Posted on 21 Mar, 2018 5:36 pm

 
भोपाल : बुधवार, मार्च 21, 2018, 13:34 IST

 

मध्यप्रदेश में उन्नत खेती की ओर लोगों का रुझान काफी तेजी से बढ़ रहा है। रीवा के नीरज ताम्रकार ने तो अपना पुश्तैनी बर्तन का व्यापार छोड़कर खेती को अपना व्यवसाय बना लिया है। यहीं के ग्राम मगुरहाई के किसान रामबिहारी शुक्ला बेहतर खेती प्रबंधन कर लखपति बन गये हैं। गुना जिले के ग्राम तरावटा के किसान रामभरोसे ने दिहाड़ी मजदूरी छोड़कर टमाटर की खेती की तो पहली फसल में ही 20 लाख रुपये का मुनाफा कमाया है। उज्जैन जिले में बड़नगर तहसील के ग्राम चिकली के किसान बालू सिंह आंजना ने पॉली-हाउस के जरिये एक बीघा जमीन पर दस बीघा के बराबर मुनाफा कमाया है। झाबुआ जिले में ग्राम रंगपुरा के किसान जुवान सिंह ने बैंगन की खेती कर हर माह 60-70 हजार रुपये वार्षिक अतिरिक्त आय का जरिया विकसित कर लिया है। खेती की कमाई से ही गाँव में अपना पक्का घर भी बना लिया है, मोटर सायकल खरीद ली है। शिवपुरी जिले में ग्राम सकलपुर के किसान जुगतार सिंह ने ड्रिप सिंचाई पद्धति अपनाकर परम्परागत खेती के साथ-साथ टमाटर की फायदेमंद पैदावार लेकर स्वयं को आर्थिक रूप से सम्पन्न बना लिया है। तरबूज की खेती अमूमन तो नदी किनारे की जाती है, लेकिन कटनी जिले में बड़वारा विकासखण्ड के ग्राम गुड़ाकला के 20 किसानों ने खेतों में तरबूज की खेती कर गेहूँ की परम्परागत फसल की तुलना में कई गुना अधिक मुनाफा कमाने का रिकार्ड बनाया है। मंदसौर जिले के ग्राम भैसोदा में किसान बालमुकुंद पाटीदार ने परम्परागत खेती के साथ संतरे की खेती भी शुरू कर औसतन 4 लाख रुपये आमदनी का अतिरिक्त माध्यम अपना लिया है। इस तरह प्रदेश में किसानों ने अनेक नवाचार किये हैं और लगातार सफल भी हो रहे हैं।

रीवा जिले के ग्राम मगुरहाई के किसान रामबिहारी शुक्ला बाणसागर बांध की नहर से मिली सिंचाई सुविधा तथा शासन की कृषि विकास की योजनाओं का लाभ लेकर साल भर में 10 लाख रुपये से अधिक की नियमित आय प्राप्त कर रहे हैं। अब उनका इरादा खेती के साथ डेयरी व्यवसाय को अपनाने का है। इससे अतिरिक्त आय मिलने के साथ खेतों के लिये जैविक खाद का भी प्रबंध हो जायेगा।

सफल किसान रामबिहारी ने बताया कि गाँव में बाणसागर की नहर का पानी आ जाने से अब धान, गेहूँ, चना, मसूर, अरहर आदि की सफलतापूर्वक खेती हो रही है। रामबिहारी स्वयं की जमीन के साथ 20 एकड़ में अनुबंध के आधार पर खेती कर रहे हैं। अभी इनकी गेहूँ की फसल तैयार है, इससे लगभग 15 लाख रुपये का लाभ मिल जायेगा। इसके अलावा टमाटर, चुकंदर, बैंगन, प्याज, लौकी तथा अन्य सब्जियों से वर्ष भर में एक से 1.5 लाख रुपये की आय हो जाती है।

रामबिहारी ने खेती को बेहतर करने के लिये शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ लिया है। कृषि विभाग द्वारा अनुदान पर ट्रेक्टर, रोटावेटर, स्प्रिंकलर, सिंचाई पम्प, रीपर तथा अन्य कृषि उपकरण लिये हैं। उद्यानिकी विभाग की योजनाओं से अनार एवं आँवले का रोपण करवाया है। खेती से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये सागौन के 600 पौधे भी रोपित किये हैं तथा हर वर्ष 100 पौधे निरंतर रोपित कर रहे हैं। खेत की सुरक्षा के लिये कटीली तार लगाने के साथ करौंदे के पेड़ लगाये हैं। इनसे भी 10 हजार रुपये की आय प्राप्त हो जाती है। इनके मुताबिक सही तकनीक से खेती करने पर लाभ ही लाभ है।

गुना जिले के ग्राम तरावटा के 55 वर्षीय रामभरोसे को टमाटर की खेती ने दिहाड़ी मजदूर से लखपति बना दिया है। टमाटर की पहली फसल ही रामभरोसे को 20 लाख रुपये की आय दे गई। इन्होंने बागवानी व्यवसाय को अलग पहचान दी है। रामभरोसे आज भी वे दिन भूले नहीं हैं, जब गेहूँ एवं चने की फसल से कम आमदनी होने के कारण उन्हें घर का खर्च चलाने के लिये दिहाड़ी मजदूरी करने जाना पड़ता था।

उद्यानिकी विभाग ने उनको वैज्ञानिक ढंग से हाइब्रिड के टमाटर की खेती करना सिखाया और इसके लिये अनुदान भी दिलवाया। उद्यानिकी विभाग ने उन्हें टमाटर के साथ-साथ उन्नतशील धनिया की खेती के लिये भी अनुदान दिलवाया। अकेले टमाटरों की आमदनी से न केवल उन्होंने दो प्लाट खरीद लिये हैं तथा एक प्लाट पर मकान बनवा लिया, बल्कि दो बोर करवा लिये हैं और एक मोटर और एक ट्रॉली भी खरीद ली है और खेत में एक डीपी रखवा ली है। एक बेटी की शादी कर दी है और कर्ज पर एक ट्रेक्टर भी उठा लिया है। साथ ही, बागवानी फसलों की कमाई से कर्जे की किश्तें भी अदा कर रहे हैं।

बागवानी की फसल से उत्साहित रामभरोसे ने ठेके पर पन्द्रह बीघा जमीन ले ली है। आज इनके नाम की चर्चा जिले के बाहर तक पहुँच गई है। इनके खेतों में करीब 500 लोगों को सालाना रोजगार मिल रहा है।

उज्जैन जिले में बड़नगर तहसील के ग्राम चिकली के कृषक बालू सिंह आंजना ने अपनी 14 बीघा जमीन में दो पॉली-हाउस लगाये हैं। पॉली-हाउस में उन्होंने शुरूआत में टमाटर और खीरे की खेती की। छह लाख रुपये खीरे से और तीन लाख रुपये टमाटर से मुनाफा कमाया। कृषक आंजना का मानना है कि एक बीघा के पॉली-हाउस में 10 बीघा के बराबर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। उद्यानिकी विभाग की मदद से इन्होंने लगभग 96 लाख रुपये की लागत से पॉली-हाउस का निर्माण कराया। इसमें 48 लाख रुपये का अनुदान उन्हें शासन से मिला है। पॉली-हाउस जरबेरा फूल के लिये बनवाया है। पिछले सीजन में जरबेरा नहीं लगा पाने के कारण इन्होंने पॉली-हाउस में खीरे एवं टमाटर की खेती की। अकेली इन दो फसल से ही इन्होंने नौ लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया है। जरबेरा फूल की खेती अगले सीजन से शुरू करेंगे।

रीवा के उद्यमी नीरज ताम्रकार ने बर्तन व्यापार के पुश्तैनी व्यवसाय को छोड़कर आधुनिक तथा जैविक खेती से सालभर में छ: लाख से अधिक की आय प्राप्त की है। इन्होंने खेती के साथ पशुपालन को भी अपनाया है। नीरज स्वयं लाभ कमाने के साथ 20 से 25 लोगों को सालभर रोजगार भी दे रहे हैं। इनके अनुसार अगर हर किसान मिट्टी के अनुसार उचित प्रबंधन के साथ खेती करे, तो तीन वर्षों में उसकी आय निश्चित ही दोगुनी हो जायेगी। इन्होंने स्वयं की 22 एकड़ भूमि में तथा ठेके पर 10 एकड़ भूमि लेकर खेती की है। इसमें से 15 एकड़ में केवल आलू की खेती की है। आलू बोने तथा खोदने के लिये मशीनों का उपयोग किया है। शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर स्प्रिंकलर, टपक सिंचाई, वर्मी पिट, ट्रेक्टर, ट्यूबवेल, पोटेटो प्लांटर आदि कृषि उपकरणों की व्यवस्था की है। उद्यानिकी विभाग की योजनाओं से फलदार पौधों का रोपण भी करवाया है।

कृषक नीरज ने बताया कि 15 एकड़ में आलू की खेती एक चिप्स बनाने वाली कम्पनी के अनुबंध के आधार पर कर रहे हैं। कम्पनी से ही खाद, बीज तथा कीटनाशक मिले हैं। उत्पादित आलू वैज्ञानिक तरीके से भंडारित हैं। इससे लगभग 30 हजार रुपये प्रति एकड़ की आय है। इसके अलावा चुकंदर, बैंगन, लौकी, टमाटर, प्याज आदि की खेती से भी नियमित आमदनी हो रही है। शेष बची भूमि पर गेहूँ, चना, मटर, मूंग तथा हल्दी की खेती चार वर्षों से कर रहे हैं। खेत में ही 7 गायों की डेयरी स्थापित की है। इनसे 50 लीटर दूध की प्रतिदिन बिक्री हो रही है। गाय के गोबर और गौमूत्र से खाद तथा वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर रहे हैं। गायों के लिये बरसीम, जौ तथा अन्य हरा चारा खेत से ही प्राप्त हो जाता है। इससे डेयरी का खर्च घटा है। गर्मी में मूंग तथा सब्जी का उत्पादन भी कर रहे हैं।

झाबुआ जिले में किसान जुवान सिंह पिता अनसिंह निवासी रंगपुरा ने खेती को व्यवसाय की तरह करना प्रारंभ किया है। इन्होंने उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर खेती को लाभ का धंधा बना लिया है। परम्परागत खेती से जितनी जमीन में मात्र 20-25 हजार रुपये वार्षिक कमाई होती थी, उसी से अब वह 60 से 70 हजार रुपये वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं। सोयाबीन, मक्का, कपास जैसी परम्परागत खेती करने वाले किसान जुवानसिंह को जब उद्यानिकी फसलों का मार्गदर्शन मिला, तो उन्होंने उद्यानिकी फसलों के उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर विकास की रफ्तार पकड़ी। खरीफ फसल से 20-25 हजार वार्षिक कमाने वाले जुवानसिंह ने अपने खेत में बैंगन की फसल लगाई और एक एकड़ से 60-70 हजार रुपये वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं।

शिवपुरी जिले के ग्राम सकलपुर के किसान जुगतार सिंह ड्रिप सिंचाई योजना का उपयोग कर परम्परागत फसलों के साथ-साथ टमाटर की खेती कर रहे हैं। इससे एक लाख 30 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के मान से इन्हें मुनाफा मिल रहा है। जुगतार सिंह ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में वर्ष 2016-17 में दो हेक्टेयर जमीन पर डेढ़ लाख रुपये की लागत से ड्रिप सिंचाई का संयंत्र लगाया। इसके लिये इन्हें 55 प्रतिशत अनुदान भी मिला। ड्रिप सिंचाई से प्रति हेक्टेयर 560 क्विंटल टमाटर का उत्पादन भी हुआ। इस टमाटर को बेचने से लगभग एक लाख 30 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर का मुनाफा भी हुआ।

तरबूजे की खेती अमूमन नदी किनारे करते हैं। कटनी जिले में बड़वारा विकासखण्ड के ग्राम गुड़ाकला के लगभग 20 किसान अपने खेतों में तरबूज की खेती कर रहे हैं। इससे विगत वर्षों में उन्हें अच्छा मुनाफा भी हुआ है। गेहूँ की फसल से होने वाले फायदे की तुलना में यह मुनाफा कई गुना अधिक है।

 सक्सेस स्टोरी (रीवा, गुना, उज्जैन, झाबुआ, शिवपुरी, कटनी)

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश