Posted on 19 Apr, 2018 5:27 pm

 


 

 

शासन की अलग-अलग योजनाओं में बेहतर  ताल-मेल के जरिए किस तरह लोगों को सशक्त बनाकर उनके जीवन में खुशहाली, उमंग और उत्साह भरा जा सकता है। इसका जीता-जागता उदाहरण देखा जा सकता है ग्राम कल्याणपुर में निवासरत  दिव्यांग पंचू के परिवार में।  यह कहानी है एक मेहनतकश पंचू राम और उसके परिवार की। पंचू और उसके परिवार के लोगों ने राज्य और केन्द्र शासन की विभन्न योजनाओं का न केवल लाभ उठाया बल्कि लगातार कोशिश और अपनी मेहनत के बल पर अपने जीवन स्तर को सुधारने में सफलता पायी है। पंचू राम और उसके परिवार को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना तथा स्वच्छ भारत मिशन परिवार को जहां सशक्त बनाया, वहीं बेहतर आजीविका के साधन जुटाने में सहायक सिद्ध रहा है।
       कबीरधाम जिले के विकासखण्ड सहसपुर लोहारा के गांव कल्याणपुर में रहने वाले दिव्यांग पंचू ने बताया कि परिवार के पास पहले रहने के लिये अपनी पक्की छत नहीं थी। वे एक टूटे-फूटे से कच्चे घर में रहते थे। यहां उनके पास न तो स्वयं के रहने लिए एक अच्छी जगह थी और न ही अपनी गाय को रखने के लिए साफ-सुथरी जगह। शौचालय भी नहीं होने के कारण उनकी पत्नी को असहज परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। हालात ऐसे थे कि जीवन-यापन का आधार केवल रोजी-मजदूरी करना ही था। इन हालातों के बीच पंचू राम ने जैसे-तैसे अपने परिवार का जीवन-यापन तो कर रहे थे, लेकिन प्रतिष्ठापूर्ण जीवन-यापन केवल एक सपना ही था। पंचू की तमाम कोशिश भी आर्थिक तंगी के कारण असफल होती जा रही थी। ऐसे में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा), स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और प्रधानमंत्री आवास योजना, ग्रामीण(पी.एम.ए.वाय.) ये तीनों ही योजनाएं इस परिवार के लिए वरदान बनी।
पंचू को कोशिशों के बाद ग्राम पंचायत से आवास योजना से पक्के मकान मिलने और महात्मा गांधी नरेगा से आवास निर्माण में मजदूरी प्राप्त होने की जानकारी प्राप्त हुई। इसके साथ ही मनरेगा से गाय के लिए पक्का फर्श और स्वच्छ भारत मिशन से शौचालय बनने की जानकारी ने दिव्यांग पंचू के प्रतिष्ठापूर्ण जीवन जीने के सपने को पूरा करने के हौसले को पंख दे दिये। पंचू ने जब खुद का पक्का घर, शौचालय और गाय के लिए पक्का फर्श मिलने की बात अपनी जीवन-संगिनी लक्ष्मी बाई को बताई, तो वह खुशी के मारे उछल पड़ी। पंचू की इस खबर से लक्ष्मीबाई के चेहरे पर खुशी और आंखों में सम्मान साफ दिखाई दे रहा था। आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब पंचू के आवेदन पर ग्राम पंचायत से उसे आवास, शौचालय और पशु के लिए पक्का फर्श की स्वीकृति मिल गई।
    प्रधानमंत्री आवास योजना से मिले अनुदान से पंचू और लक्ष्मी का मकान बनना शुरु हो गया। दोनों ने मिलकर मेहनत की और महात्मा गांधी नरेगा से 87 दिनों की 13 हजार 821 रुपयों की मजदूरी भी प्राप्त की। इनकी मेहनत रंग लाई और पक्का मकान बनकर तैयार हो गया। खुद का मकान बनने के बाद लक्ष्मीबाई चेहरे में मुस्कान लिये कहती हैं- ‘हमन कभु नई सोचे रेहेन की हमर घर पक्का होही, काबर कि हमन दुनों झन बनी-भूती करके अपन घर ल चलाथन। ये घर ह मोर सपना रहिस, जेन मोर आंखी के आघु म धीरे धीरे पुरा होइस’। अपनी जीवन साथी के शब्दों में हां में हां मिलाते हुए पंचू भी अपने मन की बात बताते हुये कहते हैं कि ‘साहब मै ह शरीर से अतेक कमजोर हवं कि ठीक से रेंगे नई सकंव, मै ह कभु नई सोचे रहेंव कि मोर घर बन पाही, काबर कि हमन रोज कमाथन अऊ खाथन। अतेक पैसा बचाये के बारे में सपना में भी नई सोचे रहेंव’। घर बनने के बाद अब बारी थी, लक्ष्मी की गाय के रहने के लिए पक्के फर्श (प्लेटफार्म) की। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से 34 हजार 872 रुपयों की लागत से पक्के फर्श का निर्माण हुआ। बतौर लक्ष्मी के शब्दों में, अब उसकी गाय के लिये भी कोठा बन गया । इस कोठे में कोटना तो है ही, साथ ही पानी निकासी का साधन भी है। इसी कारण घर और कोठे में पूरी साफ-सफाई रहती है।

पंचू और उसके परिवार के लिये रोज सुबह-शाम खुले में शौच के लिये बाहर खुले में जाना बहुत ही कष्टदायक था। पंचु को दिव्यांग होने के कारण  बहुत तकलीफ होती थी, साथ ही लक्ष्मीबाई को सड़क किनारे बैठने की जिल्लत अलग उठानी पड़ती थी। अब स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) से मिले 12 हजार रुपयों के अनुदान से घर में ही शौचालय बन गया है। अब पंचू परिवार सहित प्रतिदिन शौचालय का उपयोग करते हैं। पंचू और उसके परिवार की स्वच्छता के प्रति ललक ने गांव को स्वच्छता के आंदोलन से जोड़ने में महती भूमिका निभायी है। महात्मा गांधी नरेगा और अन्य योजनाओं के तालमेल (अभिसरण) से मिले लाभ से पंचू, अब गांव में प्रतिष्ठापूर्ण जीवन जीने लगा।
     उसके इस जीवन को तब और बल मिला, जब उसके आवदेन पर, उसकी छोटी-सी भूमि पर खेती-बाड़ी की सिंचाईं के लिये कूप(कुआं) निर्माण को मंजूरी मिली। 26 मार्च, 2016 को वो दिन आ गया, जब महात्मा गांधी नरेगा से एक लाख 67 हजार 375 रुपयों की लागत से कुआं बन जाने से पंचू शक्ति अनुसार सपरिवार अपनी बाड़ी में काम कर रहा है और सम्मानपूर्वक जीवन जी रहा है। अब उसे किसी के यहां बनी-भूती (मजदूरी) करने की जरुरत नहीं पड़ती है। लक्ष्मी बाई एवं पंचू से मिलकर और इनके चेहरे की मुस्कान को देखकर, यह निश्चित ही कहा जा सकता है कि महात्मा गांधी नरेगा और योजनाओं के तालमेल ने इनके जीवन में खुशहाली, उमंग और उत्साह से भर दिया है।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग छत्तीसगढ़

Recent