Posted on 05 Nov, 2019 3:34 pm

देश में सर्वाधिक वन क्षेत्र मध्यप्रदेश में है। प्राचीनकाल से ही मध्यप्रदेश में जड़ी-बूटियों की बहुतायत रही है। विगत कई वर्षों में हुए शोध और अध्ययन में प्रदेश के वन क्षेत्रों में लगभग 216 वृक्ष प्रजातियाँ पाई गई हैं। इनमें से 32 प्रजातियाँ संकटापन्न और दुर्लभ स्थिति में हैं। वन विभाग ने 14 संकटापन्न और 18 विलुप्ति की कगार पर पहुँची वृक्ष प्रजातियों को बचाने के हर संभव प्रयास शुरू कर दिये हैं। इन प्रजातियों का औषधीय और वन्य-प्राणियों के लिये चारे का महत्व होने के साथ वनवासियों की परम्पराओं, रीति-रिवाजों और विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति से भी गहरा संबंध है। जैव-विविधता की दृष्टि से इनका स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान है।

अध्ययन में संकटापन्न वृक्ष प्रजातियों को 4 वर्गों-अत्यधिक खतरे में, संवेदनशील और दुर्लभ/खतरे के नजदीक वर्ग में विभाजित किया गया है। प्रदेश में 3 प्रजातियाँ दहिमन, शल्यकर्णी और मेंदा को अत्यधिक खतरे वाली प्रजाति में रखा गया है। शल्यकर्णी वृक्ष की पत्तियाँ महाभारत के युद्ध में सैनिकों के घाव को भरने के लिये ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध भी हैं। इसकी छाल और पत्ती शारीरिक दर्द, मधुमेह, बवासीर, गंजापन, कैंसर में भी उपयोग करते हैं। मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने 27 सितम्बर को भोपाल में वृक्ष महोत्सव के दौरान अन्य दुर्लभ प्रजातियों के साथ इस पौधे को भी रोपा है। दहिमन का प्रयोग स्त्री रोग, रक्त विकार, ह्रदय विकार, रक्तदाब, चर्मरोग और विष विकार में किया जाता है। मेंदा छाल और पत्ती का प्रयोग कैंसर, ह्रदय रोग, बवासीर, हड्डी टूटना और पशु रोग में होता है।

खतरे वाली प्रजातियों में सोनपाठा, गरुड़ वृक्ष, बीजा और लोध शामिल हैं। सोनपाठा या अरलू वृक्ष की जड़, छाल, पत्ती और फल का औषधीय प्रयोग होता है। इससे बनी दवाइयों का प्रयोग उदर विकार, घायलावस्था, श्वांस रोग, वातरोग और मिर्गी दूर करने में होता है। गरुड़ या सोनपाडर की जड़, पत्ती और फल का उपयोग उदर विकार और सर्प विष दूर करने वाली दवाइयों में होता है। बीजा वृक्ष की लकड़ी और गोंद उपयोगी हैं। गोंद का प्रयोग मधुमेह, उदर विकार, रक्तदाब और पुरुष रोग में होता है, जबकि लकड़ी का उपयोग ढोलक बनाने में होता है। लोध वृक्ष का उपयोगी भाग छाल और फूल हैं। इनका प्रयोग बुखार, कफ, ह्रदय रोग, रक्तदाब, सूजन, स्त्री और चर्म रोग में किया जाता है।

संवेदनशील प्रजातियों में कुम्भी, पीला पलाश, खरपट, पाडर, कुल्लू, रोहिना और शीशम शामिल हैं। कुम्भी की जड़, छाल और फल का उपयोग सर्पदंश, परिवार नियोजन, बुखार, कुष्ठ रोग और घाव भरने की दवा बनाने में किया जाता है। पीला पलाश या गबदी की छाल और गोंद का प्रयोग चर्म, मिर्गी रोग और उदर विकार औषधि में किया जाता है। खरपट या केंकड की छाल का प्रयोग किडनी, कैंसर और श्वांस की औषधियों में होता है। पाडर या अर्धपाकरी वृक्ष की छाल, पत्ती और फल से नेत्र और मानसिक विकार की आयुर्वेदिक औषधियाँ तैयार की जाती हैं। कुल्लू की छाल और गोंद का प्रयोग उदर विकार, ह्रदय रोग, अस्थिभंग और पशु चिकित्सा में करते हैं। रोहन या रोहिना वृक्ष की छाल रक्तदाब, ह्रदय, लीवर, प्रसूति और वात रोग की औषधियों में करते हैं। शीशम की लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर में सर्वविदित है परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि इसकी छाल और पत्ती पुरुष रोग और चर्म रोग के लिये औषधि निर्माण में बहुत उपयोगी है।

खतरे के नजदीक वृक्ष श्रेणी में धावड़ा, सलई, भिलवा, गधा पलाश, धामन, निर्मली, अंजन, मोखा, तिंसा, खरहर, भेड़ार, अचार, कुसुम, भुडकुट, खटाम्बा, पीपरी बड़ प्रजाति और बड़ प्रजाति शामिल है जबकि हल्दू खतरे में (एन्डेंजर्ड) प्रजाति में शामिल है। हल्दू की छाल और पत्ती का प्रयोग पुरुष रोग और चर्म रोग औषधि तथा लकड़ी फर्नीचर बनाने में काम आती है।

धावड़ा या धवा की छाल श्वांस रोग औषधि में प्रयोग की जाती है। धवा की लकड़ी बहुत मजबूत होने के कारण इसका उपयोग कृषि उपकरण बनाने में होता है। इसकी लकड़ी बहुत देर तक जलने के कारण भी मशहूर है। सलई वृक्ष की छाल, बीज और गोंद का प्रयोग टी.बी., घायलावस्था और वात रोग की दवाइयाँ बनाने के साथ खाद्य पदार्थ और सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता है। भिलवा या भिलमा वृक्ष की छाल और बीज का प्रयोग बाल एवं चर्म रोग के साथ स्याही बनाने में भी होता है।

गधा पलाश वृक्ष के छाल, पत्ते और फूल का प्रयोग सूजन, खून की कमी, पुरुष रोग और पशु रोग में होता है। कुचला या निर्मली वृक्ष के बीज का प्रयोग कैंसर, वात और चर्म रोग में होता है। इसका बीज काफी विषैला होता है। अंजन वृक्ष के सभी 5 भागों का प्रयोग स्त्री रोग और विष विकार में होता है। मोखा वृक्ष के फल का प्रयोग नेत्र विकार में करते हैं। तिंसा वृक्ष की छाल का उपयोग उदर विकार और निमोनिया में करते हैं। इसकी छाल का प्रयोग मछली पकड़ने में किया जाता है।

खरहर वृक्ष की छाल और पत्ती का उपयोग उदर, यकृत विकार, घाव भरने और पशुओं के तिलबढ़ रोग में होता है। भेड़ार वृक्ष की जड़ और फल का प्रयोग उदर और लिवर की बीमारी में होता है। अचार वृक्ष की छाल और बीज का उपयोग उदर विकार औषधि के साथ खाद्य पदार्थों में भी होता है। कुसुम वृक्ष की छाल और बीज का उपयोग विष विकार, पशु रोग और चर्म रोग में होता है। भुडकुट वृक्ष की जड़, छाल और बीज का प्रयोग सर्पदंश, पुरुष रोग, शीतवात और सूजन की दवा बनाने में होता है। खटाम्बा वृक्ष की जड़, छाल और फल का प्रयोग ह्रदय रोग, रक्तदाब, स्त्री रोग एवं उदर रोग में किया जाता है। पीपरी बड़ प्रजाति वृक्ष की छाल और पत्ती का प्रयोग मधुमेह, घाव भरने एवं मुँह के छालों में किया जाता है। बड़ प्रजाति वृक्ष की जड़, छाल एवं पत्तों का प्रयोग बुखार, चर्म रोग, घाव भरने और मुँह के छालों में किया जाता है।

 

IUCN वर्गीकरण

संख्या

स्थानीय नाम

वैज्ञानिक नाम

Family

अत्यधिक खतरे में

(Critically Endangered)

03

1. दहिमन

Cordia macleodii

Boraginacca

2. शल्यकर्णी

Dillenia pentagyna

Dillenianceae

3. मेंदा

Litsea glutinosa

Lauranceae

खतरे में

(Endangered)

04

4. सोनपाठा

Oroxylum indicum

Biognoniaceae

5. गरुड़ वृक्ष

Radermachera xylocarpa

Biognoniaceae

 

 

 

 

 

 

6. बीजा

Pterocarpus marsupium

Fabaceae

7. लोध

Symplocus racemosa

Symplocaceae

संवेदनशील

(Vulnerable)

07

8. कुंभी

Careya arborea

Lecythidaceae

9. गबदी

Chchlospermum religiosum

Chchlospermaceae

10. केंकड

Garuga pinnata

Burseracxeae

11. पाडर

Stereospermum chelonoides

Bignoniaceae

12. कुल्लू

Sterculiaurens

Stereuliaceae

13. रोहिना

Soymida Febrifuga

Meliaceae

14. शीशम

Dalbergia latifolia

Fabaceae

दुर्लभ/खतरे के नजदीक

(Near Threatened/Rare)

18

15. धवा

Anogeissus Latifolia

Combretaceae

16. सलई

Boswellia serrata

Burseraceae

17. भिलमा

Semecarpus anacardium

Anacardiaceae

18. गधा पलाश

Erythrina suberosa

Fabaceae

19. धनकट

Grewia tiliifolia

Tiliaceae

20. कुचला

Strychnos potatorum

Loginaceae

21. अंजन

Hardwickia binata

Fabaceae

22. मोखा

Schrebera swietenioides

Oleaceae

23. तिन्सा

Desmodium oojeinense

Fabaceae

24. खरहर

Ceriscoides turgida

Rubiaceae

25. भेड़ार

Tamilnadia uliginosa

Rubiaceae

26. अचार

Buchanania cochinchinensis

Anacardiaceae

27. कुसुम

Schleichera oleosa

Sapindaceare

28. भुडकुट

Hymenodictyon orixense

Rubiaceae

29. हल्दू

Adina cardifolia

Rubiaceae

30. खटाम्बा

Spondias pinnata

Anacardiaceae

31. बड़ प्रजाति

Ficus amplissima

Moraceae

32. बड़ प्रजाति

Ficus caulocarpa

Moraceae

कुल संख्या

32

 

साभारजनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश​​

 

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