Updated: Mar, 05 2021

Rule 65 of M.P.Civil Services (Pension) Rules, 1976

शासकीय बकाया
(Government Dues)
नियम 65. शासकीय बकाया की वसूली और समायोजन (Recovery and adjustment of Government dues) - (1) प्रत्येक सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवक का कर्त्तव्य होगा कि वह अपनी सेवानिवृत्ति की तिथि के पूर्व सभी शासकीय बकाया का चुकारा करे।
(2) जहाँ शासकीय सेवक ने शासकीय बकाया का चुकारा नहीं करा है और ऐसी बकाया अभिनिश्चित् किये जाने योग्य है तो -
(क) उस व्यक्ति से उसके समतुल्य राशि नगद जमा ली जा सकती है; अथवा
(ख) अभिनिश्चित् शासकीय - बकाया के कारण उसके बराबर वसूली योग्य धनराशि, उसके नाम-निर्देशितों को अथवा कानूनी वारिस को भुगतान होने वाले उपदान से काट ली जावेगी।
स्पष्टीकरण - "अभिनिश्चित् शासकीय - बकाया" में शामिल हैं -- भवन निर्माण अथवा वाहन अग्रिम की बकाया, शासकीय आवास पर वास्तविक कब्जे से सम्बन्धित किराया और अन्य प्रभार का बकाया, वेतन और भत्तों का अधिक भुगतान और आयकर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) के अधीन स्त्रोत पर कटौती आय कर की बकाया।
(1)
शासकीय देनदारी की पेन्शन पर भुगतान की जाने वाली राहत से वसूली
किसी शासकीय सेवक से, सेवा अवधि काल की शासन की देनदारी (Recoveries) को पेंशन से उसकी लिखित सहमति के बिना, पेंशन अधिनियम 1871 में इसके लिए प्रतिबन्ध होने के कारण नहीं की जा सकती। किन्तु यह प्रश्न उपस्थित किया गया है कि क्या शासन की ऐसी देनदारियों की वसूली पेन्शन पर भुगतान की जाने वाली राहत से की जा सकती है अथवा नहीं। इस सम्बन्ध में यह स्पष्ट किया जाता है कि पेंशन पर भुगतान की जाने वाली राहत को पेंशन अधिनियम 1871 के अन्तर्गत संरक्षण प्राप्त नहीं है। इसलिये शासन की ऐसी देनदारियों की राहत से वसूली की जा सकती है।
[वित्त विभाग, ज्ञापन क्र. एफ. बी 6/5/78/नि-2/चार, दिनांक 8-11-1978]
(2)
विषय - सेवानिवृत्त शासकीय सेवकों के लम्बी अवधि के ऋणों के सम्बन्ध में अमांग प्रमाण पत्र (No dues certificate) जारी करने के सम्बन्ध में।
शासन के ध्यान में यह बात आई है कि बहुत से सेवा निवृत्त शासकीय सेवकों के पेन्शन ग्रेच्युटी के मामलों का निराकरण समय से इसलिये नहीं हो पाता क्योंकि शासन द्वारा उनको दिए गये लम्बी अवधि के ऋणों के सम्बन्ध में महालेखाकार से अमांग प्रमाण-पत्र (No dues certificate) अथवा कटौत्री की राशियों का प्रमाणीकरण यथा समय प्राप्त नहीं हो पाता है। यद्यपि विभागीय अभिलेख के अनुसार मूलधन तथा देय ब्याज की समस्त राशि की वसूली हो चुकी है।
2. मध्यप्रदेश सिविल सर्विसेस (पेन्शन) नियमों के नियम 59 के अनुसार, पेन्शन प्रकरण महालेखाकार को सम्बन्धित शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति की तिथि के 12 माह पूर्व अग्रेषित कर दिया जाना चाहिये । पेन्शन प्रकरण महालेखाकार को भेजने के तत्काल पश्चात् कार्यालय प्रमुख द्वारा उस शासकीय सेवक के विरुद्ध वसूली योग्य शासकीय राशियों के सम्बन्ध में समीक्षा करनी चाहिए ताकि वास्तविक सेवानिवृत्ति की स्थिति तक लम्बी अवधि के ऋणों एवं उ पर देय ब्याज के सम्बन्ध में स्थिति पूर्णतः स्पष्ट रहे व अमांग प्रमाण पत्र भेजने में विलम्ब न हो।
3. वित्त विभाग के ज्ञापन क्रमांक 1065/2781/चार/नि-4/84, दिनांक 28-7-84 द्वारा यह निर्देश जारी किये गये हैं कि जिस राजपत्रित और अराजपत्रित शासकीय सेवकों के वेतन तथा भत्ते आ संवितरण अधिकारियों द्वारा आहरित किये जाते हैं, उनके प्रकरणों में भवन/प्लाट का रहननामा आहरण एवं संवितरण अधिकारी के इस प्रमाण-पत्र के आधार पर कि आवेदक से अग्रिम/ब्याज की पूर्ण राशि वसूली हो चुकी है, महालेखाकार से पुष्टि की अपेक्षा में सम्बन्धित शासकीय सेवक से निर्धारित प्रपत्र में सहमति प्राप्त कर मुक्त (Release) कर दिया जावे। इन आदेशों के अनुक्रम में राज्य शासन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि लम्बी अवधि के ऋणों के सम्बन्ध में जहाँ कार्यालय प्रमुख उनके कार्यालय में उपलब्ध अभिलेख अनसार इस बात से पूर्णतः सन्तष्ट है कि ऋण तथा ब्याज की सम्पूर्ण राशि की वसूली हो चुकी है वहाँ इस प्रकार विभागीय अभिलेख से सुनिश्चित होने के उपरान्त, संलग्न प्रारूप में सम्बन्धित शासकीय सेवक से सहमति पत्र प्राप्त कर इस हेतु अमांग प्रमाण-पत्र जारी कर सकते हैं ताकि सेवानिवृत्त शासकीय सेवक का पेन्शन प्रकरण इस कारण निर्रथक रूप से लम्बित न रहे।
[वित्त विभाग का पृष्ठांकन क्र. इ-4/11/86/नि-चार, दिनांक 23-10-1986 संलग्न]
सहमति पत्र का प्रारूप
 
मैं (नाम)............................ (वर्तमान पद अथवा सेवानिवृत्त (पदनाम)............. विभाग कार्यालय.................... सहमति देता हूँ कि मुझे जो गृह निर्माण/भवन क्रय अग्रिम शासन द्वारा स्वीकृत किया गया था उसकी पूर्ण वसूली ब्याज सहित विभागीय लेखा के अनुसार हो चुकी है। यदि विभागीय गणना तथा महालेखाकार की गणना में कोई अन्तर आता है या कोई चूक दृष्टिगोचर होती है तो वह राशि मैं एकमुश्त तुरन्त जमा करने को तैयार हूं। यदि बताई गई राशि मेरे द्वारा जमा नहीं कराई जाती है तो मध्यप्रदेश शासन को पूर्ण अधिकार होगा कि वह ऐसी राशि को मेरी पेन्शन पर देय राहत की राशि से एकमुश्त अथवा सुविधाजनक किश्तों में वसूल कर लें तथा भविष्य में इसके लिये मुझे या मेरे उत्तराधिकारी को कोई आपत्ति नहीं होगी।
दिनांक……………………..  
साक्षी (पूर्ण पता सहित) आवेदक के हस्ताक्षर..................
1………………………….. पूरा नाम..................................
2………………………….. वर्तमान पता.............................

 

 
अमांग प्रमाण-पत्र राज्य शासन आदेश
(3)
विषय - शासकीय कर्मचारियों को जल कर का "अमांग प्रमाण-पत्र' दिया जाना।
राज्य शासन द्वारा शासकीय आवास गृहों में रह रहे शासकीय सेवकों को “जल कर अमांग प्रमाण-पत्र" दिये जाने की प्रक्रिया को सरल एंव सुविधाजनक बनाये जाने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि शासकीय कर्मचारियों को प्रत्येक वर्ष के अन्त में एक जल कर “अमांग प्रमाण-पत्र' दिया जावे यदि उसने जलकर की राशि का भुगतान नियमित रूप से कर दिया है अथवा यह राशि कर्मचारी के वेतन से काट ली गई है। यह प्रमाण-पत्र सम्बद्ध सहायक यन्त्री द्वारा दिया जाएगा। [म.प्र. शासन, लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग ज्ञापन क्र. एफ. 16/27/34/1/86, दि. 24-4-1987]
 
(4)
विषय - शासकीय सेवकों से शासकीय आवास के किराये की वसूली एवं उसका समायोजन
राज्य शासन ने निर्णय लिया है कि जिन कर्मचारियों को शासकीय आवास गृह आवंटित हों, उन्हें शासकीय सेवा से निवृत्त होने पर जब तक वे शासकीय आवास गृह खाली कर लोक निर्माण विभाग को न सौंप दें, उन्हें वर्तमान व्यवस्था के अनुसार संभावित पेन्शन की राशि का शत-प्रतिशत भुगतान तो प्रारम्भ कर दिया जाए परन्तु इस प्रकार के मामलों में प्रत्याशिक डी. सी. आर. ग्रेच्युटी के सम्बन्ध में वित्त विभाग के ज्ञापन क्रमांक एफ. बी. 6/5/89/नि-2/चार, दिनांक 12-9-89 तथा ज्ञाप क्रमांक एफ. बी. 6/5/89/नि-2/चार, दिनांक 23-4-90 द्वारा प्रसारित निर्देशों को निरस्त कर निर्धारित राशि रोकने अथवा निर्धारित राशि की बैंक गारंटी लेने के स्थान पर यह व्यवस्था की जाए कि ऐसे कर्मचारियों को प्रत्याशित डी. सी. आर. ग्रेच्युटी/ग्रेच्युटी का भुगतान, सम्बन्धित कर्मचारी द्वारा मकान रिक्त करने की तथा करने की तथा पूरा किराया पटा देने की सूचना लोक निर्माण विभाग से सूचना प्राप्त होने के बाद ही किया जाए। इससे जैसे ही सम्बन्धित सेवानिवृत्त कर्मचारी आवास गृह रिक्त करेंगे, उनकी ग्रेच्युटी का तत्काल भुगतान, किया जा सकेगा।
 
(5)
विषय - शासकीय आवास गृहों के संबंध में लोक निर्माण विभाग द्वारा अदेय प्रमाण- पत्र बाबत।
राज्य शासन के ध्यान में यह बात लाई गई है कि सेवा निवृत्त शासकीय सेवकों के पेंशन एवं सेवानिवृत्ति परिलाभों के निराकरण में विलम्ब का एक प्रमुख कारण सेवा काल में उन्हें अवंटित आवास गृह के बाबत लोक निर्माण विभाग से अदेय प्रमाण-पत्र प्राप्त न होना है। जिन का कर्मचारियों को शासकीय आवास आवंटित किये जाते हैं, उनके विभागों द्वारा वेतन देयकों से प्रत्येक माह आवास के किराये की राशि काटी जाकर लोक निर्माण विभाग को राशि हस्तान्तरित की जाती है। अतः यह निर्देशित किया जाता है कि लोक निर्माण विभाग के संबंधित अधिकारियों द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष के समाप्त होने के तुरन्त पश्चात् शासकीय आवास गृहों के किराये की बकाया राशि की सूची तैयार की जाकर 30 जून के पूर्व संबंधित आहरण एवं संवितरण अधिकारियों को प्रेषित की जाएगी एवं अभिस्वीकृति प्राप्त की जाएगी। यदि 30 जून तक उक्त सूची प्राप्त नहीं होती है तो यह माना जा सकेगा कि आवास गृहों का किराया नियमित रूप से जमा हो चुका है। लोक निर्माण विभाग से निर्धारित समयावधि में बकाया किराये कीसूची प्राप्त न होने की स्थिति में बाद में यदि कोई किराये की राशि अवशेष निकलती है तो उसका पूर्ण उत्तरदायित्व लोक निर्माण विभाग के संबंधित अधिकारी का होगा।
2. उपर्युक्त निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में मकान किराये के अदेय प्रमाण-पत्र में होने वाले विलम्ब को समाप्त करने तथा सेवानिवृत्त कर्मचारियों की कठिनाईयों को दूर करने की दृष्टि से सेवानिवृत्ति की तिथि तक आवास किराये की राशि वसूल होने और उक्त अवधि तक किराया बकाया न होने का प्रमाण-पत्र जारी करने का उत्तरदायित्व संबंधित विभागों जहाँ कि शासकीय सेवक पदस्थ हैं और जहां से सेवानिवृत्त हुए हैं, के आहरण संवितरण अधिकारियों को सौंप जाता है।
3. जहां तक जल कर के अमांग प्रमाण-पत्र का प्रश्न है, यह भुगतान कर्मचारी द्वारा नगर निगम/नगर पालिका द्वारा उपलब्ध कराये गये देयकों के आधार पर प्रतिमाह सीधे ही जमा किया जाता है। यदि किसी माह में जल कर जमा नहीं होता है तो आगामी माह के देयक के साथ अवशेष राशि जोड़कर वसूल की जाती है। अतः जल कर के बाबत अंतिम देयक की राशि जमा करने की रसीद को ही जल कर की देयक का अमांग प्रमाण-पत्र मान्य किया जा सकता है।
[वित्त विभाग क्रमांक बी - 25/5/97/PWC/चार, दिनांक 4-2-97]
 
(6)
विषय - सेवानिवृत्ति के प्रकरणों में माँग प्रमाण-पत्र तथा जाँच प्रमाण-पत्र जारी करने के संबंध
संदर्भ- इस विभाग का ज्ञाप क्रमांक बी- 25/20/94/PWC/चार, दिनांक 30-5-95.
विषयान्तर्गत उपरोक्त सन्दर्भित पत्र का कृपया अवलोकन करें।
2. राज्य शासन द्वारा उपरोक्त विषय में समय-समय पर कई निर्देश प्रसारित किए गए हैं जिनका उद्देश्य यह था कि इन निर्देशों के अनुरूप कार्यवाही कर सेवा निवृत्त शासकीय सेवकों को शीघ्रता से न माँग एवं न जाँच प्रमाण-पत्र प्राप्त हो सके और उसे कोषालयों से पेंशन परिलाभों के भुगतान में विलंब न हो परन्तु यह देखने में आया है कि शासन द्वारा जारी विस्तृत एवं सुस्पष्ट निर्देशों के बावजूद अनेक प्रकरणों में न माँग एवं न जाँच प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने में पेंशनभोगी को काफी कठिनाईयों को सामना करना पड़ता है। प्रायः यह देखा गया है कि कार्यालय प्रमुख द्वारा इन प्रमाणपत्रों के संबंध में समय पर कार्यवाही नहीं की जाती है और उदासीनतापूर्वक पेंशन संबंधी अभिलेख अंतिम निराकरण के लिए भेज दिये जाते हैं। इसी वजह से संयुक्त संचालक, कोष, लेखा एवं पेंशन द्वारा ऐसे सेवा निवृत्त कर्मचारियों के प्रकरणों, जिनके विरुद्ध न तो न्यायिक और न ही विभागीय कार्यवाही शेष है, के पेंशन प्राधिकार पत्रों पर न अमांग प्रमाण पत्र एवं न जाँच प्रमाण-पत्र कोषालय में प्रस्तुत करने पर भुगतान की शर्त अंकित की जाती है।
3. अतः इस संबंध में कार्यालय प्रमुख के स्तर पर सेवानिवृत्त कर्मचारी के विरुद्ध न मांग तथा न जांच प्रमाण पत्र के संबंध में इस प्रकार की कार्यवाही सुनिश्चित की जावे कि पेंशन प्रकरण के साथ ही न मांग एवं न जांच प्रमाण-पत्र संलग्न कर पेंशन भुगतान आदेश जारी करने के लिए प्रकरण संयुक्त संचालक, कोष, लेखा एवं पेंशन को भेजा जाय।
4. जिन कर्मचारियों के सेवा संवर्ग का नियंत्रण विभागाध्यक्ष अथवा प्रशासकीय विभाग द्वारा किया जाता है उनके मामले में समय पर न मांग प्रमाण- पत्र एवं न जाँच पत्र जारी करने की जिम्मेदारी संबंधित विभागाध्यक्ष अथवा प्रशासकीय विभाग की होगी। प्रशासकीय विभाग/विभागाध्यक्ष द्वारा इस प्रकार की प्रक्रिया सुनिश्चित की जाए कि सेवानिवृत्ति की तिथि को न माँग अथवा न जाँच प्रमाण-पत्र संबंधित कर्मचारी को मिल जाए।
5. राज्य शासन चाहता है कि इन निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जावे।
 
(7)
विषय- सेवानिवृत्ति पर शासकीय वसूलियों के संबंध में।
शासकीय सेवक की सेवाकाल की शासन के देनदारियों (recoveries) की वसूली उसकी लिखित सहमति के बिना पेंशन अधिनियम, 1871 में तद्विषयक प्रतिबन्ध होने के कारण नहीं की जा सकती। प्रायः ऐसी देनदारियाँ संबंधित शासकीय सेवक को एकमुश्त भुगतान योग्य उपदान (gratuity) एवं पेंशन पर मिलने वाली राहत से की जाती हैं। यह देखने में आया है कि सेवानिवृत्त शासकीय सेवक से उसके सेवाकाल की देनदारियों की बहुत बड़ी राशि असमायोजित/शेष रहती है, जिसका समायोजन सेवानिवृत्ति के पश्चात् लम्बे समय तक/शेष जीवनकाल तक नहीं हो पाता है। इससे शासन को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है एवं पेंशनर को भी कष्टप्रद स्थिति से गुजरना पड़ता है। सेवाकाल की ऐसी वसूलियाँ निम्न श्रेणी में वर्गीकृत की जा सकती हैं-
(अ) सेवा के दौरान वेतन एवं भत्तों के अधिक भुगतान से संबंधित राशि;
(ब) असमायोजित अग्रिम; एवं
(स) ऐसी राशियाँ जिन्हें विभागीय/न्यायालयीन जाँच अंतर्गत वसूली योग्य पाई जाकर वसूली आदेशित की गई हो।
2. राज्य शासन ने इस संबंध में समुचित विचारोपरांत यह निर्णय लिया है कि-
(1) कार्यालय प्रमुखों को संबंधित शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के पूर्व ऐसी वसूली योग्य राशियों का निर्धारण कर लेना चाहिए एवं ऐसी वसूलियाँ सेवानिवृत्ति के पूर्व तक पूरी की जाना चाहिए। न यदि किसी कारण से कोई वसूली योग्य राशि अवशेष रहती है तो संबधित को उसकी सेवानिवृत्ति पर देय अन्य भुगतान जैसे अर्जित अवकाश समर्पण/नगदीकरण, प्रत्याशित उपदान या शासकीय सेवक की सहमति से परिवार कल्याण निधि/समूह क्या राशि आदि से ऐसी समस्त वसूलियाँ की जानी चाहिए।
(2) सेवानिवृत्ति के उपरांत शासकीय राशि की वसूली पेंशन पर देय राहत से ही की जाती है। अतः को इस प्रकार की समस्त वसूली योग्य राशि सेवानिवृत्ति पर देय मूल पेंशन की 30 माह की राशि तक ही सीमित रहेगी। यदि इससे अधिक की वसूलियाँ पेंशनर पर बनती हैं तो प्रशासकीय विभाग ऐसी वसूलियों के लिए पृथक से सिविल वाद दर्ज करवाएँ या अन्य विभागीय माध्यमों से इस राशि की वसूली करने की कार्यवाही करें।
(3) ऐसे प्रकरणों में जहाँ 30 माह की मूल पेंशन से अधिक राशि वसूली योग्य होते हुए भी अर्जित अवकाश समर्पण/नगदीकरण, प्रत्याशित उपदान आदि की राशि का भुगतान कर दिया गया हो, वहाँ 30 माह की मूल पेंशन से अधिक वसूली की समस्त राशि 15 प्रतिशत वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज सहित संबंधित कार्यालय प्रमुख से भी वसली योग्य होगी।
[म.प्र. शासन वि.वि. क्र. 25/93/2001/चार/PWC/dt. 28.7.2001]
 
(8)
विषय - सेवा निवृत्ति के प्रकरणों में अदेय प्रमाण-पत्र (No dues Certificate) जारी करने के संबंध में।
राज्य शासन द्वारा उपरोक्त विषय में समय-समय पर कई निर्देश प्रसारित किए हैं। उद्देश्य यह था कि इन निर्देशों के अनुरूप कार्यवाही कर सेवा निवृत्त शासकीय सेवकों को शीघ्रता से अदेय प्रमाण-पत्र प्राप्त हो सके और उसे कोषालय से पेंशन परिलाभों के भुगतान में विलम्ब न हो। परन्तु यह देखने में आया है कि शासन द्वारा जारी विस्तृत एवं स्पष्ट निर्देशों के बावजूद अनेक प्रकरणों में सेवा निवृत्त कर्मचारियों को अपने विभाग, लोक निर्माण विभाग तथा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से अदेय प्रमाण-पत्र प्राप्त करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
2. इस संबंध में राज्य शासन द्वारा विचारोपरान्त अब यह निर्णय लिया है कि इस विषय से संबंधित अभी तक जारी समस्त निर्देश निरस्त समझे जावें। भविष्य में सेवा निवृत्ति के प्रकरणों में संचालक पेन्शन/महालेखाकार अथवा अन्य किसी प्राधिकारी जैसी भी स्थिति हो से पेन्शन परिलाभों के प्राधिकार पत्र कोषालय अधिकारी को प्राप्त होते ही कोषालय अधिकारी, संबंधित कार्यालय प्रमुख को पंजीकृत डाक से संलग्न प्रारूप पर सूचित करेगा कि वित्त विभाग के उपरोक्त ज्ञापन के अधीन अदेय प्रमाण-पत्र एवं अन्य वांछित प्रमाण-पत्र, यदि पत्र प्राप्ति से तीन माह की अवधि के अन्दर कोषालय में प्राप्त नहीं होंगे, तो पेन्शनर को पेन्शन परिलाभों का भुगतान यह मानकर कर दिया जावेगा कि पेन्शनर के विरुद्ध कोई शासकीय धनराशि बकाया नहीं है।
3. यदि सेवा निवृत्त शासकीय सेवक आवास में निवास कर रहा है तो कार्यालय प्रमुख, लोक निर्माण एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से संबधित अधिकारियों को शासकीय आवास/जलकर से संबंधित अदेय प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के लिए लिखेगा एवं प्रमाण-पत्र प्राप्त होने पर उन्हें कोषालय अधिकारी को प्रस्तुत करेगा अन्यथा अपने कार्यालय से संबंधित अदेय प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करते हुए यह सूचित करेगा कि लोक निर्माण विभोग/लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं हुए है।
4. पेन्शन परिलाभों के भुगतान के पश्चात् यदि किसी कार्यालय प्रमुख, लोक निर्माण विभाग अथवा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा, सेवा निवृत्त शासकीय सेवक के विरुद्ध किसी प्रकार की वसूली की सूचना दी जाती है तो इसके लिए संबंधित अधिकारी स्वयं उत्तरदायी होंगे और इस राशि की वसूली संबंधित अधिकारी से की जाएगी।
5. यह निर्देश उन प्रकरणों में लागू नहीं होंगे जहाँ सेवा निवृत्त शासकीय सेवक द्वारा उन्हें अवांटित शासकीय आवास गृह रिक्त नहीं किए हैं। ऐसे प्रकरणों में वित्त विभाग के परिपत्र क्रमांक एफ. बी. 6/5/90/नि-2/चार, दिनांक 31-1-92 द्वारा जारी निर्देश यथावत् लागू रहेंगे।
6. राज्य शासन चाहता है कि इन निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जावे।
[वित्त विभाग क्र. एफ. बी. 25/20/94/P.W.C./चार/95/82, दिनांक 30-5-1995]
पंजीकृत डाक से
कार्यालय जिला कोषालय अधिकारी
क्रमांक जि. को. अ./……………………. दिनांक……………………...
प्रति,
…………………….
…………………….
…………………….
विषय - श्री/श्रीमती/कु................. .................. सेवा निवृत्त/मृत................ (पदनाम) धारक पी. पी. ओ.
क्रमांक...............................पेन्शन परिलाभों का भुगतान
सन्दर्भ- म.प्र. शासन, वित्त विभाग का ज्ञापन क्र. डी/एफ. बी./25/20/94/P.W.C./चार/95/83, दिनांक 30 मई, 1995 ।
श्री/श्रीमती/कु. ................. के पेन्शन परिलाभों के भुगतान हेतु प्राधिकार पत्र महालेखाकार, म.प्र. ग्वालियर/संचालक पेन्शन/संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा...................... से इस कोषालय को प्राप्त हुए हैं, जिनके प्रथम भुगतान पूर्व अदेय प्रमाण-पत्र तथा वांछित अभिलेख आपके द्वारा इस कोषालय को प्रस्तुत किए जाना है।
2. म.प्र. शासन वित्त विभाग के सन्दर्भित ज्ञापन की कंडिका 2 एवं 3 के अधीन आपको सूचित किया जाता है कि उपरोक्त अदेय प्रमाण-पत्र तथा अन्य वांछित अभिलेख इस पत्र की प्राप्ति से तीन माह की अवधि के अन्दर इस कोषालय को प्रेषित करने की व्यवस्था करे। यदि पेन्शनर शासकीय आवास में निवास कर रहा हो तो लोक निर्माण विभाग एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के संबंधित अधिकारियों को भी उनके विभाग से संबंधित अदेय प्रमाण-पत्र आपको प्रस्तुत करने के लिये लिखा जावे। इन विभागों से प्रमाण-पत्र प्राप्त होने पर उन्हें आपके कार्यालय के अदेय प्रमाण-पत्र के साथ ही इस कोषालय को प्रस्तुत किये जाए अन्यथा इन विभागों से प्रमाण-पत्र प्राप्त न होने स्थिति में अपने कार्यालय का अदेय प्रमाण-पत्र भेजते हुए यह अंकित किया जाये कि लोक निर्माण विभा/लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं हुए हैं।
3. समय सीमा के अन्दर यदि उपरोक्त सभी प्रमाण-पत्र व अभिलेख इस कोषालय को प्राप्त नहीं होते हैं तो यह मानकर कि पेन्शनर/हितग्राही के विरुद्ध कोई शासकीय वसूली या समायोजन योग्य राशि नहीं है, उपदान राशि/पेन्शन परिलाभों का भुगतान कर दिया जाएगा। इस भुगतान के बाद यदि किसी प्रकार की वसूली या समायोजन योग्य राशि शेष रहने की सूचना दी जाती है तो ऐसी राशि का पूर्ण उत्तरायित्व आपका/लो. नि. वि./लोक स्वा. यांत्रिकी विभाग के संबंधित अधिकारी का होगा।
  जिला कोषालय अधिकारी
पृ. क्र. जि. को. अ/……………. दिनांक……………….
प्रतिलिपि-
श्री/श्रीमती/कु. ...................... को ओर अग्रेषित कर लेख है कि वे वांछित प्रमाणपत्र/अभिलेख यथाशीघ्र प्रस्तुत कराने हेतु उनके स्तर से प्रयास करें, जिससे तीन माह के भीतर इस कोषालय से भुगतान की व्यवस्था की जा सके।
जिला कोषालय अधिकारी
(9)
विषय- सेवानिवृत्ति पर शासकीय वसूलियों के संबंध में।
शासन के ध्यान में यह आया है कि सेवानिवृत्ति पर शासकीय वसूलियों के संबंध में कतिपय विभागों/विभागाध्यक्षों/कार्यालय प्रमुखों द्वारा वित्त विभाग के परिपत्र क्रमांक एफ 25/93/2001/चार/पी.डब्ल्यू.सी. दिनांक 28.07.2001 में दिये गये निर्देशों के अनुसार कार्यवाही नहीं की जा रही है।
2. उपर्युक्त परिपत्र में वर्णित निम्नांकित निर्देशों को पुनः आपके ध्यान में लाया जाकर इन निर्देशों को समस्त अधीनस्थों के संज्ञान में लाकर कड़ाई से पालन कराये जाने का अनुरोध है:-
(1) कार्यालय प्रमुखों को संबंधित शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के पूर्व वसूली योग्य राशियों का निर्धारण कर लेना चाहिए एवं वसूलियाँ सेवानिवृत्ति के पूर्व तक पूरी हो जाना चाहिए। यदि किसी कारण से कोई वसूली योग्य राशि अवशेष रहती है तो संबंधित को उसकी सेवानिवृत्ति पर देय अन्य भुगतान जैसे अर्जित अवकाश समर्पण/नगदीकरण, प्रत्याशित उपदान या शासकीय सेवक की सहमति से परिवार कल्याण निधि/समूह बीमा राशि की बचत की जमा राशि आदि से ऐसी समस्त वसूलियां की जाना चाहिए ।
(2) सेवानिवृत्ति के उपरांत शासकीय राशि की वसूली पेंशन पर देय राहत से ही की जाती है। अतः इस प्रकार के समस्त वसूली योग्य राशि सेवानिवृत्ति पर देय मूल पेंशन की 30 माह की राशि तक ही सीमित रहेगी। यदि इससे अधिक की वसूलियां पेंशनर पर बनती है तो प्रशासकीय विभाग ऐसी वसूलियों के लिए पृथक से सिविल वाद दर्ज करवाएँ या अन्य विभागीय माध्यमों से इस राशि की वसूली करने की कार्यवाही करें।
(3) ऐसे प्रकरणों में जहाँ 30 माह की मूल पेंशन से अधिक राशि वसूली योग्य होते हुए भी अर्जित अवकाश समर्पण/नगदीकरण, प्रत्याशित उपदान आदि की राशि का भुगतान कर दिया गया हो, वहाँ 30 माह की मूल पेंशन से अधिक वसूली की समस्त राशि 15 प्रतिशत वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज सहित संबंधित कार्यालय प्रमुख से भी वसूली योग्य होगी।
 
(10)
विषय : शासकीय सेवकों से बकाया वसूली के सम्बन्ध में किश्तों का निर्धारण
राज्य शासन के ध्यान में आया है कि कतिपय मामलों में शासकीय सेवकों से वसूली योग्य राशि इस कारण लंबित बनी रहती है क्योंकि सक्षम अधिकारी के द्वारा देय किश्तों की संख्या एक किश्त की राशि की गणना के आदेश नहीं दिए गए है। इसके कारण जहाँ एक ओर राज्य के कोष में राशि विलंब से जमा होती है वहाँ दूसरी ओर शासकीय सेवक के सेवा निवृत्ति लाभ आदि के भुगतान में विलंब होता है। अतः शासन को देय राशि की वसूली के सम्बन्ध में निम्नानुसार निर्देश जारी किये जाते हैं :-
(i) शासन की समस्त वसूली योग्य राशि 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वसूल की जाएगी। ब्याज की राशि की गणना सामान्य भविष्य निधि की भांति प्रत्येक वर्ष के अन्त में Compounding करते हुये की जावेगी । ब्याज की गणना शासन को पहुंची हानि की तिथि से प्रारम्भ होकर वसूली की अंतिम किश्त के भुगतान के दिनांक तक की जाएगी।
(ii) शासकीय बकाया की वसूली देय राशि के निर्धारण के तत्काल पश्चात् के मासिक वेतन के बिल से सकल वेतन (Basic Pay + Grade Pay + D.A.) के 1/3 भाग की दर से स्वतः शुरु हो जाएगी एवं तब तक जारी रहेगी, जब तक ब्याज सहित पूर्ण राशि की वसूली नहीं हो जाती। शासकीय सेवक पर ब्याज का भार कम करने के उद्देश्य से शासकीय सेवक को देय अन्य स्वत्व जैसे वेतन/भत्तों के एरियर्स, मानदेय आदि से भी बकाया की वसूली की जानी चाहिए। कार्यालय प्रमुख के लिए यह आवश्यक होगा कि वसूली की राशि के निर्धारण पश्चात् 10 दिन की समयावधि में शासकीय सेवक से वसूली के आदेश जारी करें।
(iii) बकाया की वसूली इस आधार पर स्थगित नहीं की जाना चाहिए कि सम्बन्धित शासकीय सेवक के द्वारा इस सम्बन्ध में सक्षम अधिकारी को अपील की गई है, जो अभी निर्णय हेतु लंबित है। जब तक ऐसी किसी कार्यवाही में वसूली पर स्थगन आदेश नहीं हो, वसूली कंडिका (2) में निर्धारित प्रक्रिया अनुसार जारी रहेगी।
(iv) शासकीय सेवक से शासकीय बकाया एवं ब्याज की वसूली के लिए कार्यालय प्रमुख, जिन परम कार्यालयों में सम्बन्धित शासकीय सेवक कार्यरत हैं, पूर्ण रूप से उत्तरदायी होंगे। यदि उपरोक्त निर्देशों के पालन में लापरवाही की जाती है, तो सम्बन्धित कार्यालय प्रमुख से वसूली में हुए विलंब की अवधि के लिए वसूली योग्य राशि पर 12 प्रतिशत ब्याज की दर से क्षतिपूर्ति वसूल की जाएगी। ब्याज की राशि की गणना सामान्य भविष्य निधि भांति प्रत्येक वर्ष के अन्त में Compounding करते हुये की जावेगी।
(v) प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ होने की स्थिति में सम्बन्धित शासकीय सेवक की बकाया के लिये बाह्य नियोक्ता पूर्ण रूप से उत्तरदायी रहेंगे। ऐसे शासकीय सेवक जिनसे शासकीय बकाया की वसूली हो रही है, को प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ करते समय सम्बन्धित शासकीय सेवक के नियुक्तिकर्ता अधिकारी का दायित्व होगा कि वह इस वसूली की सम्पूर्ण जानकारी बाह्य नियोक्ता को दे।
(vi) यदि वसूली की किश्तों की पूर्ण वसूली के पूर्व ही शासकीय सेवक की मृत्यु हो जाती है, तो शेष राशि उसके परिवार को देय स्वत्वों में वसूली योग्य होगी। यदि ऐसे शासकीय सेवक द्वारा सेवा से त्यागपत्र दिया जाता है, तो त्यागपत्र स्वीकृत करने के पूर्व इस पर देय बकाया राशि (पूर्ण ब्याज सहित) वसूल की जाएगी। शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के मामलों में बकाया राशि की वसूली पेंशनरी लाभों से की जाएगी।
(vii) उपरोक्त आदेश सक्षम अधिकारियों द्वारा आदेशित वसूली योग्य राशियों के अतिरिक्थ ऐसे सभी अग्रिम पर भी लागू होंगे समायोजन उक्त अग्रिम के उपयोग हेतु निर्धारित समयावधि में नहीं हो पाता है। ऐसे समस्त अग्रिमों का जिनके लिए कोई निश्चित समयावधि निर्धारित नहीं है, राशि के आहरण की तिथि के 3 माह की अवधि में समायोजित करना आवश्यक होगा एवं उसके उपरान्त उक्त राशि इस ज्ञापन के अंतर्गत वसूली योग्य राशि में शामिल मानते हुये वसूली की कार्यवाही प्रारम्भ की जावेगी।
2. उपरोक्त निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जावे।
 
(11)
विषय- शासकीय सेवकों से बकाया वसूली के संबंध में।
संदर्भ- वित्त विभाग का आदेश क्रमांक एफ 11-2/2011/नियम/चार, दिनांक 31.05.2011
विषयांतर्गत जारी संदर्भित आदेश के संबंध में स्पष्ट किया जाता है कि शासकीय सेवक से वसूली योग्य राशि पर दिनांक 31.05.2011 के पूर्व की अवधि का ब्याज नहीं लिया जाएगा परन्तु वसूली योग्य सम्पूर्ण राशि पर इस तिथि के पश्चात् ब्याज की गणना की जानी होगी।
 
(12)
विषय :- शासकीय सेवकों से बकाया वसूली के संबंध में किश्तों का निर्धारण
माननीय सर्वोच्य न्यायालय द्वारा सिविल अपील क्रमांक 11527/2014 स्टेट आफ पंजाब विरुद्ध रफीक मसीह में पारित निर्णय दिनांक 18.12.2014 में निम्नांकित श्रेणी के शासकीय सेवकों को त्रुटिवश हुए अधिक भुगतान की वसूली निषेधित की है।

(1) Having examined a number of judgments rendered by this Court, we are of the view, that orders passed by the employer seeking recovery of monetary benefits wrongly extended to employees, can only be interfered with, in cases where such recovery would result in hardship of a nature, which for outweigh, the equitable balance of the employer's right to recover. In other words, interference would be called for, only in such cases where, it would be iniquitous to recover the payment made. In order to ascertain the parameters of the above consideration, and the test to be applied, reference needs to be made to situations when this Court exempted employees from such recovery, even in exercise of its jurisdiction under Article 142 of the Constitution of India. Repeated exercise of such power, "for doing complete justice in any cause" would established that the recovery being effected was iniquitous, and arbitrary. And accordingly, the interference at the hands of this Court.

(2) As between two parties, if a determination is rendered in favour of the party, Which is the weaker of the two, without any serious determined to the other (which is truly a welfare State), the issue resolved would be in consonance with the concept of justice, which is assured to the citizens of India, even in the preamble of the Constitution of India. The right to recover being pursued by the employer, will have to be compared, with the effect of the recovery on the concerned employee, If the effect of the recovery from the concerned employee would be, more unfair, more wrongful, more improper, and more unwarranted, than the corresponding right of the employer to recover, the amount, then if would be iniquitous and arbitrary, to effect the recovery. In such a situation, the employee's right would outbalance, and therefore eclipse, the right of the employer to recover.

(3) The doctrine of equality is a dynamic and evolving concept having many dimensions. The embodiment of the doctrine of equality, can be found in Articles 14 to 18, contained in Part III of the Constitution of India, dealing with "Fundamental Rights". These Articles of the Constitution besides assuring equality before the law and equal protection of the laws, also disallow, discrimination with the object of achieving equality, in matters of employment, abolish untouchability, to upgrade the social status of an ostracized section of the society, with such appellations. The embodiment of the doctrine of equality, can also be found in Articles 38, 39, 39A, 43 and 46 contained in Part IV of the Constitution of India, dealing with the "Directive Principles of State Policy". These Articles of the Constitution of India contain a mandate to the State requiring it to assure a social order providing justice-social, economic and political, by inter alia minimizing monetary inequalities and by securing the right to adequate means of livelihood, and by providing for adequate wages so as ensure, an appropriate standard life, and by promoting economic, interests of the weaker sections.

(4) It is not possible to postulate all situations of hardship, which would govern employees on the issue of recovery, where payments have mistakenly been made by the employer, in excess of their entitlement Be that as it may, on the decisions referred to hereinabove, we may, as a ready reference, summarise the following few situations, wherein recoveries by the employers, would be impressible in law.

(i) Recovery from employees belonging to Class-III and Class-IV service (or Group 'C' and Group 'D' service)

(ii) Recovery from retired employees, or employees who are due to retire within one year, of the order of recovery.

(iii) Recovery from employees, when the excess payment has been made for a period in excess of five years, before the order of recovery is issued.

(iv) Recovery in cases where an employee has wrongfully been required to discharge duties of a higher post, and has been paid accordingly, even though he should have rightfully been required to work against an inferior post.

(v) In any other case, where the Court arrives at the conclusion, that recovery if made from the employee, would be iniquidous or harsh or arbitrary to such an extent, as would far outweigh the equitable balance of the employer's right to recover.

2. राज्य शासन द्वारा निर्णय लिया गया है कि शासकीय सेवकों से बकाया वसूली के संदर्भित निर्देशों को क्रियान्वित किये जाने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपर्युक्त निर्णय को विचार में लिया जाए एवं प्रकरण के गुण दोष के आधार पर विभाग के स्तर से उपयुक्त आदेश वेतन निर्धारण में लापरवाही अथवा जानबूझकर गड़बड़ी की स्थिति होने पर वेतन निर्धारण करने वाले व उसके अनुमोदन करने वाले पृथक-पृथक शासकीय सेवकों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के उपरांत आदेश जारी किये जाये। वसूली यदि संभव हो तो पृथक-पृथक अधिकारियों के लिए राशि निर्धारित किया जाये।
3. उपरोक्त निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जावे ।
 
(13)
विषय- शासकीय आवास गृहों के संबंध में लोक निर्माण विभाग द्वारा अदेय प्रमाण पत्र बाबत्
शासन के ध्यान में आया है कि शासकीय आवास गृहों के अदेय प्रमाण पत्र बाबत् ।
शासन के ध्यान में आया है कि शासकीय आवास गृहों के अदेय प्रमाण पत्र के संबंध में कतिपय विभागों/विभागाध्यक्षों/कार्यालय प्रमुखों द्वारा वित्त विभाग के परिपत्र क्रमांक बी-25/5/97/पी.डब्ल्यू.सी./चार, दिनांक 4-2-97 के अनुसार कार्यवाही नहीं की जाने से सेवानिवृत्त शासकीय सेवकों के पेंशन एवं सेवानिवृत्ति परिलाभों के निराकरण में विलम्ब की स्थिति निर्मित हो रही है । अतः अदेय प्रमाण पत्र के संबंध में निम्नांकित निर्देश जारी किये जाते हैं :-
(i) शासकीय आवास के किराये के संबंध में लोक निर्माण विभाग के कार्यालय से अदेय प्रमाण पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता समाप्त की जाती है । सेवानिवृत्ति की तिथि तक आवास किराये की राशि वसूल होने और उक्त तिथि तक किराया बकाया न होने का प्रमाण पत्र जारी करने का उत्तरदायित्व संबंधित विभाग (जहां कि शासकीय सेवक पदस्थ हैं एवं सेवानिवृत्त हुए हैं ) के आहरण एवं संवितरण अधिकारियों को सौंपा जाता है ।
(ii) जल कर एवं विद्युत शुल्क का भुगतान शासकीय सेवक द्वारा नगर निगम/नगर पालिका विद्युत कम्पनी द्वारा उपलब्ध कराये गये देयकों के आधार पर इन संस्थानों को किया जाता है । अतः जलकर/ विद्युत शुल्क की अंतिम देयक की राशि जमा करने की रसीद को ही अमांग प्रमाण पत्र आहरण एवं संवितरण द्वारा मान्य किया जाएगा। अंतिम देयक का आशय शासकीय सेवक द्वारा शासकीय आवास की अधिपत्य की तिथि तक है।
2. उपर्युक्त व्यवस्था का पालन सुनिश्चित किए जाने हेतु अधीनस्थ संस्थानं को समुचित निर्देश जारी करने का कष्ट करें एवं संबंधित संस्थान यह सुनिश्चित करें कि शासकीय सेवक से प्राप्त होने वाली देयता का उपर्युक्त व्यवस्था अनुसार निराकरण किया जाए।
 
(14)
 
विषयः- सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों के विरुद्ध लम्बित विभागीय जाँच प्रकरणों का समयावधि में निराकरण।
4. क्र. सी. 6-1-2000-3-एक, दिनांक 21.01.2001
सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी संदर्भित परिपत्रों का कृपया अवलोकन करें जिनके द्वारा समय-समय पर विभागीय जाँच के प्रकरणों को प्राथमिकता के आधार पर एक वर्ष की समयावधि में आवश्यक रूप से निराकृत करने के निर्देश दिये गये हैं। साथ ही विलम्ब के लिए उत्तरदायित्व निर्धारित कर दोषी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही किये जाने का उल्लेख किया गया है।
2. जाँच प्रकरण में त्वरित कार्यवाही न होने से शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के उपरांत उन्हें अपन स्वत्वों को प्राप्त करने में कठिनाई होती है, इससे न्यायालय प्रकरण भी बनत हैं और शासन को अनावश्यक परेशानी होती है। सामान्य प्रशासन विभाग के ज्ञाप दि. 08.02.1991 द्वारा निर्देशित किया गया है कि सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों के पेंशन प्रकरणों में सेवानिवृत्ति की तिथि के 2 वर्ष पूर्व ही कागजात तैयार किये जाने की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी जाये। साथ ही यदि किसी शासकीय सेवक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रचलित हो तो उन्हें एक समयवद्ध कार्यक्रम के अधीन निराकृत किया जावे ताकि निर्णयोपरांत "न जाँच प्रमाण पत्र" जारी करने में कठिनाई न हो।
3. उपरोक्त के अलावा विभाग के पैनल में से योग्य सेवानिवृत्त शासकीय सेवकों को मानदेय के आधार पर जाँच अधिकारी नियुक्त कर प्रकरणों का शीघ्र निराकरण कराये जाने के सम्बन्ध में भी सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा निर्देश जारी किये गये हैं। उपरोक्त के बावजूद शासन के ध्यान में यह तथ्य आया है कि निर्धारित समय-सारणी के अनुसार विभागीय जाँच प्रकरणों में कार्यवाही नहीं की जा रही है, जिससे अनेक पेंशन प्रकरण अनावश्यक रूप से लम्बित हैं।
4. कृपया उपरोक्त निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जावे साथ ही समय-समय पर समीक्षा की जा कर सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों के विरुद्ध लम्बित जाँच प्रकरणों को प्राथमिकता के आधार पर एक समयबद्ध कार्यक्रम के तहत एवं निश्चित समय सीमा में अधिकतम एक वर्ष के अंदर निराकृत किए जाएँ।
5. कृपया उपरोक्त निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाये।