Updated: Feb, 11 2021

अध्याय 5

लिखतों का रद्दकरण

31. कब रद्दकरण का आदिष्‍ट किया जा सकेगा -

(1) कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध कोई लिखत शून्य या शून्यकरणीय हो और जिसको यह युक्तियुक्त आशंका हो कि ऐसी लिखत यदि विद्यमान छोड़ दी गई, तो वह उसे गंभीर क्षति कर सकती है, उसको शून्य या शून्यकरणीय न्यायनिर्णीत कराने के लिए वाद ला सकेगा, और न्यायालय स्वविवेक में, उसे ऐसा न्यायनिर्णीत कर सकेगा और उस न्यायालय को परिदत्त और रद्द किए जाने के लिए आदेश दे सकेगा ।

(2) यदि लिखत भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (1908 का 16) के अधीन रजिस्ट्रीकृत हो तो न्यायालय अपनी डिक्री की एक प्रतिलिपि ऐसे आफिसर को भेजेगा जिसके कार्यालय में लिखत का इस प्रकार रजिस्ट्रीकरण हुआ है, और ऐसा आफिसर अपनी पुस्तकों में अन्तर्विष्ट लिखत की प्रति पर उसके रद्दकरण का तथ्य टिप्पणित कर लेगा ।

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CHAPTER 5

CANCELLATION OF INSTRUMENTS

31. When cancellation may be ordered.-

(1) Any person against whom a written instrument is void or voidable, and who has reasonable apprehension that such instrument, if left outstanding may cause him serious injury, may sue to have it adjudged void or voidable; and the court may, in its discretion, so adjudge it and order it to be delivered up and cancelled.

(2) If the instrument has been registered under the Indian Registration Act, 1908 (16 of 1908), the court shall also send a copy of its decree to the officer in whose office the instrument has been so registered; and such officer shall note on the copy of the instrument contained in his books the fact of its cancellation.

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