Updated: Mar, 05 2021

मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण पेन्शन) नियम, 1963
[मध्यप्रदेश राजपत्र दिनांक 3-5-1963 के भाग चार में प्रकाशित।]
मध्यप्रदेश शासन वित्त विभाग
अधिसूचना
भोपाल, दिनांक 26 अप्रैल, 1963
क्र. 1365/सी/आर/968/चार/आर-II - भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक द्वारा प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए मध्यप्रदेश के राज्यपाल एतद्द्वारा यह निर्देश देते हैं कि राज्य शासन के नियम निर्माण विषयक नियन्त्रक के अधीन, उन शासकीय सेवकों के मामले, जो दिनांक पहली नवम्बर, 1956 को या उसके पश्चात् भर्ती किये गये हैं (उन अराजपत्रित पुलिस कर्मचारियों के मामलों को सम्मिलित करते हुए जिनको मध्य भारत (असाधारण निवृत्त-वेतन) संशोधन नियम, 1953 लागू नहीं हुई हैं) मध्यप्रदेश प्रदेश सिविल सर्विसेस (एक्स्ट्राऑर्डिनरी) रूल्स 1963 के प्रारंभ होने तक, 1 नवम्बर, 1956 से मध्यप्रदेश सिविल सर्विसेज (एक्सट्राऑर्डिनरी पेन्शन) रूल्स, 1956 द्वारा शासित होंगे। ।
क्र. 1365/सी-आर/968/चार/आर-II- भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक द्वारा प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए और इस विषय पर पूर्व में बनाये गये समस्त नियमों तथा जारी किये गये समस्त आदेशों एवं अनुदेशों को निष्प्रभावी करते हुए, मध्यप्रदेश के राज्यपाल एतद्द्वारा निम्नलिखित नियम बनाते हैं अर्थात् -
नियम
नियम 1. (1) ये नियम मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण पेन्शन) नियम, 1963 कहलायेंगे।
(2) ये नियम मध्यप्रदेश राजपत्र में प्रकाशित होने के दिनांक से प्रवृत्त होंगे।
नियम 2. ये नियम, उन व्यक्तियों को छोड़कर, जिन पर वर्कमेंस कम्पेनसेशन एक्ट, 1923 (1923 का VIII) लागू होता है, ऐसे समस्त व्यक्तियों पर लागू होंगे, जिन्हें सिविल प्राक्कलनों से भुगतान किया जाता है, चाहे उनकी नियुक्ति स्थायी हो या अस्थायी, समयमान वेतन पर हो या नियत वेतन पर अथवा उजरती दरों पर हो और जो मध्यप्रदेश शासन के नियम निर्माण विषयक नियन्त्रणाधीन है।
नियम 3. इन नियमों के प्रयोजनार्थ, जब तक कोई बात विषय या प्रसंग के विरुद्ध न हो-
(1) "दुर्घटना" से तात्पर्य है -
(एक) आकस्मिकतथा अपरिहार्य विपत्ति; या
(दो) सेवा से उद्भूत तथा सेवा के दौरान बल प्रयोग द्वारा उत्पन्न न होकर अन्यथा उत्पन्न हुई आपात स्थिति में कर्त्तव्यपरायणता के कारण आई विपत्ति;
(2) "चोट का दिनांक" से तात्पर्य है-
(एक) दुर्घटना या बल प्रयोग के मामले में, वह वास्तविक दिनांक जिसको कि चोट लगी अथवा उससे पूर्वतर कोई ऐसा दिनांक जिसे कि राज्य शासन नियत करे और जो चिकित्सा मण्डल की रिपोर्ट के दिनांक के बाद की न हों, और
(दो) रोग के मामले में, वह दिनांक जिसको कि चिकित्सा मण्डल रिपोर्ट करे या उससे पूर्वतर कोई ऐसा दिनांक जो कि राज्य शासन, चिकित्सा मंडल की राय की ओर सम्यक् ध्यान देते हुए, नियत करे।
(3) "रोग" से तात्पर्य है -
(एक) रतिरोग (वेनीरियल डिसीज) या रक्त पूर्तिता (सेप्टीकेमिया) जब कि ऐसा रोग या रक्तपूर्तिता का रोग किसी चिकित्सा प्राधिकारी को, अपने शासकीय कर्त्तव्य का पालन करते हुए किसी संक्रमित रोगी की परिचर्या करते समय या उस कर्त्तव्य के दौरान शव परीक्षा करते समय हो गया हो; या
(दो) ऐसा रोग जो एकमात्र तथा प्रत्यक्षतः दुर्घटना के कारण हो गया हो, या
(तीन) ऐसा संक्रामक रोग जो किसी पदाधिकारी को किसी ऐसे क्षेत्र में, जिसमें कि ऐसा रोग फैला हुआ हो, संक्रामक रोग से सम्बन्धित अपने कर्तव्यों का सम्यक् पालन करने के परिणामस्वरूप हो गया हो या ऐसे क्षेत्र में, जहाँ कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिये गया हो स्वेच्छा से या मानवतावादी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर ऐसे किसी भी रोग से ग्रस्त रोगी की परिचर्या करने के परिणामस्वरूप हो गया हो;
(4) "कुटुम्ब" से तात्पर्य है -
(क) पुरुष शासकीय सेवक के मामले में पत्नि;
(ख) महिला शासकीय सेवक के मामले में पति;
(ग) पुत्र तथा अविवाहित पुत्रियाँ;
(घ) विधवा पुत्रियाँ;
(ङ) भाई;
(च) अविवाहित या विधवा बहनें:
(छ) पिता, और
(ज) माता।
परन्तु पद (घ) लगायत (ज) तक में वर्णित व्यक्ति तब तक कुटुम्ब में सम्मिलित नहीं समझे जावेंगे जब तक कि वे पूर्णतः शासकीय सेवक पर आश्रित न हों।
टिप्पणी -कुटुम्ब में मरणोत्तर जात बच्चे भी यदि वे जीवित पैदा हुए हों, सम्मिलित हैं, किन्तु उसमें सौतेला पुत्र, सौतेली पुत्रियाँ, सौतेला, भाई, सौतेली बहनें, सौतेली माता तथा सौतेला पिता सम्मिलित नहीं हैं।
(5) "चोट" से तात्पर्य बल प्रयोग, दुर्घटना या रोग के कारण आई ऐसी शारीरिक चोट से है, जिसके कि सम्बन्ध में चिकित्सा मण्डल ने यह निर्धारित किया है कि वह गम्भीर चोट से कम मिलन चोट नहीं है।
टिप्पणी - कतिपय प्रकार की चोटों के उदाहरण अनुसूची 1 में दिये गये हैं।
(6) "वेतन" से तात्पर्य मूलभूत नियमों के नियम 9 (21) में यथा परिभाषित उस वेतन से है, जिसे कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के या चोट लगने के दिनांक को प्राप्त कर रहा थाः
परन्तु उस व्यक्ति के मामले में, जिसे उजरती दरों से पारिश्रमिक दिया जाता है, "वेतन" से तात्पर्य उसकी मृत्यु होने या चोट लगने के दिनांक को समाप्त होने वाले गत छह मास के औसत उपार्जनों से हैः
परन्तु यह और भी कि किसी ऐसे अराजपत्रित पुलिस पदाधिकारी के मामले में, जो डाकुओं से हुई मुठभेड़ों में या इसी प्रकार जोखिम पूर्ण कर्त्तव्य के पालन में लगी चोट के परिणामस्वरूप घायल हुआ हो या मारा गया हो, वेतन में मंहगाई भत्ता भी सम्मिलित होगा।
(7) "पद की जोखिम" से तात्पर्य दुर्घटना या रोग की किसी ऐसी जोखिम से है, जो विशेष जोखिम न हो किन्तु जिससे शासकीय सेवक को अपने कर्तव्यों के दौरान तथा अपने कर्तव्यों के परिणामस्वरूप खतरा बना रहता है। किन्तु ऐसी कोई भी जोखिम, जो कि भारत में विद्यमान आधुनिक परिस्थितियों में मानव के अस्तित्व के लिये आम जोखिम है, तब तक पद की जोखिम नहीं समझी जावेगी. जब तक कि ऐसी जोखिम के स्वरूप या मात्रा में शासकीय सेवक के स्वरूप, स्थिति, दायित्व या प्रसंगतियों के कारण, निश्चित रूप से वृद्धि न हो गई हो।
टिप्पणी - "पद की जोखिम" में मृत्यु या चोट की ऐसी जोखिम सम्मिलित है, जिसका शासकीय सेवक को तब खतरा ले जब कि वह किसी नगर, शहर या सम्बन्धित ग्राम में जिसमें उससे लगे हुए उपनगरीय क्षेत्र भी सम्मिलित है, बलवे या नागरिक उपद्रव के दौरान अपने नियोजन के स्थान पर अपने कर्तव्यों के पालन के लिये कोई दिवस पर उपस्थित हो या किसी छुट्टी के दिन उससे उपस्थित होने की अपेक्षा की और तब वह अपने निवास-स्थान से नियोजन के स्थान को तथा नियोजन के स्थान से निवास-स्थान को जाते समय उक्त या नगरीय उपद्रव का शिकार हो जाए। [अधिसूचना क्र. 865/R-II, दिनांक 21-4-64 द्वारा जोड़ी गई है।]
(8) "विशेष जोखिम" से तात्पर्य है।
(एक) बल-प्रयोग के कारण चोट पहुँचने की जोखिम;
(दो) दुर्घटना के कारण चोट की कोई ऐसी जोखिम जिसका शासकीय सेवक की किसी ऐसे विशिष्ट कर्त्तव्य के, जो उसके पद की सामान्य जोखिम पूरे ऐसी चोट के । प्रति उसके दायित्व को स्वतः बढ़ाने का प्रभावी खतरा हो, पालन के दौरान या उसके परिणामस्वरूप खतरा बना रहता है;
(तीन) ऐसे रोग की जोखिम जिसका किसी चिकित्सा पदाधिकारी को अपने शासकीय कर्तव्य पालन के अनुक्रम में रति रोग की परिचर्या करने का उक्त कर्त्तव्य के अनुसरण में शत्-परीक्षा करने के परिणामस्वरूप रहता है।
(9) "उत्पात" से तात्पर्य उस व्यक्ति के कार्य से है, जो शासकीय सेवक को -
(एक) उसके कर्तव्यों के निर्वहन में उस पर हमला करके या उसका प्रतिरोध करके या उसे उसके कर्तव्यों का पालन करने से विवर्तित करने या रोकने की दृष्टि से या
(दो) किसी ऐसी बात के कारण जो ऐसे शासकीय सेवक द्वारा किसी अन्य लोक सेवक द्वारा उसके कर्तव्यों के विधिवत् निर्वहन में की गई हो या जिसके किये जाने का प्रयत्न किया गया हो; या
(तीन) उसकी पदीय स्थिति के नोट पहँचाये।
नियम 4. (1) इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी जासकीय सेवक की ओर से उसकी चूक की मात्रा अथवा उसकी गफलत के हिस्से को भी, इन नियमों के अधीन ऐसे शासकीय सेवक के पक्ष में देनगियाँ (Awards) मन्जूर की जाना हो वहाँ इनको विचार में नहीं लिया जाएगा। [नियम 4 वित्त विभाग की अधिसूचना क्र. एफ. बी. 6/2/28/77/नि-2/चार, दिनांक 28-9-77 द्वारा संशोधित।]
2. अराजपत्रित पुलिस कर्मचारियों के मामलों में पुलिस महानिरीक्षक, महालेखाकार द्वारा प्रमाणित (हकदारी) के अनुसार, देनगियाँ (awards) मन्जूर कर सकता है। दूसरी मामलों में वित्त विभाग की सहमति से राज्य शासन की मन्जूरी के बिना, इन नियमों के अधीन कोई भी देनगी (awards) नहीं दी जाएगी।
नियम 5. इन नियमों में अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, इन नियमों के अधीन ली गई देनगी किसी भी अन्य ऐसे निवृत्ति वेतन या दान को प्रभावित नहीं करेगी जिसके लिये सम्बन्धित शासकीय सेवक या उसका कुटुम्ब, तत्समय प्रवृत्त किन्हीं अन्य नियमों के अधीन पात्र हो और निवृत्ति वेतनभोगी हक शासर्व सेवक में निरंतर नियोजन या पुनर्नियोजन पर उसका वेतन निश्चित करते समय, इन नियमों के उपबन्धों के अधीन मन्जूर किये गये निवृत्ति वेतन को हिसाब में नहीं लिया जावेगा किन्तु उसका आधे से अधिक कोई भाग, शासन द्वारा ऐसे निरन्तर नियोजन या पुनर्नियोजन की कालावधि के दौरान रोका जा सकेगा।
नियम 6. सामान्यतः निम्नलिखित के सम्बन्ध में कोई देनगी नहीं दी जावेगी -
(एक) चोट, जो आवेदन-पत्र के दिनांक से पाँच वर्ष से अधिक पूर्व में लगी हो; या
(दो) मृत्यु
(क) बल प्रयोग या दुर्घटना के कारण लगी चोट के; या
(ख) शासकीय सेवक की उस रोग के कारण जिससे उसकी मृत्यु हुई हो, चिकित्सीय आधार पर कर्तव्य के अयोग्य करार दिये जाने के सात वर्ष पश्चात् हुई हों।
नियम 7. इन नियमों के अधीन समस्त देनगियाँ, जब तक कि देनगियाँ पाने वाला व्यक्ति किसी ऐसे देश में, जिसमें कि रुपया विधि मुद्रा न हो, स्थायी रूप से निवास करता हो और वहीं भुगतान किये जाने की इच्छा करता हो, भारतीय रुपयों में की जावेंगी। बाद वाले मामले में देनगी की रकम का विनिमय नियंत्रण विनियमों के अधीन रहते हुए एक रुपये के लिये 1 शि. 6 पं. की विनिमय दर से स्टालिंग में चुकाई जावगी।
नियम 8. इन नियमों के प्रयोजनार्थ चोटों का वर्गीकरण निम्नानुसार होगा -
वर्ग (क) पद की विशेष जोखिम के परिमाणस्वरूप लगी वे चोटें, जिनके कारण आंख या किसी अवयव का स्थायी रूप से लोप हो गया हो या जो बहत ही गम्भीर स्वरूप की हो या पद की जोखिम के परिणामस्वरूप लगी ऐसी चोटें जिनसे वह अंगहीन हो गया और जिनके कारण वह चिकित्सकीय दृष्टि से शासकीय सेवा के अयोग्य हो गया हो।
वर्ग (ख) में चोटें, जो पद की विशेष जोखिम के परिणामस्वरूप आई हों और जो उनके (उन चोटोंके) कारण हुई अंगहानि की मात्रा के सम्बन्ध में अवयव विहीनता के तुल्य हों या जो बहुत गम्भीर हों या पद की जोखिम के परिणामस्वरूप लगी वे चोटें जिनके परिणामस्वरूप आँख या किसी अवयव का स्थायी लोप हो गया हो या जो अधिक गम्भीर स्वरूप की हों।
वर्ग (ग) पद की विशेष जोखिम के परिणामस्वरूप लगी चोटें, जो गम्भीर तो हैं किन्तु अधिक गम्भीर न हों तथा जिनके ठीक होने की सम्भावना हो या, पद की विशेष जोखिम के कारण लगी हो जो उनके (उन चोटों के) कारण हुई अंगहीन की मात्रा के सम्बन्ध में अवयव विहीनता के तुल्य हों जो बहुत गम्भीर हों और जिनके स्थायी होने की सम्भावना हो।
नियम 9. (1) यदि किसी शासकीय सेवक को ऐसी चोट लगे जो नियम 8 के वर्ग (क) में आती है तो उसे-
(क) अनुसूची दो में उल्लिखित रकम जो उसको लागू होती हो, का उच्चतर मान वाला उपदान दिया जावेगा और
(ख) चोट लगने के दिनांक से-
(एक) यदि चोट के परिणामस्वरूप एक से अधिक अवयवों का या एक आँख का स्थायी लोप हो गया हो तो उच्चतर मान निवृत्ति-वेतन के लिए अनुसूची दो में उल्लिखित रकम; जो उसको लागू होती हो, का स्थायी निवृत्ति वेतन दिया जावेगा और
(दो) अन्य मामलों में ऐसा स्थायी निवृत्ति-वेतन दिया जावेगा जिसकी रकम उच्चतर मान वाले निवृत्ति वेतन के लिए अनुसूची दो में उल्लिखित रकम से, जो उसको लागू होती है, से अधिक नहीं होगी और उस रकम के आदेश कम नहीं होगी :
परन्त किसी ऐसे आहत शासकीय सेवक के मामले में जो निरन्तर नियोजन में नहीं रहता है. असाधारण निवृत्ति-वेतन तथा एक सामान्य निवृत्ति - वेतन (नवीन निवृत्ति - वेतन नियमों के अधीन देय मृत्यु सेवा-निवृत्ति उपदान के तुल्य निवृत्ति-वेतन को सम्मिलित करते हुए) दोनों मिलकर किसी भी दशा में उस वेतन से अधिक नहीं होंगे जो शासकीय सेवक चोट लगने के समय प्राप्त कर रहा था :
परन्तु यह और भी कि यदि सम्बन्धित शासकीय सेवक चोट लगने के दिनांक को तत्काल सेवानिवृत्त न होता हो किन्तु या तो छुट्टी पर रहकर या अन्यथा कुछ समय तक और सेवा में बना रहे तो चोट निवृत्तिवेतन के एक भाग को, जो आधे से अधिक न होगा, चोट लगने के दिनांक से सेवानिवृत्ति के दिनांक तक की कालावधि के दौरान रोका जा सकेगा।
(2) यदि किसी शासकीय सेवक को ऐसी चोट लगे जो नियम 8 की श्रेणी (ख) में आती हैं तो उसे-
(क) अनुसूची दो में उल्लिखित रकम, जो उसको लागू होती हो, का निम्न मान वाला उपदान दिया जावेगा, और
(ख) (एक) यदि चोट लगने के परिणामस्वरूप एक आंख या एक अवयव का स्थायी लोप हो गया हो या चोट अधिक गम्भीर स्वरूप की हो, तो चोट लगने के दिनांक से उक्त रकम का स्थायी निवृत्ति-वेतन दिया जावेगा, जो निम्न मान वाले निवृत्ति वेतन के लिए अनुसूची दो में उल्लिखित रकम से, जो उसको लागू होती है, से अधिक नहीं होगी तथा उस रकम के आधे से कम नहीं होगी,
(दो) अन्य मामलों में -
(क) चोट लगने के दिनांक से एक वर्ष की कालावधि के लिये अस्थायी निवृत्ति-वेतन दिया जावेगा; जिसकी रकम निम्न मान वाले निवृत्ति-वेतन के लिये अनुसूची 2 में उल्लिखित रकम से, जो कि उसको लागू होती हो, से अधिक नहीं होगी और उस रकम के आधे से कम नहीं होगी और तत्पश्चात् ।
(ख) यदि चिकित्सा मण्डल वर्ष-प्रतिवर्ष यह प्रमाणित करे कि चोशी भी बहुत गंभीर बनी हुई है, तो उप-खण्ड (क) में उल्लेखित सीमा के भीतर निवृत्ति-वेतन दिया जाएगा।
(3) यदि किसी शासकीय सेवक को ऐसी चोट लगे; जो नियम 8 की श्रेणी (ग) में आती है तो उसे अनुसूची 2 से उल्लेखित रकम जो उसको लागू होती है, का म वाला उपदान दिया जावेगा। यदि चिकित्सा मण्डल यह प्रमाणित करे कि शासकीय सेवक के एक वर्ष तक के लिये अयोग्य बने रहने की सम्भावना है या यदि उसके बारे में यह प्रमाणित' या जाए कि उसके एक वर्ष से कम समय के लिये सेवा के अयोग्य बने रहने की संभावना है तो उसे आनुपातिक रकम दी जावेगी जो इस प्रकार उल्लिखित की गई रकम की कम से कम एक चौथाई होगीः
परन्तु उन मामलों में जहाँ चोट के (उस चोट के कारण हुई अंग हानि की मात्रा के सम्बन्ध में अवयव विहीनता के तुल्य हो, वहाँ राज्य शासन, यदि वह उचित समझे, उपदान के बदले ऐसा निवृत्ति वेतन दे सकेगा, जो इस नियम के उप-नियम (2) के खण्ड (दो) के अधीन स्वीकार्य रकम से अधिक नहीं होगा।
(4) इस नियम के अधीन दिया गया अस्थायी निवृत्ति वेतन स्थायी चोट निवृत्ति वेतन में तब परिवर्तित किया जा सकेगा जब -
(एक) शासकीय सेवक उस चोट के कारण जिसके कि सम्बन्ध में अस्थायी निवृत्ति वेतन दिया गया था, असमर्थ माना जाकर सेवा से मुक्त कर दिया गया हो या
(दो) अस्थायी निवृत्ति वेतन कम से कम पाँच वर्ष तक प्राप्त लिया गया हो या
(तीन) किसी भी समय, चिकित्सा मण्डल यह प्रमाणित करे कि उसे यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखाई देता है कि अंगहीन को मात्रा में कभी भी कोई संलक्ष्य कमी होगी।
नियम 10. (1) उस शासकीय सेवक के कुटुम्ब को, जो चाहे पद की विशेष जोखिम के या पद की जोखिम के परिणामस्वरूप लगी चोट के कारण मारा जाए या मर जाए, देनगियाँ निम्नानसार की जावेंगी-
(क) अनुसूची 3 में उल्लिखित रकम जो शासकीय सेवक को लागू होती हो, का उपदान और
(ख) ऐसा निवृत्ति वेतन जिसकी रकम अनुसूची 3 में उल्लिखित रकम से, जो शासकीय सेवक को लागू होती हो, से अधिक नहीं होगी।
(2) अराजपत्रित पदाधिकारी के कुटुम्ब को जो डाकुओं से हुई मुठभेड़ में लगी चोटों के कारण या उसी तुल्य जोखिमपूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हुए मारा जाए, निम्नलिखित अतिरिक्त देनगियाँ (एवार्ड) दी जावेंगी
(एक) मध्यप्रदेश के भीतर स्थित विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में सामान्यतः 21 वर्ष की आयु तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा और
(दो) प्रत्येक अविवाहित पुत्री के विवाह के लिये 1,000 रु. से अनधिक राशि या विवाह आर का वास्तविक व्यय; इनमें से जो भी कम हो का एक मुश्त अनुदान, शासन की विशेष मंजरी से उसके माता-पिता या उसके अभिभावक को विवाह के समय देय होगा।
टिप्पणी. - ऐसे शासकीय सेवक की दशा में, जो अपने पीछे दो या अधिक वैध विधवाए छोड़ जाए, इस नियम के अधीन विधवा के लिए स्वीकार्य निवृत्ति-वेतन या उपदान, समस्त विधवाओं में बराबर-बराबर हिस्सों में बाँट दिया जावेगा किन्तु यदि विधवाओं में से किसी को भी, शासकीय सेवक की सम्पति में से उसके द्वारा लिखी गई वसीयत या विलेख के अधीन, कोई भी अंश दिया जाने से पूर्णतः वंचित रखा गया हो तो ऐसी विधवा कोई भी देनगी (एवार्ड) प्राप्त करने के लिये पात्र नहीं होगी और नियमों के प्रयोजन के लिए उसे निगती में नहीं लिया जावेगा।
ऐसे शासकीय सेवक की दशा में, जो अपने पीछे केवल एक विधवा छोड़ जाये, जिसे शासकीय सेवक की सम्पत्ति में से उसके द्वारा लिखी गई वसीयत या विलेख के अधीन कोई, भी अंश दिया जाने से पूर्णतः वंचित रखा गया हो तो इन नियमों के अधीन कोई भी देनगी (एवार्ड) प्राप्त करने के लिये वह अपात्र होगी।
नियम 11. इन नियमों के नियम 10 के अधीन प्रदान किया गया कुटुम्ब निवृत्ति-वेतन कुटुम्ब के भरण-पोषण के लिये होगा। निवृत्ति-वेतन मंजूर करने वाला प्राधिकारी यह उल्लिखित करेगा कि वह किसकी दिया जावेगा और इस सम्बन्ध में विवाद होने की दशा, में प्राधिकारी कुटुम्ब के भिन्नभिन्न सदस्यों के बीच निवृत्ति-वेतन का अभिभाजन करने के लिए सक्षम होगा तथा वह तदनुसार निर्देश दे सकेगा।
टिप्पणी - इस नियम के अधीन जारी किये गये कुटुम्ब देनगी आदेश (फैमिली पेन्शन पेंमेंट आर्डर) में महालेखाकार द्वारा वह अंश दर्शाया जावेगा, जिसके लिये कुटुम्ब का प्रत्येक सदस्य हकदार है और वह घटना या वे घटनाएं भी दर्शाई जावेगी/जिसके/जिनके घटित होने पर किसी विशिष्ट अंश की देनगी रोक दी जावेगी, जैसे पिता के अंश के सामने यह दर्शाया जावेगा कि उसकी मृत्यु होने पर उसके अंश की देनगी रोक दी जावेगी। माता तथा विधवा के अंश के सामने यह दर्शाया जावेगा कि उनके अंश की देनगी उनकी मृत्यु या पुनर्विवाह होने पर रोक दी जावेगी/भाई तथा पुत्र के अंश के सामने यह दर्शाया जावेगा कि उनके अंश की देनगी उनकी मृत्यु या 21 वर्ष की आय होने पर रोक दी जावेगी। बहन तथा पत्री के अंशों के सामने यह दर्शाया जावेगा कि उनके अंश की देनगी, उनका विवाह उनकी मृत्यु या [24]] वर्ष की आयु होने पर रोक दी जावेगी, आदि। ['अंक'- 21 के स्थान पर '24' किये गये। यह संशोधन उन मामलों में लागू होगा जहां पेन्शन इन नियमों के अधीन दिनांक 1-4-79 को अथवा उसके बाद देय हो। वि. वि. क्र. एफ. बी. 6/81/नि-2/चार, दिनांक 15-5-8]
नियम 12. (1) परिवार पेन्शन शासकीय सेवक की मृत्यु के बाद आने वाले दिन से या ऐसे अन्य दिनांक से, जो कि राज्य शासन विनिश्चित करे, प्रभावी होगी।
(2) परिवार पेन्शन सामान्यतः निम्नलिखित अवधि तक चालू रहेगी -
(एक) विधवा/विधुर या माता के मामले में, मृत्यु या पुनर्विवाह तक, जो पहले हो;
(दो) पुत्र या भाई के मामले में, 21 वर्ष की आयु होने तक;
(तीन) अविवाहित पुत्री या बहन के मामले में, विवाह होने तक उसकी [24] वर्ष की आयु होने तक, जो भी पहले हो; तथा ['अंक'- 21 के स्थान पर '24' किये गये। यह संशोधन उन मामलों में लागू होगा जहां पेन्शन इन नियमों के अधीन दिनांक 1-4-79 को अथवा उसके बाद देय हो। वि. वि. क्र. एफ. बी. 6/81/नि-2/चार, दिनांक 15-5-8]
(चार) पिता के मामले में जीवन पर्यन्त ।
[टिप्पणी - विधवा की परिवार पेन्शन पुनर्विवाह पर बन्द हो जाएगी लेकिन जहाँ ऐसा पुनर्विवाह तलाक द्वारा अथवा उसके दूसरे पति द्वारा छोड़ दिये जाने से अभिशून्य हो जाए तो उसकी पेन्शन यह सिद्ध होने पर कि वह आवश्यकता ग्रस्त परिस्थितियों तथा अन्यथा से पात्र है,पुनः प्रतिस्थापित (Restored) हो जावेगी। [अधिसूचना क्र. 1450/नि/952/चार/नि-2, दिनांक 27-6-66 द्वारा संशोधित।]
[12क. नियम 12 के उपनियम (2) के खण्ड (i) में अन्तर्विष्ट किसी बात को होते हुए भी शासकीय सेवक की विधवा जो अपने मृत पति के भाई से पुनर्विवाह करती है तथा उसके साथ निरन्तर जातीय जीवन (communal life) व्यतीत करती है अथवा मृतक के अन्य आश्रितों की सहायता में अपना हिस्सा बंटाती है तो इन नियमों के अधीन अन्यथा से उसे देय असाधारण पेन्शन स्वीकृत की जाती, के लिये वह अपात्र नहीं होगी। [अधिसूचना क्र. एफ. भी 6/3/74/नि-2/चार, दिनांक 27-5-74 द्वारा प्रतिस्थापित ।]
नियम 13. (1) प्रक्रिया विषयक मामलों में, इन नियमों के अधीन दी जाने वाली समस्त देनगियाँ साधारण निवृत्त-वेतनों से सम्बन्धित तत्समय किन्हीं भी प्रक्रिया नियमों के अधीन, उस सीमा तक रहेंगी, जहाँ तक कि ऐसे प्रक्रिया नियम लागू होने योग्य हों तथा इन नियमों से अंसगत न हों।
(2) जब कोई चोट निवृत्ति-वेतन या उपदान या परिवार पेंशन सम्बन्धी दावा उद्भूत हो, उस कार्यालय का प्रमुख या विभागाध्यक्ष, जिसमें घायल या मृत शासकीय सेवक नियोजित था उस दावे को निम्नलिखित दस्तावेजों के साथ राज्य शासन को समुचित मार्ग से अग्रेषित करेगा-
(एक) उन परिस्थितियों का पूर्ण विवरण, जिनमें चोट आई थी बीमारी लगी थी या मृत्यु हुई थी;
(दो) प्रारूप 'क' में चोट निवृत्ति-वेतन या उपदान के लिये, आवेदन-पत्र या जैसी भी स्थिति हो, अनुसूची 4 में दिये गये प्रारूप के प्रारूप 'ख' में परिवार पेन्शन के लिये आवेदन पत्र
(तीन) किसी आहत शासकीय सेवक या उस व्यक्ति के मामले में जिसे बीमारी हो गई हो, अनुसूची 4 में दिये गये प्रारूपों के प्रारूप 'ग' में डाक्टरी रिपोर्ट/मृत शासकीय सेवक के मामले में, मृत्यु के सम्बन्ध में डाक्टरी रिपोर्ट या यदि शासकीय सेवक की मृत्यु ऐसी परिस्थितियों में हई हो कि डाक्टरी रिपोर्ट प्राप्त न की जा सकी ही तो वस्ततः मृत्यु होने के सम्बन्ध में विश्वसनीय साक्ष्यः
(चार) सम्बन्धित लेखा परीक्षा पदाधिकारी की इस बाबत् रिपोर्ट कि क्या नियमों के अधीन कोई देनगी (एवार्ड) स्वीकार्य है, यदि हाँ तो कितनी रकम;
(पाँच) उन आदाताओं के नाम, जिनको उपदान तथा निवृत्ति-वेतन चुकाया जाएगा और उनका मृत शासकीय सेवक में सम्बन्ध और
(छः) जहाँ राज्य शासन ऐसे शासकीय सेवक द्वारा जिसके कि बारे में उसे (राज्य शासन को) चोट या अशाधारण निवृत्ति-वेतन की मंजूरी के प्रयोजन के लिये डाक्टरी रिपोर्ट प्राप्त हो गई हो, उसके (राज्य शासन के) समक्ष प्रस्तुत किये ये साक्ष्य से यह समाधान हो जाए कि उस चिकित्सा मण्डल के जिसने की उनकी (शासकीय सेवक की) परीक्षा की थी, विनिश्चय में निर्णय की भूल हो सकती है, वहाँ राज्य शासन दूसरे चिकित्सा मण्डल को जिसमें कि उन सदस्यों से भिन्न सदस्य होंगे जिनसे कि पहले चिकित्सा मण्डल का गठन हुआ था, यह निदेश दे सकेगा कि वह उस पदाधिकारी की परीक्षा करे तथा शासन को उस मामले में रिपोर्ट भेजे। उस पदाधिकारी को निवृत्ति-वेतन इस दूसरे चिकित्सा मण्डल के विनिश्चयानुसार मंजूर किया जायेगा। [अधिसूचना क्र. 2091/चार/नि-2, दिनांक 21-8-65 जोड़ा गया।]
[नियम 14. (1) नियम 13 में अन्तर्विष्ट किसी बात होते हुए भी पुलिस अधीक्षक/कमांडेंट जिसके अधीन बल का सदस्य कार्य कर रहा था, देनगी के सम्बन्ध में औपचारिक सत्यापन की  प्रतीक्षा किये बिना ही बल के आहत सदस्य के निर्वाह के लिये अथवा उसकी मृत्यु होने की दशा में, उसकी विधवा या अन्य उत्तरजीवियों को ऐसी धनराशि का अग्रिम तुरन्त दे सकेगा जो कि उस मामले में स्वीकार्य उपदान की रकम की आधी से अधिक नहीं हो, बशर्ते कि बल के सदस्यों को डाकू के विरुद्ध कार्यवाही करते हुएया ऐसे ही जोखिम भरी कर्तव्यों का पालन करते हुए चोट लगी हो या उसकी मृत्यु हो गई हो।] [अधिसूचना क्र. 865/चार/नि-2, दिनांक 21-4-64 द्वारा जोड़ा गया।]
[(2) महालेखाकार, मध्यप्रदेश उन पुलिस कर्मचारियों के मामलों में, जो डाकुओं या नागालैंड में शत्रुओं के विरुद्ध कार्यवाही करते समय मारे गये हों या आहत हो गये हों, असाधारण निवृत्तिवेतन/उपदान की स्वीकार्य रकम के 75 प्रतिशत की सीमा तक संभावित (एन्टीसिपेटरी) निवृत्तिवेतन/उपदान मंजूर करने के लिए सशक्त है।] [अधिसूचना क्र. 2302/नि-2/चार, दिनांक 22-9-65 द्वारा संशोधित।]
 
राज्य शासन आदेश
Subject :- Home Guards/Special Police Officers- Grant of Extraordinary pension and other benefits to.
The State Government are pleased to decide that the Madhya Pradesh Civil Services (Extraordinary) Pension Rules, 1963 Shall apply to come Guards/Special Police Officers in the event of their ith/receiving injury in performance of duties for purposes of pensionary benefit. They will be treated on par with a police constable drawing the minimum pay of the scale. If in special cases, the status of the person concerned or the family affected require a higher award, the same will be considered by Government on merits. [M.P.F.D. Memo No. 1511/C-R-701/IV/R-II, dated 11-6-65 addressed to A. G. M. P.]
(2)
विषयः- राज्य वेतन आयोग की अनुशंसाओं के परिप्रेक्ष्य में राज्य शासन के कर्मचारियों को दुर्घटना/चोट के कारण असाधारण पेंशन का पुनरीक्षण/स्पष्टीकरण।
राज्य के कर्मचारियों को दुर्घटना/चोट लगने पर मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण) पेंशन नियम, 1963 अंतर्गत लाभ मिलने के संबंध में राज्य वेतन आयोग द्वारा की गयी अनुशंसा के परिप्रेक्ष्य में राज्य शासन द्वारा वांछित स्पष्टीकरण एवं संबंधित पेंशन नियम की अनुसूची-2 एवं अनुसूची3 में दी गई उल्लेखित दरों को निम्नानुसार पुनरीक्षित किया जाना है :-
1. मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण) पेंशन नियम, 1963 केवल गैर पुलिस कर्मचारियों को लागू होंगे। पुलिस कर्मचारियों को मध्यप्रदेश (पुलिस कर्मचारी वर्ग-असाधारण परिवार निवृत्ति वेतन) नियम, 1965 के प्रावधान लागू रहेंगे।
2. मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण) पेंशन नियम, 1963 के नियम 9 की अनुसूची दोचोट के अंतर्गत उच्चतर मान अर्थात् चोट के परिणामस्वरूप एक से अधिक अवयवों का या एक आंख का स्थाई लोप होने की दशा में वेतन का दो तिहाई परन्तु अधिक से अधिक रु. 3000 होगा।
3. यदि चोट का स्वरूप इस प्रकार का है कि शासकीय सेवक उसी पद अथवा किसी अन्य पद पर सेवा में निरन्तर रहता है तब इन नियमों के अंतर्गत देय असाधारण पेंशन उसकी सेवानिवृत्ति के दिनांक तक देय होगी।
4. यदि चोट का स्वरूप ऐसा है जिसके कारण कर्मचारी को उसकी सामान्य सेवानिवृत्ति की दिनांक के पहले ही सेवा से मुक्त कर दिया जाता है तो इन नियमों के अंतर्गत कर्मचारी को देय
असाधारण पेंशन उसके परिवार को वर्तमान में प्रचलित प्रतिबंधों एवं शर्तों के अधीन देय परिवार पेंशन के अतिरिक्त देय होगी।
5. मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण) पेंशन नियम, 1963 के नियम 10 की अनुसूची तीन के अंतर्गत असाधारण परिवार पेंशन की राशि एवं सामान्य पेंशन नियमों के अंतर्गत देय परिवार पेंशन की राशि मृत शासकीय सेवक के परिवार के भरण पोषण के लिये अपेक्षित राशि से कम होना संभावित नहीं है अतः मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण) पेंशन नियम, 1963 की अनुसूचीतीन की टिप्पणी-2 के अंतर्गत राशि में वृद्धि के प्रावधान विलोपित किये जाते हैं।
2. ऊपर वर्णित कंडिका-2 में उल्लेखित दरें दिनांक 1-8-2012 से लागू होगी। मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण) पेंशन नियम, 1963 में यथास्थान संशोधन आदेश पृथक से जारी किए जाएंगे।
अनुसूची - दो
(नियम 9)
चोट उपदान तथा निवृत्ति वेतन-
निवृत्ति वेतन
उच्चतर ग्रेड पे बैंड अधिकतम रु. 5000 के अध्यधीन रहते हुए वेतन और ग्रेड वेतन का दो-तिहाई
निम्नतर ग्रेड पे बैंड अधिकतम रु. 3000 के अध्यधीन रहते हुए वेतन का एक-तिहाई
उपादान
उच्चर मान 8 मास का वेतन (वेतन बैंड + ग्रेड वेतन)
निम्न मान 7 मास का वेतन (वेतन बैंड + ग्रेड वेतन)
 
टिप्पण 1 - उपदान तथा निवृत्ति-वेतन, दोनों ही, पाने वाले पूरे कुटुम्ब के भरण-पोषण हेतु दिये जाएंगे।
अनुसूची- एक
(नियम 3 के खण्ड (5) की टिप्पणी)
चोटों का वर्गीकरण
निम्नलिखित स्थितियाँ अवयव विहीनता के तुल्य हैं...........
पक्षाघात (अफेसिया) के बिना पक्षाघात (हेमीप्लेजिया)।
श्वासनालछेद (ट्रैक्योटोमी) ट्यूब का स्थायी उपयोग।
कृत्रिम गुदा (आर्टीफिशियल एनस)।
दोनों कानों का पूर्ण बहरापन ।
अत्यन्त गम्भीर
पूर्ण एकपक्षीय मुख - पक्षाघात (फेशियल पैरालिसिस), जिसके स्थायी हो जाने की संभावना हो । गुर्दा (किडनी), मूत्र नली (यूरेटर) या मूत्राशय (ब्लेडर) का घाव।
सव्रण अस्तिभंग (कम्पाउन्ड फ्रैक्चर) अंगुलस्थियों को छोड़कर।
शरीर के कोमल अंगो का इतनी अधिक सीमा तक नष्ट हो जाना कि जिसके परिणापस्वरूप स्थायी अंगहानि हो जाए या वे कोमल अंग कार्य करना बन्द कर दें।
गंभीर चोट जिसके स्थायी होने की सम्भावना है-
निम्नलिखित जोड़ों में से किसी एक संधिस्थैर्य (अंकीलोसिस) या उसके हिलने-डुलने में पर्याप्त रुकावट होना -
घुटना, कोहनी, कन्धा, पुट्ठा, टखना, टेम्पारो-मेक्सिलरी या रीढ़ की हड्डी के कटि पृष्ठ (डोरसीलम्बर) संबंधी या ग्रीवा (सर्वीकल) संबंधी भागों का कड़ापन ।
एक नेत्र की दृष्टि का आंशिक रूप में लोप ।
एक अण्डकोश का विनाश या लोप।
बाह्य पदार्थों का प्रतिधारण, जिससे कोई स्थायी या गम्भीर रोग-लक्षण उत्पन्न होते हों।
राज्य शासन आदेश
चौधरी वेतन आयोग की सिफारिशों पर राज्य शासन के निर्णय- असाधारण पेन्शन
मध्यप्रदेश सिविल सेवा (असाधारण निवृत्ति-वेतन) नियम, 1963 की अनुसूची -3 में अंकित टिप्पणी 2 के प्रावधानों के अनुसार प्राप्तिकर्ता को चुकाये जाने वाले वेतन के आधे के बराबर निवृत्ति-वेतन की कुल राशि से कम होती हो तो निम्नलिखित दरों से उसके अध्यधीन रहते हुए अंकित न्यूनतम तथा अधिकतम की सीमाओं में परिवार पेन्शनस्वीकृत की जाती है।
 
मृत शासकीय सेवक से कुटुम्ब के सदस्य का सम्बन्ध
निवृत्ति-वेतन का न्यूनतम
निवृत्ति-वेतन का अधिकतम
(1)
(2)
(3)
(क) विधवा/विधुर (मृत्यु या पुनर्विवाह पर्यन्त जो भी पहले हो)
20
250
(ख) (1) 21 वर्ष से कम आयु का पुत्र जो मातृहीन हो
20
75
(2) 24 वर्ष से कम आयु की पुत्री जो मातृ हो
20
75
(ग) (1) 21 वर्ष से कम आयु का पुत्र जो मातृहीन न हो
10
50
(2) 24 वर्ष से कम आयु की पुत्री जो मातृ-हीन हो
10
50
(घ) (1) 21 वर्ष से कम आयु का भाई
10
50
(2) 24 वर्ष से कम आयु की बहिन
10
50
(ङ) पिता या माता
20
75
 
चौधरी वेतन आयोग की असाधारण पेन्शन सम्बन्धी सिफारिश पर राज्य शासन द्वारा विचार किया जाकर निर्णय लिया गया कि उपरोक्त पेन्शन की दरों में निम्न प्रकार वृद्धि की जाए-
 
मृत शासकीय सेवक से कुटुम्ब के सदस्य का सम्बन्ध
निवृत्ति-वेतन का न्यूनतम
निवृत्ति-वेतन का अधिकतम
(1)
(2)
(3)
(क) विधवा/विधुर (मृत्यु या पुनर्विवाह पर्यन्त जो भी पहले हो)
40
500
(ख) (1) 21 वर्ष से कम आयु का पुत्र जो मातृहीन हो
40
150
(2) 24 वर्ष से कम आयु की पुत्री जो मातृहीन हो
40
150
(ग) (1) 21 वर्ष से कम आयु का पुत्र जो मातृहीन न हो
20
100
(2) 24 वर्ष से कम आयु की पुत्री जो मातृ-हीन हो
20
100
(घ) (1) 21 वर्ष से कम आयु का भाई
20
100
(2) 24 वर्ष से कम आयु की बहिन
20
100
(3) माता पिता
40
150
(4) 24 वर्ष से कम आयु की बहिन
20
100
(ङ) पिता या माता
40
150
 
मृत शासकीय सेवक से
निवृत्ति-वेतन निवृत्ति-वेतन कुटुम्ब के सदस्य का सम्बन्ध
का न्यूनतम का अधिकतम
2. इन्हीं नियमों की अनुसूची- 2 में उच्चतर मान में वेतन का दो तिहाई रु. 750/- की अधिकतम सीमा में तथा निम्न मान में वेतन का एक तिहाई रु. 400/- की अधिकतम सीमा में पेन्शन स्वीकृत किये जाने का प्रावधान है। चौधरी वेतन आयोग की सिफारिशों पर विचारोपरान्त राज्य शासन द्वारा यह भी निर्णय लिया गया है कि मासिक पेन्शन की अधिकतम सीमा मृत शासकीय कर्मचारी के वेतन के उच्चतर मान में रु. 1500/- एवं निम्नमान में रु. 800/- जो भी कम हो, से अधिक नहीं होना चाहिये।
3. यह आदेश दिनां 14-10-82 तो या इसके पश्चात् उत्पन्न हुए प्रकरणों में लागू होंगे।
[वित्त विभाग क्र. एफ. बी. 6/9/82/नि-2/चार, (2) दिनांक 9 फरवरी, 1983]
परन्तु विभिन्न सदस्यों को उपर्युक्त आधार पर मंजूर किये गये निवृत्ति वेतन की कुल रकम मृत शासकीय सेवक की मृत्यु या उसे चोट लगने के दिनांक को मिलने वाले वेतन या 500 रुपये प्रतिमाह से, जो भी कम हो,अधिक नहीं होगी।
टिप्पणी 3. यदि किसी मामले में, ऊपर टिप्पणी 2 के अनुसार गणना किये गये निवृत्ति-वेतन की कुल रकम 500 रुपये की सीमा से या मृत्यु होने अथवा चोट लगने के दिनांक को मृत शासकीय सेवक के वेतन से अधिक होती हो, तो निवृत्ति-वेतन के प्रत्येक अलग-अलग अंश की राशि में अनुपातः कमी की जावेगी ताकि उक्त राशि ऐसी सीमा तक कम की जा सके। यदि अंश एक बार अनुपात के आधार पर नियत कर दिया जाए तो उसमें किसी भी दशा में वृद्धि नहीं की जावेगी।
टिप्पणी 4. जब ऐसे उदाहरण सामने आए, जिनमें मृत सेवक के कुटुम्ब के प्रभावशील तथा स्वार्थी सदस्य कुटुम्ब के अन्य सदस्यों की अवयस्कता या कमजोरी का लाभ उठाकर या कमजोर सदस्यों को शास द्वारा मंजूर किये गये निवृत्ति-वेतन के वैध अंश से वंचित कर देते है तो इस प्रकार की संभावना को समाप्त करने की दृष्टि से सक्षम प्राधिकारी को यह अधिकार होगा कि वह शासन द्वारा मंजूर किये उपादन तथा निवृत्तिवेतन को प्रत्येक सदस्य में अलग-अलग विभाजित कर दें।
टिप्पण 5. विधवा तथा बच्चों के मामले को छोड़कर, कुटुम्ब के सदस्यों को (नियम 10 के अधीन) की गई देनगी (award) का, निवृत्ति वेतन भोगी की आर्थिक दशा में सुधार होने पर ऐसी रीति में, जो कि राज्य शासन विहित करे, पुनर्विलोकन किया जा सकेगा।
अनुसूची - चार
प्ररुप 'क'
(नियम 13)
चोट निवृत्ति-वेतन या उपदान के लिये आवेदन - पत्र का प्रारूप
1. आवेदक का नाम
2. पिता का नाम
3. वंश, सम्प्रदाय तथा जाति
4. ग्राम तथा परगना (तहसील) दर्शाते हुए निवास-स्थान
5. स्थापना के नाम सहित वर्तमान/पिछला नियोजन
6. सेवा आरंभ करने का दिनांक
7. सेवा के क्रम-भंगों सहित सेवा की अवधि...............जिसमें से वरिष्ठ सेवा की
अवधि........ है, निम्न सेवा की अवधि.......................है, अनर्हकारी सेवा की
अवधि.................... है, और सेवा से क्रमभंग........... है।
8. चोट का वर्गीकरण
9. चोट के लगने के समय का वेतन
10. प्रस्तावित सेवा निवृत्ति-वेतन या उपदान
11. चोट लगने का दिनांक
12. देनगी का स्थान
13. विशेष टिप्पणियाँ, यदि कोई हों
14. आवेदक की जन्म तिथि (ईस्वी सन् के अनुसार)
15. ऊँचाई
16. चिन्ह, अंगूठे तथा आंगुली की छाप, अंगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका कनिष्ठिका
17. दिनांक, जिसको आवेदक ने निवृत्ति-वेतन के लिये आवेदन किया हो।
.......................................
कार्यालय प्रमुख के हस्ताक्षर
टिप्पणी - यूरोपीय महिलाओं राजपत्रित पदाधिकारियों, शासकीय उपाधिधारियों तथा ऐसे अन्य व्यक्तियों के मामले में, जिन्हें शासन द्वारा विशेष रूप से छूट दी जाए, अंगूठे तथा अंगुलियों की छापों तथा ऊँचाई की विशिष्टियों का और शारीरिक चिन्हों का लिया जाना अपेक्षित नहीं है।
 
प्ररूप 'ख'
(नियम 13)
परिवार पेन्शन के लिये आवेदन-पत्र का प्रारूप
स्वर्गीय क, ख, के जो.................... थे और पद की विशेष जोखिम या पद की जोखिम के परिणामस्वरूप मारे गये थे या पद की विशेष जोखिम या पद की जोखिम के परिणामस्वरूप लगी चोटों के कारण मर गये थे, कुटुम्ब के लिये असाधारण निवृत्ति-वेतन हेतु आवेदन-पत्र..................... द्वारा प्रस्तुत किया गया।
दावेदार का वर्णन-
1. नाम तथा ग्राम एवं परगना (तहसील) दर्शाते हुए निवास स्थान
2. आयु
3. ऊँचाई
4. वंश जाति या कुल
5. पहिचान के चिन्ह
6. वर्तमान धन्धा तथा आर्थिक स्थिति
7. मृतक से सम्बन्ध
मृतक का वर्णन-
8. नाम
9. धन्धा तथा सेवा
10. सेवा की अवधि
11. वेतन, जबकि वह मारा गया
12. उस चोट का स्वरूप जिसके कारण मृत्यु हुई
13. प्रस्तावित निवृत्ति-वेतन या उपदान की रकम
14. देनगी का स्थान
15. वह दिनांक जिससे निवृत्ति-वेतन प्रारम्भ होगा
16. टिप्पणियाँ
नाम...............................
जन्म -तिथि................. (ईस्वी सन् के अनुसार) मृतक के उत्तरजीवी संगोत्र सम्बन्धियों के नाम तथा उनकी आयु-
पुत्र
विधवाएँ
पुत्रियाँ
पिता
माता
*यदि ठीक-ठीक मालूम न हो तो सर्वोत्तम जानकारी या अनुमान के आधार पर बताई जाए।
टिप्पणी. यदि मृतक के कोई उत्तरजीवी पुत्र, विधवा, पुत्री, पिता या माता न हो तो ऐसे सम्बन्धी के नाम के आगे शब्द “कोई नहीं" या "मृत" लिखा जाए।
दिनांक.......................... .........…………………….
स्थान........................... कार्यालय प्रमुख के हस्ताक्षर
 
प्रारूप 'ग’
(नियम 13)
चोटों के सम्बन्ध में रिपोर्ट देते समय चिकित्सा मण्डलों द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला का प्रारूप]
चिकित्सा मण्डल का कार्य-विवरण
गोपनीय-
श्री.......................को दिनांक (चोट आदि का दिनांक).................. के स्थान (चोट आदि का स्थान)...................... में लगी चोट, हुई बीमारी की वर्तमान दशा की परीक्षा करने और उसके सम्बन्ध में रिपोर्ट देने के प्रयोजनों के लिये............. के आदेशानुसार समवेत चिकित्सा मण्डल के कार्य विवरण -
(क) उन परिस्थितियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए, जिनमें चोट लगी हो/बीमारी हो।
(ख) शासकीय सेवक की वर्तमान दशा कैसी है।
(ग) क्या शासकीय सेवक की वर्तमान दशा पूर्णतया चोट/बीमारी के कारण हुई है? यदि नहीं तो बताईये कि उसके अन्य क्या-क्या कारण है।
(घ) बीमारी की दशा में, यह बताइये कि किस दिनांक से प्रतीत होता है कि शासकीय सेवक असमर्थ हो गया है।
नीचे दिये गये प्रश्नों के सम्बन्ध में मण्डल की राय निम्नानुसार है -
भाग क- प्रथम परीक्षा
चोट की गम्भीरता, निम्नलिखित वर्गीकरण के अनुसार आंकी जानी चाहिये तथा उससे, सम्बन्धित ब्यौरे नीचे टिप्पणियों के कालम में दिये जाने चाहिये-
1. क्या चोट निम्न प्रकार की है -
(एक) (क) एक आँख या किसी अवयव का लोप ।
(ख) एक से अधिक आँख का अवयव का लोप ।
(दो) एक आँख या अवयव लोप से अधिक गम्भीर |
(तीन) एक आँख या एक अवयव के लोप के तुल्य ।
(चार) अत्याधिक गम्भीर ।
(पाँच) गम्भीर तथा सम्भाव्यता स्थायी होने वाली।
(छह) गम्भीर किन्तु सम्भाव्यतः स्थायी होने वाली।
(सात) हल्का किन्तु सम्भाव्यतः स्थायी होने वाला।
2. चोट लगने के दिनांक से कितनी कालावधि तक-
(क) शासकीय सेवक कर्त्तव्य के लिये अयोग्य रहा।
(ख) शासकीय सेवक के कर्त्तव्य पालन के लिये अयोग्य बने रहने की सम्भावना है?
टिप्पणी. यदि आवश्यक हो तो उपर्युक्त वर्गीकरण का विस्तार किया जा सकता है या मुख्य चोट के अतिरिक्त लगी अन्य चोटों के ब्यौरे, दिये जा सकते हैं।
भाग
द्वितीय या पश्चात्वर्ती चिकित्सा परीक्षाएं यदि शासकीय सेवक की अंगहानि की प्रारम्भिक मात्रा में परिवर्तन हुआ हो, तो अब उसे उपर्युक्त श्रेणियों में से किस श्रेणी में रखा जाना चाहिये।
टिप्पणी - (यदि आवश्यक हो तो यहाँ अतिरिक्त ब्यौरे दिये जा सकेगें) रिपोर्ट तैयार करने वाले चिकित्सा मण्डल द्वारा पालन किये जाने वाले अनुदेश।
1. चिकित्सा मण्डल को अपनी राय अभिलिखित करने के पूर्व, पिछले चिकित्सा मण्डलों के यदि कोई हों, कार्य-विवरणों पर और उनके समक्ष परीक्षण के लिये प्रस्तुत किये गये शासकीय सेवक से सम्बन्धित समस्त पिछली चिकित्सा दस्तावेजों पर भी विचार कर लेना चाहिये।
2. यदि चोटें एक से अधिक हों, तो उन्हें पृथक्-पृथक् क्रमांकित तथा वर्णित किया जाना चाहिये और यदि ऐसा समझा जाए कि वे यद्यपि अपने आप में केवल “गम्भीर" या "हल्की" हैं किन्तु वे सम्मिलित रूप से एक “बहुत गम्भीर' चोट के तुल्य हैं, तो ऐसी राय इसके लिये कॉलम में व्यक्त की जा सकेंगे।
3. विहित प्रारूप में प्रश्नों का उत्तर देते समय, चिकित्सा पण्डल, के केवल चिकित्सीय पहलू तक ही अपने को सीमित रखेगा और शासकीय सेवक के असमर्थित कथनों तथा प्राप्त चिकित्सीय एवं लिखित साक्ष्य के बीच सावधानीपूर्वक विभेद करेगा।
4. मण्डल उस शासकीय सेवक को, जिसकी परीक्षा की गई हो या अपनी रिपोर्ट में इस सम्बन्ध में कि क्या। वह (शासकीय सेवक), प्रतिकर का हकदार है या इस सम्बन्ध में कि प्रतिकल की रकम कितनी होगी, कोई राय नहीं करेगा और न वह शासकीय सेवक को यह जानकारी देगा कि चोट किस प्रकार वर्गीकृत की गई है।