Posted on 06 Jan, 2018 6:53 pm

मन्दसौर जिले के ग्राम धावदबुजुर्ग में रहने वाली भूरीबाई के परिवार में वर्षों से परम्परागत एवं पुराने तरीके से खेती होती आ रही थी। कुछ समय से उनके खेत में फर्टिलाइजर का उपयोग बढ़ गया। जिससे खेती की लागत में भी लगातार वृद्धि होती गई। भूरीबाई खेती के कार्य में हमेशा से सहयोग देती रही हैं। कुछ समय से उनके गाँव में जैविक खेती की चर्चा हुई। भूरीबाई ने भी जैविक खेती में दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद भूरीबाई ने किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग की आत्मा परियोजना के अमले से मार्गदर्शन लिया।

भूरीबाई ने जैविक खेती शुरू की और सबसे पहले कॉस्ट वर्मी कम्पोस्ट बेस्ड केचुओं की खाद बनाना शुरू किया। जब इन्हें केचुआ खाद बनाने का अनुभव हो गया तो उन्होंने एक साल के बाद पक्के वर्मी पिट का निर्माण कर केचुआ खाद का उत्पादन बढ़ाया। अपने खेत में केचुआ खाद का उपयोग किया। परिणाम यह हुआ कि खेत में लगने वाले रासायनिक उर्वरक की खरीदी जाने वाली मात्रा कम हो गई। खेत में अनाज उत्पादन तो ही बढ़ा साथ ही अनाज में चमक भी आ गई और इन्हें फसल का अच्छा दाम मिला। आज भूरीबाई गाँव के अन्य किसानों को 7 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से केचुआ खाद बेच रही हैं। भूरीबाई अब दो एकड़ में जैविक खेती कर रही हैं।

भूरीबाई बताती है कि पहले उन्हें गोबर और गौ-मूत्र के सही उपयोग की जानकारी नहीं थी। इस कारण वे इसे फेंक दिया करती थी। आत्मा परियोजना के अधिकारियों ने गोबर-गौ-मूत्र का उपयोग कर जीवामृत, बीजामृत बनाने की विधि सिखाई। साथ ही वनस्पातिक पत्ती जैविक काढ़ा, जैविक कीटनाशक, गोबर के कंडों से जैविक टॉनिक और वर्मी वाश आदि विधियों का प्रशिक्षण दिया। भूरीबाई अब घर में ही जैविक खाद, दवाई और टॉनिक बना रही है और इन्हें अन्य किसानों को बेच रही है।

भूरीबाई बताती है कि गाँव के अन्य किसान भी जैविक खेती से प्रभावित हुए हैं। वे भी अब जीवामृत, पंचामृत और जैविक कीटनाशक तैयार कर फसलों पर छिड़काव कर रहे हैं। अब गाँव के अन्य किसानों की कृषि लागत में भी जैविक खेती की बदौलत कमी आई है

सक्सेस स्टोरी (मंदसौर)

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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