No: 24 Dated: Apr, 27 1973

मध्यप्रदेश कृषि उपज मण्डी अधिनियम 1972

(अधिनियम क्रमांक 24 सन् 1973)

[दिनांक 18 अप्रैल 1973 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त हुई; अनुमति ''मध्यप्रदेश राजपत्र'' (असाधारण) में दिनांक 27 अप्रैल, 1973 को प्रथम बार प्रकाशित की गई ।]

[ Also Read - (संशोधन) कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 - 29/03/2023 ]

मध्यप्रदेश राज्य में कृषि - उपज के क्रय - विक्रय का अधिक अच्छा विनियमन करने के लिये तथा कृषि संबंधी मंडियों की स्थापना एवं उनके उचित प्रशासन के लिये उपबन्ध करने के हेतु अधिनियम ।

भारत गणराज्य के तेईसवें वर्ष में मध्यप्रदेश विधान मंडल द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो-

अध्याय 1

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम विस्तार तथा प्रारंभ -- (1) यह अधिनियम '' मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1972'' कहा जा सकेगा ।

(2) इसका विस्तार पूर्ण मध्यप्रदेश पर है ।

(3) यह ऐसी 1[तारीख] को प्रवृत्त होगा जिसे राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।

2. परिभाषाएँ -- (1) इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो-

(क) ''कृषि- उपज'' से अभिप्राय कृषि, उद्यान-कृषि, पशु- पालन, मधुमक्खी पालन, मख्स पालन या वन संबंधी समस्त उत्पादन से हैं, 2[........] जो कि अनुसूची में विनिर्दिष्टि है ।

3 [(ख) ''कृषक'' से अभिप्रेत है ऐसा व्यक्ति जिसकी जीविका का साधन पूर्णतः कृषि उपज पर

आधारित हो और जो अपने स्वयं के लिये-

(एक) अपने स्वय के श्रम द्वारा; या

(दो) अपने पति या अपनी पत्नी के श्रम द्वारा; या

(तीन) अपने व्यक्तिगत पर्यवेक्षण या अपने कुटुम्ब के किसी ऐसे सदस्य के, जो कि ऊपर उपखंड (दो) में विनिर्दिष्ट है व्यक्तिगत पर्यवेक्षण के अधीन भाड़े के श्रमिक द्वारा या ऐसी मजदूरी पर, जो कि नकद या वस्तु के रूप में देय हो किन्तु फसल के अंश के रूप में देय न हो, रखे गये नौकरों द्वारा, खेती करता हो,

किन्तु उसके अंतर्गत कृषि-उपज का कोई व्यापारी, आढ़तिया, प्रसंस्करणकर्ता (प्रोसेसर) दलाल, तुलैया या हम्माल नहीं आता है भले ही ऐसा व्यापारी, आढ़तिया, प्रसंस्करणकर्ता, दलाल, तुलैया या हम्माल कृषि-उपज के उत्पादन में भी लगा हुआ हो;]

(ग) ''बोर्ड'' से अभिप्रेत है इस अधिनियम के अधीन स्थापित किया गया मध्यप्रदेश राज्य कृषि

विपणन बोर्ड;

(घ) ''उपविधियों'' से अभिप्रेत है धारा 80 के अधीन बनायी गयी उपविधियाँ

1 [(घघ) ''कलेक्टर'' से अभिप्रेत है जिले का कलेक्टर और उसके अंतर्गत अपर कलेक्टर आता है;]

(ड) ''आढतिया'' से अभिप्रेत है ऐसा व्यक्ति जो अपने नियोक्ता 2[व्यापारी] की ओर से तथा प्रत्येक

संव्यवहार में अंतर्वलित रकम पर कमीशन या प्रतिशतता के प्रतिफल स्वरूप कृषि-उपज का क्रय

करता है तथा नगद भुगतान करता है, उसे अपनी अभिरक्षा में रखता है और सम्यकू अनुक्रम

में उसे नियोक्ता 2[व्यापारी] को परिदत्त करता है या 2 [जो मंडी क्षेत्र के भीतर से या मंडी क्षेत्र

के बाहर से,] विक्रय के लिये भेजी गयी कृषि-उपज को प्राप्त करता है तथा अपनी अभिरक्षा में

लेता है । मंडी क्षेत्र में उसे बेचता है तथा क्रेता से उसके लिये -भुगतानों का संग्रहण करता है

और अपने नियोक्ता 1[व्यापारी] को विक्रय आगम भेजता है;

3 [(डड;) ''संविदा खेती'' से अभिप्रेत है किसी व्यक्ति द्वारा अपनी भूमि पर अन्य व्यक्ति के साथ कृषि- उपज की खेती इस प्रभाव के लिखित करार के अधीन करना कि उसकी कृषि-उपज करार में विनिर्दिष्ट दर पर क्रय की जाएगी;]

(ङ ङ ङ) विलुप्‍त

(ङ ङ ङ ङ) ''संविदा खेती करार '' से अभिप्रेत है, संविदा खेती हेतु संविदा खेती क्रेता एवं संविदा खेती उत्पादक के मध्य हुआ करार;

(ङ ङ ङ ङ ङ) ''संविदा खेती उत्पादक '' से अभिप्रेत है, ऐसा व्यक्ति जो अपनी भूमि पर किसी संविदा खेती के लिए लिखित करार के अधीन कृषि उपज उत्पादित करता है;

(ङ ङ ङ ङ ङ ङ) ''संविदा खेती क्रेता '' से अभिप्रेत है, ऐसा व्यक्ति, कम्पनी या भागीदारी फर्म जो संविदा खेती के किसी लिखित करार के अधीन कृषि उपज को संविदा खेती उत्पादक से क्रय करता है ।]

1 [(च) ''प्रबन्ध संचालक'' से अभिप्रेत है इस अधिनियम के अधीन नियुक्त मध्यप्रदेश राज्य कृषि

विपणन बोर्ड का प्रबंध संचालक और वह आयुक्त, मंडी मध्यप्रदेश भी होगा;]

(छ) ''मण्डी'' से अभिप्रेत है धारा 4 के अधीन स्थापित की गयी मंडी;

(ज) ''मंडी- क्षेत्र'' से अभिप्रेत है वह क्षेत्र जिसके लिये धारा 4 के अधीन मंडी स्थापित की गयी हो;

(झ) ''मंडी समिति'' से अभिप्रेत है धारा 11 के अधीन गठित की गयी समिति;

(ञ) ''मंडी कृत्यकारी'' के अंतर्गत आता है दलाल, आढ़तिया, निर्यातक, ओटने वाला आयातक, दबाने वाला (प्रेसर) प्रसंस्करणकर्ता स्टाकिस्ट व्यापारी, तुलैया, भाण्डागारिक, हम्माल, सर्वेक्षक तथा ऐसा अन्य व्यक्ति जिसे नियमों या उपविधियों के अधीन मंडी कृत्यकारी के रूप में घोषित किया जाये;

(ट) ''मूल'' मंडी से किसी मंडी-प्रांगण के संबंध में, अभिप्रेत है कोई ऐसा क्षेत्र जो धारा 5 की उपधारा (2) के खड (ख) के अधीन मूल मंडी (मार्केट प्रापर) घोषित किया गया हो;

1 [(ठ) ''मंडी-प्रांगण या उपमंडी- प्रांगण'' से किसी मंडी क्षेत्र के सबध में अभिप्रेत है कोई ऐसा विनिर्दिष्ट स्थान जिसे धारा 5 की उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन मंडी प्रांगण या उपमंडी प्रांगण घोषित किया गया हो;]

2 [स्पष्टीकरण-- अभिव्यक्ति ''उपमंडी प्रांगण'' के अन्तर्गत हाट बाजार आते है;]

1 [(ड) ''अधिसूचित कृषि उपज '' से किसी मंडी के संबंध में अभिप्रेत है समस्त ऐसी उपज जो अनुसची में विनिर्दिष्ट हो;]

3 [(ड-1) ''अन्य पिछड़ा वर्ग '' से अभिप्रेत है राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर यथासंशोधित अधिसूचना क्रमांक एफ-85-पच्चीस-4-84, दिनांक 26 दिसंबर, 1984 में यथाविनिर्दिष्ट नागरिकों का अन्य पिछड़ा वर्ग;]

(डड) ''छोटा व्यापारी'' से अभिप्रेत है कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी एक समय पर स्टॉक में विभिन्न प्रकार की अधिसूचित कृषि-ऊपज दस क्विंटल से या कोई एक अधिसूचित कृषि उपज चार क्विंटल से अधिक न रखता हो :

परन्तु वह किसी भी एक दिन में चार क्विंटल धान्य से या दो क्विंटल तिलहनों, दालों तथा तन्तु हट फसलों से अधिक का क्रय नहीं करेगा;]

1 [(डडड) ''प्रसंस्करण'' से अभिप्रेत है चूर्ण करना पेरना, छिलका उतारना, भूसी निकालना, अर्धोष्ण

करना, पॉलिश करना, ओटना, दबाना, सुखाना या कोई अन्य अभिक्रिया जो किसी कृषि

उपज या उसके उत्पादन पर उसके अंतिम उपभोग के जाती है;]

2 [(डडडड) ''प्रसंस्करणकर्ता '' से अभिप्रेत है कोई ऐसा व्यक्ति जो कृषि उपज का प्रसंस्करण शारीरिक

श्रम से या यांत्रिक साधनों द्वारा करता हो;]

3 [(डडडडड) ''अनुसूचित जाति'' और ''अनुसूचित जनजाति '' का वही अर्थ होगा जो उन्हें भारत के

संविधान के अनुच्छेद 366 के क्रमश: खंड (24) और (25) में दिया गया है]

4 [(ढ) [***]

(ण) ''सचिव'' से अभिप्रेत है किसी मंडी समिति का सचिव;

1 [(त) ''व्यापारी'' से अभिप्रेत है कोई ऐसा व्यक्ति जो अपने कारबार के प्रसामान्य अनुक्रम में किसी अधिसूचित कृषि-उपज का क्रय या विक्रय करता है और उसके अंतर्गत ऐसा व्यक्ति है जो कृषि उपज के प्रसंस्करण में लगा हो किन्तु उसके अंतर्गत इस उपधारा के खंड (ख) में यथा परिभाषित कृषक नहीं है ।]

(2) यदि प्रश्न उदभूत हो कि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रयोजन के लिये कृषक है या नहीं, तो उस जिले के कलेक्टर का विनिश्चय अंतिम होगा जिसमे कि ऐसा व्यक्ति कृषि उपज की पैदावार या वृद्धि में लगा हो ।

अध्याय 2

मंडियों की स्थापना

3 विनिर्दिष्ट क्षेत्र में अधिसूचित कृषि उपज के विपणन का विनियमन करने के आशय की अधिसूचना -- (1) किसी ऐसे क्षेत्र में के, जिसके लिये मंडी का स्थापित किया जाना प्रस्तावित हो, स्थानीय प्राधिकारी द्वारा या किसी कृषि उपज पैदावार करने वालों द्वारा किये गये अभ्यावेदन पर या अन्यथा, राज्य शासन, अधिसूचना द्वारा तथा ऐसी अन्य रीति में जो कि विहित की जाए, 1[कृषि उपज के क्रय-विक्रय का ऐसे क्षेत्र में विनियमन करने के लिये] जो कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाये, मंडी स्थापित करने के अपने आशय की घोषणा कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना में यह कथित होगा कि किसी भी ऐसी आपत्ति या सुझाव पर राज्य शासन द्वारा विचार किया जायेगा जो कि राज्य शासन को, अधिसूचना विनिर्दिष्ट की जाने वाली कालावधि के, जो एक मास से कम न हो भीतर प्राप्त हो ।

4. मण्डी की स्थापना तथा उसमें अधिसूचित कृषि उपज के विपणन का विनियमन -- धारा 3 के अधीन जारी की गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की गई कालावधि का अवसान होने के पश्चात् और ऐसी आपत्तियों तथा सुझावों पर, जो ऐसे अवसान के पूर्व प्राप्त हुए हों, विचार करने के पश्चात् तथा ऐसी जाँच, यदि कोई हो, जो आवश्यक हो, करने के पश्चात् राज्य शासन, अन्य अधिसूचना द्वारा, धारा 3 के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए गए क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए 2[अनुसूची में विनिर्दिष्ट की गई कृषि उपज के संबंध में] मंडी स्थापित कर सकेगी 3[और इस प्रकार स्थापित की गई मंडी ऐसे नाम से जानी जायेगी, जो कि उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए ।]

5. मंडी प्रांगण तथा मूल मंडी -- (1) (क) प्रत्येक मंडी क्षेत्र में -

(एक) एक मंडी प्रांगण होगा; और

(दो) 1[एक से अधिक उपमंडी प्रांगण हो सकेंगे;]

(ख) 2[(प्रत्येक मंडी प्रांगण या उप मंडी प्रांगण] के लिये एक मूल मंडी होगी ।

(2) राज्य शासन धारा 4 के अधीन अधिसूचना जारी होने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र अधिसूचना द्वारा-

3 [(क) किसी विनिर्दिष्ट स्थान को, जिसके अंतर्गत मंडी क्षेत्र में की कोई संरचना, अहाता, खुला स्थान

या परिक्षेत्र आता है, यथास्थिति मंडी प्रांगण या उप मंडी प्रांगण घोषित करेगी;] और

(ख) 4[यथास्थिति, ऐसे मंडी प्रांगण या उपमंडी प्रांगण] के सबंध में, मंडी क्षेत्र में के किसी विनिर्दिष्ट

क्षेत्र को मूल मंडी घोषित करेगी ।

6. अधिसूचित कृषि - उपज के विपणन का नियंत्रण -- धारा 4 के अधीन किसी मंडी की स्थापना होने पर-

(क) कोई भी स्थानीय प्राधिकारी, तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिति में अंतर्विष्ट किसी बात को होते हुए भी मंडी क्षेत्र में के किसी स्थान का किसी अधिसूचित किसी कृषि उपज के विपणन के लिये न तो निर्माण करेगा न उसकी स्थापना करेगा, न उसको चालू रखेगा और न उसको उपयोग में लाएगा या न उसका निर्माण किये जाने, न उसकी स्थापना की जाने, न उसको चालू रखे जाने और न उसको उपयोग में लाये जाने की अनुज्ञा ही देगा ;

(ख) कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों तथा उपविधियो के

उपबंधों के अनुसार के सिवाय-

(एक) मंडी क्षेत्र में के किसी स्थान को अधिसूचित कृषि उपज के विपणन के लिये उपयोग

में नहीं लायेगा; या

(दो) मंडी क्षेत्र में मंडी कृत्यकारी के रूप में कार्य नहीं करेगा :

(क) ऐसी कृषि-उपज के विक्रय या क्रय को-

1 [(एक) जिसका कि उत्पादक स्वयं उसका विक्रेता हो और ऐसा विक्रय किसी ऐसे व्यक्ति को, जो कि उसे अपने स्वयं के घरेलु उपभोग के लिये खरीदता हो, एक बार में चार क्विंटल से अनधिक परिमाण में किया जाता हो;

(दो) जो सिर पर रखकर लाई गई हो;]

1 [(तीन) जिसका क्रय या विक्रय किसी छोटे व्यापारी 2[***] द्वारा किया जाता हो;]

3 [(चार) 1997 के अधि. सं. 27 द्वारा लोप किया]

4 [(पांच) जिसका क्रय किसी प्राधिकृत उचित मूल्य की दुकान के दुकानदार द्वारा भारतीय

खाद्य निगम से, मध्यप्रदेश राज्य वस्तु व्यापार निगम से या किसी अन्य ऐसे

अभिकरण या संस्था से किया जाता हो जिसे राज्य सरकार द्वारा लोक वितरण

पद्धति से आवश्यक वस्तुओ का वितरण करने के लिये प्राधिकृत किया गया हो ।]

लागू नहीं होगी ।

(ख) किसी सहकारी सोसाइटी से कोई अग्रिम प्राप्त करने के प्रयोजन के लिये ऐसी कृषि-उपज के उसे किये गये अन्तरण को लागू नहीं होगी :

परन्तु यह और भी कि राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, उसमें विनिर्दिष्ट किये जाने वाले कारणों से, ऐसे मंडी क्षेत्र के संबंध में, जो कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, उस छूट को प्रत्याहृत कर सकेगी जो कि पूर्ववर्ती परन्तुक के खंड (क) के उपखंड (दो) के अधीन दी गयी हो ।

अध्याय 3

मंडी समितियों का गठन

7. मंडी समिति की स्थापना तथा उसका निगमन -- (1) प्रत्येक मंडी क्षेत्र के लिये एक मंडी समिति होगी जिसकी अधिकारिता सम्पूर्ण मंडी क्षेत्र पर होगी ।

(2) 1[प्रत्येक मंडी समिति उस नाम से, जो कि ऐसी मंडी के लिये धारा 4 के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया गया हो, एक निगमित निकाय होगी] 1 उसका शाश्वत उत्तराधिकार होगा तथा उसकी एक सामान्य मुद्रा होगी और वह अपने निगमित नाम से वाद चला सकेगी तथा उक्त नाम से उसके विरुद्ध वाद चलाया जा सकेगा और ऐसे निर्बन्धनों के, जो कि इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन अधिरोपित किये जायें, अध्यधीन रहते हुए, वह संविदा करने के लिये तथा किसी भी सम्पत्ति को अर्जित करने, धारण करे, पट्टे पर देने, बेचने या अन्यथा अंतरित करने के लिये और इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये आवश्यक समस्त अन्य बातें करने के लिये सक्षम होगी :

1 [परन्तु कोई भी स्थावर सम्पत्ति प्रबंध संचालक की पूर्व लिखित अनुज्ञा के बिना अर्जित नहीं की जायेगी :

परन्तु यह और कि कोई भी स्थावर संपत्ति राज्य सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिए बनाए गए नियमों में विहित रीति से भिन्न रीति में विक्रय के द्वारा, पट्टे के द्वारा या अन्यथा अन्तरित नहीं की जाएगी ।]

(3) तत्समय प्रवृत्त किसी भी अधिनियमिति में अन्तर्विष्ट किसी भी बात के होते हुए भी, प्रत्येक मंडी समिति समस्त प्रयोजनों के लिये स्थानीय प्राधिकारी समझी जायेगी ।

8. स्थानीय प्राधिकारी की सम्पत्ति का मंडी समिति में निहित होना -- (1) मंडी समिति किसी स्थानीय प्राधिकारी से यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह उसे अपनी कोई ऐसी भूमि या भवन, जो मंडी प्रांगण के भीतर स्थित हो और जो मंडी की स्थापना के अव्यवहित पूर्व स्थानीय प्राधिकारी द्वारा मंडी के प्रयोजनों के लिये उपयोग में लाया जाता था, अंतरित कर दे और स्थानीय प्राधिकारी, अध्यपेक्षा प्राप्त होने के एक मास के भीतर यथास्थिति भूमि या भवन को, ऐसे निबंधनों पर, जिनका कि उनके बीच करार हो जाए, मंडी समिति को अन्तरित कर देगा ।

(2) जहाँ स्थानीय प्राधिकारी को उपधारा (1) के अधीन अध्यापेक्षा प्राप्त होने की तारीख से तीस दिन की कालावधि के भीतर स्थानीय प्राधिकारी तथा मंडी समिति के बीच उक्त उपधारा के अधीन कोई करार न हो पाये, वहाँ मंडी समिति द्वारा अपेक्षित भूमि या भवन इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये समिति में निहित हो जायेगा और स्थानीय प्राधिकारी को ऐसे प्रतिकर का सदाय कर दिया जायेगा जैसा कि कलेक्टर द्वारा उपधारा (5) के अधीन अवधारित किया जाए :

परन्तु किसी स्थानीय प्राधिकारी को कोई प्रतिकर किसी ऐसी भूमि या भवन के संबंध में देय नहीं होगा जो ऐसे स्थानीय प्राधिकारी के गठन से संबंधित अधिनियमिति में अन्तर्विष्ट उपबंधों के आधार पर इसमें निहित हुआ था किन्तु ऐसे निहित होने के लिये किसी भी रकम का सदाय नहीं किया गया था :

परन्तु यह और भी कि कलेक्टर के आदेश से व्यथित कोई भी पक्षकार, ऐसे आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर, राज्य सरकार को अपील कर सकेगा ।

(3) स्थानीय प्राधिकारी, उपधारा (2) के अधीन मंडी समिति में निहित होने वाली भूमि या भवन का कब्जा ऐसे निहित होने से सात दिन की कालावधि के भीतर परिदत्त कर देगा और पूर्वोक्त कालावधि के भीतर स्थानीय प्राधिकारी के ऐसा करने में चूक होने पर, कलेक्टर उस भूमि या भवन का कब्‍जा ले लेगा और उसे मंडी समिति को परिदत्त करावेगा ।

(4) राज्य सरकार का आदेश तथा उस आदेश के अध्यधीन रहते हुए उपधारा (2) के अधीन कलेक्टर का आदेश अंतिम होगा और दोनों पक्षकारों पर आबद्धकर होगा ।

(5) कलेक्टर भूमि या भवन के लिये प्रतिकर की रकम निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखते हुए नियत करेगा--

(एक) वार्षिक भाटक जिस पर उस भवन को वर्ष प्रति वर्ष भाड़े पर दिये जाने की युक्तियुक्त रूप से

प्रत्याशा की जा सकती हो;

(दो) भवन की दशा;

1 [(तीन) ऐसे भूमि के अर्जन के लिये स्थानीय प्राधिकारी द्वारा दी गई प्रतिकर की रकम और उस

भूमि का वर्तमान बाजार मूल्य; और]

(चार) स्थानीय प्राधिकारी द्वारा उस भूमि पर परिनिर्मित किये गये किसी भवन की या भूमि पर

निष्पादित किये गये किसी अन्य कार्य की लागत या उसका वर्तमान बाजार मूल्य ।]

(6) उपधारा (5) के अधीन नियत किये गये प्रतिकर का, मंडी समिति के विकल्प पर एकमुश्त राशि में या दस से अनधिक इतनी समान वार्षिक किस्तों में, जितनी की कलेक्टर नियत करे, संदाय किया जा सकेगा । जहा प्रतिकर का संदाय किस्तों में किया जाए, वहाँ उस पर 6 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज लगेगा जो किस्त के साथ देय होगा ।

9. बोर्ड या मंडी समिति के लिये भूमि का अर्जन  (1) जब मंडी क्षेत्र के भीतर की कोई भूमि इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये अपेक्षित हो और बोर्ड या मंडी समिति उसे करार द्वारा अर्जित करने में असमर्थ हो, तब राज्य सरकार, यथास्थिति बोर्ड या मंडी समिति के निवेदन पर, ऐसी भूमि को लैण्ड एक्वीजीशन एक्ट, 1894 (क्रमांक 1 सन् 1894) के उपबंधों के अधीन अर्जित करने की कार्यवाही कर सकेगी और उस अधिनियम के अधीन अधिनिर्णीत किये गये प्रतिकर का तथा किन्हीं अन्य प्रभारों का, जो कि उस अर्जन के सबंध में राज्य सरकार द्वारा उपगत किये गये हों, मंडी समिति द्वारा संदाय किया जाने पर, वह भूमि यथास्थिति बोर्ड या मंडी समिति में निहित हो जायेगी ।

1 [(2) कोई भूमि जो उपधारा (1) के अधीन बोर्ड या मण्डी समिति के लिए अर्जित की जा चुकी हो और उसमें निहित हो, राज्य सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार ही विक्रय के द्वारा, पट्टे के द्वारा या अन्यथा अन्तरित की जाएगी ।]

2 [(3) मध्यप्रदेश लैण्ड रेवेन्यू कोड, 1959 (क्रमांक 20 सन् 1959) में और उसके अधीन बनाये गये नियमों में, जहाँ तक कि वे भूमि व्यपवर्तन, कृषि से किसी अन्य प्रयोजन के ।लेये भूमि के उपयोग में परिवर्तन हो जाने के परिणामस्वरूप भू-राजस्व के पुनरीक्षण तथा उससे आनुषंगिक अन्य विषयों से संबंधित है, अन्तर्विष्ट कोई भी बात ऐसी भूमि को लागू नहीं होगी जो मंडी समिति द्वारा उपधारा (1) के अधीन अर्जित की गई हो या जो अन्तरण द्वारा, क्रय द्वारा, दान द्वारा या अन्यथा अर्जित की गई हो और किसी मंडी-प्रांगण या किसी उपमंडी-प्रांगण की स्थापना के प्रयोजन के लिये उपयोग में लाई गई हो :

परन्तु मंडी-प्रांगण, उपमंडी-प्रांगण के लिये या बोर्ड के प्रयोजन के लिये उपयोग में लाये गये परिसरों के संबंध में यह नहीं समझा जायेगा कि वे यथास्थिति नगरपालिका निगम, नगरपालिका परिषद, अधिसूचित क्षेत्र, ग्राम पंचायत या विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी की सीमाओं में सम्मिलित हैं ।]

10. प्रथम मंडी समिति का गठन होने तक भारसाधक अधिकारी की नियुक्ति  (1) जब इस अधिनियम के अधीन कोई मंडी प्रथम बार स्थापित की जाती है तो 1[प्रबंध संचालक] आदेश द्वारा 2[दो वर्ष से अनधिक कालावधि के लिये] किसी व्यक्ति को भारसाधक अधिकारी के रूप में नियुक्त करेगा । भारसाधक अधिकारी 1[प्रबंध संचालक] के नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए, इस अधिनियम के अधीन मंडी समिति की समस्त शक्तियों का प्रयोग करेगा तथा समस्त कर्तव्यों का पालन करेगा :

 

“10. प्रथम मंडी समिति का गठन होने तक के लिए भारसाधक अधिकारी या भारसाधक समिति की नियुक्ति -- ( 1) जब इस अधिनियम के अधीन कोई मंडी प्रथम बार स्थापित की जाए तो संचालक आदेश द्वारा चार वर्ष 6 मास की कालावधि के लिए - - (क) किसी व्यक्ति को भारसाधक अधिकारी के रूप में नियुक्त करेगी, या (ख) सात से अनधिक व्यक्तियों से मिलकर बनने वाली समिति को, जो कि विहित की गई रीति में गठित की जाएगी, भारसाधक समिति के रूप में नियुक्त करेगी । भारसाधक अधिकारी या भारसाधक समिति (संचालक) के नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए इस अधिनियम के अधीन मंडी समिति शक्तियों का प्रयोग करेगी करेगा तथा उसके (मंडी समिति के) समस्त कर्त्तव्यों का पालन करेगी/करेगा.

परन्तु संचालक पूर्वोक्त कालावधि के दौरान किसी भी समय भारसाधक पदाधिकारी के स्थान पर भारसाधक समिति तथा भारसाधक समिति के स्थान पर भारसाधक अधिकारी नियुक्त कर सकेगा और इस प्रकार नियुक्त भारसाधक अधिकारी या भारसाधक समिति, जैसी भी की दशा हो, अपने पदाधिकारी को उपलब्ध शेष कालावधि तक पद धारण करेगा या कृत्य करेगी परन्तु यह और भी कि भारसाधक अधिकारी की मृत्यु हो जाने, उसके पद त्याग कर देने, छुट्टी पर होने या उसके निलंबित होने की दशा में यह समझा जाएगा कि ऐसे पद की आकस्मिक रिक्ति हुई है और ऐसी रिक्ति यथाशक्य शीघ्र संचालक द्वारा उस पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति करके भरी जाएगी और जब तक ऐसी नियुक्ति न कर दी जाए, कलेक्टर द्वारा नाम-निर्दिष्ट व्यक्ति भारसाधक अधिकारी के रूप में कार्य करेगा :

परन्तु यह भी कि यदि मंडी समिति पूर्वोक्त कालावधि के अवसान होने के पूर्व गठित की जाए तो नवीन रूप से गठित मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मेलन के लिए नियत की गई तारीख से भारसाधक अधिकारी अपने पद पर नहीं रहेगा या भारसाधक समिति अपने कृत्य करना बन्द कर देगी ।

परन्तु भारसाधक अधिकारी की मृत्यु हो जाने, उसके पद त्याग कर देने, छुट्टी पर होने या उसके निलंबित होने की दशा में यह समझा जाएगा कि ऐसे पद में आकस्मिक रिक्ति हो गई है और ऐसी रिक्ति 1[प्रबंध संचालक] द्वारा यथाशक्य शीघ्र, उस पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति करके भरी जायेगी और जब तक ऐसी नियुक्ति नहीं कर दी जाती है, तब तक कलेक्टर द्वारा नाम निर्दिष्ट व्यक्ति भारसाधक के रूप में कार्य करेगा :

परन्तु यह और भी कि यदि मंडी समिति का गठन पूर्वोक्त कालावधि का अवसान होने के पूर्व हो जाता है तो ऐसा भारसाधक अधिकारी नवीन रूप से गठित मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलित के लिये नियत की गई तारीख से अपने पद पर नहीं रहेगा ।

(2) किसी भी भारसाधक अधिकारी को या उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन भारसाधक समिति में नियुक्त किए गए किसी भी व्यक्ति या समस्त व्यक्ति को, किसी भी समय, संचालक द्वारा हटाया जा सकेगा, जिसे उसके स्थान पर या उनके स्थानों पर यथास्थिति किसी अन्य व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्तियों को नियुक्त करने की शक्ति होगी ।

(3) कोई भी व्यक्ति जो उपधारा (1) के अधीन भारसाधक अधिकारी नियुक्त किया गया हो, अपनी सेवाओं के लिए ऐसा वेतन तथा भत्ते, जो कि संचालक द्वारा नियत किए जाए, मंडी समिति निधि से प्राप्त करेगा तथा भारसाधक समिति का प्रत्येक सदस्य मंडी समिति निधि से ऐसी दर से भत्ते प्राप्त करने का हकदार होगा, जिस दर से कि भत्ते मंडी समिति के सदस्यों को देय हो ।

(4) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त भारसाधक अधिकारी या भारसाधक समिति, उस उपधारा के अधीन अपनी अवधि का अवसान हो जाने पर भी उस तारीख तक, जो कि नवीन रूप से गठित मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मेलन के लिए धारा 12 की उपधारा (2) के खंड एक के अधीन नियत की गई हो और जहाँ उच्च न्यायालय की अंतरिम न्यायिक अधिघोषणा को दृष्टिगत रखते हुए मंडी समिति का गठन करना संभव नहीं रहा हो, वहाँ उस तरीख से, जिसकी कि उच्च न्यायालय द्वारा उस संबंध में अंतिम आदेश पारित किया गया हो, एक वर्ष की कालावधि का अवसान होने तक कृत्य करती रहेगी / पद धारण किए रहेगी ।

व्याख्या -- उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए उसमें विनिर्दिष्ट अवधि उन प्रथम बार स्थापित की गई मंडी समितियों के भारसाधक अधिकारी या भारसाधक समिति की दशा में, जो धारा 80 की उपधारा (1) के द्वारा विखंडित अधिनियमों के अध्यधीन नियुक्त की गई हो और उसको उपधारा (2) के अध्यधीन संस्थापित और नियुक्त मानी गई हो, धारा 1 की उपधारा (3) द्वारा नियत दिनांक से प्रारंभ होगी ।

1.1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 2 द्वारा (दिनांक 15 - 6 - 1997 से) ' 'संचालक'

शब्द के स्थान पर, अध्रिनियम में जहाँ- जहाँ भी वह आता है '' प्रबंध संचालक' ' शब्द रखे गए ।

2.1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 द्वारा (दिनांक 15 - 6 - 1997 से) '' चार वर्ष छह मास की

कालावधि के लिए' ' शब्दों के स्थान पर रखे गए ।

(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किये गये किसी भी भारसाधक अधिकारी को, किसी भी समय, (प्रबंध संचालक द्वारा हटाया जा सकेगा, जिसे उसके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने की शक्ति होगी ।

(3) उपधारा (1) के अधीन भारसाधक के रूप में नियुक्त किया गया कोई भी व्यक्ति, अपनी सेवाओं के लिये ऐसा वेतन तथा भत्ते, जो कि 1[प्रबंध संचालक] द्वारा नियत किये जाए, मंडी समिति निधि से प्राप्त करेगा ।

(4) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किया गया भारसाधक अधिकारी, उस उपधारा के अधीन अपनी अवधि का अवसान हो जाने पर भी, उस तारीख तक पद धारण किये रहेगा जो कि नवीन रूप से गठित मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलन के लिये 1[धारा 13 की उपधारा (1)] के अधीन नियत की गई है ।

3 [11. मण्डी समिति का गठन — (1) मंडी समिति में निम्नलिखित होंगे—

(क) धारा 12 के अधीन निर्वाचित अध्यक्ष;

(ख) कृषको के दस प्रतिनिधि जो ऐसी अर्हताए रखते हों जैसी कि विहित की जाए जो किसी

मंडी क्षेत्र के निर्वाचन क्षेत्रो में से इस अधिनियम और उसके अधीन बनाये गये नियमों

के उपबंधों के अनुसार प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गये हो ।

 धारा 11. मंडी समिति का गठन -- (1) धारा 10 तथा 11 - क के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए मण्डी समिति में कम से कम आठ तथा अधिक से अधिक 20 सदस्य होंगे, जैसा कि राज्य शासन अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, जिनमें से-

(क) निर्वाचित सदस्यों में से कम से कम उतने सदस्य, जितने कि राज्य सरकार द्वारा उक्त अधिसूचना में नियत किए जाएँ, कृषकों के प्रतिनिधि होंगे, जिनकी अर्हताएँ ऐसी होंगी, जैसी कि विहित की जाएँ और जो ऐसे क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में से जिनमें कि मंडी क्षेत्र उपधारा (3) के अधीन विभाजित किया जा सकता हो, प्रत्येक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के हेतु निर्वाचन क्षेत्र में की ग्राम पंचायतों के निर्वाचित पंचों द्वारा तथा कृषि सेवा सहकारी सोसायटियों के निर्वाचित अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों द्वारा विहित रीति में, निर्वाचित किए जाएँगे ।

परन्तु यदि मध्यप्रदेश पंचायत अधिनियम, 1981 (क्रमांक 35 सन् 1981) की धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित की गई किसी एक ग्राम पंचायत के भीतर समाविष्ट क्षेत्र एक से अधिक मंडी क्षेत्रों में आता हो तो ऐसे क्षेत्र को केवल एक मंडी समिति के क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र में सम्मिलित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण -- इस खड में अभिव्यक्ति ''कृषकों'' के अंतर्गत मंडी क्षेत्र का कोई कृषक उस दशा में नहीं आएगा जबकि ऐसे कृषक का कोई नातेदार अर्थात् पत्नी पति पिता, माता भाई बहिन, पुत्र पुत्री, पिता का पिता पिता का भाई पिता की बहिन, माता का पिता माता का भाई या बहिन पिता के भाई का पुत्र या पुत्री पिता की बहिन का पुत्र या पुत्री माता के भाई का पुत्र या पुत्री, माता की बहिन का पुत्र या पुत्री भाई का पुत्र या पुत्री, बहिन का पुत्र या पुत्री पुत्र की पत्नी पुत्री का पति, बहिन का पति, पत्नी की बहिन का पति, पिता की बहिन का पति, माता की बहन का पति पुत्र का पुत्र या पुत्री पुत्री का पुत्र या पुत्री पत्नी का पिता या माता, पत्नी का भाई या बहिन पत्नी के भाई का पुत्र या पुत्री पत्नी की बहिन का पुत्र या पुत्री पति का भाई, पति के भाई की पत्नी पति के भाई का पुत्र या पुत्री उक्त मंडी क्षेत्र की मंडी समिति से व्यापारिक अनुज्ञप्ति धारण करता हो ।

(ख) निर्वाचित सदस्यों में से अधिक से अधिक दो सदस्य जैसा कि राज्य शासन द्वारा उक्त अधिसूचना में नियत किया जाए व्यापारियों के प्रतिनिधि होंगे जिनमें ऐसी अर्हताएँ हों जैसी कि विहित की जाए और जो उन व्यक्तियों में से जो कि इस अधिनियम के अधीन व्यापरियों या प्रसंस्करण कारखानों के स्वामियों या अधिभोगियों के रूप में मंडी समिति से दो आनुक्रमिक वर्षों की कालावधि के लिए अनुज्ञप्ति लगातार धारण किए हुए हों विहित रीति में निर्वाचित किए गए हों :

परन्तु किसी ऐसी मंडी समिति के मामले में जो धारा 10 के अधीन प्रथम बार स्थापित की गई हों तथा जिसमें प्रभारी अधिकारी या प्रभारी कमेटी कम से कम दो वर्ष के लिए हो ऐसी मंडी समिति से अनुज्ञप्ति लगातार धारण करने के लिए कालावधि छ: मास होगी ।

(ग) एक सदस्य राज्य विधानसभा का वह सदस्य होगा, जो कि उस निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित किया गया हो जिसके कि अंतर्गत मंडी क्षेत्र आता है और ऐसे सदस्य को मंत्री - परिषद के सदस्य के रूप में नियुक्त कर दिए जाने या उसके विधानसभा के यथास्थिति अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हो जाए की दशा में ऐसा सदस्य अथवा उसका नाम – निर्देशिती :

परन्तु यदि मंडी क्षेत्र एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों के अंतर्गत आता है तो राज्य विधानसभा के वे समस्त सदस्य जो उन निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित किए गए हों मंडी समिति के सदस्य होंगे और उस दशा में मंडी समिति की उस सदस्य संख्या में जो कि इस उपधारा के अधीन नियत की गई है उतनी संख्या और जुड़ जाएगी जो कि सदस्यों की उस संख्या में से एक- एक घटाकर आती हो :

परन्तु यह और भी कि राज्य विधानसभा का कोई भी सदस्य केवल उसी एक मंडी समिति का सदस्य बनने का हकदार होगा, जिसके कि क्षेत्र के भीतर उसके निर्वाचन क्षेत्र का अधिकांश क्षेत्र आता हो ।

(घ) एक सदस्य उस मंडी क्षेत्र में कृत्य कर रही सहकारी विपणन सोसायटी का प्रतिनिधि जो उस

सोसायटी की प्रबंधकारिणी समिति के द्वारा निर्वाचित होगा :

परन्तु यदि मंडी क्षेत्र में ऐसी एक से अधिक सोसायटियों कृत्य करें तो ऐसा सदस्य ऐसी सोसायटियों की प्रबंधकारिणी समितियों के समस्त सदस्यों द्वारा निर्वाचित होगा :

परन्तु यह और भी कि यदि ऐसी किसी सोसायटी की प्रबंधकारिणी समिति मध्यप्रदेश को - आपरेटिव सोसायटीज एक्ट, 1960 (क्रमांक 17 सन 1961) के उपबंधों के अधीन अतिष्ठित की गई हो तो इस खंड में की गई कोई बात लागू नहीं होगी ।

(ड) एक सदस्य जो सरकारी अधिकारी होगा, संचालक द्वारा नाम- निर्दिष्ट किया जाएगा ।

(च) एक सदस्य उन तुलैयों और हम्मालों का जो इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अनुसार मंडी क्षेत्र में कार्य कर रहे हों प्रतिनिधि होगा जो उन व्यक्तियों में से जो इस अधिनियम के अधीन मंडी समिति से या तो तुलैयों केरूपमें या हम्माल के रूप में अनुज्ञप्ति छह मास की कालावधि से लगातार धारण कर रहे हों, मंडी समिति के अध्यक्ष द्वारा धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलन के पश्चात् एक मास के भीतर नाम-निर्दिष्ट किया जाएगा ।

(छ) एक सदस्य जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक का प्रतिनिधि होगा, जो या तो ऐसे बैंक का अध्यक्ष या उसकी प्रबंध समिति का ऐसा अन्य सदस्य होगा, जो अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्दिष्ट किया जाए।

(ज) एक सदस्य जिला भूमि विकास बैंक का प्रतिनिधि होगा, जो या तो ऐसे बैंक का अध्यक्ष या उसकी प्रबंध समिति का ऐसा अन्य सदस्य होगा, जो अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्दिष्ट किया जाए।

(2) मंडी क्षेत्र के भीतर निवास करने वाला कोई भी ऐसा कृषक, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा आयोजित किसी फसल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करे, उस तारीख से, जिसको कि वह ऐसी फसल प्रतियोगिता में प्रथम घोषित किया जाए, एक वर्ष की कालावधि के लिए मंडी समिति का सदस्य उन सदस्यों के अतिरिक्त हो जाएणा, जो उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किए गए हें और ऐसी किसी दशा में मंडी समिति की उस सदस्य संख्या में, जो उक्त उपधारा के अधीन नियत की गई हो, उस कालावधि के दौरान, जिसमें कि वह सदस्य रहे, तक्षसार वृद्धि हो जाएगी ।

(3) राज्य शासन ऐसे प्राधिकारी के लिए जो निर्वाचन का संचालन करेगा, निर्वाचन क्षेत्रों का अवधारण करने के लिए मतदाताओं की सूची तैयार करने तथा उन्हें बनाए रखने के लिए सदस्य के रूप में चुने जाने तथा सदस्य होने संबंधी निरर्हताओं के लिए मत देने के अधिकार के लिए निक्षेप के भुगतान तथा उसके समपहरण के लिए, निर्वाचन अपराधों के लिए निर्वाचन संबंधी विवादों के अवधारण तथा उससे आनुषंगिक समस्त विषयों के लिए उपबंध करने हेतु नियम बना सकेगी ।

(4) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, यदि इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अनुसार निर्वाचन कार्यवाहियों के आरंभ हो जाने के पश्चात् उपधारा (1) के खड (क) तथा (ख) में वर्णित निर्वाचकगण (इलेक्टोरेट) उस सदस्य या उन सदस्यों को, जिनके कि प्रति उक्त खंडों में निर्देश किया गया है, निर्वाचन करने में असफल रहे तो राज्य शासन संबंधित निर्वाचन वर्ग की ओर ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों को, जो सदस्य होने के लिए अहित हो, मंडी समिति के सदस्य या सदस्यों के रूप में नाम-निर्दिष्ट करेगी ।

(5) प्रत्येक मंडी समिति के सदस्य मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलन की तारीख से पाँच वर्ष की कालावधि केलिए पद धारण करेंगे ।

(6) यदि उपधारा (5) में वर्णित कालावधि के भीतर मंडी समिति नवीन रूप से गठित न की जाए, तो मंडी समिति ऐसी कालावधि के हो जाने पर विघटित हो चुकी समझी जाएगा ।

(6-क) मंडी समिति का कोई भी निर्वाचन या सहयोजित सदस्य किसी भी समय कलेक्टर को संबोधित किए, इस आशय के एक लिखित पत्र द्वारा अपना पद त्याग सकेगा और उसका वह पद ऐसे त्याग-पत्र की तारीख से पन्द्रह दिन अवसान होने पर उस दशा में रिक्त हो जाएगा, जबकि वह उक्त पन्द्रह दिन की कालावधि के भीतर कलेक्टर को संबोधित किए गए एक दूसरे लिखित पत्र द्वारा त्याग-पत्र को वापस न ले लें ।

(7) किसी सदस्य की पदावधि का अवसान होने के पूर्व उसकी मृत्यु हो जाए, उसके पद त्याग करने देने या उसको हटा दिए जाने की दशा में यह समझा जाएगा कि ऐसे पद की आकस्मिक रिक्ति हुई है और ऐसी रिक्ति यथाशक्ति शीघ्र उस पद के लिए किसी व्यक्ति का सदस्य के रूप में यथास्थिति निर्वाचन या नाम-निर्देशन के भरी जाएगी, जो अपना पद तत्काल ग्रहण करेगा तथा ऐसे पद को अपने पूर्वाधिकारी की अनावसित अवधि तक के लिए धारण करेगा

परन्तु ऐसी कोई भी आकस्मिक रिक्ति नहीं भरी जाएगी, जो उस तारीख के, जिसको कि उसकी पदावधि का अवसान होता हो, पूर्ववर्ती चार मास की कालावधि के भीतर हुई हो ।

(8) मंडी समिति के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को मंडी समिति निधिमें से ऐसे मानदेय ऐसी बैठक, फीस, ऐसे यात्रा भत्ते तथा ऐसे अन्य भत्तों का भुगतान किया जाएगा, जैसा कि संचालक द्वारा समय-समय पर नियत किया जाए ।

(ग) व्यापारियों का एक प्रतिनिधि जो ऐसी अर्हताएँ रखता हो जैसी कि विहित की जाएं, जो उन व्यक्तियों द्वारा तथा उन व्यक्तियों में से चुने जायेंगे जो इस अधिनियम के अधीन व्यापारियों के रूप में या प्रसंस्करण कारखानों के स्वामियों या अधिभोगियों के रूप में मंडी समिति से लगातार दो वर्षों की कालावधि से अनुज्ञप्ति धारण किये हों :

परन्तु किसी ऐसी मंडी समिति के मामले में, जो धारा 10 के अधीन प्रथम बार स्थापित की गई हो ऐसी मंडी समिति से अनुज्ञप्ति धारण करने की अर्हकारी कालावधि छह मास होगी :

1 [परन्तु यह और कि कोई भी व्यक्ति मण्डी समिति के व्यापारियों का प्रतिनिधि होने के लिए अहित नहीं होगा यदि उसकी दो से अधिक जीवित संतान हैं जिनमें से एक का जन्म 26 जनवरी 2001 को या उसके पश्चात् हुआ हो :

परन्तु यह भी कि व्यापारी का कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि ऐसा पद धारण करने से निरर्हित हो जाएगा यदि 26 जनवरी, 2001 को या उसके पश्चात् एक संतान का जन्म हो जाए जिससे उसकी संतान की संख्या दो से अधिक हो जाती है;]

परन्तु यह 1[और] 2[भी] कि कोई व्यक्ति एक समय में एक से अधिक मण्डी समिति का मतदाता नहीं होगा :

परन्तु यह भी कि कोई भी व्यक्ति तभी मतदाता होगा जबकि-

(एक) उसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो;

(दो) वह मंडी समिति का व्यतिक्रमी नहीं हो ।

(घ) राज्य की विधान सभा तथा लोक सभा के ऐसे सदस्य, जिनके निर्वाचन क्षेत्र की कम से कम पचास प्रतिशत जनसंख्या ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जो किसी नगरपालिक निगम, नगरपालिका परिषद् या नगर पंचायत की स्थानीय सीमाओं के बाहर है :

परन्तु ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में जहाँ एक से अधिक मंडी समितियाँ विद्यमान हैं, वहां 3[लोकसभा के सदस्य को अपना विकल्प देना होगा] कि वह ऐसी मंडी समितियों में से किसी मंडी समिति में सदस्य होना चाहता है :

4 [परन्तु यह और कि लोक सभा का सदस्य या राज्य विधान सभा का सदस्य जो मण्डी समिति का सदस्य है, अपने प्रतिनिधि को जो ऐसी अर्हता रखता हो, जैसी कि विहित की जाये, मण्डी समिति के सम्मिलन में उपस्थित होने के प्रयोजन के लिए नाम निर्देशित कर सकेगा;]

(ड) ऐसे मंडी क्षेत्र में कृत्य कर रही सहकारी विपणन सोसाइटी का एक प्रतिनिधि जो ऐसी सोसाइटी की प्रबंधकारिणी समिति द्वारा निर्वाचित किया जायेगा :

परन्तु यदि ऐसे मंडी क्षेत्र में एक से अधिक सोसाइटियाँ कृत्य कर रही हैं तो ऐसा सदस्य ऐसी सोसाइटियों की प्रबंधकारिणी समितियों के समस्त सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा :

परन्तु यह और भी कि इस खड में कोई भी बात लागू नहीं होगी यदि किसी सोसाइटी की प्रबंधकारिणी समिति मध्यप्रदेश सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1960 (क्रमांक 17 सन् 1961) के उपबधों के अधीन अतिष्ठित कर दी गई है;

(च) राज्य सरकार के कृषि विभाग का एक अधिकारी जो कलेक्टर द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जायेगा;

(छ) मंडी क्षेत्र में काम कर रहे ऐसे तुलैयों तथा हम्मालों का एक प्रतिनिधि जो मंडी समिति से अनुज्ञप्ति धारण करता हो जिसे अध्यक्ष द्वारा नामर्दिष्ट किया जाएगा;

(ज) जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक का एक प्रतिनिधि जो या तो ऐसे बैंक का अध्यक्ष होगा या उसकी प्रबंध समिति का ऐसा अन्य सदस्य होगा जो कि ऐसे बैंक के अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाए;

(झ) जिला भूमि विकास बैंक का एक प्रतिनिधि जो या तो ऐसे बैंक का अध्यक्ष होगा उसकी प्रंबध समिति का ऐसा अन्य सदस्य होगा जो कि ऐसे बैंक के अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाए;

(ञ) मंडी क्षेत्र की अधिकारिता के भीतर आने वाली ग्राम पंचायत या जनपद पंचायत या जिला पंचायत का एक प्रतिनिधि जो जिला पंचायत के अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा :

परन्तु जिला मुख्यालयों में स्थित मंडी समितियों में ऐसा प्रतिनिधि, केवल जिला पंचायतों के सदस्यों में से ही नामनिर्दिष्ट किया जायेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन समस्त सदस्यों को मत देने का अधिकार होगा, सिवाय ऐसे सदस्यों के, जो खंड (च) के अधीन नामनिर्दिष्ट किये गये हों और ऐसे सदस्य, जो उपधारा (1) के खड (घ) के द्वितीय परन्तुक के अधीन विशेष आमंत्रित सदस्य हों ।

(3) राज्य सरकार, मतदाता-सूची को तैयार करने के लिये तथा निर्वाचनों के सचालन के लिये नियम बना सकेगी ।

(4) यदि उपधारा (1) के खड (ख) या (ग) के अधीन निर्वाचक मंडल एक प्रतिनिधि निर्वाचित करने में असफल रहता है तो कलेक्टर यथास्थिति कृषकों या व्यापारियों का प्रतिनिधि नामनिर्दिष्ट करेगा ।

(5) सदस्य का प्रत्येक निर्वाचन तथा नामनिर्देशन कलेक्टर द्वारा राजपत्र में अधिसूचित किया जाएगा ।]

1 [11-  मंडी क्षेत्र का निर्वाचन क्षेत्रो में विभाजन तथा स्थानों का आरक्षण —(1) कलेक्टर स्थानीय समाचार-पत्र में अधिसूचना द्वारा किसी मंडी क्षेत्र को इतनी संख्या में निर्वाचन क्षेत्रो में विभाजित करेगा जितनी कि उस क्षेत्र में से चुने जाने वाले कृषको के प्रतिनिधियों की संख्या हो ।

 11  मण्डी समितियों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियो के लिए आरक्षण -- (1) मंडी समितियों में अनुसूचित जातियों और/या अनुसूचित जनजतियों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने की दृष्टि से ऐसी जातियों और/या जनजातियों, जिनकी कि जनसंख्या मंडी क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक हो, आरक्षण दिया जाएगा और उन निर्वाचन क्षेत्रों, जिनमें कि वह मंडी क्षेत्र विभाजित किया गया है, में से उस क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र को आरक्षित किया जाएगा, जिसमें कि ऐसी जातियों और/या जनजातियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक हो ।

(2) उपधारा (1) के अधीन आरक्षण- -

(क) उस मंडी क्षेत्र की दशा में, जिससे कि कृषकों की आठ या आठ से कम, जैसा कि धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन नियत किया गया हो, प्रतिनिधि में एक प्रतिनिधि तक हो, सीमित होगा ।

(ख) उस मंडी समिति की दशा में, जिसमें कृषकों को आठ से अधिक जैसा कि धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन नियत किया गया हो, प्रतिनिधि से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों में से प्रत्येक के एक-एक प्रतिनिधि तक सीमित होगा ।

(3) जहाँ धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (क) के द्वितीय परन्तुक के अधीन सम्पूर्ण मंडी क्षेत्र से मिलकर केवल एक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र बनेगा, वहाँ ऐसा आरक्षण- -

(क) उस मंडी समिति की दशा में, जिसमें यथापूर्वोक्त आठ से आठ से कम प्रतिनिधि हों, एक प्रतिनिधि के लिए होगा ।

(ख) उस मंडी समिति की दशा में, जिसमें यथार्द्बोक्त आठ से अधिक प्रतिनिधि हों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों में से प्रत्येक के लिए एक-एक प्रतिनिधि के लिए होगा ।

स्पष्टीकरण -- इस धारा के प्रयोजन के लिए--

(एक) ''अनुसूचित जातियों'' से अभिप्रेत है, ऐसी जातियाँ, मूलवंश या जनजातियाँ अथवा ऐसी जातियों, मूलवंश या जनजातियों के भाग या ऐसी जातियों, मूलवंश या जनजातियों के भीतर के समूह जो कि भारतके संविधान में अनुच्छेद 141 के अधीन मध्यप्रदेश राज्य के संबंध में विनिर्दिष्ट किए गए हों;

(दो) ''अनुसूचित जनजातियों'' से अभिप्रेत है, ऐसी जनजातियां, जनजाति समुदाय अथवा ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भाग या ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भीतर के समूह जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अधीन मध्यप्रदेश राज्य के संबंध में उस रूप में विनिर्दिष्ट किए हो ।''

(2) प्रत्येक मंडी समिति में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये स्थान आरक्षित रखे जायेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात उस मंडी समिति में भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के साथ यथासाध्य वही होगा जो उस मंडी समिति क्षेत्र में अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का उस क्षेत्र की कुल जनसख्या के साथ है और ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों के लिये ऐसे स्थानों का आवंटन विहित रीति में किया जायेगा ।

(3) जहाँ किसी मंडी क्षेत्र में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये स्थानों की कुल संख्या पचास प्रतिशत या पचास प्रतिशत से कम है वहाँ स्थानों की कुल संख्या के पच्चीस प्रतिशत स्थान अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षित रखे जायेंगे ।

(4) उपधारा (2) तथा (3) के अधीन आरक्षित किये गये स्थानों की कुल संख्या के एक तिहाई से 
अन्यून स्थान यथास्थिति, अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिये आरक्षित रखे जायेंगे ।

(5) स्थानों की कुल सख्या के एक-तिहाई से अन्यून स्थान (जिनके अंतर्गत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिये आरक्षित स्थानों की सख्या भी है) महिलाओं के लिये आरक्षित रखे जायेंगे और ऐसे स्थान भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिये कलेक्टर द्वारा विहित रीति में आवंटित किये जायेंगे ।

1 [11- ख मत देने के लिए और कृषको का प्रतिनिधि होने के लिए अर्हताए – (1) प्रत्येक ऐसा व्यक्ति-

(क) जिसका नाम ग्राम के भू-अभिलेखों में भूमिस्वामी के रूप में प्रविष्ट हो ;

(ख) जो मंडी क्षेत्र में मामूली तौर पर निवास करता है;

(ग) जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है; और

(घ) जिसका नाम इस अधिनियम और उसके अधीन बनाये गये नियमों के अधीन तैयार की

गई मतदाता सूची में सम्मिलित है :

कृषकों के प्रतिनिधि के निर्वाचन में मत देने के लिये अर्हित होगा :

परन्तु कोई भी व्यक्ति एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में मत देने के लिये पात्र नहीं होगा ।

स्पष्टीकरण -- शब्द ''भूमि-स्वामी'' का वही अर्थ होगा जो कि उसे मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 (क्रमांक 20 सन् 1959) में दिया गया है ।

(2) कोई भी व्यक्ति कृषकों का प्रतिनिधि निर्वाचित किये जाने के लिये तभी अर्हित होगा जबकि-

(क) उसका नाम मंडी क्षेत्र की मतदाता- सूची में सम्मिलित है

(ख) वह कृषक है;

(ग) वह इस प्रकार निर्वाचित किये जाने के लिये अन्यथा निरर्हित नहीं किया गया है;

2 [(गग) उसकी दो से अधिक जीवित संतान नहीं है जिनमें से एक का जन्म 26 जनवरी,

2001 को या उसके पश्चात् हुआ हो :

परन्तु कृषकों का कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि ऐसा पद धारण करने से निरर्हित हो जाएगा यदि 26 जनवरी, 2001 को या उसके पश्चात् एक संतान का जन्म हो जाए जिससे उसकी संतान की संख्या दो से अधिक हो जाती है;।

(3) कोई भी व्यक्ति कृषकों का प्रतिनिधि होने के लिये निरर्हित होगा यदि वह पंचायत राज अधिनियम, 1993 (क्रमांक 1 सन 1994) की धारा 36 के अधीन किसी पंचायत के पदाधिकारी होने के लिए निरर्हित है ।

(4) कोई भी व्यक्ति यथास्थिति एक से अधिक मंडी समिति या निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचन के लिए पात्र नहीं होगा ।]

1 [12. अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का निर्वाचन - (1) अध्यक्ष प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा उन व्यक्तियों द्वारा जो कृषको और व्यापारियों के प्रतिनिधियों के निर्वाचन में मत देने के लिये अर्हित है, विहित रीति से चुना जायेगा :

परन्तु कोई भी व्यक्ति अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन के लिये तब तक पात्र नहीं होगा जब तक कि वह धारा- ख की उपधारा (2) और (3) के अधीन निर्वाचित किये जाने के लिये अर्हित न हो ।

'' धारा 12. मंडी समिति के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष -- (1) प्रत्येक मंडी समिति का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा । अध्यक्ष और उपाध्यक्ष--

(क) साधारण निर्वाचन के पश्चात् उनके निर्वाचन की दशा में धारा 11 की उपधारा (1) के खण्ड (क), (ख), (ग), (घ), (छ) और न में विनिर्दिष्ट मंडी समिति के सदस्यों द्वारा, और

(ख) उपधारा (2) के खण्ड ( ख) में निर्दिष्ट उनके निर्वाचन की दशा में धारा 11 की उपधारा (1) के खण्ड (क), (ख), (ग), (घ), (च), (छ) और (ज) में विनिर्दिष्ट मंडी समिति के सदस्यों द्वारा उन सदस्यों में से निर्वाचित किए जाएँगे, जो उक्त धारा की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन निर्वाचित हुए हों ।

(2) (क) प्रत्येक साधारण निर्वाचन (जनरल इलेक्शन) के पश्चात् मंडी समिति अपने प्रथम साधारण सम्मेलन में जो कलेक्टर द्वारा साधारण निर्वाचन से एक मास के भीतर बुलाया जाएगा, अध्यक्ष तथा उपाध्यंक्ष को निर्वाचित करेगी । इस प्रकार निर्वाचित किए गए अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष उस तारीख से, जिसको कि वे अपने- अपने पद ग्रहण करें, दो वर्ष छ. मास की कालावधि के लिए पद धारण करेंगे ।

(ख) मंडी समिति, यथास्थिति, बर्हिगामी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष की पदावधि का अवसान होने से एक मास के भीतर कलेक्टर द्वारा बुलाए गए सम्मिलन में नए अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को निर्वाचित करेगी, जो मंडी समिति की अनिवसित अवधि के लिए पद धारण करेंगे ।

(3) अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष अपनी पदावधि का अवसान हो जाने पर भी तब तक पद धारण किए रहेंगे, जब तक कि उनके उत्तराधिकारी निर्वाचित न हो जाएँ ।

(4) अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के निर्वाचन के लिए बुलाए सम्मेलन की अध्यक्षता कलेक्टर द्वारा या इस संबंध में उसके द्वारा प्राधिकृत किए गए किसी भी अधिकरी द्वारा दी जाएगी । संचालन ऐसे अधिकारी को, जब कि वह सम्मिलन की अध्यक्षता कर रहा हो, वे सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो कि अध्यक्ष को उस समय प्राप्त होती है, जबकि वह मंडी समिति के सम्मिलन की अध्यक्षता कर रहा होता है, किन्तु उसे मत देने का अधिकर नहीं होगा ।

(5) यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के निर्वाचन में मत बराबर- बराबर हों तो निर्वाचन के परिणाम का विनिश्चय लाट द्वारा किया जाएगा, जो पीठासीन अधिकारी की उपस्थिति में ऐसे रीति में डाला जाएगा, जैसा कि वह अवधारित करें ।

(6) अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के निर्वाचन की विधिमान्यता के संबंध में विवाद उद्भूत होने की दशा में कलेक्टर यदि वह पीठासीन अधिकारी हो, विवाद का विनिश्चय स्वयं करेगा और किसी भी अन्य मामले में पीठासीन अधिकारी उस विवाद को विनिश्चय के लिए कलेक्टर को निर्दिष्ट करेगा । कलेक्टर का विनिश्चय आयुक्त को की जाने वाली अपील के अध्यधीन रहते हुए अंतिम होगा और ऐसे विनिश्चय के संबंध में कोई वाद या अन्य कार्यवाही किसी भी विधि न्यायालय में नहीं होगी ।

(2) अध्यक्ष के पद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित रखे जाएंगे और इस प्रकार आरक्षित पदों की सँख्या का अनुपात राज्य में ऐसे पदों की कुल संख्या के साथ यथाशक्य वही होगा जो कि राज्य में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात राज्य की कुल जनसख्या के साथ है और ऐसे प्रबंध संचालक द्वारा मंडी समितियों के लिये विहित रीति में आवन्टित किये जायेंगे ।

(3) अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या के पच्चीस प्रतिशत स्थान अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षित रखे जायेंगे और ऐसे स्थान उस मंडी समितियों को, जो अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित नहीं हैं, प्रबंध संचालक द्वारा विहित रीति में आवंटित किये जायेंगे ।

(4) उपधारा (2) और (3) के अधीन आरक्षित किये गये अध्यक्ष के पदों की कुल सख्या के एक तिहाई से अन्न स्थान यथास्थिति अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिये आरक्षित रखे जायेंगे ।

(5) राज्य में अध्यक्ष के पदों की कुल संख्या के एक तिहाई से अन्न पद (जिनके अंतर्गत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिये आरक्षित पदों की सख्या भी है) महिलाओं के लिये आरक्षित रखे जायेंगे और ऐसे पद प्रबंध संचालक द्वारा भिन्न-भिन्न मंडी समितियों के लिये विहित रीति में आवंटित किये जायेंगे ।

(6) कोई भी व्यक्ति एक साथ अध्यक्ष और सदस्य के पद के लिये निर्वाचन लड़ने के लिये पात्र नहीं होगा ।

(7) यदि कोई मंडी क्षेत्र, अध्यक्ष का निर्वाचन करने में असफल रहता है तो उस पद को भरने के लिये नई निर्वाचन कार्यवाहियाँ छह मास के भीतर प्रारंभ की जाएंगी:

परन्तु मंडी समिति के गठन की आगे और कार्यवाही अध्यक्ष का निर्वाचन लम्बित रहने के दौरान नहीं रोकी जाएगी

परन्तु यह और भी कि इस उपधारा के अधीन अध्यक्ष का निर्वाचन लम्बित रहने के दौरान उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के समस्त कृत्यों का निर्वहन करेगा ।

(8) मंडी समिति का एक उपाध्यक्ष होगा जो धारा 13 की उपधारा (1) के अधीन बुलाए गए मंडी समिति के प्रथम सम्मिलन में मंडी समिति के निर्वाचित सदस्यों द्वारा तथा उन्हें में से विहित रीति में निर्वाचित किया जायेगा :

परन्तु यदि मंडी समिति का अध्यक्ष अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों का नहीं है तो उपाध्यक्ष ऐसी जातियों या जनजातियों या वर्गों के निर्वाचित सदस्यों- में से निर्वाचित किया जाएगा :

परन्तु यह और भी कि कोई भी व्यक्ति उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचन के लिये तब तक पात्र नहीं होगा जब तक कि वह कृषक न हो ।

(9) अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का प्रत्येक निर्वाचन कलेक्टर द्वारा राजपत्र में अधिसूचित किया जाएगा।]

1 [12  अभिलेखों तथा सम्पत्ति का कब्जा लेना -- (1) जहाँ कलेक्टर का यह समाधान हो जाये कि किसी मंडी समिति की पुस्तकों तथा अभिलेखों का दबा दिया जाना, बिगाड़ा जाना या नष्ट किया जाना सभाव्य है या किसी मंडी समिति की निधियों तथा सम्पत्ति का दुर्विनियोग किया जाना या दुरुपयोग किया जाना सभाव्य है, वहाँ कलेक्टर या उसके द्वारा प्राधिकृत किया गया व्यक्ति उस कार्यपालक मजिस्ट्रेट को, जिसको कि अधिकारिता के भीतर वह मंडी समिति कृत्य कर रही हो, मंडी समिति के अभिलेखों तथा सम्पत्ति का अभिग्रहण करने तथा कब्जा लेने के लिये आवेदन कर सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन आवेदन प्राप्त होने पर, मजिस्ट्रेट किसी भी ऐसे पुलिस अधिकारी को, जो उपनिरीक्षक के पद से निम्न पद का न हो, इस बात के लिये प्राधिकृत कर सकेगा कि वह किसी भी ऐसे स्थान में, जहाँ कि ऐसे अभिलेख तथा सम्पत्ति रखी हुई हो या जहाँ कि उनका रखा जाना संभाव्य हो, प्रवेश करे तथा उसकी तलाशी ले और उनका अभिग्रहण करके उनका कब्जा यथास्थिति कलेक्टर या उसके द्वारा प्राधिकृत किये गये व्यक्ति को सौंप दे ।]

1 [ 13. प्रथम सम्मिलन अध्यक्ष उपाध्यक्ष या सदस्य की पदावधि उनके द्वारा त्याग - पत्र और उनके पद में रिक्ति -- (1) मंडी समिति का प्रथम सम्मिलन अध्यक्ष और सदस्यों के निर्वाचन के परिणामों के राजपत्र में प्रकाशन की तारीख से एक मास के भीतर कलेक्टर द्वारा बुलाया जाएगा ।

(2) मंडी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा सदस्य मंडी समिति के प्रथम सम्मिलन की तारीख से पाँच वर्ष की कालावधि के लिये पद धारण करेंगे :

''13. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष द्वारा त्याग - पत्र और उनके पद की रिक्ति -- (1) अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण करने वाला कोई भी सदस्य, किसी भी समय कलेक्टर को संबोधित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा और वह पद ऐसे त्याग की तारीख से थे पन्द्रह दिन के अवसान होने पर उस दिशा में रिक्त हो जाएगा, जबकि वह उक्त पन्द्रह दिन की कालावधि के भीतर कलेक्टर को लिखित में संबोधित करके उस त्याग-पत्र को वापिस न ले ले ।

(2) मंडी समिति का ऐसा सदस्य कि जिसे कलेक्टर नियुक्त करे, प्रत्येक अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद रिक्त कर देगा, यदि वह मंडी समिति का सदस्य न रहे ।

(3) अध्यक्ष का पद मृत्यु के कारण या अन्यथा रिक्त रहने के दौरान उपाध्यक्ष और यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त हो तो इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी अध्यक्ष की शक्तियों का प्रयोग तथा उसके कृत्यों का पालन अध्यक्ष सम्यक रूप से निर्वाचित न् होने तक करेगा ।''

1 [परन्तु यदि मण्डी समिति का अवसान हो जाने पर नई मण्डी समिति का गठन नहीं किया गया है तो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, मण्डी समिति की अवधि में वृद्धि ऐसे अवसान होने की तारीख से, ऐसी वृद्धि के कारणों को लेखबद्ध करते हुए छह मास की कालावधि के लिए कर सकेगी और यदि नई मण्डी समिति का गठन इस बढ़ाई गई अवधि के भीतर नहीं किया जाता है तो यह समझा जाएगा कि वह विघटित हो गई है और ऐसी दशा में धारा 57 के उपबंध लागू होंगे ।]

(3) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कोई सदस्य किसी भी समय कलेक्टर को लिखित में संबोधित करके अपना पद त्याग सकेगा और ऐसा त्याग-पत्र कलेक्टर द्वारा उसके स्वीकार किये जाने की तारीख से प्रभावी होगा।

(4) कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी नगरपालिक निगम, नगरपालिका परिषद्, नगर पंचायत, पंचायत या किसी सहकारी सोसाइटी
के अध्यक्ष (चेयरपर्सन) या उपाध्यक्ष (वाईस- चेयरपर्सन) के रूप में निर्वाचित है, यदि वह मंडी समिति के अध्यक्ष
या उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हो जाता है या इसके विपरीत निर्वाचित अर्थात् मंडी समिति में निर्वाचित अध्यक्ष या
उपाध्यक्ष, उक्त निकायों का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष निर्वाचित हो जाता है, तो वह लिखित में एक सूचना द्वारा,
जिस पर उसके हस्ताक्षर होंगे और जो 2[विहित प्राधिकारी] 3[कलेक्टर] को ऐसी तारीख के या ऐसी तारीखों
में से पश्चात्वर्ती तारीख के, जिसको कि वह उस रूप में निर्वाचित हुआ है, तीस दिन के भीतर परिदत्त की
जाएगी, यह प्रशापित करेगा कि वह किस पद को धारण करना चाहता है और तदुपरि ऐसे अन्य निकाय में, जहाँ
पद धारण नहीं करना चाहता है, वहाँ उसका स्थान रिक्त हो जाएगा और पूर्व कालावधि के भीतर ऐसी प्रज्ञापना देने
में व्यतिक्रम करने पर, उस कालावधि के समाप्त होने पर, मंडी समिति में उसका स्थान रिक्त हो जाएगा ।

(5) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या किसी सदस्य की पदावधि का अवसान होने के पूर्व उसकी मृत्यु हो जाने, उसके द्वारा त्याग पत्र दिये जाने या उसको हटाये जाने या उपधारा (4) के अधीन रिक्ति हो जाने या अन्यथा उसका पद रिक्त हो जाने की दशा में यह समझा जाएगा कि ऐसे पद में आकस्मिक रिक्ति हो गई है और ऐसी रिक्ति इस अधिनियम के तथा नियमों के उपबंधों के अनुसार निर्वाचन द्वारा छह मास के भीतर

भरी जाएगी और इस प्रकार निर्वाचित या नामनिर्दिष्ट किया गया व्यक्ति अपने पूर्ववर्ती की अवधि के अनवसित भाग के लिये पद धारण करेगा :

परन्तु यदि ऐसे पद की शेष कालावधि छह मास से कम है तो ऐसी रिक्ति नहीं भरी जाएगी ।

(6) अध्यक्ष की मृत्यु हो जाने, उसके द्वारा त्याग पत्र दिये जाने या उसको हटा दिये जाने या अन्यथा अध्यक्ष के पद में रिक्ति हो जाने की दशा में, उपाध्यक्ष और यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त हो, तो इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, धारा 11 की उपधारा

(1) के खंड (ख) के अधीन निर्वाचित मंडी समिति का ऐसा सदस्य, जिसे कलेक्टर नियुक्त करे, अध्यक्ष की शक्तियों का प्रयोग तथा उसके कृत्यों का पालन तब तक करेगा जब तक कि अध्यक्ष सम्यक् रूप से निर्वाचित नहीं हो जाता ।

1 [14. ***]

अध्याय -4

मंडी समिति के काम - काज का संचालन और उसकी शक्तियाँ तथा कर्तव्य

2 [15. मंडी समिति के सम्मिलन की प्रक्रिया तथा गणपूर्ति मंडी सम्मिलन की प्रक्रिया तथा उसकी गणपूर्ति ऐसी होगी जैसी कि विहित की जाये ।]

''14. अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव -- (1) अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव उपधारा (2) के अधीन उस प्रयोजन के लिए विशेष रूप से बुलाए गए सम्मिलन में प्रस्तुत किया जा सकेगा और यदि ऐसा प्रस्ताव ऐसे बहुमत से जो कि उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाईसे कम न हो, स्वीकृत हो जाए और यदि ऐसा बहुमत तत्समय मंडी समिति गठन का करने वाले सदस्यों की कुल संख्या के आधे से अधिक हो, तो यथास्थिति, ऐसा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, जिसके विरुद्ध ऐसा आदेश पारित किया गया हो, उस तारीख के, जिसको कि ऐसा प्रस्ताव पारित किया गया हो, ठीक पश्चात् ही अपने पद पर नहीं रहेगा ।

(2) उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए मंडी समिति का सम्मिलन निम्नलिखित रीति में किया जाएगा, अर्थात्-

(एक) सम्मिलन तत्समय मंडी समिति का गठन करने वाले सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम

एक तिहाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित सूचना प्राप्त होने पर, मंडी समिति के सचिव द्वारा उस

तारीख से, जिसको कि अविश्वास प्रस्ताव की सूचना प्राप्त हुई हो, तीन दिन के भीतर बुलाया

जाएगा;

(एक- क) खंड (एक) में वर्णित सूचना कलेक्टर को भी संबोधित की जाएगा और साथ ही उसे परिदत्त भी की जाएगी और समिति के सचिव द्वारा खंड (एक) में उपबंधित किए गए अनुसार सम्मिलन बुलाने में चूक की जाने पर, सम्मिलन, खड (एक) में विनिर्दिष्ट तीस दिन की कालावधि का अवसान होने की तारीख से पन्द्रह दिन के भीतर कलेक्टर द्वारा बुलाया जाएगा और इस उपधारा के उपबंध कलेक्टर द्वारा बुलाए गए सम्मिलन को उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार कि वे सचिव द्वारा बुलाए गए सम्मिलन को लागू होते हैं;

(दो) ऐसे सम्मिलन की सूचना में सम्मिलन का समय तथा स्थान विनिर्दिष्ट किया जाएगा और वह मंडी समिति के सचिव द्वारा सम्मिलन की तारीख से कम से कम थे दस दिन के पूर्व प्रत्येक सदस्य को भेजी जाएगी । सूचना की एक प्रति संचालक तथा कलेक्टर को भी भेजी जाएगी;

(तीन) अध्यक्ष या उपाध्यक्ष उस सम्मिलन की अध्यक्षता नहीं करेगा, किन्तु ऐसे सम्मिलन की अध्यक्षता सरकार के ऐसे अधिकारी द्वारा की जाएगी, जिसे कि कलेक्टर इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, तथापि, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को उस सम्मिलन की कार्यवाहियों में बोलने तथा अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा ।

(3) ऐसे व्यक्ति के, जो अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण करता हो, विरुद्ध अविश्वास का कोई प्रस्ताव पूर्व के अविश्वास प्रस्ताव के निपटारे की तारीख के छह मास के भीतर पुनर्विचार के लिए नहीं लिया जाएगा ।''

2. 1979 के म. प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 13 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित । पूर्व उपबंध निम्न प्रकार थे-

''15 मंडी समिति के सम्मिलन आदि -- मंडी समिति के सम्मिलन, गणपूर्ति तथा प्रक्रिया विनियमन उस प्रयोजन के लिए बनाई गई उपविधियों के अनुसार किया जाएगा ।

16. अध्यक्ष मंडी समिति के सम्मिलनों की अध्यक्षता करेगा -- अध्यक्ष और यदि वह अनुपस्थित हो तो उपाध्यक्ष मंडी समिति के प्रत्येक सम्मिलन की अध्यक्षता करेगा और यदि किसी सम्मिलन में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष दोनों ही अनुपस्थित हो, तो सम्मिलन में उपस्थित सदस्यों में से एक ऐसा सदस्य, जिसे कि सम्मिलन द्वारा चुना जाय, अध्यक्ष के रुप में कार्य कर सकेगा ।

17. मंडी समिति की शक्तियाँ तथा कर्त्तव्य - (1) इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए मंडी समिति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह-

(क) इस अधिनियम तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों एव उपविधियों के उपबंधों को मंडी क्षेत्र

में कार्यान्वित करें;

(ख) अधिसूचित कृषि उपज का उसमें (मंडी क्षेत्र में) विपणन करने के लिये ऐसी सुविधाओं का प्रबंध करना जैसा कि 1[प्रबन्ध संचालक] समय-समय पर निर्देश दे;

(ग) ऐसे अन्य कार्य करना, जो कि मंडी के अधीक्षण, संचालन तथा नियंत्रण के संबंध में या

अधिसूचित कृषि उपज का मंडी क्षेत्र में किस स्थान पर विपणन करने का विनियमन करने के

लिये तथा पूर्वोक्त विषयों से संबंधित प्रयोजनों के लिये आवश्यक हों और वह उस प्रयोजन के

लिये ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे कृत्यों का निर्वहन कर सकेगी जैसे कि इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उपबंधित किये जायें ।

(2) पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना मंडी समिति-

2 [(एक) मंडी प्रांगणों तथा उपमंडी प्रांगणों का सन्निर्माण, अनुरक्षण तथा प्रबंध करेगी और मंडी क्षेत्र

में हाट बाजारों के विकास का प्रोन्नयन करेगी.]

(दो) मंडी प्रांगण में कृषि उपज के विपणन के लिये आवश्यक सुविधाओं का प्रबंध करेगी;

(तीन) मंडी कृत्यकारियों को अनुज्ञप्तियाँ मंजूर करेगी या मंजूर करने से इंकार करेगी और ऐसी

अनुज्ञप्तियों को नवीकृत, निलम्बित या रह करेगी;

(चार) मंडी कृत्यकारियों के आचरण का पर्यवेक्षण करेगी; (पाँच) मंडी प्रांगणों में व्यापार आरंभ करने, बन्द करने तथा निलम्बित करने का विनियमन करेगी;

(पांच) मंडी प्रांगणों में व्यापार आरम्भ करने, बंद करने तथा निलंबित करने का विनियमन करेगी;

(छ:) अनुज्ञप्तियों की शर्तों को प्रवर्तित करेगी;

(सात) अधिसूचित कृषि उपज के विपणन से संबंधित विक्रयों का करार करने, उसके कार्यान्वयन तथा प्रवर्तन या रहकरण का, अधिसूचित कृषि उपज के विपणन से संबंधित तौल, परिदान, भुगतान तथा समस्त अन्य विषयों का विनियमन करेगी;

(आठ) ऐसे समस्त विवादों को, जो कि अधिसूचित कृषि उपज के विपणन से संबंधित किसी भी प्रकार के संव्यवहार से विक्रेता तथा क्रेता के बीच उद्भूत हुए हों, तय करने के लिये तथा उससे अनुषक्त समस्त मामलों के लिये उपबंध करेगी;

(नौ) अधिसूचित कृषि उपज के उत्पादन, विक्रय, भण्डारकरण, प्रसंस्करण, कीमतों तथा संचलन के संबंध में जानकारी, संग्रहीत करेगा तथा उसे बनाये रखेगी और ऐसी जानकारी को संचालक द्वारा निर्देशित किये गये अनुसार प्रसारित करेगी;

(दस) माल में अपमिश्रण को रोकने के लिये तथा अधिसूचित कृषि उपज के श्रेणीकरण तथा

मानकीकरण के सम्प्रवर्तन के लिये समस्त सम्भव कार्यवाही करेगी;

(ग्यारह) मंडी में स्थिरता बनाये रखने की दृष्टि से-

(क) यह सुनिश्चित करने के लिये यथोचित उपाय करेगी कि व्यापारी अपनी सामर्थ्य के परे, कृषि उपज का क्रय न करें तथा उपज का व्ययन करने में विक्रेताओं को होने वाली जोखिम न रहे; और

(ख) क्रेताओं की हैसियत के अनुसार नगद या बैंक गारंटी के रूप में आवश्यक प्रतिभूति अभिप्राप्त करने के पश्चात् ही अनुमतियों मंजूर करेगी

(बारह) फीस तथा अन्य शोध्य प्रभारों से संबंधित समस्त धन, जिसे प्राप्त; करने के लिये मंडी

समिति प्राधिकृत है, उद्गृहीत करेगी तथा वसूल करेगी;

(तेरह) (क) यह सुनिश्चित करेगी कि मंडी प्रांगण में या मूल मंडी में हुए संव्यवहारों के संबंध में भुगतान विक्रेता को उसी दिन किया जाये, और इसमें व्यतिक्रम होने पर प्रश्नगत कृषि उपज को तथा संबंधित व्यक्ति की अन्य सम्पत्ति को अभिग्रहीत करेगी तथा उसके पुन: विक्रय के लिये व्यवस्था करेगी और हानि होने की दशा में, उस हानि को तथा हानि, यदि कोई हो, की मूल क्रेता से वसूली करने संबंधी प्रभारों को मूल क्रेता से वक्त करेगी और कृषि उपज की कीमत का भुगतान विक्रेता को करायेगी;

(ख) तुलाई तथा हम्माली से संबंधित प्रभारों को वसूल करेगी और उन्हें तुलैयों तथा हम्मालों में वितरित करेंगी;

(चौदह) इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों एव उपविधियों के उपबंधों के दक्षतापूर्ण कार्यान्वयन के लिये आवश्यक सख्या में अधिकारियों तथा सेवकों को नियोजित करेगी;

(पन्द्रह) मंडी प्रांगण में व्यक्तियों के प्रवेश तथा गाड़ियों के यातायात का विनियमन करेगी;

(सोलह) इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों एवं उपविधियों के उपबंधों का

अतिक्रमण करने के लिये व्यक्तियों को अभियोजित कर्से और यदि आवश्यक हो तो ऐसे

अपराधों का शमन करेगी;

(सत्रह) अपने कर्तव्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के प्रयोजन से किसी भी जंगम या स्थावर संपत्ति

को अर्जित करेगी, धारण करेगी तथा उसका व्ययन करेगी ;

(अठारह) कोई वाद, कार्य, कार्यवाही, आवेदन- पत्र या माध्यस्थम् संस्थित करेगी या उसमें प्रतिरक्षा

करेगी और ऐसे वाद, कार्य, कार्यवाही, आवेदन- पत्र या माध्यस्थम् में समझौता करेगी;

(उन्नीस) मंडी प्रांगण में किये गये संव्यवहारों के संबंध में माल के तोलने तथा उसके परिवहन के

लिये तुलैयों तथा हम्मालों का बारी-बारी से नियोजन करने की व्यवस्था करेगी :

परन्तु इस खंड की कोई भी बात उन हम्मालों के नियोजित किये जाने के लिये लागू नहीं होगी जो कि व्यापारियों द्वारा मंडी प्रांगण से अपने गोदामों तक अपने माल के परिवहन के लिये नियोजित किये जायें।

(3) 1[प्रबंध संचालक] की पूर्व मंजूरी से, मंडी समिति, अपने विवेकानुसार निम्नलिखित कर्त्तव्यों का भार अपने ऊपर ले सकेगी :

2 [(एक) इस हेतु से कि कृषि-उपज के परिवहन तथा भण्डारकरण में सुविधा हो या इस प्रयोजन से कि मंडी प्रांगण का विकास हो, मंडी क्षेत्र में सड़कों या गोदामों के सन्निर्माण के लिये ' (बोर्ड या राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग या किसी अन्य विभाग या उपक्रमण को या संचालक द्वारा प्राधिकृत किये गये किसी अन्य अभिकरण को अनुदान देना या अग्रिम निधि देना;]

4 [(दो) विक्रय हेतु उपर्वरक, नाशक-जीवमार (पेस्टीसाइड्स) कीटनाशक (इन्सेक्टिसाइड्स), उन्नत

बीज, कृषि संबंधी उपस्करों और आधानों (इनपुट्स) का स्टॉक बनाए रखना;]

(तीन) कृषकों को कृषि उपज का स्टॉक रखने के लिये 1[भण्डारकरण सुविधाएं] भाटक पर देने की

व्यवस्था करना;

2 [(चार) गौशाला या संस्थाओं के जो मध्यप्रदेश गौसेवा आयोग अधिनियम, 1995 (क्रमांक 18 सन

1995) के अधीन रजिस्ट्रीकृत की गई हैं, अनुरक्षण के लिये अनुदान देना ।]

(4) पूर्व में वर्णित कर्त्तव्यों के अतिरिक्त मंडी समिति निम्नलिखित के लिये भी उत्तरदायी रहेगी--

(एक) अपने अधिकारियों द्वारा प्राप्त हुई प्राप्तियों तथा किये गये भुगतानों पर उचित अंकुश बनाये रखना;

(दो) मंडी समिति की निधि पर भारित किये जा सकने वाले समस्त कार्यो का समुचित निष्पादन;

(तीन) इस अधिनियम तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों तथा जारी की गई अधिसूचनाओं की और अपनी उपविधियों की एक-एक प्रति नि: शुल्क निरीक्षण के लिये अपने कार्यालय में रखना; और

(चार) सांसर्गिक पशु रोग फैलने की रोकथाम के लिये निवारक उपायों की व्यवस्था करना ।

(5) मंडी समिति किसी ऐसे भी निर्देश को कार्यान्वित करेगी जिसे कि राज्य सरकार मंडी प्रांगण में युक्तियुक्त सुविधाओं का प्रबंध करने के लिये समय-समय पर जारी करें ।

(6) यदि मंडी समिति, उपधारा (5) के अधीन जारी किये गये किसी निर्देश का युक्तियुक्त समय के भीतर अनुपालन करने में अ करे, तो राज्य सरकार को, मंडी समिति के खर्च पर ऐसे निर्देश को प्रवर्तन करने के लिये आवश्यक समस्त शक्तियाँ प्राप्त होंगी ।

(7) यदि कोई मंडी समिति, किसी भी ऐसी राशि का, जिसकी कि रकम उपधारा (5) के अधीन जारी किये गये किन्हीं निर्देशों के आधार पर नियत की गयी हो या देय हो भुगतान करने में व्यतिक्रम करे, तो राज्य सरकार, ऐसे व्यक्ति को, जिसकी अभिरक्षा में मंडी समिति की निधि का अतिशेष हो, यह निर्देश देते हुए एक आदेश दे सकेगी कि वह ऐसा भुगतान या तो पूर्ण रूप से या ऐसे भाग में, जो ऐसी निधि में संभव हो, करे ।

(8) मंडी समिति ऐसी समस्त जानकारी देगी जिसकी कि कलेक्टर या संचालक या इनमें से किसी के भी द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत अधिकारी को अपेक्षा हो ।

 

18. उप - समितियों की नियुक्ति और शक्तियों का प्रत्यायोजन -- ऐसी शर्तों तथा निबंधनों के अध्यधीन रहते हुए, जैसी कि विहित की जाये, मंडी समिति, अपने कर्त्तव्यों या कृत्यों में से किसी भी कर्त्तव्य या कृत्य के पालन या. किसी विषय पर रिपोर्ट देने या राय देने के लिये उप-समितियाँ नियुक्त कर सकेगी जिसमें एक या एक से अधिक सदस्य होंगे और उनमें से किसी भी ऐसी उप-समिति को अपनी शक्तियों में से ऐसी शक्तियाँ प्रत्यायोजित कर सकेगी जैसी कि आवश्यक हों ।

19. मंडी फीस के उद्ग्रहण की शक्ति  1 [(1) प्रत्येक मंडी समिति-

(एक) अधिसूचित कृषि उपज, चाहे वह राज्य के भीतर से या राज्य के बाहर से किसी मंडी क्षेत्र में

लाई गई हो, के विक्रय पर; और

(दो) अधिसूचित कृषि उपज पर, चाहे वह राज्य के भीतर से या राज्य के बाहर से किसी मंडी क्षेत्र

में लाई गई हो और प्रसस्करण में उपयोग के लिये लाई गई हो,

ऐसी दरों से, जो कि राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर, कीमत के प्रत्येक एक सौ रुपये पर न्यूनतम पचास पैसे की दर के और अधिकतम दो रुपये की दर के अध्यधीन रहते हुए नियत की जाए, विहित रीति में मंडी फीस का उद्ग्रहण करेगी :

परन्तु उस मंडी समिति को छोड्कर जिसके मंडी क्षेत्र में अधिसूचित कृषि उपज, यथास्थिति, किसी कृषक या व्यापारी द्वारा प्रथम बार विक्रय या प्रसंस्करण हेतु लायी गई हो, कोई मंडी समिति ऐसी मंडी फीस का उद्ग्रहण नहीं करेगी;]

(2) मंडी फीस अधिसूचित कृषि उपज के क्रेता द्वारा संदेय होगी और विक्रेता को संदेय कीमत में से नहीं काटी जायेगी :]

2 [परन्तु जहाँ किसी अधिसूचित कृषि उपज का क्रेता पहचाना न जा सके, वहाँ समस्त फीस उस व्यक्ति द्वारा संदेय होगी जिसने उपज को बेचा हो या जो उपज को मंडी क्षेत्र में विक्रय के लिये लाया हो:

''(1) प्रत्येक मंडी समिति, मंडी क्षेत्र में विक्रय के हेतु लाई गई या क्रय की गई या बेची गई अधिसूचित कुषि उपज पर ऐसी दरों से, जो राज्य सरकार द्वारा समय- समय कृषि उपज की कीमत के प्रत्येक एक सौ रुपये पर पचास पैसे की न्यूनतम दर या दो रुपये की अधिकतम दर के अध्यधीन रहते हुए नियत की जाए, फीस का उद्ग्रहण करेगी तथा उसका विहित रीति में संग्रहण करेगी :

परन्तु उस मंडी समिति को छोडकर, जिसके मंडी क्षेत्र में अधिसूचित कृषि उपज यथास्थिति किसी कृषक या व्यापारी द्वारा प्रथम बार विक्रय हेतु लाई गई हो या क्रय की गई हो या बेची गई हो, कोई मंडी समिति ऐसी मंडी फीस उद्ग्रहीत नहीं करेगी ।

2. ''1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 12 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापना के पूर्व उक्त परन्तुक निम्न प्रकार था--

''परन्तु यदि अधिसूचित कृषि उपज का क्रेता पहचाना न जा सके तो समस्त फीस उस व्यक्ति द्वारा संदेय होगी, जो कि उपज को मंडी क्षेत्र में विक्रय के लिए लाया हो ।''

परन्तु यह और कि मंडी क्षेत्र में व्यापारियों के बीच वाणिज्यिक संव्यवहार होने की दशा में मंडी फीस विक्रेता द्वारा संग्रहीत की जायेगी तथा संदत्त की जायेगी।

1 [परन्तु यह और भी कि ऐसी कृषि उपज पर, जिसे राज्य सरकार, अधिसूचना, द्वारा, इस संबंध में विनिर्दिष्ट करे, 31 मार्च, 1990 तक कोई फीस उद्ग्रहीत नहीं की जायेगी यदि ऐसी उपज किसी कृषक द्वारा किसी ऐसी सहकारी सोसायटी को, जिसका कि वह सदस्य है, मंडी प्रांगण या उपमंडी प्रांगण के बाहर बेची गई हो ।]

2 [परन्तु यह भी कि, वाणिज्यिक संव्यवहार के लिये या प्रसंस्करण के लिये मंडी क्षेत्र में लाई गई कृषि उपज पर मंडी फीस, यथास्थिति, क्रेता या प्रसंस्करणकर्ता द्वारा, उस दशा में मंडी समिति के कार्यालय में ' चौदह दिन के भीतर जमा की जायेगी, यदि क्रेता, या प्रसंस्करणकर्ता ने धारा 19 की उपधारा (6) के अधीन जारी किया गया अनुज्ञापत्र प्रस्तुत नहीं किया है ।]

4 [(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट मंडी फीस किसी अधिसूचित कृषि उपज पर-

(एक) राज्य में के एक से अधिक मंडी क्षेत्र में; या

(दो) उसी मंडी क्षेत्र में एक से अधिक बार; उस दगा में उद्ग्रहीत नहीं की जायेगी जब कि उसका

पुनर्विक्रय-

(क) ऊपर (एक) की दशा में, उस मंडी क्षेत्र से, जिसमें वह यथास्थिति किसी कृषक या व्यापारी द्वारा प्रथम बार विक्रय हेतु लाई गई थी या क्रय की गई थी या बेची गई थी तथा उस पर मंडी क्षेत्र में फीस लग चुकी है, भिन्न मंडी क्षेत्र में, या

(ख) ऊपर (दो) की दशा में, उस मंडी क्षेत्र में-

व्यापारियों के बीच वाणिज्यिक संव्यवहारों के अनुक्रम में या उपभोक्ताओं को किया जाता है, 1[बशर्ते संबंधित व्यक्ति द्वारा ऐसे प्ररूप में, जो उपविधियों में विहित किया जाये, इस प्रभाव की घोषणा दे दी गई हो।] कि इस प्रकार पुन: बे बी जा रही इस अधिसूचित कृषि उपज पर राज्य के अन्य मंडी -क्षेत्र में फीस पहले ही लग चुकी है ।

2 [(4) यदि यह पाया जाए कि कोई अधिसूचित कृषि-उपज ऐसी उपज पर देय मंडी फीस के भुगतान के बिना प्रांगण के बाहर प्रसंस्कृत की गई है, पुन: बेच दी गई है या बेच दी गई है तो मंडी फीस, यथास्थिति, प्रसंस्कृत उपज के बाजार मूल्य या कृषि उपज के मूल्य के पाँच गुने के हिसाब से उद्ग्रहीत तथा वसूल की जायेगी ।]

1. 2001 के म.प्र. अधिनियम क्र. 28 की धारा 3 द्वारा (दिनांक 27-12-2001 से) 'बशर्ते संबंधित व्यक्ति द्वारा ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, इस प्रभाव की घोषणा दे दी गई हो' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । केवल म. प्र. में प्रवृत्त ।

2. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 12 द्वारा ( दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित।

प्रतिस्थापित से पूर्व उपधारा निम्न प्रकार थी--

''(4) यदि यह पाया जाए कि कोई अधिसूचित कृषि उपज पर शोध्य मंडी फीस के भुगतान के बिना प्रसंस्कृत की गई है, मंडी फीस ऐसी उपज के प्रसंस्कृत उत्पादनों के दुगने बाजार मूल्य पर उद्ग्रहीत तथा वसूल की जाएगी ।''

(5) मंडी कृत्यकारी जिन्हें कि मंडी समिति, उपविधियों द्वारा विनिर्दिष्ट करे विक्रय तथा क्रय 1[या प्रसंस्करण से संबंधित लेखे ऐसे प्ररूपों में रखेंगे तथा मंडी समिति को ऐसी नियतकालिक विवरणियाँ प्रस्तुत करेंगे जैसी कि विहित की जाये ।

2 [(6) कोई भी अधिसूचित कृषि-उपज मण्डी समिति द्वारा ऐसे प्ररूप में तथा ऐसी रीति में, जैसी कि उपविधियों द्वारा विहित की जाए, जारी किए गए अनुशापत्र के अनुसार ही यथास्थिति, मंडी प्रांगण, मूल मण्डी या मण्डी क्षेत्र से हटाई जाएगी, अन्यथा नहीं;

परन्तु यदि कोई व्यक्ति, यथास्थिति, मंडी प्रांगण, मूल मंडी या मंडी क्षेत्र से अधिसूचित कृषि-उपज के प्रसंस्कृत उत्पाद को हटाता है या उसका परिवहन करता है, तो ऐसा व्यक्ति मध्यप्रदेश वाणिज्यिक कर अधिनियम, 1994 (क्रमांक 5 सन् 1995) की धारा 43 के अधीन जारी किए गए बिल या केश मेमों अपने साथ रखेगा ।

(7) मंडी समिति, मंडी प्रांगण में प्रवेश करने वाली उन गाड़ियों पर, जो कि भाड़े पर चलती हो, ऐसी दर से, जैसी कि उपविधियो में विनिर्दिष्ट की जाये प्रवेश फीस का उद्ग्रहण तथा संग्रहण कर सकेगी ।

1 [19-  .* * *]

2 [ 19 . -  मंडी फीस के भुगतान में व्यतिक्रम - (1) कोई भी व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन मंडी फीस का भुगतान करने के लिये दायी है, उसका भुगतान मंडी समिति को अधिसूचित कृषि-उपज के क्रय करने के या उसे प्रसंस्करण के लिये मंडी क्षेत्र में आयात करने के चौदह दिन के भीतर करेगा और उसमें व्यतिक्रम होने पर वह मंडी फीस तथा उसके साथ उस पर 24 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज .का भुगतान करने का दायी होगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन मंडी फीस तथा ब्याज का भुगतान एक मास के भीतर करने में असफल रहता है तो ऐसे व्यक्ति को उस मंडी क्षेत्र में या किसी अन्य मंडी क्षेत्र में आगे का संव्यवहार करने के लिये अनुज्ञात नहीं किया जाएगा और ब्याज सहित मंडी फीस भू-राजस्व की बकाया की भांति वसूल की जाएगी और ऐसे व्यक्ति की अनुज्ञप्ति रद्द किये जाने के दायित्वाधीन होगी ।]

''19-  कतिपय परिस्थितियों में मंडी फीस के संदाय से छूट -- (1) मंडी समिति किसी भी ऐसे अधिसूचित कृषि उपज, जो मंडी क्षेत्र के भीतर, किन्तु मंडी प्रांगण के बाहर क्रय की गई हो या बेची गई हो, मंडी फीस के सदाय से छूट दे सकेगी, यदि ऐसी कृषि उपज को प्रसंस्करण के लिए लाया गया हो और उसका प्रसंस्करण ऐसी किसी कृषि उपज से किया गया हो, जिस पर मंडी फीस का संदाय राज्य में किसी मंडी समिति को पहले ही किया जा चुका हो ।

(2) उपधारा (1) के अधीन कोई भी छूट तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक कि प्रसंस्करणकर्त्ता--

(एक) उक्त कृषि उपज के क्रय तथा प्रसंस्करण के सत्य तथा शुद्ध लेखे, जो ऐसे प्ररूप में रखे गए

हों, जो जैसा कि विहित किया जाए, पेश न कर दे;

(दो) उक्त कृषि उपज को मंडी क्षेत्र में प्रसंस्करण के लिए लाए जाने के सात दिन के भीतर ऐसे प्ररूप में, जैसा कि विहित किया जाए, इस तथ्य की घोषणा न कर दे तथा प्रमाण-पत्र प्रस्तुत न कर दे कि उक्त कृषि उपज पर मंडी फीस का सदाय अन्य मंडी समिति को किया जा चुका है ।''

उक्त धारा को 1986 के अधिनियम क्रमांक 24 की धारा 13 द्वारा निम्नलिखित के रूप में प्रतिस्थापित किया गया था--

'' 19-  मंडी फीस की वापसी -- (1) मंडी समिति किसी भी ऐसी अधिसूचित कृषि उपज पर, जो मंडी क्षेत्र में किन्तु मंडी प्रांगण के बाहर क्रय की गई हो या बेची गई हो, चुकाई गई मंडी फीस उस दशा में वापस करेगी, जबकि वह प्रसंस्करण करने के पश्चात् विक्रय के लिए लाई गई हो और किसी ऐसी कृषि उपज से प्रसंस्कृत की गई हो, जिस पर मंडी फीस का भुगतान प्रसंस्करणकर्त्ता द्वारा राज्य में की गई किसी मंडी समिति को पहले ही किया जा चुका हो ।

(2) उपधारा (1) के अधीन कोई वापसी तब तक नहीं की जाएगी, जब तक कि प्रसंस्करणकर्त्ता--

(एक) उक्त कृषि उपज के क्रय और प्रसंस्करण के सही तथा शुद्ध लेखे, जो ऐसे प्ररूप में रखे गए

हों, जो कि विहित किया जाए, पेश न कर दे;

(दो) उक्त कृषि उपज का प्रसंस्करण करने के पश्चात् विक्रय के लिए मंडी क्षेत्र में लाए जाने के छह मास के भीतर उक्त कृषि उपज पर मंडी फीस का राज्य की किसी अन्य मंडी समिति को उसके द्वारा भुगतान कर दिए जाने के तथ्य की घोषणा और उनका प्रमाण-पत्र ऐसे प्ररूप में, जो कि विहित किया जाए, न दे दे ।''

20. लेखे पेश करने हेतु आदेश देने की शक्ति और प्रवेश निरीक्षण तथा अभिग्रहण की शक्तियाँ (1) 1[मंडी समिति का सचिव या राज्य सरकार या बोर्ड का कोई भी अधिकारी या सेवक जो राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में प्राधिकृत किया गया हो, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये किसी ऐसे व्यक्ति से, जो किसी भी किस्म की अधिसूचित कृषि उपज का कारबार करता हो, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह उसके समक्ष ऐसे लेखे तथा अन्य दस्तावेज पेश करे और कोई ऐसी जानकारी दे जो ऐसी कृषि उपज के स्टॉक या ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसी कृषि उपज के क्रय, विक्रय तथा परिदान से संबंधित हो, तथा कोई ऐसी अन्य जानकारी भी दे जो कि ऐसे व्यक्ति द्वारा मंडी फीस के संदाय से संबंधित हो ।

(2) किसी अधिसूचित कृषि उपज के कारबार के मामूली अनुक्रम में किसी व्यक्ति द्वारा बनाये रखे गये, समस्त लेखे तथा रजिस्टर और कृषि उपज के स्टॉकों से संबंधित या ऐसी कृषि उपज के क्रयों, विक्रयों तथा परिदानों से संबंधित दस्तावेजों, जो उसके कब्जे में हों, और ऐसे व्यक्ति के कार्यालय, स्थापनाएँ, गोदाम, जलयान या गाड़ियों, बोर्ड या मंडी समिति के ऐसे अधिकारियों या सेवकों द्वारा, जो राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में प्राधिकृत किये जायें, निरीक्षित की जाने/किये जाने के लिये समस्त युक्तियुक्त समयों पर खुली रहेगी/खुले रहेंगे ।

(3) यदि किसी ऐसे अधिकारी या सेवक के पास यह संदेह करने का कारण हो कि कोई व्यक्ति धारा 19 के अधीन अपने द्वारा शोध्य किसी मंडी फीस के भुगतान का अपवंचन करने का प्रयत्न कर रहा है या यह कि किसी व्यक्ति ने मंडी क्षेत्र में प्रवृत्त इस अधिनियम या नियमों के या उपविधियों के किन्हीं भी उपबंधों के उल्‍लघंन में किसी अधिसूचित कृषि उपज का क्रय किया है, तो वह लिखित में अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से ऐसे व्यक्ति के ऐसे लेखे, रजिस्टर या दस्तावेजें, जैसे कि आवश्यक हों, अभिग्रहीत कर सकेगा तथा उनके लिये एक रसीद देगा और उन्हें तब तक रखे रहेगा जब तक कि वे उनकी परीक्षा के लिये या अभियोजन के लिये आवश्यक हों ।

(4) उपधारा (2) या उपधारा (3) के प्रयोजनों के लिये ऐसा अधिकारी या सेवक किसी भी कारबार के स्थान, भण्डागार, कार्यालय, स्थापना, गोदाम जलयान या गाड़ी में, जिसके कि संबंध में ऐसे अधिकारी या सेवक के पास यह विश्वास करने का कारण हो, कि उनमें ऐसा व्यक्ति अपने कारबार के लेखे, रजिस्टर या दस्तावेजें या अपने कारबार से संबंध रखने वाली अधिसूचित कृषि उपज के स्टॉक रखता है या तत्समय रखे हो प्रवेश कर सकेगा या तलाशी ले सकेगा ।

(5) दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (क्रमांक 5 सन 1898) की धारा 102 तथा 103 के उपबंध यथाशक्य उपधारा (4) के अधीन तलाशी को लागू होंगे ।

(6) जहाँ कोई लेखा पुस्तकें या अन्य दस्तावेजें किसी स्थान से अभिग्रहीत की जायें और उनमें ऐसी प्रविष्टियों हों जो परिमाण भावों (कुटेशन्स) दरों, धन की प्राप्ति या भुगतान या माल के विक्रय या क्रय के प्रति निर्देश करती हों, वहाँ ऐसी लेखा पुस्तकें या अन्य दस्तावेजें, उन्हें साबित करने के लिये साक्षी के उपसंजात हुए बिना ही, साक्ष्य के रूप में ग्रहण की जायेंगी और ऐसी प्रविष्टियाँ उन मामलों में, संव्यवहारों तथा लेखाओं की, जिनका कि उनमें अभिलिखित होना तात्पर्यित है, प्रथम दृष्टया साक्ष्य होंगी ।]

1 [ 21. सर्वोत्तम विवेकानुसार फीस निर्धारण (1) प्रत्येक व्यापारी, प्रसंस्करणकर्ता या आढ़तिया, जो अधिसूचित कृषि उपज का कारोबार कर रहा है, प्रत्येक वर्ष 30 अप्रैल के पूर्व, 31 मार्च को समाप्त होने वाले पूर्व वित्तीय वर्ष के दौरान अधिसूचित कृषि उपज के उसके द्वारा या उसके माध्‍यम से किये गये क्रय या विक्रय का एक विवरण सचिव को विहित रीति में प्रस्तुत करेगा ।

(2) सचिव की कार्यवाही से व्यथित कोई व्यक्ति, उसको सूचना के संसूचित किये जाने की तारीख से 30 दिन के भीतर मंडी समिति को अपील कर सकेगा ।

(3) राज्य सरकार या बोर्ड द्वारा प्राधिकृत किया गया कोई अधिकारी अपनी स्वप्रेरणा से या राज्य सरकार को दिये गये आवेदन पर, 2[उस विवरण को, जो सचिव द्वारा सत्यापित किया गया है, सत्यापन की तारीख से दो वर्ष के भीतर पुन: सत्यापित कर सकेगा] और ऐसा अधिकारी इस प्रयोजन के लिये धारा 20 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करेगा ।

1. 1997 के म. प्र. अधिनियम क्र. 27 की धारा 15 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित।

प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त धारा निम्न प्रकार थी- -

''21. शुल्क का निर्धारण -- यदि धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन लेखे पेश करने या जानकारी देने के लिए अपेक्षित किया गया कोई व्यक्ति ऐसे लेखे पेश नहीं करता है या ऐसी जानकारी नहीं देता है या जानते हुए अपूर्ण या गलत लेखे या जानकारी देता है या यदि उसने अधिसूचित कृषि उपज के विक्रय या परिदान के उचित लेखे नहीं रखे हैं तो मंडी समिति, विहित रीति में ऐसे व्यक्ति के संबंध में उस फीस या जो कि धारा 19 के अधीन उद्ग्रहीत की जाती है, निर्धारण करेगी ।''

2. 2001 के म. प्र. अधिनियम क्र. 28 की धारा 4 द्वारा (दिनांक 27-12-2001 से) ''उस विवरण को, जो सचिव द्वारा सत्यापित किया गया है, पुन: सत्यापित कर सकेगा'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। केवल म. प्र. में प्रवृत्त ।

(4) यदि कोई व्यक्ति, जिससे धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन लेखे प्रस्तुत करने या जानकारी देने की अपेक्षा की गई है, ऐसे लेखे प्रस्तुत करने या जानकारी देने में असफल रहता है या जानते हुए अपूर्ण या असत्य लेखे या जानकारी देता है या जिसने अधिसूचित कृषि उपज के क्रय विक्रय तथा पीरदान के उचित लेखे नहीं रखे हैं तो सचिव, विहित रीति में ऐसे व्यक्ति पर धारा 19 के अधीन उद्गृहीत की जाने वाली फीस का निर्धारण करेगा ।

(5) राज्य सरकार या बोर्ड द्वारा सशक्त किये गये अधिकारी द्वारा किया गया पुन: सत्यापन या पुन: निर्धारण अन्तिम होगा ।]

22 मंडी प्रांगण में हुए अतिक्रमण को हटाने की शक्ति  1 [सचिव को ऐसे निदेशों के अध्यधीन रहते हुए जो मंडी समिति इस संबंध में दे] मंडी प्रांगण में के किसी खुले स्थान में हुए किसी अतिक्रमण को हटाने की शक्ति होगी और ऐसे हटाये जाने के व्यय उस व्यक्ति द्वारा चुकाये जायेंगे, जिसने कि उक्त अतिक्रमण कारित किया है, और वे उसी रीति से वसूल किये जायेंगे जिस रीति में कि मंडी समिति को शोध्य कोई भी राशि धारा 61 के अधीन वसूली के योग्य होती है ।

2 [ 23. गाड़ियों को रोकने की शक्ति -- (1) किसी भी समय, जबकि-

1 [(एक) बोर्ड के किसी ऐसे अधिकारी या सेवक या किसी शासकीय अधिकारी या सेवक द्वारा, जिसे

बोर्ड या कलेक्टर द्वारा किसी मंडी क्षेत्र में इस निमित्त सशक्त किया गया हो; या]

1.1986 के म. प्र. अधिनियम क्र. 24 की धारा 14 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) ''बोर्ड या किसी मंडी समिति के किसी अधिकारी या सेवक को, जो राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में सशक्त किया गया हो'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

2.1986 के म. प्र. अधिनियम स. 24 की धारा 15 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) धारा 23 प्रतिस्थापित । प्रतिस्थापन से पूर्व धारा निम्न प्रकार थी--

''23. गाड़ियों को रोकने की शक्ति -- (1) किसी भी समय जबकि बोर्ड या किसी मंडी समिति के किसी ऐसे अधिकारी या सेवक द्वारा, जो कि राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में सशक्त किया गया हो, इस प्रकार की अपेक्षा की जाए, किसी गाड़ी जलयान या अन्य वाहन या जो कि मंडी क्षेत्र से बाहर ले जाया जाए या जिसका वहाँ से बाहर ले जाया जाना प्रस्तावित हो, चालक या उसका भारसाधक अन्य व्यक्ति यथास्थिति ऐसी गाड़ी, जलयान या कोई अन्य वाहन को रोक देगा और उस समय तक खड़ा रखेगा, जो कि युक्ति युक्त रूप में आवश्यक हो तथा ऐसे अधिकारी या सेवक को ऐसी गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन में की अन्तर्वस्तुओं की परीक्षा करने देगा तथा उसमें ले जाई गई अधिसूचित कृषि उपज से संबंधित समस्त अभिलेखों का निरीक्षण करने देगा और अपना नाम व पता गाडी, जलयान या अन्य वाहन के स्वामी का और ऐसी गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन में ले जाई गई अधिसूचित कृषि उपज के स्वामी का नाम तथा पता देगा ।

(2) बोर्ड या किसी मंडी समिति के उस अधिकारी या सेवक को, जो कि उपधारा (1) के अधीन सशक्त किया गया हो, किसी ऐसी अधिसूचित कृषि उपज का, जो किसी गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन में मंडी क्षेत्र से बाहर ले जाई गई हो या जिसका वहाँ से बाहर ले जाया जाना प्रस्तावित हो, अभिग्रहण करने की शक्ति होगी, यदि ऐसे अधिकारी या सेवक के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि ऐसी उपज के संबंध में इस अधिनियम के अधीन शोध्य किसी फीस या अन्य रकम का भुगतान नहीं किया गया है । ऐसे अभिग्रहण की रिपोर्ट पूर्वोक्त अधिकारी या सेवक द्वारा इस अधिनियम के अधीन अपराधी का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट को तत्काल की जाएगी और दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (क्रमांक 5 सन् 1898) की धारा 523 524 तथा 525 के उपबंध यथाशक्य पूर्वोक्त प्रकार से अभिग्रहीत की गई अधिसूचित कृषि उपज के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार कि वे किसी पुलिस अधिकारी द्वारा अभिग्रहीत की गई संपत्ति के संबंध में लागू होते हैं ।''

1. 2001 के म. प्र. अधिनियम क. 28 की धारा 5 द्वारा ( दिनांक 27-12-2001 से) प्रतिस्थापित।

केवल म. प्र. में प्रवृत्त । प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त खंड निम्न प्रकार था—

''(एक) बोर्ड के किसी ऐसे अधिकारी या सेवक द्वारा, जिसे बोर्ड द्वारा किसी मंडी क्षेत्र में इस निमित्त सशक्त किया गया हो; या ।''

2. 1997 के म.प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 16 द्वारा ( दिनांक 15-6-1997 से) ''राज्य

विपणन सेवा'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(दो) संबंधित मंडी क्षेत्र में, की 2[राज्य मंडी बोर्ड सेवा] के किसी सदस्य द्वारा;

(तीन) मंडी समिति के किसी भी ऐसे अधिकारी या सेवक द्वारा, जिसे मंडी समिति द्वारा संबंधित मंडी क्षेत्र में इस संबंध में सशक्त किया गया हो,

ऐसी अपेक्षा की जाये तो यथास्थिति किसी भी गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन का चालक या उसका भारसाधक कोई अन्य व्यक्ति, यथास्थिति ऐसी गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन को रोक देगा और उसे उतने समय तक खड़ा रखेगा जो कि युक्तियुक्त रूप से आवश्यक हो तथा ऐसे व्यक्तियों को ऐसी गाड़ी जलयान या अन्य वाहन में की अन्तर्वस्तुओं की परीक्षा करने देगा और ले जाई जा रही अधिसूचित कृषि-उपज से संबधित समस्त अभिलेखों का निरीक्षण करने देगा, और अपना नाम और पता तथा उस गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन के स्वामी का नाम और पता और ऐसी गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन में ले जाई जा रही अधिसूचित कृषि-उपज के स्वामी का नाम और पता देगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन सशक्त किये गये व्यक्तियों को किसी ऐसी अधिसूचित कृषि उपज को, जो किसी गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन में मंडी- क्षेत्र के भीतर लाई गई है या मंडी- क्षेत्र से बाहर ले जाई गई है या जिसका मंडी- क्षेत्र से बाहर ले जाया जाना प्रस्तावित है, अभिगृहीत करने की शक्ति होगी, यदि ऐसे व्यक्ति के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि ऐसी उपज के संबंध में इस अधिनियम के अधीन शोध्य किसी फीस या अन्य रकम का या विक्तो को संदेय मूल्य का भुगतान नहीं किया गया है ।

(3) यदि उपधारा (1) के अधीन सशक्त किये गये किसी व्यक्ति के पास यह संदेह करने का कारण हो कि कोई व्यक्ति धारा 19 के अधीन उससे शोध्य किसी मंडी-फीस के भुगतान से बचने का प्रयत्न कर रहा है या यह कि किसी व्यक्ति ने किसी अधिसूचित कृषि-उपज का क्रय या भंडारण इस अधिनियम के या नियमों के या मंडी- क्षेत्र में प्रवृत्त उपविधियों के उपबंधों में से किसी उपबंध के उल्लंघन में किया है, तो वह किसी भी ऐसे कारबार के स्थान, भंडागार, कार्यालय, स्थापन या गोदाम में, जिसके बारे में उस व्यक्ति के पास जिसे कि उपधारा (1) के अधीन सशक्त किया गया है, यह विश्वास करने का कारण हो कि ऐसा व्यक्ति वहाँ अधिसूचित कृषि उपज का स्टॉक रखता है या ऐसे व्यक्ति ने अधिसूचित कृषि-उपज का स्टॉक तत्समय रख रखा है, प्रवेश कर सकेगा या उसकी तलाशी ले सकेगा 1[और भण्डार में रखी कृषि उपज को अभिगृहीत कर सकेगा] 2[और भंडार में रखी कृषि उपज को अभिगृहीत कर सकेगा और इस प्रकार अभिगृहीत की गई कृषि उपज मंडी समिति के पक्ष में ऐसी रीति में जैसी कि इस प्रयोजन के लिए विहित की जाए, अधिगृहीत की जा सकेगी ।

1 [परन्तु कृषि उपज का अधिहरण करने के पूर्व संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जायेगा ।]

(4) दड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का सं. 2) की धारा 100 457 458 और 459 के उपबंध उपधारा (1) (2) और (3) के अधीन के प्रवेश, तलाशी और अभिग्रहण को उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे पुलिस अधिकारी द्वारा प्रवेश, तलाशी और संपत्ति के अभिग्रहण के संबंध में लागू होते हैं । ऐसे अभिग्रहण की रिपोर्ट पूर्वोक्त व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट को तत्काल की जायेगी ।]

2 [ 24. उधार लेने की शक्ति -- कोई मंडी समिति, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये अपेक्षित धन संचालक की पुर्न मंजूरी से बोर्ड से या किसी बैंक से या किसी अन्य लोक वित्तीय संस्था से उधार ले सकेगी और धारा 38 की उपधारा (2) में अन्तर्विष्ट कोई भी बात इस प्रकार उधार लिये गये धन को लागू नहीं होगी ।

25 संविदाएँ करने की रीति -- (1) इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, स्थावर सम्पत्ति में के हित के क्रय, विक्रय, पट्टे, बन्धक या अन्य अन्तरण के लिये या स्थावर सम्पत्ति में के हित के अर्जन के लिये मंडी समिति की ओर से कोई भी संविदा या करार मंडी समिति की मंजूरी से ही निष्पादित किया जायेगा अन्यथा नहीं ।

(2) उपधारा (1) में यथा उपबंधित के सिवाय-

(क) मंडी समिति का सचिव ऐसे मामलों के संबंध में, जिनके कि बारे में वह संविदा या करार करने

के लिये मंडी समिति के संकल्प द्वारा साधारणत: या विशेषत: प्राधिकृत किया गया हो, मंडी समिति की ओर से संविदा या करार निष्पादित कर सकेगा जहाँ कि ऐसी संविदा या करार की रकम या मूल्य 1[एक हजार] रूपये से अधिक न हो;

1. 2001 के म.प्र. अधिनियम क्र. 28 की धारा 5 द्वारा (दिनांक 27-12-2001 से) जोडा गया । केवल मप्र. में प्रवृत्त । 1986 के म.प्र. अधिनियम स. 24 की धारा 15 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) प्रतिस्थापित । प्रतिस्थापन से पूर्व धारा निम्न प्रकार थी-

''24 उधार लेने की शक्ति -- मंडी समिति इस अधिनियम के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिए अपेक्षित धन राज्य सरकार की र्ख मजूरी से बोर्ड या किसी अन्य अभिकरण से उधार ले सकेगी ।''

(ख) मंडी समिति का अध्यक्ष तथा सचिव मंडी समिति की ओर से संविदा या करार संयुक्त रूप से निष्पादित कर सकेंगे जहाँ कि ऐसी संविदा या करार की रकम या मूल्य 2[पाँच हजार] रुपये से अधिक न हो;

(ग) खंड (क) तथा (ख) में निर्दिष्ट किये गये मामलों से भिन्न किसी मामले में, मंडी समिति की ओर से कोई संविदा या करार मंडी समिति के अध्यक्ष, सचिव तथा उसके एक अन्य सदस्य, जो कि संविदा या करार करने के लिये मंडी समिति के संकल्प द्वारा साधारणत: या विशेषत: प्राधिकृत किया गया हो, द्वारा निष्पादित किया जायेगा ।

(3) मंडी समिति द्वारा की गयी प्रत्येक संविदा लिखित में होगी तथा वह मंडी समिति की ओर से ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा हस्ताक्षरित की जायेगी जो कि उपधारा (2) के अधीन ऐसा करने के लिये प्राधिकृत किये गये हों ।

(4) उपधारा (1) (2) या (3) में उपबंधित किये गये अनुसार निष्पादित की गयी संविदा से भिन्न कोई भी संविदा वैध या मंडी समिति पर आबद्धकर नहीं होगी ।

(5) (क) भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (क्रमांक 16 सन् 1908) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किसी मंडी समिति के अध्यक्ष या किसी सदस्य या अधिकारी या सचिव के लिये यह आवश्यक नहीं होगा कि वह अपनी पदीय हैसियत में अपने द्वारा निष्पादित की गयी किसी लिखत के रजिस्ट्रीकरण से संबंधित किसी कार्यवाही में किसी रजिस्ट्रीकरण कार्यालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा उप-संजात हो या अधिनियम की धारा 58 में उपबंधित किये गये अनुसार हस्ताक्षर करे ।

1. 1986 के म. प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 16 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) ''दो सौ पचास''

शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

2. 1986 के म. प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 16 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) ''एक हजार''

शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

(ख) जहाँ कोई लिखत इस प्रकार निष्पादित की गयी हो, वहाँ रजिस्ट्रीकरण अधिकारी जिसे कि ऐसी लिखत रजिस्ट्रीकरण के लिये प्रस्तुत की गयी हो, यदि वह उचित समझे, ऐसे अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी या सचिव को यह निर्दिष्ट करेगा कि वह उस लिखित के बारे में जानकारी दे और रजिस्ट्रीकरण अधिकारी उसके (लिखत के) निष्पादन के बारे में अपना समाधान हो जाने पर लिखत को रजिस्ट्रीकृत करेगा ।

(6) जहाँ कोई संविदा या करार किसी मंडी समिति की ओर से किया गया हो, वहाँ मंडी समिति का सचिव उस तथ्य की रिपोर्ट मंडी समिति को उसके उस सम्मिलन में देगा जो ऐसी जो ऐसी संविदा या करार के किये जाने की तारीख से अव्यवहित पश्चात् बुलाया गया हो तथा किया गया हो ।

अध्याय 4- क - बजट

25-  बजट तैयार किया जाना तथा मंजूर किया जाना  2 [(1) प्रबंध संचालक, मंडी समितियों को ऐसे मानकों पर जैसे कि विहित किए जाएँ, या तो क, ख, ग, या घ प्रवर्ग में वर्गीकृत करेगा । समस्त मंडी समितियाँ, आगामी वर्ष के लिए आय तथा व्यय का अपना बजट, बोर्ड द्वारा विहित मार्गदर्शक सिद्धान्तों के अनुसार, प्रत्येक वर्ष एक अप्रैल के पूर्व तैयार करेंगी एवं उसे पारित करेंगी :

परन्तु ''क'' तथा ''ख'' श्रेणी की मंडी समितियों का बजट प्रबंध संचालक द्वारा पारित किया जायेगा।]

1. म. प्र. अधिनियम क्र. 18 सर 1979 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) अन्त: स्थापित ।

2. म. प्र. अधिनियम क्र. 27 सर 1997 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित और म. प्र.

अधिनियम क्रमांक 28 सन् 2001 द्वारा 21-12-2001 से केवल म. प्र. मे प्रवृत्त ।

(2) यदि मंजूर किये गये बजट में किसी मद पर व्यय करने के लिये कोई प्रावधान न हो तो जब तक कि किसी अन्य शीर्ष की बचत में से पुनर्विनियोग द्वारा उसकी पूर्ति नहीं की जा सकती हो, उस मद पर किसी मंडी समिति द्वारा कोई भी व्यय उपगत नहीं किया जायेगा ।

(3) मंडी समिति उस वर्ष के दौरान, जिसके कि लिये कोई बजट मंजूर किया जा चुका हो, किसी भी समय, पुनरीक्षित या पूरक बजट उसी रीति में पारित करवा सकेगी तथा मंजूर करवा सकेगी मानों कि वह मूल बजट हो ।

1 [(4) मंडी समिति, उपधारा (6) में निर्दिष्ट स्थायी निधि से भिन्न अपनी निधि में से सन्निर्माण संकर्मो की मंजूरी दे सकेगी और ऐसे कार्य का निष्पादन मंडी समिति द्वारा अनुमोदित नक्शे तथा डिजाइन के आधार पर ऐसी रीति में करा सकेगी, जैसी बोर्ड द्वारा विहित की जाए ।

(5) सन्निर्माण संकर्मों के निष्पादन के लिये बोर्ड या राज्य सरकार के किसी ऐसे विभाग को या उपक्रम को, जिसे राज्य सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिये प्राधिकृत किया जाए, सौंपा जा सकेगा ।]

1. 2001 के म.प्र. अधिनियम क्र. 28 की धारा 6 द्वारा (दिनांक 27-12-2001 से) प्रतिस्थापित। केवल म. प्र. में प्रवृत्त ।

 

1 [(6) मंडी समिति अपनी सकल प्राप्तियो के, जिनमे अनुज्ञप्ति फीस और मंडी फीस समाविष्ट है, बीस प्रतिशत की दर से रकम स्थायी निधि में जमा करने हेतु प्रावधान अपने बजट मे करेगी । स्थायी निधि में से कोई भी व्यय, संचालक के पूर्व अनुमोदन से या उसके द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार ही उपगत किया जायेगा अन्यथा नहीं । इस निधि में से या धारा 38 की उपधारा (1) के अधीन यथा उपबंधित अधिशेष रकम में से कोई भी व्यय धारा 38 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट बजट में प्रस्तावित नहीं किया जाएगा ।]

अध्याय 5

2 [ राज्य मंडी बोर्ड सेवा ]

3 [26. राज्य मंडी बोर्ड सेवा का गठन –- (1) बोर्ड तथा मंडी समितियों के लिए अधिकारियो तथा कर्मचारियों का प्रबंध करने के प्रयोजन के लिये बोर्ड द्वारा एक सेवा का गठन किया जायेगा जिसे राज्य मंडी बोर्ड सेवा कहा जायेगा ।

1. 1986 के म. प्र. अधिनियम स. 24 की धारा 17 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) अंत: स्थापित।

2. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 18 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) ''मंडी समिति का कर्मचारीवृन्द'' शब्दों के स्थान पर स्थापित ।

3. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 19 द्वारा ( दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त धारा निम्न प्रकार थी--

''26. राज्य विपणन सेवा का गठन -- (1) राज्य सरकार मंडी समितियों के लिए अधिकारियों का प्रबंध करने के प्रयोजन के लिए एक सेवा का विहित रीति में गठन करेगी, जिसे राज्य विपणन सेवा कहा जाएगा।

(2) राज्य सरकार, राज्य विपणन सेवा के सदस्यों की भर्ती अर्हता, नियुक्ति, पदोन्नति, वेतनमान, छुट्टी, छुट्टी भत्ता, कार्यकारी भत्ता, उधारों, पेंशन, उपदान, वार्षिकी, अनुकम्पा निधि, भविष्यनिधि, पदच्युति, हटाए जाने, आचरण, विभागीय दंड, अपीलों तथा अन्य सेवा शर्तों के संबंध में नियम बना सकेगी:

परन्तु मंडी समिति को राज्य विपणन सेवा के सदस्यों को पदच्युत करने, हटाने, पदावनत करने, पेंशन, उपदान, वार्षिकी तथा भविष्य निधि की रकम में कमी करने या उपार्जित छुट्टी करने की शक्ति के सिवाय ऐसे व्यक्तियों पर नियंत्रण की समस्त शक्तियाँ प्राप्त होगी

परन्तु यह और भी कि मंडी समिति लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से और संचालक की पूर्व अनुज्ञा से राज्य विपणन सेवा के किसी ऐसे सदस्य को, जो उसके नियंत्रण के अधीन कार्य कर रहा हो, निलंबित कर सकेगी ।

(3) राज्य विपणन सेवा के सदस्यों को उनकी सेवा शर्तों के अनुसार किए जाने के लिए अपेक्षित वेतन, भत्ते, उपदान या अन्य संदाय मंडी समिति निधि पर भारित होंगे ।

(4) संचालक, राज्य विपणन सेवा के किसी सदस्य का स्थानांतरण एक मंडी समिति से किसी अन्य मंडी समिति को कर सकेगा ।

(5) [***]”

(2) बोर्ड राज्य मंडी बोर्ड सेवा के सदस्यों की भर्ती, अर्हता, नियुक्ति, पदोन्नति, वेतनमान, छुट्टी, छुट्टी वेतन, कार्यकारी भत्ता, उधार, पेंशन, उपदान ग्रेज्यूटी वार्षिकी (एन्युटी) अनुकम्पा निधि, भविष्य निधि, पदच्युति, हटाये जाने, आचरण, विभागीय जाँच, दंड, अपील तथा अन्य सेवा शर्तों के संबंध में विनियम बनाएगा ।

(3) राज्य मंडी बोर्ड सेवा के ऐसे सदस्यों को, जो मंडी समिति के नियंत्रण के अधीन कार्य कर रहे हैं, दिये जाने के लिये अपेक्षित, वेतन, भत्ते, उपदान तथा अन्य संदाय मंडी समिति निधि पर भार होंगे ।

(4) किन्हीं भी नियमों या विनियमों के अधीन नियुक्त किये गये या आमेलित किये गये ऐसे अधिकारी तथा कर्मचारी, जो उपधारा (1) के अधीन राज्य मंडी बोर्ड सेवा के गठन के अव्यवहित पूर्व राज्य विपणन सेवा, बोर्ड सेवा के सदस्य थे और मंडी समिति सेवा के नाकेदार (सहायक उपनिरीक्षक) राज्य मंडी बोर्ड सेवा के सदस्य समझे जायेंगे ।]

1 [ 27. सचिव और अन्य अधिकारी -- (1) प्रत्येक मंडी समिति में एक सचिव और ऐसे अन्य अधिकारी होंगे 1 [जो राज्य मंडी बोर्ड सेवा के सदस्य होंगे या जो राज्य सरकार या शासकीय सहायता प्राप्त सहकारी संस्थाओ या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सेवाओ के ऐसे सदस्य हो, जिनकी सेवाएँ बोर्ड द्वारा प्रतिनियुक्ति पर अभिप्राप्त की गई हों :]

परन्तु एक से अधिक मंडी समितियों के लिये किसी एक अधिकारी की नियुक्ति की जा सकेगी ।

''27. सचिव और अन्य अधिकारी -- (1) प्रत्येक मंडी समिति का एक सचिव होगा जो राज्य विपणन सेवा का सदस्य होगा और उसकी नियुक्ति संचालक द्वारा की जाएगी । सचिव, मंडी समिति का प्रधान कार्यपालक अधिकारी होगा तथा मंडी समिति के अन्य अधिकारी तथा सेवक उसके अधीनस्थ होंगे ।

(2) सहायक सचिव और विपणन निरीक्षक को सम्मिलित करते हुए प्रत्येक मंडी समिति के ऐसे अन्य अधिकारी होंगे जो राज्य विपणन सेवा के सदस्य होंगे जैसे कि राज्य सरकार अवधारित करे और वे संचालक द्वारा नियुक्त किए जाएँगे

परन्तु एक अधिकारी एक से अधिक मंडी समितियों के लिए नियुक्त किया जा सकेगा ।''

(2) सचिव, मंडी समिति का प्रधान कार्यपालन अधिकारी होगा और उस मंडी समिति में पदस्थ समस्त अधिकारी तथा कर्मचारी उसके अधीनस्थ होंगे ।

(3) सचिव, मंडी समिति के प्रति जवाबदार होगा और मंडी समिति के नियंत्रण के अधीन होगा ।]

1. सन 2000 के म.प्र. अधिनियम सं. 31 की धारा 3 द्वारा (दिनांक 5-2-2001 से) ''जो राज्य मंडी बोर्ड सेवा के सदस्य होंगे'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

2. 1986 के म.प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 20 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) लोप किया गया। लोप किए जाने से पहले । धारा निम्न प्रकार थी--

'' 28. राज्य विपणन सेवा के अन्य अधिकारी -- प्रत्येक मंडी समिति के लिए अन्य अधिकारी जैसे कि राज्य सरकार अवधारित करे, होंगे जो कि राज्य विपणन सेवा के सदस्य होंगे और वे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएँगे :

परन्तु एक अधिकारी एक से अधिक मंडी समितियों के लिए नियुक्त किया जा सकेगा ।''

1 [29. ***]

3 0. कर्मचारीवृन्द की नियुक्ति -- (1) प्रत्येक मंडी समिति ऐसे अन्य अधिकारियों तथा सेवकों की नियुक्ति कर सकेगी जो कि उसके कर्त्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिये आवश्यक तथा उचित हों :

परन्तु किसी भी पद का सृजन संचालक की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं किया जायेगा ।

(2) मंडी समिति उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किये गये अधिकारियों तथा सेवकों की नियुक्ति वेतन छुट्टी, छुट्टी भत्ते, पेंशन, उपदान, भविष्य निधि में अभिदाय तथा अन्य सेवा शर्तों को विनियमित करने के लिये तथा उनको शक्तियाँ, कर्त्तव्य एव कृत्य प्रत्यायोजित करने के लिये उपलब्ध करने के हेतु उपविधियाँ बना सकेगी ।

2 [(3) इस अधिनियम में या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी संचालक, उपधारा (4) में विनिर्दिष्ट शर्तों के अध्यधीन रहते हुए, किसी मंडी समिति के किसी भी ऐसे अधिकारी या सेवक को, जिसका अधिकतम वेतनमान छह सौ रुपये से अधिक हो, उस राजस्व संभाग की किसी अन्य मंडी समिति में प्रतिनियुक्ति पर स्थानान्तरित कर सकेगा और संचालक के लिये यह आवश्यक नहीं होगा कि वह इस उपधारा के अधीन प्रतिनियुक्ति पर स्थानान्तरण का आदेश पारित करने के पूर्व, संबंधित मंडी समिति से या अधिकारी या सेवक से परामर्श करे ।

(4) उपधारा (3) के अधीन स्थानान्तरित किया गया संबंधित अधिकारी या सेवक--

(क) मूल मंडी समिति में धारित पद पर अपना धारणधिकार रखेगा;

(ख) ऐसे वेतन या भत्तों के सबध में, जिनके लिए वह मूल मंडी समिति में बने रहने की दशा में

हकदार होगा, अलाभकारी स्थिति में नहीं रखा जायेगा;

1. 1997 के अधिनियम स. 27 की धारा 20 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) लोप किया गया । लोप किए जाने से पूर्व धारा निम्न प्रकार थी--

''29 राज्य विपणन सेवाका गठनहोने तकके लिए सचिव तथा अन्य अधिकारियों की नियुक्ति - धारा 26 के अधीन राज्य विपणन सेवा का गठन होने तक के लिए या जब कि ऐसी सेवा का कोई सदस्य धारा 27 या 28 के अधीन सचिव या अन्य अधिकारी के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए उपलब्ध न हो तो राज्य सरकार, सरकार के किसी अधिकारी को सचिव या ऐसे अन्य अधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकेगी ।''

2. 1986 के म.प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 21 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) अंतःस्थापित।

(ग) ऐसी दर पर प्रतिनियुक्ति भत्ता पाने का हक़दार होगा जैसा कि प्रबंध संचालक, साधारण या

विशेष आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे; और

(घ) ऐसे अन्य निबंधनो और शर्तो द्वारा जिनके अंतर्गत अनुशासनिक नियंत्रण भी है, शासित होगा जैसा कि संचालक, साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे ।]

अध्याय 6

व्यापार का विनियमन

31. मंडी क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों का विनियमन -- कोई भी व्यक्ति, किसी अधिसूचित कृषि उपज के संबंध में मंडी क्षेत्र में, आढ़तिया, व्यापारी, दलाल, तुलैया, हम्माल, सर्वेक्षक, भांडागारिक प्रसंस्करण के या दबाने (प्रेसिग) के कारखानों के स्वामी या अधिभोगी या ऐसे अन्य मंडी कृत्‍यकारी के रूप में कार्य इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों तथा उपविधियों के उपबंधों के अनुसार ही करेगा अन्यथा नहीं ।

32. अनुज्ञप्तियाँ मंजूर करने की शक्ति -- (1) धारा 31 में विनिर्दिष्ट किया गया प्रत्येक व्यक्ति, जो मंडी क्षेत्र में कार्य करना चाहता हो, अनुमति को मंजूरी या उसके नवीकरण के लिये मंडी समिति को ऐसी रीति में तथा ऐसी कालावधि के भीतर, जैसी कि उपविधियों द्वारा विहित की जाए, आवेदन करेगा ।

(2) ऐसे प्रत्येक आवेदन-पत्र के साथ ऐसी फीस संलग्‍न की जायेगी जैसी कि संचालक, विहित की गयी सीमाओं के अध्यधीन रहते हुए, इस संबंध में विनिर्दिष्ट करे ।

(3) मंडी समिति अनुज्ञप्ति मंजूर कर सकेगी या उसका नवीकरण कर सकेगी या लिखित में अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, अनुज्ञप्ति को मंजूर करने या उसका नवीकरण करने से इंकार कर सकेगी :

1 [परन्तु यदि मंडी समिति, अनुज्ञप्ति की मंजूरी या उसके नवीकरण के आवेदन-पत्र प्राप्त होने की तारीख से छ: सप्ताह के भीतर अनुज्ञप्ति मंजूर करने में या अनुज्ञप्ति का नवीकरण करने में चूक करती है तो यह समझा जायेगा कि अनुज्ञप्ति यथा स्थिति मंजूर कर दी गई है या उसका नवीकरण कर दिया गया है :

2 [परन्तु यह और भी कि यदि किसी आवेदक के विरुद्ध मंडी समिति को शोध्य, जिनके अंतर्गत मध्यप्रदेश निराश्रितों एवं निर्धन व्यक्तियों की सहायता अधिनियम, 1970 के अधीन शोध्य भी आते हैं, बकाया हैं तो अनुज्ञप्ति नवीकृत नहीं की जाएगी :

परन्तु यह भी कि कोई भी अनुज्ञप्ति किसी अवयस्क को मंजूर नहीं की जाएगी ।]

(4) इस धारा के अधीन मंजूर की गयी या नवीकृत की गयी समस्त अनुज्ञप्तियाँ इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों तथा उपविधियों के उपबंधों के अध्यधीन होगी ।

3 [(5) कोई आढ़तिया या दलाल या दोनों, कृषक विक्रेता या व्यापारी-क्रेता के बीच के किसी संव्यवहार में, कृषक बिना की ओर से न तो कोई कार्य करेगा और न ही वह कमीशन या दलाली के मद्दे कोई रकम, कृषक- विक्रेता को देय विक्रय आगम में से काटेगा ।]

4 [5[32-  एक से अधिक मंडी क्षेत्रो के लिये अनुज्ञप्ति — (1) धारा 31 में विनिर्दिष्ट किया गया प्रत्येक जो एक से अधिक मंडी क्षेत्रो में कार्य करना चाहता हो, अनुज्ञप्ति की मंजूरी या उसके नवीकरण के लिए राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित ऐसे प्राधिकारी/अधिकारी को ऐसी रीती में तथा ऐसी कालावधि के भीतर और ऐसी शर्तो पर, जैसी की नियमो में विहित की जाएँ, आवेदन करेगा ।

1. 1979 के म. प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 18 द्वारा ( दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित।

2. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 21 द्वारा (दि. 15-6-1997 से) अंत: स्थापित । पूर्व परन्तुक निम्न प्रकार था-

''परन्तु यदि मंडी समिति, अनुज्ञप्ति की मंजूरी या उसके नवीकरण के लिए आवेदन प्राप्त होने की तारीख से छ: सप्ताह के भीतर अनुज्ञप्ति मंजूर करने में या उक्त तारीख से एक पखवाड़े के भीतर अनुज्ञप्ति का नवीकरण करने में चूक करती है तो यह समझा जाएगा कि यथास्थिति अनुज्ञप्ति मंजूर कर दी गई है या नवीकरण कर दिया गया है ।''

3. उपधारा (5) का 1986 के म. प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 22 द्वारा ( दिनांक 21-7-1986

से) लोप की गई थी और 1987 के अधिनियम सं. 26 की धारा 3 द्वारा (दिनांक 21-7-1987 से) पुन: अंत: स्थापित की गई ।

4. म. प्र. कृषि-उपज मण्डी (संशोधन) अधिनियम, 2003 (क्रमांक 15 सन् 2003) द्वारा अंत: स्थापित 1 म. प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 28-4-2003 पेज 473-474 (8) पर प्रकाशित । केवल म. प्र. में प्रवृत्त ।

(2) राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित प्राधिकारी! अधिकारी अनुज्ञप्ति मंजूर कर सकेगा या उसका नवीकरण कर सकेगा या लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से अनुज्ञप्ति को मंजूर करने या उसका नवीकरण करने से इंकार कर सकेगा ।

(3) इस धारा के अधीन मंजूर की गई या नवीकृत की गई समस्त अनुज्ञप्तियाँ इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाए गए नियमों और उपविधियों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए होंगी ।]

33. अनुज्ञप्तियाँ रद्द करने या निलम्बित करने की शक्ति -- (1) उपधारा (4) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए मंडी समिति, लिखित में अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, किसी अनुज्ञप्ति को निलम्बित या रद्द कर सकेगी-

(क) यदि अनुज्ञप्ति जानबूझकर दुर्व्यपदेशन या कपट द्वारा प्राप्त की गई हो; या

(ख) यदि अनुज्ञप्ति का धारक या कोई सेवक या उसकी (अनुज्ञप्ति धारक की) अभिव्यक्त या विवक्षित अनुज्ञा से उसकी ओर से कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति अनुज्ञप्ति के निबंधनों या शर्तों में से किसी भी निबन्धन या शर्त को भंग करता है; या

(ग) यदि अनुज्ञप्ति का धारक अन्य अनुज्ञप्तिधारकों के साथ मिलकर अधिसूचित कृषि उपज के विपणन को मंडी प्रांगण/प्रांगणों में जानबूझकर बाधित करने, निलम्बित करने या रोकने के आशय से मंडी क्षेत्र में कोई कार्य करे या अपना प्रसामान्य कारबार चलाने से प्रविरत रहे और जिसके परिणामस्वरूप किसी उपज का विपणन बाधित हो गया हो, निलम्बित हो गया हो; या रुक गया हो;

(घ) यदि अनुज्ञप्ति का धारक दिवालिया हो गया हो;

(ड) यदि अनुज्ञप्ति का धारक कोई ऐसी निर्हता जैसी कि विहित की जाये, उपगत कर ले; या

(च) यदि अनुज्ञप्ति का धारक इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराया जाये।

(2) उपधारा (4) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, अध्यक्ष, किसी अनुज्ञप्ति को, किसी ऐसे कारण से, जिस कारण से, कि कोई मंडी समिति किसी अनुज्ञप्ति को उपधारा (1) के अधीन निलम्बित कर सकती हो, एक मास से अनधिक कालावधि के लिये, लिखित में अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, निलम्बित कर सकेगा :

परन्तु ऐसा आदेश उसके किये जाने की तारीख से 1[सात दिन] 2[दस दिन] की कालावधि का अवसान होने पर प्रभावी नहीं रहेगा, यदि ऐसे अवसान के पूर्व उस आदेश की पुष्टि मंडी समिति द्वारा नहीं कर दी गई हो ।

(3) उपधारा (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किन्तु उपधारा (4) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, संचालक, लिखित में अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, किसी भी अनुज्ञप्ति को, जो कि मंडी समिति द्वारा मंजूर की गई हो या नवीकृत की गई हो आदेश द्वारा निलम्बित या रद्द कर सकेगा.

परन्तु इस उपधारा के अधीन कोई भी अग्देश, मंडी समिति को सूचना दिये बिना, नहीं किया जायेगा।

(4) इस धारा के अधीन कोई अनुज्ञप्ति तब तक निलम्बित या रद्द नहीं की जायेगी, जब तक कि उसके धारक को ऐसे निलम्बन या रद्दकरण के विरुद्ध कारण दर्शाने की युक्तियुक्त अवसर न दिया गया हो।

2. म. प्र. कृषि उपज मण्डी (संशोधन) अधिनियम, 2003 (क्रमांक 15 सन 2003) द्वारा शब्द ''सात दिन'' के स्थान पर शब्द ''दस दिन'' स्थापित । म. प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 28-4-2003 पेज 473-474 (8) पर प्रकाशित । म. प्र. में प्रवृत्त ।

34 अपील -- (1) अध्यक्ष, मंडी समिति या प्रबंध संचालक के किसी आदेश द्वारा, जोकि 1[यथास्थिति धारा 32 या धारा 33] के अधीन पारित किया गया हो, व्यथित कोई भी व्यक्ति-

(क) जहाँ ऐसा आदेश अध्यक्ष द्वारा पारित किया गया हो, वहाँ मंडी समिति को;

(ख) जहाँ ऐसा आदेश मंडी समिति द्वारा पारित किया गया हो, वहाँ प्रबंध संचालक को; और

(ग) जहाँ ऐसा आदेश संचालक द्वारा पारित किया गया हो, वहाँ 2[राज्य सरकार] को;

अपील कर सकेगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन--

(एक) जहाँ ऐसी अपील अध्यक्ष के आदेश के विरुद्ध हो, आदेश की प्राप्ति की तारीख से सात दिन के भीतर; और

(दो) जहाँ ऐसी अपील मंडी समिति या संचालक के आदेश के विरुद्ध हो, आदेश की प्राप्ति की तारीख से तीस दिन के भीतर;

ऐसी रीति में, जैसी कि 3[***] विहित की जाए, की जायेगी ।

(3) अपीलीय प्राधिकारी, यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझे, उस आदेश को, जिसके विरुद्ध अपील की गयी है, ऐसी कालावधि के लिये जैसी कि वह उचित समझे, रोक सकेगा ।

(4) अध्यक्ष, मंडी समिति तथा संचालक द्वारा पारित किया गया आदेश उस धारा के अधीन अपील में दिये गये आदेश के अध्यधीन रहते हुए, अंतिम होगा तथा किसी विधि न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा ।

35. इस अधिनियम के अधीन विहित की गयी व्यापारिक छूटों से भिन्न व्यापारिक छूटों का प्रतिषेध -- (1) इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन विहित की गयी छूट से भिन्न कोई भी व्यापारिक छूट अधिसूचित कृषि-उपज के संबंध में किसी भी संव्यवहार में किसी भी मंडी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति द्वारा न तो दी जायेगी अथवा न वसूल की जायेगी और कोई भी सिविल न्यायालय किसी ऐसे संव्यवहार से उद्भूत होने वाले किसी वाद या कार्यवाही में, किसी ऐसी व्यापारिक छूट पर, जो कि इस प्रकार विहित न की गयी हो, ध्यान नहीं देगा ।

(2) किसी पात्र के वजन का उसी प्रकार के पात्र से धड़ा दिया जायेगा तथा पात्र के वजन का धड़ा करने के लिये किसी भी रूप में कोई भी कटौती नहीं करने दी जायेगी ।

36. अधिसूचित कृषि उपज का मंडियों में विक्रय — 1 [(1) मूल मंडी में विक्रय के लिये लाई गई समस्त अधिसूचित कृषि-उपज, उपधारा (2) के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, ऐसी उपज के लिये विनिर्दिष्ट किये गये मंडी प्रांगण/प्रांगणों में या उपविधियों में यथाउपबंधित ऐसे अन्य स्थान पर बेची जाएगी ।]

2 [परन्तु संविदा खेती के अधीन उत्पादित की गई कृषि उपज को मंडी प्रांगण में लाना आवश्यक नहीं होगा तथा उसे किसी भी अन्य स्थान पर किसी ऐसे व्यक्ति को विक्रित किया जाएगा, जो करार के अधीन उसे क्रय करने के लिए सहमत हैं ।]

1. 2002 के म. प्र. अधिनियम सख्यांक 9 की धारा 2 द्वारा दिनांक 20-6-2002 से प्रतिस्थापित।

(म प्र. राजपत्र असाधारण, दिनांक 3-5-2002 पृष्ठ 422 पर प्रकाशित ।)प्र . में प्रवृत्त ।

2. म. प्र. कृषि उपज मण्डी (संशोधन) अधिनियम, 2003 (क्रमांक 15 सन् 2003) द्वारा अंत:

स्थापित । म. प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 28-4-2003 पेज 473 - 474 (8) पर प्रकाशित। म. प्र. में प्रवृत्त ।

(2) ऐसी अधिसूचित कृषि-उपज, जो वाणिज्यिक संव्यवहार के अनुक्रम में अनुज्ञापित व्यापारियों द्वारा मंडी-क्षेत्र के बाहर से क्रय की जाये, मंडी-क्षेत्र में कहीं भी उपविधियों के उपबंधों के अनुसार लायी तथा बेची जा सकेगी ।

(3) मंडी-प्रांगण में विक्रय के लिये लायी गयी अधिसूचित कृषि उपज की कीमत निविदा बोली या खुले नीलाम पद्धति द्वारा तय की जायेगी तथा तय हुए मूल्य में किसी भी कारण से कोई कटौती नहीं की जायेगी:

1 [परन्तु मंडी प्रांगण में ऐसी कृषि उपज की, जिसके लिये कि राज्य सरकार द्वारा समर्थन कीमत घोषित की गई है, कीमत उस कीमत से कम निर्धारित नहीं की जायेगी जो इस प्रकार नियत की गई कीमत से कम पर प्रारंभ नहीं होने दी जायेगी ।]

(4) 2[इस प्रकार क्रय की गई समस्त अधिसूचित कृषि उपज की तौल या माप ऐसे व्यक्ति हारा और ऐसी प्रक्रिया द्वारा की जायेगी जैसे कि उपविधियों में उपबंधित की जाए या उपमंडी प्रांगण या मंडी समिति द्वारा इस प्रयोजन के लिये विनिर्दिष्ट किये गये किसी अन्य स्थान पर की जायेगी:

परन्तु केला, पपीता या किसी ऐसी अन्य विनश्वर कृषि उपज की, जिसे राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे, यथास्थिति तौल, माप या गणना किसी अनुज्ञप्त तुलैया द्वारा ऐसे स्थान पर की जायेगी जहाँ ऐसी उपज उगाई गई हो ।]

37. क्रय तथा विक्रय की शर्तें -- (1) कोई भी व्यक्ति, जो अधिसूचित कृषि उपज का मंडी क्षेत्र में क्रय करेगा, विक्रेता के पक्ष में तीन प्रतियों में करार ऐसे प्ररूप में, जैसा कि विहित किया जाये, निष्पादित करेगा । करार की एक प्रति क्रेता के द्वारा रखी जायेगी, एक प्रति विक्रेता को दी जायेगी तथा शेष प्रति मंडी समिति के अभिलेख में रखी जायेगी ।

2 [(2) (क) मंडी प्रांगण में क्रय की गई कृषि उपज कीमत का भुगतान विक्रेता को उसी दिन मंडी प्रांगण में किया जायेगा;

(ख) यदि क्रेता खंड (क) के अधीन भुगतान नहीं करता है तो वह विक्रेता को देय कृषि उपज की कुल कीमत के एक प्रतिशत प्रतिदिन की दर से अतिरिक्त भुगतान पाँच दिन के भीतर करने का दायी होगा;

2. 1986 के म. प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 25 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) प्रतिस्थापित ।

प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त उपधारा निम्न प्रकार थी--

''(2) मंडी प्रांगण में क्रय की गई कृषि उपज की कीमत का विकेता को चौबीस घटे के भीतर भुगतान किया जाएगा । ''

(ग) यदि क्रेता उपरोक्त खंड (क) तथा (ख) के अधीन विक्रेता को भुगतान के साथ अतिरिक्त भुगतान ऐसे क्रय के दिन से पाँच दिन के भीतर नहीं करता है तो उसकी अनुज्ञप्ति छठवें दिन को रद्द कर दी गई समझी जायेगी और उसे या उसके नातेदार को ऐसे रद्दकरण की तारीख से एक वर्ष की कालावधि के लिये इस अधिनियम के अधीन कोई अनुज्ञप्ति मंजूर नहीं की जायेगी ।

स्पष्टीकरण -- इस खड के प्रयोजन की लिये नातेदार'' से अभिप्रेत है ऐसा नातेदार जैसा कि धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (क) के स्पष्टीकरण में विनिर्दिष्ट है ।

(3) अधिसूचित कृषि उपज के उत्पादकों के साथ अनुज्ञापित व्यापारियों द्वारा ऐसी उपज का कोई भी थोक संव्यवहार 1[मंडी प्रांगण] 2[या उपविधियों में उपबंधित ऐसे अन्य स्थान] में के सिवाय, सीधे नहीं किया जायेगा ।

(4) आढ़तिया केवल अपने नियोक्ता' व्यापारी से ही ऐसी दरों से, जैसी कि उपविधियों में विनिर्दिष्ट की जाये, अपना कमीशन वसूल कर सकेगा, जिस कमीशन के अन्तर्गत ऐसे व्यय आते हैं जो उपज के भण्डारकरण के संबंध में तथा उसके द्वारा की गयी अन्य सेवाओं के संबंध में उसके द्वारा उपगत किये जायें।

(5) प्रत्येक आढ़तिया इस बात के लिये दायी होगा कि वह-

(क) अपने को देय कमीशन से भिन्न किसी प्रभार के बिना अपने नियोक्ता का माल सुरक्षित

अभिरक्षा में रखे; और

(ख) ज्योंही माल बिक जाय, उसकी कीमत का भुगतान अपने नियोक्ता को कर दे चाहे उसने ऐसे

माल के क्रेता से कीमत प्राप्त की हो या न प्राप्त की हो ।

1. 2002 के म. प्र. अधिनियम संख्यांक 9 की धारा 3 द्वारा दिनांक 20-6-2002 से ''मंडी प्रांगण में के सिवाय'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित । म. प्र. में प्रवृत्त ।

2.1986 के म. प्र. अधिनियम स. 24 की धारा 25 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) अंत: स्थापित।

1 [ 37  संविदा खेती के अधीन अधिसूचित कृषि - उपज के विपणन का विनियमन -- (1) संविदा खेती, संविदा खेती के कृषि-उपज के उत्पादक और क्रेता के बीच किसी लिखत करार के अधीन ऐसी रीति में और ऐसी प्रक्रिया के अनुसार की जाएगी जैसी कि उप-विधियों में विहित की जाए । संविदा खेती के लिए निष्पादित किया जाने वाला करार ऐसे प्ररूप में होगा जिसमें ऐसी विशिष्टियाँ, निबंधन तथा शर्तें अंतर्विष्ट होंगी जैसी कि उप-विधियों द्वारा विहित की जाए ।

स्पष्टीकरण --

इस धारा के प्रयोजन के लिए ''उत्पादक और क्रेता'' से अभिप्रेत है ऐसा व्यक्ति जो संविदा खेती के

किसी लिखित करार के अधीन कृषि-उपज क्रमश: उत्पादित और क्रय करता है ।

(2) क्रेता, संविदा खेती के लिखित करार के रजिस्ट्रीकरण के लिए मण्डी समिति को एक आवेदन प्रस्तुत करेगा । मण्डी समिति, उसे ऐसी रीति में तथा उसे निबन्धनों तथा शर्तों पर जैसी कि उप-विधियों द्वारा विहित की जाए, रजिस्टर करेगी ।

(3) यदि करार के उपबंधों के संबंध में पक्षकारों के बीच कोई विवाद उद्भूत होता है तो कोई भी पक्षकार विवादों पर मध्यस्थता करने के लिए मण्डी समिति के अध्यक्ष को आवेदन प्रस्तुत कर सकेगा । मण्डी समिति का अध्यक्ष पक्षकारों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात् विवाद का हल करेगा ।

1. म.प्र. कृषि उपज मण्डी (संशोधन) अधिनियम, 2003 (क्रमांक 15 सर 2003) द्वारा अंतःस्थापित।

म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 28-4-2003 पेज आयु-४७४ 8) पर प्रकाशित ।.प्र. में

प्रवृत्त ।

(4) उपधारा (3) के अधीन मण्डी समिति के अध्यक्ष के विनिश्चय से व्यथित पक्षकार विनिश्चय की तारीख से तीस दिन के भीतर प्रबंध संचालक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी को अपील कर सकेगा । प्रबंध संचालक या उसके द्वारा प्राधिकृत अधिकारी पक्षकारों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात् अपील का निराकरण करेगा तथा प्रबंध संचालक या उसके द्वारा प्राधिकृत अधिकारी का विनिश्चय अंतिम होगा ।

(5) संविदा खेती के अधीन उत्पादित कृषि-उपज मण्डी प्रांगण के बाहर, क्रेता को विक्रित की जाएगी जैसा कि उप-विधियों द्वारा विहित किया जाये । कृषि- उपज के क्रेता द्वारा मण्डी फीस धारा 19 के अधीन विहित की गई दरों पर ऐसी रीति में देय होगी जैसी कि उप-विधियों द्वारा विहित की जाए ।]

अध्याय 7

मंडी समिति निधि

38. मंडी समिति निधि -- मंडी समिति द्वारा प्राप्त हुए समस्त धन एक निधि में जो ''मंडी समिति निधि'' कहलायेगी, संदत्त किये जायेंगे और मंडी समिति द्वारा इस अधिनियम के अधीन या उसके प्रयोजनों के लिये उपगत किये गये समस्त व्यय उक्त निधि में से चुकाये जायेंगे । ऐसे व्यय की पूर्ती किये जाने के पश्चात् मंडी समिति के पास बचा हुआ कोई अधिशेष ऐसी रीति में जैसी कि विहित की जाये, विनिहित किया जायेगा

परन्तु समस्त ऐसी धनराशियाँ, जो प्रतिभूति निक्षेप, भविष्य निधि के प्रति किये गये अभिदायों के रूप में या किसी अधिसूचित कृषि उपज के संबंध में भुगतान के लिये या तुलैया, हम्माल तथा अन्य कृत्यकारियों को देय प्रभारों के लिये मंडी समिति द्वारा प्राप्त की गयी हो । मंडी समिति निधि का भाग नहीं होगी किन्तु उनका लेखांकन अलग से किया जायेगा ।

(2) मंडी समिति निधि के' समस्त धन तथा उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट की गयी अन्य किसी सहकारी बैंक में या यदि मंडी समिति के मुख्यालय पर ऐसा बैंक विद्यमान न हो तो डाकघर बचत बैंक में या किसी ऐसे बैंक में, जो बैंककारी कम्पनी (उपक्रमों का अर्जन और अन्तरण) अधिनियम, 1970 (क्रमांक 5 सन् 1970) की प्रथम अनुसूची में तत्समय नवीन बैंक के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया हो, निक्षिप्त की जायेगी ।

39. मंडी समिति निधि का उपयोजन -- धारा 38 के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, मंडी- समिति- निधि केवल निम्नलिखित प्रयोजनों के लिये व्यय की जा सकेगी, अर्थात्:-

(एक) मंडी प्रागणों के लिये स्थान या स्थानों का अर्जन;

(दो) मंडी प्रांगणों का अनुरक्षण एव सुधार;

(तीन) मंडी के प्रयोजनों के लिये तथा मंडी प्रांगणों का उपयोग करने वाले व्यक्तियों की सुविधा या

सुरक्षा के लिये आवश्यक भवनों का निर्माण तथा उनकी मरम्मत;

(चार) मानक बांटों तथा मापों को बनाये रखना;

(पाँच) स्थापना संबंधी प्रभारों की पूर्ति जिनके अन्तर्गत उन अधिकारियों तथा सेवकों के, जो कि मंडी समिति द्वारा नियोजित किये गये हों, भविष्य निधि, पेन्शन तथा उपदान लेखे किये जाने वाले भुगतान तथा अभिदाय भी आते हैं;

(छ:) उन उधारों पर जो मंडी के प्रयोजन के हेतु लिये जायें, ब्याज का भुगतान तथा ऐसे उधारों के

संबंध में निक्षेप निधि की व्यवस्था;

(सात) फसल संबंधी आकडों तथा कृषि उपज के विपणन की जानकारी का संग्रहीत किया जाना तथा प्रसारित किया जाना;

(आठ) (क) मंडी समिति के लेखाओं की संपरीक्षा करने में उपगत किये गये व्यय,

(ख) अध्यक्ष को मानदेय, मंडी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों का यात्रा

भत्ता एव सम्मिलन में हाजिर होने के लिये सदस्य को देय बैठक फीस का भुगतान;

(ग) राज्य विपणन विकास निधि के प्रति अभिदाय

(घ) राज्य सरकार के आदेश को कार्यान्वित करने के लिये तथा किसी अन्य अधिनियम के

अधीन मंडी समिति को न्यस्त किये गये किसी अन्य कार्य के लिये किसी व्यय की पूर्ति

(ड) कृषि उत्पादन की वृद्धि तथा वैज्ञानिक भण्डारकरण के लिये किसी स्कीम के प्रति

अभिदाय;

1 [(च) विहित रीति में मंडी क्षेत्र के विकास के लिये;

1.1997 के म. प्र. अधिनियम स 27 की धारा 22 द्वारा ( दिनांक 15-6-1997 से) खड (च),(छ),

(छछ) प्रतिस्थापिताअन्तःस्थापित । प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त खड निम्न प्रकार थे--

''(च) कृषि उपज के आवक-जावक को सुकर बनाने के हेतु, मंडी प्रांगण/उपमंडी प्रांगण से एक

किलोमीटर की त्रिज्या के भीतर आवश्यक आधारिक संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का संचालक के

पूर्व मंजूरी से तथा उस प्रयोजन के लिए संबंधित स्थानीय प्राधिकरण की भूमि के उपयोग के

लिए उस स्थानीय प्राधिकरण की पूर्व मंजूरी से विकास करना;

(छ) मंडी क्षेत्र में कृषि उपज के विकास की व्यवस्था करना;''

(छ) प्रबंध संचालक की पूर्व अनुमति से उत्पादन की वृद्धि के लिये लोगों को शिक्षित करने या उनके प्रोन्नयन के लिये तथा कृषि आधानों (एग्रीकल्चरल इनपुट्स) के विक्रय का कार्य हाथ में लेना

(छछ) कृषि उपज के विपणन के लिये हाट बाजारों के विकास का कार्य हाथ में लेना;]

1 [(ज) इस अधिनियम के अधीन निर्वाचनों पर व्ययों का भुगतान;]

(नौ) राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के अध्यधीन रहते हुए, कोई अन्य प्रयोजन, जिस पर मंडी समिति निधि में से किया जाने वाला व्यय लोकहित लोकहित में हो ।

अध्याय 8

मध्यप्रदेश राज्य

कृषि विपणन बोर्ड

4 0. मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड -- (1) ऐसी तारीख से, जिसे कि राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा इस संबंध में नियत करे, मध्यप्रदेश राज्य के लिये एक बोर्ड स्थापित किया जायेगा जो मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड कहलायेगा ।

(2) बोर्ड एक निगमित निकाय होगा, उसका शाश्वत उत्तराधिकार होगा तथा उसकी एक सामान्य मुद्रा होगी, और वह अपने निगमित नाम से वाद चला सकेगा तथा उक्त नाम से उसके विरुद्ध वाद चलाया जा सकेगा और वह किसी भी सम्पत्ति को अर्जित करने तथा धारण करने, पट्टे पर देने, बेचने या अन्यथा अन्तरित करने के लिये तथा संविदा करने के लिये और इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये आवश्यक समस्त अन्य बातें करने के लिये सक्षम होगा ।

2 [ 4 0-  राज्य सरकार की निदेश देने की शक्ति -- (1) राज्य सरकार, बोर्ड तथा मंडी समितियों को निदेश दे सकेगी ।

1.1979 के म. प्र. अधिनियम स. 18 की धारा 21 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) अंत:स्थापित ।

2.1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 23 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) अंत: स्थापित।

(2) बोर्ड तथा मंडी समितियाँ, राज्य सरकार द्वारा उपधारा (1) के अधीन जारी किये गये निदेशों का अनुपालन करने के लिये आबद्ध होंगी ।]

1 [ 41. बोर्ड का गठन -- (1) राज्य सरकार बोर्ड का गठन करेगी जिसमें अध्यक्ष तथा निम्नलिखित सदस्य होंगे, अर्थात्-

 - पदेन सदस्य

(क) मंत्री जो कृषि विभाग मध्यप्रदेश, का भारसाधक हो;

(ख) सचिव/विशेष सचिव, मध्यप्रदेश शासन कृषि विभाग;

(ग) रजिस्ट्रार, सहकारी सोसाइटियाँ, मध्यप्रदेश;

(घ) कृषि संचालक, मध्यप्रदेश;

(ड) धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (च) के अधीन अधीन नियुक्त किया गया संचालक;]

 - राज्य सरकार द्वारा

नामनिर्दिष्ट सदस्य

(च) मध्यप्रदेश विधान सभा के दो सदस्य, जो विधान सभा अध्यक्ष के परामर्श से नामनिर्दिष्ट किये गये हों;

(छ) मंडी समितियों के दस अध्यक्ष, जिनमें किसी भी एक राजस्व आयुक्त संभाग में से एक से

अधिक नहीं होगा;

1.1979 के म.प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 22 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित । पूर्व उपबंध निम्न प्रकार थे-

'' 41. बोर्ड की रचना -- (1) बोर्ड में बीस से अनधिक इतने सदस्य होंगे, जितने कि राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा नियुक्त करे ।

(2) राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किए गए सदस्यों में से अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष

को नाम निर्दिष्ट करेगी ।

(3) बोर्ड का एक सचिव होगा, जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

(4) बोर्ड ऐसे अन्य अधिकारी तथा सेवक नियुक्त करेगा, जो इस अधिनियम के अधीन उसके

कर्त्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए आवश्यक हो ।''

(ज) राज्य के भीतर की किसी भी मंडी समिति में अनुज्ञप्ति धारण करने वाले व्यापारियों के दो

प्रतिनिधि;

(झ) मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ तथा मध्यप्रदेश राज्य वस्तु व्यापार निगम का अध्यक्ष

या प्रंबधक निदेशक;

1 [(ञ) कृषि उपज के विपणन के क्षेत्र में के दो विशेषज्ञ]

(2) मंत्री, जो कृषि विभाग, मध्यप्रदेश का भारसाधक हो, बोर्ड का अध्यक्ष होगा तथा बोर्ड के उपाध्यक्ष का नामनिर्देशन उपधारा (1) में निर्दिष्ट किये गये पदेन सदस्यों से भिन्न सदस्यों में से, राज्य सरकार द्वारा किया जायेगा ।

2 [(3) यदि अध्यक्ष के पद में कोई आकस्मिक रिक्ति हो जाती है तो राज्य सरकार उसके लिये अन्तरिम व्यवस्था करेगी ।]

3 [ 42. उपाध्यक्ष तथा सदस्यों की पदावधि : - (1) इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन अन्यथा उपबंधित के सिवाय, बोर्ड का उपाध्यक्ष या पदेन सदस्य से भित्र कोई सदस्य अपने नामनिर्देशन की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करेगा :

परन्तु उपाध्यक्ष या कोई सदस्य, उसकी अवधि का अवसान हो जाने पर भी, तब तक पद पर बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण न कर ले ।

2. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 24 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) अंत: स्थापित।

3. 1979 के म. प्र. अधिनियम सं 18 की धारा 23 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) अंत: स्थापित।

(2) बोर्ड के किसी सदस्य की पदावधि जैसे ही वह उस पद पर न रह जाये जिसके कि आधार पर वह नामनिर्देशन किया गया हो, समाप्त हो जायेगी ।

(3) राज्य सरकार, यदि वह उचित समझे, बोर्ड के किसी भी सदस्य को उसकी पदावधि का अवसान होने के पूर्व हटा सकेगी, किन्तु ऐसा करने के पूर्व वह हटाये जाने के विरुद्ध उसे कारण दर्शाने का युक्तियुक्त अवसर देगी । 1

42  उपाध्यक्ष या सदस्य द्वारा पद त्याग - (1) उपाध्यक्ष या सदस्य का पद धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति किसी भी समय सचिव मध्यप्रदेश शासन, कृषि विभाग, को लिखित में संबोधित करके अपना पद त्याग सकेगा और उसका पद, ऐसे त्यागपत्र की तारीख से थे पन्द्रह दिन का अवसान होने पर उस दशा में रिक्त हो जाएगा, जबकि वह उक्त पन्द्रह दिन की कालावधि के भीतर अपना त्याग-पत्र लिखित में वापस न ले लें ।

(2) बोर्ड के उपाध्यक्ष या किसी भी सदस्य की पदावधि का अवसान होने के पूर्व उसकी मृत्यु हो जाने या उसके पद त्याग कर देने या उसके निरर्हित हो जाने या उसको हटा दिये जाने की दशा में यह समझा जायेगा कि ऐसे पद की आकस्मिक रिक्ति हुई है और ऐसी रिक्ति यथाशक्य शीघ्र राज्य सरकार द्वारा नामनिर्देशन करके भरी जायेगी । इस प्रकार नामनिर्दिष्ट किया गया व्यक्ति ऐसे पद को अपने पूर्वाधिकारी की अनवासित अवधि तक के लिये धारण करेगा ।

42  बोर्ड के सदस्यों को भले -- बोर्ड के पदेन सदस्यों से भिन्न सदस्यों को मध्यप्रदेश राज्य विपणन विकास निधि से उसके (बोर्ड के) सम्मिलनों में हाजिर होने के लिये या किसी अन्य कार्य को करने के लिये ऐसी बैठक फीस तथा भत्तों का भुगतान किया जायेगा जो कि राज्य सरकार द्वारा समय समय पर नियत किये जायें ।

42-  बोर्ड के सदस्य की निरर्हता -- कोई भी ऐसा व्यक्ति बोर्ड का सदस्य नहीं होगा-

(क) जो न्याय निर्णीत दिवालिया है या किसी भी समय न्याय निर्णीत दिवालिया रहा है; या

(ख) जो किसी ऐसे अपराध का सिद्ध दोष ठहराया जाता है या ठहराया जा चुका है जिसमें राज्य

सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तवर्लित है; या

(ग) जो विकृतचित्त का है तथा जिसे सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा होना घोषित किया गया है; या

(घ) जो किसी ऐसी कम्पनी या फर्म का संचालक या सचिव, प्रबंधक या अन्य वैतनिक अधिकारी या कर्मचारी है जिसकी कि बोर्ड या किसी मंडी समिति के साथ कोई संविदा है; या

(ड) जो धारा 58 के अधीन दोषी है, या किसी भी समय दोषी पाया गया है; या

(च) जिसने सदस्य की हैसियत से अपने पद का राज्य सरकार की राय में इस प्रकार दुरुपयोग किया है कि जिससे बोर्ड में उसका बना रहना जन-साधारण के हितों के लिये अपायकर हो जाता है।

1 [ 42  प्रबंध संचालक तथा बोर्ड के अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति -- (1) बोर्ड का एक प्रबंध संचालक होगा जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किया गया प्रबंध संचालक बोर्ड के पदेन सचिव के रूप में भी कृत्य करेगा ।

(3) बोर्ड ऐसे अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगा जो कि इस अधिनियम के अधीन उसके कर्तव्यों तथा कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिये आवश्यक हों ।

1. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 25 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित ।

प्रतिस्थापन से पूर्व धारा निम्न प्रकार थी-

''42 - ध बोर्ड के सचिव एवं अन्य अधिकारियों तथा सेवकों की नियुक्ति -- (1) बोर्ड का एक सचिव होगा, जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।

(2) सचिव की सेवा के निबंधन तथा शर्तें ऐसी होंगी, जैसी कि राज्य सरकार, समय- समय पर अवधारित करे ।

(3) बोर्ड, ऐसे अन्य अन्य अधिकारी तथा सेवक नियुक्त करेगा, जो इस अधिनियम के अधीन उसके कर्त्तव्यों तथा कृत्यों के दक्षता पूर्ण निर्वहन के लिए आवश्यक हों ।

(4) अधिकारियों तथा सेवकों की सेवा के निबंधन तथा शर्तें ऐसी होंगी, जैसी कि बोर्ड, समय-समय, पर अवधारित करे ।

(5) बोर्ड के अधीक्षण के अध्यधीन रहते हुए, बोर्ड के समस्त अधिकारियों तथा सेवकों का सामान्य नियंत्रण सचिव में निहित होगा ।''

(4) बोर्ड के समस्त अधिकारियों तथा कर्मचारियों पर अधीक्षण और नियंत्रण प्रबंध संचालक में निहित होगा ।]

42 -  उपसमितियों की नियुक्ति -- बोर्ड, अपने कर्त्तव्यों या कृत्यों में से किसी भी कर्त्तव्य या कृत्य के पालन के लिये या उससे आनुषंगिक किसी विषय पर सलाह देने के लिये उप-समितियाँ नियुक्त कर सकेगा जिनमें अध्यक्ष या उपाध्यक्ष तथा संचालक को सम्मिलित करते हुए उसके तीन या तीन से अधिक सदस्य होंगे और इन उप-समितियों में से किसी भी उप-समिति को अपने कर्त्तव्यों या कृत्यों में से कोई भी कर्त्तव्य या कृत्य, जो कि आवश्यक समझा जाय प्रत्यायोजित कर सकेगा ।

43. राज्य विपणन विकास निधि  1 [(1) प्रत्येक मण्डी समिति, बोर्ड को अपनी सकल प्राप्तियों का, जिनमें अनुज्ञप्ति फीस तथा मण्डी फीस समाविष्ट है, ऐसा प्रतिशत, जो कि राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर घोषित करे, प्रत्येक मास की 10 तारीख तक भुगतान करेगी । इस प्रकार भुगतान की गई तथा संग्रहीत की गई रकम ''मध्यप्रदेश राज्य विपणन विकास निधि'' कहलाएगी ।]

1. 2000 के म. प्र. अधिनियम सं. 21 की धारा 4 द्वारा ( दिनांक 5-2-2001 से) प्रतिस्थापित । केवल म. प्र. में प्रवृत्त । प्रतिस्थापन से पूर्व उपधारा निम्न प्रकार थी-

''(1) प्रत्येक मंडी समिति, बोर्ड को अपनी सकल प्राप्तियों के, जिसमें अनुज्ञप्ति फीस तथा मंडी फीस समाविष्ट है, पचास प्रतिशत से अनधिक इतने प्रतिशत का, जो कि राज्य सरकार, अधिसूचना द्वार, समय- समय पर घोषित करे, प्रति तीन मास में भुगतान करेगी । इस प्रकार भुगतान की गई तथा संग्रह की गई रकम ''मध्यप्रदेश राज्य विपणन विकास निधि'' कहलाएगी ।''

(2) वे समस्त व्यय, जो कि बोर्ड ने अपने द्वारा मंजूर किये गये बजट के अनुसार उपगत किये हों, उक्त निधि में से चुकाये जायेंगे ।

1 [(3) बोर्ड के वार्षिक लेखे तथा तुलन पत्र 2[प्रबंध संचालक] द्वारा तैयार किये जायेंगे और बोर्ड को किसी भी स्त्रोत से प्रोद्भूत होने वाले या उसके द्वारा प्राप्त किये गये समस्त धन तथा संवितरित या सदत्त की गई समस्त रकमें लेखाओं में दर्ज की जायेगी जायेगी ।

(4) बोर्ड के लेखाओं की संपरीक्षा संचालक, स्थानीय निधि संपरीक्षा, मध्यप्रदेश द्वारा की जायेगी।

(5) 3[प्रबंध संचालक] संपरीक्षा के समय समस्त लेखाओं, रजिस्टरों, दस्तावेजों तथा ऐसे अन्य सुसगत कागज-पत्रों को, जो कि संपरीक्षा अधिकारी द्वारा संपरीक्षा के प्रयोजनों के लिये मंगवाये जाये, पेश करवायेगा । किसी फर्क को दूर करने के लिये ऐसे अधिकारी द्वारा मांगा गया स्पष्टीकरण उसे तुरन्त दिया जायेगा ।

(6) लेखे, जबकि उनकी संपरीक्षा कर ली जाये, मुद्रित किये जायेंगे । लेखाओं तथा संपरीक्षा रिपोर्ट की प्रतियाँ, उन पर की गई टिप्पणियों के साथ बोर्ड के समक्ष रखी जायेंगी । संपरीक्षा रिपोर्ट बोर्ड की टिप्पणियों के साथ राज्य सरकार को भेजी जायेंगी ।

(7) मध्यप्रदेश राज्य विपणन विकास निधि में प्राप्त हुए समस्त धन किसी सहकारी बैंक में या यदि बोर्ड के मुख्यालय पर ऐसा बैंक विद्यमान न हो तो डाकघर बचत बैंक में या किसी ऐसी बैंक में, जो बैंककारी कम्पनी (उपक्रमों का अर्जन और अन्तरण) अधिनियम, 1970 (क्रमांक 5 सन् 1970) की प्रथम अनुसूची में तत्स्थानी नवीन बैंक के रूप मे विनिर्दिष्ट किया गया हो, निक्षिप्त किये जायेंगे ।]

44. प्रयोजन जिनके लिये मध्यप्रदेश राज्य विपणन विकास निधि व्यय की जायेगी -- मध्यप्रदेश राज्य विपणन विकास निधि बोर्ड द्वारा निम्नलिखित प्रयोजनों के लिये उपयोग में लाई जायेगी, अर्थात्-

(एक) मंडी सर्वेक्षण तथा गवेषणा, कृषि उपज का श्रेणीकरण तथा मानकीकरण तथा अन्य सम्बद्ध विषय;

(दो) कृषि-उपजों की क्रय तथा विक्रय की शर्तों के सामान्य सुधार संबंधी विषयों के बारे में प्रचार तथा प्रकाशन एवं विस्तार सेवायें;

(तीन) 1[(क) ऐसी न्यूनतम आधारित संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) जैसी कि प्रथम बार स्थापित किये गये मंडी प्रांगण या उपमंडी प्रांगण में बोर्ड द्वारा विहित की जाए, का सन्निर्माण करना और स्थापना संबंधी व्यय को पूरा करने के लिये दो लाख रुपये तक का अनुदान देना]

(ख) राज्य 2[........] की वित्तीय रूप से कमजोर मंडी समितियों को उधारों और/या अनुदानों

के रूप में सहायता देना;

 

3 [(ग) किसी मंडी समिति को, मंडी प्रांगण और/या उपमंडी प्रांगण के विकास के लिये,

शीतागार गोदाम या भण्डागार के सन्निर्माण के लिये, पौध संरक्षण उपस्करों के

वितरण के लिये तथा ऐसे अन्य प्रयोजनों के लिये, जो वाँछनीय समझे जाएँ, उधार;]

1. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 27 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित ।

1986 के म. प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 28 द्वारा प्रतिस्थापित । प्रतिस्थापन से पूर्व खंड

निम्न प्रकार था-

''(तीन-क) किसी भी मंडी समिति को शीतागार या भाण्डागार के सन्निर्माण के लिए पौध संरक्षण

उपकरणो या विनाशी कटिमार औषधियों के वितरण के लिए तथा ऐसे अन्य प्रयोजनों के

लिए जो कि वांछनीय समझे जाएँ, उधार देना;

2. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 27 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) ''के अनुसूचित

क्षेत्र में'' शब्दों का लोप किया गया ।

3. 1986 के म. प्र. अधिनियम स 24 की धारा 28 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) प्रतिस्थापित ।

1 [(चार) बोर्ड के कर्त्तव्यो का पालन करने के लिये भवनो या भूमि का अर्जन करना या निर्माण करना

या भवनों या भूमि को पट्टे द्वारा या अन्यथा भाड़े पर लेना;

(पाँच) बोर्ड द्वारा नियोजित किये गये अधिकारियों तथा सेवकों व वेतन, छुट्टी, भत्ते, उपदान, अन्य भत्तों, उधारों तथा अग्रिम एवं भविष्य निधि का और प्रतिनियुक्ति पर के सरकारी सेवकों के लिये पेंशन तथा अन्य अभिदाय का भुगतान;]

(छ:) बोर्ड के सदस्यों को यात्रा तथा अन्य भत्ते;

(सात) मंडी समिति का अधिक अच्छा नियंत्रण;

(आठ) बोर्ड द्वारा उपगत किये गये किन्हीं विधिक व्ययों की पूर्ति करना

(नौ) कृषि उपज के नियमित वितरण में शिक्षण प्रदान करना;

 

2 [(दस) कृषकों, मंडी समितियों के अधिकारियों तथा कर्मचारीवृन्द को प्रशिक्षण देना;]

3 [(दस-क) मंडी प्रांगण के विकास के लिये सन्निर्माण के स्थल रेखांक तथा प्राकलन तैयार करने हेतु

परियोजना रिपोर्ट या मास्टर प्लान तैयार करने हेतु मंडी समितियों के लिये तकनीकी

सहायता की व्यवस्था;]

(दस-ख) बोर्ड तथा मंडी समितियों की आंतरिक संपरीक्षा;]

(दस-ग) कृषि उत्पादन की वृद्धि के लिये कृषि आधानों (एग्रीकल्चरल इनपुट्स) का मंडी क्षेत्रों में विपणन तथा विक्रय;

1.1979 के म. प्र. अधिनियम स. 18 की धारा 25 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित ।

सन् 1979 के अधिनियम सं. 18 की धारा 25 द्वारा प्रतिस्थापित । पूर्व उपबंध निम्न प्रकार थे--

“(चार) बोर्ड के कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए भवनों का अर्जन या निर्माण;

(पाँच) बोर्ड द्वारा नियोजित किए गए अधिकारियों तथा सेवकों को वेतन, छुट्टी भत्ते, उपदान अन्य भत्तों तथा भविष्य निधि का तथा प्रतिनियुक्त पर के सरकारी सेवकों के लिए पेंशन अभिदाय का भुगतान;''

2.1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 27 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित ।

प्रतिस्थापना से पूर्व खण्ड निम्न प्रकार था--

''(दस) राज्य में मंडी समितियों के अधिकारियों तथा कर्मचारीवृन्द को प्रशिक्षण देना;''

3.1979 के म. प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 25 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) अंत: स्थापित।

4.1997- के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 27 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) अंत: स्थापित।

(दस-घ) कृषि उपज के विपणन के लिये हाट बाजारों का विकास तथा मंडी क्षेत्रों में अधिसूचित कृषि

उपज के आवकजावक को सुकर बनाने के लिये आधारित संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का

सन्निर्माण;

(दस-ड) आर्थिक रूप से कमजोर मंडी समितियों के इस अधिनियम के अधीन निर्वाचन के व्यय का

भुगतान करना;]

2 [(दस-च) राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से सहकारी सेक्टर की उन कम्पनियों की अंशपूजी में अतिशेष निधि का विनिधान जो कृषि प्रसंस्करण उद्योग में लगी हुई हैं तथा परिसिद्ध तकनीक का उपयोग करती हैं तथा जिनकी परियोजनाओं को अधिकोषकीय और आर्थिक रूप से जीवनक्षम दर्शाया गया है ।]

3 [(दस-छ) कृषि तथा सहबद्ध सेक्टरों से सुसंगत परीक्षण और संचार आधारित संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का विकास;

(ग्यारह) कृषि उपज के विपणन का विनियमन करने के लिये सामान्य हित का कोई अन्य प्रयोजन।

45. उधार लेने की बोर्ड की शक्ति -- बोर्ड, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिये राज्य सरकार से धन उधार ले सकेगा या राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से-

(एक) किसी अन्य अभिकरण से धन उधार ले सकेगा; या

(दो) उसमें निहित किसी सम्पत्ति के प्राधिकार पर या इस अधिनियम, या उसके अधीन बनाये गये नियमों के अधीन उसे प्रोद्भूत होने वाली उसकी भावी आय के किसी भाग की प्रतिभूति पर डिबेंचर जारी कर सकेगा ।

46 बोर्ड के कर्त्तव्य तथा कृत्य -- बोर्ड-

(क) धारा 45 में विनिर्दिष्ट किये गये कृत्यों को, जिन पर बोर्ड की निधि व्यय की जा सकेगी,

यथासम्भव कार्यान्वित करेगा;

(ख) राज्य सरकार द्वारा उसे निर्दिष्ट किये गये समस्त विषयों पर सलाह देगा;

(ग) इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के अधीन राज्य सरकार की ऐसी

शक्तियों का, जो कि बोर्ड को प्रत्यायोजित की जाये, प्रयोग करना;

(घ) राज्य सरकार को समय समय पर स्वेच्छा से निम्नलिखित विषयों पर सलाह देगा :

(एक) कृषि उपज की कीमत नियत करने में अनुसरण किये जाने वाले सिद्धान्त;

(दो) मंडियों का दक्षतापूर्वक प्रबंध करने के लिये की जाने वाली कार्यवाही;

(तीन) वह रीति जिसमें कृषि उपज की आमद के कड़े तथा कृषि उपज के प्रेषणों संबधी कड़े संकलित किये जाने चाहिये तथा बनाये रखे जाने चाहिये और प्रसारित किये जाने चाहिये;

(चार) इस अधिनियम में तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों में संशोधन;

(पाँच) कोई ऐसा विषय जो इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिये आवश्यक हो।

1 [(ड;) इस अधिनियम तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों तथा उपविधियों के उपबंधों को

कार्यान्वित करवाएगा;

(च) कृषि मंडी समितियों का पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण करेगा ।]

47. बोर्ड के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष की शक्तियाँ -- बोर्ड के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष ऐसी शक्तियों का उपयोग करेंगे जैसी कि विहित की जायें ।

1. 1997 के म.प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 28 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) अंत: स्थापित ।

अध्याय 9

शास्ति

48. धारा या धारा 30 के उल्लंघन के लिये शास्ति -- जो कोई धारा 6 के खंड (ख) 1[या धारा 31 या धारा 37 की उपधारा (2)] के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह दोष सिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि छ: मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा और चालू रहने वाले उल्लंघन की दशा में ऐसे और जुर्माने से दंडित किया जायेगा जो प्रथम दोषसिंद्धि के पश्चात्र प्रत्येक ऐसे दिन के लिये जिसके कि दौरान उल्लंघन चालू रहे, एक सौ रुपये तक का धारा 6 के खंड (ख) के उल्लंघन के मामले में तथा पचास रुपये तक का 2[धारा 31 या धारा 37 की उपधारा (2) के उल्लंघन] के मामले में हो सकेगा :

परन्तु न्यायालय के निर्णय में विशेष तथा पर्याप्त प्रतिकूल कारणों के वर्णित न होने पर द्वितीय या किसी पश्चात्वर्ती अपराध के लिये दंड तीन मास की अवधि के कारावास तथा पाँच सौ रुपये के जुर्माने से कम नहीं होगा ।

4 9. अन्य धाराओं के उल्लंघन के लिये शास्ति (1) जो कोई धारा 35 के उपबंधों के उछंघन में, कोई अप्राधिकृत व्यापारिक छूट देगा या लेगा, वह, दोषसिद्धि पर, कारावास से, जो तीन मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दंडित किया जायेगा तथा पश्चात्वर्ती उल्‍लंघन की दशा में कारावास से, जो छ: मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो पांच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा ।

(2) जो कोई मंडी समिति द्वारा मंजूर की गयी अनुज्ञप्ति की किसी शर्त का उल्लंघन करेगा, वह, दोष सिद्धि पर, जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडित किया जायेगा ।

(3) जो कोई किसी अधिकारी को, लेखाओं का निरीक्षण करने में या मंडी समिति के कार्यकलापों की जाँच करने में बाधा पहुँचायेगा या धारा 54 की उपधारा (1) के खंड घ के अधीन जारी किये गये किसी आदेश का अनुपालन नहीं करेगा, वह दोष सिद्धि पर, जुर्माने से दंडित किया जायेगा, जो प्रत्येक ऐसे दिन के लिये, जिसके कि दौरान अपराध चालू रहे, दो सौ रुपये का हो सकेगा ।

(4) यदि मंडी समिति का कोई अधिकारी, सेवक या सदस्य, जबकि वह मंडी समिति के कार्यकलापों या कार्यवाहियों के बारे में जानकारी देने के लिये धारा 54 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन अपेक्षित किया जाए-

(क) कोई जानकारी देने में जानबूझकर उपेक्षा करेगा या कोई जानकारी देने से इंकार करेगा; या

(ख) जानबूझकर मिथ्या जानकारी देगा,

तो वह, दोष सिद्धि पर, जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडित किया जायेगा ।

(5) जो कोई धारा 54 की उपधारा (3) के उपबंधों के उल्लघंन में किसी प्राधिकृत व्यक्ति को मंडी समिति की किन्हीं पुस्तकों, अभिलेखों, निधियों या सम्पत्ति अभिग्रहण करने या कब्जा लेने में बाधा पहुँचायेगा या ऐसे व्यक्ति को उसका परिदान देने चूक करेगा, वह, दोष सिद्धि पर, जुर्माने से; जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडित किया जायेगा ।

(6) कोई भी व्यक्ति, जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों के उपबंधों के अधीन मंडी समिति को शोध्य किसी फीस या अन्य राशि भुगतान में कपटपूर्वक अपवंचन करेगा या किन्हीं तुलैयों हम्माल को पारिश्रमिक लेखे शोध्य भुगतान करने में अपवंचन या अपने नियोजन के लिये पारिश्रमिक की मांग विक्रेता अथवा क्रेता के प्राधिकार के बिना करेगा या इस अधिनियम के अधीन बनाये गये नियमों और उपविधियों के अनुसार न माँग कर अन्य प्रकार से पारिश्रमिक की मांग करेगा, वह दोष सिद्धि पर, जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडित किया जायेगा और चालू रहने वाले अपराध की दशा में ऐसे और जुर्माने से दंडित किया जायेगा जो उसके लिये दोषसिद्धि के पश्चात् प्रत्येक ऐसे दिन के लिये जिसके कि दौरान ऐसा अपराध चालू रहे, एक सौ रूपये तक का हो सकेगा ।

(7) जो कोई इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों में से किसी भी नियम या उपविधि के किसी उपबंध का उल्‍लंघन करेगा, वह, यदि उस अपराध के लिये कोई अन्य शास्ति उपबंधित न की हो, जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडित किया जायेगा ।

5 0. मंडी समिति तथा अध्यक्ष की शास्तियाँ अधिरोपित करने की शक्ति -- (1) मंडी समिति तथा उसका अध्यक्ष किसी अनुज्ञापित मंडी कृत्यकारी या विक्रेता पर, किसी उपविधि के उल्लंघन के लिये परनिन्दा की या जुर्माने की शास्तियाँ अधिरोपित कर सकेगा :

परन्तु मंडी समिति 1[दो हजारा] से अधिक जुर्माना अधिरोपित करने के लिये सक्षम नहीं होगी तथा अध्यक्ष 1[पांच सौ] से अधिक जुर्माना अधिरोपित करने के लिये सक्षम नहीं होगा :

परन्तु यह और भी इस धारा के अधीन कोई भी शास्ति संबंधित व्यक्ति की सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिये बिना अधिरोपित नहीं की जायेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन किये गये आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति, ऐसे व्यक्ति देश के विरुद्ध अपील, ऐसे व्यक्ति द्वारा आदेश की प्राप्ति की तारीख से पन्द्रह दिन के भीतर प्रबंध संचालक को कर सकेगा और उस पर प्रबन्ध संचालक का विनिश्चय अंतिम होगा ।

1 [ 51. मंडी शोध्यो की वसूली -- जब कभी कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराया जाये, तब मजिस्ट्रेट, किसी ऐसे जुर्माने के अतिरिक्त, जो कि अधिरोपित किया जाये, फीस की रकम या कोई अन्य रकम, जो कि इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों के अधीन उससे शोध्य हो, वसूल करेगा और मंडी समिति को उसका भुगतान कर देगा तथा स्वविवेकानुसार, अभियोजन के खर्चों को भी वसूल करेगा तथा मंडी समिति को उनका भुगतान कर देगा ।

52. अपराधों का संज्ञान -- (1) द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेट से निम्न वर्ग का कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये किन्ही नियमों या उपविधियो के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।

1. 1979 के म. प्र. अधिनियम स. 18 की धारा 28 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित ।

पूर्व प्रावधान निम्न प्रकार थे-

'' 51. अनुज्ञप्ति फीस की वसूली तथा मंडी समितियों को जुर्माने का भुगतान -- (1) जब कभी कोई व्यक्ति इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए नियमों या उपविधियों के अधीन किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराया जाए, तब मजिस्ट्रेट किसी ऐसे जुर्माने के अतिरिक्त जो कि अधिरोपित किया जो, अनुज्ञप्ति के लिए प्रभारणीय फीस तथा कृषि उपज पर या अन्यथा देय अन्य फीस की रकम वसूल करेगा और मंडी समिति को उसका भुगतान कर देगा ।

(2) मंडी क्षेत्र में किए गए अपराधों के लिए किसी न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या उपविधि के उपबंधों के अधीन अधिरोपित कि एगए समस्त जुर्माने राज्य के राजस्व में जमा किए जाएँगे और किसी वित्तीय वर्ष के दौरान इस प्रकार जमा की गई कुल रकम का राज्य सरकार द्वारा मंडी समिति निधि के प्रति अभिदाय किया जाएगा ।''

1 [(2) कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम या किसी उपविधि के अधीन दंडनीय किसी अपराध का कलेक्टर द्वारा या मंडी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सचिव द्वारा किये गये या मंडी समिति द्वारा इस संबंध में सम्यक रूप से प्राधिकृत किये गये किसी व्यक्ति द्वारा किये गये परिवाद पर ही संज्ञान करेगा अन्यथा नहीं ।]

2 [ 53 . अपराधों का प्रशमन -- (1) मंडी समिति या उसकी उपसमिति किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके कि संबंध में यह अभिकथित हो कि उसने इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों के अधीन दंडनीय अपराध किया है, इस प्रकार वसूली योग्य फीस या अन्य रकम के अतिरिक्त, ऐसे अपराध के प्रशमन के मद्धे 3[पाँच सौ] 4 [पाँच हजार] रुपये से अधिक धनराशि प्रतिगृहीत कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन किसी अपराध का प्रशमन होने पर, संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे अपराध के संबंध में कोई भी कार्यवाही न तो की जायेगी और न चालू रखी जायेगी और यदि उस अपराध के संबंध में उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही किसी न्यायालय में पहले ही संस्थित कर दी गई हो तो ऐसे प्रशमन का प्रभाव यह होगा कि वह उससे दोषमुक्त हो जायेगा ।]

1. 1979 के म. प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 29 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित । पूर्व उपधारा निम्न प्रकार थी-

''(2) कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या किसी उपविधि के अधीन दंडनीय किसी अपराध या मंडी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सचिव द्वारा किए गए या मंडी समिति द्वारा इस संबंध में सम्यक् रूप से प्राधिकृत किए गए किसी व्यक्ति द्वारा किए गए परिवाद पर ही संज्ञान करेगा अन्यथा नहीं ।''

2. 1979 के म. प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 30 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित । पूर्व निम्न प्रकार थी-

''53. अपराधों का शमन -- (1) मंडी समिति या उसकी उप- समिति किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके कि संबंध में यह अभिकथित हो कि उसने इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए नियमों या उपविधियों के अधीन अपराध किया है, प्रतिकर के रूप में ऐसी धनराशि प्रतिग्रहीत कर सकेगा/सकेगी, जो पाँच सौ रुपये से अधिक न हो ।

(2) अपराध के अभियुक्त व्यक्ति द्वारा ऐसी धनराशि के भुगतान किए जाने पर ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कोई और कार्रवाई नहीं की जाएगी और यदि उस अपराध के संबंध में उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही किसी न्यायालय में पहले ही संस्थित कर दी गई हो तो ऐसे भुगतान का प्रभाव यह होगा कि वह उससे दोषमुक्त हो जाएगा ।''

अध्याय 10

नियंत्रण

54. मंडियों का निरीक्षण तथा मंडी समिति के कार्यकलापों के संबंध में जाँच -- (1) संचालक-

(क) किसी मंडी समिति के लेखाओं तथा कार्यालयों का निरीक्षण कर सकेगा या करवा सकेगा,

(ख) किसी मंडी समिति के कार्यकलापों के सबंध में जाँच कर सकेगा;

(ग) किसी मंडी समिति से ऐसी विवरणी, विवरण, लेखे या रिपोर्ट, जिसके कि देने की, ऐसी समिति से अपेक्षा करना वह उचित समझे, मंगा सकेगा;

(घ) किसी मंडी समिति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह-

(एक) किसी भी ऐसी आपत्ति पर, जिसका कि उस किसी ऐसी बात के किये जाने में, जो कि ऐसी समिति द्वारा या उसकी ओर से की जाने वाली हो या की जा रही हो, विद्यमान होना प्रतीत होता हो, अवैधता, असमीचीनता या अनौचित्य के आधार पर विचार करले; या

(दो) किसी ऐसी जानकारी पर विचार कर ले जोकि वह (प्रबंध संचालक) दे सकता हो और जिसके कि संबंध में उसे (प्रबंध संचालक) को यह प्रतीत हो कि उससे किसी बात का ऐसी समिति द्वारा किया जाना आवश्यक हो जायेगा;

(ड) यह निदेश दे सकेगा कि कोई ऐसी बात, जो की जाने वाली हो या जो की जा रही है, उत्तर पर

विचार के लम्बित रहने तक, नहीं की जाना चाहिये और कोई ऐसी बात, जो की जानी चाहिये किन्तु नहीं की जा रही हे, ऐसे समय के भीतर, जिसके कि संबंध में वह निर्देश दे, की जानी चाहिये ।

(2) जब किसी मंडी समिति के कार्यकलापों का इस धारा के अधीन अन्वेषण किया जाये या किसी मंडी समिति की कार्यवाही की परीक्षा धारा 59 के अधीन राज्य सरकार द्वारा की जाये, तब ऐसी समिति के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव तथा समस्त अन्य अधिकारी तथा सेवक एवं सदस्य मंडी समिति के कार्यकलापों या कार्यवाही के बारे में अपने कब्जे में की ऐसी जानकारी देंगे जो कि यथास्थिति राज्य सरकार, प्रबंध संचालक या प्राधिकृत किये गये अधिकारी को अपेक्षित हो ।

(3) किसी ऐसे अधिकारी को, जो उपधारा (1) के अधीन किसी मंडी समिति के कार्यकलापों का अन्वेषण कर रहा हो, या राज्य सरकार को, जो धारा 59 के अधीन किसी मंडी समिति की कार्यवाही की परीक्षा कर रही हो, यह शक्ति प्राप्त होगी कि वह मंडी समिति के अधिकारियों या सदस्यों को, उन्हीं उपायों से तथा यथा सम्भव उसी रीति में, जैसी कि किसी सिविल न्यायालय के मामले में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (क्रमांक 5 सन् 1908) द्वारा उपबंधित है, समन करे तथा हाजिर कराये तथा साक्ष्य देने एव दस्तावेज पेश करने के लिये उन्हें विवश करे ।

(4) जहाँ प्रबध संचालक को यह विश्वास करने का कारण हो कि मंडी समिति की पुस्तकों तथा अभिलेखों में गड़बड़ कर दी जाना या उन्हें नष्ट कर दिया जाना संभाव्य है या किसी मंडी समिति की निधियों या सम्पत्ति का दुर्विनियोग या दुरुपयोजन किया जाना सभाव्य है, वहाँ संचालक, अपने द्वारा लिखित में सम्यक रूप से प्राधिकृत किये गये किसी व्यक्ति को यह निदेश देते हुए आदेश जारी कर सकेगा कि वह मंडी समिति की ऐसी पुस्तकों तथा अभिलेखों, निधियों तथा सम्पत्ति का अभिग्रहण कर ले एव उनका कब्जा प्राप्त कर लें और मंडी समिति का ऐसा अधिकारी या उसके ऐसे अधिकारीगण, जो ऐसी पुस्तकों, अभिलेखों, निधियों तथा सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिये उत्तरदायी हों उनका परिदान इस प्रकार प्राधिकृत किये गये व्यक्ति को करेंगे/करेगा ।

55. मंडी समिति के सदस्य अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का हटाया जाना — 1 [(1) प्रबध संचालक स्वप्रेरणा से या तत्समय मंडी समिति का गठन करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित किये गये संकल्प पर, मंडी समिति के किसी भी सदस्य को अवचार के कारण या उसके कर्तव्य के पालन में उपेक्षा या अक्षमता के कारण हटा सकेगा और इस प्रकार हटाये जाने पर उसे इस प्रकार हटाये जाने की तारीख से छ: वर्ष की कालावधि के लिये मंडी समिति के सदस्य के रूप में पुनः निर्वाचित या पुनः नामनिर्दिष्ट नहीं किया जायेगा:

परन्तु इस प्रकार हटाये जाने का कोई भी आदेश तब तक पारित नहीं किया जायेगा जब तक ऐसे सदस्य को यह कारण दर्शाने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो कि ऐसा आदेश क्यों न पारित किया जाये ।

1.1979 के म. प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 31 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित । पूर्व उपधारा निम्न प्रकार थी-

''(1) राज्य सरकार, स्वप्रेरणा से या तत्समय मंडी समिति का गठन करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित किए गए संकल्प पर मंडी समिति के लिए किसी सदस्य को अवचार के कारण या उसके कर्त्तव्य के पालन में उपेक्षा या अक्षमता के कारण हटा सकेगी और इस प्रकार हटाए जाने पर उसे इस प्रकार हटाए जाने की तारीख से छ: वर्ष की कालावधि के लिए मंडी समिति के सदस्य के रूप में पुन: निर्वाचन या पुन: नाम-निर्दिष्ट नहीं किया जाएगा :

परन्तु इस प्रकार हटाए जाने का कोई आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा, जब तक ऐसे सदस्य को, यह कारण दर्शाने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो कि ऐसा आदेश क्यों न पारित किया जाए ।''

(2) प्रबंध संचालक किसी मंडी समिति के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को अवचार से कारण या उसके कर्त्तव्य के पालन में उपेक्षा या अक्षमता के कारण या उसके कर्त्तव्यों के निर्वहन में बार-बार असावधान रहने के कारण उसके पद से हटा सकेगा और इस प्रकार हटा दिये जाने पर, यथास्थिति अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, मंडी समिति के सदस्य के रूप में अपनी पदावधि के शेष भाग के दौरान, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पुन: निर्वाचन के लिये पात्र नहीं होगा :

परन्तु हटाये जाने का कोई आदेश तब तक पारित नहीं किया जायेगा जब तक कि यथास्थिति अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को, यह कारण दर्शाने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो कि ऐसा आदेश क्यों न पारित किया जाए ।

1 [(3) राज्य सरकार किसी मंडी समिति के किसी ऐसे सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को जिस पर यथास्थिति उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन सूचना की तामील कर दी भाई हो, और जिसके विरुद्ध कोई शिकायतें प्राप्त हुई हों या जो ऐसी सूचना की तामील के पश्चात् अनियमितताएँ करता है शिकायत प्राप्त होने की तारीख से या अनियमितताओं के प्रबंध संचालक की जानकारी में आने की तारीख से ऐसी कालावधि के लिये निलम्बित कर सकेगी, जब तक कि उसके मामले में अंतिम विनिश्चय नहीं कर लिया जाता है ।]

56. मंडी समिति का अतिष्ठान  1 [(1) यदि प्रबंध संचालक की राय में, कोई मंडी समिति इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उस पर अधिरोपित किये गये कर्त्तव्यों का पालन करने में सक्षम नहीं है या उनका पालन करने में बार-बार व्यतिक्रम करती है या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करती है, तो प्रबंध संचालक लिखित आदेश द्वारा, ऐसी समिति को एक वर्ष से अनधिक कालावधि के लिये अतिष्ठित कर सकेगा और अतिष्ठान की कालावधि के प्रथम छ: मास का अवसान हो जाने पर, मंडी समिति के गठन हेतु निर्वाचन कराये जाने की कार्रवाई प्रारंभ की जायेगी तथा अतिष्ठान की कालावधि के संबंध में यह समझा जायेगा कि उसका अवसान इस प्रकार गठित की गई मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलन की तारीख को हो गया है :

परन्तु इस उपधारा के अधीन अतिष्ठान का आदेश पारित करने के पूर्व, प्रबंध संचालक प्रस्ताव के विरुद्ध कारण दर्शाने के लिये मंडी समिति को युक्तियुक्त अवसर देगा और मंडी समिति के स्पष्टीकरणों तथा आपत्तियों पर, यदि कोई हों, विचार करेगा :

परन्तु यह और भी कि जहाँ नई मंडी समिति का गठन उसके अतिष्ठान के एक वर्ष के भीतर नहीं किया जा सका हो, वहाँ राज्य सरकार, विशेष परिस्थितियों में, अतिष्ठान की कालावधि को बढ़ा सकेगी जो किसी भी दशा में मंडी समिति के अवधि से, जो 1[धारा 13 की उपधारा (2)] में विनिर्दिष्ट है, अधिक नहीं होगी ।

1. 1985 के म.प्र. अधिनियम सं. 11 की धारा 5 द्वारा (दिनांक 12-6-1985 से) प्रतिस्थापित ।

प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त उपधारा निम्न प्रकार थी--

''(1) यदि संचालक की राय में कोई मंडी समिति इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन उस पर अधिरोपित किए गए कर्त्तव्यों का पालन करने में सक्षम नहीं है या उनका पालन करने में बार-बार व्यतिक्रम करती है या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करती है तो संचालक, लिखित आदेश द्वारा, ऐसी समिति को प्रथमत: दो वर्ष से अनधिक कालावधि के लिए अतिष्ठित कर सकेगा और अधिक्रमण की कालावधि को आदेश द्वारा, समय-समय पर बढा सकेगा, परन्तु अधिक्रमण की कुल काला वधि तीन वर्ष से अधिक नहीं होगी :

परन्तु इस उपधारा के अधीन आदेश पारित करने के पूर्व संचालक, प्रस्ताव के विरुद्ध कारण दर्शाने के लिए मंडी समिति को युक्तियुक्त अवसर देगा और मंडी समिति के स्पष्टीकरण तथा आपत्तियों पर, यदि कोई हो, विचार करेगा ।''

2 [(2) उपधारा (1) के अधीन किसी मंडी समिति को अतिष्ठित करने वाले आदेश के पारित होने पर, निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात्-

(क) मंडी समिति के समस्त सदस्यों तथा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के संबंध में ऐसे आदेश के पारित

होने की तारीख से यह समझा जायेगा कि उन्होंने अपने अपने पद रिक्त कर दिये हैं;

(ख) मंडी समिति में निहित समस्त आस्तियों, उसके समस्त दायित्वों के अध्यधीन रहते हुए, राज्य

सरकार में निहित हो जायेंगी ।]

3 [(3) जहाँ कोई मंडी समिति अतिष्ठित कर दी गयी है तो प्रबंध संचालक मंडी समिति के कृत्यों को कार्यान्वित करने के लिये तथा उसकी शक्तियों का प्रयोग करने के लिये आदेश द्वारा किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकेगा जो भारसाधक अधिकारी के नाम से जाना जाएगा और प्रबंध संचालक अतिष्ठित की गयी मंडी समिति की ऐसी आस्तियाँ तथा दायित्व, जो कि ऐसे अन्तरण की तारीख को हों, भारसाधक अधिकारी को अन्तरित कर सकेगा :

परन्तु भारसाधक अधिकारी की मृत्यु हो जाने या उसके पद त्याग कर देने या उसकी छुट्टी पर होने या उसके निलंबित होने की दशा में यह समझा जायेगा कि ऐसे पद में आकस्मिक रिक्ति हो गई है और ऐसी रिक्ति, प्रबंध संचालक द्वारा यथाशक्य शीघ्र, उस पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति करके भरी जायेगी और जब तक ऐसी नियुक्ति नहीं कर दी जाती है तब तक कलेक्टर द्वारा नामनिर्दिष्ट व्यक्ति भारसाधक अधिकारी के रूप में कार्य करेगा ।

1.1997 के म. प्र. अधिनियम स. 27 की धारा 29 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) ''धारा 11 की

उपधारा (5)'' के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

2.1979 के म. प्र. अधिनियम स. 18 की धारा 32 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित । पूर्व उपधारा निम्न प्रकार थी-

''(2) किसी मंडी समिति को अतिष्ठित करने वाली अधिसूचना के उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित होने पर निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात्-

(क) मंडी समिति के समस्त सदस्यों तथा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के संबंध में ऐसे प्रकाशन की तारीख से यह समझा जाएगा कि उन्होंने अपने पद रिक्त कर दिए हैं;

(ख) मंडी समिति में निहित समस्त आस्तियाँ, उसके समस्त दायित्वों के अध्यधीन रहते हुए, राज्य शासन में निहित हो जाएँगी । '

3.1994 के म. प्र. अधिनियम स. 8 की धारा 3 द्वारा (दिनांक 16-1-1994 से) प्रतिस्थापित ।

प्रतिस्थापन से पुर्व उक्त उपधाराएं निम्न प्रकार थी--

''(3) जब कोई मंडी समिति अतिष्ठित कर दी गई हो, तो संचालक स्वविवेकानुसार आदेश द्वारा,

(क) किसी व्यक्ति को, जो भारसाधक अधिकारी के नाम से ज्ञात होगा; या

(ख) सात से अनधिक व्यक्तियों से मिलकर बनने वाली एक समिति को, जो विहित की गई रीति

में गठित की जाएगी तथा भारसाधक समिति के नाम से ज्ञात होगी;

मंडी समिति के कृत्यों को कार्यान्वित करने के लिए तथा उसकी (मंडी समिति की) शक्तियों का प्रयोग करने के लिए नियुक्त कर सकेगा और अतिष्ठित की गई मंडी समिति की ऐसी आस्तियाँ तथा दायित्व, जो कि ऐसे अंतरण की तारीख को हों, यथास्थिति, ऐसे भारसाधक अधिकारी या ऐसी भारसाधक समिति को अंतरित कर सकेगा :

परन्तु संचालक किसी भी समय भारसाधक अधिकारी के स्थान पर भारसाधक समिति और भारसाधक समिति के स्थान पर भारसाधक अधिकारी नियुक्त कर सकेगा :

परन्तु यह और भी कि भारसाधक अधिकारी मृत्यु हो जाने या उसके पद त्याग कर देने या उसके छुट्टी पर होने या उसके निलंबित होने की दशा में यह समझा जाएगा कि ऐसे पद की आकस्मिक रिक्ति हुई है और ऐसी रिक्ति, यथाशक्य शीघ्र, संचालक द्वारा, उस पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति करके भरी जाएगी और जब तक ऐसी नियुक्ति न कर दी जाए, कलेक्टर द्वारा नाम-निर्दिष्ट व्यक्ति भारसाधक अधिकारी के रूप में कार्य करेगा ।

(4) उपधारा (3) के अधीन नियुक्त किये गये किसी भी भारसाधक अधिकारी को किसी भी समय-प्रबंध संचालक द्वारा हटाया जा सकेगा, जिसे उसके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने की शक्ति होगी ।

(5) उपधारा (3) के अधीन भारसाधक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया कोई भी व्यक्ति, अपनी सेवाओं के लिये ऐसा वेतन तथा भत्ते, जो कि प्रबंध संचालक द्वारा नियत किये जाए, मंडी समिति निधि से प्राप्त करेगा ।]

(6) अतिष्ठान की कालावधि का अवसान होने के पूर्व किसी भी समय राज्य सरकार धारा 11 के अधीन नवीन समिति का गठन कर सकेगी तथा अतिष्ठित की गयी समिति की वे आस्तियाँ तथा दायित्व, जो कि ऐसे अन्तरण की तारीख को हों, उसे अंतरित कर सकेगी ।

1 [(7)यथा पुनर्गठित मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलन के लिये नियत की गयी तारीख से भारसाधक अधिकारी अपने पद पर नहीं रहेगा ।]

(4) किसी भी भारसाधक अधिकारी को या उपधारा (3) के खंड (ख) के अधीन भारसाधक समिति में नियुक्त किए गए किसी व्यक्ति या समस्त व्यक्तियों को, किसी भी समय संचालक द्वारा हटाया जा सकेगा, जिसे (संचालक को) उसके स्थान पर या उनके स्थानों पर, यथास्थिति, किसी अन्य व्यक्ति या किन्हीं अन्य व्यक्तियों को नियुक्त करने की शक्ति होगी ।

(5) कोई भी व्यक्ति जो उपधारा (3) के अधीन भारसाधक अधिकारी नियुक्त किया गया हो, अपनी सेवाओं के लिए ऐसा वेतन तथा भत्ते, जो कि संचालक द्वारा नियत किए जाएँ, मंडी समिति निधि से प्राप्त करेगा तथा भारसाधक समिति का प्रत्येक सदस्य, ऐसी दर से भत्ते प्राप्त करेगा, जिस पर से कि भत्ते मंडी समिति के सदस्यों को देय हों ।''

''(7) अधिग्रहण की कालावधि का अवसान होने के पूर्व किसी भी समय, राज्य सरकार, धारा 11 के अधीन नवीन समिति का गठन कर सकेगी तथा अधिग्रहीत की गई समिति के वे आस्तियाँ तथा दायित्व, जो कि ऐसे अंतरण की तारीख को हों, उसे अंतरित कर सकेगी ।''

1 [57. धारा 2 [13] के अधीन विघटन के परिणाम  (1) जहाँ कोई मंडी समिति 2[धारा 13 की उपधारा (2) के परंतुक] के अधीन विघटित हो जाती है वहां निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात-

 

(क) मंडी समिति के समस्त सदस्यों और उसके अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के बारे में यह समझा जायेगा कि उन्होंने उक्त उपधारा के अधीन ऐसी मंडी समिति का विघटन हो जाने की तारीख से अपना पद रिक्त कर दिया है ;

1. 1994 के म.प्र. अधिनियम सं. 8 की धारा 3 द्वारा (दिनांक 18-1-1994 से) प्रतिस्थापित

। प्रतिस्थापना से पूर्व धारा निम्न प्रकार थी-

“[ 57. धारा 2 [ 1 3] के अधीन विघटन के परिणाम -- (1) जहाँ कोई मंडी समिति धारा 2[13] की उपधारा (6) के अधीन विघटित हो जाए, वहाँ निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात्-

(क) मंडी समिति के समस्त सदस्यों और उसके अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के संबंध में यह समझा

जाएगा कि उन्होंने उक्त उपधारा के अधीन ऐसी मंडी समिति के विघटित होने की तारीख से

अपने पद रिक्त कर दिए हैं,

(ख) इस अधिनियम के अधीन मंडी समिति की समस्त शक्तियों का प्रयोग तथा उसके मंडी समिति के समस्त कार्यों का पालन संचालक के नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए-

(एक) किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाएगा, जो भारसाधक अधिकारी के नाम से ज्ञात होगा और

जिसे संचालक आदेश द्वारा इस सम्बन्ध में नियुक्त करे, या

(दो) सात से अनधिक व्यक्तियों से मिलकर बनने वाली एक समिति द्वारा किया जाएगा, जो विहित की गई रीति में गठित की जाएगी तथा भारसाधक समिति के नाम से ज्ञात होगी और जिसे संचालक आदेश द्वारा इस संबंध में नियुक्त करे :

परन्तु संचालक किसी भी समय, भारसाधक अधिकारी के स्थान पर, भारसाधक समिति और भारसाधक समिति के स्थान पर भारसाधक अधिकारी नियुक्त कर सकेगा.

परन्तु यह और भी कि भारसाधक अधिकारी की मृत्यु हो जाने, उसके छुट्टी पर होने या उसके निलंबित होने की दशा में यह समझा जाएगा कि ऐसे पद की आकस्मिक रिक्ति हुई है और ऐसी रिक्ति, यथाशक्य शीघ्र संचालक द्वारा उस पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति करके भरी जाएगी और जब तक ऐसी नियुक्त न कर दी जाए, कलेक्टर द्वारा नाम- निर्दिष्ट व्यक्ति भारसाधक अधिकारी के रूप में कार्य करेगा;

(ग) मंडी समिति में निहित समस्त संपत्ति इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए भारसाधक अधिकारी में या भारसाधक समिति में न्यासत: निहित हो जाएगी ।

(2) किसी भी भारसाधक अधिकारी को या उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन भारसाधक समिति में नियुक्त किए गए किसी व्यक्ति या समस्त व्यक्तियों को किसी भी समय संचालक द्वारा हटाया जा सकेगा, जिसे संचालक को उनके स्थान या यथास्थिति किसी अन्य व्यक्ति या किन्हीं अन्य व्यक्तियों को नियुक्त करने की शक्ति होगी ।

(3) कोई भी व्यक्ति, जो उपधारा (1) के अधीन भारसाधक अधिकारी नियुक्त किया गया हो, अपनी सेवाओं के लिए ऐसा वेतन तथा भत्ते, जो कि संचालक द्वारा नियुक्त किए जाएँ, मंडी समिति निधि से प्राप्त करेगा तथा भारसाधक समिति का प्रत्येक सदस्य भत्ते मंडी समिति निधि से ऐसे दर से प्राप्त करेगा, जिस दर से कि भत्ते मंडी समिति के सदस्यों को देय हो ।

(4) यथा पुनर्गठित मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलन के लिए नियत की गई तारीख में भारसाधक अधिकारी अपने पद पर नहीं रहेगा या भारसाधक समिति कृत्य करना बंद कर देगी ।''

2. 1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 4 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित।

(ख) इस अधिनियम के अधीन मंडी समिति की समस्त शक्तियों का प्रयोग तथा उसके समस्त

कर्त्तव्यों का पालन प्रबध संचालक के नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा

किया जायेगा जिसे प्रबंध संचालक आदेश द्वारा, इस संबध में नियुक्त करे और जो भारसाधक

अधिकारी के नाम से जाना जाएगा :

परन्तु भारसाधक अधिकारी की मृत्यु हो जाने, उसके पद त्याग कर देने, छुट्टी पर होने या उसके निलंबित होने की दशा में यह समझा जाएगा कि ऐसे पद में आकस्मिक रिक्ति हो गई है और ऐसी रिक्ति, संचालक द्वारा, यथाशक्य शीघ्र उस पद पर किसी व्यक्ति की नियुक्ति करके भरी जाएगी और जब तक कि ऐसी नियुक्ति नहीं कर दी जाती है तब तक कलेक्टर द्वारा नामनिर्दिष्ट व्यक्ति भारसाधक अधिकारी के रूप में कार्य करेगा;

(ग) मंडी समिति में निहित समस्त सम्पत्ति इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये भारसाधक

अधिकारी में न्यासत: निहित होगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किये गये किसी भी भारसाधक अधिकारी को किसी भी समय, प्रबंध संचालक द्वारा हटाया जा सकेगा, जिसे उसके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने की शक्ति होगी ।

(3) उपधारा (1) के अधीन भारसाधक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया कोई भी व्यक्ति अपनी सेवाओं के लिये ऐसा वेतन तथा भत्ते, जो कि संचालक द्वारा नियत किये जाएँ, मंडी समिति निधि से प्राप्त करेगा ।

(4) यथापुनर्गठित मंडी समिति के प्रथम साधारण सम्मिलन के लिये नियत की गई तारीख से भारसाधक अधिकारी अपने पद पर नहीं रहेगा ।]

1 [57-  निर्वाचनों को मुल्तवी करने की राज्य सरकार की शक्ति — 2 [(1) यादें राज्य सरकार की यह राय हो कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिसके कारण ऐसा करना आवश्यक हो गया है तो राज्य सरकार इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी समय समय पर अधिसूचना द्वारा उसमें विनिर्दिष्ट किये जाने वाले कारणों से धारा 11 की उपधारा (1) के अधीन किसी मंडी समिति के सदस्यों के निर्वाचन को एक समय में एक वर्ष से अनधिक ऐसी कालावधि के लिये, जो कि अधिसूचना से विनिर्दिष्ट की जाये, मुल्तवी कर सकेगी :

परन्तु सम्पूर्ण कालावधि मिलाकर 3[तीन वर्ष छ: मास] से अधिक नहीं होगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना जारी कर दिये जाने पर, निम्नलिखित परिणाम होंगे अर्थात्- (क) कोई भी निर्वाचन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की गई कालावधि के दौरान नहीं किया जाएगा;

(ख) निर्वाचन कार्यवाहियों चाहे वे किसी भी प्रक्रम पर हों निराकृत हो जायेंगी; और

(ग) सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के लिये अभ्यार्थियों द्वारा किये गये निक्षेप उन्हें वापस कर दिये जायेंगे ।]

 

4 [ स्पष्टीकरण -- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये ''निर्वाचन कार्यवाहियों'' से अभिप्रेत है वह प्रक्रिया जो उस तारीख से प्रारंभ होती हो जिसको कि निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचन करने के लिये अपेक्षा की गयी हो तथा तब समाप्त होती हो जबकि निर्वाचन के परिणाम की घोषणा कर दी जाये ।]

58 हानि दुर्व्यय या दुरुपयोजन आदि के लिये अध्यक्ष उपाध्यक्ष सदस्यों तथा कर्मचारियों का दायित्व -- (1) यदि, धारा 54 के अधीन की गई जाँच या किये गये निरीक्षण के अनुक्त में या इस अधिनियम के अधीन की गयी संपरीक्षा के अनुक्रम में यह पाया जाय कि किसी ऐसे व्यक्ति ने, जिसे किसी मंडी समिति का प्रबंध सौंपा गया है या सौंपा गया था या 1[मंडी समिति के किसी मृत, भूतपूर्व या वर्तमान अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य, भारसाधक अधिकारी, मंडी समिति के सचिव या उसके किसी अन्य अधिकारी या कर्मचारी या राज्य सरकार के किसी अधिकारी] ने ऐसी समिति के या उसके नियंत्रणाधीन किसी धन या अन्य सम्पत्ति का संदाय या उपयोजन, किसी भी ऐसे प्रयोजन के लिये, जो इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों के उपबंधों के प्रतिकूल हो, किया हो या उसके करने का, उससे संबंधित किसी सकारात्मक मत या कार्यवाही में अनुमति देकर या सहमति देकर या उसमें भाग लेकर, निदेश किया हो या घोर उपेक्षा या अवचार के द्वारा कोई कमी या हानि कारित की हो या मंडी समिति के किसी भी धन या अन्य सम्पत्ति का दुर्विनियोग किया हो या उसे कपटपूर्वक प्रतिधारित किया हो, तो प्रबंध संचालक, स्वप्रेरणा से या मंडी समिति का आवेदन प्राप्त होने पर, ऐसे व्यक्ति के आचरण के संबंध में, 2[उस तारीख से, जिसको कि यथास्थिति संपरीक्षा, जाँच या निरीक्षण की रिपोर्ट की गयी हो, दो वर्ष के भीतर] स्वयं जाँच कर सकेगा या इस संबंध में लिखित आदेश द्वारा अपने द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किये गये अपने अधीनस्थ किसी भी अधिकारी को उस जाँच के करने के लिये निदेश दे सकेगा ।

(2) यदि उपधारा (1) के अधीन की गयी जाँच हो जाने पर प्रबंध संचालक का यह समाधान हो जाये कि इस उपधारा के अधीन आदेश देने के लिये अच्छे आधार हैं, तो वह ऐसे व्यक्ति से या मृत व्यक्ति के मामले में उसके विधिक प्रतिनिधि से, जिसको उसकी सम्पदा विरासत में मिली हो यह अपेक्षा करते हुए आदेश दे सकेगा कि वह उस धन या उस सम्पत्ति का या उसके किसी भी भाग का ऐसी दर से ब्याज सहित प्रतिसंदाय या वापसी करे या अभिदाय तथा खर्चे या प्रतिकर का ऐसी सीमा तक संदाय करे जिसे कि प्रबंध संचालक न्यायसंगत या साम्यपूर्ण समझे :

परन्तु इस उपधारा के अधीन कोई भी आदेश तब तक नहीं किया जायेगा जब तक कि संबंधित व्यक्ति को उस विषय में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो

परन्तु यह और भी कि मृतक के विधिक प्रतिनिधि का दायित्व मृतक की उस सम्पत्ति की सीमा तक ही होगा जो कि ऐसे विधिक प्रतिनिधि के विरासत में प्राप्त हुई हो ।

(3) उपधारा (2) के अधीन दिये गये किसी आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति 2[उस तारीख से जिसको कि उसे आदेश संसूचित किया गया हो, तीस दिन के भीतर] राज्य सरकार को अपील कर सकेगा और राज्य सरकार के आदेश के अध्यधीन रहते हुए संचालक का आदेश अन्तिम एवं निश्चायक होगा :

3 [परन्तु परिसीमा-काल की संगणना करने में वह समय अपवर्जित कर दिया जायेगा जो कि उस आदेश की, जिसके कि विरुद्ध अपील की गयी हो, प्रतिलिपि अभिप्राप्त करने के लिये अपेक्षित हो ।]

(4) उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन पारित किया गया कोई भी आदेश किसी भी विधि न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा ।

(5) उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन किया गया गया कोई भी आदेश प्रबंध संचालक का आवेदन प्राप्त होने पर स्थानीय अधिकारिता रखने वाले किसी भी सिविल न्यायालय द्वारा उसी रीति में प्रवर्तित किया जायेगा मानों कि वह ऐसे न्यायालय की डिक्री हो, या कोई भी ऐसी रकम, जिसके कि संबंध में ऐसे आदेश द्वारा यह निर्देशित किया गया हो कि उसका भुगतान किया जाय, भू- राजस्व के बकाया की भाँति वसूल की जा सकेगी ।

1 [(6) यदि शपथ-पत्र के आधार पर, जाँच करने पर या अन्यथा, प्रबंध संचालक का यह समाधान हो जाये कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे आदेश के, जो कि इस धारा के अधीन उसके विरुद्ध पारित किया जा सकता है, प्रवर्तन में विलम्ब करने या उसमें बाधा डालने के आशय से-

(क) अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति का या उसके किसी भाग का व्ययन करने वाला है; या

(ख) अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति को या उसके किसी भाग को राज्य से हटाने वाला है, तो वह (प्रबंध संचालक) यदि पर्याप्त प्रतिभूति न दी गई हो, यह निर्देश दे सकेगा कि उक्त सम्पत्ति की या उसके किसी ऐसे भाग की, जिसे कि वह आवश्यक समझे, सशर्त कुकी कर ली जाये तथा ऐसी कुर्की का वही प्रभाव होगा मानों कि वह सक्षम सिविल न्यायालय द्वारा की गयी हो ।]

2 [ 59. मंडी समिति की कार्यवाहियों को मंगाने की शक्ति -- (1) प्रबंध संचालक, स्वप्रेरणा से, या उसे किये गये आवेदन पर, किसी भी मंडी समिति की कार्यवाहियों को तथा राज्य सरकार, स्वप्रेरणा से, या उसे किये गये आवेदन पर, संचालक की कार्यवाहियों को, जैसी भी कि दशा हो, किये गये किसी भी विनिश्चय की या पारित किये गये किसी भी आदेश की वैधता या औचित्य के बारे में तथा यथास्थिति समिति या प्रबंध संचालक की कार्यवाहियों की नियमितता के बारे में स्वयं का समाधान करने के प्रयोजन के लिये मंगा सकेगी/सकेगा तथा उनकी परीक्षा कर सकेगी/सकेगा । यदि किसी भी मामले में प्रबंध संचालक या राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि किसी भी ऐसे विनिश्चय या आदेश या इस प्रकार मंगाई गई कार्यवाही को उपान्तरित किया जाना चाहिए, बातिल किया जाना चाहिये, उलट दिया जाना चाहिये या पुनर्विचार के लिये विप्रेषित किया जाना चाहिये, तो वह उस पर ऐसा आदेश पारित कर सकेगी/सकेगा जैसा कि वह उचित समझे:

परन्तु प्रत्येक ऐसा आवेदन, जो कि प्रबंध संचालक या राज्य सरकार को इस हेतु से किया जाना हो कि वह इस धारा के अधीन की शक्तियों का प्रयोग कर, उस तारीख से साठ दिन के भीतर किया जायेगा जिसको की वह विनिश्चय या आदेश, जिससे कि ऐसा आवेदन संबंधित है, आवेदक को संसूचित किया गया था :

परन्तु यह और भी कि उपधारा (1) के अधीन कोई भी ऐसा आदेश, उससे (आदेश से प्रभावित पक्षकारों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिये बिना पारित नहीं किया जायेगा ।

(2) मंडी समिति द्वारा किये गये विनिश्चय या पारित किये गये आदेश के निष्पादन की यथास्थिति, प्रबंध संचालक या राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर पर्यन्त निलम्बित कर सकेगी, सकेगा ।]

1.1979 के म. प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 34 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) अंतःस्थापित ।

2.1979 के म.प्र. अधिनियम सं. 18 की धारा 35 द्वारा (दिनांक 7-6-1979 से) प्रतिस्थापित । पूर्व

उपबंध निम्न प्रकार थे-

''59 मंडी समिति की कार्यवाहियों को मँगाने की राज्य सकार की शक्ति -- राज्य सरकार किसी भी समय मंडी समिति द्वारा किये गये किसी भी विनिश्चय की या पारितकिए गए किसी भी आदेश की वैधता या औचित्य के बारे में स्वय का समाधान करने के प्रयोजन के लिए किसी भी आदेश की वैधता या औचित्य के बारे में स्वयं का समाधान करने के प्रयोजन के लिए किसी भी मंडी समिति की कार्यवाही को मँगा सकेगी तथा उसकी परीक्षा कर सकेगी । यदि किसी भी मामले में राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि कोई भी विनिश्चय या आदेश या इस प्रकार मँगाई गई कार्यवाही उपान्तरित की जानी चाहिए या बातिल की जानी चाहिए या उसे उल्टा दिया जाना चाहिए तो राज्य सरकार उस पर ऐसे आदेश पारित कर सकेगी, जैसे कि वह उचित समझे :

परन्तु राज्य सरकार द्वारा ऐसा कोई भी आदेश मंडी समिति या उसके (आदेश) के द्वारा प्रभावित पक्षकारों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिए बिना पारित नहीं किया जाएगा ।''

अध्याय 11

प्रकीर्ण

60. अनुसूची को संशोधित करने की राज्य सरकार की शक्ति – राज्य सरकार, अनुसूची में विनिर्दिष्ट की गयी कृषि उपज की मदों में से किसी भी मद में, अधिसूचना द्वारा परिवर्धन या संशोधन कर सकेगी या उसे निकाल सकेगी और तदुपरांत अनुसूची तदनुसार संशोधित हुई समझी जायेगी :

परन्तु इस धारा के अधीन कोई भी अधिसूचना, राज्य सरकार के ऐसी अधिसूचना जारी करने के आशय की कम से कम छ: सप्ताह की, जैसा कि राज्य सरकार युक्तियुक्त समझे, पूर्व सूचना राजपत्र में दिये बिना जारी नहीं की जायेगी ।

1 [61. राशियों की भू - राजस्व की बकाया के तौर पर वसूली -- (1) कोई भी ऐसी राशि, जो इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम या उपविधि के उपबंधों के अधीन किसी प्रभार, लागत, व्यय, फीस, भाटक या किसी अन्य लेखे, किसी मंडी समिति या बोर्ड ' (या कृषि उपज के किसी विक्रेता को शोध्य हों, उस रीति में वसूली योग्य होगी जिसमें कि भू- राजस्व की बकाया वसूल की जाती है

(2) कोई भी ऐसी राशि, जो यथास्थिति बोर्ड या' राज्य सरकार को किसी मंडी समिति से शोध्य हो, उसी रीति से वसूली योग्य होगी जिसमें कि भू-राजस्व की बकाया वसूल की जाती है :

3 [परन्तु इस प्रकार वसूल की गई राशि में से, ऐसे नियमों के अनुसार जो इस निमित्त बनाए जाएं, ऐसी वसूली करने वाले व्यक्ति को प्रोत्साहन राशि संदत्त किया जाना अनुज्ञात किया जा सकेगा ।]

(3) उपधारा (1) और (2) के अधीन की गई कार्यवाहियों से व्यथित कोई भी व्यक्ति, उसे सूचना दी जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर संचालक को अपील कर सकेगा जिसका उस पर आदेश अंतिम होगा और किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा ।

(4) प्रबध संचालक, यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझे, उन कार्यवाहियों को, जिनके विरुद्ध अपील की गई है, ऐसी कालावधि तक के लिये रोक सकेगा, जैसा कि वह उचित समझे ।]

1. 1986 म. प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 30 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) प्रतिस्थापित ।

प्रतिस्थापन से पूर्व धारा निम्न प्रकार थी-

''61. मंडी समिति या बोर्ड को देय राशियों की वसूली -- (1) कोई भी ऐसी राशि, जो इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या उपविधि के उपबन्धों के अधीन किसी प्रभार खर्चों, व्ययों, फीसों, भाटक या किसी अन्य लेखे के कारण किसी मंडी समिति या बोर्ड को देय हो, उसी रीति से वसूली योग्य होगी, जिससे कि भू-राजस्व का बकाया वसूली योग्य होती है ।

(1-क) कोई भी ऐसी राशि, जो यथास्थिति बोर्ड या राज्य सरकार को किसी मंडी समिति से देय हो, उसी रीति में वसूली योग्य होगी, जैसे कि भू- राजस्व की बकाया राशि वसूली योग्य होती है ।

(2) यदि कोई ऐसा प्रश्न उपस्थित हो कि क्या कोई राशि उपधारा (1) के अधीन शोध्य है तो वह प्रश्न संचालक को निर्दिष्ट किया जाएगा और वह (संचालक) ऐसी जाँच जैसी कि वह उचित समझे, करने के पश्चात् और उस व्यक्ति को, जिससे यह राशि शोध्य होना अधिकथित है, सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् उस प्रश्न को विनिश्चित करेगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा तथा किसी भी विधि न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।''

2.1997 के म.प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 31 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) अंतःस्थापित ।

3. 2001 के म. प्र. अधिनियम क्र 28 की धारा 9 द्वारा (दिनांक 27-12-2001 से) जोड़ा गया ।

केवल म. प्र. में प्रवृत्त ।

62. पुलिस अधिकारी के कर्त्तव्य -- प्रत्येक पुलिस अधिकारी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह कोई भी ऐसी जानकारी, जो कि इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम या उपविधि के विरुद्ध कोई अपराध करने के किसी प्रयत्न के या ऐसे किसी अपराध के किये जाने के बारे में उसे प्राप्त हो, यथाशक्य शीघ्र मंडी समिति को संसूचित करे तथा मंडी समिति के सचिव या किसी अधिकारी या सेवक की, जो कि अपने विधिपूर्ण प्राधिकार के प्रयोग में उसकी (पुलिस अधिकारी की) सहायता माँगे, सहायता करे ।

63. हानि कमी तथा वसूल न होने योग्य फीसों को बट्टे खाते डालने की शक्ति -- जब कभी यह पाया जाये कि किसी मंडी समिति को शोध्य कोई रकम वसूल न होने योग्य है या यह पाया जाये कि उसका परिहार कर दिया जाना चाहिये या जब कभी किसी समिति के धन या सामान या अन्य सम्पत्ति की कोई हानि किसी व्यक्ति के कपट या उपेक्षा के कारण या किसी अन्य कारण से हुई हो और यह पाया जाये कि वह सम्पत्ति या धन वसूल न होने योग्य है, तब 1[एक सौ रुपये से अनधिक राशि होने की दशा में अध्यक्ष और इससे अधिक राशि होने की दशा में] मंडी समिति, यह आदेश दे सकेगी कि उन सबको यह दर्शा कर बट्टे खाते डाल दिया जाये कि वे खो गये हैं/खो गयी है, वसूल न होने योग्य है या उनका परिहार कर दिया गया है, जैसी भी कि दशा हो :

परन्तु यदि किसी मामले में रकम 1[पाँच सौ] रुपये से अधिक हो, तो ऐसा आदेश संचालक के पूर्व अनुमोदन के बिना प्रभावी नहीं होगा ।

64. मंडी समिति के अध्यक्ष उपाध्यक्ष सदस्य अधिकारी तथा सेवक या बोर्ड के अध्यक्ष उपाध्यक्ष आदि लोक सेवक होंगे -- मंडी समिति के अध्यक्ष उपाध्यक्ष सदस्य, सचिव, अन्य अधिकारी तथा सेवक और बोर्ड के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी तथा अन्य सेवक भारतीय दंड संहिता, 1980 (क्रमांक 45 सन् 1860) की धारा 21 के अर्थ के अंतर्गत लोक सेवक समझे जायेंगे ।

65. शक्तियों का प्रत्यायोजन  2 [(1) राज्य सरकार, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसको प्रदत्त शक्तियों में से कोई भी शक्ति धारा 79 के अधीन नियम बनाने की शक्ति को छोड्कर, राज्य सरकार के किसी ऐसे अधिकारी को, जो प्रबंध संचालक के पद से निम्न पद का न हो, प्रत्यायोजित कर सकेगी ।]

3 [(2) प्रबध संचालक, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसको प्रदत्त शक्तियों में से कोई भी शक्ति राज्य मंडी बोर्ड सेवा के किसी भी अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकेगा ।]

1 [(3) प्रबंध संचालक या इस धारा के अधीन सशक्त किये गये किसी अधिकारी को, जब कि वह किसी मंडी समिति और किसी व्यक्ति के बीच या किन्हीं कार्यवाहियों के पक्षकारों के बीच अवधारण के लिये उद्भूत होने वाले किसी प्रश्न के बारे में जाँच करने या उसे विनिश्चित करने के लिये इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों के अधीन की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, न्यायालय समझा जायेगा ।]

1.1986 के म. प्र. अधिनियम स 24 की धारा 31 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) ''एक सौ'' के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

2. 1986 के म. प्र. अधिनियम सं. 24 की धारा 32 द्वारा (दिनांक 21-7-1986 से) प्रतिस्थापित । प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त उपधारा निम्न प्रकार थी--

'' (1) राज्य सरकार, धारा 70 के अधीन नियम बनाने की शक्ति को छोड्कर इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसको (राज्य सरकार को) प्रदत्त शक्तियों में से कोई भी शक्ति बोर्ड को या राज्य सरकार के किसी ऐसे अधिकारी को जो संचालक के पद से निम्न पद का न हो प्रत्यायोजित कर सकेगी ।''

1997 के म. प्र. अधिनियम सं. 27 की धारा 32 द्वारा (दिनांक 15-6-1997 से) प्रतिस्थापित । प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त उपधारा निम्न प्रकार थी--

''(2) संचालक इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसको प्रदत्त शक्तियों में से कोई भी शक्ति राज्य सरकार के किसी ऐसे अधिकारी को, जो सहायक कृषि संचालक के पद से निम्न पद का न हो प्रत्यायोजित कर सकेगा ।''

66. सिविल वाद का वर्जन -- किसी भी ऐसी बात के संबंध में, जो इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों के अधीन सद्भावनापूर्वक की गयी हो या जिसका सदभावपूर्वक किया जाना आशयित रहा हो प्रबंध संचालक के विरुद्ध या राज्य सरकार के किसी भी अधिकारी के विरुद्ध या बोर्ड या किसी मंडी समिति के विरुद्ध या बोर्ड या किसी मंडी समिति के अधिकारी या सेवक के विरुद्ध या ऐसे व्यक्ति के, जो प्रबंध संचालक, ऐसे अधिकारी या ऐसी समिति के निर्देशों के अधीन तथा अनुसार कार्य कर रहा हो, विरुद्ध कोई भी वाद नहीं होगा ।

2 [66-  निर्वाचन याचिका -- (1) इस अधिनियम के अधीन के किसी निर्वाचन को केवल, संभाग के आयुक्त को विहित रीति में प्रस्तुत याचिका द्वारा ही प्रश्नगत किया जायेगा ।

(2) ऐसी कोई याचिका तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी जब तक कि वह उस तारीख से, जिसको कि प्रश्नगत निर्वाचन अधिसूचित किया गया था, तीस दिन के भीतर प्रस्तुत न कर दी जाए ।

(3) ऐसी याचिका की जाँच या उसका निपटारा ऐसी प्रक्रिया के अनुसार किया जाएगा, जो विहित की जाए ।]

67. सूचना न दिये जाने की दशा में वाद का वर्जन -- बोर्ड या किसी समिति के विरुद्ध कोई वाद तब तक संस्थित नहीं किया जायेगा जब तक कि ऐसी लिखित सूचना के, जिसमें कि वाद हेतुक, इच्‍छुक वादी का नाम तथा निवास स्थान तथा वह अनुतोष, जिसका कि वह दावा करता हो, कथित हो, उसे परिदत्त कर दिये जाने या उसके कार्यालय में छोड़ दिये जाने के ठीक पश्चात् दो मास का अवसान न हो गया तो । ऐसा प्रत्येक वाद खारिज कर दिया जायेगा यदि वह अभिकथित वाद हेतुक के प्रोद्भूत होने की तारीख से छ: मास के भीतर संस्थित न किया गया हो ।

68. कार्यवाहियाँ रिक्ति के कारण अविधिमान्य नहीं होंगी -- बोर्ड या किसी मंडी समिति या उसकी उप समितियों में से किसी भी उप- समिति का कोई भी कार्य केवल इस कारण से अविधिमान्य नहीं होगा कि-

(क) उसमें कोई रिक्ति है या उसके गठन में त्रुटि है, या

(ख) उसके सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के निर्वाचन, नाम निर्देशन या नियुक्ति में कोई त्रुटि है, या

(ग) उसकी प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितिता है जो मामले के गुणावगुण पर प्रभाव नहीं डालती ।

अध्याय - 12

मंडी की सीमाओं में परिवर्तन

1 [ 69. मंडी फीस से छूट देने की शक्ति -- (1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तो तथा निबंधनों के, यदि कोई हों, जो कि ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किये जायें अध्यधीन रहते हुए,किसी ऐसी कृषि- उपज को, जो ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किये गये मंडी क्षेत्र में विक्रय के हेतु लाई गई हो या क्रय की गई हो या बेची गई हो, ऐसी कालावधि के लिये, जो कि उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाये, मंडी-फीस के भुगतान के पूर्णत: या भागत: छूट दे सकेगी ।

(2) इस धारा के अधीन जारी की गई किसी अधिसूचना को उस कालावधि का, जिसके कि लिये उसे प्रवृत्त बने रहना था, अवसान होने के पूर्व विखंडित किया जा सकेगा और ऐसा विखंडन हो जाने पर ऐसी अधिसूचना प्रवृत्त नहीं रह जायेगी ।]

70. मंडी क्षेत्रों की सीमाओं में परिवर्तन करने या उन्हें समामेलित करने या उनको विपाटित करने के आशय की अधिसूचना -- (1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा-

(एक) मंडी क्षेत्र में, उनके समीपवर्ती किसी अन्य क्षेत्र को सम्मिलित करके या उसमें से किसी ऐसे क्षेत्र को, जो उसमें समाविष्ट हो, अपवर्जित करके मंडी क्षेत्र की सीमाओं में परिवर्तन करने के; या

(दो) दो या अधिक मंडी क्षेत्रों को समामेलित करने के तथा उनके लिये एक मंडी समिति गठित करने के; या

(तीन) किसी मंडी क्षेत्र को विपाटित करने के तथा उसके लिये दो या अधिक मंडी समितियाँ गठित करने के; या

(चार) किसी मंडी को बन्द करने के अपने आशय को संज्ञापित कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन जारी की गई प्रत्येक अधिसूचना में यथास्थिति उस क्षेत्र की, जिसे कि किसी मंडी क्षेत्र में सम्मिलित किया जाना या जिसे किसी मंडी क्षेत्र में से अपवर्जित किया जाना आशयित हो, या उन मंडी क्षेत्रों की, जिनको कि समामेलित करके एक मंडी क्षेत्र बनाया जाना आशयित हो, या किसी विद्यमान मंडी क्षेत्र को विपाटित करने के पश्चात् गठित की जाने के लिये आशयित मंडियों में से प्रत्येक मंडी क्षेत्र की या उस मंडी के, जिसका कि बन्द किया जाना आशयित हो, क्षेत्र की सीमाएँ परिनिश्चित की जायेगी और उपयुक्त प्रत्येक अधिसूचना में छ: सप्ताह से कम न होने वाली कालावधि भी विनिर्दिष्ट की जायेगी जिसके कि भीतर आपत्तियाँ, यदि कोई हों, राज्य सरकार द्वारा प्राप्त की जायेंगी ।

1.1987 के म.प्र. अधिनियम स. 6 की धारा 2 द्वारा (दिनांक 17-10-1986 से) प्रतिस्थापित ।

प्रतिस्थापन से पूर्व उक्त धारा निम्न प्रकार थी-

''69. कृषि उपज को धारा 4 के अधीन अधिसूचना में सम्मिलित करने या उसमें से उसे विलग करने के लिए अधिसूचना -- राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा किसी भी प्रकार की कृषि उपज को धारा 4 के अधीन जारी की गई अधिसूचना में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से उसे निकाल सकेगी :

परन्तु इस धारा के अधीन कोई भी अधिसूचना, राज्य सरकार के ऐसे अधिसूचना जारी करने की आशय की कम से कम छ: सप्ताह की, जैसा कि वह (राज्य सरकार) युक्तियुक्त समझे, पूर्व सूचना राजपत्र में दिए बिना जारी नहीं की जाएगी ।''

71. धारा 70 के अधीन अधिसूचना के पश्चात् को प्रक्रिया -- (1) धारा 70 की उपधारा (1) के अधीन जारी की गयी अधिसूचना से प्रभावित मंडी क्षेत्र या मंडी क्षेत्रों का कोई भी निवासी, यदि उसे उस अधिसूचना में अन्तर्विष्ट किसी बात के बारे में आपत्ति हो, अपनी लिखित आपत्तियाँ राज्य सरकार को, ऐसी कालावधि के भीतर प्रस्तुत कर सकेगा, जो कि उक्त अधिसूचना में इस प्रयोजन के लिये विनिर्दिष्ट की गयी हों ।

(2) जब उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की गई कालावधि का अवसान हो गया हो, और जब राज्य सरकार ने उन आपत्तियों पर, जो कि उक्त कालावधि के भीतर उसको प्रस्तुत की गयी हों, विचार कर लिया हो तथा आदेश पारित कर दिये हों, तब राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा-

(क) उस क्षेत्र को या उसके किसी भाग को मंडी क्षेत्र में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से उसे

अपवर्जित कर सकेगी; या

(ख) समामेलित किये गये मंडी क्षेत्रों के लिये नवीन मंडी समिति का गठन कर सकेगी; या

(ग) किसी विद्यमान मंडी क्षेत्र को विपाटित कर सकेगी और ऐसे क्षेत्रों के लिये यथास्थिति दो या

अधिक मंडी समितियों का गठन कर सकेगी; या

(घ) मंडी को बन्द कर सकेगी ।

72. सीमाओं का परिवर्तन समामेलन या विपाटित होने पर मंडी समितियों के गठन आदि के संबंध में पारिणामिक आदेश देने की राज्य सरकार की शक्ति -- (1) जहाँ धारा 71 के अधीन अधिसूचना जारी की गयी हो, वहाँ राज्य सरकार निम्नलिखित के संबंध में ऐसे पारिणामिक आदेश दे सकेगी जैसे कि वह उचित समझे-

(क) परिवर्तित क्षेत्र के लिये मंडी समिति का गठन जब कि कोई स्थानीय क्षेत्र किसी मंडी क्षेत्र में

सम्मिलित किया गया हो या उसमें से अपवर्जित किया गया हो;

(ख) उन विद्यमान मंडी समितियों का, जो कि समामेलित की गयी हो, विघटन और तत्पश्चात्

समामेलित मंडी समिति का गठन जबकि दो या अधिक मंडी समितियाँ समामेलित की गयी हो;

(ग) विपाटित की गयी मंडी समिति का विघटन और तत्पश्चात्, उसके स्थान पर स्थापित की गयी

मंडी समितियों का गठन तथा उससे आनुषंगिक बातें ।

1 [(2) उपधारा (1) के खण्ड (ख) तथा (ग) के उपबन्धों के अनुसार पारित किए गए आदेश के परिणामस्वरूप राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, मण्डी समिति के गठन के लंबित रहने की कालावधि के दौरान स्थापित की गई नई मण्डी के लिए एक भारसाधक समिति का गठन करेगी ।

(3) विघटित मण्डी समितियों के समामेलन की दशा में, भारसाधक समिति निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगी, अर्थात् :-

(क) एक अध्यक्ष जो विघटित मण्डी समितियों के निर्वाचित अध्यक्षों में से राज्य सरकार द्वारा

नामनिर्दिष्ट किया जाएगा;

(ख) दस कृषक प्रतिनिधि जो विघटित मण्डी समितियों के निर्वाचित कृषक प्रतिनिधियों में से राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे;

(ग) एक व्यापारी प्रतिनिधि जो विघटित मण्डी समितियों के निर्वाचित व्यापारी प्रतिनिधियों में से राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा;

(घ) राज्य विधानसभा का एक सदस्य जो उस जिले से निर्वाचित किया गया हो, राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा जो मण्डी समिति के सम्मिलन में उपस्थित होने के प्रयोजन के लिए अपना प्रतिनिधि नामनिर्दिष्ट कर सकेगा;

(ड) मण्डी क्षेत्र में कार्य कर रही सहकारी विपणन सोसाइटी का एक प्रतिनिधि जो ऐसी सोसाइटी की प्रबंध समिति द्वारा निर्वाचित किया जाएगा;

(च) जिले में कार्यरत कृषि विभाग का एक अधिकारी जो कलेक्टर की अनुशंसा पर नामनिर्दिष्ट

किया जाएगा,

(छ) मण्डी क्षेत्र में कार्यरत मण्डी समिति से अनुमति प्राप्त अनुज्ञप्तिधारी तुलैयों तथा हम्मालों का

एक सदस्य जो अध्यक्ष की अनुशंसा पर नामनिर्दिष्ट किया जाएगा;

(ज) जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक का अध्यक्ष;

(झ) जिला भूमि विकास बैंक का अध्यक्ष;

(ञ) ग्राम पंचायत या जनपद पंचायत या जिला पंचायत का एक सदस्य जो जिला पंचायत के

अध्यक्ष की अनुशंसा पर नामनिर्दिष्ट किया जाएगा ।

(4) (क) मण्डी समिति के विपाटन की दशा में, प्रत्येक व भारसाधक समिति एक अध्यक्ष दस कृषक

प्रतिनिधि तथा एक व्यापारी प्रतिनिधि से मिलकर गठित की जाएगी परन्तु,-

(एक) विघटित मण्डी समिति का अध्यक्ष स्थापित की गई उस नई मण्डी समिति का नामनिर्दिष्ट

अध्यक्ष होगा जिसका वह मतदाता हो तथा अन्य मण्डी समिति के लिए राज्य सरकार एक

अध्यक्ष नामनिर्दिष्ट करेगी जो धारा 11-ख की उपधारा (2) और (3) में विहित अर्हताएँ रखता हो;

(दो) विघटित मण्डी समिति के व्यापारियों के प्रतिनिधियों को उस नवगठित मण्डी समिति के

सदस्य के रूप में नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे जिनके वे मतदाता हैं तथा शेष कृषक प्रतिनिधि

राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएंगे जो धारा 11-ख की उपधारा (1) (2) तथा (3)

में विहित अर्हताएँ रखते हों;

(तीन) विघटित मण्डी समिति के व्यापारियों के प्रतिनिधि को उस नवगठित मण्डी समिति के सदस्य के रूप में नामनिर्दिष्ट किया जाएगा जिसका वह मतदाता है तथा अन्य मण्डी समिति के लिए राज्य सरकार, ऐसे अनुज्ञप्तिधारी व्यापारी को व्यापारियों के प्रतिनिधि के रूप में नामनिर्दिष्ट करेगी जो धारा 11 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) में विहित अर्हताएँ रखते हों;

(ख) राज्य विधान सभा का एक सदस्य जो उस जिले से निर्वाचित किया गया हो, राज्य सरकार

द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा जो मण्डी समिति के सम्मिलन में उपस्थित होने के प्रयोजन

के लिए अपना प्रतिनिधि नामनिर्दिष्ट कर सकेगा;

(ग) मण्डी क्षेत्र में कार्य कर रही सहकारी विपणन सोसाइटी का एक प्रतिनिधि जो ऐसी सोसाइटी की प्रबंध समिति द्वारा निर्वाचित किया जाएगा;

(घ) जिले में कार्यरत कृषि विभाग का एक अधिकारी जो कलेक्टर की अनुशंसा पर नामनिर्दिष्ट किया जाएगा;

(ड) मण्डी क्षेत्र में कार्यरत मण्डी समिति से अनुज्ञप्ति प्राप्त अनुज्ञप्तिधारी तुलैयों तथा हम्मालों का

एक सदस्य जो अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा

(च) जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक का अध्यक्ष;

(छ) जिला भूमि विकास बैंक का अध्यक्ष;

(ज) ग्राम पंचायत या जनपद पचायत या जिला पंचायत का एक सदस्य जो जिला पचायत के

अध्यक्ष (चेयरपर्सन) की अनुशंसा पर नामनिर्दिष्ट किया जाएगा ।

(5) उपधारा (2) के अधीन गठित भारसाधक समिति, प्रबंध संचालक के नियंत्रणाधीन रहते हुए इस अधिनियम के अधीन मण्डी समिति की समस्त शक्तियों का प्रयोग करेगी तथा समस्त कर्त्तव्यों का पालन करेगी ।]

73. सीमाओं के परिवर्तन का परिणाम -- जहाँ मंडी क्षेत्र में से कोई क्षेत्र अपवर्जित करते हुए तथा किसी ऐसे क्षेत्र को किसी अन्य मंडी क्षेत्र में सम्मिलित करते हुए धारा 71 के अधीन अधिसूचना जारी की गयी हो वहाँ राज्य सरकार, मंडी समिति से परामर्श करने के पश्चात्, यह अवधारित करने के लिये स्कीम बनायेगी कि एक मंडी समिति में निहित आस्तियों तथा अन्य सम्पत्तियों का कौन-सा भाग अन्य मंडी समिति में निहित होगा और मंडी समितियों के दायित्वों को उन दो मंडी समितियों के बीच किस रीति में विभाजित किया जायेगा और ऐसी स्कीम राजपत्र में प्रकाशित की जाने की तारीख से प्रवृत्त होगी ।

74. समामेलन का परिणाम -- समामेलित मंडी क्षेत्रों के लिये नवीन मंडी समिति का गठन करते हुए धारा 71 के अधीन अधिसूचना जारी होने पर निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात्--

(क) धारा 71 के अधीन समामेलन की तारीख के ठीक पूर्व किसी मंडी समिति के नियंत्रणाधीन समस्त सम्पत्ति, जिसमें निधियाँ भी सम्मिलित हैं नवीन मंडी समिति की सम्पत्ति तथा निधि हो जायेगी;

(ख) समामेलित मंडी क्षेत्रों की मंडी समितियों के कर्मचारी, जब तक कि इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार कलेक्टर द्वारा अन्यथा आदेश न दिया जाय, सेवा में बनाये रखे जायेंगे और नवीन मंडी समिति द्वारा नियुक्त कर्मचारी समझे जायेंगे;

(ग) ऐसे समस्त नियम, उपविधियाँ, आदेश तथा अधिसूचनाएं, जो धारा 71 के अधीन समामेलन की तारीख से ठीक पूर्व समामेलित मंडी समितियों के क्षेत्र में प्रवृत्त हों, ऐसे विषयों से, जो कि राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में जारी की गई अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किये जायें, संबंधित नियमों उपविधियों, आदेशों तथा अधिसूचनाओं को छोड्कर निरस्त हो जायेंगी और उसमें विनिर्दिष्ट किये गये विषयों से संबंधित नियम, उपविधियाँ, आदेश तथा अधिसूचनाएं नवीन मंडी समिति के क्षेत्र में सर्वत्र तब तक प्रवर्तित रहेंगी जब तक कि उन्हें इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार परिवर्तित संशोधित या रह न कर दिया जाये :

परन्तु ऐसा निरसन, की गयी समस्त सम्पन्न की गई कार्यवाहियों तथा बातों के संबंध में मध्यप्रदेश जनरल क्लाजेज एक्ट, 1957 (क्रमांक 3 सन 1958) की धारा 10 के उपबंधों द्वारा शामिल होगा; और

(घ) कोई भी ऐसा अधिकार, विशेषाधिकार बाध्यता या दायित्व जो कि धारा 71 के अधीन समामेलित मंडी समितियों द्वारा अर्जित, प्रोद्भूत या उपगत किया गया हो, नवीनमंडी समिति द्वारा अर्जित, प्रोदभुत या उपगत किया गया अधिकार विशेषाधिकार बाध्यता या दायित्व समझा जायेगा ।

75. विपाटन का परिणाम -- (1) किसी मंडी क्षेत्र को दो या अधिक मंडी क्षेत्रों में विपाटित करते हुए धारा 71 के अधीन अधिसूचना के जारी होने पर निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात्-

(क) ऐसे समस्त नियम, उपविधियाँ तथा आदेश, जो धारा 71 के अधीन ऐसी मंडी समिति के मंडी क्षेत्र का विपाटन किया जानेके ठीक पूर्व मंडी समिति के क्षेत्र में प्रवृत्त थे, नवीन मंडी समितियों में समाविष्ट क्षेत्रों में तब तक प्रवृत्त रहेंगे जब तक उनहें इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार परिवर्तित, संशोधित या रद्द न कर दिया जाये;

(ख) ऐसी समस्त शक्तियों तथा कर्त्तव्यों का, जिनका कि इस अधिनियम के अधीन विभिन्न प्राधिकारियों द्वारा प्रयोग किया जाना हो या पालन किया जाना हो, जब तक कि नवीन मंडी क्षेत्रों में से प्रत्येक मंडी क्षेत्र के लिये मंडी समिति का गठन न हो जाये प्रयोग तथा पालन कलेक्टर या ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा, जिसके कि बारे में राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, निर्देश दे, किया जायेगा;

(ग) मूल मंडी समिति में निहित समस्त सम्पत्ति, राज्य सरकार के किन्हीं भी आदेशों के अध्यधीन रहते हुए, नवीनतम गठित मंडी समिति के क्षेत्रों के प्रयोजन के लिये, कलेक्टर या ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा धारण की जायेगी तथा व्यय की जायेगी; और

(घ) जब तक कि मंडी समितियों का गठन न हो जाए, कलेक्टर या ऐसे अन्य अधिकारी को मूल मंडी समिति द्वारा वाद चलाये जाने या उसके विरुद्ध वाद चलाये जाने के प्रयोजनों के लिये या ऐसे लम्बित वादों या कार्यवाहियों को जो कि उक्त मूल मंडी समिति द्वारा या उसके विरुद्ध चलाई गयी हो, चालू रखे जाने के लिये मूल मंडी समिति का प्रतिनिधि समझा जायेगा ।

(2) उस दिन, जिसको कि नवीन मंडी क्षेत्रों में मंडी समितियों का गठन हो जाये, कलेक्टर ऐसे प्रत्येक मंडी क्षेत्र की मंडी समिति को, उसकी अधिकारिता के अधीन क्षेत्र के संबंध में प्रशासन सौंप देगा ।

76. विपाटित मंडी समिति की आस्तियाँ तथा दायित्वों का प्रभाजन -- (1) मूल मंडी क्षेत्र की किसी मंडी समिति की आस्तियाँ तथा दायित्व, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार, नवीनत: गठित किये गये नवीन मंडी क्षेत्रों की विभिन्न मंडी समितियों में प्रभाजित कर दिये जायेंगे ।

(2) डिप्टी कलेक्टर से अनिम्न पद का ऐसा अधिकारी, जिसे राज्य सरकार आदेश द्वारा इस सबध में नियुक्त करे, निम्नलिखित विषयों के सबध में कलेक्टर को रिपोर्ट देगा, अर्थात्-

(क) मूल मंडी क्षेत्र की मंडी समिति की आस्तियाँ तथा दायित्व;

(ख) नवीन मंडी क्षेत्रों की मंडी समितियों के बीच आस्तियों तथा दायित्वों का प्रभाजन;

(ग) वह रीति, जिसमें मूल मंडी क्षेत्रों की मंडी समिति के विद्यमान अधिकारी, सेवक तथा अन्य

स्थायी कर्मचारी नवीन मंडी क्षेत्रों की मंडी समितियों द्वारा संविलीयन किये जाने चाहिये;

(घ) साधारणत: नवीन मंडी क्षेत्रों की मंडी समितियों के गठन से आनुषंगिक, अनुपूरक तथा

परिणामिक समस्त विषयों के संबंध में ।

(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट की गयी रिपोर्ट राज्य सरकार के पास भेजी जावेगी जो कि उसे ऐसी रीति में प्रकाशित करेगी, जैसी कि विहित की जाये ।

(4) हितबद्ध कोई भी व्यक्ति, रिपोर्ट मे किये गये प्रस्तावों के विरुद्ध उसके प्रकाशन की तारीख से एक मास के भीतर, राज्य सरकार को लिखित अभ्यावेदन कर सकेगा ।

(5) उपधारा (4) में विनिर्दिष्ट की गयी कालावधि का अवसान हो जाने पर, राज्य सरकार उपधारा (2) के अधीन नियुक्त किये गये अधिकारी की रिपोर्ट पर तथा प्राप्त हुए अभ्यावेदनों पर, यदि कोई हों, विचार कर सकेगी और उनके संबंध में ऐसे आदेश पारित कर सकेगी, जैसे कि वह उचित समझे ।

(6) समस्त ऐसी बातों पर दिये गये राज्य सरकार के आदेश अंतिम होगे और किसी भी विधि न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किये जायेंगे ।

77 कर नवीन मंडी समिति द्वारा या उसके विरुद्ध वाद -- (1) ऐसे विषयों के सम्बन्ध में, जो कि धारा 76 के अधीन राज्य सरकार के विनिश्चय के अन्तर्गत आते हो, नवीन मंडी क्षेत्र की मंडी समितियाँ, पृथकृ-पृथकृ मूल मंडी क्षेत्र की मंडी समिति द्वारा वाद चलाये जाने तथा उसके विरुद्ध वाद चलाये जाने के प्रयोजनों के लिये या ऐसे लम्बित वादों या कार्यवाहियों को, जो कि उक्त मंडी समिति द्वारा या उसके विरुद्ध चलायी गयी हों, चालू रखा जाने के लिये मूल मंडी समिति की प्रतिनिधि समझी जायेगी ।

(2) ऐसे विषयों के संबंध में, जो कि धारा 76 के उपबंधों के अधीन राज्य सरकार के विनिश्चय के अन्तर्गत न आते हों, नवीन मंडी क्षेत्रों की मंडी समितियाँ, संयुक्त रूप से, मूल मंडी क्षेत्र की मंडी समिति द्वारा वाद चलाये जाने तथा उसके विरुद्ध वाद चलाये जाने के प्रयोजनों के लिये या ऐसे लम्बित वादों या कार्यवाहियों को, जो कि उक्त मंडी समिति द्वारा या उसके विरुद्ध चलायी गयी हों, चालू रखे जाने के लिये, मूल मंडी क्षेत्र की मंडी समिति की प्रतिनिधि समझी जायेंगी ।

(3) यदि नवीन मंडी क्षेत्रों की मंडी समितियों के बीच, किसी डिक्री या आदेश के अधीन उनके अपने- अपने दायित्व या दावे के संबंध में कोई विवाद उत्पन्न हो, तो मामला राज्य सरकार को निर्देशित किया जायेगा जिसका कि विनिश्चय अन्तिम होगा ।

78. समामेलित या विपाटित मंडी समिति या समितियों के विद्यमान कर्मचारियों के संबंध में व्यावृत्ति -- जब धारा 71 के अधीन दो या अधिक मंडी समितियों के समामेलन द्वारा एक नवीन मंडी समिति गठित की जाये या जहाँ किसी विद्यमान मंडी समिति को विपाटित करके दो या अधिक नवीन मंडी समितियाँ गठित की जाये, वहाँ समामोलित या विपाटित मंडी समिति या समितियों के समस्त स्थायी अधिकारियों तथा सेवकों या अन्य कर्मचारियों के वेतन तथा भत्ते, पेंशन तथा निवृत्त लाभ, यदि कोई हों, वे ही वेतन तथा भत्ते, पेंशन तथा निवृत्त लाभ होंगे जो कि यथास्थिति समामेलन या विपाटन की तारीख के ठीक पूर्व प्रवृत्त थे ।

अध्याय 13

नियम तथा उपविधियाँ

79. नियम बनाने की शक्ति -- (1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये, पूर्व प्रकाशन के पश्चात्, नियम बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया तथा पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिये उपबंध हों सकेंगे-

(एक) 1[***]

(एक-क) धारा 3 (1) के अधीन अधिसूचना के प्रकाशन की अन्य रीतियाँ;

(दो) (क) अर्हताएं जो कृषकों के प्रतिनिधियों में धारा 11 (1) 2 [(ख) के अधीन होंगी;]

(ख) अर्हताएं जो व्यापारियों के प्रतिनिधियों में धारा 11(1) 1[(ग) के अधीन होगी]

(ग) धारा 11 (3) के अधीन प्राधिकारी जो निर्वाचनों का संचालन करेगा, निर्वाचन क्षेत्रों का

अवधारण, मतदाताओं की सूची तैयार करना तथा उसे बनाये रखना, सदस्य के रूप में चुने

जाने या सदस्य होने संबंधी निरर्हताएँ मत देने का अधिकार, निक्षेप का भुगतान तथा उसका

समपहरण, निर्वाचन अपराध, निर्वाचन संबंधी विवादों का अवधारण तथा उससे आनुषंगिक

समस्त विषय;

(तीन) मंडी समिति एवं उसके अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली शक्तियाँ तथा

पालन किये जाने वाले कर्त्तव्य;

(चार) मंडी समिति के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का निर्वाचन;

2 [(चार-क) धारा 15 के अधीन मंडी समिति के सम्मिलन की प्रक्रिया तथा गणपूर्ति;]

2 [(चार-ख) 4[***]

(पाँच) मंडी का प्रबध, मंडी फीस की वसूली के लिये प्रक्रिया मंडी फीस के अपवंचन के लिये जुर्माना तथा विवरणियाँ देने में व्यतिक्रम होने की दशा में मंडी फीस के निर्धारण की रीति;

(छ:) अनुज्ञप्तियों की मंजूरी के लिये मंडी कृत्यकारियों का वर्गीकरण, इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्तियों का विनियमन वे व्यक्ति जो अनुज्ञप्ति लेने के लिये अपेक्षित हैं वे प्ररूप जिनमें तथा वे निबन्धन तथा शर्तें जिनके अध्यधीन रहते हुए ऐसी अनुज्ञप्तियों जारी की जायेंगी या नवीकृत की जायेंगी :

(सात) ऐसे व्यक्तियों के लिस उपबन्ध जिनके द्वारा तथा प्ररूप जिसमें दस्‍तावेजो की प्रतिलिपियाँ तथा मंडी समिति को पुस्तकों में की प्रविष्टियाँ प्रमाणित की जा सकेंगी और ऐसी प्रतिलिपियों के प्रदाय के लिये उद्गृहीत किये जाने वाले प्रभार;

(आठ) उन बाटों तथा मापों एव तौलने तथा मापने के उपकरणों का प्रकार तथा विवरण जो मंडी प्रांगण में, अधिसूचित कृषि उपज के संव्यवहारों में उपयोग में लाये जायेंगे;

(नौ) मंडी प्रांगण में उपयोग में लाये जा रहे समस्त बाँटों तथा मापों का और तौलने तथा मापने के उपकरणों का नियतकालिक निरीक्षण;

(दस) व्यापारिक छूट, जो मंडी प्रांगण में, अधिसूचित कृषि उपज के किसी संव्यवहार में किसी व्यक्ति द्वारा दी जा सकेगी या प्राप्त की जा सकेगी;

(ग्यारह) अधिसूचित कृषि उपज के किसी क्रेता तथा विक्रेता या उनके अभिकर्ताओं के बीच होने वाले किसी विवाद के, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं की क्वालिटी या तौल, बेचे गये माल की कीमत के बारे में किये गये भुगतान तथा वेष्टकों पात्रों, कचरे या अशुद्धताओं के लिये दी गई छूटों या किसी भी कारण से की गई कटौतियों से संबंधित विवाद आते हैं, मध्यस्थता द्वारा, माध्यस्थम् द्वारा या अन्यथा परिनिर्धारण के लिये सुविधाएँ;

(बारह) मंडी में लाई गई किसी कृषि उपज का संग्रह करने के लिये स्थान की व्यवस्था;

(तेरह) अंशत: या पूर्णत: मंडी समिति के व्यय से निर्मित किये जाने के लिये प्रस्तावित निर्माण कार्यों के रेखोंकों तथा प्राकलनों का तैयार किया जाना और ऐसे रेखांकों तथा प्राकलनों के लिये मंजूरी दी जाना;

(चौदह) वह प्ररूप जिसमें मंडी समिति के लेखे रखे जायेंगे, संपरीक्षा तथा ऐसी संपरीक्षा का प्रकाशन और लेखाओं के संपरीक्षा ज्ञापनों का निरीक्षण और ऐसे ज्ञापनों का प्रदाय;

(पन्द्रह) वार्षिक बजट का तैयार किया जाना और उसे मंजूरी के लिये प्रस्तुत किया जाना तथा मंडी समिति द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट तथा विवरणियाँ;

1 [(पन्द्रह-क) वह प्ररूप जिसमें मंडी समिति धारा 25-क की उपधारा (1) के अधीन अपनी आय तथा व्यय का बजट तैयार करेगी;]

(सोलह) समय, जिसके दौरान तथा वह रीति जिसमें कोई व्यापारी या दलाल या आढ़तिया मंडी

समिति को ऐसी विवरणियाँ जैसी कि उसके द्वारा अपेक्षित की जायें, देगा;

(सत्रह) दलालों या आढ़तियों या व्यापारियों द्वारा कृषकों को दिये गये अग्रिमों का, यदि कोई हो,

विनियमन;

(अठारह) कृषि-उपज का श्रेणीकरण तथा मानकीकरण;

(उन्नीस) कृषि-उपज की आमद तथा उसके औसत मूल्यों का अभिलेख रखना;

(बीस) रीति, जिसमें कृषि उपज का मंडी में नीलाम संचालित किया जायेगा और बोली लगायी जायेगी तथा प्रतिग्रहीत की जायेगी;

(इकीस) इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उद्ग्रहणीय फीस की वसूली तथा उसका व्ययन;

(बाईस) इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों या उपविधियों के अधीन अपराधों का शमन किया जाना तथा उसके लिये प्रतिकर का नियत किया जाना;

(तेईस) 1[***]

(चौबीस) 1[***]

(पच्चीस) उस व्यय की, जो कि विशिष्ट अतिथियों के स्वागत में उपगत किया जा सकेगा, सीमा;]

(छब्बीस) अध्यक्ष के मानदेय, सदस्यों के यात्रा-भत्तों तथा सम्मिलनों में हाजिर होने के लिये सदस्यों को देय बैठक फीस की सीमाएँ;

(सत्ताईस) 2[(मंडी समिति निधि तथा मध्यप्रदेश राज्य विपणन विकास निधि] में के अधिशेष के विनिधान की रीति;

(अट्ठाईस) उपविधियाँ विरचित करने, उनमें संशोधन करने या उन्हें रद्द करने के लिये और उनके पूर्व एंव अन्तिम प्रकाशन के लिये प्रक्रिया;

(उन्तीस) इस अधिनियम के समस्त प्रयोजनों या उनमें से किसी भी प्रयोजन के लिये मंडी समितियों का वार्षिक आय के आधार पर वर्गीकरण;

(तीस) बोर्ड के अध्यक्ष उपाध्यक्ष तथा सदस्य की पदावधि;

(इकत्तीस) बोर्ड के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली शक्तियाँ;

(बत्तीस) वे समस्त बातें जिनका कि इस अधिनियम केअधीन नियमों द्वारा विहित किया जाना अपेक्षित हो;

1 [(बत्तीस-क) इस अधिनियम के अधीन सूचना की तामील की रीति;]

(तैंतीस) साधारणत: मंडी समिति के मार्गदर्शन के लिये;

केवल मध्यप्रदेश में लागू खण्ड

( तैतीस –  )

2 [(तीस-क) वह रीति जिसमें मण्डी समिति या बोर्ड की स्थावर संपत्ति अन्तरित की जाएगी ।]

(3) किसी नियम को बनाने में राज्य सरकार यह निदेरा दे सकेगी कि उसका भंग जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

(4) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम विधान सभा के पटल पर रखा जायेगा ।

80. उपविधियाँ बनाने की शक्ति -- (1) इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए मंडी समिति अपने प्रबन्धाधीन मंडी क्षेत्र के संबंध में निम्नलिखित के लिये उपविधियाँ बना सकेगी-

(एक) उसके कारोबार का विनियमन;

(दो) मंडी में व्यापार की शर्ते;

(तीन) अधिकारियों तथा सेवकों को शक्तियों, कर्त्तव्यों तथा कृत्यों का प्रत्यायोजन, उनकी नियुक्ति,

वेतन, दड, पेंशन, उपदान, छुट्टी, छुट्टी भत्ते, उनके द्वारा किसी भविष्य निधि के प्रति, जो

ऐसे अधिकारियों तथा सेवकों के फायदे के लिये स्थापित की जाये, अभिदाय तथा सेवा की

अन्य शर्तें;

(चार) किसी उपसमिति को, यदि कोई हो, शक्तियों कर्त्तव्यों तथा कृत्यों का प्रत्यायोजन;

(पांच) ऐसे मंडी कृत्यकारी जो अनुज्ञप्ति लेने के लिये अपेक्षित किये जायेंगे;

(छ:) कोई अन्य विषय जिसके के लिये इस अधिनियम के अधीन उपविधियाँ बनाई जानी हों या

जिनके कि संबंध में यह आवश्यक हो कि मंडी-क्षेत्र में इस अधिनियम के तथा उसके अधीन

बनाये गये नियमों के उपबंधों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये उपविधियाँ विरचित की जाये ।

(2) उपधारा (1) के अधीन बनायी गयी कोई भी उपविधि तब तक प्रभावी नहीं होगी जब तक कि उसकी पुष्टि प्रबंधक संचालक द्वारा न कर दी गयी हो ।

(3) किसी उपविधि को बनाने में मंडी समिति यह निर्देश दे सकेगी कि उसका (उपविधि का) भग जुर्माने से, जो ' (एक सौ रुपयो तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा तथा जहाँ भग चालू रहने वाला हो, वहाँ ऐसे और जुर्माने से दंडनीय होगा जो प्रथम का के पश्चात्र प्रत्येक ऐसे दिन के लिये, जिसके कि दौरान भंग चालू रहना साबित हो जाए, पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा ।

81. उपविधियाँ बनाने या उनमें संशोधन करने के लिये निदेश देने की प्रबंध संचालक की शक्ति - (1) यदि प्रबध संचालक को यह प्रतीत हो कि किसी मंडी या मंडी समिति के हित में धकोई उपाविधि बनाना या किसी उपवधि को संशोधित करना आवश्यक या वांछनीय है तो वह आदेश द्वारा संबंधित मंडी समिति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह (मंडी समिति) ऐसे समय के भीतर, जैसा कि वह ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट करे, उपविधि बनाये या उपविधि को संशोधित करे ।

(2) यदि मंडी समिति विनिर्दिष्ट किये गये समय के भीतर ऐसी उपविधि बनाने में या उपविधि को इस प्रकार संशोधित करने में असफल रहे, तो प्रबध संचालक मंडी समिति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात्, आदेश द्वारा ऐसी उपविधि बना सकेगा या उपविधि को इस प्रकार संशोधित कर सकेगा और तदुपरि उपधारा (3) के अधीन किसी आदेश के अध्यधीन रहते हुए, ऐसी उपविधि, या उपविधि का ऐसा संशोधन, इस- अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों केउपबंधों के अनुसार मंडी समिति द्वारा बनायी गयी या संशोधित की गयी समझी जायेगी और तदुपरि ऐसी उपविधि या संशोधन मंडी समिति पर आबद्धकर होगा/होगी ।

(3) उपधारा (2) के अधीन प्रबंध संचालक के किसी आदेश के विरुद्ध अपील, ऐसे आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर, राज्य सरकार को होगी और ऐसी अपील पर राज्य सरकार का आदेश अन्तिम होगा।

1 [ 81-  विनियम बनाने की बोर्ड की शक्ति - इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए बोर्ड--

(एक) अपने कारोबार को करने के लिये;

(दो) अधिकारियों तथा सेवकों को शक्तियों, कर्त्तव्यों तथा कृत्यों का प्रत्यायोजन करने के लिये और

उनकी सेवा से संबंधित विषयों के लिये,

(तीन) इस अधिनियम तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के अधीन अपने कर्त्तव्यों,

उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने हेतु किसी अन्य विषय के लिये, विनियम बना सकेगा ।]

अध्याय 14

निरसन तथा व्यावृत्तियाँ

82. निरसन तथा व्यावृत्तियाँ -- (1) मध्यप्रदेश णईकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट्स एक्ट, 1960 (क्रमांक 19 सन् 1960) मध्यप्रदेश एग्रीकल्चरल प्रोडयूस मार्केट्स (वैलीडेशन) एक्ट, 1962 (क्रमांक 12 सन् 1962); मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी समिति (निर्वाचन स्थगन) निरसन अधिनियम, 1967 ( क्रमांक 24 सन् 1967) मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन) अधिनियम, 1968 (क्रमांक 17 सन् 1968) मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन तथा विधिमान्यताकरण अधिनियम, 1970 (क्रमांक 2 सन् 1970) मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन तथा विधिमान्यताकरण) अधिनियम, 1970 (क्रमांक 23 सन् 1970) मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन तथा विधिमान्यताकरण अधिनियम, 1971 (क्रमांक 22 सन् 1971) तथा मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन) अधिनियम, 1972 (क्रमांक 30 सन् 1972) एतद्द्वारा निरस्त किये जाते हैं ।

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी-

(एक) उक्त अधिनियमों या उनके द्वारा निरस्त हुई किसी अधिनियमिति के अधीन गठित या नियुक्त की गयी समस्त मंडी समितियाँ, नियुक्त किया गया भारसाधक पदाधिकारी या नियुक्त की गई भारसाधक समिति, स्थापित की गई मंडियाँ, घोषित किये गये मंत्री क्षेत्र अधिसूचित की गई कृषि उपज, बनाये गये नियम या बनाई गई उपविधियाँ, जारी की गई अधिसूचना उद्गृहीत की गई फीस, की गई संविदाएं मंजूर की गई अनुज्ञप्तियाँ, संस्थित किये गये वाद तथा की गई कार्यवाहियाँ या की गई कोई अन्य बातें या किये गये कार्य, जहाँ तक कि वे इस अधिनियम के उपबंधों से असगत न हों, इस अधिनियम के अधीन क्रमश: गठित की गई, नियुक्ति की गई, नियुक्त किया गया! नियुक्त की गई, स्थापित की गई, घोषित किये गये अधिसूचित की गई, बनाये गयोबनाई गई, जारी की गई, उद्गृहीत की गई, मंजूर की गई संस्थित किये गये, की गई या किये गये समझे जायेंगे/जायेंगी जब तक कि वे इस अधिनियम के अधीन की गई किसी बात या किये गये किसी कार्य द्वारा अतिष्ठित न कर दिये जायें या अतिष्ठित न कर दी जायें ।

(दो) जब तक कि राज्य सरकार अन्यथा निर्देशित न करें, खंड (1) में निर्दिष्ट की गई मंडी समितियाँ

तथा उनके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य निरसित अधिनियम के अधीन अपनी अवधि पदावधि

का अवमान न होने तक या इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार मंडी समिति के गठित होने

तक, इनमे से जो भी पूर्वतर हो, अपने पद पर बने रहेंगे/बनी रहेंगी ।

(3) उपधारा (2) के खंड (दो) के अधीन निदेश (3) जारी किये जाने पर धारा 57 के उपबंध ऐसी

तारीख से, जो कि निदेश में विनिर्दिष्ट की जाये, इस प्रकार लागू होंगे मानो कि मंडी समिति

उस तारीख को विघटित थी ।

अनुसूची

[धारा 2(1) (क) देखिए]

एक तन्तु

1 [1. कपास (बिना ओटी हुई)] । 2. सन 1979 2[3 अम्बाडी/मेस्टा ।]

दो - धान्य

1 [1. धान ।] 2. गेहूँ 3. जौ । 4. ज्वार 5. मक्का/भुट्टा । 6. बाजरा । 7. कोदों । 8. सवां/समां । 9. कुटकी । 10. राला । 11. रागी । 12. राजगिरा । 2[13. म.प्र. अधि. क्र. 18 सन् 1979 (7-6-79) द्वारा विलुप्त] ।

1 [ तीन दलहन ]

1. तुअर/अरहर । 2. चना । 3. मटर । 4. मसूर या मसूरी । 5. लाख/तिवड़ा । 6. दूंगा । 7. उडद/ उरदा । 8. कुलथी । 9. लोबिया या मोठ । 10. चवली या बरबटी । 11. सेम या सेमी ।]

3 [ चार - तिलहन ]

1. तिल्ली या तिल । 2. अलसी । 2[3. मूँगफली (छिलका रहित या छिलका सहित] 4. राई । 5. सोयाबीन । 6. सरसों । 7. अरण्डी । 8. कुसुम । 9. रमतिल्ली । 10. 1[बिनौला] । 11. महुआ । 12. सोहा । 13. लाहा । 14. 2[xxx] । 15. सूरजमुखी ।]

 - स्वापक

1. तम्बाकू । 2. पान । 3. 3[अफीम के डोडे (पॉपी केप्सूल) ।]

4 [ छः - गन्ना

1. गन्ना ।]

सात - फल

1. सन्तरा । 2. नींबू । 3. मीठा नींबू । 4. चकोतरा । 5. आम । 6. केला । 7. अमरूद । 8. अंगूर । 9? सीताफल । 10. रामफल । 11. पपीता । 12. सेब । 13. जामुन । 14. बेर । 15. चीकू । 16. खिरनी । 17. अनार । 18. तरबूज । 19. खरबूजा । 20. नासपाती । 21. मोसंबी । 22. ककडी ।

आठ - सब्जियाँ

1. सेम या सेमी । 2. लोबिया । 3. भारतीय सेम । 4. सेम बरबटी । 5. गंवारफली । 6. बैंगन । 7. पत्ता गोभी । 8. फूल गोभी । 9. चौलाई साग । 10 चवली लाल । 11. खट्टा पालक । 12. तुरई । 13. करेला । 14. लौकी । 15. कुम्हड़ा । 16. कुन्दरू । 17. परवल । 18. बन्दगोभी/गांठ गोभी । 19. मैथी । 20. पालक भाजी । 21. चौलाई भाजी । 22. भिण्डी । 23. टमाटर । 24. मटर । 25. कटहल । 26. अरबी । 27. चुकन्दर । 28. गाजर । 29. प्याज । 30. आलू । 31. शकरकन्द । 32. मूली । 33. शलगम । 34. टिण्डा । 35. सुरन । 36. अन्य हरी एवं ताजी सब्जियाँ ।

1 [ नौ - विलुप्त ]

दस - चटनी मसाले तथा अन्य वस्तुएँ

1. मिर्ची (गीली तथा सूखी) । 2. धनिया । 3. हल्दी । 4. लहसुन (गीला तथा सूखा । 5. अदरक (गीला तथा सूखा) । 6. मेथीदाना । 7. अजवाइन । 8. इमली । 9. सौंफ । 10. जीरा । 11. राई । 12. असगन्ध । 13. पोस्त तथा खसखस ।

1 [ ग्यारह - विलुप्त ]

रह - वन उपज

1. 3[4[लाख]] । 2. हर्रा । 3. आवला । 4. बहेड़ा । 5. चिरौंजी । 6. गोंद (सब प्रकार का) । 7. शहद । 8. मोम । 9. करेली । 10. महुए के फूल । 11. बाँस ।

तेरह - अन्य वस्तुएँ

1. सन बीज । 2. गुवार । 3. सिंघाड़ा ।

केवल मध्यप्रदेश में लागू

2 [ चौदह - फूल

1. ग्लार्डिया । 2. एनुअल/काइसेन्थिमम । 3. एस्टर । 4. गेंदा (अफ्रीकन/फ्रेन्च मेरीगोल्ड) । 5. गुलाब । 6. ग्लेडियोलाई । 7. जरबेरा । 8. रजनीगंधा । 9. कारनेशन । 10. बेला (मोगरा) । 11. जूही । 12. एन्थूरियम । 13. लिलियम । 14. ट्यूलिप । 15. सेवंती । 16. आयरिश । 17. स्वीट सुल्तान । 18. सिनरेरिया । 19. सारिया । 20. एन्टीराइनम । 21. जिप्सोफिला । 22. लिमोनिया (स्टेट्स) । 23. गमफ्रेना । कोसेन्ड्रा । 25. हाईड्रेन्जिया । 26. हेलीकोनिया प्रजाति । 27. गोल्डन रॉड । 28. डायेन्थस । 29. स्वीटविलियम । 30. ब्लॉर्किया । 31. लुयुपिन । 32. कमल (लोटस) । 33. केलेन्डुला । 34. केवड़ा । 35. बॉलसम । 36. चाँदनी । 37. आर्किड्स ।

नोट : उपरोक्त फूलों की समस्त किस्मे एवं प्रजातियाँ (स्पीसीस) अनुसूची में शामिल होंगी ।]

केवल मध्यप्रदेश में लागू

1 [ पन्द्रह - कृषि औषधीय उपज ]

सरल क्रमांक

प्रचलित नाम

वानस्पतिक नाम (बॅाटनिकल नेम)

(1)

(2)

(3)

1.

अशोक

Saraca asoca (Roxb.) de Wild

2.

अतीस

Acounitum heterophyllum wall ex Royle

3.

बेल

Aegle marmelos (Linn). Corr.

4.

भुई आंवला

Phyllanthus, amarus, Sehum & Thonn

5.

ब्राम्ही

Bacopa monnieri (L.) Pennell

6.

चन्दन

Santalum album Linn

7.

चिरायता

Swertia chirata Buch-Ham.

8.

गिलोय

Tinospora cordifilia Miers

9.

गुड़मार

Gymnemea sylvestre R. Br.

10.

गुग्गल

Commiphora wightii (Arn.) Bhabdari

11.

इसबगोल

Plantago ovata Forsk

12.

जटामासी

Nardostachys jatamansi DC

13.

कलिहारी

Gloriosa Superba Linn

14.

कालमेघ

Andrographis paniculata Wall. ex Nees

15.

कोकुम

Garcinia Indica Chois

16.

कूठ

Saussurea costus C.B. Clarke (S. lappa)

17.

कुटकी

Picrorhiza Kurroa Benth ex Royle

18.

मकोय

Solanum nirgum Linn

19.

मुलेठी

Glycyrrhiza glabra Linn

20.

सफ़ेद मूसली

Chlorophytum borivillianum Sant.

21.

पत्थर चूर

Coleus barbatus Benth/C. vettiveroides

22.

पिप्पली

Piper longum Linn.

23.

दारू हल्दी

Berberis aristata D.C.

24.

केसर

Crocus Sativus Linn

25.

सर्पगंधा

Rauwolfia serpentina Benth. ex Kurz

26.

सनाय

Cassia angustifolia Vahl.

27.

शतावरी

Asparagus recemosus Willd

28.

तुलसी

Ocimum Sanctum Linn.

29.

वाय विडंग

Embella ribes Burm. f.

30.

वत्सनाभ

Aconitum ferox Wall

31.

चंद्रशूर

Lepidium sativum

32.

रतनजोत बीज

Jatropha curcas

33.

नीम बीज

Azadirzehta indica

34.

करंज बीज

Pongamia pinnata

35.

स्टीविया

Steavia rebaudiana

36.

पलाश के फूल

Butea monosperma

37.

धवई के फूल

Woodfordia fructicos

38.

अश्वगंधा

Withania somnifera (Linn) Dunal

नोट-- उपरोक्त ''कृषि औषधीज उपज'' की समस्त किस्में एवं प्रजातियाँ (स्पीसीस) अनुसूची में शामिल होगी ।