचना -

जो कोई ऐसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख की, जिसका कि किसी न्यायालय का या न्यायालय में अभिलेख या कार्यवाही होना, या जन्म, बप्तिसमा, विवाह या अन्त्येष्टि का रजिस्टर, या लोक-सेवक द्वारा लोक-सेवक के नाते रखा गया रजिस्टर होना तात्पर्यत हो, अथवा किसी प्रमाणपत्र की या ऐसी दस्तावेज की जिसके बारे में यह तात्पर्यत हो कि वह किसी लोक-सेवक द्वारा उसकी पदीय हैसियत में रची गई है, या जो किसी वाद को संस्थित करने या वाद में प्रतिरक्षा करने का, उसमें कोई कार्यवाही करने का, या दावा संस्वीकृत कर लेने का, प्राधिकार हो या कोई मुख्तारनामा हो, कूटरचना करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिए, रजिस्टर में कोई सूची, आंकड़ा या किसी प्रविष्टि का अभिलेख शामिल है जो इलेक्ट्रानिक रूप में रखा गया है जैसा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की धारा 2 की उपधारा (1) के खण्ड (द) में है।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 466 के अधीन अपराध “'सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 1457-158 पर प्रकाशित |]

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467. मूल्यवान प्रतिभूति, विल, इत्यादि की कूटरचना -

जो कोई किसी ऐसी दस्तावेज की, जिसका कोई मूल्यवान प्रतिभूति या विल या पुत्र के दत्तकग्रहण का प्राधिकार होना तात्पर्यित हो, अथवा जिसका किसी मूल्यवान प्रतिभूति की रचना या अन्तरण का, या उस पर के मूलधन, ब्याज या लाभांश को प्राप्त करने का, या किसी धन, जंगम संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति को प्राप्त करने या परिदत्त करने का प्राधिकार होना तात्पर्यत हो, अथवा किसी दस्तावेज को जिसका धन दिए जाने की अभिस्वीकृति करने वाला, निस्तारणपत्र या रसीद होना, या किसी जंगम संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के परिदान के लिए निस्तारणपत्र या रसीद होना तात्पर्यित हो, कूटरचना करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 467 के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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468. छल के प्रयोजन से कूटरचना -

जो कोई कूटरचना इस आशा से करेगा कि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख जिसकी कूटरचना की जाती है छल के प्रयोजन से उपयोग में लाई जाएगी, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 468 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय '' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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469. ख्याति को अपहानि पहुंचाने के आशय से कूटरचना -

जो कोई कूटरचना इस आशय से करेगा कि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख जिसकी कूटरचना की जाती है, किसी पक्षकार की ख्याति की अपहानि करेगी, या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि इस प्रयोजन से उसका उपयोग किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

470. कूटरचित दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख -

वह मिथ्या दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख, जो पूर्णत: या भागत: कूटरचना द्वारा रची गई है, कूटरचित दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख कहलाती है।

471. कूटरचित दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख का असली के रूप में उपयोग में लाना -

जो कोई किसी ऐसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को, जिसके बारे में वह यह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह कूटरचित दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख है, कपटपूर्वक या बेईमानी से असली के रूप में उपयोग में लाएगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख की कूटरचना की हो।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 471 के अधीन अपराध “'सत्र न्यायालय'' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म. प्र. राजपत्र (असाधारण ) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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472. धारा 467 के अधीन दण्डनीय कूटरचना करने के आशय से कूटकृत मुद्रा आदि को बनाना या कब्जे में रखना -

जो कोई किसी मुद्रा, पट्टी या छाप लगाने के अन्य उपकरण को इस आशय से बनाएगा या उसकी कूटकृति तैयार करेगा कि उसे कोई ऐसी कूटरचना करने के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाए, जो इस संहिता की धारा 467 के अधीन दण्डनीय है, या इस आशय से, किसी ऐसी मुद्रा, पट्टी या अन्य उपकरण को, उसे कूटकृत जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 472 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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473. अन्यथा दण्डनीय कूटरचना करने के आशय से कूटकृत मुद्रा, आदि का बनाना या कब्जे में रखना -

जो कोई किसी मुद्रा, पट्टी या छाप लगाने के अन्य उपकरण को इस आशय से बनाएगा, या उसकी कूटकृति करेगा, कि उसे कोई ऐसी कूटरचना करने के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाए, जो धारा 467 से भिन्न इस अध्याय की किसी धारा के अधीन दण्डनीय है, या इस आशय से किसी ऐसी मुद्रा, पट्टी या अन्य उपकरण को, उसे कूटकृत जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 473 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय '' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित । ]

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474. धारा 466 या 467 में वर्णित दस्तावेज को, उसे कूटरचित जानते हुए और उसे असली के रूप में उपयोग में लाने का आशय रखते हुए, कब्जे में रखना -

जो कोई किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को, उसे कूटरचित जानते हुए और यह आशय रखते हुए कि वह कपटपूर्वक या बेईमानी से असली के रूप में उपयोग में लायी जाएगी, अपने कब्जे में रखेगा, यदि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख इस संहिता की धारा 466 में वर्णित भांति का हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, तथा यदि वह दस्तावेज धारा 467 में वर्णित भांति की हो तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 474 के अधीन अपराध “'सत्र न्यायालय"' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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475. धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अभिलक्षणा या चिन्ह की कूटकृति बनाना या कूटकृत चिन्हयुक्त पदार्थ को कब्जे में रखना -

जो कोई किसी पदार्थ के ऊपर, या उसके उपादान में, किसी ऐसी अभिलक्षणा या चिन्हों को, जिसे इस संहिता की धारा 467 में वर्णित किसी दस्तावेज के अधिप्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाता हो, कूटकृति यह आशय रखते हुए बनाएगा कि ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिन्ह को, ऐसे पदार्थ पर उस समय कूटरचित की जा रही हो या उसके पश्चात् कूटरचित की जाने वाली किसी दस्तावेज को अधिप्रमाणीकृत का आभास प्रदान करने के प्रयोजन से उपयोग में लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदार्थ अपने कब्जे में रखेगा, जिस पर या जिसके उपादान में ऐसी अभिलक्षणा को या ऐसे चिन्ह की कूटकृति बनाई गई हो, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 475 के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 117-158 पर प्रकाशित]

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476. धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों से भिन्न दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अभिलक्षणा या चिन्ह को कूटकृति बनाना या कूटकृत चिन्हयुक्त पदार्थ को कब्जे में रखना -

जो कोई किसी पदार्थ के ऊपर, या उसके उपादान में, किसी ऐसी अभिलक्षणा या चिन्ह की, जिसे इस संहिता की धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों से भिन्न किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख के अधिप्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाता हो, कूटकृति यह आशय रखते हुए बनाएगा कि वह ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिन्ह को, ऐसे पदार्थ पर उस समय कूटरचित की जा रही हो या उसके पश्चात कूटरचित की जाने वाली किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को अधिप्रमाणीकृत का आभास प्रदान करने के प्रयोजन से उपयोग में लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदार्थ अपने कब्जे में रखेगा जिस पर या जिसके उपादान में ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिन्ह की कूटकृति बनाई गई हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 476 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 14:7-158 पर प्रकाशित ।]

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477. विल, दत्तकग्रहण, प्राधिकार-पत्र या मूल्यवान प्रतिभूति को कपटपूर्वक रद्द, नष्ट, आदि करना -

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से, या लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान या क्षति कारित करने के आशय से, किसी ऐसी दस्तावेज को, जो विल या पुत्र के दत्तक ग्रहण करने का प्राधिकार-पत्र या कोई मूल्यवान प्रतिभूति हो, या होना तात्पर्यत हो, रद्द, नष्ट या विरूपित करेगा या रद्द, नष्ट या विरूपित करने का प्रयत्न करेगा, या छिपाएगा या छिपाने का प्रयत्न करेगा या ऐसी दस्तावेज के विषय में रिष्टि करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 477 के अधीन अपराध ''सत्र न्यायालय '' द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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477 क. लेखा का मिथ्याकरण -

जो कोई, लिपिक, ऑफिसर या सेवक होते हुए, या लिपिक, ऑफिसर या सेवक के नाते नियोजित होते हुए या कार्य करते हुए, किसी ऐसी पुस्तक, इलेक्ट्रानिक अभिलेख, कागज, लेख, मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा को, जो उसके नियोजक का हो या उसके नियोजक के कब्जे में हो, या जिसे उसके नियोजक के लिए या उसकी ओर से प्राप्त किया हो, जानबूझकर और कपट करने के आशय से नष्ट, परिवर्तित, विकृत या मिथ्याकृत करेगा अथवा किसी ऐसी पुस्तक, इलेक्ट्रानिक अभिलेख, कागज, लेख, मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा में जानबूझकर और कपट करने के आशय से कोई मिथ्या प्रविष्टि करेगा या करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, या उसमें से या उसमें किसी तात्विक विशिष्ट का लोप या परिवर्तन करेगा या करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के अधीन किसी आरोप में, किसी विशिष्ट व्यक्ति का, जिससे कपट करना आशयित था, नाम बताए बिना या किसी विशिष्ट धनराशि का जिसके विषय में कपट किया जाना आशयित था या किसी विशिष्ट दिन का, जिस दिन अपराध किया गया था, विनिर्देश किए बिना, कपट करने के साधारण आशय का अभिकथन पर्याप्त होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 477क के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2608 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित ।]

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सम्पत्ति चिन्हों और अन्य चिन्हों के विषय में

478. व्यापार चिन्ह -

व्यापार और पण्य चिन्ह अधिनियम, 1958 (1958 का 43) की धारा 135 और अनुसूची द्वारा (25 नवंबर, 1959 से) निरसित ।

479. सम्पत्ति चिन्ह -

वह चिन्ह जो यह द्योतन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है कि जंगम संपत्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति की है, संपत्ति चिन्ह कहा जाता है।

480. मिथ्या व्यापार चिन्ह का प्रयोग किया जाना -

व्यापार और पण्य चिन्ह अधिनियम, 1958 (1958 का 43) की धारा 135 और अनुसूची द्वारा (25 नवंबर, 1959 से) निरसित.

481. मिथ्या संपत्ति चिन्ह को उपयोग में लाना -

जो कोई किसी जंगम संपत्ति या माल को या किसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र को, जिसमें जंगम संपत्ति या माल रखा है, ऐसी रीति से चिह्नित करता है या किसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र को, जिस पर कोई चिन्ह है, ऐसी रीति से उपयोग में लाता है, जो इसलिए युक्तियुक्त रूप से प्रकल्पित है कि उसे यह विश्वास कारित हो जाए कि इस प्रकार चिह्नित संपत्ति या माल, या इस प्रकार चिह्नित किसी ऐसे पात्र में रखी हुई कोई संपत्ति या माल, ऐसे व्यक्ति का है, जिसका वह नहीं है, वह मिथ्या संपत्ति चिन्ह का उपयोग करता है, यह कहा जाता है।

482. मिथ्या संपत्ति चिन्ह का उपयोग करने के लिए दण्ड -

जो कोई किसी मिथ्या संपत्ति चिन्ह का उपयोग करेगा, जब तक कि यह साबित न कर दे कि उसने कपट करने के आशय के बिना कार्य किया है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

483. अन्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाए गए संपत्ति चिन्ह का कूटकरण -

जो कोई किसी सम्पत्ति चिन्ह का, जो किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाया जाता हो, कूटकरण करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

484. लोक-सेवक द्वारा उपयोग में लाए गए चिन्ह का कूटकरण -

जो कोई किसी संपत्ति चिन्ह का, जो लोक-सेवक द्वारा उपयोग में लाया जाता हो, या किसी ऐसे चिन्ह का, जो लोक-सेवक द्वारा यह द्योतन करने के लिए उपयोग में लाया जाता हो कि कोई संपत्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा या किसी विशिष्ट समय या स्थान पर विनिर्मित की गई है, या यह कि वह सम्पत्ति किसी विशिष्ट क्वालिटी की है या किसी विशिष्ट कार्यालय में से पारित हो चुकी है, या यह कि वह किसी छूट की हकदार है, कूटकरण करेगा, या किसी ऐसे चिन्ह को उसे कूटकृत जानते हुए असली के रूप में उपयोग में लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

485. संपत्ति चिन्ह के कूटकरण के लिए कोई उपकरण बनाना या उस पर कब्जा -

जो कोई संपत्ति चिन्ह के कूटकरण के प्रयोजन से कोई डाई, पट्टी या अन्य उपकरण बनाएगा या अपने कब्जे में रखेगा, अथवा यह द्योतन करने के प्रयोजन से कि कोई माल ऐसे व्यक्ति का है, जिसका वह नहीं है, किसी संपत्ति चिन्ह को अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

486. कूटकृत संपत्ति चिन्ह से चिन्हित माल का विक्रय -

जो कोई किसी माल या चीजों को स्वयं उन पर या किसी ऐसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र पर, जिसमें ऐसा माल रखा हो, कोई कूटकृत संपत्ति चिन्ह लगा हुआ या छपा हुआ होते हुए बेचेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा या अपने कब्जे में रखेगा जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि -

(क) इस धारा के विरुद्ध अपराध न करने को सब युक्तियुक्त पूर्वावधानी बरतते हुए, चिन्ह के असलीपन के संबंध में संदेह करने के लिए उसके पास कोई कारण अभिकथित अपराध करते समय नहीं था, तथा

(ख) अभियोजक द्वारा या उसकी ओर से मांग किए जाने पर, उसने उन व्यक्तियों के विषय में, जिससे उसने ऐसा माल या चीजें अभिप्राप्त की थी, वह सब जानकारी दे दी थी, जो उसकी शक्ति में थी, अथवा

(ग) अन्यथा उसने निर्देषितापूर्वक कार्य किया था, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

487. किसी ऐसे पात्र के ऊपर मिथ्या चिन्ह बनाना जिसमें माल रखा है -

जो कोई किसी पेटी, पैकेज या अन्य पात्र के ऊपर, जिसमें माल रखा हुआ हो, ऐसी रीति से कोई ऐसा मिथ्या चिन्ह बनाएगा, जो इसलिए युक्तियुक्त रूप से प्रकल्पित है कि उससे किसी लोक-सेवक को या अन्य किसी व्यक्ति को यह विश्वास कारित हो जाए कि ऐसे पात्र में ऐसा माल है, जो उसमें नहीं है, या यह कि उसमें ऐसा माल नहीं है जो उसमें है, या यह कि ऐसे पात्र में रखा हुआ माल ऐसी प्रकृति या क्वालिटी का है, जो उसकी वास्तविक प्रकृति या क्वालिटी से भिन्न है, जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि उसने वह कार्य कपट करने के आशय के बिना किया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

488. किसी ऐसे मिथ्या चिन्ह को उपयोग में लाने के लिए दण्ड -

जो कोई अंतिम पूर्वगामी धारा द्वारा प्रतिषिद्ध किसी प्रकार से किसी ऐसे मिथ्या चिन्ह का उपयोग करेगा, जब तक कि वह यह साबित न कर दे कि उसने वह कार्य कपट करने के आशय के बिना किया है, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने उस धारा के विरुद्ध अपराध किया हो।

489. क्षति कारित करने के आशय से संपत्ति चिन्ह को बिगाड़ना -

जो कोई किसी संपत्ति चिन्ह को, यह आशय रखते हुए, या यह संभाव्य जानते हुए कि वह तद्द्वारा किसी व्यक्ति को क्षति करे, किसी संपत्ति चिन्ह को अपसारित करेगा, नष्ट करेगा, विरूपित करेगा या उसमें कुछ जोड़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

करेन्सी नोटों और बैंक नोटों के विषय में

489 क. करेन्सी नोटों या बैंक नोटों का कूटकरण -

जो कोई किसी करेन्सी नोट या बैंक नोट का कूटकरण करेगा, या जानते हुए करेन्सी नोट या बैंक नोट के कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को संपादित करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा

स्पष्टीकरण - इस धारा के और धारा 489ख, 489ग, 489घ और 489ङ के प्रयोजनों के लिए, “बैंकनोट” पद से उसके वाहक की मांग पर धन देने के लिए ऐसा वचनपत्र या वचनबंध अभिप्रेत है, जो संसार के किसी भी भाग में बैंककारी करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा प्रचालित किया गया हो, या किसी राज्य या संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न शक्ति द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रचालित किया गया हो, और जो धन के समतुल्य या स्थानापन्न के रूप में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित हो।

489 ख. कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को असली के रूप में उपयोग में लाना -

जो कोई किसी कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोट या बैंक नोट को, यह जानते हुए, या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह कूटरचित या कूटकृत है, किसी अन्य व्यक्ति को बेचेगा या उससे खरीदेगा या प्राप्त करेगा या अन्यथा उसका दुर्व्यापार करेगा या असली के रुप में उसे उपयोग में लाएगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

489 ग. कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को कब्जे में रखना -

जो कोई किसी कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोट या बैंक नोट को यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह कूटरचित या कूटकृत है और यह आशय रखते हुए कि उसे असली के रूप में उपयोग में लाए या वह असली के रूप में उपयोग में लाई जा सके, अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

489 घ. करेंसी नोटों या बैंक नोटों की कूटरचना या कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री बनाना या कब्जे में रखना -

जो कोई किसी मशीनरी, उपकरण या सामग्री को किसी करेंसी नोट या बैंक नोट की कूटरचना या कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह किसी करेंसी नोट या बैंक नोट की कूटरचना या कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, बनाएगा या बनाने की प्रक्रिया के किसी भाग का संपादन करेगा या खरीदेगा, या बेचेगा, या व्ययनित करेगा, या अपने कब्जे में रखेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

489 ङ. करेन्सी नोटों या बैंक नोटों से सदृश रखने वाली दस्तावेजों की रचना या उपयोग -

(1) जो कोई किसी दस्तावेज को, जो करेंसी नोट या बैंक नोट होना तात्पर्यत हो या करेंसी नोट या बैंक नोट के किसी भी प्रकार सदृश हो या इतने निकटतः सदृश हो कि प्रवंचना हो जाना प्रकल्पित हो, रचेगा या रचवाएगा या किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाएगा या किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा, वह जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

(2) यदि कोई व्यक्ति जिसका नाम ऐसी दस्तावेज पर हो जिसकी रचना उपधारा (1) के अधीन अपराध है, किसी पुलिस ऑफिसर को या उस व्यक्ति का नाम और पता जिसके द्वारा वह मुद्रित की गई थी या अन्यथा रची गई थी, बताने के लिए अपेक्षित किए जाने पर उसे विधिपूर्ण प्रति हेतु के बिना बताने से इंकार करेगा, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

(3) जहां कि किसी ऐसी दस्तावेज पर जिसके बारे में किसी व्यक्ति पर उपधारा (1) के अधीन अपराध का आरोप लगाया गया हो, या किसी अन्य दस्तावेज पर, जो उस दस्तावेज के संबंध में उपयोग में लाई गई हो, या वितरित की गई हो, किसी व्यक्ति का नाम हो, वहां जब तक तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जा सकेगी कि उसी व्यक्ति ने वह दस्तावेज़ रचवाई है |

अध्याय 19 : सेवा संविदाओं के आपराधिक भंग के विषय में

490. समुद्र यात्रा या यात्रा के दौरान सेवा भंग -

कर्मकार संविदा भंग (निरसन) अधिनियम, 1925 (1925 का 3) की धारा 2 और अनुसूची द्वारा निरसित |

491. असहाय व्यक्ति की परिचर्या करने की और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने की संविदा का भंग -

जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति की, जो किशोरावस्था या चित्तविकृति या रोग या शारीरिक दुर्बलता के कारण असहाय है, या अपने निजी क्षेम की व्यवस्था या अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए असमर्थ है, परिचर्या करने के लिए या उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधिपूर्ण संविदा द्वारा आबद्ध होते हुए, स्वेच्छया ऐसा करने का लोप करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

492. दूर वाले स्थान पर सेवा करने का संविदा भंग जहां सेवक को मालिक के खर्चे पर ले जाया जाता है -

कर्मकार संविदा भंग (निरसन) अधिनियम, 1925 (1925 का 3) की धारा 2 और अनुसूची द्वारा निरसित ।

अध्याय 20 : विवाह संबंधी अपराधों के विषय में

493. विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास -

हर पुरुष, जो किसी स्त्री को, जो विधिपूर्वक उससे विवाहित न हो, प्रवंचना से यह विश्वास कारित करेगा कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस स्त्री का अपने साथ सहवास या मैथुन कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

494, पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना -

जो कोई पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी दशा में विवाह करेगा जिसमें ऐसा विवाह इस कारण शून्य है कि वह ऐसी पति या पत्नी के जीवनकाल में होता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

अपवाद - इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं है, जिसका ऐसे पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम अधिकारिता के न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया हो,

और न किसी ऐसे व्यक्ति पर है, जो पूर्व पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह कर लेता है, यदि ऐसा पति या पत्नी उस पश्चातवर्ती पश्चात्वर्ती विवाह के समय ऐसे व्यक्ति से सात वर्ष तक निरंतर अनुपस्थित रहा हो, और उस काल के भीतर ऐसे व्यक्ति ने यह नहीं सुना हो कि वह जीवित है, परन्तु यह तब जबकि ऐसा पश्चात्वर्ती विवाह करने वाला व्यक्ति उस विवाह के होने से पूर्व उस व्यक्ति को, जिसके साथ ऐसा विवाह होता है, तथ्यों की वास्तविक स्थिति की जानकारी, जहां तक कि उनका ज्ञान उसको हो, दे दे।

495. वही अपराध पूर्ववर्ती विवाह को उस व्यक्ति को छिपाकर जिसके साथ पश्चात्वर्ती विवाह किया जाता है -

जो कोई पूर्ववर्ती अंतिम धारा में परिभाषित अपराध अपने पूर्व विवाह की बात उस व्यक्ति से छिपाकर करेगा, जिससे पश्चात्वर्ती विवाह किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

496. विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्वक विवाह कर्म पूरा कर लेना -

जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्ण आशय से विवाहित होने का कर्म यह जानते हुए पूरा करेगा कि तद्द्वारा वह विधिपूर्वक विवाहित नहीं हुआ है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

497. जारकर्म -

जो कोई ऐसे व्यक्ति के साथ, जो कि किसी अन्य पुरुष की पत्नी है, और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है, उस पुरुष की सम्मति या मौनानुकूलता के बिना ऐसा मैथुन करेगा जो बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता, वह जारकर्म के अपराध का दोषी होगा, और दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी।

498. विवाहिता स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाना, या ले जाना या निरुद्ध रखना -

जो कोई किसी स्त्री को, जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है, और जिसका अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है, या विश्वास करने का कारण रखता है, उस पुरुष के पास से, या किसी ऐसे व्यक्ति के पास से, जो उस पुरुष की ओर से उसकी देख-रेख करता है, इस आशय से ले जाएगा, या फुसलाकर ले जाएगा कि वह किसी व्यक्ति के साथ अयुक्त संभोग करे या इस आशय से ऐसी किसी स्त्री को छिपाएगा या निरुद्ध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों में से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 20 क : पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में 

498 क. किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना -

जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिए, “क्रूरता" से निम्नलिखित अभिप्रेत है:-

(क) जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने की संभावना है; या

(ख) किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उसको या उसके किसी नातेदार को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरी करने के लिए प्रपीड़ित किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई नातेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है।

499. मानहानि -

जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है। कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, एतस्मिन् पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।

स्पष्टीकरण 1 - किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को उपहत करने के लिए आशयित हो।

स्पष्टीकरण 2 - किसी कंपनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के संबंध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा।

स्पष्टीकरण 3 - अनुकल्प के रूप में, या व्यंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा।

स्पष्टीकरण 4 - कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप को हेय न करे या उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके शील को हेय न करे या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विश्वास न कराए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्ट समझी जाती है। 

दृष्टांत -

(क) क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी अवश्य चुराई है, कहता है, “य एक ईमानदार व्यक्ति हैं, उसने ख की घड़ी कभी नहीं चुराई है, जब तक कि यह अपवादों में से किसी अंतर्गत न आता हो, यह मानहानि है।

(ख ) क से पूछा जाता है कि ख की घड़ी किसने चुराई है। क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी चुराई है, य की ओर संकेत करता है। जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो, यह मानहानि है।

(ग) क यह विश्वास कराने के आशय से कि य ने ख की घड़ी चुराई है, य का एक चित्र खींचता है जिसमें वह ख की घड़ी लेकर भाग रहा है। जब तक कि यह अपवादों में से किसी के अन्तर्गत न आता हो, यह मानहानि है।

पहला अपवाद - सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है - किसी ऐसी बात को लांछन लगाना, जो किसी व्यक्ति के संबंध में सत्य हो, मानहानि नहीं है, यदि यह लोक कल्याण के लिए हो कि वह लांछन लगाया जाए या प्रकाशित किया जाए। वह लोक कल्याण के लिए है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न है।

दूसरा अपवाद - लोक-सेवकों का लोकाचरण - उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में लोक-सेवक के आचरण के विषय में या उसके शील के विषय में, जहां तक उसका शील उस आचरण से प्रकट होता है, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।

तीसरा अपवाद - किसी लोक प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ति का आचरण - किसी लोक प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में, और उसके शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।

दृष्टांत  -

किसी लोक प्रश्न पर सरकार को अर्जी देने में, किसी लोक प्रश्न के लिए सभा बुलाने के अपेक्षण पर हस्ताक्षर करने में, ऐसी सभा का सभापतित्व करने में या उसमें हाजिर होने में, किसी ऐसी समिति का गठन करने में या उसमें सम्मिलित होने में, जो लोक समर्थन आमंत्रित करती है, किसी ऐसे पद के किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मत देने में या उसके पक्ष में प्रचार करने में, जिसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन से लोक हितबद्ध है, य के आचरण के विषय में क द्वारा कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।

चौथा अपवाद - न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोर्टों का प्रकाशन - किसी न्यायालय की कार्यवाहियों की या किन्हीं ऐसी कार्यवाहियों के परिणाम की सारतः सही रिपोर्ट को प्रकाशित करना मानहानि नहीं है।

स्पष्टीकरण - कोई जस्टिस ऑफ दि पीस या अन्य ऑफिसर, जो किसी न्यायालय में विचारण से पूर्व की प्रारंभिक जांच खुले न्यायालय में कर रहा हो, उपरोक्त धारा के अर्थ के अन्तर्गत न्यायालय है। 

पाँचवाँ अपवाद - न्यायालय में विनिश्चित मामले के गुणागुण या साक्षियों तथा संपृक्त अन्य व्यक्तियों का आचरण - किसी ऐसे मामले के गुणागुण के विषय में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, जो किसी न्यायालय द्वारा विनिश्चित हो चुका हो, या किसी ऐसे मामले के पक्षकार, साक्षी या अभिकर्ता के रूप में किसी व्यक्ति के आचरण के विषय में या ऐसे व्यक्ति के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील उस आचरण से प्रकट होता हो, न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।

दृष्टांत -

(क) क कहता है “मैं समझता हूं कि उस विचारण में य का साक्ष्य ऐसा परस्पर विरोधी है कि वह अवश्य ही मूर्ख या बेईमान होना चाहिए। यदि क ऐसा सद्भावपूर्वक कहता है तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, क्योंकि जो राय वह य के शील के संबंध में अभिव्यक्त करता है, वह ऐसी है जैसी कि साक्षी के रूप में य के आचरण से, न कि उसके आगे प्रकट होती है।

(ख) किन्तु यदि क कहता है जो कुछ य ने उस विचारण में दृढ़तापूर्वक कहा है, मैं उस पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि मैं जानता हूं कि वह सत्यवादिता से रहित व्यक्ति है तो क इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता है, क्योंकि वह राय जो वह य के शील के संबंध में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है, जो साक्षी के रूप में ये के आचरण पर आधारित नहीं है। 

छठा अपवाद - लोक कृति के गुणागुण - किसी ऐसी कृति के गुणागुण के विषय में, जिसको उसके कर्ता ने लोक के निर्णय के लिए रखा हो, या उसके कर्ता के शील के विषय में, जहां तक कि उसका शील ऐसी कृति में प्रकट होता हो, न कि उसके आगे, कोई राय सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।

स्पष्टीकरण - कोई कृति लोक के निर्णय के लिए अभिव्यक्त रूप से या कर्ता की ओर से किए गए ऐसे कार्यों द्वारा, जिनसे लोक के निर्णय के लिए ऐसा रखा जाना विवक्षित हो, रखी जा सकती है।

दृष्टांत - 

(क) जो व्यक्ति पुस्तक प्रकाशित करता है, वह उस पुस्तक को लोक के निर्णय के लिए रखता है। 

(ख) वह व्यक्ति जो लोक के समक्ष भाषण देता है, उस भाषण को लोक के निर्णय के लिए रखता है। 

(ग) वह अभिनेता या गायक, जो किसी लोकरंगमंच पर आता है, अपने अभिनय या गायन को लोक के निर्णय के लिए रखता है।

(घ) क, य द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के संबंध में कहता है य की पुस्तक मुर्खतापूर्ण है, य अवश्य कोई दुर्बल पुरुष होना चाहिए। य की पुस्तक अशिष्टतापर्ण है, य अवश्य ही अपवित्र विचारों का व्यक्ति होना चाहिए। यदि क ऐसा सद्भावपूर्वक कहता है, तो वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है क्योंकि वह राय जो वह, य के विषय में अभिव्यक्त करता है, य के शील से वहीं तक, न कि उससे आगे, संबंध रखती है जहां तक कि य का शील उसकी पुस्तक से प्रकट होता है। 

(ङ) किन्तु यदि क कहता है मुझे इस बात का आश्चर्य नहीं है कि य की पुस्तक मूर्खतापूर्ण तथा अशिष्टतापूर्ण है। क्योंकि वह एक दुर्बल और लम्पट व्यक्ति है। क इस अपवाद के अन्तर्गत नहीं आता क्योंकि वह राय, जो कि वह य के शील के विषय में अभिव्यक्त करता है, ऐसी राय है जो य की पुस्तक पर आधारित नहीं है। 

सातवाँ अपवाद - किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर विधिपूर्ण प्राधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक की गई परिनिन्दा - किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर कोई ऐसा प्राधिकार रखता हो, जो या तो विधि द्वारा प्रदत्त हो या उस अन्य व्यक्ति के साथ की गई किसी विधिपूर्ण संविदा से उद्धृत हो, ऐसे विषयों में, जिनसे कि ऐसा विधिपूर्ण प्राधिकार संबंधित हो, उस अन्य व्यक्ति के आचरण की सद्भावपूर्वक की गई कोई परिनिन्दा मानहानि नहीं है।

दृष्टांत -

किसी साक्षी के आचरण की या न्यायालय के किसी ऑफिसर के आचरण की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई न्यायाधीश, उन व्यक्तियों को, जो उसके आदेशों के अधीन हैं, सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई विभागाध्यक्ष, अन्य शिशुओं की उपस्थिति में किसी शिशु की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला पिता या माता, अन्य विद्यार्थियों की उपस्थिति में किसी विद्यार्थी की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला शिक्षक, जिसे विद्यार्थी के माता-पिता से प्राधिकार प्राप्त है, सेवा में शिथिलता के लिए सेवक की सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला स्वामी, अपने बैंक के रोकड़िए के रूप में ऐसे रोकड़िए के आचरण के लिए सद्भावपूर्वक परिनिन्दा करने वाला कोई बैंकर इस अपवाद के अन्तर्गत आते हैं।

आठवाँ अपवाद - प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष सद्भावपूर्वक अभियोग लगाना - किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अभियोग ऐसे व्यक्तियों में से किसी व्यक्ति के समक्ष सद्भावपूर्वक लगाना, जो उस व्यक्ति के ऊपर अभियोग की विषय वस्तु के संबंध में विधिपूर्ण प्राधिकार रखते हों, मानहानि नहीं है।

दृष्टांत -

यदि क एक मजिस्ट्रेट के समक्ष य पर सद्भावपूर्वक अभियोग लगाता है, यदि क एक सेवक य के आचरण के संबंध में य के मालिक से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है, यदि क एक शिशु य के संबंध में य के पिता से सद्भावपूर्वक शिकायत करता है; तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है। 

नौवाँ अपवाद - अपने या अन्य के हितों की संरक्षा के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक लगाया गया लांछन - किसी अन्य के शील पर लांछन लगाना मानहानि नहीं है परन्तु यह तब जब कि उसे लगाने वाले व्यक्ति के या किसी अन्य व्यक्ति के हित की संरक्षा के लिए, या लोक कल्याण के लिए, वह लांछन सद्भावपूर्वक लगाया गया हो।

दृष्टांत -

(क) क एक दुकानदार है। वह ख से, जो उसके कारबार का प्रबंध करता है, कहता है, य को कुछ मत बेचना जब तक कि वह तुम्हें नकद धन न दे दे, क्योंकि उसकी ईमानदारी के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है। यदि उसने य पर यह लांछन अपने हितों की संरक्षा के लिए सद्भावपूर्वक लगाया है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।

(ख) क, एक मजिस्ट्रेट अपने वरिष्ठ ऑफिसर को रिपोर्ट देते हुए, य के शील पर लांछन लगाता है। वहां, यदि वह लांछन सद्भावपूर्वक और लोक कल्याण के लिए लगाया गया है, तो क इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।

दसवाँ अपवाद - सावधानी, जो उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे कि वह दी गई है या लोक कल्याण के लिए आशयित है - एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध सद्भावपूर्वक सावधान करना मानहानि नहीं है, परन्तु यह तब जब कि ऐसी सावधानी उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे वह दी गई हो, या किसी ऐसे व्यक्ति की भलाई के लिए, जिससे वह व्यक्ति हितबद्ध हो, या लोक कल्याण के लिए आशयित हो।

500, मानहानि के लिए दण्ड -

जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

501. मानहानिकारक जानी हुई बात को मुद्रित या उत्कीर्ण करना -

जो कोई किसी बात को यह जानते हुए, या विश्वास करने का अच्छा कारण रखते हुए कि ऐसी बात किसी व्यक्ति के लिए मानहानिकारक है, मुद्रित करेगा, या उत्कीर्ण करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

502. मानहानिकारक विषय रखने वाले मुद्रित या उत्कीर्ण पदार्थ का बेचना -

जो कोई किसी मुद्रित या उत्कीर्ण पदार्थ को, जिसमें मानहानिकारक विषय अंतर्विष्ट है, यह जानते हुए कि उसमें ऐसा विषय अंतर्विष्ट है, बेचेगा, या बेचने की प्रस्थापना करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 22 : आपराधिक अभित्रास, अपमान और क्षोभ के विषय में

503. आपराधिक अभित्रास -

जो कोई किसी अन्य व्यक्ति के शरीर, ख्याति या सम्पत्ति को, या किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिससे कि वह व्यक्ति हितबद्ध हो कोई क्षति करने की धमकी उस अन्य व्यक्ति को इस आशय से देता है कि उसे संत्रास कारित किया जाए, या उससे ऐसे धमकी के निष्पादन का परिवर्जन करने के साधन स्वरूप कोई ऐसा कार्य कराया जाए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो, या किसी ऐसे कार्य को करने का लोप कराया जाए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हो, वह आपराधिक अभित्रास करता है।

स्पष्टीकरण - किसी ऐसे मृत व्यक्ति की ख्याति को क्षति करने की धमकी जिससे वह व्यक्ति, जिसे धमकी दी गई है, हितबद्ध हो इस धारा के अन्तर्गत आता है।

दृष्टांत -

सिविल वाद चलाने से प्रतिविरत रहने के लिए ख को उत्प्रेरित करने के प्रयोजन से ख के घर को जलाने की धमकी क देता है। क आपराधिक अभित्रास का दोषी है।

504. लोकशांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से साशय अपमान -

जो कोई किसी व्यक्ति को साशय अपमानित करेगा और तद्द्वारा उस व्यक्ति को इस आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए, प्रकोपित करेगा कि ऐसे प्रकोपन से वह लोक शान्ति भंग या कोई अन्य अपराध कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा |

505. लोक रिष्टिकारक वक्तव्य -

(1) जो कोई किसी कथन, जनश्रुति या रिपोर्ट की -

(क) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, भारत की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई आफिसर, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक विद्रोह करे या अन्यथा वह अपने उस नाते, अपने कर्तव्य की अवहेलना करे या उसके पालन में असफल रहे, अथवा

(ख) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, लोक या लोक के किसी भाग को ऐसा भय या संत्रास कारित हो जिससे कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध या लोक-प्रशान्ति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो, अथवा

(ग) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, उससे व्यक्तियों का कोई वर्ग या समुदाय किसी दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए उद्दीप्त किया जाए, रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा |

(2) विभिन्‍न वर्गों में शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा या सम्प्रवर्तित करने वाले कथन -

जो कोई जनश्रुति या संत्रासकारी समाचार अन्तर्विष्ट करने वाले किसी कथन या रिपोर्ट को, इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, विभिन्‍न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश,  स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर पैदा या संप्रवर्तित हो, रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा |

(3) पूजा के स्थान आदि में किया गया उपधारा (2) के अधीन अपराध -

जो कोई उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा |

अपवाद - ऐसा कोई कथन, जनश्रुति या रिपोर्ट इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध की कोटि में नहीं आती,जब उसे रचने वाले, प्रकाशित करने वाले या परिचालित करने वाले व्यक्ति के पास इस विश्वास के लिए युक्तियुक्त आधार हो कि ऐसा कथन, जनश्रुति या रिपोर्ट सत्य है और वह उसे सद्भावपूर्वक तथा पूर्वोक्त जैसे किसी आशय के बिना रचता है, प्रकाशित करता है या परिचालित करता है |

506. आपराधिक अभित्रास के लिए दण्ड -

जो कोई आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।

यदि धमकी मृत्यु या घोर उपहति इत्यादि कारित करने की हो - तथा यदि धमकी मृत्यु या घोर उपहति कारित करने की, या अग्नि द्वारा किसी सम्पत्ति का नाश कारित करने की या मृत्यु दण्ड से या आजीवन कारावास से, या सात वर्ष की अवधि तक के कारावास से दण्डनीय अपराध कारित करने की, या किसी स्त्री के असतित्व पर लांछन लगाने की हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुमनि से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।

507. अनाम संसूचना द्वारा आपराधिक अभित्रास -

जो कोई अनाम संसूचना द्वारा या उस व्यक्ति का, जिसने धमकी दी हो, नाम या निवास स्थान छिपाने की पूर्वावधानी करके आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा, वह पूर्ववर्ती अन्तिम धारा द्वारा उस अपराध के लिये उपबन्धित दण्ड के अतिरिक्त, दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा।

508. व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा कराया गया कार्य -

जो कोई किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिये उत्प्रेरित करके या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करके, कि यदि वह उस बात को न करेगा, जिसे उससे कराना अपराधी का उद्देश्य हो, या यदि वह उस बात को करेगा, जिसका उससे लोप कराना अपराधी का उद्देश्य हो, तो वह या कोई व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, अपराधी के किसी कार्य से दैवी अप्रसाद का भाजन हो जाएगा या बना दिया जाएगा, स्वेच्छया उस व्यक्ति से कोई ऐसी बात करवायेगा या करवाने का प्रयत्न करेगा, जिसे करने के लिये वह वैध रूप से आबद्ध न हो या किसी ऐसी बात के करने का लोप करवायेगा या करवाने का प्रयत्न करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।

दृष्टान्त -

(क) क, यह विश्वास कराने के आशय से व के द्वार पर धरना देता हे कि इस प्रकार धरना देने से वह य को दैवी अप्रसाद का भाजन बना रहा है। क ने उस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क, य को धमकी देता है, कि यदि व अमुक कार्य नहीं करेगा, तो क अपने बच्चों में से किसी एक का वध ऐसी परिस्थितियों में कर डालेगा, जिससे ऐसे वध करने के परिणामस्वरूप यह विश्वास किया जाये, कि य दैवी अप्रसाद का भाजन बना दिया गया है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

509. शब्द, अंगविक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित है -

जो कोई किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहेगा, कोई ध्वनि या अंगविक्षेप करेगा, या कोई वस्तु प्रदर्शित करेगा, इस आशय से कि ऐसी स्त्री द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सुनी जाये या ऐसा अंगविक्षेप या वस्तु देखी जाये अथवा ऐसी स्त्री की एकान्तता का अतिक्रमण करेगा वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुमनि से, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।

510. मत्त व्यक्ति द्वारा लोक स्थान में अवचार -

जो कोई मत्तता की हालत में किसी लोक स्थान में, या किसी ऐसे स्थान में, जिसमें उसका प्रवेश करना अतिचार हो, आएगा और वहाँ इस प्रकार का आचरण करेगा जिससे किसी व्यक्ति को क्षोभ हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि चौबीस घण्टे तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।

अध्याय 23

अपराधों को करने के प्रयत्नों के विषय में

511. आजीवन कारावास या अन्य कारावास से दण्डनीय अपराधों को करने के प्रयत्न करने के लिए दण्ड -

जो कोई इस संहिता द्वारा आजीवन कारावास से या कारावास से दण्डनीय अपराध करने का, या ऐसा अपराध कारित किये जाने का प्रयत्न करेगा, और ऐसे प्रयत्न में अपराध करने की दिशा में कोई कार्य करेगा, जहाँ कि ऐसे प्रयत्न के दण्ड के लिये कोई अभिव्यक्त उपबन्ध इस संहिता द्वारा नहीं किया गया है, वहाँ वह उस अपराध के लिये उपबन्धित किसी भाँति के कारावास से उस अवधि के लिए, जो यथास्थिति, आजीवन कारावास से आधे तक की या उस अपराध के लिये उपबन्धित दीर्घतम अवधि के आधे तक की हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिये उपबन्धित है, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा।

दृष्टान्त 

(क) क, एक सन्दूक तोड़कर खोलता है और उसमें से कुछ आभूषण चुराने का प्रयत्न करता है। सन्दूक इस प्रकार खोलने के पश्चात् उसे ज्ञात होता है कि उसमें कोई आभूषण नहीं है। उसने चोरी करने की दिशा में कार्य किया है, और इसलिए, वह इस धारा के अधीन दोषी है।

(ख) क, य की जेब में हाथ डालकर य की जेब से चुराने का प्रयत्न करता है। य की जेब में कुछ न होने के परिणामस्वरूप क अपने प्रयत्न में असफल रहता है। क इस धारा के अधीन दोषी है। GO toTOP

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