Updated: Mar, 11 2021

पेंशन प्रकरणों के निपटारे में विलम्ब के कारण तथा उनका निराकरण
 
विधान सभा प्रश्न क्रमांक 1395 के संदर्भ में जानकारी के संकलन में विदित हुआ है कि दिनांक 31-7-80 की स्थिति में शासन के विभिन्न विभागों में पर्याप्त संख्या में ऐसे प्रकरण लंबित हैं जिनमें न तो पेंशन की ग्रेच्युटी की पात्रता का निर्धारण महालेखाकार से कराया गया और न सेवानिवृत्त कर्मचारियों को नियमानुसार एन्टीसिपेटरी पेंशन दी गई। विभागों द्वारा प्रदाय जानकारी के अनुसार विलम्ब के कारण प्रमुखतः निम्न प्रकार है –
1. सेवा निवृत्त कर्मचारी से आवश्यक कागजात प्राप्त न होने से पेंशन प्रकरण महालेखाकार को न भेजें जा सके।
2. सेवा अभिलेख के अभाव में देय पेंशन की पात्रता का निर्धारण न होने के कारण ।
3. पेंशन योग्य अर्हकारी सेवा अथवा जन्म तिथि के संबंध में विवाद होने के कारण ।
4. सेवाकाल में अनुपस्थि की अवधि को नियमित किये जाने में समय लगने का कारण ।
5. सेवा निवृत्त कर्मचारी के विरुद्ध शासकीय वसूली के प्रकरण।
6. मूल सेवा पुस्तिका खो जाने से, नयी पुस्तिका का पुराने अभिलेख से पुनर्निर्माण तथा डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका की मान्यता की स्वीकृति में विलम्ब ।
7. वेतन निर्धारण प्रकरणों के निर्णित होने में विलम्ब
8. महालेखाकार को आपत्तियों के निराकरण में कर्मचारी के विभिन्न कार्यालयों में स्थानान्तरण के कारण जानकारी एकत्रित करने के समय लगना ।
2. दिनांक 1-6-76 को मध्यप्रदेश सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 लागू किये गये हैं। इन नियमों में पेंशन के कागजों को तैयार करने व पेंशन प्रकरणों को अंतिम रूप देने के लिये, इस प्रकार प्रणाली निर्धारित की गई है कि सामान्य रूप से सेवा निवृत्त होने वाले कर्मचारी को पेंशन की अदायगी बिना विलम्ब के शुरू हो जाए।
प्राप्त जानकारी के विश्लेषण से पता चलता है कि विभागों द्वारा पेंशन नियमों के निम्न प्रावधानों का उचित रूप से ध्यान न रखे जाने के कारण इन प्रकरणों में विलम्ब की स्थिति निर्मित हुई है-
1. पेन्शन प्रकरणों की तैयारी सेवा निवृत्त होने वाले शासकीय कर्मचारी की सेवा निवृत्ति की तिथि से 24 माह पूर्व से प्रारम्भ की जाना चाहिये तथा सेवा का सत्यापन, यदि कोई काल अपूर्ण हो तो उसे शीघ्रता से पूरा किया जाना चाहिए (नियम 57-58) तथा सेवानिवृत्ति के 12 माह पूर्व पेन्शन प्रकरण पेंशन निर्धारिण अधिकारी को भेज दिया जाना चाहिये। यदि इस तिथि तक सेवा सत्यापन में कोई अपूर्णता रह भी जाती है तो उसे रहने दिया जावेगा (नियम 59)।
(2) सेवानिवृत्ति के 2 माह पूर्व सभागीय अधिकारी द्वारा पेन्शन तथा ग्रेच्युटी की पात्रता निश्चित की जाएगी तथा इस अवधि में यह नहीं हो सकता हो तो महालेखाकार को इसकी सूचना कार्यालय प्रमुख देंगे (नियम 63)
(3) यदि महालेखाकार द्वारा पेन्शन/ग्रेच्युटी प्रकरण के निपटारे में विलम्ब सम्भावित हो तो शासकीय सेवक को सेवा निवृत्ति होने पर कार्यालय प्रमुख द्वारा नियम 61 के प्रावधानों के अनुसार एंटीसिपेटरी पेंशन/ ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाएगा तथा यदि किसी सेवा निवृत्त शासकीय कर्मचारी के विरुद्ध विभागीय/ न्यायालयीन कार्यवाही चल रही हो तो उसे पेन्शन नियमों के नियम 64 के प्रावधानों के अन्तर्गत प्रोव्हीजनल पेन्शन दी जा सकती है।
(4) उपरोक्त विवरण से विदित होगा कि पेन्शन प्रकरण तैयार करने की कार्यवाही, कर्मचारी के सेवा निवृत्त होने की तिथि के 24 महीने पूर्व प्रारम्भ कर देना चाहिये तथा किसी भी स्थिति में पेन्शन प्रकरण महालेखाकार को कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने की तिथि के 12 माह पूर्व भेज देना चाहिये । यदि महालेखाकार सम्बन्धित कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की तिथि तक पेन्शन प्रकरण का निपटारा न कर सकें तो उस कर्मचारी को नियमानुसार एंटीसिपेटरी पेन्शन/ ग्रेच्युटी देना चाहिये। यदि महालेखाकार को प्रकरण 24 महीने पहले भेजने की तैयारी प्रारम्भ कर दी जाती है तथा पेन्शन प्रकरण महालेखाकार को सेवानिवृत्ति के 12 माह पूर्व भेज दिये जाते हैं जैसा कि ऊपर बताये अनुसार नियमों में प्रावधानित है तो कोई कारण नहीं है कि केवल उन प्रकरणों को छोड़कर जहाँ शासकीय कर्मचारी की सेवा में रहते आकस्मिक मृत्य जाए अथवा कोई शासकीय कर्मचारी नोटिस देकर सेवानिवृत्त हो अथवा परिवार पेन्शन के उन मामलों में जहाँ उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में विवाद हो अन्य शेष प्रकरणों में कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने तक पेन्शन की पात्रता का महालेखाकार द्वारा निर्धारण न किया जा सके। बहरहाल यदि किसी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने तक महालेखाकार द्वारा उसके पेन्शन/ग्रेच्युटी के प्रकरण को अन्तिम रूप नहीं भी दिया जा सकता तो नियमों के प्रावधानों के अनुसार विभागों द्वारा ऐसे कर्मचारियों को एंटीसिपेटरी/प्रोव्हीजनल पेन्शन देने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
3. ऐसा प्रतीत होता है कि पेन्शन प्रकरणों के शीघ्र निराकरण पर विभिन्न विभागों द्वारा कड़ी नजर नहीं रखी जाती है। पूर्व में भी वित्त विभाग के ज्ञापन क्रमांक 215/599/चार/नि-6/78, दिनांक 17-3-78 में इस सम्बन्ध में निर्देश जारी किये गये थे। पेन्शन के मामलों पर कड़ी नजर रखने के लिये वित्त विभाग के ज्ञापन क्रमांक एफ. बी. 6/16/78/नि-2/चार, दिनांक 16-10-78 द्वारा अनुश्रवण और प्रतिवेदन प्रणाली लागू की गई है। इस ज्ञापन के संलग्न विवरण पत्र क्रमांक 1 में कार्यालय प्रमुख द्वारा अपने उच्च अधिकारी को यह जानकारी देना पड़ती है कि अगले 13 महीने में सेवा निवृत्त होने वाले कर्मचारियों के पेन्शन प्रकरण के सम्बन्ध में क्या स्थिति है। इस विवरण पत्र के माध्यम से उच्च अधिकारियों को यह जानकारी प्राप्त होती है कि आगामी 13 माह में कितने कर्मचारी सेवा निवृत्त होने वाले हैं तथा उनके पेन्शन प्रकरणों के सम्बन्ध में क्या कार्यवाही शुरू कर दी गई है। इस ज्ञापन के संलग्न विवरण पत्र क्रमांक 2, जो कार्यालय प्रमुख द्वारा मसिक रूप से अपने उच्च अधिकारी को प्रस्तुत किया जाता है, उन प्रकरणों की स्थिति बतानी होती है। जहाँ शासकीय कर्मचारी सेवा निवृत्त हो गया है तथा जिसके पेन्शन के निपटारे के मामलों में देरी होना सम्भावित है, यह ब्यौरा भी पत्रक में यह भी बताना पड़ता है कि किन-किन प्रकरणों में सेवा निवृत्ति की तारीख के पश्चात् एन्टीसिपेटरी/प्रोव्हीजनल पेन्शन दी गई है अथवा नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि विभिन्न विभागीय अधिकारियों द्वारा पेन्शन के मामले में जिस प्रकार की जागरूकता एवं निपटारे के लिये कड़ी नजर रखी जानी चाहिये वह नहीं रखी जा रही है अन्यथा यह स्थिति नहीं होना चाहिये कि लगभग 800 प्रकरणों में कर्मचारियों को सेवा निवृत्ति के बाद एन्टीसिपेटरी पेन्शन ही प्राप्त न हो।
4. अतः इस सम्बन्ध में आपसे पुनः अनुरोध है कि इस प्रकार के जितने प्रकरण आपके एवं आपके अधीनस्थ कार्यालयों में लम्बित हों जिनमें सेवा निवृत्त कर्मचारियों के प्रकरण महालेखाकार को नहीं भेजे गये हों एवं जिनमें एन्टीसिपेटरी पेन्शन का भुगतान नहीं किया गया है उनके सम्बन्ध में विशेष रूप से प्रयास कराये जाकर प्रकरण महालेखाकार को भेजे जाकर वित्त विभाग के ज्ञापन एफ. बी. 6-12-79/नि-2/चार दिनांक 4 जनवरी, 1980 के मुताबिक एन्टीसिपेटरी/प्रोव्हीजनल पेन्शन का भुगतान किया जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि निष्क्रियता की वजह से सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पेन्शन भुगतान के मामलों में विलम्ब नहीं होता है।
[वित्त विभाग क्र. 613/1598/नि-6/चार, दिनांक 17-9-1980]