Updated: Apr, 23 2020

475. धारा 467 में वर्णित दस्तावेजों के अधिप्रमाणीकरण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अभिलक्षणा या चिन्ह की कूटकृति बनाना या कूटकृत चिन्हयुक्त पदार्थ को कब्जे में रखना -

जो कोई किसी पदार्थ के ऊपर, या उसके उपादान में, किसी ऐसी अभिलक्षणा या चिन्हों को, जिसे इस संहिता की धारा 467 में वर्णित किसी दस्तावेज के अधिप्रमाणीकरण के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाता हो, कूटकृति यह आशय रखते हुए बनाएगा कि ऐसी अभिलक्षणा या ऐसे चिन्ह को, ऐसे पदार्थ पर उस समय कूटरचित की जा रही हो या उसके पश्चात् कूटरचित की जाने वाली किसी दस्तावेज को अधिप्रमाणीकृत का आभास प्रदान करने के प्रयोजन से उपयोग में लाया जाएगा या जो ऐसे आशय से कोई ऐसा पदार्थ अपने कब्जे में रखेगा, जिस पर या जिसके उपादान में ऐसी अभिलक्षणा को या ऐसे चिन्ह की कूटकृति बनाई गई हो, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 475 के अधीन अपराध "सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 4. म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 117-158 पर प्रकाशित]

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475. Counterfeiting device or mark used for authenticating documents described in section 467, or possessing counterfeit marked material -

Whoever counterfeits upon, or in the substance of, any material, any device or mark used for the purpose of authenticating any document described in section 467 of this Code, intending that such device or mark shall be used for the purpose of giving the appearance of authenticity to any document then forged or thereafter to be forged on such material, or who, with such intent, has in his possession any material upon or in the substance of which any such device or mark has been counterfeited, shall be punished with imprisonment for life, or with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.

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STATE AMENDMENT

Madhya Pradesh - Offence under section 475 is triable by “Court of Session”.

[Vide Madhya Pradesh Act 2 of 2008, section 4. Published in M.P. Rajpatra (Asadharan) dated 22-2-2008 page 158-158(1).]

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