Updated: Mar, 04 2021

Rule 8 of M.P.Civil Services (Pension) Rules, 1976

नियम 8. भावी सदाचरण के आधार पर पेंशन (Pension subject to future good conduct) - (1) (ए) इन नियमों में पेंशन की प्रत्येक स्वीकृति और उसे चालू रखने के लिये भावी सदाचरण की अन्तर्हित मान्य शर्त होगी।

(बी) यदि कोई पेंशनर किसी गंभीर अपराध में सिद्धदोष ठहराया जाय अथवा किसी गंभीर दुराचरण का दोषी पाया जाता है तो पेंशन स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी, स्थायी रूप से अथवा किसी निश्चित् अवधि के लिए, लिखित आदेश द्वारा पेंशन, अथवा उसके किसी अंश को रोक सकता है अथवा वापस ले सकता है:

परन्तु पेंशनर की सेवानिवृत्त के तत्काल पूर्व उसके द्वारा धारित पद पर नियुक्ति करने के लिये सक्षम प्राधिकारी के किसी अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जायेगा:

[परन्तु आगे यह और भी कि जहां पेंशन अंश रोका अथवा वापस लिया जाता है तो पेंशन की ऐसी धनराशि न्यूनतम पेंशन जैसा कि समय-समय पर शासन द्वारा निर्धारित की जावे, से कम नहीं होगी।] [वित्त विभाग अधिसूचना क्र. बी-25/9/96/PWC/IV, दि. 18-6-1996 द्वारा संशोधित तथा दि. 1-1-86 से लागू।] [नोट - 1-1-06 से न्यूनतम पेंशन रु. 3025/- है।] [वि.वि.क्र. एफ/9/2/2009/नियम/चार (भाग-2) दिनांक 3.8.2009 से संशोधन।]

(2) जहां पेंशनर किसी गम्भीर अपराध के कारण किसी न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया जाता है तो इस प्रकार की दोषसिद्धि के सम्बन्ध में न्यायालय के निर्णय के प्रकाश में उपनियम (1) खण्ड (बी) के अधीन कार्यवाही की जायेगी।

(3) उपनियम (2) के अधीन नहीं आने वाले मामले में, उपनियम (1) में सन्दर्भित प्राधिकारी यदि यह समझता है कि पेंशनर किसी गम्भीर दुराचरण का प्रथम दृष्टया दोषी है, तो उपनियम (1) के अन्तर्गत कोई आदेश पारित करने के पूर्व वह-

(ए) पेंशनर को उसके विरुद्ध प्रस्तावित कार्यवाही और जिस आधार पर वह कार्यवाही प्रस्तावित है का नोटिस देकर वह शासकीय सेवक से अपेक्षा करेगा कि प्रस्ताव के विरुद्ध वह जो भी अभ्यावेदन देना चाहे, सूचना-पत्र की प्राप्ति के पन्द्रह दिन के अन्दर अथवा पेंशन स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत और आगामी पन्द्रह दिन से अनधिक समय के भीतर प्रस्तुत करें; और

(बी) खण्ड (ए) के अन्तर्गत पेंशनर द्वारा कोई अभ्यावेदन प्रस्तुत किया जाता है तो वह उस पर विचार करेगा।

(4) जहां उपनियम (1) के अन्तर्गत आदेश पारित करने वाला सक्षम प्राधिकारी राज्यपाल है, तो आदेश पारित करने के पूर्व राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श किया जावेगा।

(5) राज्यपाल के अतिरिक्त किसी भी प्राधिकारी द्वारा उपनियम (1) के अन्तर्गत पारित आदेश के विरुद्ध अपील राज्यपाल को प्रस्तुत की जावेगी और अपील पर राज्य लोक सेवा आयोग के परामर्श से, राज्यपाल ऐसा आदेश पारित करेगा जैसा कि वह उचित समझे।

स्पष्टीकरण - इस नियम में,-

(ए) “गम्भीर आरोप" (Serious crime) अभिव्यक्ति में कार्यालय गोपनीयता अधिनियम, 1923 (1923 का क्रमांक 19) (Official Secrets Act, 1923) के अधीन किये गये अपराध के अन्तर्गत आपराधिक कार्य सम्मिलित हैं।

(बी) “गम्भीर दुराचरण" (Grave misconduct) अभिव्यक्ति में, शासन के अधीन रहते हुए, जैसा कि कार्यालयीन गोपनीयता अधिनियम की धारा 5 में उल्लेखित है, किसी गोपनीय कार्यालयीन संकेत शब्द लिपि की संसूचना अथवा प्रकटीकरण अथवा शब्द अथवा नक्शा, योजना (प्लान) मॉडल, वस्तु, टिप्पणी (नोट), दस्तावेज, सूचना, हस्तांतरित करना, जो कि सर्वसाधारण जनता के हितों अथवा देश की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हो, सम्मिलित है।

[टिप्पणी - इस नियम के उपबन्ध, नियम 47 तथा 48 के अधीन देय कुटुम्ब पेंशन के लिये भी लागू होंगे। मृत सरकारी सेवक/पेंशनर द्वारा धारित पद पर, यथा स्थिति उसकी मृत्यु या सेवा निवृत्ति के तत्काल पूर्व नियुक्ति करने के लिये सक्षम प्राधिकारी कुटुम्ब पेंशन का कोई भाग रोकने या प्रत्याहृत करने के लिये सक्षम प्राधिकारी होगा।] [वि.वि. क्र. एफ. बी. 6-2-80/नि-2/चार, दिनांक 1-1-81 द्वारा संशोधित।]